Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Atmagyan Pith

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Page 470
________________ सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र (A). By questioning, the soul obtains the correct comprehension of scriptures and their meanings-both and destroys the desire evoking infatuation karma. सूत्र २२ - परियट्टणाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? एकोनत्रिंश अध्ययन [ ३६८ परियट्टणाए णं वंजणाई जणयइ, वंजणलद्धिं च उप्पाएइ ॥ सूत्र २२ - ( प्रश्न) भगवन् ! परावर्तना (पठित पाठ का पुनरावर्तन) से जीव क्या प्राप्त करता है ? (उत्तर) परावर्तना से जीव व्यंजन ( शब्द पाठ) को प्राप्त कर व्यंजन लब्धि - पदानुसारिणी आदि लब्धि प्राप्त कर लेता है। Maxim 22. ( Q ). Bhagawan ! What does the soul achieve by repetition of learnt knowledge? (A). By repetition of learnt knowledge, soul becoming master of consonants achieves the exalt of words i.e., he can recite the full line by hearing one word only. सूत्र २३ - अणुप्पेहाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? अणुप्पेहाए णं आउयवज्जाओ सत्तकम्मप्पगडीओ घणियबन्धणबद्धाओ सिढिलबन्धणबद्धाओ पकरे । दीहकालट्ठियाओ हस्सकालडिइयाओ पकरेइ । तिव्वाणुभावाओ मन्दाणुभावाओ पकरेइ । बहुपएसग्गाओ अप्पपएसग्गाओ पकरेइ । आउयं च णं कम्मं सिय बन्धइ, सिय नो बन्धइ । असायावेयणिज्जं च णं कम्मं नो भुज्जो भुज्जो उवचिणाइ । अणाइयं च णं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरन्तं संसारकन्तारं खिप्पामेव वीइवयइ ॥ सूत्र २३ - ( प्रश्न) भगवन् ! अनुप्रेक्षा (सूत्र और उसके चिन्तन मनन) से जीव को क्या प्राप्त होता है ? (उत्तर) अनुप्रेक्षा से जीव आयु कर्म को छोड़कर (शेष) सात कर्म प्रकृतियों के प्रगाढ़ बन्धन को शिथिल बन्धन में परिणत कर देता है-शिथिल करता है। उनकी दीर्घकालीन स्थिति को अल्पकालीन कर देता है। तीव्र अनुभाव ( अनुभाग ) को मन्द अनुभाव कर देता है। बहुत प्रदेशाग्रों को अल्पप्रदेशाग्रों में परिणत करता है। आयु कर्म का कदाचित् बन्ध करता है, कदाचित् बन्ध नहीं भी करता है । असाता वेदनीय कर्म का बार-बार उपचय नहीं करता । अनादि अनन्त दीर्घ मार्ग वाले चतुर्गतिरूप संसाररूपी वन को शीघ्र ही पार (वीयवयइ - व्यतिक्रम) कर लेता है। Maxim 23. (Q). Bhagawan ! What gain does the soul get by pondering over the learnt knowledge? (A). By pondering deeply over learnt knowledge, the soul loosens the rigid bondage of seven karmas (except age duration karma), he diminishes their (of seven karmas) long duration to short duration, mitigates intense fruition to dim, diminishes their huge mass (प्रदेशाग्र) to a few, binds age duration karma and even not binds-both are possible, does not accumulate inauspicious emotion evoking karma again and again, he crosses quickly the worldly forest of four existences, which is very long. सूत्र २४ - धम्मकहाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? धम्मकहाए णं निज्जरं जणयइ । धम्मकहाए णं पवयणं पभावेइ । पवयणपभावे णं जीवे आगमिस्स भत्ताए कम्मं निबन्धइ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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