Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Atmagyan Pith

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Page 448
________________ सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र अष्टाविंश अध्ययन [ ३४६ एयं पंचविहं नाणं, दव्वाण य गुणाण य । पज्जवाणं च सव्वेसिं, नाणं नाणीहि देसियं ॥ ५ ॥ यह पाँच प्रकार का ज्ञान सर्व द्रव्य, गुण, पर्यायों का अवबोधक है - जानने वाला है - ऐसा ज्ञानियों ने कहा है ॥५॥ Learneds have told that this five-fold knowledge cognises all the attributes, modifications and substances. (5) गुणाणमासओ दव्वं, एगदव्वस्सिया लक्खणं पज्जवाणं तु, उभओ अस्सिया भवे ॥६॥ गुणा । गुणों का आश्रय- आधार द्रव्य है। द्रव्य के आश्रित रहने वाले गुण हैं। द्रव्य और गुण-दोनों के आश्रित रहना, पर्यायों का लक्षण है ॥ ६ ॥ Substance is the substrate of attributes; the attributes are inherent in a substance, the characteristic of modifications is that they inhere in either. (6) धम्मो अहम्मो आगासं, कालो पुग्गल - जन्तवो । एस लोगो त्ति पन्नत्तो, जिणेहिं वरदंसिहिं ॥७॥ धर्म, अधर्म, आकाश, काल, पुद्गल और जीव- ये छह द्रव्य हैं, इनसे युक्त द्रव्यात्मक लोक है - ऐसा वरदर्शी - प्रत्यक्षदर्शी जिनवरों ने कहा है ॥७॥ Dharma, Adharma, Space, Time, Matter and Soul - these are six substances; they make up this world-universe, it is taught by Jinas -the omniscients. ( 7 ) धम्मो अहम्मो आगासं, दव्वं इक्किक्कमाहियं । अणन्ताणि य दव्वाणि, कालो पुग्गल - जन्तवो ॥८॥ धर्म, अधर्म और आकाश - ये तीनों द्रव्य संख्या में एक-एक हैं। काल, पुद्गल और जीव- ये तीनों द्रव्य संख्या में अनन्त - अनन्त हैं ॥८॥ Dharma, Adharma and Space-these three are each one substance in number while Time, Matter and Souls-these three are each infinite substances in number. (8) Jain Education International गइलक्खणो उ धम्मो, अहम्मो ठाणलक्खणो । भायणं सव्वदव्वाणं, नहं ओगाहलक्खणं ॥९॥ गति (गमन क्रिया में उदासीन हेतुता) धर्म द्रव्य का लक्षण है, स्थिति (ठहरने में उदासीन हेतुत्व) अधर्म द्रव्य का लक्षण है, सभी द्रव्यों का आधार (भाजन) बनना - अवगाह देना आकाश द्रव्य का लक्षण है ॥ ९ ॥ The characterstic of Dharma substance is motion (fulcrum of motion) of Adharma substance is rest-static (fulcrum of rest) and that of Space to make room for every thing. (9) वत्तणालक्खणो कालो, जीवो उवओगलक्खणो । नाणेणं दंसणेणं च, सुहेण य दुहेण य ॥१०॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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