Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Atmagyan Pith

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Page 440
________________ त सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र सप्तविंश अध्ययन [३४० कोई मार्ग के एक ओर पार्श्व में गिर जाता है तो कोई बैठ जाता है और कोई लम्बा लेट जाता है। कोई कूदता है, कोई उछलता है तो कोई तरुण गाय (बालगवी ) के पीछ भाग जाता है ॥५॥ Any falls on its side, the other sits and another lies, and jumps or crapes and another runs after a young cow. (5) माई मुद्धेण पडई, कुद्धे गच्छइ पडिप्पहं । मयलक्खेण चिट्ठई, वेगेण य पहावई ॥६॥ कोई मायावी (धूर्त बैल) सिर को निढाल बना कर-सिर के बल भूमि पर लुढ़क-गिर जाता है। कोई क्रोधित होकर उन्मार्ग (प्रतिपथ) में अथवा उलटे पैरों पीछे की ओर चल पड़ता है। कोई मृतक के समान पड़ा रहता है तो कोई वेग से दौड़ने लगता है ॥६॥ Any drops with stretched head, the other goes the wrong way angrily or relurns. Any falls flat as dead and any dashes headlong at top speed. (6) छिन्नाले छिन्दई सेल्लिं, दुद्दन्तो भंजए जुगं । से वि य सुस्सुयाइत्ता, उज्जाहित्ता पलायए ॥७॥ कोई दुष्ट बैल (छिन्नाल) रास (रस्सी) को छिन्न-भिन्न कर देता है, तोड़ देता है, दुर्दान्त होकर जूए को तोड़ देता है और सूं सूं की ध्वनि निकालता हुआ वाहन को छोड़कर पलायन कर जाता है ॥७॥ Any bull breaks up the rope and yoke, making sound with nostrils runs away leaving the cart. (7) खलुंका जारिसा जोज्जा, दुस्सीसा वि हु तारिसा । जोइया धम्मजाणम्मि, भज्जन्ति धिइदुब्बला ॥८॥ ___ जैसे वाहन में जोते हुए दुष्ट बैल वाहन को तोड़ देते हैं उसी प्रकार धृति-दुर्बल (धैर्य में कमजोर) शिष्यों को धर्मयान में जोतने पर वे भी उसे तोड़ देते हैं ॥८॥ As the stupid bulls yoked in a cart break it up, so the fraudulent disciples, due to lack of perseverence break up the chariot of religion. (8) इड्ढीगारविए एगे, एगेऽत्थ रसगारवे । सायागारविए एगे, एगे सुचिरकोहणे ॥९॥ (उन शिष्यों में) कोई ऋद्धि-ऐश्वर्य का गौरव (अहंकार) करता है, कोई रस का गौरव करता है, कोई साता-सुख का गौरव करता है तो कोई दीर्घकाल तक क्रोध करता रहता है ॥९॥ Among those disciples any becomes the poudy of prosperity, any of taste and any other of pleasures and some one else revel in anger upto long time. (9) भिक्खालसिए एगे, एगे ओमाणभीरुए थद्धे । एगं च अणुसासम्मी, हेऊहिं कारणेहिं य ॥१०॥ कोई भिक्षाचरी में (भिक्षा हेतु जाने में) आलस्य करता है, तो कोई अपमान से डरता है तो कोई स्तब्ध ढीठ होता है। हेतु और कारणों से गुरु किसी को अनुशासित करते हैं तो-॥१०॥ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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