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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
Completing Kayotsarga meditation again pay respect to teacher and then singing the praise of perfected souls inspect the time well. (43)
रात्रिक कृत्य एवं प्रतिक्रमण
पढमं पोरिसिं सज्झायं, बीयं झाणं झियायई । तइयाए निद्दमोक्खं तु, सज्झायं तु चउत्थिए ॥४४॥
षड्विंश अध्ययन [ ३३४
(रात्रि की ) प्रथम पौरुषी - प्रहर में स्वाध्याय, दूसरे प्रहर में ध्यान करे, तीसरे प्रहर में शयन करे - निद्रा ले और चौथे प्रहर में स्वाध्याय करे ॥ ४४ ॥
Study in first pauruși of night, meditate in second, take sleep in third and again study in fourth. (44)
पोरिसीए चउत्थीए, कालं तु पडिलेहिया ।
सज्झायं तओ कुज्जा, अबोहेन्तो असंजए ॥४५॥
किन्तु चौथी पौरुषी - प्रहर में काल की प्रतिलेखना करके तदनन्तर असंयमी लोगों को न जगाता हुआ स्वाध्याय करे ||४५ ॥
But in fourth pauruși, inspecting time, he should study without awaking non-restrained persons. (45)
पोरिसीए चउब्भाए, वन्दिऊण तओ गुरुं ।
पक्किमि कालस, कालं तु पडिलेहए ॥४६॥
चतुर्थ पौरुषी के चौथे भाग में गुरु को वन्दना करके काल का प्रतिक्रमण करके काल का प्रतिलेखन करे ॥४६॥
In the fourth quarter of fourth pauruși, bowing down to teacher, expiating time should exculpate time. (46)
आगए
कायवोस्सग्गे, सव्वदुक्खविमोक्खणे । काउस्सग्गं तओ कुज्जा, सव्वदुक्खविमोक्खणं ॥४७॥
सभी दुःखों से मुक्त कराने वाले कायोत्सर्ग का समय आने पर सब दुःखों से मुक्त कराने वाला कायोत्सर्ग करे ॥४७॥
As the time reaches for Kayotsarga meditation, he should observe that, which annihilates all pains. (47)
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राइयं च अईयारं चिन्तिज्ज अणुपुव्वसो ।
नामि दंसणंमी, चरितंमि तवंमि य ॥ ४८ ॥
ज्ञान-दर्शन- चारित्र से सम्बन्धित रात्रि सम्बन्धी अतिचारों का अनुक्रम से चिन्तन करे ||४८ ||
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Reflect the transgressions committed in night pertaining to knowledge-faith-conduct in due order. (48)
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