Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Atmagyan Pith

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Page 427
________________ ३२७] षड्विंश अध्ययन सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र अंगुलं सत्तरत्तेणं, पक्खेण यदुअंगुलं । वड्ढr हायएवावी, मासेणं चउरंगुलं ॥१४॥ सात अहोरात्र में एक अंगुल, एक पक्ष (पन्द्रह दिन-रात ) में दो अंगुल और एक मास में चार अंगुल ( प्रमाण छाया दक्षिणायन में श्रावण से पौष मास तक ) बढ़ती है और (उत्तरायण में माघ मास से आषाढ़ मास तक ) घटती है ॥१४॥ In seven day-nights one angula (width of a finger), in a fortnight two angula and in a lunar month four angula (shadow-when the sun in deccan semi-circle-from lunar months Śrāvana to Pausa) increases and (when the sun in northern semi circle-from the lunar months Māgha to āsādha) decreases. (14) आसाढबहुलपक्खे, भद्दवए कत्तिए य पोसे य । फग्गुण - वइसाहेसु य, नायव्वा ओमरत्ताओ ॥१५॥ आषाढ़, भाद्रपद, कार्तिक, पौष, फाल्गुन और वैशाख मास के कृष्ण पक्ष में एक-एक अहोरात्र की न्यूनता जाननी चाहिए। यानी १४ दिन का पक्ष होता है ॥१५॥ The black fortnights of lunar months- āsādha, Bhadrapada, Kartika Pausa, Falguna and Vaisakha-know the decrease of one day-night (in every black fortnight) i.e., the fortnights are of fourteen days only. ( 15 ) जेट्ठामूले आसाढ -सावणे, छहिं अंगुलेहिं पडिलेहा । अहिं बीय-तियंमी, तइए दस अट्ठहिं चउत्थे ॥१६॥ ज्येष्ठ, आषाढ़ और श्रावण - इस प्रथम त्रिक में छह अंगुल; भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक- इस द्वितीय त्रिक में आठ अंगुल; मृगशिर, पौष और माघ - इस तृतीय त्रिक में दस अंगुल फाल्गुन, चैत्र और वैशाख इस चतुर्थत्रिक में आठ अंगुल की वृद्धि करने से प्रतिलेखन का पौरुषी समय होता है ॥ १६ ॥ By increasing shadow six angulas in first trio of the lunar months Jyestha, Aṣāḍha and Śrävana; eight angulas in the second trio of months Bhadrapada, Aswina and Kartika; ten angulas in the third trio of months Mrgasira, Pauşa and Magha and eight angulas in the months of Fälguna, Caitra and Vaisakha-this increasement of angulas' shadow makes the due period to inspect and clean the things. (16) Jain Education International रत्तिं पि चउरो भागे, भिक्खू कुज्जा वियक्खणो । तओ उत्तरगुणे कुज्जा, राइभाएसु चउसु वि ॥१७॥ औत्सर्गिक रात्रि कृत्य विचक्षण - मेधावी भिक्षु रात्रि के भी चार विभाग करे तथा उसके पश्चात् रात्रि के चारों ही विभागों में उत्तरगुणों की आराधना करे ||१७|| Wise mendicant divide the night in four parts and propiliate the side-virtues during the whole time. (17) पढमं पोरिसि सज्झायं, बीयं झाणं झियायई । तइयाए नि मोक्खं तु, चउत्थी भुज्जो वि सज्झायं ॥१८॥ For Private & Personal Use Only www.jainlibrary.org

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