Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Atmagyan Pith

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Page 388
________________ an सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र त्रयोविंश अध्ययन [२९० अनेक प्रकार के उपकरणों की परिकल्पना लोगों की प्रतीति के लिए है। संयम यात्रा के निर्वाह हेतु और 'मैं साधु हूँ' इस प्रकार का बोध रहने के लिए लिंग का प्रयोजन है ॥३२॥ The various types of outward marks-appendages are for the belief of people. The reason is their usefulness to religious life and 'I am a sage' for continuous remembrance of this the outward tokens are apprehended. (32) अह भवे पइन्ना उ, मोक्खसब्भूयसाहणे । नाणं च दंसणं चेव, चरित्तं चेव निच्छए ॥३३॥ यथार्थतः (दोनों तीर्थंकरों की) प्रतिज्ञा-सिद्धान्त एक ही है कि मोक्ष के सद्भूत निश्चित वास्तविक कारण तो ज्ञान-दर्शन-चारित्र ही हैं ॥३३॥ The principle of both tirtharkaras is one and the same that true causes of liberation are right knowledge-faith-conduct. (33) साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नो वि संसओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा ! ॥३४॥ (केशी कुमारश्रमण) हे गौतम ! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। तुमने मेरा यह संशय तो समाप्त कर दिया। अब मेरा एक संशय और है। हे गौतम ! उस विषय में भी मुझे बताएं ॥३४॥ (Keśī) Gautama ! Your intelligence is best. You have removed my this suspicion, I have another doubt. Please remove that also. (34) अणेगाणं सहस्साणं, मज्झे चिट्ठसि गोयमा ! । ते य ते अहिगच्छन्ति, कहं ते निज्जिया तुमे ? ॥३५॥ हे गौतम ! तुम अनेक सहन शत्रुओं के बीच में खड़े हो और वे तुम्हें जीतने के लिए तुम्हारे सम्मुख आ रहे हैं। तुमने उन शत्रुओं को किस प्रकार विजित कर लिया है ? ॥३५॥ O Gautama ! You stand midst thousand enemies and they are coming to overpower you. How you have won them? (35) एगे जिए जिया पंच, पंच जिए जिया दस । दसहा उ जिणित्ताणं, सव्वसत्तू जिणामहं ॥३६॥ (गौतम) एक को जीतने से पाँच जीत लिए गये और पाँच को जीतने से दस पर विजय प्राप्त हो गई। दसों को जीतकर मैंने सभी शत्रुओं को जीत लिया ॥३६॥ (Gautama) Winning one, five have been conquered and conquering five ten have been won. Winning ten, I have conquered all the foes. (36) सत्तू य इइ के वुत्ते ? केसी गोयममब्बवी । तओ केसिं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ॥३७॥ (केशी) केशी ने गौतम से कहा-वे शत्रु कौन से कहे जाते हैं ? केशी के यह कहने पर गौतम ने इस प्रकार कहा-॥३७॥ Jain dugation International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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