Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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शतक १.-प्रभोत्थान. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र.
२५ वाच्यः. तथा. असुरकुमाराः, शपभवनपतयः, व्यन्तराः; ज्योतिषकाः, वैमानिका देवाश्च भगवतः समीपमागच्छन्तो वर्णयितव्याः.
१०. [जान समोसरणं ति] ज्यांसुधी समवसरणनो वर्णक आवे त्यांसुधी भगवंतनो वर्णक कहेवो. ते भगवंतनो वर्णक आ-प्रमाणे छ:-"मुजमोचक समवसरण. एटले एक जातनुं कालु रत्न, भंग-एक जातनो श्याम कीडो अथवा एक प्रकारनो अंगारो, नैल-गळीनो विकार, कज्जल-काजल-मषी, प्रहृष्ट भ्रमरगण- भगववर्णन, हर्षवाला भ्रमराओनो समूह. आ बधा पदार्थोनी पेठे जेओनो समूह स्निग्ध-चिकाशदार, काळी कांतिवाळो छे एवा अने निबिड-खीचोखीच-आवेला, कुंडलाकारे थटोला अने आगळ पाछळ वळेला एवा केश-वाळ-जेओना मस्तकमां छे" एवा भगवंत छ. ए प्रमाणे केशवर्णकथी मांडी पगना तळीयां सुधीनो भगवंतनो शरीरनो वर्णक कहेवो. पगना तळीयांना विशषणनो अर्थ आ प्रमाणे छ:-"लाल, कमलदलनी पेठे मृदु अने दरेक
समप्पणासा, वियसियसयपत्तामव भगव
णिवत्तालवालविबफलसंनिभा से अधरोहा,
१. औपपातिकसूत्रेऽसुरकुमारादिवर्णक एवम्:-ते णं काले णं, ते णं समए णं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे असुरकुमारा देवा अंतियं पाउन्भवित्था:-कालमहानीलसरिस-नीलगुलियगवलअयसिकुसुमप्पगासा, वियसियसयपत्तमिव पत्तलनिम्मलईसिंसित्तरत्ततंबनयणा, गुरुलायत्तउज्जतुंगणासा, उवचियसिलप्पवालबिंबफलसंनिभा से अधरोहा, पंडुरससिसकलविमलनिम्मलसंख-गोखीर-फेण-दगरय-मुणालियाधवलदंतसेढी, हुयवहणिद्धतधोयतवतवणिज्जरत्ततल-तालु-जीहा, अंजणघणकसिणरुयगरमणिज्जणिद्धकेसा, वामेगकुंडलधरा, अद्दचंदणाणुलित्तगत्ता, ईसिंसिलिंधपुप्फप्पगासाई, सुहुमाइं, असंकिलिद्वाई पत्थाई पवरपरिहिया, वयं च पढमं समइकंता, बितियं च वयं असंपत्ता भद्दे जोव्वणे वट्टमाणे तलभंगयतुडिअपवरभूसणनिम्मलमणिरयणमंडियभूया, दसमुद्दमंडियग्गहत्था, चूडामणिचिंधगया, सुरूवा, महिड्डिया, महजुइया, महाबला, महायसा, महासोक्खा, महाणुभावा, हारविराइअवच्छा, कडगतुडियथभियभुआ, संगयकुंडलमद्वगंडतला, कल्लाणगकयवरवत्थपरिहिया, पीडधारी, विचित्तवत्थाभरणा, विचित्तमालमउलमउडा, कल्लाणकयपवरमल्लाणुलेवणा, भासुरबोंदी, पालंबपलंबमाणवणमालधरा दिव्वेणं वण्णेणं, दिव्वेणं गंधेणं, दिव्वेणं रूवेणं, दिव्वेणं फासेणं, दिव्वेणं संघयणेणं, दिव्वेणं सठाणेणं, दिव्वाए इडीए, दिव्वाए. जुईए, दिव्वाए पभाए, दिव्वाए छायाए, दिव्वाए अचिए, दिव्वेणं तेएण, दिवाए लेसाए दस दिसाओ उज्जोवेमाणा , पभासेमाणा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं आगम्मागम्म रत्ता समण भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, करित्ता वंदति, नमसंति, वंदित्ता, नमंसित्ता; नचासण्णे, नाइदूरे, सुस्सूसमाणा, नमसमाणा, अभिमुहा विणएणं पंजलिउडा पज्जुवासंति. २. ते णं काले णं, ते णं समए णं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे असुरिंदवज्जिज्जा भवणवासी देवा अंतियं पाउन्भवित्धाः-णागपत्तिणो, सुवण्णा, विजू , अग्गी य, दीवा, उदही, दिसाकुमारा य, पवण, थणिया य, भवणवासी. नागफणा-गरुल-वयर-पुण्णकलसकेतुप्फेस, सीह-हय-गर्यक-मगरंक-वरमउडवद्धमाणणिज्यचिंधगया, सुरूवा, महिड्डिया; सेसं तं चेव जाव पाज्जुवासंति. ३. ते णं काले णं, ते णं समए णं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे वाणमंतरा देवा अंतियं पाउन्भवित्थाः-पिसाय, भूया य, जक्खा, रक्खसा, किंनर, किंपुरिस, भुयगपइणो. महाकायगंधव्वणिकायगणा णिउणं गंधव्वगीअरइणो, अणपन्नी य,पणपनी य, इसीवाइ य, भूयवाइ य, चेव कंदी य, महाकंदी य, कुहंड, पयंग, देवा. चंचलचवलचित्तकीलदवप्पिया, गंभीरहसियभणियपीयगीयणट्टरई, वणमालामेलमउडकुंडलसच्छंदविउन्वियाऽऽहरणचारुविभूसणधरा, सव्वोउयसुरभिकुसुमसुरई य, पलबंसोभंतकंतवियसंतचित्तवणमालइयवच्छा, कामगमा, कामरूवधारिणो, णाणाविहवण्णरागवरवत्थविचित्तचिल्लयणियंसणा, विविहदेसीणवत्थगहियवेसा, पमुइअकंदप्पकलहकीला, कोलाहलप्पिया, हास-बोलबहुला, अणेगमणिरयणविविदनिज्जुत्तचिंधगया, सुरूवा, महिलिया, जाव पज्जुवासंति. ४. ते णं काले णं, ते णं समये ण समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे जोइसिआ देवा अंतियं पाउन्भवित्थाःविहस्सइ-चंद-सूर-सुक्क-सणिच्छरा, राहू,धूमकेऊ, बुहा य,अंगारका य, तत्ततवणिज्जकणगवण्णा.जे य गहा जोइसं चारं चरन्ति, केउयगइरइया, अट्ठावीसइवि. हा य णक्खरीदेवगणा, णाणासंठाणसंठियाओ पंचवण्णाओ ताराउ, ठिअलेस्सा, चारिणो य अविस्साममंडलगई, पत्तेयणामंकपागडियचिंधमउडा, महिडिया जाव पज्जुवासंति. ५. ते णं काले णं, तेणं समए णं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे वेमाणिया देवा अंतियं पाउम्भवित्थाः-सोहम्मी-साण-सर्णकुमारमाहिंद-बंभ-लंतग-महासुक्क-सहस्सारा-ऽऽणय-पाणया-ऽऽरण-अचुअवई, पहिहा देवा जिणदंसणुस्सुगागमणजणितहासा, पालक-पुप्फक-सोमणससिरिवच्छ-णंदियावत्त-कामगम-पीइगम-मणोगम-विमल-सव्वओभद्दणामधिजेहिं विमाणेहिं उइण्णा, वंदगा जिणंद, मिग-महिस-वराह-च्छगल-दडुरहय-गयवइ- अग-खग्गि-उसभंकिअविडिमपागडियचिंधमउडा, पसिढलवरमउडतिरीडधारी, कुंडलउज्जोयवियाणणा, मउडदित्तसिरया, रत्ताभा, पउमपम्हगोरा, सेता, सुभवण्ण-गंध-फासा, उत्तमविउव्विणो, विविहवत्थ-गंध-मल्लधारी, महिड्डिया, महज्जुइया जाव पंजलिउडा पज्जुवासंति. (क. आ० पृ० १४१-१४६)-अनु.
१. औपपातिक-उववाइ-सूत्रमा भगवंतना शरीरनो वर्णक आ प्रमाणे छ:-"भगवंतनी केशांतकेशभूमि-वाळ उगवानी मस्तकनी भूमि-दाडिमन फुल जेवी अने लाल सुवर्ण जेवी निर्मल तथा निग्ध छ; मस्तकप्रदेश घन, निबिङ अने छत्राकार छ; ललाट व्रणवगरनु, अर्धचंद्रसरखं कातिवाळु, शुद्ध अने सम छे; मुख चंद्र समान पूर्ण अने सौम्यगुण युक्त छे; कर्णो सुंदर अने प्रमाणवाळा छे; श्रोत्रो सारा छे; कपोल प्रदेश पुष्ट अने मांसल छे; भवाओ नमेला चाप जेवा सुंदर, काळा वादळांनी श्रेणि जेवां आछां, काळां अने स्निग्ध छ; नयनो विकसित पुंडरीक कमळ समान छे; अक्षो-पांपणवाळी आंखो-विकसित कमल समान श्वेत अने पातळी छे नासिका गरुड जेवी दीर्घ, सरल अने उन्नत छ:
ओष्ठो उपचित शिल प्रवाल अने बिंबफल जेवा (रक्त) छे; दांतनी श्रेणी श्वेतचंद्र, सर्व निर्मळ पाणी, शंख, गोक्षीर-गायनुं दुध, चंपकनुं पुष्प, जलना बिंदुओ अने मृणालिका जेवी धोळी छे दांतो अखंड, अस्फुटित, अविरल, सुस्निग्ध अने सुजात छे, अनेक दांतो एक दांतनी श्रेणि समान छे; तालवू अने जिभ अमिथी धमेल, तप्त सुवर्ण समान लाल छे; श्मश्रु-दाढी-अवस्थित अने सुविभक्त छे हनुक-हडपची-पुष्ट, संस्थित अने प्रशस्त शार्दूल समान विपुल छे; ग्रीवा-डोक-चार अंगुल प्रमाणवाळी अने उत्तम शंख जेवी छे खभा सारा महिष, वराह, सिंह, शार्दूल, वृषभ अने उत्तमहस्ती समान प्रतिपूर्ण अने विशाल छे; भुजा धुसरा जेवी पुष्ट, आनंद देनारी, पीवर, प्रकोष्ठो-पोंचा-मां संस्थित, सुश्लिष्ट, विशिष्ट अने घणी स्थिर संधिवाळी तथा सारा शहेरना गोळ परिघ-भोगळ-सरखी छे; बाहु काइक लेवा माटे परिधनी पेठे लांबी करेल भुजगेश्वरनी फणा समान दीर्घ छे; हस्त रक - तळी. याथी उपचित, मृद, मांसल, सुजात, लक्षणोथी प्रशस्त अने निश्छिद्र छ; अंगलिओ पष्ट अने कोमल छे नसो आताम्रताम्र-तांवानी पेठे थोडा लाल, पातळा, पवित्र, सुंदर भने चिकणा छे; हस्तमां चंद्रनी, सूर्यनी, शंखनी, चकनी अने दिक्वस्तिकनी रेखाओ छे वक्षःस्थल कनकशिलातलसमान उज्वल, प्रशस्त, समतलवाळु, उपचित, विस्तीर्ण, पहोळु अने श्रीवत्सथी अंकित छे देह अकरंडक-पीठना देखाता हाडकारहित, कनकसम कांतिवाळो, निर्मल, सुजात, निरुपहत अने उत्तमपुरुषना एक हजार आठ लक्षण सहित छे; पडखांओ सन्नत, संगत, सुंदर, सुजात, पुष्ट, रतिने देनारा अन मित मयोंदाबाळां छे; रोम राजि सरल, सरखी, उत्तम, आछी, काळी, स्निग्ध, दर्शनीय, लहकती अने रमणीय छ कुक्षि मत्स्य अने पक्षी जेवी सुजात भने पुष्ट छ; उदर मत्स्य समान छे; इंद्रियो शुचि छ नाभि गंगावर्तकनी पेठे प्रदक्षिणावर्त तरंगोधी भंगुर-चंचल, रविकिरणथी विकसित पन जेवी गंभीर अने विशाळ छे; शरीरनो मध्यभाग वचमा सांकडा भागवाळी त्रण लाकडानी घोडी जेवो, मसल अने दर्पणना मध्य जेवो, उत्तम सुवर्ण-सोना-नी ४ भ. स.
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