Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust

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Page 207
________________ शतक १.-उद्देशक ७. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र. १८७ निनित्ति अने उपकरणरूप द्रव्यंइंद्रियो. ज्यारे इंद्रियपर्याप्ति-इंद्रियोनी बनावट-थइ गइ होय छे त्यारे ते द्रव्यइंद्रियो होय छे अने गर्भमा ताजा उपजता जीवने तो इंद्रियपर्याप्ति नथी होती, माटे ते-गर्भमां उपजतो जीव-अनिद्रिय-इंद्रियरहित-होय छे. [भाविंदियाईति] लन्धि अने मनिंदिया उपयोगरूप भावडंद्रियो. सर्व संसारी जीवने सर्व अवस्थामां आ भावइंद्रियो होय छे माटे आ भाव इंद्रियोनी अपेक्षाए गर्भमां उपजतो ताजो ज जीव इंद्रियंसहित, इंद्रियवाळो पण होय छे. ['ससैरीरि'त्ति ] शरीरवाळो. ['असरीरि'त्ति] शरीर विनानो. [ 'वक्कमइ'त्ति] उत्पन्न थाय छे. ['तप्पढमयाए' ति] गर्भमां शरीर. उपज्यो के तुरत ज-गर्भमां उपज्यो के सौथी पहेला. ['किं' इति ] शु. ['माउओयं ति] मातार्नु ओज-ऋतुसंबंधी लोही. ['पिउसुक्कं ति] पितानुं गर्मनो माहार. जे वीर्य. ते-तद्रपआहार-ने खाय छे. ['तदुभयसंसिटुं'ति] ते बन्नेथी संश्लिष्ट के ते बन्नेना संसर्गवाळु. [ 'जं से'त्ति] जे ते गर्भना जीवनी माता सिविगइओ'त्ति] दुध वगैरे रसविकारोने. ['तदेगदेसेणं ति] गर्भमा रहेलो जीव ते रसविकारोना एक भागनी साथे ओजनो आहार करे छे. 'उच्चारे ई वेत्ति] उच्चार एटले विष्टा. खेल एटले निष्ठीवन-थूक. ['सिंघाणं'ति] नाकनो मेल. ['केस-मंसु-रोम-नहत्ताए'त्ति] अहीं श्मश्रु' एटले 'दाढीना वाळ' लेवा. रोम' एटले 'काखली वगेरेना वाळ' जाणवा. ['जीवे णं' इत्यादि.] [ 'सव्वओ'त्ति] सर्व आत्मबडे. ['अभिक्खणं'ति] वारंवार अन 'आह'त्ति] कदाचित्---कदाचित् आहार ले छे अने कदाचित् आहार नथी लेतो. कारण के तेनो तेवो स्वभाव छे. गर्भमां उपजेलो जीव पोताना आखा शरीरवडे आहार करे छे माटे ज मुखवडे कोळियारूप आहार लेवाने ते शक्त नथी ए तात्पर्य छे. शं० ते गर्भस्थ जीव आखा कवलाहार नथी. शरीरवडे केवी रीते आहार करे छे ? तो कहे छे के, ['माउजीवरसहरणी' इत्यादि.] जेनाथी रस लेवाय ते रसहरणी-नाभिर्नु नाळ. माताना जीवनी मातृजीवरसहरणी. जे रसहरणी ते मातृजीवरसहरणी. ए शुं? तो कहे छे के, [ 'पुत्तजीवरसहरणी'] ए, पुत्रने रस मेळववामां कारणरूप होवाथी 'पुत्रजीवरसहरणी'कहेवाय. पुत्रजीवरसहरणी. एम केवी रीते कहेवाय ? तो कहे छ के, ते नाडी माताना जीव साथे प्रतिबद्ध छे अने [ 'पुत्तजीवफुड'त्ति] पुत्रना जीवने अडकेली छे. अहीं प्रतिबद्धता' एटले 'गाढ संबंध' अर्थ समजवो. कारण के ते नाडी माताना जीवनो एक अंश छे अने 'स्पृष्टता' एटले 'मात्र अडकवू' समजवं. कारण के ते नाडी पुत्रना जीवनो अंश नथी. अथवा 'मातृजीवरसहरणी' अने 'पुत्रजीवरसहरणी' नामनी बे नाडीओ छे. ते बेमां पेली नाडी माताना जीवसाथे गाढ संबद्ध छे अने अथवा. पुत्रना जीवन अडकेली छे. ['तम्ह'त्ति] एम छे तेथी गर्भस्थ पुत्ररूप जीवने मातृप्रतिबद्ध रसहरणी नाडी अडकेली छे माटेते द्वारा ते आहार करे छे. 'अवरा वि यत्ति] पुत्रजीवरसहरणी नाडी पण पुत्रना जीव साथे गाढ संबद्ध छे अने माताना जीवने अडकेली छे. [ 'तम्ह'त्ति] एम छे तेथीशरीरनो चय करे छे. बीजा तंत्रोमां पण कथु छ:-"पुत्रनी नाभिमां अने मातानां हृदये नाडीनो संबंध होय छे. जेथी धोरियावडे जेम क्यारो पुष्ट थाय, तेम गर्भ पुष्टि पामे छे" बीजा शास्त्रनी ५. गर्भाऽधिकाराद् एव इदमाह:-'कइ णं' इत्यादि. 'माइअंग' त्ति आर्तवविकारबहुलानि इत्यर्थः. 'मत्थुलंग' त्ति मस्तकभेद्यकम्... शाख. अन्ये त्याहुः-"मेदः फिप्फिसादि मस्तुलुङ्गम्" इति. 'पिइअंग' त्ति पैतृकाङ्गानि शुक्रविकारबहुलानि इत्यर्थः. 'अद्विमिंज' त्ति अस्थिमध्याऽवयवः, केशादिकं बहुसमानरूपत्वाद् एकमेव. उभयव्यतिरिक्तानि तु शुक्र-शोणितयोः समविकाररूपत्वाद् मातृ-पित्रोः साधारणानि इति. 'अम्मा-पिइएणं' ति अम्बापैतृकम् , शरीराऽवयवेषु शरीरोपचारात् , उक्तलक्षणानि मातृ-पित्रङ्गानि इत्यर्थः. 'जावइयं से कालं'ति यावन्तं कालम् , 'से' त्ति तत् , तस्य वा जीवस्य भवधारणीयं भवधारणप्रयोजनं मनुष्यादिभवोपग्राहकम् इत्यर्थः. 'अव्वावन्ने त्ति अविनटम्, 'अहे णं' ति उपचयान्तिमसमयाद् अनन्तरमेतद् अम्बा-पैतृकं शरीरकम्. 'वोयसिज्जमाणे' त्ति व्यवकृष्यमाणं हीयमानम्, गर्भाऽधिकाराद् एवाऽपरं सूत्रम्-'गभगए समाणे' त्ति गर्भगतः सन्-मृत्वा इति शेषः. 'एगइए'त्ति सगर्वराजादिगर्भरूपः. संज्ञित्वादिविशेषणानि च गर्भस्थस्याऽपि नरकप्रायोग्यकर्मबन्धसंभवाऽभिधायकतया उक्तानि. वीर्यलब्ध्या, वैक्रियलब्ध्या संग्रामयति इति योगः. अथवा वीर्यलब्धिकः, वैक्रियलब्धिकश्च सन् इति. 'पराणीए णं' ति परानीकं शत्रुसैन्यम् , 'सोच' त्ति आकर्ण्य निशम्य-मनसाऽवधार्य 'पएसे निच्छभइ' त्ति गर्भदेशाद् बहिः क्षिपति. 'समोहणइ'त्ति समवहन्ति समवहतो भवति तथाविधपुद्गलग्रहणार्थम् , संग्राम संग्रामयति युद्धं करोति, 'अत्थकामए' इत्यादि. अर्थे द्रव्ये, कामो वाञ्छामात्रं यस्याऽसौ अर्थकामः, एवमन्यान्यपि विशेषणानि. नवरम्-राज्यं नृपत्वम्, भोगा गन्ध-रसस्पर्शाः. कामा शब्द-रूपे. काङ्घा गृद्धिः-आसक्तिः इत्यर्थः. अर्थे काडा संजाता यस्य इति अर्थकासितः. पिपासा इव पिपासा-प्राप्तेऽपि अर्थेऽतृप्तिः, 'तचित्ते' त्ति तत्राऽर्थादौ चित्तं सामान्योपयोगरूपं यस्याऽसौ तच्चित्तः. 'तम्मणे' त्ति तत्रैवाऽर्थादौ मनो विशेषोपयोगरूपं यस्य स तन्मनाः, 'तल्लेसे' त्ति लेश्या आत्मपरिणामविशेषः. 'तदझवासिए' त्ति इहाऽध्यवसायोऽध्यवसितम् , तत्र तच्चित्तादिभावयुक्तस्य सतस्तस्मिन् अर्थादौ एवाऽध्यवसितं परिभोगक्रियासंपादनविषयम् अस्य इति तदध्यवसितः. 'तत्तिव्वझवसाणे' त्ति तस्मिन् एवाऽर्थादौ तीव्रम्-आरम्भकालाद् आरभ्य प्रकर्षयायि अध्यवसानं प्रयत्नविशेषलक्षणं यस्य स तथा. 'तदट्ठोवउत्ते'त्ति तदर्थम्-अर्थादिनिमित्तमुपयुक्तोऽवहितस्तदर्थोपयुक्तः. 'तदपियकरणे'त्ति तस्मिन् एवाऽर्थादौ अर्पितानि-आहितानि करणानि इन्द्रियाणि, कृत-कारिता-ऽनुमतिरूपाणि वा येन स तथा. तब्भावणभाविए' त्ति असकृदनादौ संसारे तद्भावनयाऽर्थादिसंस्कारेण भावितो यः स तथा. 'एयंसिणं अंतरांस' त्ति एतस्मिन् संग्रामकरणाऽवसरे 'कालं' मरणम् इति. ५. गर्भनो अधिकार ज चालतो होवाथी हवे आ सूत्र कहे छे:-['कइ णं' इत्यादि.] [माइअंग'त्ति ] मातानां अंगो एटले जे अंगोमां माताना मातानां अंग. आर्तवनो भाग वधारे होय ते (अंगो). ['मत्थुलुंग' त्ति] माथानुं भेजें. बीजाओ तो कहे छे के, "मस्तुलुंग एटले चरबी, फेफसां वगेरे" [ 'पिइ. अन्य. अंग' त्ति] पितानां अंगो-पिताना वीर्यनो भाग जेमां वधारे होय ते अंगो. ['अद्विमिंज' त्ति] हाडकानी वचनो अवयव-हाडकानो वचलो भाग- पिताना अंग. राज्जा. झाझा भागे सरखा होवाथी केशादिक एक सरखा ज छे. जे अंगो मातानां अने पितानां अंगोथी जूदां देखाय छे ते अंगो माता अने पिता, ए पन्नेनां साधारण अंगो कहेवाय छे. कारण के, ते अंगोमां पिताना शुक्रनो अने माताना आर्तवनो सरखी रीते विकार होय छे. ['अम्मापिइएणं' साधारण अंग. ति] शरीरना भागोने पण शरीररूप कल्पाता होवाथी पूर्वोक्त लक्षणवाळां माता अने पिताना अंगो. [ 'जावइयं से कालं' ति] जेटला वखत सुधी केटलो काळ ! ['से'त्ति] ते जीवनुं भवधारणीय (जीवे त्यां सुधी रहेनारुं शरीर ) अने मनुष्यादि भवनुं उपग्राहक शरीर [ 'अव्वावन्ने' त्ति] अखंड होय. [ 'अहे णं ति] उपचयना छेवटंना समय पछी तुरत ज ए मातापिता संबंधी शरीर ['चोयसिज्जमाणे ति] हीन थतुं-घटतुं. गर्भनो अधिकार होवाथी ज ते संबंधे आ बीजं सूत्र छ:-['गभगए समाणे ति] गर्भमां गएलो जीव मरीने. ['एगइंए'त्ति] कोइ एक-अहंकारी राजादिरूप गर्भ. 'गर्भस्थ जीव गर्भस्थ जीवनी पण नरकने योग्य कर्मोने बांधे ए संभवतुं छे' ए वातनां सुचक तरीके 'संज्ञी' वगेरे विशेषणो मूक्यां छे. वीर्यलब्धिबडे अने वैक्रियलब्धिवडे संग्राम लडाइ भने नरक. १. अहीं 'इन्' समासांत लाग्यो छे. २. प्राकृतना धोरणे आ रूप नरजातिर्नु समजबु.३.आ शब्द उपप्रदर्शनसूचक छे. ४. आ शब्द विकल्पदर्शक छे:-श्रीअभय. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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