Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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इंद्रिय.
प्रज्ञापना.
२६८
श्रारायचन्द्र-जिनाममसग्रह
शतक २. - उद्देशक ४.
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फुडे, सहि या काहिं फुठे ? गोवमा ! नो धम्मत्थिफाएणं फुढे जाव नो जागासत्मिकारणं पुढे; आकासात्विकायरस देसेणं कुठे, आगासत्थिकायस्स पएसेहिं फुडे, नो पुढविकायेणं फुडे, जाव - नो अद्घासमएणं फुडे, एगे अजीवदव्वदेसे, अगुरुलहुएहिं अणन्तेहिं, अगुरुलहुयगुणेहिं संजुत्ते सव्वागासे अणंतभागूणे" त्ति नाऽलोको धर्मास्तिकायादिना, पृथिव्यादिकायैः, समयेन च स्पृष्टः - व्याप्तः, सेप तत्राऽसात्, आकाशास्तिकाय देशादिभिश्व स्पृष्ठः तेषां रात्र सरत्वात्, एकवासी अजीवद्रव्यदेशः, आकाशद्रव्यदेशत्वात् तस्य इति.
भगवाधर्मस्वामिप्रगीते श्रीभगवतीसुत्रे द्वितीयशते चतुर्थ उद्देश श्रीमभयदेवसूरिभिर्त विवरण समाप्तम्
१. त्रीजा उद्देशकमां नारको संबंधी हकीकत कही छे. ते नारकोने पांचे इंद्रियो होय छे माटे हवे 'इंद्रियो संबंधी विवेचन करवुं ते क्रमप्राप्त छे. तो ते विवेचन करवा सारु आ पोथा उद्देशकानी शरुआत चाय के अने तेनुं पेतुं सूत्र या छे:- ['फइ ' इत्यादि.] [ 'पढमिलो इंदिवउदेसओ नेवव्यो' [क] प्रेज्ञापना सुत्रमां आवेल, पन्नरमा इंद्रियपदनो प्रथम उद्देशक अहीं कहेवो. तेमां द्वारगाथा छे:-[ "संठाणं बाहलं पोहत्तं कइपएस ओगाढे, अप्पाबहु पु
१. जैन ऋषिओए इंद्रियोना भेदो आ प्रमाणे जणाव्या छेः
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निर्वृति-उपर इमेन्द्रियम् उपयोगी भावेन्द्रियम् रात्र निर्वृत्तिः आकारः, सा च बाह्या अभ्यन्तरा च तत्र बाह्या अनेकप्रकारा. " अभ्यन्तरा पुनः क्रमेण श्रोत्रादीनां कदम्बपुष्प - धान्यमसूर - अतिमुक्तकपचमानाकारस्थाना उपकरचीन्दि विषयग्रहणे समर्थम् छेयच्छेदने समस्यैव धारा पस्मिन् उपड़ते निसद्भावेऽपि विषयं न गृह्णाति (इन्द्रियम् ) इति लब्धीन्द्रियं यस्तदावरणक्षयोपशमः उपयोगेन्द्रियं यः स्वविषये व्यापारः इति - ( श्रीस्थानाशे पश्चमे स्थाने पृ० ३९०, ० ० ): अनु इंद्रियहेतुक ज्ञानने रोकना कर्मोंनो व अने उपथम ते अर्थात् ते उपयोगइंद्रिय. - श्रीस्थानांगसूत्र, पांचम स्थान, ( पृ० ३९०, क० आ० )
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इब्बइंडिय
निबिहारमो अने अंदरनो घाट. )
(इन्द्र एटले जाते इंद्रिय) ते इंडियन मुख्य भेद छे:- एक द्रव्यइंद्रिय अने बीजुं भाव इंद्रिय. तेमां द्रव्य इंद्रियना बे भेद छेः-निर्वृत्ति अने उपकरण निर्वृत्ति एटले आकार. ते आकार पण बे जातनो छ:- एक अंदरनो अने बीजो बहारनो. तेमां अंदरना आकारनुं विवेचन 'इंद्रिययंत्र' सामना कोटामा आयुं छे. अने बहारो आकार अनेक प्रकारनो छे, जैसे, कोइ एक कापवानी वस्तुने कापवामां तरवारनी धार समर्थ छे तेमजे इंद्रिय संबंधी अणुओ विषयने प्रहण करवामां समर्थ छे ते उपकरण इंद्रिय कान उपकरण इंदिय न होय तो निदिय नकामी ज वनी शक्ति से उदय अने ते शक्तिनो पोत पोताना विषय उपयोग,
इंद्रिय.
उपकरण-पदार्थ ओळखवामां साधनरूप अणुओ.)
"
X x विशेषत इन्द्रियपरिणाम निरूपणार्थमिदम् आरभ्यते-अत्र च द्वौ उद्देशक रात्र प्रयमो के ये अर्याधिकाराः, तत्माकम् इदं गाथाद्वयम् - xxx प्रथमम् इन्द्रियाणां संस्थानं वक्तव्यम्. संस्थानं नाम आकारवि शेषः ततो वाह नाम बहुलता पिण्डावा दनन्तरं पृथुत्वं वक्तव्यम्, पृथुत्वं विस्तारः तदनन्तरम् x x x कतिप्रदेशम्-इन्द्रियम् ? इति वक्तव्यम्. ततः x x x कतिप्रदेशावगाढम् - इन्द्रियम् इति वाच्यम्, तदनन्तरम् अवगाहनादिविषयं कर्कादिचाप बहुत्वम्. ततः × × × स्पृष्टास्पृष्टविषयं सूत्रं वक्तव्यम् तदनन्तरम् xxx प्रविशत्रभिनिपयचिन्ताविषयम् ततो विषयपरिमाणम् x x तदनन्तरम् आदर्शविषयम् +++ (श्रीपरि नासूर १० ४१९, क० आ० )
?
भाईदिय
लब्धि - ( जाणवानी शक्ति. )
२. श्रीपासून (० ० ० १९४५१) आईदिवपद पनरनुं छे. रोगां इंदियो पिये समिर विवेचन ि निशास्त्र यो विवेचन करतां पांजे उपोद्यात आप्यो छे से आ
ज
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विशेष प्रकारे इंद्रियोना परिणामने निरूपवा आ प्रकरणनी शरूआत थाय छे. आ इंद्रियपदमां बे उद्देशक छे तेमां जे जे विषयो आवे छे ते नीचे प्रमाणे छे:- पहेलं इंद्रियोना आकारसंबंधी विवेचन छे. पछी इंद्रियोनी जाडा हेवानी छे पछी इंद्रियोगी पहोचाइनुं विवेचन छे पछी प्रत्येक इंद्रिय केटला प्रदेशवाळी छे ? ते विषे विवेचन छे पछी प्रत्येक इंदिय केटला प्रदेशोमां अवगाढ छे ? ते विषे विवेचन छे. त्यार पछी अवगाहनादिविषयक अने 'कर्कश' वगेरे गुणविषय अल्पबहुत्वसंबंधी विवेचन छे. पछी ' विषयने ( पदार्थने) अडकीने के अडक्या सिवाय इंद्रिय पदार्थने ओळखी शके छे' पु विषे विवेचन छे. त्यार बाद 'प्रविष्ट के अप्रविष्ट निधवने इदियो आगे है ए संबंधी विषेक . पछी 'फेटले टेबी इंडियो द्वारा चीन विना परिमाणविवेचन प "काच प्रतिषिधुंए संबंचे विचार छे. (श्रीमगिरि प्रक्ष पनासूत्र, पृ० ४१९, क० आ० ) त्यार पछी पण अनेक विषयों संबंधी विवेचनो छे पण ते चालु प्रसंग साथै संबद्ध न होवाथी अहीं लख्यां नथी. ते सिवाय आ संबंध वधारे जाणवा माटे जूओ पृ ३९ मां आवेली पहेली गूजराती पाटीका तथा स्थानांगसूत्रनुं पांचमुं स्थान (क० आ० पृ० ३९० ) :- अनु०
उपयोग - ( जाणारी शक्ति. ) :- अनु०
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