Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust

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Page 335
________________ कहेलं. भाई भति ३७ १४९ भइक्कम अइकममाण अइगमण* २१. २१४ भईवं अउणापत्र भओ* अंकुसय अशक अंग* अंग* अड २८ २७२ अंगय* अंजलिप्पग्गह २७९ ८१ अंडा अंत अंत अंतकड श्रीभगवतीसूत्रमूल-टीकागतशब्दानाम अकारायनुक्रमेण सूचा । म गू० प्रा. सं. अक्खा आख्यात २३४ अक्खाइउ(तुं) आख्यातुम् कहेवाने. अति, घj. अक्खेव आक्षेप आक्षेप. अतिकामति अतिक्रमे छे-ओळंगे छे. २१० अकंत अकान्त नठार. अतिक्रामत् अतिक्रमतो-जतो. अकंतत्ता* अकान्तता नठाराई. अतिगमन उत्तरायण-उत्तर दिशामां अकंतस्सर अकान्तखर नठारा अवाजवाळो. १८४ जq. अकन्जमाण अक्रियमाण नहीं करातुं. २१४ अतीव अत्यंत. ___२३४ अकडु अकृत्वा नहीं करीने. एकोनपश्चाशत् ओगण पच्चास-(४९). २३६ अकडा अकृता नहीं करेली. १६५ अतः हवे, पछी. २२१ अकम्म अकर्म हलावयु, चलावq इत्यादि झाड उपरथी पांदडाने क्रिया नहीं ते. लेवानुं अंकुशनी जेवू एक अकरणओ अकरणतः नहीं करवायी. हथीयार. अकामअण्हाणग अकामाऽन्नातक नहीं न्हावामां थता गुण अङ्ग ग्रंथरूप अवयव. दोषोना ख्याल सिवाय कोमळताने सुचवनार नहीं न्हावं. अव्यय. अकामछुहा अकामक्षु मुख्या रहेवामा थता गुण अगद बाजुबंध. दोषोना ख्याल सिवाय अञ्जलिप्रग्रह अंजलिनुं ग्रहण करवु ८४ भुख सहवी. हाथ जोडवा.. अकामतण्हा अकामतृष्णा तरण्या रहेवामा थता अण्डक गुण दोषोना ख्याल सि ४ अन्त नाश. वाय तरष्या रहे. अन्त छेडो. अकामनिज्जरा* पोतानी ख्याल पूर्वक क्रि- . अकामनिर्जरा या विना कर्मोनु खरी जवू. १.९ जेणे दुःखनो नाश कयों अन्तकृत छ ते. २२९ अकामवंभचेरवास अकामब्रह्मचर्यवास ब्रह्मचारी रहेवामा थता गुण दोषोना ख्याल सिवासर्व दुःखोनो नाश करनार. १३० अन्तकर य अथवा सामग्रीनी ताण अन्तक्रिया सर्व दुःखना नाशनी होवाथी ब्रह्मचारी रहे. ४ क्रिया-निर्वाण. १.८ अकामसीत अकामशीत ठंडी सहवामा थती लाम अन्तक्रियापद निर्वाण विषयक हकीक हानी समज्या सिवाय तने सूचवनारु प्रज्ञापना टाढ खमवी. ८४ सूत्रमा आवेलं २० मुं अकिच्च अकृत्य अकृत्य-अक्रिया. २१४ पद-प्रकरण. १०८ अकिरिया अक्रिया निष्क्रियपणुं. २०४ अन्तर अंतरे. अकिरियाफल अक्रियाफल निष्क्रियपणानो लाभ. २८४ अन्तिक पासे. अकोहत्त अकोधन क्रोधपणुं नहीं-क्षमा. २०३ अन्तिमशरीरिक धारण करेलो देह, एज अग्गमहिसी* अप्रमहिषी पट्टराणी. . ३.. जेनो छल्लो छे ते. १३७ अग्गि * अग्नि अग्निकुमार-ते नामना अन्तःपुर राणीवास. २७७ अन्तेवासिन् शिष्य.. अगन्ध गन्धरहित. अन्तर्मुहूर्त एक काळर्नु माप. जूओ अगणिकाय अनिकाय अग्नि-आग. पृ०४४मान ५ मुं टिप्पण. ६९ अगरहा अगहीं निंदा नहीं ते. २०७ आन्तमौहूर्तिक अंतर्मुहूर्तमा बनेलं ते. ७२ अगार अगार २३३ अन्तःशल्यमरण शरीर के आत्मामां कोई अगुरुलहुभ अगुरुलघुक गुरुलधु नहीं. जातना शल्यसहितपणे अगुरुयलहुआ अगुरुकलघुरु अगुरुलघु.. मरण. अगुरुयलहुयगुण अगुरुकलघुकगुण अगुरुलधु गुणवाळु. ३१. भाम्रकुब्जक केरीनी जेवो कुब्ज घाट अगुरुअलहुअपज्जव अगुरुकलघुकपर्यव अगुरुलघु परिणामवाळू. २३५ वाळो गर्भ. १८४ अगेहि अलोलुप भाव. ०३ अम्ल खाटुं. २२७ अघ अघ राजगृह नगर पासे भावेडो अक्षत आखू. २३५ • 'अघ' नामे उना पाणीनो अक्षय नाशरहित. ९८५ अंतकर अंतकिरिया अंतकिरियापय १८३ अंतर अंतिम* अंतिमसरीरिक्ष देव. अंतेउर - अंतेवासि भंतोमुहुत्त अगंध १९२ घर. भंतोमुहुत्तिय । अंतोसल्लमरण ३१. भंवतुम अगृधि अंबिल अक्खन अक्खय १८ १. एतचिपिताः सर्वेऽपि शब्दाः टीकागता अवसे याः-अनु. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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