Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust

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Page 312
________________ २९२ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे शतक २.-उद्देशक ६. शब्दपणे बहार काढेली अने शब्दपणे बहार कढाती जे द्रव्यसंहति ते भाषा. ए प्रमाणे शब्दार्थ छे. वाक्यनो अर्थ तो आ प्रमाणे हे भगवन । १. समस्त संसारमा 'भाषा' ए एक मोटुं तत्त्व छ. जेने लइने मनुष्योनो, सुशिक्षित (सारी रीते पढावेला) पंचेंद्रिय तिर्यंचोनो (मेना, पोपट वगेरेनो,) बे इंद्रियवाळा जीवोनो, त्रण इंद्रियवाळा जीवोनो, चार इंद्रियवाळा जीवोनो तथा अशिक्षित ( नहीं पढावेला ) पंचेंद्रिय तिर्यंचोनो अने देवो तथा दानवोनो व्यवहार चाले छे. एक इंद्रियवाळा वृक्षादिक प्राणी सिवाय जगतमां बीजं एवं एक पण प्राणी नथी, के जे पोते कोइ पण प्रकारे बोलतुं न होय. ज्यारे थाम छे त्यारे. भाषा ए शुं ? भाषा क्यांधी थइ ? भाषानो आकार केवो छे ! भाषा कया प्रकारे बोलाय छे ? इत्यादि प्रश्नोतुं उद्भवन विचारको माटे काइ नवाइ जेवू नथी. आ चालु उद्देशक अने तेमा साक्षी तरीके जणावेल प्रज्ञापना सूत्रनुं भाषापद,'आ संबंधे जूनी शैलीए पण काइ प्रकाश पाडे तेवु छे. अने ते हेतुथी ज अहीं तेनुं सविस्तर विवेचन आपy ते उपयोगी छे. जैनोनी पदार्थगणनामा प्रधानपणे एक जीव अने बीजो अजीव छे. जाणवं. अनुभववं, याद करवू अने यावत्-दुःखरहित सर्वथा सुखमा रमण करवू; ए बधा जीवना खाभाविक गुणो छे. जैन ऋषिओए अजीव तत्त्वने वे विभागमा वेच्यु छ-एक तो अरूपी अजीव भने बीजो रूपी अजीव. धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय अने आकाशास्तिकाय ए त्रणे अरूपी अजीव छे. अने मात्र पुद्गलास्तिकाय ए रूपी अजीव गणाय छे. आपणे जे शब्दोने बोलीए छीए के सांभळीए छीए ते शब्दोर्नु उपादान कारण पण ए पुद्गलास्तिकाय ज छे. जो के ए पुद्गलास्तिकायना (पुद्गलना ) घणा भेदो संभवी शके छे, तो पण जो तेना संक्षेपपूर्वक भेदो पाडवा होय तो ते आठ प्रकारर्नु होइ शके छ:भाषानां पुद्गलो (भाषावर्गणा,) मनना पुद्गलो (मनोवर्गणा ), श्वासोच्छ्वासनां पुदगलो (श्वासोच्छ्वासवर्गणा), औदारिक पुद्गलो ( औदारिकवर्गणा,) वैकिय पुद्गलो (वैक्रियवर्गणा) आहारक पुद्गलो (आहारकवर्गणा), तैजस पुद्गलो (तैजसवर्गणा) अने कार्मण पुद्गलो (कार्मणवर्गणा). जगतमा आकार धरनारी जे कांद जड चीज छे ते बधीनो समावेश आ आठ जातनां पुद्गलोमा ज थाय छे. आ आठ सिवाय कोइ पण बीजी वस्तु नथी के जे पुद्गलरूप होय. ए पदलना खाभाविक गुणो आ छः-स्पर्श, रस, गंध, वर्ण (रूप ), शब्द ( अवाज ), बंध (परस्पर संबंध), सूक्ष्मपणुं, स्थूलपणु, कोइ जातना आकारे रहेवापर्यु, कोइ रीते फाट_-नोखा थq-भेदावं, अंधार, छायो, आतप अने उद्योत. (जूओ तत्त्वार्याधिगमसूत्र, पंचम अध्याय, सूत्र २३-२४ ) पुद्गलमा प्रत्येक अणुए अणुए तथा छेक मोटा स्कंधोमां पण ते चौदे गुणो होय छे. मात्र विशेषता एटली ज के कोइ अणुमां के स्कंधमां अमुक गुणर्नु आधिक्य होय भने अमुक गुणनी ऊणप होय, या कोइ अणुमां के स्कंधमां अमुक गुणनी ज प्रबळता होय अने अमुक गुणनी अप्रबळता होय-गमे तेम होय पण प्रत्येक अणुमा पूर्वोक्त बधा गुणोनु रहेठाण तो होय होयने होय ज. नैयायिक अने वैशेषिक विद्वानोनो एवो ख्याल छे के, स्पर्श वायुमा ज छे, रस पाणीमां ज छे, गंध पृथिवीमा ज छे, वर्ण अमिमां ज छै अने शब्द आकाशमा ज छे अर्थात् स्पर्श वगेरे वायु वगेरेना ज गुणो छे. सांख्य विद्वोनोनुं एवं मत छे के, स्पर्शतन्मात्राथी वायु थयो छे, रसतन्मात्राथी पाणी थयु छे, गंधतन्मात्राथी पृथिवी बनी छे, रूपतन्मात्राथी अमि बन्यो छे अने शब्दतन्मात्राथी आकाश बन्यु छ अर्थात् स्पर्शादिकना अणुओ वायु वगैरेनी उत्पत्तिमा कारणरूप छे. अमारा जाणवा मुजब 'तन्मात्रा', 'परमाणु' भने 'वर्गणा' ए त्रणे शब्दोनो लगभग समान अर्थ छ. अस्तु. गमे तेम हो पण आटलं तो सुनिर्णीत ज छे के ए बधा गुणोनो आश्रय कोइ एक आकारवंत जड तत्त्व २. अने आत्मा-जीव-तो मात्र तेनो अनुभविता अने साक्षी छे. आकाशतत्त्व पण जैनदृष्टिए बे जातनुं छे-जीवने उपयोगमा आवतुं आकाश ( लोकाकाश ) भने बीजुं तेथी परनुं आकाश ( अलोकाकाश ) उपर बतावेल आठे जातना पुदलोना धरेवर ए लोकाकाशमां भराएला छे. आपणे जे शब्दो बोलीए छीए तथा सांभळीए छीए ते शब्दोना अणुओ पण ते ज लोकाकाशमा ठसोठांस भराएला छे. जैनपरिभाषामा ते शब्दना अणुओने 'भाषावर्गणाना पुद्गलो' कहेवामां आवे छे. ते अणुओनुं खरूप आ छ:-ते अणुओ लोकाकाशमा स्थित छे, अनंत प्रदेशवाळां छे, तेओ रहेवा माटे असंख्य प्रदेश जेटली जग्या रोके छे. ते एक समय सुधी अने असंख्य समय सुधी पण एक स्थळे टकी शके छे पण वधारे टकर्ता नथी. ते अणुओमां पांचे ( काळो, नीलो, लाल, पौळो अने धोळो ) वर्ण छे. वे (सुगंध अने दुर्गध) गंध छे. जो के बधा मळीने आठ (कठण, कोमळ, भारे, हळवो, ठंडो, उनो, चिकणो अने लुखो) स्पर्शी छे पण भाषाना अणुओमां फक्त चार ( ठंडो, उनो, चिकणो अने लुखो) स्पर्श छे अने पांच ( तिखो, कडवो, कषाएलो, खाटो भने मधुर) रस छे. ते भाषानां अणुओमां पण बे जातां अणुओ होय छे:-केटलांक भाषापणे प्रहणने योग्य अने केटलांक साधारण. आगळ जे स्वरूप कहेवामां आव्युं छे ते भाषाना साधारण अणुओर्नु छ भने भाषापणे प्रहणने योग्य अणुओ® तो आ खरूप छे:-भाषापणे प्रहणने योग्य अणुओमा कोइमा एक गंध अने कोहमा बे गंध होय छे, कोइमां एक रैग, वे रंग, त्रण रंग, चार रंग के कोइमां पांचे रंग होय छे. कोइमा एक रस, बे रस, त्रण रस, चार रस अने कोइमो पांचे रस होय छे तथा कोइमा ( एक स्पर्श तो कोइ अणुमा होतो ज नयी.) बे स्पर्श; त्रण स्पर्श अने कोइमां चारे स्पर्श होय छे. बोलनार जण लोकाकाशमा रहेला सर्व अणुओने भाषापणे वापरतो नथी. पण ज्यां तेनो आत्मा रहेलो छे त्यां (भाषाना-शब्दना) जे अणुओ रहेला होय तेने ज बोलवानी चपराशर्मा ठे छे. तेमा पण जे अणुओ एकदम आत्मानी लगोलग रहेला छे ते अणुओने ज ऊंचेथी, नीचेथी, तिरछेथी, आदिथी, वच्चेधी के छेडेथी लइ क्रमपूर्वक वपराशर्मा ले छे. ते अणुओर्नु प्रहण आंतरे आंतरे थाय छे अने निरंतर पण थाय छे तथा ते अणुओने वापरी मूकी देवानो-योलीने बहार काढवानोसमय तो आंतरे आंतरे ज होय छे. जो कोइ बोलनार महाप्रयत्नवाळो होय तो तेणे बोलेल शब्दनां अणुओ छेक लोकने छेडे जइ शब्दपणुं मूकी दह विखराइ जाय छे भने जो कोइ बोलनार मंद प्रयत्नवाळो होय तो तेणे काढेल शब्दना अणुओ अमुक योजन सुधी जइ पछी शब्दपणुं छोडी दद विखराइ जाय छे. तात्पर्य एछे के, शब्दमा एवी पण गति उत्पन्न थइ शके छे के जेथी ते ब्रह्मांड पर्यंत पण पहोंची शके छे. शब्दनां अणुओ विषे आटली For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org.

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