Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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शतक १.-उद्देशक १०. . भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र.
२१९ स्वीकार्य ज छे. ए प्रमाणे ए बधुं अज्ञानना चाळारूप छे. वृद्धोए कयुं छे के, “परतीर्थिकनी वक्तव्यतावाळा प्रथम शतकमां दशमा उद्देशकमां विमंगज्ञानिओना मतिभेदना प्रकारो छे-ते बधी वक्तव्यता तेवी ज छे. सद्भत अने असद्भत ए भेदवडे विभंगमां चार भांगा थाय छे..ए अन्ययूथिकोनुं वक्तव्य उन्मत्तना वचन जेवू छे माटे तेने अज्ञान केधुं छे." ते चार भांगा आ छे:
चार मांगा. १. साचामां खोटुं. २. खोटामा साचुं.
३. साचामा साचुं. ४. खोटामा खोटुं. तेनां उदाहरणो आ छेः-सद्भुत-साचा-परमाणुमा असद्भूत-खोटुं-अडधुं वगेरे. खोटा व्यापक आत्मामा साचुं चैतन्य. साचा परमाणुमा साचुं अप्रदेशपणु. अने खोटा व्यापकं आत्मामा खोटुं अकर्तापणुं. ['अहं पुण गोयमा! एवं आइक्खामि' इत्यादि.] ए बधुं तो स्पष्ट अर्थवाळु श्रीमहावीरमत. ज छ. विशेष ए के, ['दोहं परमाणुपोग्गलाणं अस्थि सिणेहकाए' ति] ठंडो, उनो, चिकणो अने लुखो ए चार स्पर्शमांना कोइ पण बे परमाणुमा चिकाय. अविरुद्ध स्पर्श एक पण परमाणुमा एक ज काळे होय छे. माटे ते बे परमाणुओमां चिकाश होवाथी तेमा स्नेहकाय होय ज छे. तेथी ते बन्ने एक बीजा करतां ओछी वधती चिकाशवाळा होवाथी परस्पर चोंटी जाय छे. आ वात बीजाना मतने लइने कही छे. नहीं तो, एक बीजा करतां ओछी वधती लुखाशवाळा पण परमाणुओ परस्पर चोंटी जाय ज छे. कयुं छे के, "जेमा सरखी चिकाश होय अने जेमा सरखी लुखाश होय तेवा पुद्गलो. परस्पर चोंटता नथी. पण एक बीजा करतां ओछी वधती चिकाश अने लुखाशवाळा पुद्गलो परस्पर चोंटी जाय छे" ['खंधे वि य णं से असासए' त्ति] कारण के ते स्कंध वधघटना खभाववाळो छे. माटे ज कहे छे के, ['सया समिय' इत्यादि.] [ 'पुचि भासा अभास' ति] बोलाय छे माटे भाषा कहेवाय. अने बोलाया पहेला बोलाती नथी माटे भाषा न कहेवाय. [ 'भासिजमाणी भासा भास' त्ति] बोलाती भापा भाषा छे, कारण के शब्द अने अर्थनी उपपत्ति थाय छे. [भासिआ अभास'त्ति] बोलाएली (भाषा) अभाषा छे, कारण के शब्द अने अर्थनो वियोग छे. [पुट्विं किरिया अदुक्ख'त्ति] कर्या पहेलां क्रियाज नथी. अने तेम होवाथी ज ते दुःख के सुखरूप नथी, कारण के ते नथी ज. मात्र बीजाना मतने आश्रीने . 'दुःखरूप नथी' एम एकलं कडं छे. ['जहा भास'त्ति] एम कर्दा होवाथी 'कराती क्रिया दुःखरूप छे. कारण के ते विद्यमान छे..अहीं पण जे कमु छे के, 'कराती क्रिया दुःखरूप छे' ते परमतने आश्रीने ज कयुं छे. नहीं तो कराती ज क्रिया सुखरूप पण होय छे. तथा [ किरियासमयवितिक्कंतं च णं' इत्यादि.] ए बधु जाणवू. ['किचं दुक्खं' इत्यादि.] आ सूत्रथी कर्मनी सत्ता जगावी छे. कारण के कर्मनी सत्ता प्रमाणोथी सिद्ध कर्म. छे. ते आ प्रमाणे:-कोइ एक बे पुरुषो होय अने ते बन्नेने इष्ट शब्द, इष्ट गंध, इष्ट रूप वगेरे विषयसुखना साधनो प्राप्त होय. तो पण ते बेमांथी एक जीवने दुःखरूप फळ मळे छे अने बीजा जीवने सुखरूप फळ मळे छे. स्थूल कारणोनी सरखी रीते सगवड होवा छतां जे जूदं जूहूँ कार्य नीपजे छे ते कोइ बीजा चोक्कस हेतु सिवाय बनतुं नथी. कारण के जे काइ कार्य नीपजे छे ते घडानी पेठे कारण सिवाय बनतुं नथी. माटे पूर्वे कहेल जूदा जूदा कार्यनो जे कोइ चोक्कस हेतु छे ते कर्म छे. कडुं छे के, “जेओनी पासे दरेक साधनो सरखां होय, पण (ते साधनोथी) फळ मळवामां जूदाइ होय, तो हे गौतम! ते फळ मळवानी जूदाइनु कोइ चोक्कस बीजुं कारण होवू जोइए-कारण सिवाय ते थइ शके नहीं. कारण के जे कार्य थतुं देखाय छे तेनु घडानी पेठे कारण होवू जोइए. अने जे कारण-हेतु-छे ते कर्म छे."
बीजा मतवाळाना क्रियाविषे प्रश्नोत्तर. ३२५.५०-अनउत्थिआ णं भंते । एवं आइक्खंति, ३२५. प्र०—हे भगवन् ! अन्यतीर्थिको ए प्रमाणे कहे छ जाव-एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो किरियाओ पकति. के, यावत्-एक जीव एक समये बे क्रियाओ करे छे. ते आ तं जहाः-इरियावहिअंच, संपराइयं च. जं समयं इरियावहिअं प्रमाणे:-ऐर्यापथिकी अने सांपरायिकी. जे समये ऐर्यापथिकी क्रिया पकरेइ तं समयं संपराइ पकरेइ, जं समयं संपराइअं पकरेइ, तं करे छे ते समये सांपरायिकी क्रिया करे छे अने जे समये सांपरासमयं इरियावहिरं पकरेइ-इरियावहिआए पकरणयाए संपराइअं यिकी क्रिया करे छे ते समये ऐयोपथिकी क्रिया करे छे. ऐयोपपकरेइ, संपराइआए पकरणयाए इरियावहिरं पकरइ. एवं खलु थिकी क्रिया करवाथी सपिरायिकी क्रिया करे छे अने सांपरायिकी एगे जीवे एगेणं समएणं दो किरियाओ पकरेंति. तं जहा:-इरिया- क्रिया करवाथी ऐर्यापथिकी क्रिया करे छे ए प्रमाणे एक जीव एक वहिअंच, संपराइअंच." से कहं एअंभंते ! एवं ?
समये बे किया करे छे-एक ऐापथिकी अने बीजी सांपरायिकी. हे भगवन् ! ए ते ए प्रमाणे केवी रीते होय ?
१. आ वात श्रीभगवतीजीनी अवचूर्णिमा छे. २. आ वातने मळती विगतवार हकीकत श्रीतत्त्वार्थसूचना पांचमा अध्यायमा ३२, ३३, ३४, ३५ अने ३६ मा सूत्रमा छे. ३. आ गाथा श्रीविशेषावश्यकसूत्रमा, बीजा गणधरवादमा १६१३ मी छे. (पृ. ६८९. य०प्रं.):-अनु.
१. मूलच्छायाः-अन्यतीर्थिका भगवन् । एवमाख्यान्ति, यावत्-एवं खलु एको जीवः एकेन समयेन द्वे क्रिये प्रकरोति. तद्यथा:-ऐर्यापथिकी च, सांपरायिकी च. यं समयम् ऐपिथिकी प्रकरोति, तं समयं सांपरायिकी प्रकरोति. यं समयं सांपरायिकी प्रकरोति, तं समयम् ऐर्यापयिकी प्रकरोति. ऐर्यापथिक्याः प्रकरणतया सांपरायिकी प्रकरोति, सांपरायिक्याः प्रकरणतया ऐयापथिकी प्रकरोति. एवं खलु एको जीवः एकेन समयेन द्वे किये प्रकरोतितद्यथाः-ऐयोपथिकी च, सांपरायिकी च. तत् कथमेतद् भगवन् । एवम् ?-अनु०
१. 'एक काळे एक जीव बे क्रिया करे छे' ए प्रमाणे केटलाक महाशयोर्नु मानवं छे. आ ३२५ मुं सूत्र पण एक काळे बे किया करवानुं माननार अन्य दार्शनिको संबंधे लखायुं छे. आ श्रीभगवतीसूत्र ज्यारे हस्तीमां आव्यु हशे सारे (श्रीमहावीरना समान काळे अथवा त्यार पछी) 'एक काळे एक जीव बे क्रिया करे छ' ए प्रमाणे माननाराओनो एक मोटो पंथ हो एम आ सूत्रथी समजी शकाय छे. 'एक काळे एक जीव बे आयुष्य उपार्जी शके छे' एयु माननाएं पण एक मत ते काळे हशे (जूओ पृ. २०४, प्रश्न-२९५) तथा ते मत अने आ मतने बहु अंतर होय एम जणातुं नथी. कारण के एक काळे वे आयुष्य उपार्जवानुं माननारने पण एक काळे वे किया करवानुं मानवं ज जोइए, नहीं तो एक क्रियाधी जूदां जूदां वे आयुष्य बनी जन शके. श्री विशेषावश्यक सूत्रमा ' एक काळे ये किया थाय छे' एवा सिद्धांतने स्थापनार आचार्यनो सविस्तर हेवाल जणान्यो छे. अमारा धारवा
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