Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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शतक १.उदेशक १०.
भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतसूत्र.
२१५.
ते' भियनामा दुहा कति दुहा कचमाणा एगयओ परमाणुपो एक एक परस्पर चोटी जाय छे. अने ते मे परमाणु पुत्रलोना वे ग्ले, एगचओ परमाणुपोग्गले मर्चति "
भाग थइ शके छे. जो ते बे परमाणु पुद्गलोना बे भाग करवामां आवे तो एक तरफ एक परमाणु पुद्रल आवे छे अने एक तरफ एक परमाणु पुद्गल छे."
२१९. "प्रण परमाणु पुद्रको एक एक परस्पर चोटी जाय छे. प्रण परमाणु पुत्रको एक एक परस्पर चोंटी जाय छे तेनुं शुं कारण ! त्रण परमाणु पुलोमा श्रीकाश के माटे त्रण परमाणु पुद्रको एक एक परस्पर चोंटी जाय छे. अने ते प्रण परमाणु पुद्रकोना के तथा त्रण भाग पण धइ शके छे. जो तेना मे भाग करवामां आवे तो एक तरफ एक परमाणु पुल आने के अने एक तरफ बे प्रदेशवाळो एक स्कंध आवे छे. जो तेना त्रण भाग करवामां आवे तो एक एक एम त्रणे परमाणुओ जुदा जुदा यह जाय छे. २ प्रमाणे यावत्-चार परमाणुओं संबंधे पण समज."
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३२०. – “पांच परमाणु पुद्रटो एक एक परस्पर चोंटी जाय छे अने ते परस्पर चोटी गया पछी एक स्कंधरूपे बनी जाय छे तथा ते स्कंच अशाश्वत छे अने हमेशा सारी रीते उपचप पामे छे, अपचय पामे छे."
३१९. तिष्णि परमाणुपोग्गला एगयओ साहणति, कन्हा तिष्णि परमाणुपोग्गला एगयओ साहणति तिन्हें परमा पोग्गलाणं अस्थि सिणेहकार, तम्हा विष्ण परमाणुयोग्गला एगज साहति से मिलमाणा दुहा पि तिहा पिकांति. दुहा फव्यमाणा एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयओ दुपएसिए संधै भवति. तिहा फव्यमाणा तिम्णि परमाणुपोग्गला भवंति एवं बाप पचारि."
३२०. पंच परमाणुपोग्गला एगयओ साहणंति. एगयओ साहणित्ता संपणार कति सधे विणं से असासर सया समिअं उवचिज्जइ य, अवचिज्जइ य."
३२१. - "पुव्विं भासा अभासा, भासिज्जमाणी भासा भासा, भासासमयवितितं च णं भासिआ अभासा."
३२३. – “पुव्विं किरिया अदुक्खा. जहा भासा तहा भाणि - अप्या. फिरिया पि जाच करणओ सा दुफ्खा नो खलु सा अकरणओ दुक्खा सेयं तवं सिवा."
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सा
३२२. – “जा सा पुव्विं भासा अभासा. भासिज्जमाणी भासा, मासा, मासासमयवितितं च मे भासिआ भासा अभासा किं भासओ भासा १ अभासओ भासा ? भासओ णं भासा खतु सा अभासओ भासा."
नो
३२२. – “ जे ते पूर्वनी भाषा अभाषा छे, बोलाती भाषा भाषा छे अने बोल्या पछीनी बोलाएली भाषा अभाषा छे. तो झुं ते बोलता पुरुषनी भाषा छे के अणबोलता पुरुषनी भाषा छे ! ( उत्तर ) - ते बोलता पुरुषनी भाषा छे. पण अणबोलता पुरुषनी तो ते भाषा नथी ज."
३२४. "कियां दुक्खे, पुसे दुक्तं, फज्नमाणकढं दुक्खं कट्टु कडु पाणभूमी सत्ता वेद वेदेति इति वचनं सिया."
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३२१. - " पूर्वनी भाषा अभाषा छे. बोळाती भाषा भाषा छे. अने बोल्या पछीनी- बोलाएली भाषा अभाषा छे."
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३२१. " पूर्वनी क्रिया दुःसहेतु नथी, तेने पण भाषानी पेठे जाणची यावत् करणथी ते दुःखहेतु छे. पण अकरणची से दुःखहेतु नथी ज. ए प्रमाणे कद्देवाय."
३२४. दुःख छे, पुश्प दु:ख छे, क्रियमाणकृत दुःख छे, तेने करी करीने प्राणो भूतो, जीवो अने सच्चो वेदनाने वेदे छे. एम कहेबाय."
१. अनन्तरोद्देशकेऽस्थिरं कर्म इत्युक्तम्. कर्मादिषु च कुतीर्थिका विप्रतिपद्यन्ते अतस्तद्विप्रतिपत्तिनिरासप्रतिपादनार्थः, तथा संग्रहिण्यां 'चलणाओ' ति यदुक्तं तत्प्रतिपादनार्थश्च दशमोदेशको व्याख्यायते तत्र च सूत्रम् - 'अनउत्थिया णं' इत्यादि. 'चलमाणे अचलिए' त्ति चछत् कर्म अचलितम्, चछता तेन चलितकार्याऽकरणात्, वर्तमानस्य चाऽतीततया व्यपदेष्टुमशक्यत्वात् एवमन्यत्राऽपि वाच्यम् इति.
१. मूळच्छायाः निमानी दिया कियेते द्विपा कियमाथी एकताः परमापुः एकः परमापुको भवतः श्रमः परमापुः एकतः संहन्यन्ते. कस्मात् त्रयः परमाणुपुद्गलाः एकतः संहन्यन्ते ! त्रयाणां परमाणुपुङ्गलानाम् अस्ति स्नेहकायः तस्मात् श्रयः परमाणुपुद्गलः एकतः संहन्यन्ते ते मियमाना द्विधा अपि त्रिधा अपि क्रियन्ते द्विधा क्रियमाणा एकतः परमाणुपुलः, एकतः द्विप्रदेशिकः स्कन्धा भवति. त्रिधा क्रियमाणाः त्रयः परमाणुपुद्गला भवन्ति एवं यावत् चत्वारः पञ्च परमाणुपुद्गलां एकतः संहन्यन्ते. एकतः संहत्य स्कन्धतया क्रियन्ते. स्कन्धोऽपि च स अशाश्वतः सदा समितम् उपचीयते, अपचीयते च पूर्वं भाषा अभाषा भाष्यमाणा भाषा भाषा भाषासमयव्यतिक्रान्ता च भाषिता भाषा अभाषाणा या सा पूर्व भाषा अभाषा, भाष्यमाणी भाषा भाषा, भाषासमयव्यतिक्रान्ता च भाषिता भाषा अभाषा सा किं भाषमाणस्य भाषा, अभाषमाणस्य भाषा ? भाषमाणस्य भाषा, नो खल्लु सा अभाषमाणस्य भाषा, पूर्व क्रिया अदुःखा, यथा भाषा तथा भणितव्या. किया यावत्-करणतः सा दुःखा, नो खल सा अकरणतो दुःखा तदेवं वक्तव्यं स्यात् कृत्यं दुःखम् स्पृश्यं दुःखम्, का या प्राणभूत-जीप-सरमा बेदनां वेदवता-अनु
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