Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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१८४
श्रीरायचन्द्र - जिनागमसंग्रहे
शतक १.- उद्देशक ७.
मोक्खकामए; धम्मर्कखिए, पुत्रकंखिए, सग्गकंखिए, मो- ते जीव धर्मनो लालचु, पुण्यनो लालचु, स्वर्गनो लालचु, मोक्षनो लालचु, धर्ममां सक्त, पुण्यमां सक्त, स्वर्गमां सक्त, मोक्षमां सक्त, धर्मनो तरस्यो, पुण्यनो, स्वर्गनो अने मोक्षनो तरस्यो, तेमां चित्तवाळो, तेमां मनवाळो, तेमां आत्मपरिणामवाळो, तेमां अध्यवसि थलो, तेमां तीव्र प्रयत्नवाळो, तेमां सावधानतावाळो, तेमां क्रियाओनो भोग आपनारो अने तेना ज संस्कारवाळो ए समये मरण पामे तो देवलोके जाय. माटे हे गौतम ! ते हेतुथी पूर्व प्रमाणे कह्युं छे.
क्खकंखिए; धम्मपिवासए पुत्रपिवासए, सग्ग - मोक्खपिचासए, तच्चित्ते, तम्मणे, तल्लेसे, तदज्झवसिए, तत्तिव्वज्झवसाणे, तदट्ठोव - उत्ते, तदप्पियकरणे, तब्भावणाभाविए एयंसि णं अंतरंसि कालं करेज्ज देवलोगेसु उववज्जइ. से तेणद्वेणं गोयमा ! ..
२५८. प्र०—जीवे णं भंते! गब्भगए समाणे उत्ताणए वा, पासिल्लए वा, अंबखुज्जए वा; अच्छेजए वा, चिट्ठेज्जए वा, निसीएज्ज वा, तुयहेज्ज वा, माउए सुवमाणीए सुवइ, जागरमाणीए जागरइ, सुहियाए सुहिए भवइ, दुहियाए दुहिए भवइ ?
२५८. उ० – हंता गोयमा ! जीवे णं गब्भगए समाणे जावदुहियाए दुहिए भवइ, अहे णं पसवणकालसमयंसि सीसेण वा, पाएहिं वा आगच्छंति, सम्मं आगच्छइ, तिरियं आगच्छइ, विणिहायं आवज्जइ, वनवज्झाणि य से कम्माई बद्धाई पुट्ठाई, निहत्ताई, कडाई, पट्ठवियाई, अभिनिविट्ठाई, अभिसमनागयाई, उदिनाई, नो उवसंताई भवंति, तओ भवइ दुरूवे, दुवने, दुरसे, दुफासे, अणिट्टे, अकंते, अप्पिए, असुभे, अमणुत्रे, अमणामे; हीणस्सरे, दीणस्सरे, अणिट्ठस्सरे, अकंतस्सरे, अप्पियस्सरे, असुभस्सरे, अमणुत्रस्सरे, अमणामस्सरे; अणाएज्जवयणे, पचायाए या वि भवइ. वण्णवज्झाणि य से कम्माई नो बद्धाई, पसत्थं णेयव्वं जावआदिज्जवयणे पश्चायाए या वि भवइ.
सेवं भंते!, सेवं भंते! त्ति.
२५८. प्र० - हे भगवन् ! गर्भमां गएलो जीव चत्तो होय, पडखाभेर होय, केरीनी जेवो कुब्ज होय, उभेलो होय, बेठेलो होय के सूतेलो होय ! तथा ज्यारे माता सूती होय सारे सूतो होय, ज्यारे माता जागती होय त्यारे जागतो होय, माता सुखी होय त्यारे सुखी होय अने ज्यारे माता दुःखी होय त्यारे दुःखी
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२५८. उ०—हे गौतम! हा, गर्भमां गएलो जीव यावत्ज्यारे माता दुःखी होय त्यारे दुःखी होय. हवे जो ते गर्भ, प्रसव समये माथाद्वारा के पगद्वारा बहार आवे, तो सरखी रीते आवे अने जो आडो थइने बहार आवे तो मरण पामे. ( जो कदाच जीव तो बहार आवे तो ) अने ते जीवना कर्मों जो अशुभ रीते बद्ध होय स्पृष्ट होय, निधत्त होय, कृत होय, प्रस्थापित होय, अभिनिविष्ट होय, अभिसमन्वागत होय, उदीर्ण होय अने उपशांत न होय तो ते जीव कदरूपो, दुर्वर्णवाळो, दुर्गधवाळो, खराब रसवाळो, खराब स्पर्शवाळो, अनिष्ट, अकांत, अप्रिय, अशुभ, अमनोज्ञ, सांभर्यो पण न सारो लागे तेवो, हीन स्वरवाळो दीन स्वरवाळो, अनिष्ट स्वरवाळो, अकांत स्वरवाळो, अप्रिय स्वरवाळो, अशुभ स्वरवाळो, अमनोज्ञ स्वरवाळो, सांभर्यो पण न सारो लागे तेवा स्वरवाळो अने अनादेय वचन (जेनुं वचन कोइ न माने तेवो ) थाय अने जो ते जीवना कर्मों अशुभ रीते बद्ध न होय तो बधुं प्रशस्त जाणवुं यावत्-ते जीव आदेय वचन ( जेनुं वचन बधा माने तेवो) थाय छे.
हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, हे भगवन् । ते ए प्रमाणे छे. एम कही यावत्- विचरे छे.
भगवंतसुहम्मसामिपणीए सिरीभगवईसुत्ते पढमंसये सत्तमो उद्देसो सम्मतो.
१. मूलच्छायाः - मोक्षकामुकः; धर्मकाही, पुण्यकाङ्क्षी, स्वर्गकाङ्क्षी, मोक्षकाङ्क्षी; धर्मपिपासकः, पुण्यपिपासकः, खर्ग- मोक्ष पिपासकः; तचित्तः, तन्मनाः, तल्लेश्यः, तदध्यवसितः, तत्तीव्राऽध्यवसानः, तदर्थोपयुक्तः, तदर्पितकरणः, तद्भावनाभावितः एतस्मिन् अन्तरे कालं कुर्यात्, देवलोकेषु उपपद्यते तत् तेनार्थेन गौतम ! ०. जीवो भगवन् ! गर्भगतः सन् उत्तानको वा, पार्श्वयो वा, आम्रकुब्जको वा, आसीद् वा, तिष्ठेद् वा, निषीदेद् वा, खग्वर्तयेद् वा, मातरि खपत्यां ख. पति, जाग्रत्यां जागर्ति, सुखितायां सुखितो भवति, दुःखितायां दुःखितो भवति ? हन्त, गौतम | जीवो गर्भगतः सन् यावत् दुःखितायां दुःखितो भवति, अथ प्रसवनकालसमये शीर्षेण वा, पादाभ्यां वा आगच्छति, सम्यग् आगच्छति; तिर्यग् आगच्छति, विनिधातम् आपद्यते, वर्णवध्यानि च तस्य कर्माणि बद्धानि पुष्टानि, निधत्तानि कृतानि, प्रस्थापितानि, अभिनिविष्टानि, अभिसमन्वागतानि, उदीर्णानि, उपशान्तानि भवन्ति, ततो भवति दूरूपः, दुर्वर्णः, दूरसः, दुःस्पर्शः; अनिष्टः, अकान्तः, अप्रियः, अशुभः, अमनोज्ञः, अमनोमः, हीनखरः, दीनखरः, अनिष्टस्वरः, अकान्तखरः, अप्रियखरः, अशुभखरः, अमनोज्ञस्वरः अमनोमखरः; अनादेयवचनः प्रत्याजातश्चाऽपि भवति वर्णवध्यानि च तस्य कर्माणि नो बद्धानि, प्रशस्तं ज्ञातव्यम् यावत्-आदेयवचनः प्रत्याजातथाऽपि भवति तदेवं भगवन्!, तदेवं भगवन् । इति:- अनु०
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