Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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टीकाकार.
माहार.
१७८ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक १.-उद्देशक ७. कारण छे. ज्यारे कपडं वणावं शरु थइ गयुं अने कपडानो केटलोक भाग वणाइ पण चूक्यो त्यारे जे तंतुओ कपडाने उत्पन्न करे छे ते, कपडानो एवो कोइ भाग उत्पन्न नहीं करी शके के जे भाग पेला वणाता कपडाथी अलग होय. कारण के ते तंतुओ पेला वणाता कपडा साथे जोडाएला छे. अर्थात् जे उपादान कारण पोताना कार्य साथे जोडाएलं होय ते (उपादान) पोताथी उत्पन्न थता कार्यथी जूदो कोइपण भाग उत्पन्न न करी शके. तेवी ज रीते जे जीव पूर्वनी तिर्यंच वगेरे गतिमां प्रतिबद्ध होय अने ते जीव त्यां प्रतिबद्ध रहीने पोताना एक भागवडे अहीं नरकमां नारकिनो एक भाग न नीपजाबी शके-एक भागवडे एक भागपणे न उपजे. तथा एक भागवडे सर्वपणे न उपजे. जेम, एक तांतणावडे कपडं उत्पन्न थइ शकतुं नथी तेम जीव पोताना एक भागवडे नारकिना सर्व भागोने उपजावी शकतो नथी. कारण के अधूरा कारणथी संपूर्ण कार्य थइ शकतुं नथीएक भागवडे सर्वपणे न उपजे. तथा सर्व भागोवडे एक भागपणे न उपजे. जेम, घटने पेदा थवामां जेटलां कारणो जोइए तेटलां वर्धा पूरेपूरां कारणो मळेलां होय तो त्यां चोक्कस घडो ज उत्पन्न थवो जोइए, पण घडानो एक कटको ज उत्पन्न न थइ शके. कारण के ज्यां संपूर्ण कारणो भेगां थयां होय त्यां कार्य संपूर्ण ज थाय. तेम ज्यारे जीवना सर्व भागो कार्यरूपे बदलाता होय त्यारे ते सर्व भागोवडे नारकिनो एक भाग ज नीपजे ते असंगत छे. कारण के अहीं उपादान कारण आखो जीव छे माटे कार्य पण आखुंज थर्बु जोइए. तथा ['सव्वेणं सव्वं उववजइ'] जीव पोताना सर्व भागोवडे नारकिना सर्वभागोने नीपजावे छे-आखा नारकिपणे नीपजे छे. कारण के ज्या पूर्ण कारण होय त्यां कार्य पण पूर्ण ज थाय छे. अहीं पण आखो जीव कारण छे माटे नारकिरूप कार्य पण आखू ज थाय छे. जेम, घडानां बधां कारणो पूरेपूरा मळ्यां होय त्यारे पूरो ज घडो उत्पन्न थाय छे तेम आखा जीववडे आलुं ज कार्य उत्पन्न थाय छे." ए प्रमाणे चूर्णिकारनी व्याख्या छे. अने टीकाकारनी व्याख्या तो आ प्रमाणे छ:- “(१) शुं एक ठेकाणे रहेलो ज जीव पोताना एक भागने दूर करीने ज्यां उत्पन्न थवानुं छे त्यां एक भागवडे उत्पन्न थाय ? (२) अथवा एक भागवडे सर्वतः उत्पन्न थाय ? (३) अथवा ज्यां सर्व आत्मवडे उत्पन्न थवानुं छे त्यां तेना एक भागे उत्पन्न थाय ? के (४) सर्व आत्मवडे सर्वत्र उत्पन्न थाय ? ए चार भांगाओमां पछीना बे भांगा-त्रीजो अने चोथो-लेवा. कारण के ज्यां जीवने उत्पन्न थवानुं छे त्यां जो जीव इलिकागतिवडे -इयळनी चालवानी पद्धति प्रमाणे-जाय तो तेना (जीवना) सर्व आत्मप्रदेशना व्यापारवडे उत्पन्न थवाने स्थळे एक भागे उत्पन्न थाय. कारण के जीवना एक भागवडे तेने उत्पन्न थवाना स्थळनो पण एक ज भाग व्याप्त छे. अने ज्यां जीवने उत्पन्न थवानुं छे त्यां जो जीव दडानी पेठे जाय तो पोताना पूर्वस्थानने छोडीने ज तेना सर्व आत्मप्रदेशोवडे उत्पन्न थवाने ठेकाणे सर्वत्र उत्पन्न थाय" अने आ प्रमाणेनुं टीकाकारनुं व्याख्यान बीजी वाचनाने लागु पडे तेवं छे. उत्पन्न थया पछी आहारनी जरूर होय छे माटे हवे आहार संबंधे सूत्र कहे छे:-तेमां 'देशेन देशम्' एटले आत्माना एक भागवडे खावाना पदार्थनो एक भाग खाय ? एम जाणवू. उत्तर आ छः-['सव्वेण वा देसं आहारेइ'त्ति ] एटले आत्मा पोताना सर्व प्रदेशोवडे खावानी चीजनो एक भाग खाय छे. कारण के उत्पन्न थया पछी तुरत ज जीव पोताना सर्व प्रदेशोवडे खावाना पुद्गलो ले छे. तेमांना केटलांकने खाय छे अने केटलांकने पडतां मूके छे-खातो नथी. जेम; तपी गएली लोढीमां नाखेलो पूडलो केटलुक तेल चूसे छे अने केटलुक तेल नथी चूसतो, तेम पूर्वोक्त जीव पण केटलुक खाय छे अने केटलुक पडतुं मूके छे. माटे ज एम का छे के, खावानी चीजनो एक भाग खाय छे. [ 'सव्वेण वा सव्वं ति] जीव ज्यारे उत्पन्न थाय छे त्यारे पोताना बधा प्रदेशोवडे खावाने मळेली सर्व वस्तुनो आहार करेजछे. जेम; पहेलेथी तेलथी भरेली अने तपी गएली तवीमा पहेले ज क्षणे पडेलो पूडलो तेलने चूसी ले छे, तेम पूर्वोक्त जीव पण सर्व वस्तुने आहरे छे. माटे ज एम कर्तुं छे के, सर्व वस्तुने खाय छे. आहार साथे उत्पाद संबंधी बे दंडक आगळ कथा. हवे उत्पादनो प्रतिपक्ष होवाथी अने वर्तमानकाळना निर्देशनी सरखाइने लीधे आहार साथे उद्वर्तना विषे दंडक कह्यो छे. उत्पन्न थया विनाना जीवनी उद्वर्तना होती नथी माटे हवे पछी आहार साथे उत्पन्न जीव संबंधे बे दंडक कह्या छे. तथा उत्पन्ननो प्रतिपक्ष होवाथी हवे पछी आहार साथे उद्त्त संबंधे बे दंडक कह्या छे. बीजा पुस्तकमां तो उत्पाद अने आहारना दंडक पछी (उत्पाद थया पछी उत्पन्न थाय छे माटे) उत्पन्न अने आहार संबंधे बे दंडक छे. त्यार बाद उद्वर्तना, ते उत्पादनी प्रतिपक्ष होवाथी उद्वर्तना अने आहार संबंधे बे दंडक छे अने पछी (उद्वर्तनामां उद्वृत्त थाय छे माटे ) उद्वृत्त अने आहार संबंधे बे दंडक छे अने ए बधा दंडको स्पष्ट छे. ए प्रमाणे आठ दंडकोवडे देश अने सर्ववडे उत्पादादि विषे विचार कर्यो. हवे बीजा आठ दंडकोवडे अर्ध अने सर्ववडे उत्पादादि विषे ज चिंतन करतां कहे छे केः-['नेरइए णं' इत्यादि.] ['जहा पढमिल्लेणं ति] जेम देश (भाग) विषे कडं तेम अहीं पण जाणवू. शंकाः-भाग अने अर्धमा शुं विशेष छे ? समा०-भाग तो अडधो होय, पोणो होय अने पा होय तथा तेथी पण ओछो वधतो अनेक जातनो होय. अने अडधुं एटले बराबर अडधुं अने ते एक जातनुं ज होय.
विग्रहगति अने देवच्यवन. २३७. प्र०—जीवे णं भंते ! कि विग्गहगतिसमावण्णए, अ- २३७. प्र.--हे भगवन् ! शुं जीव विग्रहगतिने प्राप्त छे के विग्गहगतिसमावन्नए ?
अविग्रहगतिने प्राप्त छे ? २३७. उ०—गोयमा ! सिय विग्गहगइसमावन्नगे, सिय २३७. उ०—हे गौतम ! ते कदाच विग्रहगतिने प्राप्त छे अविग्गहगतिसमावन्नगे. एवं जाव-वेमाणिए.
अने कदाच अविग्रहगतिने प्राप्त छे. ए प्रमाणे यावत्-वैमानिक सुधी जाणवू.
अ.
अर्थ भने भाग.
१. 'चूर्णि' नामनी श्रीभगवतीजी उपर एक संक्षिप्त व्याख्या छे. ते चूर्णि बनावनारनु ए मत छे. तेनो (चूर्णिनो) पाठ आगळ दर्शाव्यो छे:-अनु. २. टीकाकार एटले अवचूर्णिकार जाणवा. (अवचूर्णि) नामनी पण एक संक्षिप्त व्याख्या छे. जे पूर्वोक्त चूर्णिनो अर्थ स्पष्टपणे दर्शावे छे. ते अवचूर्णिनो पाठ पण आगळ दर्शाव्यो छे:-अनु.
१. मूलच्छायाः-जीवो भगवन् ! किं विग्रहगतिसमापन्नकः, अविग्रहगतिसमापन्नकः ? गौतम । स्याद् विग्रहगतिसमापनकः, स्याद् अविग्रहगतिसमा. पन्नकः, एवं यावत्-वैमानिकः-अनु०
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