Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust

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Page 201
________________ शतक १.-उद्देशक ७. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र. * आउए भवइ'त्ति ] तेनुं आयुष्य क्षीण थाय छे अने ज्यां मनुष्य वगेरेमा उत्पन्न थवानुं छे [ 'तमाउयंति ] ते मनुष्य वगैरेनुं आयुष्य अनुभवे छे. आयुष्य. अथवा [तिरिक्खजोणिआउयं वा'] तियेच योनिकना आयुष्यने अनुभवे छे. देवो देवगतिमा अने नारकिमां उत्पन्न थता नथी माटे ते बने आयुष्यनो अहीं निषेध कर्यो छे. गर्भशास्त्र. २४२.प्र०-जीवे णं भंते! गमं वक्कममाणे किं सइंदिए २४१. प्र०- हे भगवन् ! गर्भमा उत्पन्न थतो जीव शं वक्कमइ, अणिदिए वक्कमइ ? ___इंद्रियवाळो उत्पन्न थाय के इंद्रिय विनानो उत्पन्न थाय ? २४१.उ.---गोयमा। सिय सइंदिए वक्कमह, सिय अणिं- २४१. उ०—हे गौतम! इंद्रियवाळो पण उत्पन्न थाय अने दिए वक्कमइ. - इंद्रियविनानो पण उत्पन्न थाय. - २४२.प्र०—से केणगुणं ? २४२. प्र०—हे भगवन् ! तेनुं शुं कारण ? २४२. उ०—गोयमा ! दविदियाई पडुच्च अणिदिए वक्क- २४२. उ०—हे गौतम ! द्रव्येंद्रियो-स्थूल इंद्रियो नी अपेमइ, भाविंदियाई पडुच्च सइंदिए पक्कमइ. से तेणद्वेणं०. क्षाए इंद्रिय विनानो उत्पन्न थाय अने भाव इंद्रिय-चैतन्य-नी अपेक्षाए इंद्रियवाळो उत्पन्न थाय. माटे हे गौतम! ते कारणथी पूर्वप्रमाणे का छे. २४३. प्र०—जीवे णं भंते ! गभं वक्कममाणे किं ससरीरी २४३. प्र०—हे भगवन् ! गर्भमां उपजतो जीव शुं शरीरवक्कमइ, असरीरी वक्कमइ ? . वाळो उत्पन्न थाय के शरीर विनानो उत्पन्न थाय ? . . २४३. उ०—गोयमा ! सिय ससरीरी वक्कमइ, सिय अस- २४३. उ०—हे गौतम! शरीरवाळो पण उत्पन्न थाय अने रीरी वक्कमइ. शरीर विनानो पण उत्पन्न थाय. २४४.प्र०-से केणटेणं ? २४४. प्र०—हे भगवन् ! तेनु शुं कारण ? २४४.. उ०-गोयमा ! ओरालिय–वेउव्विय-आहारयाई २४४. उ०—हे गौतम! औदारिक, वैक्रिय अने आहारकपडुच असरीरी वकमइ. तेया-कम्माइं पडुच ससरीरी वक्कमइ, से स्थूल-शरीरोनी अपेक्षाए शरीर विनानो उत्पन्न थाय अने तेण?णं गोयमा 10. सूक्ष्म-तैजस तथा कार्मण-शरीरनी अपेक्षाए शरीरवाळो उत्पन्न थाय. हे गौतम ! ए कारणथी पूर्वप्रमाणे कर्तुं छे. २४५. प्र०-जीवे णं भंते ! गभं वक्कममाणे तप्पढमयाए २४५. प्र०—हे भगवन् ! जीव गर्भमा उत्पन्न थता वेंत ज शुं किं आहारं आहारेइ ? खाय छे? २४५. उ०—गोयमा ! माउओयं, पिउसुकं तं तदुभयससिढे २४५. उ०—हे गौतम! परस्पर एक बीजामा मळेलु माताकलुस, किविसं तप्पढमयाए आहारं आहारेइ. आर्तव अने पितानुं वीर्य, जे कलुष अने किल्विष छे. तेने ते जीव गर्भमां उत्पन्न थता वेंत ज खाय छे. २४६.प्र०-जीवे णं भंते ! गभगए समाणे किं आहारं २४६. प्र०—हे भगवन् ! गर्भमां गयो छतो जीव शुं आहारेइ ? २४६. उ०—गोयमा! जसे माया नाणाविहाओ रसविग- २४६. उ०—हे गौतम ! गर्भमां गयो छतो जीव माताए तीओ आहारं आहारेइ, तदेकदेसेणं ओयं आहारइ. खाधेल अनेक प्रकारना रसविकारोना एक भाग साथे माताना आर्तवने खाय छे. खाय छे? १. 'च' शब्द समुच्चयसूचक छे:-श्रीअभय. १. मूलच्छायाः-जीवो भगवन् । गर्भ व्युत्क्रामन् कि सेन्द्रियो व्युत्कामति, अनिन्द्रियो व्युत्कामति ? गौतम! स्यात् सेन्द्रियो ब्युत्कामति, स्याद् अनिन्द्रियो व्युत्क्रामति. तत् केनार्थेन ? गौतम | द्रव्येन्द्रियाणि प्रतीय अनिन्द्रियो व्युत्कामति, भावेन्द्रियाणि प्रतीत्य सेन्द्रियो व्युत्कामति. तत् तेनाऽर्थन. जीवो भगवन् ! गर्भ व्युत्क्रामन् । किं सशरीरी व्युत्कामति, अशरीरी व्युत्कामति ? गौतम | स्यात् सशरीरी व्युत्कामति, स्याद् अशरीरी व्युत्कामति. तत् केनाऽर्थेन ? गौतम ! औदारिक-वैक्रिय-आहारकाणि प्रतीत्य अशरीरी व्यकामति. तैजस-कार्मणे प्रतीत्य सशरीरी व्युत्कामति. तत् तेनाऽर्थन गौतम/0. जीवो भगवन् ! गर्भ व्युत्क्रामन् तत्प्रथमतया कम् आहारम् आहारयति ? गौतम! मातृओजः, पितृशुकं तत् तदुभयश्लिष्ट कलषम्, किल्विषं तत्प्रथमतया आहारम् आहारयति. जीवो भगवन् ! भगतः सन् कम् आहारम् आहारयति ? गौतम! यत् तद्माता नानाविधा रसवि कृतीराहारम् आहारयति, तदेकदेशेन ओज आहारयतिः-अनु० Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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