Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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२८
श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक १.-प्रश्नोत्थान.
११. परिसा णिग्गय'त्ति राजगृहाद् राजादिलोको भगवतो वन्दनार्थं निर्गतः. तन्निर्गमश्चैवम्:-"तए णं रायगिहे णयरे सिंघाडग-तिगचउक-चथर-चउम्मुह-महापहपहेसु बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ:-एवं खलु देवाणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे इह गणसिलए चेइए अहापडिरूवं उग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं, तवसा अपाणं भावेमाणे विहरइ. तं सेयं खलु तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं नामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण वंदण-नमसणयाए ? ति कट्टु बहवे उग्गा, उग्गपुत्ता" इत्यादिर्वाच्यो यावद् भगवन्तं नमस्यन्ति, पर्युपासते चेति. एवं रीजनिर्गमः,
१.प्र.छायाः-ततो राजगृहे नगरे शृङ्गाटक-त्रिक-चतुष्क-चत्वर-चतुर्मुख-महापथपथेषु बहुजनोऽन्योऽन्यमेवमाख्यातिः-एवं खलु देवानुप्रिय ! श्रमणो भगवान् महावीर इह गुणसिलके चैत्ये यथाप्रतिरूपमवग्रहमवगृह्य संयमेन, तपसाऽऽत्मानं भावयन् विहरति. तत् श्रेयः खलु तथारूपाणामहंतां भगवतां नामगोत्रस्याऽपि श्रवणतया, किमङ्ग पुनर्वन्दन-नमस्यनतयेति कृत्वा बहब उपाः, उग्रपुत्राः.-अनु०
२. औपपातिकसूत्रे जननिर्गमः, तत्पर्युपासना चैवम्:-“भोगा, भोगपुत्ता, एवं दुपडोयारेण; खत्तिया, माहणा, भडा, जोहा, पसत्यारो, मलई, लिच्छई लिच्छइपुत्ता; अण्णे य बहवे राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इन्भ-सेटि-सेणावइ-सत्यवाहपभिइआ, अप्पेगइया वंदणवत्तिअं, अप्पेगइ आ पूअणवत्तियं,एवं सकारवत्तियं, सम्माणवत्तियं, सणवत्तियं, कोउहलवत्तिय अप्पेगइआ अद्वविणिच्छयहेउं, अस्सुआई सुणेस्सामो, सुआई निसंकिआई करिस्सामो; अप्पेगइआ, अट्ठाई, हेऊई, कारणाई, वागरणाई पुच्छिस्सामो; अप्पेगइआ सव्वओ समंताए मुण्डे भवित्ता-आगाराउ अणगारियं पव्वइस्सामो, पंचाणुव्वइअं, सत्तसिक्खावइअं दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवजिस्सामो; अप्पेगइआ जिणभत्तिरागेणं, अप्पेगइआ जीयमेयं ति कटु व्हाया, कयबलिकम्मा, कयकोउयमंगलपायच्छित्ता, सिरसाकंठेमालकडा, आविमणिसुवण्णा, कप्पियहार-ड्रहार-तिसरय-पालंवपलंबमाणकडिसुत्तयसुकयसोहाभरणा, पवरवत्थपरिहिआ, चंदणोलित्तगायसरीरा; अ. प्पेगइआ हयगया, एवं गयगया, रहगया, सिविआगया, संदमाणियागया; अप्पेगइआ पायविहारचारिणो पुरिसवग्गुरापरिक्खित्ता, महया उक्किट्ठसीहणायबोल. कलकलरवेणं पक्खुभिअमहासमुद्दरवभूअं पिव करेमाणा, चंपाए नगरीए मज्झं मज्झेणं णिग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता जेणेव पुण्णभद्दे चेइए, तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते छत्ताइए तित्थयरातिसेसे पासंति, पासित्ता जाणवाहणाई ठावंति, ठावित्ता जाणवाहणेहितो पयोरुहंति, पचोरुहित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीर तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करति, करित्ता वंदति, नमसंति; वंदित्ता, नमंसित्ता पचासण्णे, णाइदूरे, सुस्सूसमाणा, णमंसमाणा, अभिमुहा विणएणं पंजलिउडा पज्जुवासंति.” (पृ०-१६४-१५०.)
३. औपपातिकसूत्रे राजनिर्गमः, तत्पर्युपासना चैवम्:-"तए णं से पवित्तिवाउए इमीसे कहाए लढे समाणे, हह-तुढे जाव हियए, हाए जाव अप्पमहग्याभरणालंकिअसरीरे सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता चंपं नयरिं मझ मज्झेण जेणेव वाहिरिया उवट्ठाणसाला, सम्वेव हेहिला वत्तव्वया जाव णिसीअइ, णिसीइत्ता तस्स पवित्तिवाउअस्स अद्धतेरससयसहस्साई पीइदाणं दलयइ, दलित्ता सकारेइ, सम्माणेइ, सकारित्ता,सम्माणित्ता पडिविसज्जेइ. तए णं से कूणिए राया भंभसारपुत्ते बलवाउअं आमंतेइ, आमंतित्ता एवं वयासिः-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! आभिसेक हत्थिरयणं पडिकप्पेहि हय-गय-रह-पवरजोहकलिअं च चाउरंगिणिं सेणं संणाहेहि, सुभद्दापमुहाण य देवीणं बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए पाडिएकपाडिएक्काई जत्ताभिमुहाई जुत्ताई जाणाई उवट्ठावेहि, चंपं नयरिं सब्भिन्तरबाहिरिअं आसित्त-सित्तसुसम्मट्ठ-रत्यन्तरावणवीहियं, मंचाइमंचकलियं, नाणाविहरागउच्छिअज्झर्ग, पडागाइपडागमंडियं लाउलोइयमहियं गोसीससरसरत्तचंदण जाव गंधवहिभूयं करेह, कारवेह, करित्ता, कारवित्ता एयमाणत्तियं पञ्चप्पिणाहि, निजाइस्सामि समणं भगवं महावीरं अभिवंदित्तए. तए णं से बलवाउए कूणिएणं रण्णा एवं वुत्ते समाणे हट्ठ-तुट्ठ जाव हिअये करयलपरिगहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं क एवं वयासीः-सामि त्ति, आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेइ. पडिसुणित्ता हत्थिवाउयं आमंतेइ, आमंतित्ता एवं वयासी:-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! कूणियस्स रण्णो भंभसारपुत्तस्स आभिसेकं हत्थिरयणं पडिकप्पेहि, हय-गय-रह-पवरजोहकलियं चाउरंगिणिसेणं संणाहेहि, संणाहित्ता, एयमाणत्ति पञ्चप्पिणाहि. तए णं से हत्थिवाउए बलवाउयस्स एयमढे सोचा आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेइ. पडिसुणित्ता छेयायरियउवएसमइविकप्पणाविकप्पेहिं सुणिउणेहिं उजलणेवत्थवत्थ-हत्थपरिवस्थिय, सुसज धम्मिअसंणद्ध-यद्ध-कवइअउप्पीलियकच्छविच्छगेविजबद्धगलवरभूसणविराय, अहिअतेयजुत्तं, सललियवरकण्णपूरविराइयं, पलंबउचूलमहुअरकर्यधयारं, चित्तपरिच्छेयपच्छदं, पहरणावरणभरियजुद्धसज्जं, सच्छत्त, सज्झयं, सघंट, सपडागं, पंचामेलपरिमंडिआभिरामं, ओसारियजमलजुअलघंट विजुपिणद्धं व कालमेहं, उप्पाइयपव्वयं व चंकमंतं, मत्तं, गुलगुलंतं मण-पवणजइणवेगं, भीम, संगामिआओग्गं आभिसेकं हत्थिरयणं पडिकप्पेइ, पडिकपित्ता हय-गय-रह-पवरजोहकलियं चाउरंगिणिसेणं संणाहेइ, संणाहित्ता जेणेव बलवाउए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एयमाणत्तियं पञ्चप्पिणइ. तए णं से बलवाउए जाणसालियं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी:-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! सुभद्दाइपमुहाणं देवीणं बाहिरिआए उवट्ठाणसालाए पाडिएकपाडिएकाई जत्ताभिमुहाई जुत्ताई जाणाई उवद्ववेहि, उवट्ठवित्ता एयमाणत्तियं पञ्चपिणाहि. तए णं से जाणसालिए बलवाउयस्स एयमढे आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता जेणेव जाणसाला, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जाणाइंणीणेइ, णीणित्ता जाणाई दूसे पवीणेइ, पवीणित्ता जाणाई समलंकरेइ, समलंकरिता जाणाई वरभंडगमंडिआई करेइ, करित्ता जेणेव वाहणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वाहणाई पञ्चुवेक्खेइ, पचुवेक्खित्ता वाहणाई संपमज्जइ, संपमज्जित्ता वाहणाई णीणेइ, णीणित्ता वाहणाई अप्फालेइ,' अप्फालित्ता दूसे पवीणेइ, पवीणित्ता वाहणाई समलंकरेइ, समलंकरित्ता वाहणाई वरभंडगमंडिआई करेइ, करित्ता वाहणाई जाणाई जोएइ, जोइत्ता पत्तोदलडिं पउयधरे य समं आउहइ, आउहित्ता वट्टमग्गं गाहेइ, गाहित्ता जेणेव बलवाउए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता बलवाउअस्स एयमाणत्तियं पञ्चप्पिणइ. तए णं से बलवाउए णगरगुत्तियं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी:-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! चंप णगरि सम्भितरयाहिरियं आसित्त जाव कारवेत्ता एयमाणत्तियं पञ्चप्पिणाहि. तए णं से णगरगुत्तिए बलवाउअस्स एयमढे आणए विणएणं पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता चंपं नगरिं सम्भितरवाहिरियं आसित्त. जाव कारवेत्ता जेणेव बलवाउए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एयमाणत्तियं पञ्चप्पिणइ. तए णं से बलवाउए कूणियस्स रण्णो भंभसारपुत्तस्स आभिसेकं हत्थिरयणं पडिकप्पियं पासेइ, हय-गय० जाव संणाहियं पासइ,सुभद्दापमुहाणं देवीणं पाडिएकपाडिएकाई जाणाई उवट्ठिआई पासइ, चंपं नयरिं अभितर. जाव गंधवटिभूअं कयं पासइ, पासित्ता हट-तुकृचित्तमाणदिए पीअमणे जाव हियए जेणेव कूणिए राया भंभसारपुत्ते, तेणेव उवागच्छद, उवागच्छित्ता करयल. जाव, एवं वयासी:-कप्पिए णं देवाणुप्पियाणं आभिसिक्के हत्थिरयणे, हय-गय० जाब पवरजोहकलिआ य चाउरंगिणी सेणा संणाहिआ, सुभद्दापमुहाणं च देवीणं बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए पाडिएकपाडिएकाई जत्ताभिमुहाई जुत्ताई जाणाई उवट्ठविआई, चंपा णयरी सभितरवाहिरिया आसित्त. जाव गंधवधिभूआ कया, तं निजंतु णं देवाणुप्पिया ! समणं भगवं महावीरं अभिवंदणयाए. तए णं से कूणिए राया भंभसारपुत्ते बलवाउअस्स अंतिए एयमढे सोचा, णिसम्म ह-तुट्ट• जावा हियए, जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अणसालं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता अणेगवायामजोग्गवग्गण-वामद्दण-मलजुद्धकरणेहिं संते, तंते, परिसंते सयपाग-सहस्सपागेहिं सुगंधतेलमाईएहिं पीणणिज्जेहिं, दप्पणिज्जेहिं, मयणिज्जेहिं, विणिज्नेहि, सबिंदिय
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