Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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१४
व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र उत्पल-जीव एकान्त मिथ्यादृष्टि और अज्ञानी होते हैं, एकेन्द्रिय होने से उनके मन और वचन नहीं होते, इसलिए काययोग ही होता है। साकारोपयोग और अनाकारोपयोग–५ ज्ञान और ३ अज्ञान को साकारोपयोग तथा चार दर्शन को अनाकारोपयोग कहते हैं। ये दोनों सामान्यतया उत्पलजीवों में होते हैं।' १४-१५-१६–वर्णरसादि-उच्छ्वासकं-आहारक द्वार
१९. तेसि णं भंते ! जीवाणं सरीरगा कतिवण्णा कतिरसा कतिगंधा कतिफासा पन्नत्ता ?
गोयमा ! पंचवण्णा, पंचरसा, दुगंधा,. अट्ठफासा पन्नत्ता। ते पुण अप्पणा अवण्णा अगंधा अरसा अफासा पन्नत्ता। [दारं १४]
[१९ प्र.] भगवन् ! उन (उत्पल के) जीवों का शरीर कितने वर्ण, कितने गन्ध, कितने रस और कितने स्पर्श वाला है ?
[१९ उ.] गौतम ! उनका (शरीर) पांच वर्ण, पांच रस, दो गन्ध और आठ स्पर्श वाला है। जीव स्वयं वर्ण, गंध, रस और स्पर्श-रहित है।
[-चौदहवाँ द्वार] २०. ते णं भंते ! जीवा किं उस्सासा, निस्सासा, नोउस्सासनिस्सासा ?
गोयमा ! उस्सासए वा १, निस्सासए वा २, नोउस्सासनिस्सासए वा ३, उस्सासगा वा ४, निस्सासगा वा ५. नोउस्सासनिस्सासगा वा६. अहवा उस्सासए य निस्सासए य४( १०), अहवा उस्सासए य नोउस्सांसनिस्सासए य ४ (११ से १४), अहवा निस्सासए य नोउस्सासनीसासए य ४ (१५-१८), अहवा उस्सासए य नीसासए य नोउस्सासनिस्सासए य-अट्ठ भंगा (१९-२६) एए छव्वीसं भंगा भवंति। [ दारं १५]
[२० प्र.] भगवन् ! वे (उत्पल के) जीव उच्छ्वासक हैं, निश्वासक हैं, या उच्छ्वासक-नि:श्वासक हैं ?
[२० उ.] गौतम ! (उनमें से) (१) कोई एक जीव उच्छ्वासक है, या (२) कोई एक जीव नि:श्वासक है, अथवा (३) कोई एक जीव अनुच्छ्वासक नि:श्वासक है, या (४) अनेक जीव उच्छ्वासक हैं, (५) या अनेक जीव निःश्वासक हैं, अथवा (६) अनेक जीव अनुच्छ्वासक-नि:श्वासक हैं, (७-१०) अथवा एक उच्छ्वासक है और एक नि:श्वासक है; इत्यादि। (११-१४) अथवा एक उच्छ्वासक और एक अनुच्छ्वासकनि:श्वासक है; इत्यादि । (१५-१८) अथवा एक नि:श्वासक और एक अनुच्छ्वासक-निःश्वासक है, इत्यादि। (१९-२६) अथवा एक उच्छ्वासक, एक नि:श्वासक और एक अनुच्छ्वासक-निःश्वासक है इत्यादि आठ भंग होते हैं। ये सब मिलकर २६ भंग होते हैं।
[-पन्द्रहवाँ द्वार] २१. ते णं भंते ! जीवा किं आहारगा, अणाहारगा ? गोयमा ! २ आहारए वा अणाहारए वा, एवं अट्ठ भंगा। [ दारं १६ ] [२१ प्र.] भगवन् ! वे उत्पल के जीव आहारक हैं या अनाहारक हैं ?
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१. भगवती. विवेचन भा. ४ (पं. घेवरचन्दजी), पृ. १८५४ २. अधिक पाठ-"नो अणाहारगा"