Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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ग्यारहवां शतक : उद्देशक-१
इस प्रकार असंयोगी ८, द्विकसंयोगी २४, त्रिकसंयोगी ३२ और चतुःसंयोगी १६ भंग, मिला कर कुल ८० भंग होते हैं। १० से १३-दृष्टि-ज्ञान-योग-उपयोग-द्वार ।
१५. ते णं भंते ! जीवा किं सम्मट्ठिी, मिच्छादिट्ठी, सम्मामिच्छादिट्ठी ? गोयमा ! नो सम्मट्ठिी, नो सम्मामिच्छद्दिट्ठी, मिच्छादिट्ठी वा मिच्छादिट्ठिणो वा। [ दारं १०] [१५ प्र.] भगवन् ! वे उत्पल के जीव सम्यग्दृष्टि हैं, मिथ्यादृष्टि हैं, अथवा सम्यग्-मिथ्यादृष्टि हैं ?
[१५ उ.] गौतम ! वे सम्यग्दृष्टि नहीं, सम्यग्-मिथ्यादृष्टि भी नहीं, वह मात्र मिथ्यादृष्टि है, अथवा वे अनेक भी मिथ्यादृष्टि हैं।
[-दशम द्वार] १६. ते णं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी ? गोयमा ! नो नाणी, अन्नाणी वा अन्नाणिणो वा। [ दारं ११] [१६ प्र.] भगवन् ! वे उत्पल के जीव ज्ञानी हैं, अथवा अज्ञानी हैं.? . [१६ उ.] गौतम ! वे ज्ञानी नहीं हैं, किन्तु वह एक अज्ञानी है अथवा वे अनेक भी अज्ञानी हैं।
[- ग्यारहवाँ द्वार] १७. ते णं भंते ! जीवा किं मणजोगी, वइजोगी, कायजोगी ? गोयमा ! नो मणजोगी, णो वइजोगी, कायजोगी वा कायजोगिणो वा। [दारं १२] [१७ प्र.] भगवन् ! वे जीव मनोयोगी हैं, वचनयोगी हैं, अथवा काययोगी हैं ?
[१७ उ.] गौतम ! वे मनोयोगी नहीं हैं, वचनयोगी हैं, किन्तु वह एक हो तो काययोगी है और अनेक हों तो भी काययोगी हैं।
[– बारहवाँ द्वार] १८ ते णं भंते ! जीवा किं सागारोवउत्ता अणागारोवउत्ता ? गोयमा ! सागारोवउत्ते वा अणागारोवउत्ते वा, अट्ठ भंगा। [दारं १३] [१८ प्र.] भगवन् ! वे उत्पल के जीव साकारोपयोगी हैं, अथवा अनाकारोपयोगी हैं ?
[१८ उ.] गौतम ! वे साकारोपयोगी भी होते हैं और अनाकारोपयोगी भी होते हैं। इसके पूर्ववत् आठ भंग कहने चाहिए।
[- तेरहवाँ द्वार] विवेचन—उत्पलजीवों में दृष्टि, ज्ञान, योग एवं उपयोग की प्ररूपणा—प्रस्तुत चार सूत्रों (१५ से १८ तक) में उत्पलजीवों में दृष्टि आदि की प्ररूपणा की गई है।
१. भगवती. विवेचन (पं. घेवरचन्दजी), भा. ४, पृ. १८५२-१८५४