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Atmānuśāsana
धर्मारामतरूणां फलानि सर्वेन्द्रियार्थसौख्यानि । संरक्ष्य तांस्ततस्तान्युच्चिनु यैस्तैरुपायैस्त्वम् ॥१९॥
अर्थ – इन्द्रियविषयों के सेवन से उत्पन्न होने वाले सब सुख इस धर्मरूप उद्यान में स्थित वृक्षों (क्षमा - मार्दवादि) के ही फल हैं। इसलिये हे भव्य जीव! तू जिन किन्हीं उपायों से उन धर्मरूप उद्यान के वृक्षों की भले प्रकार रक्षा करके उनसे उपर्युक्त इन्द्रियविषय - जन्य सुखोंरूप फलों का संचय कर।
All pleasures borne out of the sense-objects are the fruits of the trees (forbearance, modesty, etc.) in the garden of dharma. Therefore, O soul, guard deftly, by all (fair) means, these trees and harvest their fruits (pleasures borne out of the sense-objects).
आत्मानुशासन
धर्मः सुखस्य हेतुर्हेतुर्न विराधकः स्वकार्यस्य । तस्मात्सुखभङ्गभिया मा भूर्धर्मस्य विमुखस्त्वम् ॥२०॥
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अर्थ - धर्म सुख का कारण है और कारण कुछ अपने कार्य का विरोधक (विनाशक) होता नहीं है। इसलिये तू सुखनाश के भय से धर्म से विमुख न हो ।
Dharma is the cause (hetu) of happiness (sukha), and the cause (hetu) does not oppose its own effect (kārya). Therefore, fearing deprivation of happiness, you should not be indifferent to dharma.
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