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Ātmānuśāsana
एतामुत्तमनायिकामभिजनावर्ज्या जगत्प्रेयसीं मुक्तिश्रीललनां गुणप्रणयिनीं गन्तुं तवेच्छा यदि । तां त्वं संस्कुरु वर्जयान्यवनितावार्तामपि प्रस्फुटं तस्यामेव रतिं तनुष्व नितरां प्रायेण सेर्ष्याः स्त्रियः ॥१२८॥
अर्थ हे भव्य ! जो यह मुक्तिरूप सुन्दर महिला उत्तम नायिका है, वह कुलीन जनों को ही प्राप्त हो सकती है, विश्व की प्रियतमा है, तथा गुणों से प्रेम करने वाली है; उसको प्राप्त करने की यदि तेरी इच्छा है तो तू उसको संस्कृत कर रत्नत्रयरूप अलंकारों से विभूषित कर और दूसरी (लोकप्रसिद्ध) स्त्री की तो बात भी न कर । तू केवल उसके विषय में ही अतिशय अनुराग कर; क्योंकि स्त्रियाँ प्रायः ईर्ष्यालु होती हैं।
आत्मानुशासन
वचनसलिलैर्हासस्वच्छैस्तरङ्गसुखोदरैः
वदनकमलैर्बाह्ये रम्याः स्त्रियः सरसीसमाः । इह हि बहवः प्रास्तप्रज्ञास्तटेऽपि पिपासवो विषयविषमग्राहग्रस्ताः पुनर्न समुद्गताः ॥ १२९॥
O worthy soul! That beautiful and high-born woman, called 'mukti' or 'liberation', can only be had by noble men. She is the love of the whole world and a lover of virtues. Adorn her with the ornament of the Three Jewels (ratnatraya), if you desire to have her. Do not even talk of any other (worldly) woman. Have excessive love solely for her, since women, in general, are jealous.
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अर्थ - वे स्त्रियाँ सरसी (छोटा तालाब) के समान बाहर से ही रमणीय
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