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Ātmānuśāsana
आत्मानुशासन
विषयविरतिः सङ्गत्यागः कषायविनिग्रहः शमयमदमास्तत्त्वाभ्यासस्तपश्चरणोद्यमः । नियमितमनोवृत्तिर्भक्तिर्जिनेषु दयालुता भवति कृतिनः संसाराब्धेस्तटे निकटे सति ॥२२४॥
अर्थ - इन्द्रियविषयों से विरक्ति, परिग्रह का त्याग, कषायों का दमन, राग-द्वेष की शान्ति, यम-नियम, इन्द्रियदमन, तत्त्वों का विचार, तपश्चरण में उद्यम, मन की प्रवृत्ति पर नियन्त्रण, जिनेन्द्र भगवान् में भक्ति, और प्राणियों पर दयाभाव; ये सब गुण उसी पुण्यात्मा जीव के होते हैं जिसके कि संसाररूपी समुद्र का किनारा निकट में आ चुका है।
The following qualities are found in the worthy man who has reached near the shore of the ocean of worldly existence: aversion to sense-pleasures, renouncement of possessions, subjugation of passions, tranquility, selfcontrol and vows, oppression of the senses, contemplation on the Reality, engagement in austerities, control of mental transgressions, devotion to the Omniscient Lord, and compassion towards all.
यमनियमनितान्तः शान्तबाह्यान्तरात्मा परिणमितसमाधिः सर्वसत्त्वानुकम्पी। विहितहितमिताशी क्लेशजालं समूलं दहति निहतनिद्रो निश्चिताध्यात्मसारः ॥२२५॥
अर्थ - जो यम (यावज्जीवन लिये गये व्रत) तथा नियम (परिमित काल
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