________________ मक्षु मोक्षं सुसम्यक्त्वसत्यकारस्वसात्कृतम् / ज्ञानचारित्रसाकल्यमूल्येन स्वकरे कुरु // 234 // - आचार्य गुणभद्र, 'आत्मानुशासन' अर्थ - हे भव्य! तू निर्मल सम्यग्दर्शन-रूप ब्याना देकर अपने आधीन किये हुए मोक्ष को सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र-रूप पूरा मूल्य देकर शीघ्र ही अपने हाथ में कर ले। इस प्रकार यह आत्मानुशासन ग्रन्थ सामान्य दृष्टांत के माध्यम से मोक्ष प्राप्ति का श्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत करने में सक्षम है। स्वयं आत्मा का स्वयं पर अनुशासन का सार प्रकट करता है। जैन धर्म का सार प्रजातंत्र है, जो भगवान् महावीर स्वामी के नानाजी राजा चेटक द्वारा वैशाली गणतंत्र से प्रारम्भ किया था। आज विशाल भारत देश का प्रजातंत्र उसी का उदाहरण है। अन्य अनेक देश भी इसी प्रजातंत्र को जीवंत कर रहे हैं। यहाँ प्रजा शब्द का अर्थ 'आत्मा' है और तंत्र शब्द का अर्थ 'अनुशासन' है; अर्थात् आत्मा को, आत्मा से, आत्मा के लिए किया जाने वाला अनुशासन प्रजातंत्र आत्मानुशासन है। इसी बात को अंग्रेजी में कहा है- 'Democracy is of the people, by the people, for the people.' इससे स्पष्ट होता है कि आत्मानुशासन प्रजातंत्र का सार है। हर समस्या का समाधान आत्मानुशासन है। स्वयं का, स्वयं पर नियंत्रण, स्वयं की उन्नति का कारण है। आत्मानुशासन ग्रन्थ का सफल सम्पादन और प्रकाशन का कार्य श्री विजय कुमार जैन (देहरादून) ने किया है। इनके द्वारा किए गए इस महनीय कार्य के लिए मेरा मंगल आशीर्वाद है। नई दिल्ली, सितम्बर 2019 आचार्य 108 श्रुतसागर मुनि विकल्प Vikalp Printers