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Atmānusāsana
आत्मानुशासन
व्यवहार करते हैं, तथा सब संकल्प-विकल्पों से रहित हो चुके हैं; ऐसे वे मुनि यहाँ कैसे मुक्ति के पात्र न होंगे? अवश्य होंगे।
Why would the ascetics who know all substances worth accepting and rejecting, are completely rid of sinful activity, are absorbed in self-contemplation after calming down the fidgetiness of the senses, who speak only what is beneficial to the self and the others, and are rid of all volitions (samkalpa) and inquisitiveness (vikalpa), not merit liberation?
दासत्वं विषयप्रभोर्गतवतामात्मापि येषां परस्तेषां भो गुणदोषशून्यमनसां किं तत्पुनर्नश्यति । भेतव्यं भवतैव यस्य भुवनप्रद्योति रत्नत्रयं भ्राम्यन्तीन्द्रियतस्कराश्च परितस्त्वां तन्मुहुर्जागृहि ॥२२७॥
अर्थ - जो विषयरूप राजा की दासता को प्राप्त हुए हैं तथा जिनका आत्मा भी पर (पराधीन) है, ऐसे उन गुण-दोष के विचार से रहित मन वाले प्राणियों का भला वह क्या नष्ट होता है? अर्थात् उनका कुछ भी नष्ट नहीं होता है। परन्तु हे साधो! चूँकि तेरे पास लोक को प्रकाशित करने वाले अमूल्य तीन रत्न (सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र) विद्यमान हैं अतएव तुझको ही डरना चाहिये। कारण कि तेरे चारों ओर इन्द्रियरूप चोर घूम रहे हैं। इसलिये तू निरन्तर जागता रह।
What more is there to lose for those (ascetics) who have become slaves to the lord of sense-pleasures, whose soul is dependent (on others), and whose minds cannot
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