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Atmānusāsana
आत्मानुशासन
यदादाय भवेज्जन्मी त्यक्त्वा मुक्तो भविष्यति । शरीरमेव तत्त्याज्यं किं शेषैः क्षुद्रकल्पनैः ॥२०८॥
अर्थ - जिस शरीर को ग्रहण करके प्राणी जन्मवान् अर्थात् संसारी बना हुआ है तथा जिसको छोड़कर वह मुक्त हो जावेगा उस शरीर को ही छोड़ देना चाहिये। अन्य क्षुद्र विचारों से क्या प्रयोजन सिद्ध होनेवाला है? कुछ भी नहीं।
The acquisition of the body makes the soul wander in the world. When there is no acquisition of the body, the soul is liberated. Therefore, it makes sense to leave the body. No point entertaining other mean thoughts.
नयेत् सर्वाशुचिप्रायः शरीरमपि पूज्यताम् । सोऽप्यात्मा येन न स्पृश्यो दुश्चरित्रं धिगस्तु तत् ॥२०९॥
अर्थ - जो आत्मा प्रायः करके सब ओर से अपवित्र ऐसे उस शरीर को भी पूज्य पद को प्राप्त कराता है उस आत्मा को भी जो शरीर स्पर्श के योग्य भी नहीं रहने देता है उसको धिक्कार है।
The soul makes even the all-impure body an object of adoration; fie on the body that makes even such a soul untouchable.
पाठान्तर - यदा यदा
२ पाठान्तर - सर्वाशुचिप्रायं
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