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Verses 213, 214
जलजन्तुओं का समूह निवास करता है तब तक निश्चय से यह उत्तम क्षमादि गुणों का समुदाय निःशंक होकर उस हृदयरूप सरोवर का आश्रय नहीं लेता है। इसीलिये हे भव्य ! तू व्रतों के साथ तीव्र - मध्यमादि उपशमभेदों से उन कषायों के जीतने का प्रयत्न कर।
As long as cruel water-animals, in form of cluster of passions (kaṣāya), exist in your pristine and unfathomable lake of the heart (the mind), certainly, fearless existence of cluster of virtues, in form of forbearance, etc., is not possible. Therefore, O worthy soul! With observance of vows ( yama) and tranquility (śama), strive to subjugate those passions.
हित्वा हेतुफले किलात्र सुधियस्तां सिद्धिमामुत्रिकीं वाञ्छन्तः स्वयमेव साधनतया शंसन्ति शान्तं मनः । तेषामाखुबिडालिकेति तदिदं धिग्धिक्कलेः प्राभवं येनैतेऽपि फलद्वयप्रलयनाद् दूरं विपर्यासिताः ॥२१४॥
अर्थ - जो विद्वान् परिग्रह के त्यागरूप हेतु तथा उसके फलभूत मन की शान्ति को छोड़कर उस पारलौकिक सिद्धि (मोक्ष) की अभिलाषा करते हुए स्वयं ही उसके साधनास्वरूप से ( अपने ) शान्त मन की प्रशंसा करते हैं उनकी यह बात आखु - बिडालिका' के समान है। यह सब कलि-व - काल का प्रभाव है, उसके लिये धिक्कार हो । इस कलिकाल के प्रभाव से विद्वान भी इस लोक और परलोक सम्बन्धी फल को नष्ट करने से अत्यधिक ठगे जाते हैं।
' उनके इन दोनों कार्यों में बिल्ली और चूहे के समान जाति-विरोध है।
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