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Verses 210, 211
रसादिराद्यो भागः स्याज्ज्ञानावृत्त्यादिरन्वतः । ज्ञानादयस्तृतीयस्तु संसार्येवं त्रयात्मकः ॥२१०॥
अर्थ - संसारी प्राणी का रस आदि सात धातुओंरूप पहला भाग है, इसके पश्चात् ज्ञानावरणादि कर्मोंरूप उसका दूसरा भाग है, तथा तीसरा भाग उसका ज्ञानादिरूप है; इस प्रकार से संसारी जीव तीन-भाग (त्रयात्मक) स्वरूप है।
The worldly souls have three components: the first component is the seven-elementary-constituents (alimentary juice, blood, flesh, fat, bone, marrow and semen), the second component is karmas like the knowledge-obscuring (jñānāvaraṇīya)*, and the third component is the soul's own-nature of knowledge, etc.
भागत्रयमयं नित्यमात्मानं बन्धवर्तिनम् । भागद्वयात्पृथक् कर्तुं यो जानाति स तत्त्ववित् ॥२११॥
अर्थ - इस प्रकार इन तीन भागों-स्वरूप व कर्मबन्ध से सहित नित्य आत्मा को जो प्रथम दो भागों से पृथक् करने के विधान को जानता है उसे तत्त्वज्ञानी समझना चाहिये।
१ पाठान्तर - रन्वितः
२ त्रितयस्तु
* This component is the kārmana sarira, the body composed of the karmic
matter.
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