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Verses 152, 153, 154
‘Nothing is smaller than the atom (paramāņu) and bigger than the sky (nabha).' The one who says this has not seen the men who plead (for favours) and the men who are self-respecting.
याचितुर्गौरवं दातुर्मन्ये संक्रान्तमन्यथा । तदवस्थौ कथं स्यातामेतौ गुरुलघू तदा ॥१५३॥
अर्थ - याचक पुरुष का गौरव दाता के पास चला जाता है, ऐसा मैं मानता हूँ। यदि ऐसा न होता तो फिर उस समय देने-रूप अवस्था से संयुक्त दाता तो गुरु (महान्) और ग्रहण-करने-रूप अवस्था से संयुक्त याचक लघु (क्षुद्र) कैसे दीखता है? अर्थात् ऐसे नहीं दीखने चाहिये थे।
I believe that the pride of the man who pleads (for favours) gets transferred to the giver. Had it not been true, why, at the time of transaction, the man who gives appears imposing and the man who receives pitiable?
अधो जिघृक्षवो यान्ति यान्त्यूर्ध्वमजिघृक्षवः । इति स्पष्टं वदन्तौ वा नामोन्नामौ तुलान्तयोः ॥१५४॥
अर्थ – तराजू के दोनों ओर क्रम से होने वाला नीचापन और ऊँचापन स्पष्टतया यह प्रगट करता है कि लेने की इच्छा करने वाले प्राणी नीचे और न लेने की इच्छा करने वाले ऊपर जाते हैं।
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