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Verses 187, 188, 189
getting attached to the worldly possessions - indulging in the sense-pleasures - is unhappiness.
मृत्योर्मृत्यन्तरप्राप्तिरुत्पत्तिरिह देहिनाम् । तत्र प्रमुदितान् मन्ये पाश्चात्ये पक्षपातिनः ॥१८८॥
अर्थ - यहाँ संसार में एक मरण से जो दूसरे मरण की प्राप्ति है, यही प्राणियों की उत्पत्ति है। इसलिये जो जीव उत्पत्ति में हर्ष को प्राप्त होते हैं वे पीछे होने वाली मृत्यु के पक्षपाती हैं, ऐसा मैं समझता हूँ।
In this world, the birth is the interval between the previous death and the next death. I, therefore, reckon that those who rejoice the birth are endorsing the upcoming death.
अधीत्य सकलं श्रुतं चिरमुपास्य घोरं तपो यदीच्छसि फलं तयोरिह हि लाभपूजादिकं । छिनत्सि सुतपस्तरोः प्रसवमेव शून्याशयः कथं समुपलप्स्यसे सुरसमस्य पक्वं फलम् ॥१८९॥
अर्थ - समस्त आगम का अभ्यास और चिरकाल तक घोर तपश्चरण करके भी यदि उन दोनों का फल तू यहाँ सम्पत्ति आदि का लाभ और प्रतिष्ठा आदि चाहता है तो समझना चाहिये कि तू विवेकहीन होकर उस उत्कृष्ट तपरूप वृक्ष के फूल को ही नष्ट करता है। फिर ऐसी अवस्था
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