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Ātmānuśāsana
आत्मानुशासन
कटाक्षों-रूप लुटेरों के द्वारा वैराग्य-रूप सम्पत्ति से रहित किया जाता है तो जन्मपरम्परा (संसार) को बढ़ाने वाले उस तप की अपेक्षा तो गृहस्थ जीवन ही कहीं श्रेष्ठ था।
If today's austerities are to be robbed tomorrow by seductive half-glances of women, the wealth of asceticism is lost. The life of the householder is better than such asceticism that surely is the cause of future births.
स्वार्थभ्रंशं त्वमविगणयंस्त्यक्तलज्जाभिमानः सम्प्राप्तोऽस्मिन् परिभवशतैर्दुःखमेतत्कलत्रम् । नान्वेति त्वां पदमपि पदाद्विप्रलब्धोऽसि भूयः सख्यं साधो यदि हि मतिमान् मा ग्रहीर्विग्रहेण ॥१९९॥
अर्थ - हे भव्य! इस शरीर के होने पर ही तूने इस दु:खदायक स्त्री को स्वीकार किया है और ऐसा करते हुए तूने लज्जा और स्वाभिमान को छोड़कर, निर्लज्ज एवं दीन बनकर, उसके निमित्त से होने वाले न तो सैकड़ों तिरस्कारों को गिना और न अपने आत्मप्रयोजन से - तप संयमादि को धारण करके उसके द्वारा प्राप्त होने वाले मोक्षसुख से - भ्रष्ट होने को भी गिना। वह शरीर और स्त्री तेरे साथ निश्चय से एक पद (कदम) भी जाने वाले नहीं हैं, इनसे अनुराग करके तू फिर से भी धोखा खायेगा। इसलिये हे साधो! यदि तू बुद्धिमान् है तो उस शरीर से मित्रता को न प्राप्त हो, उसके विषय में ममत्वबुद्धि को छोड़ दे।
O worthy soul! Having been associated with this body, you have accepted this distressful woman. While doing so,
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