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Ātmānuśāsana
गेहं गुहाः परिदधासि दिशो विहायः संव्यानमिष्टमशनं तपसोऽभिवृद्धिः । प्राप्तागमार्थ तव सन्ति गुणाः कलत्रमप्रार्थ्यवृत्तिरसि यासि वृथैव याञ्चाम् ॥१५१॥
अर्थ - हे आगम के रहस्य के जानकार साधु ! तेरे लिये गुफायें ही घर हैं, दिशायें एवं आकाश ही तेरा वस्त्र है, उसे तू पहन, तप की वृद्धि तेरा इष्ट भोजन है, तथा स्त्री की जगह तू सम्यग्दर्शनादि गुणों से अनुराग कर। इस प्रकार तेरे लिये याचना के योग्य कुछ भी नहीं है। अतएव तू वृथा ही याचना - जनित दीनता को प्राप्त न हो।
O knower of the essence of the Scripture! Caves are your residences; the directions and the sky clothe you; advancement in austerity is your pleasing food; and qualities like right faith (samyagdarśana), rather than women, are your charms. Thus, you have nothing to plead for. Do not unnecessarily become miserable by pleading for favours.
परमाणोः परं नाल्पं नभसो न महत्परम् ।
इति ब्रुवन् किमद्राक्षीन्नेमा दीनाभिमानिनौ ॥ १५२॥
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अर्थ - परमाणु से दूसरा कोई छोटा नहीं है और नभ (आकाश) से दूसरा कोई बड़ा नहीं है, ऐसा कहने वाले ने क्या इन दीन और अभिमानी मनुष्यों को नहीं देखा है ?
पाठान्तर गुहा
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आत्मानुशासन
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संयान
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