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Verses 134, 135
अध्यास्यापि तपोवनं बत परे नारीकटीकोटरे व्याकृष्टा विषयैः पतन्ति करिणः कूटावपाते यथा । प्रोचे प्रीतिकरीं जनस्य जननीं प्राग्जन्मभूमिं च यो व्यक्तं तस्य दुरात्मनो दुरुदितैर्मन्ये जगद्वञ्चितम् ॥१३४॥
अर्थ - दूसरे मनुष्य तप के निमित्त वन का आश्रय ले करके भी इन्द्रियविषयों के द्वारा खींचे जाकर स्त्री के योनिस्थान में इस प्रकार से गिरते हैं जिस प्रकार कि हाथी अपने पकड़ने के लिये बनाये गये गड्ढे में गिरते हैं। जो प्राणी के योनिस्थान जननी और जन्म की भूमि है उसे जो दुष्ट कवि प्रीति का कारण बतलाते हैं वे स्पष्टतया अपने दुष्ट वचनों के द्वारा विश्व को ठगाते हैं।
Men take to the woods to practise austerities. Still, attracted by sexual-indulgence, they fall into woman's private parts; just as the male elephants fall into the camouflaged pits. The evil poets, who call woman's private parts, the birthplace of living beings, attractive, clearly deceive the world by their wicked words.
कण्ठस्थः कालकूटोऽपि शम्भोः किमपि नाकरोत् । सोऽपि दन्दह्यते स्त्रीभिः स्त्रियो हि विषमं विषम् ॥१३५॥
अर्थ - जिस महादेव के कण्ठ में स्थित हो करके भी विष ( कालकूट) ने उसका कुछ भी अहित नहीं किया वही महादेव स्त्रियों द्वारा संतप्त किया जाता है। ठीक है - स्त्रियाँ भयानक विष हैं।
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