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Verses 21, 22
धर्मादवाप्तविभवो धर्मं प्रतिपाल्य भोगमनुभवतु । बीजादवाप्तधान्यः कृषीबलस्तस्य बीजमिव ॥२१॥
अर्थ - जिस प्रकार किसान बीज से उत्पन्न धान्य (गेहूं और चावल आदि) को प्राप्त करता हुआ उसमें से भविष्य के लिये कुछ बीज के निमित्त सुरक्षित रखकर ही उसका उपभोग करता है उसी प्रकार, हे भव्य जीव! तूने जो यह सुख-सम्पत्ति प्राप्त की है वह धर्म के ही निमित्त से प्राप्त की है, इसलिये तू भी उक्त सुख-सम्पत्ति के बीजभूत उस धर्म का रक्षण करके ही उसका उपभोग कर।
The farmer obtains food grain by growing the seed and while consuming (enjoying) food grain he preserves a part of it for future use as the seed. The prosperity that you have obtained has originated from dharma. You also consume (enjoy) your riches while preserving the seed, i.e., dharma.
संकल्प्यं कल्पवृक्षस्य चिन्त्यं चिन्तामणेरपि । असंकल्प्यमसंचिन्त्यं फलं धर्मादवाप्यते ॥२२॥
अर्थ - कल्पवृक्ष का फल संकल्प (प्रार्थना) के अनुसार प्राप्त होता है तथा चिन्तामणि का भी फल चिन्ता (मनकृत विचार) के अनुसार प्राप्त होता है, परन्तु धर्म से जो फल प्राप्त होता है वह अप्रार्थित एवं अचिन्त्य ही प्राप्त होता है।
The wish-fulfilling tree (kalpavrksa) provides fruit according to the wish and the magical-thought-gem
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