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Verses 113, 114
से प्राप्त होता है वह सुख धनाभिलाषी प्राणियों को कभी नहीं प्राप्त हो सकता है। उस तप के होते हुए क्या यह कामरूप दुष्ट व्याध (शिकारी) किसी प्रकार का दुष्ट-आचरण कर सकता है? अर्थात् नहीं कर सकता है। इसके अतिरिक्त उक्त तप के होने पर तिरस्काररूप धूलि तपस्वी के चरण को भी छूने के लिये समर्थ हो सकती है? नहीं हो सकती। हे भव्य प्राणियों! यदि तप से दूसरा कोई अभीष्ट सुख का साधक हो तो उसे बतलाओ। अभिप्राय यह कि यदि प्राणी के मनोरथ को कोई सिद्ध कर सकता है तो वह केवल तप ही है, उसको छोड़कर दूसरा कोई भी प्राणी के मनोरथ को पूर्ण करने वाला नहीं है।
What happiness can the men, swayed by the strong wind of (craving for) wealth, attain? This implies that the happiness attained through austerity (tapa) can never be attained by those craving for wealth. Can the evil hunter in form of carnal lust harm the man fortified by austerity? Further, can the dust of disgrace ever touch even the feet of the man fortified by austerity? O worthy souls! Tell me if there is a better means than austerity for attaining the desired goal of liberation.
इहैव सहजान् रिपून् विजयते प्रकोपादिकान् गुणाः परिणमन्ति यानसुभिरप्ययं वाञ्छति । पुरश्च पुरुषार्थसिद्धिरचिरात्स्वयं यायिनी नरो न रमते कथं तपसि तापसंहारिणि ॥११४॥
अर्थ - जिस तप के प्रभाव से प्राणी इस लोक में क्रोधादि कषायोंरूप
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