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Verses 35, 36
अन्धादयं महानन्धो विषयान्धीकृतेक्षणः । चक्षुषान्धो न जानाति विषयान्धो न केनचित् ॥३५॥
अर्थ - जिसके नेत्र इन्द्रियविषयों के द्वारा अन्धे कर दिये गये हैं अर्थात् विषयों में मुग्ध रहने से जिसकी विवेकबुद्धि नष्ट हो चुकी है ऐसा यह प्राणी उस लोकप्रसिद्ध अन्धे से भी अधिक अन्धा है, क्योंकि अन्धा । प्राणी तो केवल चक्षु के ही द्वारा नहीं जान पाता है, परन्तु यह विषयान्ध मनुष्य इन्द्रियों और मन आदि में से किसी के द्वारा भी वस्तुस्वरूप को नहीं जान पाता है।
The one who is blinded by the (lust of) sense-pleasures is more blind than the one who is called 'blind' in worldly parlance. The latter is unable to perceive through his eyes only but the former cannot perceive through any of his senses (including the mind).
आशागर्तः प्रतिप्राणि यस्मिन् विश्वमणूपमम् । कस्य किं कियदायाति वथा वो विषयैषिता ॥३६॥
अर्थ - आशारूप वह गर्त (गड्ढा) प्रत्येक प्राणी के भीतर स्थित है जिसमें कि विश्व परमाणु के बराबर प्रतीत होता है। फिर उसमें किसके लिये क्या और कितना आ सकता है? अर्थात् प्रायः नहीं के समान ही कुछ आ सकता है। अतएव हे भव्यजीवों! तुम्हारी उन विषयों की अभिलाषा व्यर्थ है।
Every living being carries in him that deep pit of desires
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