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Verses 83,84, 85
relations in this world. The only favour that they do to you is to assemble after your death and cremate your adversarial body.
जन्मसन्तानसम्पादिविवाहादिविधायिनः । स्वाः परेऽस्य सकृत्प्राणहारिणो न परे परे ॥८४॥
अर्थ - जो कुटुम्बी जन जन्म-परम्परा (संसार) को बढ़ाने वाले विवाहादि कार्य को करते हैं वे इस जीव के शत्रु हैं, दूसरे जो एक ही बार प्राणों का अपहरण करने वाले हैं वे यथार्थ में शत्रु नहीं हैं।
The relatives who perform activities, like arranging marriages, which extend worldly cycle of births and deaths are enemies of this soul. Others, who take away life only once, are not the real enemies.
धनरन्धनसम्भार प्रक्षिप्याशाहुताशने । ज्वलन्तं मन्यते भ्रान्तः शान्तं सन्धुक्षणक्षणे ॥८५॥
अर्थ - आशा (विषयतृष्णा) रूप अग्नि में धनरूप इन्धन के समूह को डालकर भ्रान्ति को प्राप्त हुआ प्राणी उस जलती हुई आशारूप अग्नि को जलने के समय में शान्त मानता है।
१ पाठान्तर - रे धनेन्धनसंभारं
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