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Ātmānusāsana
आत्मानुशासन
हंसैर्न भुक्तमतिकर्कशमम्भसापि नो सङ्गतं दिनविकासि सरोजमित्थम् । नालोकितं मधुकरेण मृतं वृथैव प्रायः कुतो व्यसनिनां स्वहिते विवेकः ॥१३॥
अर्थ - कमल को हंसों के द्वारा नहीं खाया जाता है, वह जल में उत्पन्न होकर भी उससे चूंकि संगत नहीं होता है अतएव कठोर है, तथा वह दिन में विकसित होकर रात्रि में मुकुलित हो जाता है। यह सब विचार भ्रमर नहीं करता है। इसलिये वह व्यर्थ में उसकी गन्ध में आसक्त होता हुआ रात्रि में उसके संकुचित हो जाने पर उसी के भीतर मरण को प्राप्त होता है। ठीक है- व्यसनी जनों को अपने हिताहित का विचार नहीं रहता है।
The goose does not consume (eat, enjoy) the lotus. Being too unrelenting, the lotus does not befriend the water and it blooms only during the day and closes during the night. The bee does not see all this and, enamoured by its scent, gets entrapped and dies. It is right; the sensualist has no concern for own good!
प्रज्ञैव दुर्लभा सुष्ठु दुर्लभा साऽन्यजन्मने । तां प्राप्य ये प्रमाद्यन्ति ते शोच्याः खलु धीमताम् ॥१४॥
अर्थ - प्रथम तो हिताहित का विचार करने-रूप बुद्धि (प्रज्ञा) ही दुर्लभ है, फिर वह परभव के हित का विवेक तो और भी दुर्लभ है। उस
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