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Ātmānuśāsana
प्रसुप्तो मरणाशङ्कां प्रबुद्धो जीवितोत्सवम् । प्रत्यहं जनयन्नेष तिष्ठेत् काये कियच्चिरम् ॥८२॥
अर्थ जब प्राणी सोता है तब वह मृतवत् होकर मरने की आशंका उत्पन्न करता है और जब जागृत रहता है तब जीने के उत्सव को करता है। इस प्रकार प्रतिदिन आचरण करने वाला यह प्राणी कितने काल तक उस शरीर में रह सकेगा? अर्थात् बहुत ही थोड़े समय तक रह सकता है, पश्चात् उस शरीर को छोड़ना ही पड़ेगा ।
While in sleep, the man provides illusion of death and while awake, he celebrates life. This is his story, day in and day out. How long can he survive in this body?
आत्मानुशासन
सत्यं वदात्र यदि जन्मनि बन्धुकृत्यमाप्तं त्वया किमपि बन्धुजनाद्धितार्थम् । एतावदेव परमस्ति मृतस्य पश्चात् सम्भूय कायमहितं तव भस्मयन्ति ॥ ८३ ॥
अर्थ - हे प्राणी! यदि तूने संसार में भाई-बन्धु आदि कुटुम्बी जनों से कुछ भी हितकर बन्धुत्व का कार्य प्राप्त किया है तो उसे सत्य बतला। उनका केवल इतना ही कार्य है कि मर जाने के पश्चात् वे एकत्रित होकर तेरे अहितकारक शरीर को जला देते हैं।
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O soul! Come out with the truth if any real, brotherly favour has been done to you by your brothers and
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