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अस्थिस्थूलतुलाकलापघटितं नद्धं शिरास्नायुभिश्चर्माच्छादितमस्त्रसान्द्रपिशितैर्लिप्तं सुगुप्तं खलैः । कर्मारातिभिरायुरुद्घनिगलालग्नं शरीरालयं
कारागारमवैहि ते हतमते प्रीतिं वृथा मा कृथाः ॥५९॥
Verses 59, 60
अर्थ - हे नष्टबुद्धि प्राणी ! हड्डियों - रूप स्थूल लकड़ियों के समूह से रचित, सिराओं और नसों से सम्बद्ध, चमड़ा से ढका हुआ, रुधिर एवं सघन मांस से लिप्त, दुष्ट कर्मों-रूप शत्रुओं से रक्षित, तथा आयु- रूप भारी सांकल से संलग्न; ऐसे इस शरीर - रूप गृह को तू अपना कारागार (बन्दीगृह) समझकर उसके विषय में व्यर्थ अनुराग मत कर ।
O imprudent being! Know that your body is like a prisonhouse built of bones acting as thick logs of wood, fastened by muscles and veins, covered up by skin, plastered with the mixture of blood and wet-flesh, guarded by the enemy in form of evil-karmas, and confined by the heavy shackles of age (ayuḥ). Do not have foolish fondness for this prison-house.
शरणमशरणं वो बन्धवो बन्धमूलं चिरपरिचितदारा द्वारमापद्गृहाणाम् । विपरिमृशत पुत्राः शत्रवः सर्वमेतत्
त्यजत भजत धर्मं निर्मलं शर्मकामाः ॥६०॥
अर्थ - हे भव्यजीवों ! जिसे तुम शरण (गृह) मानते हो वह तुम्हारा शरण (रक्षक) नहीं है, जो बन्धुजन हैं वे राग- - द्वेष के निमित्त होने से
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