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Verses 61, 62 सुख के निमित्त उस तृष्णा की शान्ति को प्राप्त हो, इसमें व्यर्थ प्रमाद न
कर।
O embodied being! Why worry about wealth that acts as fuel for the fire of your cravings? Why worry about family and other relations who constantly push you into wickedness. What is the use of the body or the home which are like the deep holes of the serpent of delusion (moha)? For happiness, therefore, calm down your cravings; no use being lax.
आदावेव महाबलैरविचलं पट्टेन बद्धा स्वयं रक्षाध्यक्षभुजासिपञ्जरवृता सामन्तसंरक्षिता । लक्ष्मीर्दीपशिखोपमा क्षितिमतां हा पश्यतां नश्यति प्राय: पातितचामरानिलहतेवान्यत्र काशा नृणाम् ॥६२॥
अर्थ - जो राजाओं की लक्ष्मी सर्वप्रथम महाबलवान् मंत्री और सेनापति आदि के द्वारा स्वयं पट्टबन्ध के रूप में निश्चलता से बाँधी जाती है, जो रक्षाधिकारी (पहरेदार) पुरुषों के हाथों में स्थित खड्गसमूह से वेष्टित की जाती है, तथा जो सैनिक पुरुषों के द्वारा रक्षित रहती है वह दीपक की लौ के समान अस्थिर राजलक्ष्मी भी ढुराये जाने वाले चामरों के पवन से ताडित हुई के समान जब देखते ही देखते नष्ट हो जाती है, तब भला अन्य साधारण मनुष्यों की लक्ष्मी की स्थिरता के विषय में क्या आशा की जा सकती है? अर्थात् नहीं की जा सकती है।
The grandeur (Lakşmī) of the royal kingdom is first
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