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Ātmānusāsana
आत्मानुशासन
बन्ध के कारण हैं, दीर्घ काल से परिचय में आई हुई स्त्री आपत्तियों-रूप गृहों के द्वार के समान है, तथा जो पुत्र हैं वे अत्यधिक राग-द्वेष के कारण होने से शत्रु के समान हैं; यदि तुम लोगों को सुख की अभिलाषा है तो ऐसा विचार कर इन सबको छोड़कर निर्मल धर्म की आराधना करो।
O worthy souls! All those you consider as your refuge are not so. Your kinsmen, which engender attachment and aversion, are the cause of bondage of karmas. Your wife, whom you have known for long, is the door to the abodes of adversity. Know your sons too to be your enemies. Reflecting in this manner, forsake them all and, as you desire happiness, engage in adoration of the pristine dharma.
तत्कृत्यं किमिहेन्धनैरिव धनैराशाग्निसंधुक्षणैः सम्बन्धेन किमङ्ग शश्वदशुभैः सम्बन्धिभिर्बन्धुभिः । किं मोहाहिमहाबिलेन सदृशा देहेन गेहेन वा
देहिन् याहि सुखाय ते समममुं मा गाः प्रमादं मुधा ॥६१॥ अर्थ – हे शरीरधारी प्राणी! ईन्धन के समान तृष्णारूप अग्नि को प्रज्वलित करने वाले धन से यहाँ तुझे क्या प्रयोजन है? अर्थात् कुछ भी नहीं। पाप के कारणभूत सम्बन्धियों (नातेदारों) एवं अन्य बन्धुओं (भ्राता आदि) के साथ सम्बन्ध रखने से तुझे क्या प्रयोजन है? कुछ भी नहीं। मोहरूप सर्प के दीर्घ बिल (बाँबी) के समान शरीर अथवा गृह से भी तुझे क्या प्रयोजन है? कुछ भी नहीं। ऐसा विचार कर हे भव्य जीव! तू
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