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Ātmānuśāsana
आत्मानुशासन
अर्थ – हे धनाभिलाषी! निर्धन मनुष्य तो धन को न पाकर दुःखी होते हैं और धनवान् मनुष्य सन्तोष के न रहने से - तृष्णा से - दु:खी होते हैं। इस प्रकार खेद है कि सब ही ( धनी और निर्धन भी) प्राणी दुःख का अनुभव करते हैं। यदि कोई सुखी है तो केवल एक सन्तोषी (तृष्णा से रहित) मुनि ही सुखी है। धनवानों का 'सुख' पराधीन है। उस पराधीन सुख की अपेक्षा तो आत्माधीन दुःख अर्थात् अपनी इच्छानुसार किये गये अनशन आदि के द्वारा होने वाला दुःख ही अच्छा है। कारण कि यदि ऐसा न होता तो फिर तपश्चरण करने वाले साधुजन 'सुखी' इस नाम से युक्त कैसे हो सकते थे? अर्थात् नहीं हो सकते थे।
The poor are unhappy due to lack of wealth and the rich are unhappy due to discontentment. Alas! Everybody is unhappy. Only the contented ascetic is happy.
The happiness of the rich is dependent (on external objects). The self-imposed or self-dependent unhappiness (due to fasting, etc.) is better than the happiness which is dependent. Had this not been true, who would call the ascetics who observe austerities 'happy'?
यदेतत्स्वच्छन्दं विहरणमकार्पण्यमशनं
सहार्यैः संवासः श्रुतमुपशमैकश्रमफलम् ।
मनो मन्दस्पन्दं बहिरपि चिरायाति विमृशन् न जाने कस्येयं परिणतिरुदारस्य तपसः ॥६७॥
अर्थ - साधु जनों का जो यह स्वतन्त्रतापूर्वक विहार ( गमनागमन प्रवृत्ति), दीनता (याचना ) से रहित भोजन, गुणीजनों की संगति,
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