________________
Verses 24, 25
कृत्वा धर्मविघातं विषयसुखान्यनुभवन्ति ये मोहात् । आच्छिद्य तरून् मूलात् फलानि गृह्णन्ति ते पापाः ॥२४॥
अर्थ - जो प्राणी मोह से (अज्ञानतापूर्वक) धर्म को नष्ट करके विषयसुखों का अनुभव करते हैं वे पापी वृक्षों को जड़ से उखाड़ कर फलों को ग्रहण करना चाहते हैं।
The men who, out of delusion (moha), wipe out dharma while indulging in sense-pleasures are like those vicious men who uproot the tree for the sake of fruits.
कर्तृत्वहेतुकर्तृत्वानुमतैः स्मरणचरणवचनेषु । यः सर्वथाभिगम्यः स कथं धर्मो न संग्राह्यः ॥२५॥
अर्थ - जो धर्म मन से स्मरण, शरीर के द्वारा आचरण तथा वचनकृत उपदेश को विषय करने वाले कर्तृत्व (कृत), हेतुकर्तृत्व (प्रेरणा-कारित) और अनुमोदन के द्वारा सब प्रकार से प्राप्त किया जा सकता है उस धर्म का संग्रह कैसे नहीं करना चाहिये? अर्थात् सब प्रकार से उसका संग्रह अवश्य करना चाहिये।
The dharma can be pursued through the mind (mana), the body (kāya) and the speech (vacana), and, in each case, by doing (krta), causing it done (kārita) and approval (anumodana); why should such dharma not be amassed?
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
25