Book Title: Pathikvaggatthakatha
Author(s): Vipassana Research Institute Igatpuri
Publisher: Vipassana Research Institute Igatpuri
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाथिकवाडकथा Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मगिरि- पालि - गन्थमाला [ देवनागरी ] दीघनिकाये सुमङ्गलविलासिनी तातियो भागो पाथिकवग्गट्ठकथा विपश्यना विशोधन विन्यास इगतपुरी १९९८ 1 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मगिरि-पालि-गन्थमाला-६ [देवनागरी] दीघनिकाय एवं तत्संबंधित पालि साहित्य ग्यारह ग्रंथों में प्रकाशित किया गया है। प्रथम आवृत्तिः १९९८ ताइवान में मुद्रित, १२०० प्रतियां मूल्य : अनमोल यह ग्रंथ निःशुल्क वितरण हेतु है, विक्रयार्थ नहीं। सर्वाधिकार मुक्त। पुनर्मुद्रण का स्वागत है। इस ग्रंथ के किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन के लिए लिखित अनुमति आवश्यक नहीं। ISBN 81-7414-055-7 यह ग्रंथ छट्ठ संगायन संस्करण के पालि ग्रंथ से लिप्यंतरित है। इस ग्रंथ को विपश्यना विशोधन विन्यास के भारत एवं म्यंमा स्थित पालि विद्वानों ने देवनागरी में लिप्यंतरित कर संपादित किया। कंप्यूटर में निवेशन और पेज-सेटिंग का कार्य विपश्यना विशोधन विन्यास, भारत में हुआ। प्रकाशक: विपश्यना विशोधन विन्यास धम्मगिरि, इगतपुरी, महाराष्ट्र- ४२२४०३, भारत फोन : (९१-२५५३) ८४०७६, ८४०८६ फैक्स : (९१-२५५३) ८४१७६ सह-प्रकाशक, मुद्रक एवं दायक : दि कारपोरेट बॉडी ऑफ दि बुद्ध एज्युकेशनल फाउंडेशन ११ वीं मंजिल, ५५ हंग चाउ एस. रोड, सेक्टर १, ताइपे, ताइवान आर.ओ.सी. फोन : (८८६-२)२३९५-११९८, फैक्स : (८८६-२)२३९१-३४१५ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Dhammagiri-Pali-Ganthamālā [Devanagari] Dighanikaye Sumangalavilasini Tatiyo Bhago Pathikavagga-Aṭṭhakathā Devanagari edition of the Pali text of the Chattha Sangayana Published by Vipassana Research Institute Dhammagiri, Igatpuri -422403, India Co-published, Printed and Donated by The Corporate Body of the Buddha Educational Foundation 11th Floor, 55 Hang Chow S. Rd. Sec 1, Taipei, Taiwan R.O.C. Tel: (886-2)23951198, Fax: (886-2)23913415 3 Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Dhammagiri-Pāli-Ganthamālā-6 [Devanāgari] The Digha Nikāya and related literature is being published together in eleven volumes. First Edition: 1998 Printed in Taiwan, 1200 copies Price: Priceless This set of books is for free distribution, not to be sold. No Copyright-Reproduction Welcome. All parts of this set of books may be freely reproduced without prior permission. ISBN 81-7414-055-7 This volume is prepared from the Pali text of the Chattha Sangāyana edition. Typing and typesetting on computers have been done by Vipassana Research Institute, India. MS was transcribed into Devanagari and thoroughly examined by the scholars of Vipassana Research Institute in Myanmar and India. Publisher: Vipassana Research Institute Dhammagiri, Igatpuri, Maharashtra - 422 403, India Tel: (91-2553) 84076, 84086, 84302 Fax: (91-2553) 84176 Co-publisher, Printer and Donor: The Corporate Body of the Buddha Educational Foundation 11th Floor, 55 Hang Chow S. Rd. Sec 1, Taipei, Taiwan R.O.C. Tel: (886-2)23951198, Fax: 886-23913415 Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विसय-सूची प्रस्तुत ग्रंथ Present Text संकेत-सूची १. पाथिकसुत्तवण्णना सुनक्खत्तवत्थुवण्णना कोरक्खत्तियवत्थुवण्णना अचेलकळारमट्टकवत्थुवण्णना अचेलपाथिकपुत्तवत्थुवण्णना इद्धिपाटिहारियकथावण्णना अग्गजपत्तिकथावण्णना २. उदुम्बरिकसुत्तवण्णना निग्रोधपरिब्बाजकवत्थुवण्णना तपोजिगुच्छावादवण्णना उपक्किलेसवण्णना परिसुद्धपपटिकप्पत्तकथावण्णना परिसुद्धतचप्पत्तादिकथावण्णना निग्रोधस्सपज्झायनवण्णना ब्रह्मचरियपरियोसानादिवण्णना ३. चक्कवत्तिसुत्तवण्णना अत्तदीपसरणतावण्णना दळहनेमिचक्कवत्तिराजकथावण्णना चक्कवत्तिअरियवत्तवण्णना ... 9 14.24MMAR आयुवण्णादिपरिहानिकथावण्णना दसवस्सायुकसमयवण्णना आयुवण्णादिवडनकथावण्णना सङ्खराजउप्पत्तिवण्णना भिक्खुनो आयुवण्णादिवड्डनकथावण्णना ४. अग्गजसुत्तवण्णना वासेट्ठभारद्वाजवण्णना चतुवण्णसुद्धिवण्णना रसपथविपातुभाववण्णना चन्दिमसूरियादिपातुभाववण्णना भूमिपप्पटकपातुभावादिवण्णना इत्थिपुरिसलिङ्गादिपातुभाववण्णना महासम्मतराजवण्णना ब्राह्मणमण्डलादिवण्णना दुच्चरितादिकथावण्णना बोधिपक्खियभावनावण्णना ५. सम्पसादनीयसुत्तवण्णना सारिपुत्तसीहनादवण्णना कुसलधम्मदेसनावण्णना आयतनपण्णत्तिदेसनावण्णना गब्भावक्कन्तिदेसनावण्णना आदेसनविधादेसनावण्णना दस्सनसमापत्तिदेसनावण्णना * * * * * * * * * * * * * 3 ะ ะ ะ น น นี้ २९ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ १०४ १०५ १०६ १०७ १०७ १०८ १०८ १०९ १०९ १०९ ११० पुग्गलपण्णत्तिदेसनावण्णना सुखुमच्छविलक्खणवण्णना पधानदेसनावण्णना सुवण्णवण्णलक्खणवण्णना पटिपदादेसनावण्णना कोसोहितवत्थगुय्हलक्खणवण्णना भस्ससमाचारादिवण्णना परिमण्डलादिलक्खणवण्णना अनुसासनविधादिवण्णना सीहपुब्बद्धकायादिलक्खणवण्णना अञथासत्थुगुणदस्सनादिवण्णना रसग्गसग्गितालक्खणवण्णना अनुयोगदानप्पकारवण्णना अभिनीलनेत्तादिलक्खणवण्णना तिपिटकअन्तरधानकथा उण्हीससीसलक्खणवण्णना सासनअन्तरहितवण्णना एकेकलोमतादिलक्खणवण्णना अच्छरियअब्भुतवण्णना चत्तालीसादिलक्खणवण्णना ६. पासादिकसुत्तवण्णना पहूतजिव्हादिलक्खणवण्णना निगण्ठनाटपुत्तकालङ्किरियवण्णना सीहहनुलक्खणवण्णना धम्मरतनपूजा समदन्तादिलक्खणवण्णना असम्मासम्बुद्धप्पवेदितधम्मविनयवण्णना ८३ ८. सिङ्गालसुत्तवण्णना सम्मासम्बुद्धप्पवेदितधम्मविनयादिवण्णना८४ निदानवण्णना सङ्गायितब्बधम्मादिवण्णना छदिसादिवण्णना पच्चयानुञातकारणादिवण्णना चतुठानादिवण्णना सुखल्लिकानुयोगादिवण्णना छअपायमुखादिवण्णना पहब्याकरणवण्णना सुरामेरयस्स छआदीनवादिवण्णना अब्याकतट्ठानवण्णना पापमित्तताय छआदीनवादिवण्णना पुब्बन्तसहगतदिट्ठिनिस्सयवण्णना मित्तपतिरूपकादिवण्णना ७. लक्खणसुत्तवण्णना सुहदमित्तादिवण्णना द्वत्तिंसमहापुरिसलक्खणवण्णना छद्दिसापटिच्छादनकण्डवण्णना सुप्पतिट्टितपादतालक्खणवण्णना ९. आटानाटियसुत्तवण्णना पादतलचक्कलक्खणवण्णना ९५ पठमभाणवारवण्णना आयतपण्हितादितिलक्खणवण्णना ९७ परित्तपरिकम्मकथा सत्तुस्सदतालक्खणवण्णना - ९८ १०. सङ्गीतिसुत्तवण्णना करचरणादिलक्खणवण्णना ९९ उब्भतकनवसन्धागारवण्णना उस्सङ्खपादादिलक्खणवण्णना १०१ भिन्ननिगण्ठवत्थुवण्णना एणिजङ्घलक्खणवण्णना १०१ एककवण्णना ८५ o 5 w9 ११२ ११२ ११४ ११४ ११५ ११७ ११९ १२० १२२ १२९ १२९ १३७ १३९ १४२ १४२ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ / २१४ २१५ २१६ १५२ १७१ १७३ १८५ १८७ १८९ १९० २१७ २१८ २२१ २२२ २२३ २२४ १९१ २२५ अरियवासदसकवण्णना असेक्खधम्मदसकवण्णना पञ्हसमोधानवण्णना ११. दसुत्तरसुत्तवण्णना एकधम्मवण्णना द्वेधम्मवण्णना तयोधम्मवण्णना चत्तारोधम्मवण्णना पञ्चधम्मवण्णना छधम्मवण्णना सत्तधम्मवण्णना अट्ठधम्मवण्णना नवधम्मवण्णना दसधम्मवण्णना निगमनकथा सद्दानुक्कमणिका गाथानुक्कमणिका संदर्भ-सूची २२६ २२६ १९२ १९३ १९४ १९४ १९५ १९५ १९६ १९७ दुकवण्णना तिकवण्णना चतुक्कवण्णना अरियवंसचतुक्कवण्णना सोतापत्तियङ्गादिचतुक्कवण्णना पञ्हब्याकरणादिचतुक्कवण्णना दक्खिणाविसुद्धादिचतुक्कवण्णना अत्तन्तपादिचतुक्कवण्णना पञ्चकवण्णना अभब्बट्टानादिपञ्चकवण्णना पधानियङ्गपञ्चकवण्णना सुद्धावासादिपञ्चकवण्णना चेतोखिलपञ्चकवण्णना चेतसोविनिबन्धादिपञ्चकवण्णना निस्सरणियपञ्चकवण्णना विमुत्तायतनपञ्चकवण्णना छक्कवण्णना विवादमूलछक्कवण्णना निस्सरणियछक्कवण्णना अनुत्तरियादिछक्कवण्णना सततविहारछक्कवण्णना अभिजातिछक्कवण्णना निब्बेधभागियछक्कवण्णना सत्तकवण्णना अधिकरणसमथसत्तकवण्णना अट्ठकवण्णना नवकवण्णना दसकवण्णना अकुसलकम्मपथदसकवण्णना कुसलकम्मपथदसकवण्णना २२७ २२८ २३० [१] १९८ [५७] १९९ २०० २०१ २०१ २०१ २०२ २०४ २०७ २०९ २१० २११ २१३ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिरं तिहतु सद्धम्मो! चिरस्थायी हो सद्धर्म! बेमे, भिक्खवे, धम्मा सद्धम्मस्स ठितिया असम्मोसाय अनन्तरधानाय संवत्तन्ति। कतमे है? सुनिक्खित्तञ्च पदव्यञ्जनं अत्थो च सुनीतो। सुनिक्खित्तस्स, भिक्खवे, पदव्यञ्जनस्स अत्थोपि सुनयो होति। अ०नि०१.२.२१, अधिकरणदग्ग भिक्षुओ, दो बातें हैं जो कि सद्धर्म के कायम रहने का, उसके विकृत न होने का, उसके अंतर्धान न होने का कारण बनती हैं। कौनसी दो बातें ? धर्म वाणी सुव्यवस्थित, सुरक्षित रखी जाय और उसके सही, स्वाभाविक, मौलिक अर्थ कायम रखे जाय । भिक्षुओ, सुव्यवस्थित, सुरक्षित वाणी से अर्थ भी स्पष्ट, सही कायम रहते हैं। ....ये वो मया धम्मा अभिज्ञा देसिता, तत्य सब्बेहेव साम्म समागम्म अत्थेन अत्थं व्यजनेन व्यञ्जनं सहायितबंन विवदितब्बं, यथयिदं ब्रह्मचरियं अद्धनियं अस्स चिरद्वितिकं...। दी०नि०३.१७७, पासादिकसुत्त ...जिन धर्मों को तुम्हारे लिए मैंने स्वयं अभिज्ञात करके उपदेशित किया है, उसे अर्थ और व्यंजन सहित सब मिल-जुल कर, बिना विवाद किये संगायन करो, जिससे कि यह धर्माचरण चिर स्थायी हो...। Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तुत ग्रंथ दीघनिकाय साधना की दृष्टि से महत्वपूर्ण ग्रंथ है। यह भगवान बुद्ध के चौंतीस दीर्घाकार उपदेशों का संग्रह है जो कि तीन खंडों में विभक्त है- सीलक्खन्धवग्ग, महावग्ग, पाथिकवग्ग। इन उपदेशों में शील, समाधि तथा प्रज्ञा पर सरल ढंग से प्रचुर सामग्री उपलब्ध है | व्यावहारिक जीवन में आगत वस्तुओं एवं घटनाओं से जुड़ी हुई उपमाओं के सहारे इसमें साधना के विभिन्न अंगों पर प्रकाश डाला गया है। बुद्ध की देशना सरल तथा हृदयस्पर्शी हुआ करती थी। उनकी यह शैली व्याख्यात्मिका थी पर कभी-कभी धर्म को सुबोध बनाने के लिये 'चूळनिद्देस' जैसी अट्ठकथाओं का उन्होंने सृजन किया | प्रथम धर्मसंगीति में बुद्धवचन के संगायन के साथ इनका भी संगायन हुआ। तदनंतर उनके अन्य वचनों पर भी अट्ठकथाएं तैयार हुईं । जब स्थविर महेन्द्र बुद्ध वचन को लेकर श्रीलंका गये, तो वे अपने साथ इन अट्ठकथाओं को भी ले गये। श्रीलंकावासियों ने इन अद्रकथाओं को सिंहली भाषा में सुरक्षित रखा। पांचवी सदी के मध्य में बुद्धघोष ने उनका पालि में पुनः परिवर्तन किया । दीघनिकाय के अर्थों को प्रकाश में लाते हुए बुद्धघोष ने 'सुमालविलासिनी' नामक दीघनिकाय-अट्ठकथा का प्रणयन किया। यह भी तीन भागों में विभक्त है। इसके तृतीय भागपाथिकवग्ग-अट्ठकथा का मुद्रित संस्करण आपके सम्मुख प्रस्तुत है। हमें पूर्ण विश्वास है कि यह प्रकाशन विपश्यी साधकों और विशोधकों के लिए अत्यधिक लाभदायक सिद्ध होगा। निदेशक, विपश्यना विशोधन विन्यास Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Dīghanikāyc Sumangalavilāsini Tatiyo Bhāgo Pāthikavagga-Atthakathā 13 Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Ciram Titthatu Saddhammo! May the Truth-based Dhamma Endure for A Long Time ! “Doeme, Bbikebabe, Dhamma saddhammassa thitiyā asammosāya anantaradhānāya samvattanti. Katame dve? Sunikkhittañca padabyanjanam attho ca sunito. Sunikkbitassa, Bhikkbaoe, padabyañjanassa atthopi sunayo boti.” "There are two things, O monks, which A. N. 1. 2. 21, Adhikaraṇavagga make the Truth-based Dhamma endure for a long time, without any distortion and without (fear of) eclipse. Which two? Proper placement of words and their natural interpretation. Words properly placed help also in their natural interpretation.” ...ye vo mayā dhammă abhiññā desitā, tattha sabbebeva sangamma samāgamma atthena attham byañjanena byañjanam sangāyitabbam na vivaditabbam, yathayidam brahmacariyam addhaniyam assa ciratthitikam... ...the dhammas (truths) which I have D. N. 3.177, Pasädikasutta a taught to you after realizing them with my super-knowledge, should be recited by all, in concert and without dissension, in a uniform version collating meaning with meaning and wording with wording. In this way, this teaching with pure practice will last long and endure for a long time... 15 Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Present Text The Digha Nikaya is an important collection from the perspective of meditation practice. It contains thirty-four important long discourses of the Buddha, divided into three sections—the Silakkhandhavagga, Mahāvagga and Pathikavagga. In these discourses a lot of material related to sila, samādhi and pañña is available. Various aspects of practice have been elucidated by means of similes drawn from familiar objects and the everyday life of the times. The Buddha's teachings were simple and endearing. His distinctive style was self-explanatory but still, in order to make the Dhamma all the more lucid, he introduced the use of affhakathā (commentaries), such as the Cusaniddesa and the Mahāniddesa. These were recited, along with the discourses of the Buddha, at the first Dhamma Council. In time the other atthakathā commenting on all his discourses came into being. When Ven. Mahinda conveyed the words of the Buddha to Sri Lanka he also took the affhakatha with him. The Sinhalese monks preserved these atthakathā in their own language. Later on, when they had been lost in India, Ven. Buddhaghosa was able to translate them back to Pali, during the middle of the fifth century A.D. He then compiled the commentary on the Digha Nikāya named Sumangalavilasinī in three volumes to help clarify its meaning. We sincerely hope that this publication, Pathikavagga-Atthakathā will provide immense benefit to practitioners of Vipassana as well as research scholars. Director, Vipassana Research Institute, Igatpuri, India. 17 Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ The Pāli alphabets in Devanāgari and Roman characters: Vowels: 37 a 371 à 5 i $ i Ju Jū e 31770 Consonants with Vowel 37 (a): क ka ख kha ग ga घ gha __ङ ia a ca g cha ut ja झ jha ţa ţha 3 da dha ñ ta tha q da odha i pa pha oba 4 bha ma 7 ya ra a la ava sa ha la One nasal sound (niggahīta) 31 am Vowels in combination with consonants “k” and “kh”: (exceptions: 5 ru, to rū) क ka का ka कि ki की ki कु ku कू ka के ke को ko ख kha खा khā खि khi खी khi खु khu खू khā खे khe खो kho Conjunct-consonants: क्क kka ख kkha क्य kya क्र kra kla क्व kva ख्य khya khva ग्ग gga ग्घ ggha ग्य gya ग्र gra gva nka * rkha Arkhya nga ngha cca By ccha hajjha 307 ñña ज्ह nha 5 ñcha soñjha दृ tta Ittha dda Iddha us ntha ug nda ण्ण nna nya ण्ह nha त्त tta स्थ ttha त्य tya tra dda addha dma य dya dra ध्य dhya ध्व dhva न्त nta ntva न्थ ntha andra न्ध ndha anna न्य nya व nva nha प्फ ppha o pya bba 34 bbha व्य bya a bra mpha mba 19 mbha म्म mma म्य mya mha य्य yya a vya yha ल्ल lla ल्य lya Folha व्ह vha Po sta stra न sna स्य sya स्स ssa स्म sma स्व sva hma hya hva of Iha $1 22 23 84 45 & 6 67 68 $9.00 4 ñca good & ज्ज ज्ज ण्ट jja nja nta all be a tva dva nda sil up ppa प्ल pla mpa A 19 Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Notes on the pronunciation of Pāli Pāli was a dialect of northern India in the time of Gotama the Buddha. The earliest known script in which it was written was the Brāhmi script of the third century B.C. After that it was preserved in the scripts of the various countries where Pāli was maintained. In Roman script, the following set of diacritical marks has been established to indicate the proper pronunciation. The alphabet consists of forty-one characters: eight vowels, thirty-two consonants and one nasal sound (niggahīta). Vowels (a line over a vowel indicates that it is a long vowel): a - as the "a" in about ā - as the "a" in father i - as the "in mint i - as the "ee" in see u - as the "u" in put ū - as the "oo" in cool e is pronounced as the "ay" in day, except before double consonants when it is pronounced as the "e" in bed: deva, mettā; o is pronounced as the "o" in no, except before double consonants when it is pronounced slightly shorter: loka, phorthabba. Consonants are pronounced mostly as in English. g - as the "g" in get Č - soft like the "ch” in church V - a very soft --or-WAll aspirated consonants are pronounced with an audible expulsion of breath following the normal unaspirated sound. th - not as in 'three'; rather 't followed by 'h' (outbreath) ph - not as in ‘photo'; rather 'p' followed by 'h' (outbreath) The retroflex consonants: t. th. d. dh, n are pronounced with the tip of the tongue turned back; and I'is pronounced with the tongue retroflexed, almost a combined 'rl sound. The dental consonants: t, th, d, dh, n are pronounced with the tongue touching the upper front teeth. The nasal sounds: n- guttural nasal, like-ng- as in singer .ñ - as in Spanish señor n - with tongue retroflexed m - as in hung, ring Double consonants are very frequent in Pāli and must be strictly pronounced as long consonants, thus -nn- is like the English 'nn' in "unnecessary”. 20 Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० नि० अट्ठ० = अट्ठकथा अनु टी० अप० = अपदान अभि० टी० = अभिनवटीका इतिवु० = इतिवृत्तक उदा० = उदान कमा० टी० कावितरणी टीका खुद्दकनिकाय कथाव० = कथावत्थु खु० नि० = खु० पा० खुद्दक पाठ चरिया० पि० = चरियापिटक चूळनि० = चूळनिद्देस = = = अङ्गुत्तरनिकाय अनुटीका = चूळव० चूळवग्ग जा० = जातक टी० = टीका थेरगा० = थेरगाथा थेरीगा० = थेरीगाथा दी० नि० = दीघनिकाय ध० प० = धम्मपद ध० स० = धम्मसङ्गणी = धातु० = धातुकथा नेत्ति० पटि० म० = नेत्तिपकरण पटिसम्भिदामग्ग संकेत-सूची 21 पट्ठा० = पट्ठान परि० = परिवार पाचि० पाचित्तिय पारा० = पाराजिक पु० टी० = पुराणटीका = पु० प० • पुग्गलपञ्ञत्ति पे० व० = पेतवत्थु पेटको ० पेटकोपदेस बु० वं० म० नि० महाव० महावग्ग बुद्धवंस मज्झिमनिकाय महानि० मि० प० मूल टी० = मूलटीका यम० = यमक वि० व० = वि० वि० टी० वि० सङ्ग० अट्ठ० विनय वि० टी० विभं० = विभङ्ग = = = = = महानिद्देस मिलिन्दपह = सारत्य० टी० सु० नि० विमानवत्थु = विसुद्धि० = विसुद्धिमग्ग संयुत्तनिकाय सं० नि० = विमतिविनोदनी टीका विनयसङ्ग्रह अट्ठकथा विनयविनिच्छय टीका = - = सारत्थदीपनी टीका सुत्तनिपात Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दीघनिकाये सुमङ्गलविलासिनी ततियो भागो पाथिकवग्गट्ठकथा 23 Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्बुद्धस्स ।। दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा १. पाथिकसुत्तवण्णना सुनक्खत्तवत्थुवण्णना १. एवं मे सुतं...पे०... मल्लेसु विहरतीति पाथिकसुत्तं । तत्रायं अपुब्बपदवण्णना। मल्लेसु विहरतीति मल्ला नाम जानपदिनो राजकुमारा, तेसं निवासो एकोपि जनपदो रुळ्हीसद्देन "मल्ला''ति वुच्चति, तस्मिं मल्लेसु जनपदे । “अनुपियं नाम मल्लानं निगमो"ति अनुपियन्ति एवंनामको मल्लानं जनपदस्स एको निगमो, तं गोचरगामं कत्वा एकस्मिं छायूदकसम्पन्ने वनसण्डे विहरतीति अत्थो । अनोपियन्तिपि पाठो । पाविसीति पविट्ठो। भगवा पन न ताव पविट्ठो, पविसिस्सामीति निक्खन्तत्ता पन पाविसीति वुत्तो । यथा किं, यथा “गामं गमिस्सामी"ति निक्खन्तो पुरिसो तं गामं अपत्तोपि “कुहिं Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (१.२-४) इत्थन्नामो''ति वुत्ते “गामं गतो"ति वुच्चति, एवं । एतदहोसीति गामसमीपे ठत्वा सूरियं ओलोकेन्तस्स एतदहोसि । अतिप्पगो खोति अतिविय पगो खो, न ताव कुलेसु यागुभत्तं निट्टितन्ति । किं पन भगवा कालं अजानित्वा निक्खन्तोति ? न अजानित्वा । पच्चूसकालेयेव हि भगवा जाणजालं पत्थरित्वा लोकं वोलोकेन्तो जाणजालस्स अन्तो पविठं भग्गवगोत्तं छन्नपरिब्बाजकं दिस्वा “अज्जाहं इमस्स परिब्बाजकस्स मया पुब्बे कतकारणं समाहरित्वा धम्म कथेस्सामि, सा धम्मकथा अस्स मयि पसादप्पटिलाभवसेन सफला भविस्सती'"ति ञत्वाव परिब्बाजकारामं पविसितुकामो अतिप्पगोव निक्खमि । तस्मा तत्थ पविसितुकामताय एवं चित्तं उप्पादेसि । २. एतदवोचाति भगवन्तं दिस्वा मानथद्धतं अकत्वा सत्थारं पच्चुग्गन्त्वा एतं एतु खो, भन्तेतिआदिकं वचनं अवोच । इमं परियायन्ति इमं वारं, अज्ज इमं आगमनवारन्ति अत्थो । किं पन भगवा पुब्बेपि तत्थ गतपुब्बोति ? न गतपुब्बो, लोकसमुदाचारवसेन पन एवमाह । लोकिया हि चिरस्सं आगतम्पि अनागतपुब्बम्पि मनापजातिकं आगतं दिस्वा "कुतो भवं आगतो, चिरस्सं भवं आगतो, कथं ते इधागमनमग्गो जातो, किं मग्गमूळहोसी"तिआदीनि वदन्ति । तस्मा अयम्पि लोकसमुदाचारवसेन एवमाहाति वेदितब्बो । इदमासनन्ति अत्तनो निसिन्नासनं पप्फोटेत्वा सम्पादेत्वा ददमानो एवमाह । सुनक्खत्तो लिच्छविपुत्तोति सुनक्खत्तो नाम लिच्छविराजपुत्तो । सो किर तस्स गिहिसहायो होति, कालेन कालं तस्स सन्तिकं गच्छति । पच्चक्खातोति “पच्चक्खामि दानाहं, भन्ते, भगवन्तं न दानाहं, भन्ते, भगवन्तं उद्दिस्स विहरिस्सामी"ति एवं पटिअक्खातो निस्सट्ठो परिच्चत्तो। ३. भगवन्तं उहिस्साति भगवा मे सत्था “भगवतो अहं ओवादं पटिकरोमी''ति एवं अपदिसित्वा । को सन्तो कं पच्चाचिक्खसीति याचको वा याचितकं पच्चाचिक्खेय्य, याचितको वा याचकं । त्वं पन नेव याचको न याचितको, एवं सन्ते, मोघपुरिस, को सन्तो को समानो कं पच्चाचिक्खसीति दस्सेति । पस्स मोघपुरिसाति पस्स तुच्छपुरिस । यावञ्च ते इदं अपरगन्ति यत्तकं इदं तव अपरद्धं, यत्तको ते अपराधो तत्तको दोसोति एवाहं भग्गव तस्स दोसं आरोपेसिन्ति दस्सेति । ४. उत्तरिमनुस्सधम्माति पञ्चसीलदससीलसङ्घाता मनुस्सधम्माउत्तरि । इद्धिपाटिहारियन्ति इद्धिभूतं पाटिहारियं । कते वाति कतम्हि वा | यस्सत्थायाति यस्स दुक्खक्खयस्स अत्थाय | Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुनक्खत्तवत्थुवण्णना सो निय्याति तक्करस्साति सो धम्मो तक्करस्स यथा मया धम्मो देसितो, तथा कारकस्स सम्मा पटिपन्नस्स पुग्गलस्स सब्बवट्टदुक्खक्खयाय अमतनिब्बानसच्छिकिरियाय गच्छति, न गच्छति, संवत्तति, न संवत्ततीति पुच्छति । तत्र सुनक्खत्ताति तस्मिं सुनक्खत्त मया देसिते धम्मे तक्करस्स सम्मा दुक्खक्खयाय संवत्तमाने किं उत्तरिमनुस्सधम्मा इद्धिपाटिहारियं कतं करिस्सति, को तेन कतेन अत्थो । तस्मिहि कतेपि अकतेपि मम सासनस्स परिहानि नस्थि, देवमनुस्सानहि अमतनिब्बानसम्पापनत्थाय अहं पारमियो पूरेसिं, न पाटिहारियकरणत्थायाति पाटिहारियस्स निरत्थकतं दस्सेत्वा “पस्स, मोघपुरिसा"ति दुतियं दोसं आरोपेसि । ५. अग्गञ्जन्ति लोकपञत्तिं । “इदं नाम लोकस्स अग्ग"न्ति एवं जानितब्बम्पि अग्गं मरियादं न तं पञपेतीति वदति । सेसमेत्थ अनन्तरवादानुसारेनेव वेदितब् । ६. अनेकपरियायेन खोति इदं कस्मा आरद्धं | सुनक्खत्तो किर “भगवतो गुणं मक्खेस्सामि, “दोसं पञपेस्सामी"ति एत्तकं विप्पलपित्वा भगवतो कथं सुणन्तो अप्पतिट्ठो निरवो अट्ठासि । अथ भगवा - "सुनक्खत्त, एवं त्वं मक्खिभावे ठितो सयमेव गरहं पापुणिस्ससी"ति मक्खिभावे आदीनवदस्सनत्थं अनेकपरियायेनातिआदिमाह। तत्थ अनेकपरियायेनाति अनेककारणेन । वज्जिगामेति वज्जिराजानं गामे, वेसालीनगरे नो विसहीति नासक्खि | सो अविसहन्तोति सो सुनक्खत्तो यस्स पुब्बे तिण्णं रतनानं वण्णं कथेन्तस्स मुखं नप्पहोति, सो दानि तेनेव मुखेन अवण्णं कथेति, अद्धा अविसहन्तो असक्कोन्तो ब्रह्मचरियं चरितुं अत्तनो बालताय अवण्णं कथेत्वा हीनायावत्तो । बुद्धो पन सुबुद्धोव, धम्मो स्वाक्खातोव, सङ्घो सुप्पटिपन्नोव । एवं तीणि रतनानि थोमेन्ता मनुस्सा तुम्हेव दोसं दस्सेस्सन्तीति । इति खो तेति एवं खो ते, सुनक्खत्त, वत्तारो भविस्सन्ति । ततो एवं दोसे उप्पन्ने सत्था अतीतानागते अप्पटिहतञाणो, महं एवं दोसो उप्पज्जिस्सतीति जानन्तोपि पुरेतरं न कथेसीति वत्तुं न लच्छसीति दस्सेति । अपक्कमेवाति अपक्कमियेव, अपक्कन्तो वा चुतोति अत्थो। यथा तं आपायिकोति यथा अपाये निब्बत्तनारहो सत्तो अपक्कमेय्य, एवमेव अपक्कमीति अत्थो । Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा कोरक्खत्तियवत्थुवण्णना ७. एक मिदाहन्ति इमिना किं दस्सेति ? इदं सुत्तं द्वीहि पदेहि आबद्धं इद्धिपाटिहारियं न करोतीति च अग्गञ्ञ न पञ्ञपेतीति च । तत्थ "अग्गञ्ञ न पञ्ञपेतीति इदं पदं सुत्तपरियोसाने दस्सेस्सति । " पाटिहारियं न करोतीति इमस्स पन पदस्स अनुसन्धिदस्सनवसेन अयं देसना आरद्धा । तत्थ एक मिदाहन्ति एकस्मिं अहं । समयन्ति समये, एकस्मिं काले अहन्ति अत्थो । थूलूसूति थूलू नाम जनपदो तत्थ विहरामि । उत्तरका नामाति इत्थिलिङ्गवसेन उत्तरकाि एवंनामको थूलूनं जनपदस्स निगमो, तं निगमं गोचरगामं कत्वाति अत्थो । अचेोति नग्गो । कोरक्खत्तियोति अन्तोवङ्कपादो खत्तियो । कुक्कुरवतिकोति समादिन्नकुक्कुरवतो सुनखो विय घायित्वा खादति, उद्धनन्तरे निपज्जति, अञ्ञम्पि सुनखकिरियमेव करोति । चतुक्कुण्डिकोति चतुसङ्घट्टितो द्वे जाणूनि द्वे च कप्परे भूमियं ठपेत्वा विचरति छमानिकिण्णन्ति भूमियं निकिण्णं पक्खित्तं ठपितं । भक्खसन्ति भक्खं किञ्चि खादनीयं भोजनीयं । मुखेनेवाति हत्थेन अपरामसित्वा खादनीयं मुखेनेव खादति, भोजनीयम्पि मुखेनेव भुञ्जति । साधुरूपोति सुन्दररूपो । अयं समणोति अयं अरहतं समणो एकोति । तत्थ ताति पत्थनत्थे निपातो । एवं किरस्स पत्थना अहोसि “इमिना समणेन सदिसो अञ्ञो समणो नाम नत्थि, अयहि अप्पिच्छताय वत्थं न निवासेति, 'एस पपञ्चो ति मञ्ञमानो भिक्खाभाजनम्पि न परिहरति, छमानिकिण्णमेव खादति, अयं समणो नाम । मयं पन किं समणाति ? एवं सब्बञ्ञबुद्धस्स पच्छतो चरन्तोव इमं पापकं वितक्कं वितक्केसि | (१.७-७) एतदवोचाति भगवा किर चिन्तेसि " अयं सुनक्खत्तो पापज्झासयो, किं नु इमं दिस्वा चिन्तेसी” ति ? अथेवं चिन्तेन्तो तस्स अज्झासयं विदित्वा “अयं मोघपुरिसो मादिसस्स सब्बञ्जुनो पच्छतो आगच्छन्तो अचेलं अरहाति मञ्ञति, इधेव दाना निग्गहं अरहती”ति अनिवत्तित्वाव एतं त्वम्पि नामाति आदिवचनमवोच । तत्थ त्वम्प नामाति गरहत्थे पिकारो । गरहन्तो हि नं भगवा " त्वम्पि नामा" ति आह । " त्वम्पि नाम एवं हीनज्झासयो, अहं समणो सक्यपुत्तियोति एवं पटिजानिस्ससी "ति अयहेत्थ अधिप्पायो । किं पन मं, भन्तेति मय्हं, भन्ते, किं गारव्हं दिस्वा भगवा " एवमाहा " ति पुच्छति । अथस्स भगवा आचिक्खन्तो " ननु ते "तिआदिमाह । मच्छरायतीति “मा 4 Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१.८-८) कोरक्खत्तियवत्थुवण्णना अञस्स अरहत्तं होतू'ति किं भगवा एवं अरहत्तस्स मच्छरायतीति पुच्छति। न खो अहन्ति अहं, मोघपुरिस, सदेवकस्स लोकस्स अरहत्तप्पटिलाभमेव पच्चासीसामि, एतदत्थमेव मे बहूनि दुक्करानि करोन्तेन पारमियो पूरिता, न खो अहं, मोघपुरिस, अरहत्तस्स मछरायामि। पापकं दिट्ठिगतन्ति न अरहन्तं अरहाति, अरहन्ते च अनरहन्तोति एवं तस्स दिट्ठि उप्पन्ना । तं सन्धाय “पापकं दिट्ठिगत"न्ति आह । यं खो पनाति यं एतं अचेलं एवं मञ्जसि । सत्तमं दिवसन्ति सत्तमे दिवसे | अलसकेनाति अलसकब्याधिना । कालङ्करिस्सतीति उद्धमातउदरो मरिस्सति । कालकञ्चिकाति तेसं असुरानं नामं । तेसं किर तिगावुतो अत्तभावो अप्पमंसलोहितो पुराणपण्णसदिसो कक्कटकानं विय अक्खीनि निक्खमित्वा मत्थके तिठ्ठन्ति, मुखं सूचिपासकसदिसं मत्थकस्मिंयेव होति, तेन ओणमित्वा गोचरं गण्हन्ति । बीरणथम्बकेति बीरणतिणत्थम्बो तस्मिं सुसाने अत्थि, तस्मा तं बीरणथम्बकन्ति वुच्चति । तेनुपसङ्कमीति भगवति एत्तकं वत्वा तस्मिं गामे पिण्डाय चरित्वा विहारं गते विहारा निक्खमित्वा उपसङ्कमि । येन त्वन्ति येन कारणेन त्वं । यस्मापि भगवता ब्याकतो, तस्माति अत्थो । मत्तं मत्तन्ति पमाणयुत्तं पमाणयुत्तं । “मन्ता मन्ता"तिपि पाठो, पञाय उपपरिक्खित्वा उपपरिक्खित्वाति अत्थो। यथा समणस्स गोतमस्साति यथा समणस्स गोतमस्स मिच्छा वचनं अस्स, तथा करेय्यासीति आह । एवं वुत्ते अचेलो सुनखो विय उद्धनहाने निपन्नो सीसं उक्खिपित्वा अक्खीनि उम्मीलेत्वा ओलोकेन्तो किं कथेसि “समणो नाम गोतमो अम्हाकं वेरी विसभागो, समणस्स गोतमस्स उप्पन्नकालतो पट्ठाय मयं सूरिये उग्गते खज्जोपनका विय जाता। समणो गोतमो अम्हे, एवं वाचं वदेय्य अज्ञथा वा । वेरिनो पन कथा नाम तच्छा न होति, गच्छ त्वं अहमेत्थ कत्तब्बं जानिस्सामी"ति वत्वा पुनदेव निपज्जि । ८. एकद्वीहिकायाति एकं द्वेति वत्वा गणेसि । यथा तन्ति यथा असद्दहमानो कोचि गणेय्य, एवं गणेसि । एकदिवसञ्च तिक्खत्तुं उपसङ्कमित्वा एको दिवसो अतीतो, द्वे दिवसा अतीताति आरोचेसि । सत्तमं दिवसन्ति सो किर सुनक्खत्तस्स वचनं सुत्वा सत्ताहं निराहारोव अहोसि । अथस्स सत्तमे दिवसे एको उपट्ठाको “अम्हाकं कुलूपकसमणस्स अज्ज सत्तमो दिवसो गेहं अनागच्छन्तस्स अफासु नु खो जात''न्ति सूकरमंसं पचापेत्वा भत्तमादाय गन्त्वा पुरतो भूमियं निक्खिपि । अचेलो दिस्वा चिन्तेसि “समणस्स गोतमस्स Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (१.९-१०) कथा तच्छा वा अतच्छा वा होतु, आहारं पन खादित्वा सुहितस्स मे मरणम्पि सुमरण"न्ति द्वे हत्थे जण्णुकानि च भूमियं ठपेत्वा कुच्छिपूरं भुजि । सो रत्तिभागे जीरापेतुं असक्कोन्तो अलसकेन कालमकासि । सचेपि हि सो “न भुजेय्यन्ति चिन्तेय्य, तथापि तं दिवसं भुजित्वा अलसकेन कालं करेय्य | अद्वेज्झवचना हि तथागताति । बीरणथम्बकेति तित्थिया किर “कालङ्कतो कोरक्खत्तियो'"ति सुत्वा दिवसानि गणेत्वा इदं ताव सच्चं जातं, इदानि नं अञत्थ छड्दुत्वा "मुसावादेन समणं गोतमं निग्गहिस्सामा''ति गन्त्वा तस्स सरीरं वल्लिया बन्धित्वा आकड्डन्ता “एत्थ छड्डस्साम, एत्थ छड्डेस्सामा"ति गच्छन्ति । गतगतट्टानं अङ्गणमेव होति । ते कड्ढमाना बीरणथम्बकसुसानंयेव गन्त्वा सुसानभावं अत्वा “अञत्थ छड्डेस्सामा"ति आकद्धिंसु । अथ नेसं वल्लि छिज्जित्थ, पच्छा चालेतुं नासक्खिंसु । ते ततोव पक्कन्ता । तेन वुत्तं - "बीरणत्थम्बके सुसाने छड्डेसु"न्ति । ९. तेनुपसङ्कमीति कस्मा उपसङ्कमि ? सो किर चिन्तेसि “अवसेसं ताव समणस्स गोतमस्स वचनं समेति, मतस्स पन उट्ठाय अजेन सद्धिं कथनं नाम नत्थि, हन्दाहं गन्त्वा पुच्छामि। सचे कथेति, सुन्दरं । नो चे कथेति, समणं गोतमं मुसावादेन निग्गहिस्सामी''ति इमिना कारणेन उपसङ्कमि | आकोटेसीति पहरि | जानामि आवुसोति मतसरीरं उट्ठहित्वा कथेतुं समत्थं नाम नत्थि, इदं कथं कथेसीति ? बुद्धानुभावेन । भगवा किर कोरक्खत्तियं असुरयोनितो आनेत्वा सरीरे अधिमोचेत्वा कथापेसि । तमेव वा सरीरं कथापेसि, अचिन्तेय्यो हि बुद्धविसयो । १०. तथैव तं विपाकन्ति तस्स वचनस्स विपाकं तथैव, उदाहु नोति लिङ्गविपल्लासो कतो, तथेव सो विपाकोति अत्थो । केचि पन “विपक्क"न्तिपि पठन्ति, निब्बत्तन्ति अत्थो । एत्थ ठत्वा पाटिहारियानि समानेतब्बानि । सब्बानेव हेतानि पञ्च पाटिहारियानि होन्ति । “सत्तमे दिवसे मरिस्सती"ति वुत्तं, सो तथेव मतो, इदं पठमं पाटिहारियं । “अलसकेना''ति वुत्तं, अलसकेनेव मतो, इदं दुतियं । “कालकञ्चिकेसु निब्बत्तिस्सती''ति वुत्तं, तत्थेव निब्बत्तो, इदं ततियं । “बीरणत्थम्बके सुसाने छड्डेस्सन्तीति वुत्तं, तत्थेव Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१.११-१४) अचेलकळारमट्टकवत्युवण्णना छड्डितो, इदं चतुत्थं । “निब्बत्तट्ठानतो आगन्त्वा सुनक्खत्तेन सद्धिं कथेस्सती"ति वुत्तो, सो कथेसियेव, इदं पञ्चमं पाटिहारियं । अचेलकळारमट्टकवत्थुवण्णना ११. कळारमट्टकोति निक्खन्तदन्तमत्तको । नाममेव वा तस्सेतं । लाभग्गप्पत्तोति लाभग्गं पत्तो, अग्गलाभं पत्तोति वुत्तं होति । यसग्गप्पत्तोति यसग्गं अग्गपरिवारं पत्तो । वतपदानीति वतानियेव, वतकोट्ठासा वा। समत्तानीति गहितानि । समादिनानीति तस्सेव वेवचनं । पुरथिमेन वेसालिन्ति वेसालितो अविदूरे पुरस्थिमाय दिसाय । चेतियन्ति यक्खचेतियट्ठानं । एस नयो सब्बत्थ । १२. येन अचेलकोति भगवतो वत्तं कत्वा येन अचेलो कळारमट्टको तेनुपसङ्कमि । पहं अपुच्छीति गम्भीरं तिलक्खणाहतं पञ्हं. पुच्छि। न सम्पायासीति न सम्मा आणगतिया पायासि, अन्धो विय विसमट्ठाने तत्थ तत्थेव पक्खलि । नेव आदिं, न परियोसानमद्दस | अथ वा “न सम्पायासी"ति न सम्पादेसि, सम्पादेत्वा कथेतुं नासक्खि । असम्पायन्तोति कबरक्खीनि परिवत्तेत्वा ओलोकेन्तो “असिक्खितकस्स सन्तिके वुट्ठोसि, अनोकासेपि पब्बजितो पहं पुच्छन्तो विचरसि, अपेहि मा एतस्मिं ठाने अट्ठासी"ति वदन्तो । कोपञ्च दोसञ्च अप्पच्चयञ्च पात्वाकासीति कुप्पनाकारं कोपं, दुस्सनाकारं दोसं, अतुट्ठाकारभूतं दोमनस्ससङ्खातं अप्पच्चयञ्च पाकटमकासि । आसादिम्हसेति आसादियिम्ह घट्टयिम्ह । मा वत नो अहोसीति अहो वत मे न भवेय्य । मं वत नो अहोसीतिपि पाठो । तत्थ मन्ति सामिवचनत्थे उपयोगवचनं, अहोसि वत नु ममाति अत्थो । एवञ्च पन चिन्तेत्वा उक्कुटिकं निसीदित्वा “खमथ मे, भन्ते"ति तं खमापेसि। सोपि इतो पट्ठाय अञ्ज किञ्चि पऽहं नाम न पुच्छिस्ससीति । आम न-पुच्छिस्सामीति । यदि एवं गच्छ, खमामि तेति तं उय्योजेसि। १४. परिहितोति परिदहितो निवत्थवत्थो। सानुचारिकोति अनुचारिका वुच्चति भरिया, सह अनुचारिकाय सानुचारिको, तं तं ब्रह्मचरियं पहाय सभरियोति अत्थो । ओदनकुम्मासन्ति सुरामंसतो अतिरेकं ओदनम्पि कुम्मासम्पि भुञ्जमानो । यसा निहीनोति यं लाभग्गयसग्गं पत्तो, ततो परिहीनो हुत्वा । “कतं होति उत्तरिमनुस्सधम्मा इद्धिपाटिहारिय"न्ति इध सत्तवतपदातिक्कमवसेन सत्त पाटिहारियानि वेदितब्बानि । Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा अचेलपाधिकपुत्तवत्थुवण्णना १५. पाथिकपुत्तोति पाथिकस्स पुत्तो । आणवादेना ति आणवादेन सद्धिं । उपड्डपथन्ति योजनं चे, नो अन्तरे भवेय्य, गोतमो अड्डुयोजनं, अहं अड्ढयोजनं । एस नयो अड्ढयोजनादीसु । एकपदवारम्पि अतिक्कम्म गच्छतो जयो भविस्सति, अनागच्छतो पराजयोति । ते तत्थाति ते मयं तत्थ समागतट्ठाने । तद्दिगुणं तद्दिगुणाहन्ति ततो ततो दिगुणं दिगुणं अहं करिस्सामि, भगवता सद्धिं पाटिहारियं कातुं असमत्थभावं जानन्तोपि “उत्तमपुरिसेन सद्धिं पट्टपेत्वा असक्कुणन्तस्सापि पासंसो होती 'ति ञत्वा एवमाह । नगरवासिनोपि तं सुत्वा " असमत्थो नाम एवं न गज्जति, अद्धा अयम्पि अरहा भविस्सती 'ति तस्स महन्तं सक्कारमकंसु । १६. येनाहं तेनुपसङ्कमीति "सुनक्खत्तो किर पाथिकपुत्तो एवं वदतीति अस्सोसि । अथस्स हीनज्झासयत्ता हीनदस्सनाय चित्तं उदपादि । (१.१५-१७) सो भगवतो वत्तं कत्वा भगवति गन्धकुटिं पविट्ठे पाथिकपुत्तस्स सन्तिकं गन्त्वा पुच्छि "तुम्हे किर एवरूपिं कथं कथेथा "ति ? " आम, कथेमा" ति । यदि एवं “मा भात्थि विस्सत्था पुनप्पुनं एवं वदथ, अहं समणस्स गोतमस्स उपट्ठाको तस्स विसयं विजानामि, तुम्हेहि सद्धिं पाटिहारियं कातुं न सक्खिस्सति, अहं समणस्स गोतमस्स कथेत्वा भयं उप्पादेत्वा तं अञ्ञतो गहेत्वा गमिस्सामि, तुम्हे मा भायित्थाति तं अस्सासेत्वा भगवतो सन्तिकं गतो । तेन वुत्तं "येनाहं तेनुपसङ्कमी 'ति । तं वाचन्तिआदीसु “अहं अबुद्धोव समानो बुद्धोम्हीति विचरिं, अभूतं मे कथितं नाहं बुद्धो 'ति वदन्तो तं वाचं पजहति नाम । रहो निसीदित्वा चिन्तयमानो " अहं 'एत्तकं कालं अबुद्धोव समानो बुद्धोम्ही 'ति विचरिं इतो दानि पट्ठाय नाहं बुद्धो " ति चिन्तयन्तो तं चित्तं पजहति नाम । " अहं 'एत्तकं कालं अबुद्धोव समानो बुद्धोम्ही 'ति पापकं दिट्ठि गहेत्वा विचरिं इतो दानि पट्ठाय इमं दिट्ठि पजहामी 'ति पजहन्तो तं दिट्ठि पटिनिस्सज्जति नाम । एवं अकरोन्तो पन तं वाचं अप्पहाय तं चित्तं अप्पहाय तं दिट्ठि अप्पटिनिस्सज्जित्वाति वुच्चति । विपतेय्याति बन्धना मुत्ततालपक्कं विय गीवतो पतेय्य, सत्तधा वा पन फलेय्य १७. रक्खतेतन्ति रक्खतु एतं । एकंसेनाति निप्परियायेन । ओधारिताति भासिता । 8 Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१.१८-२१) इद्धिपाटिहारियकथावण्णना अचेलो च, भन्ते, पाथिकपुत्तोति एवं एकंसेन भगवतो वाचाय ओधारिताय सचे अचेलो पाथिकपुत्तो। विरूपरूपेनाति विगतरूपेन विगच्छितसभावेन रूपेन अत्तनो रूपं पहाय अदिस्समानेन कायेन । सीहब्यग्घादिवसेन वा विविधरूपेन सम्मुखीभावं आगच्छेय्य । तदस्स भगवतो मुसाति एवं सन्ते भगवतो तं वचनं मुसा भवेय्याति मुसावादेन निग्गण्हाति । ठपेत्वा किर एतं न अओन भगवा मुसावादेन निग्गहितपुब्बोति । १८. द्वयगामिनीति सरूपेन अस्थिभावं, अत्थेन नत्थिभावन्ति एवं द्वयगामिनी । अलिकतुच्छनिष्फलवाचाय एतं अधिवचनं । . १९. अजितोपि नाम लिच्छवीनं सेनापतीति सो किर भगवतो उपट्टाको अहोसि, सो कालमकासि । अथस्स सरीरकिच्चं कत्वा मनुस्सा पाथिकपुत्तं पुच्छिंसु “कुहिं निब्बत्तो सेनापती"ति ? सो आह- "महानिरये निब्बत्तो"ति । इदञ्च पन वत्वा पुन आह "तुम्हाकं सेनापति मम सन्तिकं आगम्म अहं तुम्हाकं वचनमकत्वा समणस्स गोतमस्स वादं पतिट्ठपेत्वा निरये निब्बत्तोम्ही''ति परोदित्याति । तेनुपसङ्कमि दिवाविहारायाति एत्थ “पाटिहारियकरणत्थाया"ति कस्मा न वदति ? अभावा। सम्मुखीभावोपि हिस्स तेन सद्धिं नत्थि, कुतो पाटिहारियकरणं, तस्मा तथा अवत्वा “दिवाविहाराया"ति आह । इद्विपाटिहारियकथावण्णना २०. गहपतिनेचयिकाति गहपति महासाला। तेसहि महाधनधञ्जनिचयो, तस्मा "नेचयिका"ति वुच्चन्ति । अनेकसहस्साति सहस्सेहिपि अपरिमाणगणना । एवं महतिं किर परिसं ठपेत्वा सुनक्खत्तं अञो सन्निपातेतुं समत्थो नत्थि । तेनेव भगवा एत्तकं कालं सुनक्खत्तं गहेत्वा विचरि । २१. भयन्ति चित्तुत्रासभयं । छम्भितत्तन्ति सकलसरीरचलनं । लोमहंसोति लोमानं उद्धग्गभावो। सो किर चिन्तेसि - "अहं अतिमहन्तं कथं कथेत्वा सदेवके लोके अग्गपुग्गलेन सद्धिं पटिविरुद्धो, मय्हं खो पनब्भन्तरे अरहत्तं वा पाटिहारियकरणहेतु वा नत्थि, समणो पन गोतमो पाटिहारियं करिस्सति, अथस्स पाटिहारियं दिस्वा महाजनो 'त्वं दानि पाटिहारियं कातुं असक्कोन्तो कस्मा अत्तनो पमाणमजानित्वा लोके अग्गपुग्गलेन सद्धिं पटिमल्लो हुत्वा गज्जसी'ति कट्ठलेड्डुदण्डादीहि विहेठेस्सती"ति । तेनस्स Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (१.२२-२७) महाजनसन्निपातञ्चेव तेन भगवतो च आगमनं सुत्वा भयं वा छम्भितत्तं वा लोमहंसो वा उदपादि । सो ततो दुक्खा मुच्चितुकामो तिन्दुकखाणुकपरिब्बाजकारामं अगमासि । तमत्थं दस्सेतुं अथ खो भगवातिआदिमाह। तत्थ उपसङ्कमीति न केवलं उपसङ्कमि, उपसङ्कमित्वा पन दूर अड्डयोजनन्तरं परिब्बाजकारामं पविठ्ठो। तत्थपि चित्तस्सादं अलभमानो अन्तन्तेन आविज्झित्वा आरामपच्चन्ते एकं गहनठानं उपधारेत्वा पासाणफलके निसीदि । अथ भगवा चिन्तेसि - "सचे अयं बालो कस्सचिदेव कथं गहेत्वा इधागच्छेय्य, मा नस्सतु बालो"ति “निसिन्नपासाणफलकं तस्स सरीरे अल्लीनं होतू"ति अधिट्ठासि । सह अधिट्ठानचित्तेन तं तस्स सरीरे अल्लीयि । सो महाअदुबन्धनबद्धो विय छिन्नपादो विय च अहोसि । ___ अस्सोसीति इतो चितो च पाथिकपुत्तं परियेसमाना परिसा तस्स अनुपदं गन्त्वा निसिन्नट्ठानं ञत्वा आगतेन अञ्जतरेन पुरिसेन “तुम्हे कं परियेसथा'"ति वुत्ते पाथिकपुत्तन्ति । सो “तिन्दुकखाणुकपरिब्बाजकारामे निसिन्नोति वुत्तवचनेन अस्सोसि। २२. संसप्पतीति ओसीदति । तत्थेव सञ्चरति । पावळा वुच्चति आनिसदट्टिका | २३. पराभूतरूपोति पराजितरूपो, विनहरूपो वा । २५. गोयुगेहीति गोयुत्तेहि सतमत्तेहि वा सहस्समत्तेहि वा युगेहि । आविच्छेय्यामाति आकड्डेय्याम । छिज्जेय्युन्ति छिन्देय्युं । पाथिकपुत्तो वा बन्धट्ठाने छिज्जेय्य । २६. दारुपत्तिकन्तेवासीति दारुपत्तिकस्स अन्तेवासी । तस्स किर एतदहोसि “तिद्वतु ताव पाटिहारियं, समणो गोतमो 'अचेलो पाथिकपुत्तो आसनापि न वुट्टहिस्सती'ति आह । हन्दाहं गन्त्वा येन केनचि उपायेन तं आसना वुढापेमि। एत्तावता च समणस्स गोतमस्स पराजयो भविस्सती"ति । तस्मा एवमाह । २७. सीहस्साति चत्तारो सीहा तिणसीहो च काळसीहो च पण्डुसीहो च केसरसीहो च । तेसं चतुन्नं सीहानं केसरसीहो अग्गतं गतो, सो इधाधिप्पेतो । मिगरञोति सब्बचतुप्पदानं रञो। आसयन्ति निवासं । सीहनादन्ति अभीतनादं । गोचराय पक्कमेय्यन्ति आहारत्थाय पक्कमेय्यं । वरं वरन्ति उत्तमुत्तमं, थूलं थूलन्ति अत्थो । मुदुमंसानीति मुनि 10 Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१.२८-२८) इद्धिपाटिहारियकथावण्णना ११ मंसानि । “मधुमंसानी"तिपि पाठो, मधुरमंसानीति अत्यो। अझुपेय्यन्ति उपगच्छेय्यं । सीहनादं नदित्वाति ये दुब्बला पाणा, ते पलायन्तूति अत्तनो सूरभावसन्निस्सितेन कारु न नदित्वा। २८. विघाससंवडोति विघासेन संवड्डो, विघासं भक्खिता तिरित्तमंसं खादित्वा वड्डितो | दित्तोति दप्पितो थूलसरीरो | बलवाति बलसम्पन्नो । एतदहोसीति कस्मा अहोसि ? अस्मिमानदोसेन । तत्रायं अनुपुब्बिकथा - एकदिवसं किर सो सीहो गोचरतो निवत्तमानो तं सिङ्गालं भयेन पलायमानं दिस्वा कारुञ्जजातो हुत्वा "वयस, मा भायि, तिट्ठ को नाम त्व"न्ति आह । जम्बुको नामाहं सामीति । वयस, जम्बुक, इतो पट्ठाय मं उपट्ठातुं सक्खिस्ससीति । उपट्टहिस्सामीति । सो ततो पट्ठाय उपट्ठाति । सीहो गोचरतो आगच्छन्तो महन्तं महन्तं मंसखण्डं आहरति । सो तं खादित्वा अविदूरे पासाणपिढे वसति । सो कतिपाहच्चयेनेव थूलसरीरो महाखन्धो जातो। अथ नं सीहो अवोच- "वयस, जम्बुक, मम विजम्भनकाले अविदूरे ठत्वा 'विरोच सामी'ति वत्तुं सक्खिस्ससी'ति । सक्कोमि सामीति । सो तस्स विजम्भनकाले तथा करोति । तेन सीहस्स अतिरेको अस्मिमानो होति। ___ अथेकदिवसं जरसिङ्गालो उदकसोण्डियं पानीयं पिवन्तो अत्तनो छायं ओलोकेन्तो अद्दस अत्तनो थूलसरीरतञ्चेव महाखन्धतञ्च । दिस्वा 'जरसिङ्गालोस्मीति मनं अकत्वा "अहम्पि सीहो जातो''ति मञि । ततो अत्तनाव अत्तानं एतदवोच- "वयस, जम्बुक, युत्तं नाम तव इमिना अत्तभावेन परस्स उच्छि?मंसं खादितुं, किं त्वं पुरिसो न होसि, सीहस्सापि चत्तारो पादा द्वे दाठा द्वे कण्णा एकं नङ्गुटुं, तवपि सब तथेव, केवलं तव केसरभारमत्तमेव नत्थी'"ति। तस्सेवं चिन्तयतो अस्मिमानो वडि। अथस्स तेन अस्मिमानदोसेन एतं “को चाह"न्तिआदि मञ्जितमहोसि । तत्थ को चाहन्ति अहं को, सीहो मिगराजा को, न मे जाति, न सामिको, किमहं तस्स निपच्चकारं करोमीति अधिप्पायो । सिङ्गालकंयेवाति सिङ्गालरवमेव । भेरण्डकंयेवाति अप्पियअमनापसद्दमेव । के च छवे सिङ्गालेति को च लामको सिङ्गालो । के पन सीहनादेति को पन सीहनादो सिङ्गालस्स च सीहनादस्स च को सम्बन्धोति अधिप्पायो । सुगतापदानेसूति सुगतलक्खणेसु । सुगतस्स सासनसम्भूतासु तीसु सिक्खासु । कथं पनेस तत्थ जीवति ? एतस्स हि चत्तारो पच्चये 11 Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा ददमाना सीलादिगुणसम्पन्नानं सम्बुद्धानं देमाति देन्ति तेन एस अबुद्धो समानो बुद्धानं नियामितपच्चये परिभुञ्जन्तो सुगतापदानेसु जीवति नाम । सुगतातिरित्तानीति तेसं किर भोजनानि ददमाना बुद्धानञ्च बुद्धसावकानञ्च दत्वा पच्छा अवसेसं सायन्हसमये देन्ति । एवमेस सुगतातिरित्तानि भुञ्जति नाम । तथागतेति तथागतं अरहन्तं सम्मासम्बुद्धं आसादेतब्बं घट्टयितब्बं । अथ वा “तथागते”तिआदीनि उपयोगबहुवचनानेव | आसादेतब्बन्ति इदम्पि बहुवचनमेव एकवचनं विय वृत्तं । आसादनाति अहं बुद्धेन सद्धिं पाटिहारियं करिस्सामीति घट्टना । २९. समेक्खियानाति समेक्खित्वा, मञ्ञित्वाति अत्थो । अमञ्ञीति पुन अमञ्ञित्थ कति सिङ्गालो । ( १.२९-३६) ३०. अत्तानं विघासे समेक्खियाति सोण्डियं उच्छिट्ठोदके थूलं अत्तभावं दिस्वा । याव अत्तानं न पस्सतीति याव अहं सीहविघाससंवडितको जरसिङ्गालोति एवं यथाभूतं अत्तानं न पस्सति । ब्यग्घोति मञ्ञतीति सीहोहमस्मीति मञ्ञति, सीहेन वा समानबलो ब्यग्घोयेव अहन्ति मञ्ञति । ३१. भुत्वान भेकेति आवाटमण्डूके खादित्वा । खलमूसिकायोति खलेसु मूसिकायो च खादित्वा । कटसीसु खित्तानि च कोणपानीति सुसानेसु छड्डितकुणपानि च खादित्वा । महाबनेति महन्ते वनस्मिं । सुञ्ञवनेति तुच्छवने । विबडोति वड्ढितो । तथैव सो सिङ्गालकं अनदीति एवं संवड्डोपि मिगराजाहमस्मीति मञ्ञित्वापि यथा पुब्बे दुब्बलसिङ्गालकाले तथेव सो सिङ्गालरवंयेव अरवीति । इमायपि गाथाय भेकादीनि भुत्वा वड्ढितसिङ्गालो विय लाभसक्कारगिद्धो त्वन्ति पाथिकपुत्तमेव घट्टेसि | नागेहीति हत्थीहि । महाबन्धनाति महता किलेसबन्धना मोचेत्वा । महाविदुग्गाति महाविदुग्गं नाम चत्तारो ओघा । ततो उद्धरित्वा निब्बानथले पतिट्ठपेत्वा । अग्गञ्ञपञ्ञत्तिकथावण्णना ३६. इति "भगवा एत्तकेन कथामग्गेन पाटिहारियं न करोतीति पदस्स अनुसन्धिं दस्सेत्वा इदानि “न अग्गञ्ञ पञ्ञापेतीति इमस्स अनुसन्धिं दस्सेन्तो अग्गञ्ञञ्चाहन्ति 12 Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१.३७-४८) अग्गजपत्तिकथावण्णना देसनं आरभि । तत्थ अग्गञञ्चाहन्ति अहं, भग्गव, अग्गजञ्च पजानामि लोकुप्पत्तिचरियवंसञ्च । तञ्च पजानामीति न केवलं अग्गजमेव, तञ्च अग्गज्नं पजानामि । ततो च उत्तरितरं सीलसमाधितो पट्ठाय याव सब्ब तञाणा पजानामि | तञ्च पजानं न परामसामीति तञ्च पजानन्तोपि अहं इदं नाम पजानामीति तण्हादिट्ठिमानवसेन न परामसामि । नत्थि तथागतस्स परामासोति दीपेति । पच्चत्त व निब्बुति विदिताति अत्तनायेव अत्तनि किलेसनिब्बानं विदितं । यदभिजानं तथागतोति यं किलेसनिब्बानं जानन्तो तथागतो । नो अनयं आपज्जतीति अविदितनिब्बाना तित्थिया विय अनयं दुक्खं ब्यसनं नापज्जति । ३७. इदानि यं तं तित्थिया अग्गलं पञपेन्ति, तं दस्सेन्तो सन्ति भग्गवातिआदिमाह । तत्थ इस्सरकुत्तं ब्रह्मकुत्तन्ति इस्सरकतं ब्रह्मकतं, इस्सरनिम्मितं ब्रह्मनिम्मितन्ति अत्थो। ब्रह्मा एव हि एत्थ आधिपच्चभावेन इस्सरोति वेदितब्बो। आचरियकन्ति आचरियभावं आचरियवाद । तत्थ आचरियवादो अग्गजं । अग्गजं पन एत्थ देसितन्ति कत्वा सो अग्गजं त्वेव वुत्तो । कथं विहितकन्ति केन विहितं किन्ति विहितं । सेसं ब्रह्मजाले वित्थारितनयेनेव वेदितब्बं । ४१. खिड्डापदोसिकन्ति खिड्डापदोसिकमूलं । ४७. असताति अविज्जमानेन, असंविज्जमानतुनाति अत्थो। तुच्छाति तुच्छेन अन्तोसारविरहितेन । मुसाति मुसावादेन । अभूतेनाति भूतत्थविरहितेन । अब्भाचिक्खन्तीति अभिआचिक्खन्ति । विपरीतोति विपरीतसञो विपरीतचित्तो । भिक्खवो चाति न केवलं समणो गोतमोयेव, ये च अस्स अनुसिटैि करोन्ति, ते भिक्खू च विपरीता । अथ यं सन्धाय विपरीतोति वदन्ति, तं दस्सेतुं समणो गोतमोतिआदि वुत्तं । सुभं विमोक्खन्ति वण्णकसिणं । असुभन्त्वेवाति सुभञ्च असुभञ्च सब्बं असुभन्ति एवं पजानाति । सुभन्त्वेव तस्मिं समयेति सुभन्ति एव च तस्मिं समये पजानाति, न असुभं । भिक्खवो चाति ये ते एवं वदन्ति, तेसं भिक्खवो च अन्तेवासिकसमणा विपरीता। पहोतीति समत्थो पटिबलो। ४८. दुक्करं खोति अयं परिब्बाजको यदिदं “एवंपसन्नो अहं, भन्ते''तिआदिमाह, तं साठेय्येन कोहझेन आह । एवं किरस्स अहोसि - “समणो गोतमो मय्हं एत्तकं Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ ( १.४८-४८) धम्मकथं कथेसि, तमहं सुत्वापि पब्बजितुं न सक्कोमि, मया एतस्स सासनं पटिपन्नसदिसेन भवितुं वट्टतीति । ततो सो साठेय्येन कोहञेन एवमाह । तेनस्स भगवा मम्मं घट्टेन्तो विय " दुक्करं खो एतं, भग्गव तया अञ्ञदिट्ठिकेना' 'तिआदिमाह । तं पोट्ठपादसुत्ते वुत्तत्थमेव । साधुकमनुरक्खाति सुछु अनुरक्ख । दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा इति भगवा पसादमत्तानुरक्खणे परिब्बाजकं नियोजेसि । सोपि एवं महन्तं सुत्तन्तं सुत्वापि नासक्ख किलेसक्खयं कातुं । देसना पनस्स आयति वासनाय पच्चयो अहोसि । से सब्बत्थ उत्तानत्थमेवाति । सुमङ्गलविलासिनिया दीघनिकायंट्ठकथाय पाथिकसुत्तवण्णना निट्ठिता । 14 Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २. उदुम्बरिकसुत्तवण्णना निग्रोधपरिब्बाजकवत्थुवण्णना ४९. एवं मे सुतन्ति उदुम्बरिकसुत्तं । तत्रायमपुब्बपदवण्णना - परिब्बाजकोति छन्नपरिब्बाजको। उदुम्बरिकाय परिब्बाजकारामेति उदुम्बरिकाय देविया सन्तके परिब्बाजकारामे । सन्धानो ति तस्स नामं । अयं पन महानुभावो परिवारेत्वा विचरन्तानं पञ्चन्नं उपासकसतानं अग्गपुरिसो अनागामी भगवता महापरिसमज्झे एवं संवण्णितो "छहि, भिक्खवे, अङ्गेहि समन्नागतो सन्धानो गहपति तथागते निट्ठङ्गतो सद्धम्मे इरियति । कतमेहि छहि ? बुद्धे अवेच्चप्पसादेन धम्मे अवेच्चप्पसादेन सङ्घ अवेच्चप्पसादेन अरियेन सीलेन अरियेन आणेन अरियाय विमुत्तिया । इमेहि खो, भिक्खवे, छहि अङ्गेहि समन्नागतो सन्धानो गहपति तथागते निट्ठङ्गतो सद्धम्मे इरियती"ति (अ० नि० २.६.१२०-१३९)। सो पातोयेव उपोसथङ्गानि अधिट्ठाय पुब्बण्हसमये बुद्धप्पमुखस्स सङ्घस्स दानं दत्वा भिक्खूसु विहारं गतेसु घरे खुद्दकमहल्लकानं दारकानं सद्देन उब्बाळहो सत्थु सन्तिके "धम्मं सोस्सामी"ति निक्खन्तो । तेन वुतं दिवा दिवस्स राजगहा निक्खमीति । तत्थ दिवा दिवस्साति दिवसस्स दिवा नाम मज्झन्हातिक्कमो, तस्मिं दिवसस्सापि दिवाभूते अतिक्कन्तमत्ते मज्झन्हिके निक्खमीति अत्थो। पटिसल्लीनोति ततो ततो रूपादिगोचरतो चित्तं पटिसंहरित्वा निलीनो झानरतिसेवनावसेन एकीभावं गतो। मनोभावनीयानन्ति मनवड्डकानं । ये च आवज्जतो मनसिकरोतो चित्तं विनीवरणं होति उन्नमति वड्वति । ५०. उन्नादिनियातिआदीनि पोट्टपादसुत्ते वित्थारितनयेनेव वेदितब्बानि । Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२.५१-५३) ५१. यावताति यत्तका । अयं तेसं अञ्ञतरोति अयं तेसं अब्भन्तरो एको सावको, भगवतो किर सावका गिहिअनागामिनोयेव पञ्चसता राजगहे पटिवसन्ति । येसं एकेकस्स पञ्च पञ्च उपासकसतानि परिवारा, ते सन्धाय " अयं तेसं अञ्ञतरो ति आह । अप्पेव नामाति तस्स उपसङ्कमनं पत्थयमानो आह । पत्थनाकारणं पन पोट्टपादसुत्ते वुत्तमेव । १६ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा ५२. एतदवोचाति आगच्छन्तो अन्तरामग्गेयेव तेसं कथाय सुतत्ता एतं अञ्ञथा खो इमेतिआदिवचनं अवोच । तत्थ अञ्ञतित्थियाति दस्सनेनपि आकप्पेनपि कुत्तेनपि आचारेनपि विहारेनपि इरियापथेनपि अञ्ञे तित्थियाति अञ्ञतित्थिया । सङ्गम्म समागम्माति सङ्गन्त्वा समागन्त्वा रासि हुत्वा निसिन्नट्टाने । अरञ्ञवनपत्थानीति अरञ्ञवनपत्थानि गामूपचारतो मुत्तानि दूरसेनासनानि । पन्तानीति दूरतरानि मनुस्सूपचारविरहितानि । अप्पसद्दानीति विहारूपचारेन गच्छतो अद्धिकजनस्सपि सद्देन मन्दसद्दानि । अप्पनिग्घोसानीति अविभावितत्थेन निग्घोसेन मन्दनिग्घोसानि । विजनवातानीति अन्तोसञ्चारिनो जनस्स वातेन विगतवातानि । मनुस्सराहस्सेय्यकानीति मनुस्सानं रहस्सकरणस्स युत्तानि अनुच्छविकानि । पटिसल्लानसारुप्पानीति एकीभावस्स अनुरूपानि । इति सन्धानो गहपति " अहो मम सत्था यो एवरूपानि सेनासनानि पटिसेवती "ति अञ्जलिं पग्गय्ह उत्तमङ्गे सिरस्मिं पतिट्ठत्वा इमं उदानं उदानेन्तो निसीदि । ५३. एवं वुत्तेति एवं सन्धानेन गहपतिना उदानं उदानेन्तेन वुत्ते । निग्रोधो परिब्बाजको अयं गहपति मम सन्तिके निसिनोपि अत्तनो सत्थारंयेव थोमेति उक्कंसति, अम्हे पन अत्थीतिपि न मञ्ञति, एतस्मिं उप्पन्नकोपं समणस्स गोतमस्स उपरि पातेस्सामीति सन्धानं गहपतिं एतदवोच । यग्घेति चोदनत्थे निपातो । जानेय्यासीति बुज्झेय्यासि पस्सेय्यासि । केन समणो गोतमो सद्धिं सल्लपतीति केन कारणेन केन पुग्गलेन सद्धिं समणो गोतमो सल्लपति वदति भासति । किं वुत्तं होति - "यदि किञ्चि सल्लापकारणं भवेय्य, यदि वा कोचि समणस्स गोतमस्स सन्तिकं सल्लापत्थिको गच्छेय्य, सल्लपेय्य, न पन कारणं अत्थि, न तस्स सन्तिकं कोचि गच्छति, स्वायं केन समणो गोतमो सद्धिं सल्लपति, असल्लपन्तो कथं उन्नादी भविस्सती 'ति । साकच्छन्ति संसन्दनं । पञ्ञवेय्यत्तियन्ति उत्तरपच्चुत्तरनयेन आणब्यत्तभावं । 16 Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२.५४-५४) निग्रोधपरिब्बाजकवत्थुवण्णना सुञ्ञगारहताति सुञ्ञागारेसु नट्ठा, समणेन हि गोतमेन बोधिमूले अप्पमत्तिका पञ्ञा अधिगता, सापिस्स सुञ्ञागारेसु एककस्स निसीदतो नट्ठा। यदि पन मयं विय गणसङ्गणिकं कत्वा निसीदेय्य, नास्स पञ्ञा नस्सेय्याति दस्सेति । अपरिसावचरोति अविसारदत्ता परिसं ओतरितुं न सक्कोति । नालं सल्लापायाति न समत्थो सल्लापं कातुं । अन्तमन्तानेवाति कोचि मं पञ्हं पुच्छेय्याति पञ्हाभीतो अन्तमन्तानेव पन्तसेनासनानि सेवति । गोकाणाति एक क्खिहता काणगावी । सा किर परियन्तचारिनी होति, अन्तमन्तानेव सेवति । सा किर काणक्खिभावेन वनन्ताभिमुखीपि न सक्कोति भवितुं । कस्मा ? यस्मा पत्तेन वा साखाय वा कण्टकेन वा पहारस्सं भायति । गुन्नं अभिमुखीपि न सक्ोति भवितुं । कस्मा ? यस्मा सिङ्गेन वा कण्णेन वा वालेन वा पहारस्स भायति । इङ्घाति चोदनत्थे निपातो । संसादेय्यामाति एकपञ्हपुच्छनेनेव संसादनं विसादमापन्नं करेय्याम। तुच्छकुम्भीव नन्ति रित्तघटं विय नं । ओरोधेय्यामाति विनन्धेय्याम । पूरितघटो हि इतो चितो च परिवत्तेत्वा न सुविनन्धनीयो होति । रित्तको यथारुचि परिवत्तेत्वा सक्का होति विनन्धितुं, एवमेव हतपञ्ञताय रित्तकुम्भिसदिसं समणं गोतमं वादविनन्धनेन समन्ता विनन्धिस्सामाति वदति । इति परिब्बाजको सत्थु सुवण्णवण्णं नलाटमण्डलं अपस्सन्तो दसबलस्स परम्मुखा अत्तनो बलं दीपेन्तो असम्भिन्नं खत्तियकुमारं जातिया घट्टयन्तो चण्डालपुत्तो विय असम्भिन्नकेसरसीहं मिगराजानं थामेन घट्टेन्तो जरसिङ्गालो विय च नानप्पकारं तुच्छगज्जितं गज्जि । उपासकोपि चिन्तेसि " अयं परिब्बाजको अति विय गज्जति, अवीचिफुसनत्थाय पादं, भवग्गग्गहणत्थाय हत्थं पसारयन्तो विय निरत्थकं वायमति । स मे सत्था इमं ठानमागच्छेय्य, इमस्स परिब्बाजकस्स याव भवग्गा उस्सितं मानद्धजं ठानसोव ओपातेय्या "ति । १७ ५४. भगवापि ते तं कथासल्लापं अस्सोसियेव । तेन वुत्तं " अस्सोसि खो इमं कथासल्लाप' 'न्ति । सुमागधायाति सुमागधा नाम पोक्खरणी, यस्सा तीरे निसिन्नो अञ्ञतरो पुरिसो पदुमनाळन्तरेहि असुरभवनं पविसन्तं असुरसेनं अद्दस । मोरनिवापोति निवापो वच्चति भत्तं यत्थ मोरानं अभयेन सद्धिं निवापो दिन्नो, तं ठानन्ति अत्थो । अब्भोकासेति अङ्गणट्ठाने । अस्सासपत्ताति तुट्ठिपत्ता सोमनस्सपत्ता । अज्झासयन्ति उत्तमनिस्सयभूतं । 17 Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (२.५५-५८) आदिब्रह्मचरियन्ति पुराणब्रह्मचरियसङ्खातं अरियमग्गं । इदं वुत्तं होति- “को नाम सो, भन्ते, धम्मो येन भगवता सावका विनीता अज्झासयादिब्रह्मचरियभूतं अरियमग्गं पूरेत्वा अरहत्ताधिगमवसेन अस्सासपत्ता पटिजानन्ती"ति । तपोजिगुच्छावादवण्णना ५५. विष्पकताति ममागमनपच्चया अनिट्ठिता, व हुत्वा ठिता, कथेहि, अहमेतं निठ्ठपेत्वा मत्थकं पापेत्वा दस्सेमीति सब्ब पवारणं पवारेसि। ५६. दुजानं खोति भगवा परिब्बाजकस्स वचनं सुत्वा “अयं परिब्बाजको मया सावकानं देसेतब्बं धम्मं तेहि पूरेतब् पटिपत्तिं पुच्छति, सचस्साहं आदितोव तं कथेस्सामि, कथितम्पि नं न जानिस्सति, अयं पन वीरियेन पापजिगुच्छनवादो, हन्दाहं एतस्सेव विसये पहं पुच्छापेत्वा पुथुसमणब्राह्मणानं लद्धिया निरत्थकभावं दस्सेमि । अथ पच्छा इमं पहं ब्याकरिस्सामी''ति चिन्तेत्वा दुज्जानं खो एतन्तिआदिमाह । तत्थ सके आचरियकेति अत्तनो आचरियवादे । अधिजेगुच्छेति वीरियेन पापजिगुच्छनभावे । कथं सन्ताति कथं भूता। तपोजिगुच्छाति वीरियेन पापजिगुच्छा पापविवज्जना। परिपुण्णाति परिसुद्धा । कथं अपरिपुण्णाति कथं अपरिसुद्धा होतीति एवं पुच्छाति । यत्र हि नामाति यो नाम । ५७. अप्पसद्दे कत्वाति निरवे अप्पसद्दे कत्वा । सो किर चिन्तेसि- "समणो गोतमो एकं पहम्पि न कथेति, सल्लापकथापिस्स अतिबहुका नत्थि, इमे पन आदितो पट्ठाय समणं गोतमं अनुवत्तन्ति चेव पसंसन्ति च, हन्दाहं इमे निस्सद्दे कत्वा सयं कथेमी"ति। सो तथा अकासि । तेन वुत्तं "अप्पसद्दे कत्वा'ति । "तपोजिगुच्छवादा''तिआदीसु तपोजिगुच्छं वदाम, मनसापि तमेव सारतो गहेत्वा विचराम, कायेनपिम्हा तमेव अल्लीना, नानप्पकारकं अत्तकिलमथानुयोगमनुयुत्ता विहरामाति अत्थो। उपक्किलेसवण्णना ५८. तपस्सीति तपनिस्सितको । “अचेलको"तिआदीनि सीहनादे (दी० नि० अट्ठ० 18 Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२.५९-६०) उपक्किलेसवण्णना १.३९३) वित्थारितनयेनेव वेदितब्बानि । तपं समादियतीति अचेलकभावादिकं तपं सम्मा आदियति, दळ्हं गण्हाति। अत्तमनो होतीति को अञ्जो मया सदिसो इमस्मिं तपे अत्थीति तुट्ठमनो होति । परिपुण्णसङ्कप्पोति अलमेत्तावताति एवं परियोसितसङ्कप्पो, इदञ्च तित्थियानं वसेन आगतं । सासनावचरेनापि पन दीपेतब्बं । एकच्चो हि धुतङ्गं समादियति, सो तेनेव धुतङ्गेन को अञ्जो मया सदिसो धुतङ्गधरोति अत्तमनो होति परिपुण्णसङ्कप्पो । तपस्सिनो उपक्किलेसो होतीति दुविधस्सापेतस्स तपस्सिनो अयं उपक्किलेसो होति । एत्तावतायं तपो उपक्किलेसो होतीति वदामि । अत्तानुक्कंसेतीति “को मया सदिसो अत्थी'"ति अत्तानं उक्कंसति उक्खिपति । परं वम्भेतीति “अयं न मादिसो"ति परं संहारेति अवक्खिपति । मज्जतीति मानमदकरणेन मज्जति । मुच्छतीति मुच्छितो होति गधितो अज्झापन्नो । पमादमापज्जतीति एतदेव सारन्ति पमादमापज्जति । सासने पब्बजितोपि धुतङ्गसुद्धिको होति, न कम्मट्ठानसुद्धिको । धुतङ्गमेव अरहत्तं विय सारतो पच्चेति । ५९. लाभसक्कारसिलोकन्ति एत्थ चत्तारो पच्चया लब्भन्तीति लाभा, तेयेव सुट्ट कत्वा पटिसङ्खरित्वा लद्धा सक्कारो, वण्णभणनं सिलोको। अभिनिब्बत्तेतीति अचेलकादिभावं तेरसधुतङ्गसमादानं वा निस्साय महालाभो उप्पज्जति, तस्मा "अभिनिब्बत्तेती"ति वुत्तो। सेसमेत्थ पुरिमवारनयेनेव दुविधस्सापि तपस्सिनो वसेन वेदितब्बं । ६०. वोदासं आपज्जतीति द्वेभागं आपज्जति, द्वे भागे करोति । खमतीति रुच्चति । नक्खमतीति न रुच्चति । सापेक्खो पजहतीति सतण्हो पजहति । कथं ? पातोव खीरभत्तं भुत्तो होति । अथस्स मंसभोजनं उपनेति । तस्स एवं होति “इदानि एवरूपं कदा लभिस्साम, सचे जानेय्याम, पातोव खीरभत्तं न भुजेय्याम, किं मया सक्का कातुं, गच्छ भो, त्वमेव भुञ्जा'"ति जीवितं परिच्चजन्तो विय सापेक्खो पजहति । गघितोति गेधजातो । मुच्छितोति बलवतण्हाय मुच्छितो संमुट्ठस्सती हुत्वा। अज्झापन्नोति आमिसे अतिलग्गो, “भुञ्जिस्सथ, आवुसो"ति धम्मनिमन्तनमत्तम्पि अकत्वा महन्ते महन्ते कबळे करोति । अनादीनवदस्सावीतिआदीनवमत्तम्पि न पस्सति । अनिस्सरणपोति इध 19 Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (२.६१-६२) मत्त तानिस्सरणपच्चवेक्षणपरिभोगमत्तम्पि न करोति । लाभसक्कारसिलोकनिकन्तिहेतूति लाभादीसु तण्हाहेतु । ६१. संभक्खेतीति संखादति । असनिविचक्कन्ति विचक्कसण्ठाना असनियेव । इदं वुत्तं होति “असनिविचक्कं इमस्स दन्तकूटं मूलबीजादीसु न किञ्चि न संभुञ्जति । अथ च पन नं समणप्पवादेन समणोति सञ्जानन्ती"ति । एवं अपसादेति अवक्खिपति | इदं तिथियवसेन आगतं । भिक्खुवसेन पनेत्थ अयं योजना, अत्तना धुतङ्गधरो होति, सो अखं एवं अपसादेति “किं समणा नाम इमे समणम्हाति वदन्ति, धुतङ्गमत्तम्पि नत्थि, उद्देसभत्तादीनि परियेसन्ता पच्चयबाहुल्लिका विचरन्तीति । लूखाजीविन्ति अचेलकादिवसेन वा धुतङ्गवसेन वा लूखाजीविं। इस्सामछरियन्ति परस्स सक्कारादिसम्पत्तिखीयनलक्खणं इस्सं, सक्कारादिकरणअक्खमनलक्खणं मच्छरियञ्च । ६२. आपाथकनिसादी होतीति मनुस्सानं आपाथे दस्सनट्ठाने निसीदति । यत्थ ते पस्सन्ति, तत्थ ठितो वग्गुलिवतं चरति, पञ्चातपं तप्पति, एकपादेन तिट्ठति, सूरियं नमस्सति । सासने पब्बजितोपि समादिन्नधुतङ्गो सब्बरत्तिं सयित्वा मनुस्सानं चक्खुपथे तपं करोति, महासायन्हेयेव चीवरकुटिं करोति, सूरिये उग्गते पटिसंहरति, मनुस्सानं आगतभावं अत्वा घण्डिं पहरित्वा चीवरं मत्थके ठपेत्वा चङ्कमं ओतरति, सम्मुञ्जनिं गहेत्वा विहारङ्गणं सम्मज्जति । अत्तानन्ति अत्तनो गुणं अदस्सयमानोति एत्थ अ-कारो निपातमत्तं, दस्सयमानोति अत्थो । इदम्पि मे तपस्मिन्ति इदम्पि कम्मं ममेव तपस्मिं, पच्चत्ते वा भुम्मं, इदम्पि मम तपोति अत्थो । सो हि असुकस्मिं ठाने अचेलको अस्थि मुत्ताचारोतिआदीनि सुत्वा अम्हाकं एस तपो, अम्हाकं सो अन्तेवासिकोतिआदीनि भणति । असुकस्मिं वा पन ठाने पंसुकूलिको भिक्खु अत्थीतिआदीनि सुत्वा अम्हाकं एस तपो, अम्हाकं सो अन्तेवासिकोतिआदीनि भणति । किञ्चिदेवाति किञ्चि वज्जं दिद्विगतं वा। पटिच्छन्नं सेवतीति यथा अञ्चे न जानन्ति, एवं सेवति । अक्खममानं आह खमतीति अरुच्चमानंयेव रुच्चति मेति वदति । अत्तना कतं अतिमहन्तम्पि वज्जं अप्पमत्तकं कत्वा पञपेति, परेन कतं दुक्कटमत्तं वीतिक्कमम्पि पाराजिकसदिसं कत्वा दस्सेति । अनुज्ञेय्यन्ति अनुजानितब् अनुमोदितब्बं । 20 . Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२.६३-६९) परिसुद्धपपटिकप्पत्तकथावण्णना ६३. कोधनो होति उपनाहीति कुज्झनलक्खणेन कोधेन, वेरअप्पटिनिस्सग्गलक्खणेन उपनाहेन च समन्नागतो। मक्खी होति पळासीति परगुणमक्खनलक्खणेन मक्खेन, युगग्गाहलक्खणेन पळासेन च समन्नागतो । ___ इस्सुकी होति मच्छरीति परसक्कारादीसु उसूयनलक्खणाय इस्साय, आवासकुललाभवण्णधम्मेसु मच्छरायनलक्खणेन पञ्चविधमच्छेरेन च समन्नागतो होति । सठो होति मायावीति केराटिकलक्खणेन साठेय्येन, कतप्पटिच्छादनलक्खणाय मायाय च समन्नागतो होति । थद्धो होति अतिमानीति निस्सिनेहनिक्करुणथद्धलक्खणेन थम्भेन, अतिक्कमित्वा मञनलक्खणेन अतिमानेन च समन्नागतो होति । पापिच्छो होतीति असन्तसम्भावनपत्थनलक्खणाय पापिच्छताय समन्नागतो होति । पापिकानन्ति तासंयेव लामकानं इच्छानं वसं गतो। मिच्छादिट्ठिकोति नत्थि दिन्नन्तिआदिनयप्पवत्ताय अयाथावदिट्ठिया उपेतो। अन्तग्गाहिकायाति सायेव दिट्ठि उच्छेदन्तस्स गहितत्ता "अन्तग्गाहिका"ति वुच्चति, ताय समन्नागतोति अत्थो । सन्दिट्ठिपरामासीतिआदीसु सयं दिट्टि सन्दिट्ठि, सन्दिट्ठिमेव परामसति गहेत्वा वदतीति सन्दिट्ठिपरामासी। आधानं वुच्चति दळ्हं सुट्ट ठपितं, तथा कत्वा गण्हातीति आधानग्गाही। अरिट्ठो विय न सक्का होति पटिनिस्सज्जापेतुन्ति दुप्पटिनिस्सग्गी। यदिमेति यदि इमे । परिसुद्धपपटिकप्पत्तकथावण्णना ६४. इध, निग्रोध, तपस्सीति एवं भगवा अञतिथियेहि गहितलद्धिं तेसं रक्खितं तपं सब्बमेव संकिलिट्ठन्ति उपक्किलेसपाळिं दस्सेत्वा इदानि परिसुद्धपाळिदस्सनत्यं देसनमारभन्तो इध, निग्रोधातिआदिमाह । तत्थ "न अत्तमनोतिआदीनि वुत्तविपक्खवसेनेव वेदितब्बानि । सब्बवारेसु च लूखतपस्सिनो चेव धुतङ्गधरस्स च वसेन योजना वेदितब्बा । एवं सो तस्मिं ठाने परिसुद्धो होतीति एवं सो तेन न अत्तमनता न परिपुण्णसङ्कप्पभावसङ्खातेन कारणेन परिसुद्धो निरुपक्किलेसो होति, उत्तरि वायममानो कम्मट्ठानसुद्धिको हुत्वा अरहत्तं पापुणाति । इमिना नयेन सब्बवारेसु अत्थो वेदितब्बो । ६९. अद्धा खो, भन्तेति भन्ते एवं सन्ते एकंसेनेव वीरियेन पापजिगुच्छनवादो परिसुद्धो होतीति अनुजानाति । इतो परञ्च अग्गभावं वा सारभावं वा अजानन्तो अग्गप्पत्ता सारप्पत्ता चाति आह । अथस्स भगवा सारप्पत्तभावं पटिसेधेन्तो न खो 21 Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (२.७०-७४) निग्रोधातिआदिमाह। पपटिकप्पत्ता होतीति सारवतो रुक्खस्स सारं फेग्गुं तचञ्च अतिक्कम्म बहिपपटिकसदिसा होतीति दस्सेति । परिसुद्धतचप्पत्तादिकथावण्णना ७०. अग्गं पापेतूति देसनावसेन अग्गं पापेत्वा देसेतु, सारं पापेत्वा देसेतुति दसबलं याचति । चातुयामसंवरसंवुतोति चतुबिधेन संवरेन पिहितो। न पाणं अतिपातेतीति पाणं न हनति । न भावितमासीसतीति भावितं नाम तेसं सजाय पञ्च कामगुणा, ते न आसीसति न सेवतीति अत्थो । अदुं चस्स होतीति एतञ्चस्स इदानि वुच्चमानं “सो अभिहरती"तिआदिलक्खणं । तपस्सितायाति तपस्सिभावेन होति । तत्थ सो अभिहरतीति सो तं सीलं अभिहरति, उपरूपरि वड्डेति। सीलं मे परिपुण्णं, तपो आरद्धो, अलमेत्तावताति न वीरियं विस्सज्जेति। नो हीनायावत्ततीति हीनाय गिहिभावत्थाय न आवत्तति । सीलतो उत्तरि विसेसाधिगमत्थाय वीरियं करोतियेव, एवं करोन्तो सो विवित्तं सेनासनं भजति । "अरञ"न्तिआदीनि सामञफले (दी० नि० अट्ठ० १.२१६) वित्थारितानेव । "मेत्तासहगतेना''तिआदीनि विसुद्धिमग्गे वण्णितानि । तचप्पत्ताति पपटिकतो अब्भन्तरं तचं पत्ता । फेग्गुप्पत्ताति तचतो अब्भन्तरं फेगुं पत्ता, फेग्गुसदिसा होतीति अत्थो । ७४. “एत्तावता, खो निग्रोध, तपोजिगुच्छा अग्गप्पत्ता च होति सारप्पत्ता चाति इदं भगवा तित्थियानं वसेनाह । तित्थियानहि लाभसक्कारो रुक्खस्स साखापलाससदिसो | पञ्चसीलमत्तकं पपटिकसदिसं। अट्ठसमापत्तिमत्तं तचसदिसं। पुब्बेनिवाससाणावसाना अभिज्ञा फेग्गुसदिसा। दिब्बचक्खं पनेते अरहत्तन्ति गहेत्वा विचरन्ति । तेन नेसं तं रुक्खस्स सारसदिसं| सासने पन लाभसक्कारो साखापलाससदिसो। सीलसम्पदा पपटिकसदिसा। झानसमापत्तियो तचसदिसा। लोकियाभिचा फेग्गुसदिसा। मग्गफलं सारो । इति भगवता अत्तनो सासनं ओनतविनतफलभारभरितरुक्खूपमाय उपमितं । सो देसनाकुसलताय ततो तचसारसम्पत्तितो मम सासनं उत्तरितरञ्चेव पणीततरञ्च, तं तुवं कदा जानिस्ससीति अत्तनोदेसनाय विसेसभावं दस्सेतुं “इति खो निग्रोधा"ति देसनं आरभि । ते परिब्बाजकाति ते तस्स परिवारा तिंससतसङ्ख्या परिब्बाजका | एत्थ मयं अनस्सामाति एत्थ अचेलकपाळिआदीसु, इदं वुत्तं होति “अम्हाकं अचेलकपाळिमत्तम्पि 22 Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२.७५-७६) निग्रोधस्सपज्झायनवण्णना नत्थि, कुतो परिसुद्धपाळि । अम्हाकं परिसुद्धपाळिमत्तम्पि नत्थि, कुतो चातुयामसंवरादीनि । चातुयामसंवरोपि नत्थि, कुतो अरञवासादीनि । अरञवासोपि नत्थि, कुतो नीवरणप्पहानादीनि । नीवरणप्पहानम्पि नस्थि, कुतो ब्रह्मविहारादीनि । ब्रह्मविहारमत्तम्पि नत्थि, कुतो पुब्बेनिवासादीनि । पुब्बेनिवासञाणमत्तम्पि नत्थि, कुतो अम्हाकं दिब्बचक्खु । एत्थ मयं सआचरियका नट्ठा'ति । इतो भिय्यो उत्तरितरन्ति इतो दिब्बचक्खुजाणाधिगमतो भिय्यो अझं उत्तरितरं विसेसाधिगमं मयं सुतिवसेनापि न जानामाति वदन्ति । निग्रोधस्सपज्झायनवण्णना ७५. अथ निग्रोधं परिब्बाजकन्ति एवं किरस्स अहोसि “इमे परिब्बाजका इदानि भगवतो भासितं सुस्सूसन्ति, इमिना च निग्रोधेन भगवतो परम्मुखा कक्खळं दुरासदवचनं वुत्तं, इदानि अयम्पि सोतुकामो जातो, कालो दानि मे इमस्स मानद्धजं निपातेत्वा भगवतो सासनं उक्खिपितु"न्ति । अथ निग्रोधं परिब्बाजकं एतदवोच । अपरम्पिस्स अहोसि "अयं मयि अकधेन्ते सत्थारं न खमापेस्सति, तदस्स अनागते अहिताय दुक्खाय संवत्तिस्सति, मया पन कथिते खमापेस्सति, तदस्स भविस्सति दीघरत्तं हिताय सुखाया''ति । अथ निग्रोधं परिब्बाजकं एतदवोच । अपरिसावचरं पन नं करोथाति एत्थ पनाति निपातो, अथ नं अपरिसावचरं करोथाति अत्थो । “अपरिसावचरेत''न्तिपि पाठो, अपरिसावचरं वा एतं करोथ, गोकाणादीनं वा अञतरन्ति अत्थो। गोकाणन्ति एत्थापि गोकाणं परियन्तचारिनिं विय करोथाति अत्थो । तुण्हीभूतोति तुण्हीभावं उपगतो । मभूतोति नित्तेजतं आपन्नो । पत्तक्खन्धोति ओनतगीवो। अधोमुखोति हेट्ठामुखो। ____७६. बुद्धो सो भगवा बोधायाति सयं बुद्धो सत्तानम्पि चतुसच्चबोधत्थाय धम्म देसेति । दन्तोति चक्खुतोपि दन्तो...पे०... मनतोपि दन्तो। दमथायाति अ सम्पि दमनत्थाय एव, न वादत्थाय । सन्तोति रागसन्तताय सन्तो, दोसमोहसन्तताय सब्ब अकुसलसब्बाभिसङ्घारसन्तताय सन्तो। समथायाति महाजनस्स रागादिसमनत्थाय धम्म देसेति । तिण्णोति चत्तारो ओघे तिण्णो। तरणायाति महाजनस्स ओघनित्थरणत्थाय । परिनिब्बुतोति किलेसपरिनिब्बानेन परिनिब्बुतो। परिनिब्बानायाति महाजनस्सापि सब्बकिलेसपरिनिब्बानत्थाय धम्मं देसेति । Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (२.७७-७९) ब्रह्मचरियपरियोसानादिवण्णना ७७. अच्चयोतिआदीनि सामञ्चफले (दी० नि० अट्ठ० १.२५०) वुत्तानि । उजुजातिकोति कायवादिविरहितो उजुसभावो। अहमनुसासामीति अहं तादिसं पुग्गलं अनुसासामि, धम्मं अस्स देसेमि । सत्ताहन्ति सत्तदिवसानि, इदं सबम्पि भगवा दन्धपक्षं पुग्गलं सन्धायाह असठो पन अमायावी उजुजातिको तंमुहुत्तेनेव अरहत्तं पत्तुं सक्खिस्सति । इति भगवा "असठ"न्तिआदिवचनेन सठो हि वङ्कवतो, मयापि न सक्का अनुसासितून्ति दीपेन्तो परिब्बाजकं पादेसु गहेत्वा महामेरुपादतले विय खिपित्य । कस्मा ? अयहि अतिसठो, कुटिलचित्तो सत्थरि एवं कथेन्तेपि बुद्धधम्मसङ्घसु नाधिमुच्चति, अधिमुच्चनत्थाय सोतं न ओदहति, कोहजे ठितो सत्थारं खमापेति। तस्मा भगवा तस्सज्झासयं विदित्वा “एतु विजू पुरिसो असठो"तिआदिमाह । सठं पनाहं अनुसासितुं न सक्कोमीति । ७८. अन्तेवासिकम्यताति अन्तेवासिकम्यताय, अम्हे अन्तेवासिके इच्छन्तो । एवमाहाति “एतु वि पुरिसो''तिआदिमाह । यो एव वो आचरियोति यो एव तुम्हाकं पकतिया आचरियो। उद्देसा नो चावेतुकामोति अत्तनो अनुसासनिं गाहापेत्वा अम्हे अम्हाकं उद्देसतो चावेतुकामो । सो एव वो उद्देसो होतूति यो तुम्हाकं पकतिया उद्देसो, सो तुम्हाकंयेव होतु, न मयं तुम्हाकं उद्देसेन अस्थिका। आजीवाति आजीवतो । अकुसलसङ्घाताति अकुसलाति कोट्ठासं पत्ता। अकुसला धम्माति द्वादस अकुसलचित्तुप्पादधम्मा तण्हायेव वा विसेसेन । सा हि पुनब्भवकरणतो “पोनोब्भविका"ति वुत्ता। सदरथाति किलेसदरथसम्पयुत्ता । जातिजरामरणियाति जातिजरामरणानं पच्चयभूता । संकिलेसिका धम्माति द्वादस अकुसलचित्तुप्पादा । वोदानियाति, समथविपस्सना धम्मा । ते हि सत्ते वोदापेन्ति, तस्मा “वोदानिया'ति वुच्चन्ति। पापारिपूरिन्ति मग्गपञापारिपूरिं। वेपुल्लत्तञ्चाति फलपञ्जावेपुल्लतं, उभोपि वा एतानि अञ्चमञवेवचनानेव । इदं वुत्तं होति "ततो तुम्हे मग्गपञञ्चेव फलपञञ्च दिढेव धम्मे सयं अभिज्ञा सच्छिकत्वा उपसम्पज्ज विहरिस्सथा''ति । एवं भगवा परिब्बाजके आरब्भ अत्तनो ओवादानुसासनिया फलं दस्सेन्तो अरहत्तनिकूटेन देसनं निट्ठपेसि । ७९. यथा तं मारेनाति यथा मारेन परियुट्टितचित्ता निसीदन्ति एवमेव तुण्हीभूता...पे०... अप्पटिभाना निसिन्ना । 24 Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२.७९-७९) ब्रह्मचरियपरियोसानादिवण्णना मारो किर सत्था अतिविय गज्जन्तो बुद्धबलं दीपेत्वा इमेसं परिब्बाजानं धम्मं देसेति, कदाचि धम्माभिसमयो भवेय्य, हन्दाहं परियुट्ठामीति सो तेसं चित्तानि परियुट्ठासि । अप्पहीनविपल्लासानञ्हि चित्तं मारस्स यथाकामकरणीयं होति । तेपि मारेन परियुट्ठितचित्ता थद्धङ्गपच्चङ्गा विय तुम्ही अप्पटिभाना निसीदिंसु । अथ सत्था इमे परिब्बाजका अतिविय निरवा हुत्वा निसिन्ना, किं नु खोति आवज्जन्तो मारेन परियुट्ठितभावं अञ्ञासि । सचे पन तेसं मग्गफलुप्पत्तिहेतु भवेय्य, मारं पटिबाहित्वापि भगवा धम्मं देसेय्य, सो पन तेसं नत्थि । “सब्बेपि मे तुच्छपुरिसा "ति अञ्ञसि । तेन वुत्तं "अथ खो भगवतो एतदहोसि सब्बेपि मे मोघपुरिसा "तिआदि । तत्थ फुट्ठा पापिमताति पापिमता मारेन फुट्ठा । यत्र हि नामाति येसु नाम । अञ्ञाणत्थम्पीति जाननत्थम्पि । किं करिस्सति सत्ताहोति समणेन गोतमेन परिच्छिन्नसत्ताहो अम्हाकं किं करिस्सति । इदं वुत्तं होति " समणेन गोतमेन 'सयं अभिज्ञा सच्छिकत्वा उपसम्पज्ज विहरिस्सति सत्ताहन्ति वृत्तं, सो सत्ताहो अम्हाकं किं अप्फासुकं करिस्सति । हन्द मयं सत्ताहब्भन्तरे एतं धम्मं सच्छिकातुं सक्का, न सक्काति अञ्ञाणत्थम्पि ब्रह्मचरियं चरिस्सामा ''ति । अथ वा जानाम तावस्स धम्मन्ति एकदिवसे एकवारं अञ्ञाणत्थम्पि एतेसं चित्तं नुप्पन्नं, सत्ताहो पन एतेसं कुसीतानं किं करिस्सति, किं सक्खिस्सन्ति ते सत्ताहं पूरेतुन्ति अयमेत्थ अधिप्पायो । सीहनादन्ति परवादभिन्दनं सकवादसमुस्सापनञ्च अभीतनादं नदित्वा । पच्चुपट्ठासीति पतिट्ठितो । तावदेवाति तस्मिञ्ञेव खणे । राजगहं पाविसीति राजगहमेव पविट्ठो । तेसं पन परिब्बाजकानं किञ्चापि इदं सुत्तन्तं सुत्वा विसेसो न निब्बत्तो, आयति पन नेसं वासनाय पच्चयो भविस्सतीति । सेसं सब्बत्थ उत्तानमेवाति । सुमङ्गलविलासिनिया दीघनिकायट्ठकथाय उदुम्बरिकत्तवण्णना निट्ठिता । २५ 25 Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३. चक्कवत्तिसुत्तवण्णना अत्तदीपसरणतावण्णना ८०. एवं मे सुतन्ति चक्कवत्तिसुत्तं । तत्रायमनुत्तानपदवण्णना- मातुलायन्ति एवंनामके नगरे । तं नगरं गोचरगामं कत्वा अविदूरे वनसण्डे विहरति । “तत्र खो भगवा भिक्खू आमन्तेसी''ति एत्थ अयमनुपुब्बिकथा - भगवा किर इमस्स सुत्तस्स समुट्ठानसमये पच्चूसकाले महाकरुणासमापत्तितो वुट्टाय लोकं वोलोकेन्तो इमाय अनागतवंसदीपिकाय सुत्तन्तकथाय मातुलनगरवासीनं चतुरासीतिया पाणसहस्सानं धम्माभिसमयं दिस्वा पातोव वीसतिभिक्खुसहस्सपरिवारो मातुलनगरं सम्पत्तो। मातुलनगरवासिनो खत्तिया “भगवा आगतो"ति सुत्वा पच्चुग्गम्म दसबलं निमन्तेत्वा महासक्कारेन नगरं पवेसेत्वा निसज्जट्टानं संविधाय भगवन्तं महारहे पल्लङ्के निसीदापेत्वा बुद्धप्पमुखस्स भिक्खुसङ्घस्स महादानं अदंसु । भगवा भत्तकिच्चं निट्ठापेत्वा चिन्तेसि - “सचाहं इमस्मिं ठाने इमेसं मनुस्सानं धम्मं देसेस्सामि, अयं पदेसो सम्बाधो, मनुस्सानं ठातुं वा निसीदितुं वा ओकासो न भविस्सति, महता खो पन समागमेन भवितब्ब"न्ति । ___ अथ राजकुलानं भत्तानुमोदनं अकत्वाव पत्तं गहेत्वा नगरतो निक्खमि । मनुस्सा चिन्तयिंसु- “सत्था अम्हाकं अनुमोदनम्पि अकत्वा गच्छति, अद्धा भत्तग्गं अमनापं अहोसि, बुद्धानं नाम न सक्का चित्तं गहेतुं, बुद्धेहि सद्धिं विस्सासकरणं नाम समुस्सितफणं आसीविसं गीवाय गहणसदिसं होति; एथ भो, तथागतं खमापेस्सामा"ति । सकलनगरवासिनो भगवता सहेव निक्खन्ता। भगवा गच्छन्तोव मगधक्खेत्ते ठितं साखाविटपसम्पन्नं सन्दच्छायं करीसमत्तभूमिपत्थटं एकं मातुलरुक्खं दिस्वा इमस्मिं 26 Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३.८०-८०) अत्तदीपसरणतावण्णना २७ रुक्खमूले निसीदित्वा धम्मे देसियमाने "महाजनस्स ठाननिसज्जनोकासो भविस्सती"ति । निवत्तित्वा मग्गा ओक्कम्म रुक्खमूलं उपसङ्कमित्वा धम्मभण्डागारिकं आनन्दत्थेरं ओलोकेसि । थेरो ओलोकितसञ्जाय एव "सत्था निसीदितुकामो"ति ञत्वा सुगतमहाचीवरं पञपेत्वा अदासि । निसीदि भगवा पञ्जत्ते आसने । अथस्स पुरतो मनुस्सा निसीदिंसु । उभोसु पस्सेसु पच्छतो च भिक्खुसङ्घो, आकासे देवता अटुंसु, एवं महापरिसमज्झगतो तत्र खो भगवा भिक्खू आमन्तेसि ।। ते भिक्खूति तत्र उपविठ्ठा धम्मप्पटिग्गाहका भिक्खू । अत्तदीपाति अत्तानं दीपं ताणं लेणं गतिं परायणं पतिद्वं कत्वा विहरथाति अत्थो । अत्तसरणाति इदं तस्सेव वेवचनं । अनञसरणाति इदं अञसरणपटिक्खेपवचनं । न हि अञो अञस्स सरणं होति, अञस्स वायामेन अञस्स असुज्झनतो । वुत्तम्पि चेतं “अत्ता हि अत्तनो नाथो, को हि नाथो परो सिया"ति (ध० प० १६०)। तेनाह “अनञ्जसरणा'ति । को पनेत्थ अत्ता नाम, लोकियलोकुत्तरो धम्मो । तेनाह- "धम्मदीपा धम्मसरणा अनञसरणा"ति । “काये कायानुपस्सी'"तिआदीनि महासतिपट्ठाने वित्थारितानि । गोचरेति चरितुं युत्तट्ठाने । सकेति अत्तनो सन्तके। पेत्तिके विसयेति पितितो आगतविसये । चरतन्ति चरन्तानं । “चरन्तं" तिपि पाठो, अयमेवत्थो। न लच्छतीति न लभिस्सति न पस्सिस्सति । मारोति देवपुत्तमारोपि, मच्चुमारोपि, किलेसमारोपि । ओतारन्ति रन्धं छिदं विवरं । अयं पनत्थो लेड्डुट्ठानतो निक्खम्म तोरणे निसीदित्वा बालातपं तपन्तं लापं सकुणं गहेत्वा । पक्खन्दसेनसकुणवत्थुना दीपेतब्बो । वुत्त हेतं - "भूतपुब्बं, भिक्खवे, सकुणग्घि लापं सकुणं सहसा अज्झप्पत्ता अग्गहेसि । अथ खो, भिक्खवे, लापो सकुणो सकुणग्घिया हरियमानो एवं परिदेवसि 'मयमेवम्ह अलक्खिका, मयं अप्पपुआ, ये मयं अगोचरे चरिम्ह परविसये, सचेज्ज मयं गोचरे चरेय्याम सके पेत्तिके विसये, न म्यायं सकुणग्धि अलं अभविस्स यदिदं युद्धाया'ति । को पन ते लाप गोचरो सको पेत्तिको विसयोति ? यदिदं नङ्गलकट्ठकरणं लेड्डट्ठानन्ति । अथ खो, भिक्खवे, सकुणग्धि सके बले अपत्थद्धा सके बले असंवदमाना लापं सकुणं पमुञ्चि गच्छ खो त्वं लाप, तत्रपि गन्त्वा न मोक्खसीति । Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (३.८०-८०) अथ खो, भिक्खवे, लापो सकुणो नङ्गलकट्ठकरणं लेड्डुवानं गन्त्वा महन्तं लेड्डु अभिरुहित्वा सकुणग्धिं वदमानो अट्ठासि “एहि खो दानि मे सकुणग्धि, एहि खो दानि मे सकुणग्घी"ति । अथ खो सा, भिक्खवे, सकुणग्घि सके बले अपत्थद्धा सके बले असंवदमाना उभो पक्खे सन्नय्ह लापं सकुणं सहसा अज्झप्पत्ता । यदा खो, भिक्खवे, अञासि लापो सकुणो बहुआगता खो म्यायं सकुणग्घीति, अथ खो तस्सेव लेड्डस्स अन्तरं पच्चुपादि । अथ खो, भिक्खवे, सकुणग्घि तत्थेव उरं पच्चताळेसि । एवहि तं, भिक्खवे, होति यो अगोचरे चरति परविसये। तस्मातिह, भिक्खवे, मा अगोचरे चरित्थ परविसये, अगोचरे, भिक्खवे, चरतं परविसये लच्छति मारो ओतारं, लच्छति मारो आरम्मणं | को च, भिक्खवे, भिक्खुनो अगोचरो परविसयो, यदिदं पञ्च कामगुणा। कतमे पञ्च ? चक्खुवि य्या रूपा इट्ठा कन्ता मनापा पियरूपा कामूपसंहिता रजनीया, सोतविद्येय्या सद्दा इट्ठा कन्ता मनापा पियरूपा कामूपसंहिता रजनीया, घानविनेय्या गन्धा इट्ठा कन्ता मनापा पियरूपा कामूपसंहिता रजनीया, जिव्हाविद्येय्या रसा इट्ठा कन्ता मनापा पियरूपा कामूपसंहिता रजनीया, कायविज्ञेय्या फोटुब्बा इट्ठा कन्ता मनापा पियरूपा कामूपसंहिता रजनीया । अयं, भिक्खवे, भिक्खुनो अगोचरो परविसयो । गोचरे, भिक्खवे, चरथ...पे०... न लच्छति मारो आरम्मणं। को च, भिक्खवे, भिक्खुनो गोचरो सको पेत्तिको विसयो, यदिदं चत्तारो सतिपट्ठाना । कतमे चत्तारो ? इध भिक्खवे, भिक्खु काये कायानुपस्सी विहरति आतापी सम्पजानो सतिमा, विनेय्य लोके अभिज्झादोमनस्सं; वेदनासु वेदनानुपस्सी विहरति आतापी सम्पजानो सतिमा, विनेय्य लोके अभिज्झादोमनस्सं; चित्ते चित्तानुपस्सी विहरति आतापी सम्पजानो सतिमा, विनेय्य लोके अभिज्झादोमनस्सं; धम्मेसु धम्मानुपस्सी विहरति आतापी सम्पजानो सतिमा, विनेय्य लोके अभिज्झादोमनस्संअयं, भिक्खवे, भिक्खुनो गोचरो सको पेत्तिको विसयोति (सं० नि० ३.५.३७१)। कुसलानन्ति अनवज्जलक्खणानं । समादानहेतूति समादाय वत्तनहेतु । एवमिदं पुलं 28 Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३.८१-८३) दळहनेमिचक्कवत्तिराजकथावण्णना पवहृतीति एवं इदं लोकियलोकुत्तरं पुअफलं वडति, पुञफलन्ति च उपरूपरि पुञ्जम्पि पुञविपाकोपि वेदितब्बो। दळ्हनेमिचक्कवत्तिराजकथावण्णना ८१. तत्थ दुविधं कुसलं वट्टगामी च विवट्टगामी च। तत्थ वट्टगामिकुसलं नाम मातापितूनं पुत्तधीतासु पुत्तधीतानञ्च मातापितूसु सिनेहवसेन मुदुमद्दवचित्तं । विवट्टगामिकुसलं नाम “चत्तारो सतिपट्ठानातिआदिभेदा सत्ततिंस बोधिपक्खियधम्मा ।तेसु वट्टगामिपुञस्स परियोसानं मनुस्सलोके चक्कवत्तिसिरीविभवो। विवट्टगामिकुसलस्स मग्गफलनिब्बानसम्पत्ति । तत्थ विवट्टगामिकुसलस्स विपाकं सुत्तपरियोसाने दस्सेस्सति । इध पन वट्टगामिकुसलस्स विपाकदस्सनत्थं, भिक्खवे, यदा पुत्तधीतरो मातापितूनं ओवादे न असु, तदा आयुनापि वण्णेनापि इस्सरियेनापि परिहायिंसु । यदा पन अटुंसु, तदा वढिसूति वत्वा वट्टगामिकुसलानुसन्धिवसेन “भूतपुर, भिक्खवे"ति देसनं आरभि । तत्थ चक्कवत्तीतिआदीनि महापदाने (दी० नि० अट्ठ० २.३३) वित्थारितानेव । ८२. ओसक्कितन्ति ईसकम्पि अवसक्कितं । ठाना चुतन्ति सब्बसो ठाना अपगतं । तं किर चक्करतनं अन्तेपुरद्वारे अक्खाहतं विय वेहासं अट्ठासि । अथस्स उभोसु पस्सेसु द्वे खदिरत्थम्भे निखणित्वा चक्करतनमत्थके नेमिअभिमुखं एकं सुत्तकं बन्धिंसु । अधोभागेपि नेमिअभिमुखं एकं बन्धिंसु । तेसु उपरिमसुत्ततो अप्पमत्तकम्पि ओगतं चक्करतनं ओसक्कितं नाम होति, हेट्टा सुत्तस्स ठानं उपरिमकोटिया अतिक्कन्तगतं ठाना चुतं नाम होति, तदेतं अतिबलवदोसे सति एवं होति । सुत्तमत्तम्पि एकङ्गुलद्वङ्गुलमत्तं वा भट्ट ठाना चुतमेव होति । तं सन्धायेतं वुत्तं “ओसक्कितं ठाना चुत''न्ति । ' अथ मे आरोचेय्यासीति तात, त्वं अज्ज आदि कत्वा दिवसस्स तिक्खत्तुं चक्करतनस्स उपट्ठानं गच्छ, एवं गच्छन्तो यदा चक्करतनं ईसकम्पि ओसक्कितं ठाना चुतं पस्ससि, अथ मय्हं आचिक्खेय्यासि । जीवितहि मे तव हत्थे निक्खित्तन्ति । अद्दसाति अप्पमत्तो दिवसस्स तिक्खत्तुं गन्त्वा ओलोकेन्तो एकदिवसं अद्दस । ८३. अथ खो, भिक्खवेति भिक्खवे, अथ राजा दळ्हनेमि "चक्करतनं Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा ओसक्कित ''न्ति सुत्वा उप्पन्नबलवदोमनस्सो “न दानि मया चिरं जीवितब्बं भविस्सति, अप्पावसेसं मे आयु, न मे दानि कामे परिभुञ्जनकालो, पब्बज्जाकालो मे इदानीति रोदित्वा परिदेवित्वा जेट्ठपुत्तं कुमारं आमन्तापेत्वा एतदवोच । समुद्दपरियन्तन्ति परिक्खित्तएकसमुद्दपरियन्तमेव । इदं हिस्स कुलसन्तकं । चक्कवाळपरियन्तं पन पुञ्ञिद्धिवसेन निब्बत्तं, न तं सक्का दातुं । कुलसन्तकं पन निय्यान्तो “समुद्दपरियन्त”न्ति आह । केसमस्सुन्ति तापसपब्बज्जं पब्बजन्तापि हि पठमं केसमस्सुं ओहारेन्ति । ततो पट्ठाय परूळहकेसे बन्धित्वा विचरन्ति । तेन वुत्तं - "केसमस्सुं ओहारेत्वा" ति । कासायानीति कसायरसपीतानि । आदितो एवं कत्वा पच्छा वक्कलानिपि धारेन्ति । पब्बजीति पब्बजितो । पब्बजित्वा च अत्तनो मङ्गलवनुय्यानेयेव वसि । राजिसिम्हीति राजईसिम्हि । ब्राह्मणपब्बजिता हि “ब्राह्मणिसयो 'ति वुच्चन्ति । सेतच्छत्तं पन पहाय राजपब्बजिता राजिसयोति । अन्तरधायीति अन्तरहितं निब्बुतदीपसिखा विय अभावं उपगतं । पटिसंवेदेसीति कन्दन्तो परिदेवन्तो जानापेसि । पेत्तिकन्ति पितितो आगतं दायज्जं न होति, न सक्का कुसीतेन हीनवीरियेन दस अकुसलकम्मपथे समादाय वत्तन्तेन पापुणितुं । अत्तनो पन सुकतं कम्मं निस्साय दसविधं द्वादसविधं वा चक्कवत्तिवत्तं पूरेन्तेनेवेतं पत्तब्बन्ति दीपेति । अथ नं वत्तपटिपत्तियं चोदेन्तो “इव त्व'' न्तिआदिमाह । तत्थ अरियेति निद्दोसे । चक्कवत्तिवत्तेति चक्कवत्तीनं वत्ते । ( ३.८४ -८४) चक्कवत्तिअरियवत्तवण्णना ८४. धम्मन्ति दसकुसलकम्मपथधम्मं । निस्सायाति तदधिट्ठानेन चेतसा तमेव निस्सयं कत्वा । धम्मं सक्करोन्तोति यथा कतो सो धम्मो सुट्टु कतो होति, एवमेतं करोन्तो । धम्मं गरुं करोन्तोति तस्मिं गारवुप्पत्तिया तं गरुं करोन्तो । धम्मं मानेन्तोति तमेव धम्मं पियञ्च भावनीयञ्च कत्वा विहरन्तो । धम्मं पूजेन्तोति तं अपदिसित्वा गन्धमालादिपूजनेनस्स पूजं करोन्तो । धम्मं अपचयमानोति तस्सेव धम्मस्स अञ्जलिकरणादीहि नीचवृत्तितं करोन्तो । धम्मजो धम्मकेतूति तं धम्मं धजमिव पुरक्खत्वा केतुमिव च उक्खिपित्वा पवत्तिया धम्मद्धजो धम्मकेतु च हुत्वाति अत्थो । धम्माधिपतेय्योति धम्माधिपतिभूतो आगतभावेन धम्मवसेनेव सब्बकिरियानं करणेन धम्माधिपतेय्यो हुत्वा । धम्मिकं रक्खावरणगुत्तिं संविदहस्सूति धम्मो अस्सा अत्थीति धम्मिका, रक्खा च आवरणञ्च गुत्ति च 30 Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३.८४-८४) चक्कवत्तिअरियवत्तवण्णना रक्खावरणगुत्ति । तत्थ “परं रक्खन्तो अत्तानं रक्खती"ति (सं० नि० ३.५.३८५) वचनतो खन्तिआदयो रक्खा। वुत्तञ्हेतं “कथञ्च, भिक्खवे, परं रक्खन्तो अत्तानं रक्खति । खन्तिया अविहिंसाय मेत्तचित्तता अनुद्दयता"ति (सं० नि० ३.५.३८५) । निवासनपारुपनगेहादीनं निवारणा आवरणं, चोरादिउपद्दवनिवारणत्थं गोपायना गुत्ति, तं सब्बम्पि सुटु संविदहस्सु पवत्तय ठपेहीति अत्थो । इदानि यत्थ सा संविदहितब्बा, तं दस्सेन्तो अन्तोजनस्मिन्तिआदिमाह। तत्रायं सोपत्थो- अन्तोजनसङ्खातं तव पुत्तदारं सीलसंवरे पतिट्ठपेहि, वत्थगन्धमालादीनि चस्स देहि, सब्बोपद्दवे चस्स निवारेहि । बलकायादीसुपि एसेव नयो । अयं पन विसेसो- बलकायो कालं अनतिक्कमित्वा भत्तवेतनसम्पदानेनपि अनुग्गहेतब्बो। अभिसित्तखत्तिया भद्रस्साजानेय्यादिरतनसम्पदानेनपि उपसङ्गण्हितब्बा। अनुयन्तखत्तिया तेसं अनुरूपयानवाहनसम्पदानेनपि परितोसेतब्बा। ब्राह्मणा अन्नपानवत्थादिना देय्यधम्मेन | गहपतिका भत्तबीजनङ्गलफालबलिबद्दादिसम्पदानेन । तथा निगमवासिनो नेगमा, जनपदवासिनो च जानपदा । समितपापबाहितपापा समणब्राह्मणा समणपरिक्खारसम्पदानेन सक्कातब्बा । मिगपक्खिनो अभयदानेन समस्सासेतब्बा । विजितेति अत्तनो आणापवत्तिट्ठाने । अधम्मकारोति अधम्मकिरिया । मा पवत्तित्थाति यथा नप्पवत्तति, तथा नं पटिपादेहीति अत्थो । समणब्राह्मणाति समितपापबाहितपापा । मदप्पमादा पटिविरताति नवविधा मानमदा, पञ्चसु कामगुणेसु चित्तवोस्सज्जनसङ्खाता पमादा च पटिविरता। खन्तिसोरच्चे निविद्वाति अधिवासनखन्तियञ्च सुरतभावे च पतिट्ठिता। एकमत्तानन्ति अत्तनो रागादीनं दमनादीहि एकमत्तानं दमेन्ति समेन्ति परिनिब्बापेन्तीति वुच्चन्ति । कालेन कालन्ति काले काले । अभिनिवज्जेय्यासीति गूथं विय विसं विय अग्गिं विय च सुट्ठ वज्जेय्यासि | समादायाति सुरभिकुसुमदामं विय अमतं विय च सम्मा आदाय पवत्तेय्यासि । इध ठत्वा वत्तं समानेतब्बं । अन्तोजनस्मिं बलकायेपि एकं, खत्तियेसु एकं, अनुयन्तेसु एकं, ब्राह्मणगहपतिकेसु एकं, नेगमजानपदेसु एकं, समणब्राह्मणेसु एकं, मिगपक्खीसु एकं, अधम्मकारप्पटिक्खेपो एकं, अधनानं धनानुप्पदानं एकं समणब्राह्मणे उपसङ्कमित्वा पञ्हपुच्छनं एकन्ति एवमेतं दसविधं होति । गहपतिके पन पक्खिजाते च विसु कत्वा गणेन्तस्स द्वादसविधं होति । पुब्बे अवुत्तं वा गणेन्तेन अधम्मरागस्स च Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (३.९०-९२) विसमलोभस्स च पहानवसेन द्वादसविधं वेदितब्बं । इदं खो तात तन्ति इदं दसविधं द्वादसविधञ्च अरियचक्कवत्तिवत्तं नाम। वत्तमानस्साति पूरेत्वा वत्तमानस्स । तदहुपोसथेतिआदि महासुदस्सने वुत्तं । ९०. समतेनाति अत्तनो मतिया । सुदन्ति निपातमत्तं । पसासतीति अनुसासति । इदं वुत्तं होति- पोराणकं राजवंसं राजपवेणिं राजधम्मं पहाय अत्तनो मतिमत्ते ठत्वा जनपदं अनुसासतीति । एवमयं मघदेववंसस्स कळारजनको विय दळहनेमिवंसस्स उपच्छेदको अन्तिमपुरिसो हुत्वा उप्पन्नो । पुब्बेनापरन्ति पुब्बकालेन सदिसा हुत्वा अपरकालं । जनपदा न पबन्तीति न वड्डन्ति । यथा तं पुब्बकानन्ति यथा पुब्बकानं राजूनं पुब्बे च पच्छा च सदिसायेव हुत्वा पब्बिंसु, तथा न पब्बन्ति । कत्थचि सुञा होन्ति हतविलुत्ता, तेलमधुफाणितादीसु चेव यागुभत्तादीसु च ओजापि परिहायित्थाति अत्यो। अमच्चा पारिसज्जाति अमच्चा चेव परिसावचरा च। गणकमहामत्ताति अच्छिद्दकादिपाठगणका चेव महाअमच्चा च । अनीकट्ठाति हथिआचरियादयो । दोवारिकाति द्वाररक्खिनो । मन्तस्साजीविनोति मन्ता वुच्चति पञ्जा, तं निस्सयं कत्वा ये जीवन्ति पण्डिता महामत्ता, तेसं एतं नाम । आयुवण्णादिपरिहानिकथावण्णना ९१. नो च खो अधनानन्ति बलवलोभत्ता पन अधनानं दलिद्दमनुस्सानं धनं नानुप्पदासि । नानुपदियमानेति अननुप्पदियमाने, अयमेव वा पाठो। दालिदियन्ति दलिद्दभावो । अत्तना च जीवाहीति सयञ्च जीवं यापेहीति अत्थो । उद्धग्गिकन्तिआदीसु उपरूपरिभूमीसु फलदानवसेन उद्धमग्गमस्साति उद्धग्गिका। सग्गस्स हिता तत्रुपपत्तिजननतोति सोवग्गिका । निब्बत्तट्ठाने सुखो विपाको अस्साति सुखविपाका । सुटु अग्गानं दिब्बवण्णादीनं दसन्नं विसेसानं निब्बत्तनतो सग्गसंवत्तनिका । एवरूपं दक्खिणं दानं पतिठ्ठपेतीति अत्थो । ९२. पवडिस्सतीति वड्विस्सति बहुं भविस्सति । सुनिसेधं निसेधेय्यन्ति सुट्ट निसिद्धं निसेधेय्यं । मूलघच्चन्ति मूलहतं । खरस्सरेनाति फरुससद्देन । पणवेनाति वज्झभेरिया। 32 Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३.९३-१०३) दसवस्सायुकसमयवण्णना ३३ ९३. सीसानि नेसं छिन्दिस्सामाति येसं अन्तमसो मूलकमुट्ठिम्पि हरिस्साम, तेसं तथेव सीसानि छिन्दिस्साम, यथा कोचि हटभावम्पि न जानिस्सति, अम्हाकं दानि किमेत्थ राजापि एवं उट्ठाय परं मारेतीति अयं नेसं अधिप्पायो। उपक्कमिंसूति आरभिंसु । पन्थदुहनन्ति पन्थघातं, पन्थे ठत्वा चोरकम्मं । ९४. न हि, देवाति सो किर चिन्तेसि - “अयं राजा सच्चं देवाति मुखपटिञाय दिन्नाय मारापेति, हन्दाहं मुसावादं करोमी"ति, मरणभया “न हि देवा'ति अवोच । ९६. एकिदन्ति एत्थ इदन्ति निपातमत्तं, एके सत्ताति अत्थो। चारित्तन्ति मिच्छाचारं। अभिज्झाब्यापादाति अभिज्झा च ब्यापादो च। मिच्छादिट्ठीति नत्थि दिन्नन्तिआदिका अन्तग्गाहिका पच्चनीकदिट्टि । १०१. अधम्मरागोति माता मातुच्छा पितुच्छा मातुलानीतिआदिके अयुत्तट्ठाने रागो । विसमलोभोति परिभोगयुत्तेसुपि ठानेसु अतिबलवलोभो । मिच्छाधम्मोति पुरिसानं पुरिसेसु इत्थीनञ्च इत्थीसु छन्दरागो। अमत्तेय्यतातिआदीसु मातु हितो मत्तेय्यो, तस्स भावो मत्तेय्यता, मातरि सम्मा पटिपत्तिया एतं नामं । तस्सा अभावो चेव तप्पटिपक्खता च अमत्तेय्यता । अपेत्तेय्यतादीसुपि एसेव नयो। न कुले जेट्टापचायिताति कुले जेट्टानं अपचितिया नीचवुत्तिया अकरणभावो। दसवस्सायुकसमयवण्णना १०३. यं इमेसन्ति यस्मिं समये इमेसं । अलंपतेय्याति पतिनो दातुं युत्ता । इमानि रसानीति इमानि लोके अग्गरसानि । अतिव्यादिप्पिस्सन्तीति अतिविय दिप्पिस्सन्ति, अयमेव वा पाठो। कुसलन्तिपि न भविस्सतीति कुसलन्ति नामम्पि न भविस्सति, पञ्जत्तिमत्तम्पि न पञायिस्सतीति अत्थो । पुज्जा च भविस्सन्ति पासंसा चाति पूजारहा च भविस्सन्ति पसंसारहा च। तदा किर मनुस्सा “असुकेन नाम माता पहता, पिता पहतो, समणब्राह्मणा जीविता वोरोपिता, कुले जेट्टानं अत्थिभावम्पि न जानाति, अहो पुरिसो"ति तमेव पूजेस्सन्ति चेव पसंसिस्सन्ति च । 33 Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (३.१०४-१०४) न भविस्सति माताति वाति अयं मय्हं माताति गरुचित्तं न भविस्सति । गेहे मातुगामं विय नानाविधं असब्मिकथं कथयमाना अगारवुपचारेन उपसङ्कमिस्सन्ति । मातुच्छादीसुपि एसेव नयो । एत्थ च मातुच्छाति मातुभगिनी । मातुलानीति मातुलभरिया । आचरियभरियाति सिप्पायतनानि सिक्खापकस्स आचरियस्स भरिया। गरूनं दाराति चूळपितुमहापितुआदीनं भरिया । सम्भेदन्ति मिस्सीभावं, मरियादभेदं वा। तिब्बो आघातो पच्चुपद्वितो भविस्सतीति बलवकोपो पुनप्पुनं उप्पत्तिवसेन पच्चुपद्वितो भविस्सति । अपरानि द्वे एतस्सेव वेवचनानि । कोपो हि चित्तं आघातेतीति आघातो। अत्तनो च परस्स च हितसुखं ब्यापादेतीति व्यापादो। मनोपदूसनतो मनोपदोसोति वुच्चति । तिब्बं वधकचित्तन्ति पियमानस्सापि परं मारणत्थाय वधकचित्तं । तस्स वत्थु दस्सेतुं मातुपि पुत्तम्हीतिआदि वुत्तं । मागविकस्साति मिगलुद्दकस्स । १०४. सत्थन्तरकप्पोति सत्थेन अन्तरकप्पो। संवट्टकप्पं अप्पत्वा अन्तराव लोकविनासो। अन्तरकप्पो च नामेस दुब्भिक्खन्तरकप्पो रोगन्तरकप्पो सत्थन्तरकप्पोति तिविधो । तत्थ लोभुस्सदाय पजाय दुब्मिक्खन्तरकप्पो होति । मोहुस्सदाय रोगन्तरकप्पो । दोसुस्सदाय सत्थन्तरकप्पो। तत्थ दुब्भिक्खन्तरकप्पेन नट्ठा येभुय्येन पेत्तिविसये उपपज्जन्ति। कस्मा ? आहारनिकन्तिया बलवत्ता । रोगन्तरकप्पेन नट्ठा येभुय्येन सग्गे निब्बत्तन्ति कस्मा? तेसहि “अहो वतञ्जेसं सत्तानं एवरूपो रोगो न भवेय्या''ति मेत्तचित्तं उप्पज्जतीति । सत्थन्तरकप्पेन नट्ठा येभुय्येन निरये उपपज्जन्ति । कस्मा ? अचमचं बलवाघातताय । मिगसञ्जन्ति “अयं मिगो, अयं मिगो"ति सनं । तिहानि सत्थानि हत्थेसु पातुभविस्सन्तीति तेसं किर हत्थेन फुट्ठमत्तं यंकिञ्चि अन्तमसो तिणपण्णं उपादाय आवुधमेव भविस्सति । मा च मयं कञ्चीति मयं कञ्चि एकपुरिसम्पि जीविता मा वोरोपयिम्ह । मा च अम्हे कोचीति अम्हेपि कोचि एकपुरिसो जीविता मा वोरोपयित्थ । यंनून मयन्ति अयं लोकविनासो पच्युपट्टितो, न सक्का द्वीहि एकट्ठाने ठितेहि जीवितं लद्धन्ति मजमाना एवं चिन्तयिंसु । वनगहनन्ति वनसङ्खातेहि तिणगुम्बलतादीहि गहनं दुप्पवेसट्टानं । रुक्खगहनन्ति रुखेहि गहनं दुप्पवेसट्टानं । नदीविदुग्गन्ति नदीनं अन्तरदीपादीसु दुग्गमनट्ठानं | पब्बतविसमन्ति पब्बतेहि विसमं, पब्बतेसुपि वा विसमट्ठानं । 4A Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३.१०५-१०७) आयुवण्णादिवड्डनकथावण्णना सभागायिस्सन्तीति यथा अहं जीवामि दिट्ठा भो सत्ता, त्वम्पि तथा जीवसीति एवं सम्मोदनकथाय अत्तना सभागे करिस्सन्ति । आयुवण्णादिवड्डनकथावण्णना १०५. आयतन्ति महन्तं । पाणातिपाता विरमेय्यामाति पाणातिपाततो ओसक्केय्याम । पाणातिपातं विरमेय्यामातिपि सज्झायन्ति, तत्थ पाणातिपातं पजहेय्यामाति अत्थो। वीसतिवस्सायुकाति मातापितरो पाणातिपाता पटिविरता, पुत्ता कस्मा वीसतिवस्सायुका अहेसुन्ति खेत्तविसुद्धिया । तेसहि मातापितरो सीलवन्तो जाता। इति सीलगब्भे वड्डितत्ता इमाय खेत्तविसुद्धिया दीघायुका अहेसुं। ये पनेत्थ कालं कत्वा तत्थेव निब्बत्ता, ते अत्तनोव सीलसम्पत्तिया दीघायुका अहेसुं। ___ अस्सामाति भवेय्याम । चत्तारीसवस्सायुकातिआदयो कोट्ठासा अदिन्नादानादीहि पटिविरतानं वसेन वेदितब्बा। सङ्घराजउप्पत्तिवण्णना १०६. इच्छाति महं भत्तं देथाति एवं उप्पज्जनकतण्हा। अनसनन्ति न असनं अविष्फारिकभावो कायालसियं, भत्तं भुत्तानं भत्तसम्मदपच्चया निपज्जितुकामताजनको कायदुब्बलभावोति अत्थो । जराति पाकटजरा । कुक्कुटसम्पातिकाति एकगामस्स छदनपिट्ठतो उप्पतित्वा इतरगामस्स छदनपिढे पतनसङ्घातो कुक्कुटसम्पातो। एतासु अत्थीति कुक्कुटसम्पातिका । "कुक्कुटसम्पादिका"तिपि पाठो, गामन्तरतो गामन्तरं कुक्कुटानं पदसा गमनसङ्खातो कुक्कुटसम्पादो एतासु अत्थीति अत्थो। उभयम्पेतं घननिवासतंयेव दीपेति। अवीचि मजे फुटो भविस्सतीति अवीचिमहानिरयो विय निरन्तरपूरितो भविस्सति । १०७. "असीतिवस्ससहस्सायुकेसु, भिक्खवे, मनुस्सेसु मेत्तेय्यो नाम भगवा लोके उप्पज्जिस्सती"ति न वड्डमानकवसेन वुत्तं । न हि बुद्धा वड्डमाने आयुम्हि निब्बत्तन्ति, हायमाने पन निब्बत्तन्ति । तस्मा यदा तं आयु वड्डित्वा असोय्यतं पत्वा पुन हायमानं असीतिवस्ससहस्सकाले ठस्सति, तदा उप्पज्जिस्सतीति अत्थो । परिहरिस्सतीति इदं पन 35 Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा परिवारेत्वा विचरन्तानं वसेन वुत्तं । यूपोति पासादो। रञ्ञा महापनादेन कारापितोति रञ हेतुभूतेन तस्सत्थाय सक्केन देवराजेन विस्सकम्मदेवपुत्तं पेसेत्वा कारापितो । पुब्बे किर द्वे पितापुत्ता नळकारा पच्चेकबुद्धस्स नळेहि च उदुम्बरेहि च पण्णसालं कारापेत्वा तं तत्थ वासापेत्वा चतूहि पच्चयेहि उपट्ठहिंसु । ते कालं कत्वा देवलोके निब्बत्ता । तेसु पिता देवलोकेयेव अट्ठासि । पुत्तो देवलोका चवित्वा सुरुचिस्स रञो देविया सुमेधाय कुच्छिस्मिं निब्बत्तो । महापनादो नाम कुमारो अहोसि । सो अपरभागे छत्तं उस्सापेत्वा महापनादो नाम राजा जातो। अथस्स पुञ्ञानुभावेन सक्को देवराजा विस्सकम्मदेवपुत्तं रञ पासादं करोहीति पहिणि सो तस्स पासादं निम्मिनि पञ्चवीसतियोजनुब्बेधं सत्तरतनमयं सतभूमकं। यं सन्धाय जातके वुत्तं - “पनादो नाम सो राजा, यस्स यूपो सुवण्णयो । तिरियं सोळसुब्बेधो, उद्धमाहु सहस्सधा ।। सहस्सकण्डो सतगेण्डु, धजालु हरितामयो । अनच्चुं तत्थ गन्धब्बा, छ सहस्सानि सत्तधा ।। एवमेतं तदा आसि, यथा भाससि भद्दजि । सक्को अहं तदा आसिं, वेय्यावच्चकरो तवा "ति ।। ( जा० ५.३.४२) ( ३.१०८ - १०८) सो राजा तत्थ यावतायुकं वसित्वा कालं कत्वा देवलोके निब्बत्ति । तस्मिं देवलोके निब्बत्ते सो पासादी महागङ्गाय अनुसोतं पति । तस्स धुरसोपानसम्मुखट्टाने पयागपतिट्ठानं नाम नगरं मापितं । थुपिकासम्मुखट्टाने कोटिगामो नाम । अपरभागे अम्हाकं भगवतो काले सो नळकारदेवपुत्ती देवलोकतो चवित्वा मनुस्सपथे भद्दजिसेट्ठि नाम हुत्वा सत्धु सन्तिके पब्बजित्वा अरहत्तं पापुणि । सो नावाय गङ्गातरणदिवसे भिक्खुसङ्घस्स तं पासाद दस्सेतीति वत्थु वित्थारेतब्बं । कस्मा पनेस पासादो न अन्तरहितोति ? इतरस्स आनुभावा । तेन सद्धिं पुञ्ञ कत्वा देवलोके निब्बत्तकुलपुत्तो अनागते सङ्घो नाम राजा भविस्सति । तस्स परिभोगत्थाय सो पासादो उट्ठहिस्सति, तस्मा न अन्तरहितोति । १०८. उस्सापेत्वाति तं पासादं उट्ठापेत्वा । अज्झावसित्वाति तत्थ वसित्वा । तं दत्वा विस्सज्जित्वाति तं पासादं दानवसेन दत्वा निरपेक्खो परिच्चागवसेन च विस्सज्जित्वा । 36 Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३.१०९-११०) भिक्खुनो आयुवण्णादिवड्डनकथावण्णना कस्स च एवं दत्वाति ? समणादीनं । तेनाह- “समणब्राह्मणकपणद्धिकवनिब्बकयाचकानं दानं दत्वा"ति । कथं पन सो एकं पासादं बहूनं दस्सतीति ? एवं किरस्स चित्तं उप्पज्जिस्सति “अयं पासादो विप्पकिरियतू"ति । सो खण्डखण्डसो विप्पकिरिस्सति । सो तं अलग्गमानोव हुत्वा “यो यत्तकं इच्छति, सो तत्तकं गण्हतू"ति दानवसेन विस्सज्जिस्सति । तेन वुत्तं- “दानं दत्वा मेत्तेय्यस्स भगवतो...पे०... विहरिस्सतीति । एत्तकेन भगवा वट्टगामिकुसलस्स अनुसन्धिं दस्सेति । १०९. इदानि विवट्टगामिकुसलस्स अनुसन्धिं दस्सेन्तो पुन अत्तदीपा, भिक्खवे, विहरथातिआदिमाह। भिक्खुनो आयुवण्णादिवड्डनकथावण्णना ११०. इदं खो, भिक्खवे, भिक्खुनो आयुस्मिन्ति भिक्खवे यं वो अहं आयुनापि वड्डिस्सथाति अवोचं, तत्थ इदं भिक्खुनो आयुस्मिं इदं आयुकारणन्ति अत्थो। तस्मा तुम्हेहि आयुना वड्डितुकामेहि इमे चत्तारो इद्धिपादा भावेतब्बाति दस्सेति । वण्णस्मिन्ति यं वो अहं वण्णेनपि वड्डिस्सथाति अवोचं, इदं तत्थ वण्णकारणं । सीलवतो हि अविप्पटिसारादीनं वसेन सरीरवण्णोपि कित्तिवसेन गुणवण्णोपि वड्डति । तस्मा तुम्हेहि वण्णेन वड्तुिकामेहि सीलसम्पन्नेहि भवितब्बन्ति दस्सेति । सुखस्मिन्ति यं वो अहं सुखेनपि वड्डिस्सथाति अवोचं, इदं तत्थ विवेकजं पीतिसुखादिनानप्पकारकं झानसुखं । तस्मा तुम्हेहि सुखेन वड्डितुकामेहि इमानि चत्तारि झानानि भावेतब्बानि । भोगस्मिन्ति यं वो अहं भोगेनपि वड्डिस्सथाति अवोचं, अयं सो अप्पमाणानं सत्तानं अप्पटिकूलतावहो सुखसयनादि एकादसानिसंसो सब्बदिसाविष्फारितब्रह्मविहारभोगो । तस्मा तुम्हेहि भोगेन वड्डितुकामेहि इमे ब्रह्मविहारा भावेतब्बा। बलस्मिन्ति यं वो अहं बलेनपि वड्डिस्सथाति अवोचं, इदं आसवक्खयपरियोसाने Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (३.११०-११०) उप्पन्नं अरहत्तफलसङ्खातं बलं । तस्मा तुम्हेहि बलेन वहितुकामेहि अरहत्तप्पत्तिया योगो करणीयो। यथयिदं, भिक्खवे, मारबलन्ति यथा इदं देवपुत्तमारमच्चुमारकिलेसमारानं बलं दुप्पसहं दुरभिसम्भवं, एवं अझं लोके एकबलम्पि न समनुपस्सामि। तम्पि बलं इदमेव अरहत्तफलं पसहति अभिभवति अज्झोत्थरति । तस्मा एत्थेव योगो करणीयोति दस्सेति । एवमिदं पुञ्जन्ति एवं इदं लोकुत्तरपुञ्जम्पि याव आसवक्खया पवडतीति विवट्टगामिकुसलानुसन्धिं निट्ठपेन्तो अरहत्तनिकूटेन देसनं निट्ठपेसि । सुत्तपरियोसाने वीसति भिक्खुसहस्सानि अरहत्तं पापुणिंसु । चतुरासीति पाणसहस्सानि अमतपानं पिविंसूति । सुमङ्गलविलासिनिया दीघनिकायट्ठकथाय चक्कवत्तिसुत्तवण्णना निहिता। 38 Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४. अग्गसुत्तवण्णना वासेट्ठभारद्वाजवण्णना १११. एवं मे सुतन्ति अग्गञसुत्तं । तत्रायमनुत्तानपदवण्णना - पुब्बारामे मिगारमातुपासादेति एत्थ अयं अनुपुब्बिकथा । अतीते सतसहस्सकप्पमत्थके एका उपासिका पदुमुत्तरं भगवन्तं निमन्तेत्वा बुद्धप्पमुखस्स भिक्खुसतसहस्सस्स दानं दत्वा भगवतो पादमूले निपज्जित्वा “अनागते तुम्हादिसस्स बुद्धस्स अग्गुपट्टायिका होमी"ति पत्थनं अकासि । सा कप्पसतसहस्सं देवेसु चेव मनुस्सेसु च संसरित्वा अम्हाकं भगवतो काले भद्दियनगरे मेण्डकसेट्ठिपुत्तस्स धनञ्चयसेटिनो गेहे सुमनदेविया कुच्छिम्हि पटिसन्धिं गण्हि । जातकाले तस्सा विसाखाति नामं अकंसु । सा यदा भगवा भद्दियनगरं आगमासि, तदा पञ्चदासिसतेहि सद्धिं भगवतो पच्चुग्गमनं कत्वा पठमदस्सनम्हियेव सोतापन्ना अहोसि । अपरभागे सावत्थियं मिगारसेट्ठिपुत्तस्स पुण्णवड्डनकुमारस्स गेहं गता। तत्थ नं मिगारसेट्ठि मातुट्ठाने ठपेसि । तस्मा मिगारमाताति वुच्चति । पतिकुलं गच्छन्तिया चस्सा पिता महालतापिळन्धनं नाम कारापेसि । तस्मिं पिळन्धने चतस्सो वजिरनाळियो उपयोगं अगमंसु, मुत्तानं एकादस नालियो, पवाळस्स द्वावीसति नाळियो, मणीनं तेत्तिंस नाळियो । इति एतेहि च अझेहि च सत्तहि रतनेहि निट्ठानं अगमासि । तं सीसे पटिमुक्कं याव पादपिट्ठिया भस्सति । पञ्चन्नं हत्थीनं बलं धारयमानाव नं इत्थी धारेतं सक्कोति | सा अपरभागे दसबलस्स अग्गुपट्टायिका हुत्वा तं पसाधनं विस्सज्जेत्वा नवहि कोटीहि भगवतो विहारं कारयमाना करीसमत्ते भूमिभागे पासादं कारेसि। तस्स उपरिभूमियं पञ्च गब्भसतानि होन्ति, हेट्ठिमभूमियं पञ्चाति गब्भसहस्सप्पटिमण्डितो अहोसि । सा “सुद्धपासादोव न सोभती"ति तं परिवारेत्वा पञ्च दुवड्डगेहसतानि, पञ्च 39 Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (४.११३-११३) चूळपासादसतानि, पञ्च दीघसालसतानि च कारापेसि । विहारमहो चतूहि मासेहि निट्ठानं अगमासि । मातुगामत्तभावे ठिताय विसाखाय विय अञिस्सा बुद्धसासने धनपरिच्चागो नाम नत्थि, पुरिसत्तभावे ठितस्स अनाथपिण्डिकस्स विय अञस्साति। सो हि चतुपण्णासकोटियो विस्सज्जेत्वा सावस्थिया दक्खिणभागे अनुराधपुरस्स महाविहारसदिसे ठाने जेतवनमहाविहारं नाम कारेसि । विसाखा सावत्थिया पाचीनभागे उत्तरदेविया विहारसदिसे ठाने पुब्बारामं नाम कारेसि । भगवा इमेसं द्विन्नं कुलानं अनुकम्पाय सावत्थिं निस्साय विहरन्तो इमेसु द्वीसु विहारेसु निबद्धवासं वसि । एकं अन्तोवस्सं जेतवने वसति, एकं पुब्बारामे। तस्मिं समये पन भगवा पुब्बारामे विहरति । तेन वुत्तं "पुब्बारामे मिगारमातुपासादे''ति । वासेटुभारद्वाजाति वासेट्ठो च सामणेरो भारद्वाजो च । भिक्खूसु परिवसन्तीति ते नेव तिथियपरिवासं वसन्ति, न आपत्तिपरिवासं। अपरिपुण्णवस्सत्ता पन भिक्खुभावं पत्थयमाना वसन्ति । तेनेवाह "भिक्खुभावं आकङ्खमाना'"ति। उभोपि हेते उदिच्चब्राह्मणमहासालकुले निब्बत्ता, चत्तालीस चत्तालीस कोटिविभवा तिण्णं वेदानं पारगू मज्झिमनिकाये वासेद्वसुत्तं सुत्वा सरणं गता, तेविज्जसुत्तं सुत्वा पब्बजित्वा इममिं काले भिक्खुभावं आकङ्खमाना परिवसन्ति । अब्भोकासे चङ्कमतीति उत्तरदक्खिणेन आयतस्स पासादस्स पुरत्थिमदिसाभागे पासादच्छायायं यन्तरज्जूहि आकड्डियमानं रतनसतुब्बेधं सुवण्णअग्धिकं विय अनिलपथे विधावन्तीहि छब्बण्णाहि बुद्धरस्मीहि सोभमानो अपरापरं चङ्कमति । ११३. अनुचकमिंसूति अञ्जलिं पग्गय्ह ओनतसरीरा हुत्वा अनुवत्तमाना चङ्कमिंसु । वासे आमन्तेसीति सो तेसं पण्डिततरो गहेतब्बं विस्सज्जेतब्बञ्च जानाति, तस्मा तं आमन्तेसि। तुम्हे ख्वत्थाति तुम्हे खो अत्थ । ब्राह्मणजच्चाति, ब्राह्मणजातिका । ब्राह्मणकुलीनाति ब्राह्मणेसु कुलीना कुलसम्पन्ना । ब्राह्मणकुलाति ब्राह्मणकुलतो, भोगादिसम्पन्नं ब्राह्मणकुलं पहायाति अत्थो । न अक्कोसन्तीति दसविधेन अक्कोसवत्थुना न अक्कोसन्ति । न परिभासन्तीति नानाविधाय परिभवकथाय न परिभासन्तीति अत्थो । इति भगवा "ब्राह्मणा इमे सामणेरे अक्कोसन्ति परिभासन्ती"ति जानमानोव पुच्छति । कस्मा ? इमे मया अपुच्छिता पठमतरं न कथेस्सन्ति, अकथिते कथा न समुट्ठातीति कथासमुट्ठापनत्थाय | 40 Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४.११४-११४) वासेट्ठभारद्वाजवण्णना ४१ तग्घाति एकंसवचने निपातो, एकंसेनेव नो, भन्ते, ब्राह्मणा अक्कोसन्ति परिभासन्तीति वुत्तं होति। अत्तरूपायाति अत्तनो अनुरूपाय। परिपुण्णायाति यथारुचि पदव्यञ्जनानि आरोपेत्वा आरोपेत्वा परिपूरिताय | नो अपरिपुण्णायाति अन्तरा अट्ठपिताय निरन्तरं पवत्ताय। कस्मा पन ब्राह्मणा इमे सामणेरे अक्कोसन्तीति ? अप्पतिकृताय । इमे हि सामणेरा अग्गब्राह्मणानं पुत्ता तिण्णं वेदानं पारगू जम्बुदीपे ब्राह्मणानं अन्तरे पाकटा सम्भाविता तेसं पब्बजितत्ता अजे ब्राह्मणपुत्ता पब्बजिंसु । अथ खो ब्राह्मणा "अपतिट्ठा मयं जाता"ति इमाय अप्पतिकृताय गामद्वारेपि अन्तोगामेपि ते दिस्वा "तुम्हेहि ब्राह्मणसमयो भिन्नो, मुण्डसमणकस्स पच्छतो पच्छतो रसगिद्धा हुत्वा विचरथा"तिआदीनि चेव पाळियं आगतानि “ब्राह्मणोव सेट्ठो वण्णो"तिआदीनि च वत्वा अक्कोसन्ति । सामणेरा तेसु अक्कोसन्तेसुपि कोपं वा आघातं वा अकत्वा केवलं भगवता पुट्ठा "तग्घ नो, भन्ते, ब्राह्मणा अक्कोसन्ति परिभासन्ती"ति आरोचेसुं । अथ ने भगवा अक्कोसनाकारं पुच्छन्तो यथा कथं पन वोति पुच्छति । ते आचिक्खन्ता ब्राह्मणा भन्तेतिआदिमाहंसु । तत्थ सेट्ठो वण्णोति जातिगोत्तादीनं पञापनट्ठाने ब्राह्मणोव सेट्ठोति दस्सेन्ति । हीना अत्रे वण्णाति इतरे तयो वण्णा हीना लामकाति वदन्ति । सुक्कोति पण्डरो। कण्होति काळको । सुज्झन्तीति जातिगोत्तादीनं पञापनट्ठाने सुज्झन्ति । ब्रह्मनो पुत्ताति महाब्रह्मनो पुत्ता। ओरसा मुखतो जाताति उरे वसित्वा मुखतो निक्खन्ता, उरे कत्वा संवडिताति वा ओरसा। ब्रह्मजाति ब्रह्मतो निब्बत्ता। ब्रह्मनिम्मिताति ब्रह्मना निम्मिता | ब्रह्मदायादाति ब्रह्मनो दायादा। हीनमत्थ वण्णं अज्झुपगताति हीनं वणं अज्झुपगता अत्थ । मुण्डके समणकेति निन्दन्ता जिगुच्छन्ता वदन्ति, न मुण्डकमत्तञ्चेव समणमत्तञ्च सन्धाय । इन्भेति गहपतिके । कण्हेति काळके। बन्धूति मारस्स बन्धुभूते मारपक्खिके। पादापच्चेति महाब्रह्मनो पादानं अपच्चभूते पादतो जातेति अधिप्पायो । ११४. "तग्य वो, वासेठ्ठ, ब्राह्मणा पोराणं अस्सरन्ता एवमाहंसू"ति एत्थ वोति निपातमत्तं, सामिवचनं वा, तुम्हाकं ब्राह्मणाति अत्यो। पोराणन्ति पोराणकं अग्गञ्जे लोकुप्पत्तिचरियवंसं । अस्सरन्ताति अस्सरमाना । इदं वुत्तं होति, एकंसेन वो, वासेट्ठ, ब्राह्मणा पोराणं लोकुप्पत्तिं अननुस्सरन्ता अजानन्ता एवं वदन्तीति । “दिस्सन्ति खो पनाति एवमादि तेसं लद्धिभिन्दनत्थाय वुत्तं। तत्थ ब्राह्मणियोति ब्राह्मणानं Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (४.११६-११६) पुत्तप्पटिलाभत्थाय आवाहविवाहवसेन कुलं आनीता ब्राह्मणियो दिस्सन्ति । ता खो पनेता अपरेन समयेन उतुनियोपि होन्ति, सञ्जातपुप्फाति अत्थो । गन्भिनियोति सञ्जातगब्भा । विजायमानाति पुत्तधीतरो जनयमाना। पायमानाति दारके थकं पायन्तियो । योनिजाव समानाति ब्राह्मणीनं पस्तावमग्गेन जाता समाना। एवमाहंसूति एवं वदन्ति । कथं ? "ब्राह्मणोव सेट्ठो वण्णो...पे०... ब्रह्मदायादा"ति । यदि पन नेसं तं सच्चवचनं सिया, ब्राह्मणीनं कुच्छि महाब्रह्मस्स उरो भवेय्य, ब्राह्मणीनं पस्सावमग्गो महाब्रह्मनो मुखं भवेय्य, न खो पनेतं एवं दह्रब् । तेनाह "ते च ब्रह्मेनञ्चेव अब्भाचिक्खन्ती"तिआदि । चतुवण्णसुद्धिवण्णना एत्तावता "मयं महाब्रह्मनो उरे वसित्वा मुखतो निक्खन्ताति वत्तुं मा लभन्तू"ति इमं मुखच्छेदकवादं वत्वा पुन चत्तारोपि वण्णा कुसले धम्मे समादाय वत्तन्ताव सुज्झन्तीति दस्सनत्थं चत्तारोमे, वासेटु, वण्णातिआदिमाह । अकुसलसङ्घाताति अकुसलाति सङ्खाता अकुसलकोट्ठासभूता वा। एस नयो सब्बत्थ । न अलमरियाति अरियभावे असमत्था । कण्हाति पकतिकाळका । कण्हविपाकाति विपाकोपि नेसं कण्हो दुक्खोति अत्थो । खत्तियेपि तेति खत्तियम्हिपि ते । एकच्चेति एकस्मिं । एस नयो सब्बत्थ । सुक्काति निक्किलेसभावेन पण्डरा । सुक्कविपाकाति विपाकोपि नेसं सुक्को सुखोति अत्थो । ११६. उभयवोकिण्णेसु वत्तमानेसूति उभयेसु वोकिण्णेसु मिस्सीभूतेसु हुत्वा वत्तमानेसु । कतमेसु उभयेसूति ? कण्हसुक्केसु धम्मेसु वि गरहितेसु चेव विझुप्पसत्थेसु च । यदेत्थ ब्राह्मणा एवमाहंसूति एत्थ एतेसु कण्हसुक्कधम्मेसु वत्तमानापि ब्राह्मणा यदेतं एवं वदन्ति "ब्राह्मणोव सेट्ठो वण्णो'"तिआदि । तं नेसं विजू नानुजानन्तीति ये लोके पण्डिता, ते नानुमोदन्ति, न पसंसन्तीति अत्थो। तं किस्स हेतु ? इमेसव्हि वासेट्ठातिआदिम्हि अयं स पत्थो । यं वुत्तं नानुजानन्तीति, तं कस्माति चे? यस्मा इमेसं चतवं वपणानं यो भिक्ख अरह...पे... सम्पदा विमुत्तो, सो तेस अग्गमक्खायति, ते च न एवरूपा । तस्मा नेसं विजू नानुजानन्ति ।। अरहन्तिआदिपदेसु चेत्थ किलेसानं आरकत्तादीहि कारणेहि अरहं। आसवानं खीणत्ता 42 Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४.११७-११८) चतुवण्णसुद्धिवण्णना खीणासवो। सत्त सेक्खा पुथुज्जनकल्याणका च ब्रह्मचरियवासं वसन्ति नाम | अयं पन वुत्थवासोति बुसितवा। चतूहि मग्गेहि चतूसु सच्चेसु परिजाननादिकरणीयं कतं अस्साति कतकरणीयो। किलेसभारो च खन्धभारो च ओहितो अस्साति ओहितभारो। ओहितोति ओहारितो। सुन्दरो अत्थो, सको वा अत्थो सदत्थो, अनुप्पत्तो सदत्थो एतेनाति अनुप्पत्तसदत्थो। भवसंयोजनं वुच्चति तण्हा, सा परिक्खीणा अस्साति परिक्खीणभवसंयोजनो। सम्मदा विमुत्तोति सम्मा हेतुना कारणेन जानित्वा विमुत्तो। जनेतस्मिन्ति जने एतस्मिं, इमस्मिं लोकेति अत्थो । दिद्वे चेव धम्मे अभिसम्परायञ्चाति इधत्तभावे च परत्तभावे । ११७. अनन्तराति अन्तरविरहिता, अत्तनो कुलेन सदिसाति अत्थो । अनुयुत्ताति वसवत्तिनो। निपच्चकारन्ति महल्लकतरा निपच्चकारं दस्सेन्ति । दहरतरा अभिवादनादीनि करोन्ति । तत्थ सामीचिकम्मन्ति तंतंवत्तकरणादि अनुच्छविककम्मं ।। ११८. निविद्वाति, अभिनिविट्ठा अचलट्ठिता। कस्स पन एवरूपा सद्धा होतीति ? सोतापन्नस्स । सो हि निविट्ठसद्धो असिना सीसे छेज्जमानेपि बुद्धो अबुद्धोति वा, धम्मो अधम्मोति वा, सङ्घो असङ्घोति वा न वदति । पतिट्टितसद्धो होति सूरम्बट्ठो विय। सो किर सत्थु धम्मदेसनं सुत्वा सोतापन्नो हुत्वा गेहं अगमासि । अथ मारो द्वत्तिंसवरलक्खणप्पटिमण्डितं बुद्धरूपं मापेत्वा तस्स घरद्वारे ठत्वा "सत्था आगतो"ति सासनं पहिणि। सूरम्बठ्ठो चिन्तेसि "अहं इदानेव सत्थु सन्तिके धम्म सुत्वा आगतो, किं नु खो भविस्सती"ति उपसङ्कमित्वा सत्थुसज्ञाय वन्दित्वा अठ्ठासि । मारो आह"अम्बट्ट, यं ते मया 'रूपं अनिच्चं...पे०... विज्ञाणं अनिच्चन्ति कथितं, तं दुक्कथितं । अनुपधारेत्वाव हि मया एवं वुत्तं । तस्मा त्वं 'रूपं निच्चं...पे०... विज्ञाणं निच्चन्ति गण्हाही"ति । सो चिन्तेसि- "अदानमेतं यं बद्धा अनपधारेत्वा अपच्चक्खं कत्वा किञ्चि कथेय्यं अब्दा अयं महं विच्छिन्दजननत्थं मारो आगतो"ति । ततो नं "त्वं मारोसी"ति आह । सो मुसावादं कातुं नासक्खि । “आम मारोस्मीति पटिजानाति । “कस्मा आगतोसी"ति ? तव सद्धाचालनत्थन्ति आह । “कण्ह पापिम, त्वं ताव एको तिठ्ठ, तादिसानं मारानं सतम्पि सहस्सम्पि सतसहस्सम्पि मम सद्धं चालेतुं असमत्थं, मग्गेन आगतसद्धा नाम थिरा सिलापथवियं पतिट्टितसिनेरु विय अचला होति, किं त्वं एत्था"ति अच्छरं पहरि। सो ठातुं असक्कोन्तो तत्थेव अन्तरधायि । एवरूपं सद्धं सन्धायेतं वुत्तं "निविठ्ठा'ति । 43 Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (४.११९-१२०) मूलजाता पतिद्विताति मग्गमूलस्स सञ्जातत्ता तेन मग्गमूलेन पतिहिता। दव्हाति थिरा । असंहारियाति सुनिखातइन्दखीलो विय केनचि चालेतुं असक्कुणेय्या । तस्सेतं कल्लं वचनायाति तस्स अरियसावकस्स युत्तमेतं वत्तुं । किन्ति ? "भगवतोम्हि पुत्तो ओरसो"ति एवमादि । सो हि भगवन्तं निस्साय अरियभूमियं जातोति भगवतो पुत्तो। उरे वसित्वा मुखतो निक्खन्तधम्मघोसवसेन मग्गफलेसु पतिद्वितत्ता ओरसो मुखतो जातो। अरियधम्मतो जातत्ता अरियधम्मेन च निम्मितत्ता धम्मजो धम्मनिम्मितो। नवलोकुत्तरधम्मदायज्जं अरहतीति धम्मदायादो। तं किस्स हेतूति यदेतं "भगवतोम्हि पुत्तो"ति वत्वा “धम्मजो धम्मनिम्मितो''ति वुत्तं, तं कस्माति चे? इदानिस्स अत्थं दस्सेन्तो तथागतस्स हेतन्तिआदिमाह । तत्थ "धम्मकायो इतिपी"ति कस्मा तथागतो "धम्मकायो"ति वुत्तो? तथागतो हि तेपिटकं बुद्धवचनं हदयेन चिन्तेत्वा वाचाय अभिनीहरि । तेनस्स कायो धम्ममयत्ता धम्मोव । इति धम्मो कायो अस्साति धम्मकायो। धम्मकायत्ता एव ब्रह्मकायो। धम्मो हि सेठ्ठत्थेन ब्रह्माति वुच्चति । धम्मभूतोति धम्मसभावो । धम्मभूतत्ता एव ब्रह्मभूतो। ११९. एत्तावता भगवा सेठ्ठच्छेदकवादं दस्सेत्वा इदानि अपरेनपि नयेन सेठ्ठच्छेदकवादमेव दस्सेतुं होति खो सो, वासेट्ट, समयोतिआदिमाह । तत्थ संवट्टविवट्टकथा ब्रह्मजाले वित्थारिताव । इत्थत्तं आगच्छन्तीति इत्थभावं मनुस्सत्तं आगच्छन्ति । तेध होन्ति मनोमयाति ते इध मनुस्सलोके निब्बत्तमानापि ओपपातिका हुत्वा मनेनेव निब्बत्ताति मनोमया । ब्रह्मलोके विय इधापि नेसं पीतियेव आहारकिच्चं साधेतीति पीतिभक्खा। एतेनेव नयेन सयंपभादीनिपि वेदितब्बानीति । रसपथविपातुभाववण्णना १२०. एकोदकीभूतन्ति सब्बं चक्कवाळं एकोदकमेव भूतं । अन्धकारोति तमो । अन्धकारतिमिसाति चक्खुविञआणुप्पत्तिनिवारणेन अन्धभावकरणं बहलतमं । समतनीति पतिहि समन्ततो पत्थरि । पयसो तत्तस्साति तत्तस्स खीरस्स । वण्णसम्पन्नाति वण्णेन सम्पन्ना। कणिकारपुप्फसदिसो हिस्सा वण्णो अहोसि । गन्धसम्पनाति गन्धेन सम्पन्ना दिब्बगन्धं वायति । रससम्पन्नाति रसेन सम्पन्ना पक्खित्तदिब्बोजा विय होति । खुहमधुन्ति खुद्दकमक्खिकाहि कतमधुं । अनेळकन्ति निद्दोसं मक्खिकण्डकविरहितं । लोलजातिकोति लोलसभावो। अतीतानन्तरेपि कप्पे लोलोयेव । अम्भोति अच्छरियजातो आह । किमविदं 44 Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४.१२१-१२१) चन्दिमसूरियादिपातुभाववण्णना भविस्सतीति वण्णोपिस्सा मनापो गन्धोपि, रसो पनस्सा कीदिसो भविस्सतीति अत्थो । यो तत्थ उप्पन्नलोभो, सो रसपथविं अङ्गुलिया सायि, अङ्गुलिया गहेत्वा जिव्हग्गे ठपेसि । अछादेसीति जिव्हग्गे ठपितमत्ता सत्त रसहरणीसहस्सानि फरित्वा मनापा हुत्वा तिट्ठति | तण्हा चस्स ओक्कमीति तत्थ चस्स तण्हा उप्पज्जि । चन्दिमसूरियादिपातुभाववण्णना १२१. आलुप्पकारकं उपक्कमिंसु परिभुजितुन्ति आलोपं कत्वा पिण्डे पिण्डे छिन्दित्वा परिभुजितुं आरभिंसु । चन्दिमसूरियाति चन्दिमा च सूरियो च । पातुरहेसुन्ति पातुभविंसु । को पन तेसं पठमं पातुभवि, को कस्मिं वसति, कस्स किं पमाणं, को उपरि, को सीघं गच्छति, कति नेसं वीथियो, कथं चरन्ति, कित्तके ठाने आलोकं करोन्तीति ? उभो एकतो पातुभवन्ति । सूरियो पठमतरं पायति । तेसहि सत्तानं सयंपभाय अन्तरहिताय अन्धकारो अहोसि । ते भीततसिता "भट्टकं वतस्स सचे आलोको पातुभवेय्या"ति चिन्तयिंसु । ततो महाजनस्स सूरभावं जनयमानं सूरियमण्डलं उद्यहि । तेनेवस्स सूरियोति नामं अहोसि । तस्मिं दिवसं आलोकं कत्वा अत्थङ्गते पुन अन्धकारो अहोसि । ते “भद्दकं वतस्स सचे अओ आलोको उप्पज्जेय्या"ति चिन्तयिंसु । अथ नेसं छन्दं ञत्वाव चन्दमण्डलं उद्यहि । तेनेवस्स चन्दोति नामं अहोसि । तेसु चन्दो अन्तोमणिविमाने वसति । तं बहि रजतेन परिक्खित्तं । उभयम्पि सीतलमेव अहोसि । सूरियो अन्तोकनकविमाने वसति । तं बाहिरं फलिकपरिक्खित्तं होति । उभयम्पि उण्हमेव।। पमाणतो चन्दो उजुकं एकूनपासयोजनो। परिमण्डलतो तीहि योजनेहि ऊनदियड्डसतयोजनो । सूरियो उजुकं पञ्जासयोजनो, परिमण्डलतो दियड्ढसतयोजनो । चन्दो हेट्ठा, सूरियो उपरि, अन्तरा नेसं योजनं होति । चन्दस्स हेट्ठिमन्ततो सूरियस्स उपरिमन्ततो योजनसतं होति । 45 Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (४.१२१-१२१) चन्दो उजुकं सणिकं गच्छति, तिरियं सीघं। द्वीसु पस्सेसु नक्खत्ततारका गच्छन्ति । चन्दो धेनु विय वच्छं तं तं नक्खत्तं उपसङ्कमति । नक्खत्तानि पन अत्तनो ठानं न विजहन्ति। सूरियस्स उजुकं गमनं सीघं, तिरियं गमनं दन्धं । सो काळपक्खउपोसथतो पाटिपददिवसे योजनानं सतसहस्सं चन्दमण्डलं ओहाय गच्छति । अथ चन्दो लेखा विय पञ्जायति । पक्खस्स दुतियाय सतसहस्सन्ति एवं याव उपोसथदिवसा सतसहस्सं सतसहस्सं ओहाय गच्छति। अथ चन्दो अनुक्कमेन वड्डित्वा उपोसथदिवसे परिपुण्णो होति । पुन पाटिपददिवसे योजनानं सतसहस्सं धावित्वा गण्हाति । दुतियाय सतसहस्सन्ति एवं याव उपोसथदिवसा सतसहस्सं सतसहस्सं धावित्वा गण्हाति । अथ चन्दो अनुक्कमेन हायित्वा उपोसथदिवसे सब्बसो न पायति । चन्दं हेट्ठा कत्वा सूरियो उपरि होति । महतिया पातिया खुद्दकभाजनं विय चन्दमण्डलं पिधीयति । मज्झन्हिके गेहच्छाया विय चन्दस्स छाया न पचायति । सो छायाय अपञ्जायमानाय दूरे ठितानं दिवा पदीपो विय सयम्पि न पचायति । कति नेसं वीथियोति एत्थ पन अजवीथि, नागवीथि, गोवीथीति तिस्सो वीथियो होन्ति । तत्थ अजानं उदकं पटिकूलं होति, हत्थिनागानं मनापं । गुन्नं सीतुण्हसमताय फासु होति । तस्मा यं कालं चन्दिमसूरिया अजवीथिं आरुहन्ति, तदा देवो एकबिन्दुम्पि न वस्सति । यदा नागवीथिं आरोहन्ति, तदा भिन्नं विय नभं पग्घरति । यदा गोवीथिं आरोहन्ति, तदा उतुसमता सम्पज्जति । चन्दिमसूरिया छमासे सिनेरुतो बहि निक्खमन्ति, छमासे अन्तो विचरन्ति । ते हि आसाळ्हमासे सिनेरुसमीपेन विचरन्ति । ततो परे द्वे मासे निक्खमित्वा बहि विचरन्ता पठमकत्तिकमासे मज्झेन गच्छन्ति । ततो चक्कवाळाभिमुखा गन्त्वा तयो मासे चक्कवाळसमीपेन चरित्वा पुन निक्खमित्वा चित्रमासे मज्झेन गन्त्वा ततो द्वे मासे सिनेरुभिमुखा पक्खन्दित्वा पुन आसाळ्हे सिनेरुसमीपेन चरन्ति । कित्तके ठाने आलोकं करोन्तीति ? एकप्पहारेन तीसु दीपेसु आलोकं करोन्ति । कथं ? इमस्मिहि दीपे सूरियुग्गमनकालो पुब्बविदेहे मज्झन्हिको होति, उत्तरकुरूसु अत्थङ्गमनकालो, अपरगोयाने मज्झिमयामो। पुबविदेहम्हि उग्गमनकालो उत्तरकुरूसु मज्झन्हिको, अपरगोयाने अत्थङ्गमनकालो, इध मज्झिमयामो । उत्तरकुरूसु उग्गमनकालो अपरगोयाने मज्झन्हिको, इध अत्थङ्गमनकालो, पुब्बविदेहे मज्झिमयामो। अपरगोयानदीपे उग्गमनकालो इध मज्झन्हिको, पुब्बविदेहे अत्थङ्गमनकालो, उत्तरकुरूसु मज्झिमयामोति । 46 Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४.१२२-१२६) भूमिपप्पटकपातुभावादिवण्णना ४७ नक्खत्तानि तारकरूपानीति कत्तिकादिनक्खत्तानि चेव सेसतारकरूपानि च चन्दिमसूरियेहि सद्धिंयेव पातुरहेसुं । रत्तिन्दिवाति ततो सूरियत्थङ्गमनतो याव अरुणुग्गमना रत्ति, अरुणुग्गमनतो याव सूरियत्थङ्गमना दिवाति एवं रत्तिन्दिवा पञायिंसु। अथ पञ्चदस रत्तियो अड्डमासो, द्वे अड्डमासा मासोति एवं मासड्डमासा पञायिंसु | अथ चत्तारो मासा उतु, तयो उतू संवच्छरोति एवं उतुसंवच्छरा पञायिंसु । १२२. वण्णवेवण्णता चाति वण्णस्स विवण्णभावो । तेसं वण्णातिमानपच्चयाति तेसं वण्णं आरब्भ उप्पन्नअतिमानपच्चया। मानातिमानजातिकानन्ति पुनप्पुनं उप्पज्जमानातिमानसभावानं । रसाय पथवियाति सम्पन्नरसत्ता रसाति लद्धनामाय पथविया । अनुत्थुनिसूति अनुभासिंसु । अहो रसन्ति अहो अम्हाकं मधुररसं अन्तरहितं । अग्गलं अक्खरन्ति लोकुप्पत्तिवंसकथं । अनुसरन्तीति अनुगच्छन्ति । भूमिपप्पटकपातुभावादिवण्णना १२३. एवमेव पातुरहोसीति एदिसो हुत्वा उट्ठहि, अन्तोवापियं उदके छिन्ने सुक्खकललपटलं विय च उट्ठहि । १२४. पदालताति एका मधुररसा भद्दालता । कलम्बुकाति नाळिका । अहु वत नोति मधुररसा वत नो पदालता अहोसि । अहायि वत नोति सा नो एतरहि अन्तरहिताति । १२५. अकट्ठपाकोति अकट्ठयेव भूमिभागे उप्पन्नो । अकणोति निक्कुण्डको । अथुसोति नित्थुसो। सुगन्धोति दिब्बगन्धं वायति । तण्डुलप्फलोति सुपरिसुद्धं पण्डरं तण्डुलमेव फलति । पक्कं पटिविरूळ्हन्ति सायं गहितट्टानं पातो पक्कं होति, पुन विरूळ्हं पटिपाकतिकमेव गहितहानं न पायति । नापदानं पचायतीति अलायितं हुत्वा अनूनमेव पञ्जायति । इत्थिपुरिसलिङ्गादिपातुभाववण्णना १२६. इत्थिया चाति या पुब्बे मनुस्सकाले इत्थी, तस्स इथिलिङ्गं पातुभवति, पुब्बे पुरिसस्स पुरिसलिङ्गं । मातुगामो नाम हि पुरिसत्तभावं लभन्तो अनुपुब्बेन पुरिसत्तपच्चये Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (४.१२७-१३१) धम्मे पूरेत्वा लभति । पुरिसो इत्थत्तभावं लभन्तो कामेसुमिच्छाचारं निस्साय लभति । तदा पन पकतिया मातुगामस्स इथिलिङ्गं, पुरिसस्स पुरिसलिङ्गं पातुरहोसि । उपनिझायतन्ति उपनिज्झायन्तानं ओलोकेन्तानं । परिळाहोति रागपरिळाहो। सेट्ठिन्ति छारिकं । निब्बुरहमानायाति निय्यमानाय । १२७. अधम्मसम्मतन्ति तं पंसुखिपनादि अधम्मोति सम्मतं । तदेतरहि धम्मसम्मतन्ति तं इदानि धम्मोति सम्मतं, धम्मोति तं गहेत्वा विचरन्ति । तथा हि एकच्चेसु जानपदेसु कलहं कुरुमाना इथियो “त्वं कस्मा कथेसि ? या गोमयपिण्डमत्तम्पि नालत्था"ति वदन्ति । पातव्यतन्ति सेवितब्बतं । सन्निधिकारकन्ति सन्निधिं कत्वा । अपदानं पायित्थाति छिन्नट्ठानं ऊनमेव हुत्वा पञायित्थ । सण्डसण्डाति एकेकस्मिं ठाने कलापबन्धा विय गुम्बगुम्बा हुत्वा। १२८. मरियादं ठपेय्यामाति सीमं ठपेय्याम । यत्र हि नामाति यो हि नाम । पाणिना पहरिसूति तयो वारे वचनं अगण्हन्तं पाणिना पहरिंसु । तदग्गे खोति तं अग्गं कत्वा । महासम्मतराजवण्णना १३०. खीयितबं खीयेय्याति पकासेतब् पकासेय्य खिपितब्बं खिपेय्य, हारेतब्बं हारेय्याति वुत्तं होति । यो नेसं सत्तोति यो तेसं सत्तो। को पन सोति ? अम्हाकं बोधिसत्तो । सालीनं भागं अनुपदस्सामाति मयं एकेकस्स खेत्ततो अम्बणम्बणं आहरित्वा तुहं सालिभागं दस्साम, तया किञ्चि कम्मं न कातब्, त्वं अम्हाकं जेट्टकट्ठाने तिवाति । १३१. अक्खरं उपनिब्बत्तन्ति सङ्खा समझा पञत्ति वोहारो उप्पन्नो। खत्तियो खत्तियोत्वेव दुतियं अक्खरन्ति न केवलं अक्खरमेव, ते पनस्स खेत्तसामिनो तीहि सङ्केहि अभिसेकम्पि अकंसु । रज्जेतीति सुखेति पिनेति । अग्गओनाति अग्गन्ति आतेन, अग्गे वा आतेन लोकुप्पत्तिसमये उप्पन्नेन अभिनिब्बत्ति अहोसीति । 48 Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४.१३२-१३६) ब्राह्मणमण्डलादिवण्णना ब्राह्मणमण्डलादिवण्णना १३२. वीतगारा वीतधूमाति पचित्वा खादितब्बाभावतो विगतधूमङ्गारा | पन्नमुसलाति कोट्टेत्वा पचितब्बाभावतो पतितमुसला । घासमेसमानाति भिक्खाचरियवसेन यागुभत्तं परियेसन्ता । तमेनं मनुस्सा दिस्वाति ते एते मनुस्सा पस्सित्वा । अनभिसम्भुणमानाति असहमाना असक्कोन्ता। गन्थे करोन्ताति तयो वेदे अभिसङ्घरोन्ता चेव वाचेन्ता च । अच्छन्तीति वसन्ति, “अच्छेन्ती"तिपि पाठो । एसेवत्थो । हीनसम्मतन्ति “मन्ते धारेन्ति मन्ते वाचेन्ती"ति खो, वासेठ्ठ, इदं तेन समयेन हीनसम्मतं । तदेतरहि सेवसम्मतन्ति तं इदानि “एत्तके मन्ते धारेन्ति एत्तके मन्ते वाचेन्ती"ति सेट्ठसम्मतं जातं । ब्राह्मणमण्डलस्साति ब्राह्मणगणस्स। १३३. मेथुनं धम्मं समादायाति मेथुनधम्मं समादियित्वा । विसुकम्मन्ते पयोजेसुन्ति गोरक्ख वाणिजकम्मादिके विस्सुते उग्गते कम्मन्ते पयोजेसुं। १३४. सुद्दा सुहाति तेन लुद्दाचारकम्मखुद्दाचारकम्मुना सुदं सुई लहुं लहुं कुच्छितं गच्छन्ति, विनस्सन्तीति अत्थो । अहु खोति होति खो । १३५. सकं धम्म गरहमानोति न सेतच्छत्तं उस्सापनमत्तेन सुज्झितुं सक्काति एवं अत्तनो खत्तियधम्मं निन्दमानो । एस नयो सब्बत्थ । “इमेहि खो, वासेट्ट, चतूहि मण्डलेही"ति इमिना इमं दस्सेति “समणमण्डलं नाम विसुं नत्थि, यस्मा पन न सक्का जातिया सुज्झितुं, अत्तनो अत्तनो सम्मापटिपत्तिया विसुद्धि होति । तस्मा इमेहि चतूहि मण्डलेहि समणमण्डलस्स अभिनिब्बत्ति होति । इमानि मण्डलानि समणमण्डलं अनुवत्तन्ति, अनुवत्तन्तानि च धम्मेनेव अनुवत्तन्ति, नो अधम्मेन । समणमण्डलहि आगम्म सम्मापटिपत्तिं पूरेत्वा सुद्धिं पापुणन्तीति । दुच्चरितादिकथावण्णना १३६. इदानि यथाजातिया न सक्का सुज्झितुं, सम्मापटिपत्तियाव सुज्झन्ति, तमत्थं पाकटं करोन्तो खत्तियोपि खो, वासेद्वाति देसनं आरभि । तत्थ मिच्छादिविकम्मसमादानहेतूति मिच्छादिद्विवसेन समादिन्नकम्महेतु, मिच्छादिट्टिकम्मस्स वा समादानहेतु । 40 Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (४.१३७-१४०) १३७. द्वयकारीति कालेन कुसलं करोति, कालेन अकुसलन्ति एवं उभयकारी । सुखदुक्खप्पटिसंवेदी होतीति एकक्खणे उभयविपाकदानट्ठानं नाम नत्थि । येन पन अकुसलं बहुं कतं होति, कुसलं मन्दं, सो तं कुसलं निस्साय खत्तियकुले वा ब्राह्मणकुले वा निब्बत्तति । अथ नं अकुसलकम्मं काणम्पि करोति खुज्जम्पि पीठसप्पिम्पि । सो रज्जस्स वा अनरहो होति, अभिसित्तकाले वा एवंभूतो भोगे परिभुजितुं न सक्कोति । अपरस्स मरणकाले द्वे बलवमल्ला विय ते द्वेपि कुसलाकुसलकम्मानि उपठ्ठहन्ति । तेसु अकुसलं बलवतरं होति, तं कुसलं पटिबाहित्वा तिरच्छानयोनियं निब्बत्तापेति। कुसलकम्मम्पि पवत्तिवेदनीयं होति । तमेनं मङ्गलहत्थिं वा करोन्ति मङ्गलअस्सं वा मङ्गलउसभं वा। सो सम्पत्तिं अनुभवति । इदं सन्धाय वुत्तं “सुखदुक्खप्पटिसंवेदी होती"ति । बोधिपक्खियभावनावण्णना १३८. सत्तनं बोधिपक्खियानन्ति “चत्तारो सतिपट्ठाना"ति आदिकोट्ठासवसेन सत्तन्नं, पटिपाटिया पन सत्ततिंसाय बोधिपक्खियानं धम्मानं । भावनमन्वायाति भावनं अनुगन्त्वा, पटिपज्जित्वाति अत्थो । परिनिब्बायतीति किलेसपरिनिब्बानेन परिनिब्बायति । इति भगवा चत्तारो वण्णे दस्सेत्वा विनिवत्तेत्वा पटिविद्धचतुसच्चं खीणासवमेव देवमनुस्सेसु सेठें कत्वा दस्सेसि । १४०. इदानि तमेवत्थं लोकसम्मतस्स ब्रह्मनोपि वचनदस्सनानुसारेन दळ्हं कत्वा दस्सेन्तो इमेसहि वासेट्ठ चतुत्रं वण्णानन्तिआदिमाह । "ब्रह्मनापेसा'"तिआदि अम्बट्ठसुत्ते वित्थारितं । इति भगवा एत्तकेन इमिना कथामग्गेन सेठ्ठच्छेदकवादमेव दस्सेत्वा सुत्तन्तं विनिवत्तेत्वा अरहत्तनिकूटेन देसनं निट्ठापेसि । अत्तमना वासेट्ठभारद्वाजाति वासेठ्ठभारद्वाज सामणेरापि हि सकमना तुट्ठमना “साधु, साधू"ति भगवतो भासितं अभिनन्दिंसु । इदमेव सुत्तन्तं आवज्जन्ता अनुमज्जन्ता सह पटिसम्भिदाहि अरहत्तं पापुर्णिसूति | सुमङ्गलविलासिनिया दीघनिकायट्ठकथाय अग्गजसुत्तवण्णना निहिता। 50 . Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५. सम्पसादनीयसुत्तवण्णना सारिपुत्तसीहनादवण्णना १४१. एवं मे सुतन्ति सम्पसादनीयसुत्तं । तत्रायमनुत्तानपदवण्णना - नाळन्दायन्ति नाळन्दाति एवंनामके नगरे, तं नगरं गोचरगामं कत्वा। पावारिकम्बवनेति दुस्सपावारिकसेट्टिनो अम्बवने । तं किर तस्स उय्यानं अहोसि । सो भगवतो धम्मदेसनं सुत्वा भगवति पसन्नो तस्मिं उय्याने कुटिलेणमण्डपादिपटिमण्डितं भगवतो विहारं कत्वा निय्यातेसि । सो विहारो जीवकम्बवनं विय “पावारिकम्बवन"न्त्वेव सङ्ख्यं गतो, तस्मिं पावारिकम्बवने विहरतीति अत्थो। भगवन्तं एतदवोच- “एवंपसन्नो अहं, भन्ते, भगवती"ति । कस्मा एवं अवोच? अत्तनो उप्पन्नसोमनस्सपवेदनत्थं । तत्रायमनुपुब्बिकथा - थेरो किर तंदिवसं कालस्सेव सरीरप्पटिजग्गनं कत्वा सुनिवत्थनिवासनो पत्तचीवरमादाय पासादिकेहि अभिक्कन्तादीहि देवमनुस्सानं पसादं आवहन्तो नाळन्दवासीनं हितसुखमनुब्रूहयन्तो पिण्डाय पविसित्वा पच्छाभत्तं पिण्डपातपटिक्कन्तो विहारं गन्त्वा सत्थु वत्तं दस्सेत्वा सत्थरि गन्धकुटिं पविढे सत्थारं वन्दित्वा अत्तनो दिवाट्टानं अगमासि। तत्थ सद्धिविहारिकन्तेवासिकेसु वत्तं दस्सेत्वा पटिक्कन्तेसु दिवाट्ठानं सम्मज्जित्वा चम्मक्खण्डं पञपेत्वा उदकतुम्बतो उदकेन हत्थपादे सीतले कत्वा तिसन्धिपल्लवं आभुजित्वा कालपरिच्छेदं कत्वा फलसमापत्तिं समापज्जि । सो यथापरिच्छिन्नकालवसेन समापत्तितो वुट्ठाय अत्तनो गुणे अनुस्सरितुमारद्धो । अथस्स गुणे अनुस्सरतो सीलं आपाथमागतं । ततो पटिपाटियाव समाधि पचा विमुत्ति विमुत्तित्राणदस्सनं पठमं झानं दुतियं झानं ततियं झानं चतुत्थं झानं आकासानञ्चायतनसमापत्ति विज्ञानञ्चायतनसमापत्ति आकिञ्चायतनसमापत्ति 51 Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (५.१४१-१४१) नेवसञानासायतनसमापत्ति विपस्सनाञाणं मनोमयिद्धिाणं इद्धिविधञाणं दिब्बसोताणं चेतोपरियाणं पुब्बेनिवासानुस्सतिञाणं दिब्बचक्खुजाणं...पे०... सोतापत्तिमग्गो सोतापत्तिफलं...पे०... अरहत्तमग्गो अरहत्तफलं अत्थपटिसम्भिदा धम्मपटिसम्भिदा निरुत्तिपटिसम्भिदा पटिभानपटिसम्भिदा सावकपारमीञाणं। इतो पट्ठाय कप्पसतसहस्साधिकस्स असङ्खयेय्यस्स उपरि अनोमदस्सीबुद्धस्स पादमूले कतं अभिनीहारं आदि कत्वा अत्तनो गुणे अनुस्सरतो याव निसिन्नपल्लङ्का गुणा उपट्ठहिंसु। एवं थेरो अत्तनो गुणे अनुस्सरमानो गुणानं पमाणं वा परिच्छेदं वा दट्ठ नासक्खि । सो चिन्तेसि- “महं ताव पदेसाणे ठितस्स सावकस्स गुणानं पमाणं वा परिच्छेदो वा नत्थि । अहं पन यं सत्थारं उद्दिस्स पब्बजितो, कीदिसा नु खो तस्स गुणा"ति दसबलस्स गुणे अनुस्सरितुं आरद्धो । सो भगवतो सीलं निस्साय, समाधिं पञ्ज विमुत्तिं विमुत्तित्राणदस्सनं निस्साय, चत्तारो सतिपट्टाने निस्साय, चत्तारो सम्मप्पधाने चत्तारो इद्धिपादे चत्तारो मग्गे चत्तारि फलानि चतस्सो पटिसम्भिदा चतुयोनिपरिच्छेदकआणं चत्तारो अरियवंसे निस्साय दसबलस्स गुणे अनुस्सरितुमारद्धो । तथा पञ्च पधानियङ्गानि, पञ्चङ्गिकंसम्मासमाधिं, पञ्चिन्द्रियानि, पञ्च बलानि, पञ्च निस्सरणिया धातुयो, पञ्च विमुत्तायतनानि, पञ्च विमुत्तिपरिपाचनिया पञ्जा, छ सारणीये धम्मे, छ अनुस्सतिद्वानानि, छ गारवे, छ निस्सरणिया धातुयो, छ सततविहारे, छ अनुत्तरियानि, छ निब्बेधभागिया पञ्जा, छ अभिजा, छ असाधारणजाणानि, सत्त अपरिहानिये धम्मे, सत्त अरियधनानि, सत्त बोज्झङ्गे, सत्त सप्पुरिसधम्मे, सत्त निज्जरवत्थूनि, सत्त पञ्जा, सत्त दक्खिणेय्यपुग्गले, सत्त खीणासवबलानि, अट्ठ पापटिलाभहेतू, अट्ठ सम्मत्तानि, अट्ठ लोकधम्मातिक्कमे, अट्ठ आरम्भवत्थूनि, अट्ठ अक्खणदेसना, अट्ठ महापुरिसवितक्के, अट्ठ अभिभायतनानि, अट्ठ विमोक्खे, नव योनिसोमनसिकारमूलके धम्मे, नव पारिसुद्धिपधानियङ्गानि, नव सत्तावासदेसना, नव आघातप्पटिविनये, नव पञ्जा, नव नानत्तानि, नव अनुपुब्बविहारे, दस नाथकरणे धम्मे, दस कसिणायतनानि, दस कुसलकम्मपथे, दस तथागतबलानि, दस सम्मत्तानि, दस अरियवासे, दस असेक्खधम्मे, एकादस मेत्तानिसंसे, द्वादस धम्मचक्काकारे, तेरस धुतङ्गगुणे, चुद्दस बुद्धआणानि, पञ्चदस विमुत्तिपरिपाचनिये धम्मे, सोळसविधं आनापानस्सतिं, अट्ठारस बुद्धधम्मे, एकूनवीसति पच्चवेक्खणजाणानि, चतुचत्तालीस आणवत्थूनि, परोपण्णास कुसलधम्मे, सत्तसत्तति आणवत्थूनि, 52 Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५.१४१-१४१) सारिपुत्तसीहनादवण्णना चतुवीसतिकोटिसतसहस्ससमापत्तिसञ्चरमहावजिराणं निस्साय दसबलस्स गुणे अनुस्सरितुं आरभि । तस्मिंयेव च दिवाट्ठाने निसिन्नोयेव उपरि “अपरं पन, भन्ते, एतदानुत्तरिय"न्ति आगमिस्सन्ति सोळस अपरम्परियधम्मा, तेपि निस्साय अनुस्सरितुं आरभि । सो "कुसलपञत्तियं अनुत्तरो मय्हं सत्था, आयतनपञत्तियं अनुत्तरो, गब्भावक्कन्तियं अनुत्तरो, आदेसनाविधासु अनुत्तरो, दस्सनसमापत्तियं अनुत्तरो, पुग्गलपञत्तियं अनुत्तरो, पधाने अनुत्तरो, पटिपदासु अनुत्तरो, भस्ससमाचारे अनुत्तरो, पुरिससीलसमाचारे अनुत्तरो, अनुसासनीविधासु अनुत्तरो, परपुग्गलविमुत्तित्राणे अनुत्तरो, सस्सतवादेसु अनुत्तरो, पूब्बेनिवाससाणे अनुत्तरो, दिब्बचखुजाणे अनुत्तरो, इद्धिविधे अनुत्तरो, इमिना च इमिना च अनुत्तरो"ति एवं दसबलस्स गुणे अनुस्सरन्तो भगवतो गुणानं नेव अन्तं, न पमाणं पस्सि । थेरो अत्तनोपि ताव गुणानं अन्तं वा पमाणं वा नाद्दस, भगवतो गुणानं किं पस्सिस्सति ? यस्स यस्स हि पञा महती जाणं विसदं, सो सो बुद्धगुणे महन्ततो सहति । लोकियमहाजनो उक्कासित्वापि खिपित्वापि "नमो बुद्धान"न्ति अत्तनो अत्तनो उपनिस्सये ठत्वा बुद्धानं गुणे अनुस्सरति । सब्बलोकियमहाजनतो एको सोतापन्नो बुद्धगुणे महन्ततो सद्दहति । सोतापन्नानं सततोपि सहस्सतोपि एको सकदागामी । सकदागामीनं सततोपि सहस्सतोपि एको अनागामी। अनागामीनं सततोपि सहस्सतोपि एको अरहा बुद्धगुणे महन्ततो सद्दहति । अवसेसअरहन्तेहि असीति महाथेरा बुद्धगुणे महन्ततो सद्दहन्ति । असीतिमहाथेरेहि चत्तारो महाथेरा । चतूहि महाथेरेहि द्वे अग्गसावका । तेसुपि सारिपुत्तत्थेरो, सारिपुत्तत्थेरतोपि एको पच्चेकबुद्धो बुद्धगुणे महन्ततो सद्दहति । सचे पन सकलचक्कवाळगब्भे सङ्घाटिकण्णेन सङ्घाटिकण्णं पहरियमाना निसिन्ना पच्चेकबुद्धा बुद्धगुणे अनुस्सरेय्युं, तेहि सब्बेहिपि एको सब्बञ्जबुद्धोव बुद्धगुणे महन्ततो सद्दहति । - सेय्यथापि नाम महाजनो “महासमुद्दो गम्भीरो उत्तानोति जाननत्थं योत्तानि वट्टेय्य, तत्थ कोचि ब्यामप्पमाणं योत्तं वट्टेय्य, कोचि द्वे ब्यामं, कोचि दसब्यामं, कोचि वीसतिब्यामं, कोचि तिसब्यामं, कोचि चत्तालीसब्यामं, कोचि पञासब्यामं, कोचि सतब्यामं, कोचि सहस्सब्यामं, कोचि चतुरासीतिब्यामसहस्सं । ते नावं आरुय्ह, समुद्दमज्झे उग्गतपब्बतादिम्हि वा ठत्वा अत्तनो अत्तनो योत्तं ओतारेय्यु, तेसु यस्स योत्तं ब्याममत्तं, सो ब्याममत्तट्ठानेयेव उदकं जानाति...पे०... यस्स चतुरासीतिब्यामसहस्सं, सो चतुरासीतिब्यामसहस्सट्ठानेयेव उदकं जानाति । परतो उदकं एत्तकन्ति न जानाति । 53 Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (५.१४१-१४१) महासमुद्दे पन न तत्तकंयेव उदकं, अथ खो अनन्तमपरिमाणं | चतुरासीतियोजनसहस्सं गम्भीरो हि महासमुद्दो, एवमेव एकब्यामयोत्ततो पट्ठाय नवब्यामयोत्तेन आतउदकं विय लोकियमहाजनेन दिट्ठबुद्धगुणा वेदितब्बा। दसब्यामयोत्तेन दसब्यामट्ठाने जातउदकं विय सोतापन्नेन दिट्ठबुद्धगुणा। वीसतिब्यामयोत्तेन वीसतिब्यामट्ठाने आतउदकं विय सकदागामिना दिट्ठबद्धगणा। तिसब्यामयोत्तेन तिसब्यामट्ठाने आतउदकं विय अनागामिना दिट्ठबुद्धगुणा । चत्तालीसब्यामयोत्तेन चत्तालीसब्यामट्ठाने आतउदकं विय अरहता दिट्ठबुद्धगुणा । पासब्यामयोत्तेन पञासब्यामट्ठाने आतउदकं विय असीतिमहाथेरेहि दिट्ठबुद्धगुणा । सतब्यामयोत्तेन सतब्यामट्ठाने आतउदकं विय चतूहि महाथेरेहि दिट्ठबुद्धगुणा। सहस्सब्यामयोत्तेन सहस्सब्यामट्ठाने आतउदकं विय महामोग्गल्लानत्थेरेन दिट्ठबुद्धगुणा। चतुरासीतिब्यामसहस्सयोत्तेन चतुरासीतिब्यामसहस्सट्टाने आतउदकं विय धम्मसेनापतिना सारिपुत्तत्थेरेन दिट्ठबुद्धगुणा । तत्थ यथा सो पुरिसो महासमुद्दे उदकं नाम न एत्तकंयेव, अनन्तमपरिमाणन्ति गण्हाति, एवमेव आयस्मा सारिपुत्तो धम्मन्वयेन अन्वयबुद्धिया अनुमानेन नयग्गाहेन सावकपारमीजाणे ठत्वा दसबलस्स गुणे अनुस्सरन्तो "बुद्धगुणा अनन्ता अपरिमाणा''ति सद्दहि । थेरेन हि दिट्ठबुद्धगुणेहि धम्मन्वयेन गहेतब्बबुद्धगुणायेव बहुतरा । यथा कथं विय ? यथा इतो नव इतो नवाति अट्ठारस योजनानि अवत्थरित्वा गच्छन्तिया चन्दभागाय महानदिया पुरिसो सूचिपासेन उदकं गण्हेय्य, सूचिपासेन गहितउदकतो अग्गहितमेव बहु होति । यथा वा पन पुरिसो महापथवितो अङ्गुलिया पंसुं गण्हेय्य, अङ्गुलिया गहितपंसुतो अवसेसपंसुयेव बहु होति । यथा वा पन पुरिसो महासमुद्दाभिमुखि अङ्गुलिं करेय्य, अङ्गुलिअभिमुखउदकतो अवसेसं उदकंयेव बहु होति । यथा च पुरिसो आकासाभिमुखिं अङ्गुलिं करेय्य, अङ्गुलिअभिमुखआकासतो सेसआकासप्पदेसोव बहु होति । एवं थेरेन दिह्रबुद्धगुणेहि अदिट्ठा गुणाव बहूति वेदितब्बा । वुत्तम्पि चेतं "बुद्धोपि बुद्धस्स भणेय्य वण्णं, कप्पम्पि चे अञमभासमानो । खीयेथ कप्पो चिरदीघमन्तरे, वण्णो न खीयेथ तथागतस्सा''ति ।। एवं थेरस्स अत्तनो च सत्थु च गुणे अनुस्सरतो यमकमहानदीमहोघो विय 54 Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५.१४२-१४२) सारिपुत्तसीहनादवण्णना अब्भन्तरे पीतिसोमनस्सं अवत्थरमानं वातो विय भस्तं, उब्भिज्जित्वा उग्गतउदकं विय महारहदं सकलसरीरं पूरेति । ततो थेरस्स "सुपत्थिता वत मे पत्थना, सुलद्धा मे पब्बज्जा, य्वाहं एवंविधस्स सत्थु सन्तिके पब्बजितो"ति आवज्जन्तस्स बलवतरं पीतिसोमनस्सं उप्पज्जि। अथ थेरो “कस्साहं इमं पीतिसोमनस्सं आरोचेय्य"न्ति चिन्तेन्तो अञो कोचि समणो वा ब्राह्मणो वा देवो वा मारो वा ब्रह्मा वा मम इमं पसादं अनुच्छविकं कत्वा पटिग्गहेतुं न सक्खिस्सति, अहं इमं सोमनस्सं सत्थुनोयेव पवेदेय्यामि, सत्थाव मे पटिग्गण्हितुं सक्खिस्सति, सो हि तिठ्ठतु मम पीतिसोमनस्सं, मादिसस्स समणसतस्स वा समणसहस्सस्स वा समणसतसहस्सस्स वा सोमनस्सं पवेदेन्तस्स सब्बेसं मनं गण्हन्तो पटिग्गहेतुं सक्कोति । सेय्यथापि नाम अट्ठारस योजनानि अवत्थरमानं गच्छन्तिं चन्दभागमहानदिं कुसुम्भा वा कन्दरा वा सम्पटिच्छितुं न सक्कोन्ति, महासमुद्दोव तं सम्पटिच्छति । महासमुद्दो हि तिट्ठतु चन्दभागा, एवरूपानं नदीनं सतम्पि सहस्सम्पि सतसहस्सम्पि सम्पटिच्छति, न चस्स तेन ऊनत्तं वा पूरत्तं वा पञ्जायति, एवमेव सत्था मादिसस्स समणसतस्स समणसहस्सस्स समणसतसहस्सस्स वा पीतिसोमनस्सं पवेदेन्तस्स सब्बेसं मनं गण्हन्तो पटिग्गहेतुं सक्कोति। सेसा समणब्राह्मणादयो चन्दभागं कुसुम्भकन्दरा विय मम सोमनस्सं सम्पटिच्छितुं न सक्कोन्ति । हन्दाहं मम पीतिसोमनस्सं सत्थुनोव आरोचेमीति पल्लवं विनिब्भुजित्वा चम्मक्खण्डं पप्फोटेत्वा आदाय सायन्हसमये पुप्फानं वण्टतो छिज्जित्वा पग्धरणकाले सत्थारं उपसङ्कमित्वा अत्तनो सोमनस्सं पवेदेन्तो एवंपसन्नो अहं, भन्तेतिआदिमाह । तत्थ एवंपसन्नोति एवं उप्पन्नसद्धो, एवं सद्दहामीति अत्थो । भिय्योभिज्ञतरोति भिय्यतरो अभिजातो, भिय्यतराभिञो वा, उत्तरितरत्राणोति अत्थो । सम्बोधियन्ति सब्ब तञाणे अरहत्तमग्गजाणे वा, अरहत्तमग्गेनेव हि बुद्धगुणा निप्पदेसा गहिता होन्ति । द्वे हि अग्गसावका अरहत्तमग्गेनेव सावकपारमीत्राणं पटिलभन्ति । पच्चेकबुद्धा पच्चेकबोधिजाणं । बुद्धा सब्ब ताणञ्चेव सकले च बुद्धगुणे। सब्बन्हि नेसं अरहत्तमग्गेनेव इज्झति । तस्मा अरहत्तमग्गजाणं सम्बोधि नाम होति । तेन उत्तरितरो भगवता नत्थि । तेनाह "भगवता भिय्योभितरो यदिदं सम्बोधिय"न्ति । १४२. उळाराति सेट्ठा। अयहि उळारसद्दो "उळारानि खादनीयानि खादन्ती''तिआदीसु (म० नि० १.३६६) मधुरे आगच्छति । “उळाराय खलु भवं, 55 Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (५.१४२-१४२) वच्छायनो, समणं गोतमं पसंसाय पसंसती''तिआदीसु (म० नि० ३.२८०) सेटे । “अप्पमाणो उळारो ओभासो"तिआदीसु (दी० नि० २.३२) विपुले । स्वायमिध सेढे आगतो। तेन वुत्तं- “उळाराति सेट्ठा''ति | आसभीति उसभस्स वाचासदिसी अचला असम्पवेधी। एकंसो गहितोति अनुस्सवेन वा आचरियपरम्पराय वा इतिकिराय वा पिटकसम्पदानेन वा आकारपरिवितक्केन वा दिट्ठिनिज्झानक्खन्तिया वा तक्कहेतु वा नयहेतु वा अकथेत्वा पच्चक्खतो आणेन पटिविज्झित्वा विय एकंसो गहितो, सन्निट्ठानकथाव कथिताति अत्थो । सीहनादोति सेट्ठनादो, नेव दन्धायन्तेन न गग्गरायन्तेन सीहेन विय उत्तमनादो नदितोति अत्थो । किं ते सारिपुत्ताति इमं देसनं कस्मा आरभीति ? अनुयोगदापनत्थं । एकच्चो हि सीहनादं नदित्वा अत्तनो सीहनादे अनुयोगं दातुं न सक्कोति, निघसनं नक्खमति, लेपे पतितमक्कटो विय होति । यथा धममानं अपरिसुद्धलोहं झायित्वा झामअङ्गारो होति, एवं झामगारो विय होति । एको सीहनादे अनुयोगं दापियमानो दातुं सक्कोति, निघसनं खमति, धममानं निदोसजातरूपं विय अधिकतरं सोभति, तादिसो थेरो । तेन नं भगवा “अनुयोगक्खमो अय"न्ति अत्वा सीहनादे अनुयोगदापनत्थं इमम्पि देसनं आरभि । तत्थ सब्बे तेति सब्बे ते तया । एवंसीलातिआदीसु लोकियलोकुत्तरवसेन सीलादीनि पुच्छति । तेसं वित्थारकथा महापदाने कथिताव । किं पन ते, सारिपुत्त, ये ते भविस्सन्तीति अतीता च ताव निरुद्धा, अपण्णत्तिकभावं गता दीपसिखा विय निब्बुता, एवं निरुद्धे अपण्णत्तिकभावं गते त्वं कथं जानिस्ससि, अनागतबुद्धानं पन गुणा किन्ति तया अत्तनो चित्तेन परिच्छिन्दित्वा विदिताति पुच्छन्तो एवमाह । किं पन ते, सारिपुत्त, अहं एतरहीति अनागतापि बुद्धा अजाता अनिब्बत्ता अनुप्पन्ना, तेपि कथं त्वं जानिस्ससि ? तेसहि जाननं अपदे आकासे पददस्सनं विय होति । इदानि मया सद्धिं एकविहारे वससि, एकतो भिक्खाय चरसि, धम्मदेसनाकाले दक्खिणपस्से निसीदसि, किं पन मय्हं गुणा अत्तनो चेतसा परिच्छिन्दित्वा विदिता तयाति अनुयुञ्जन्तो एवमाह । थेरो पन पुच्छिते पुच्छिते “नो हेतं, भन्ते"ति पटिक्खिपति । थेरस्स च विदितम्पि 56 Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५.१४३ - १४३) सारिपुत्तसीहनादवण्णना अत्थि अविदितम्पि अत्थि, किं सो अत्तनो विदितट्ठाने पटिक्खेपं करोति, अविदितट्ठानेति ? विदितट्ठाने न करोति, अविदितट्ठानेयेव करोतीति । थेरो किर अनुयोगे आरद्धेयेव अञ्ञासि । न अयं अनुयोगो सावकपारमीञाणे, सब्बञ्जुतञ्ञाणे अयं अनुयोगोति अत्तनो सावकपारमीञाणे पटिक्खेपं अकत्वा अविदितट्ठाने सब्बञ्जतञ्जाणे पटिक्खेपं करोति । तेन इदम्पि दीपेति “भगवा मय्हं अतीतानागतपच्चुप्पन्नानं बुद्धानं सीलसमाधिपञविमुत्तिकारणजाननसमत्थं सब्बञ्जुतञणं नत्थी'ति । एत्थाति एतेसु अतीतादिभेदेसु बुद्धेसु । अथ किञ्चरहीति अथ कस्मा एवं आ असति तया एवं कथितन्ति वदति । ५७ १४३. धम्मन्वयोति धम्मस्स पच्चक्खतो ञाणस्स अनुयोगं अनुगन्त्वा उप्पन्नं अनुमानञाणं नयग्गाहो विदितो । सावकपारमीञाणे ठत्वाव इमिनाव आकारेन जानामि भगवाति वदति । थेरस्स हि नयग्गाहो अप्पमाणो अपरियन्तो । यथा सब्बञ्जतञ्ञाणस्स पमाणं वा परियन्तो वा नत्थि, एवं धम्मसेनापतिनो नयग्गाहस्स । तेन सो “इमिना एवंविधो, इमिना अनुत्तरो सत्था "ति जानाति । थेरस्स हि नयग्गाहो सब्बञ्जतञाणगतिको एव । इदानि तं नयग्गाहं पाकटं कातुं उपमाय दस्सेन्तो सेय्यथापि, भन्तेतिआदिमाह । तत्थ यस्मा मज्झिमपदेसे नगरस्स उद्घापपाकारादीनि थिरानि वा होन्तु, दुब्बलानि वा, सब्बसो वा पन मा होन्तु, चोरासङ्का न होति, तस्मा तं अग्गहेत्वा पच्चन्तिमनगरन्ति आह । दहुद्धापन्ति थिरपाकारपादं । दहपाकारतोरणन्ति थिरपाकारञ्चेव थिरपिट्ठसङ्घाटञ्च । एकद्वारन्ति कस्मा आह ? बहुद्वारे हि नगरे बहूहि पण्डितदोवारिकेहि भवितब्बं । एकद्वारे एकोव वट्टति । थेरस्स च पञ्ञाय सदिसो अञ्ञो नत्थि । तस्मा अत्तनो पण्डितभावस्स ओपम्मत्थं एकंयेव दोवारिकं दस्सेतुं एकद्वार "न्ति आह । पण्डितोति पण्डिच्चेन समन्नागतो । व्यत्तोति वेय्यत्तियेन समन्नागतो विसदञाणो । मेधावीति ठानुप्पत्तिकपञ्ञासङ्घाताय मेधाय समन्नागतो । अनुपरियायपथन्ति अनुपरियायनामकं पाकारमग्गं । पाकारसन्धिन्ति द्विन्नं इट्ठकानं अपगतट्ठानं । पाकारविवरन्ति पाकारस्स छिन्नट्ठानं । चेतसो उपक्किलेसेति पञ्च नीवरणानि चित्तं उपक्किलेसेन्ति किलिट्टं करोन्ति उपतापेन्ति विबाधेन्ति, तस्मा “चेतसो उपक्किलेसा' ति वुच्चन्ति । पञ्ञाय दुब्बलीकरणेति नीवरणा उप्पज्जमाना अनुप्पन्नाय पञ्ञाय उप्पज्जितुं न देन्ति, उप्पन्नाय पञ्ञाय वड्ढितुं 57 Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा न देन्ति, तस्मा "पञ्ञाय दुब्बलीकरणा'' ति वुच्चन्ति । सुप्पतिट्ठितचित्ताति चतूसु सतिपट्ठानेसु सुटु ठपितचित्ता हुत्वा । सत्त बोझ यथाभूतन्ति सत्त बोझङ्गे यथासभावेन भावेत्वा । अनुत्तरं सम्मासम्बोधिन्ति अरहत्तं सब्बञ्जतञ्जाणं वा पटिविज्झिंसूति दस्सेति । अपिचेत्थ सतिपट्ठानाति विपस्सना | सम्बोज्झङ्गा मग्गो । अनुत्तरासम्मासम्बोधि अरहत्तं । सतिपट्ठानाति वा मग्गाति वा बोज्झङ्गमिस्सका । सम्मासम्बोधि अरहत्तमेव । दीघभाणक महासीवत्थेरो पनाह “सतिपट्ठाने विपस्सनाति गहेत्वा बोज्झङ्गे मग्गो च सब्बञ्जतञ्ञाणञ्चाति गहिते सुन्दरो पञ्हो भवेय्य, न पनेवं गहित "न्ति । इति थेरो सब्बञ्ञबुद्धानं नीवरणप्पहाने सतिपट्ठानभावनाय सम्बोधियञ्च मज्झे भिन्नसुवण्णरजतानं विय नानत्ताभावं दस्सेति । (५.१४४-१४४) इध ठत्वा उपमा संसन्देतब्बा - आयस्मा हि सारिपुत्तो पच्चन्तनगरं दस्सेसि, पाकारं दस्सेसि, परियायपथं दस्सेसि, द्वारं दस्सेसि, पण्डितदोवारिकं दस्सेसि, नगरं पवेसनकनिक्खमनके ओळारिके पाणे दस्सेसि, पण्डितदोवारिकस्स तेसं पाणानं पाकटभावञ्च दस्सेसि । तत्थ किं केन सदिसन्ति चे । नगरं विय हि निब्बानं, पाकारो विय सीलं, परियायपथो विय हिरी, द्वारं विय अरियमग्गो, पण्डितदोवारिको विय धम्मसेनापति, नगरप्पविसनकनिक्खमनकओळारिकपाणा विय अतीतानागतपचुप्पन्ना बुद्धा, दोवारिक तेसं पाणानं पाक भावो विय आयस्तो सारिपुत्तस्स अतीतानागतपच्चुप्पन्नबुद्धानं सीलसमथादीहि पाकटभावो । एत्तावता थेरेन भगवा एवमहं सावकपारमीञाणे ठत्वा धम्मन्वयेन नयग्गाहेन जानामीति अत्तनो सीहनादस्स अनुयोगो दिन्नो होति । १४४. इधाहं, भन्ते, येन भगवाति इमं देसनं कस्मा आरभि ? सावकपारमीआणस्स निप्फत्तिदस्सनत्थं । अयञ्हेत्थ अधिप्पायो, भगवा अहं सावकपारमीञाणं पटिलभन्तो पञ्चनवुतिपासण्डे न अञ्ञ एकम्पि समणं वा ब्राह्मणं वा उपसङ्कमित्वा सावकपारमीञाणम्पि पटिलभिं, तुम्हेयेव उपसङ्कमित्वा तुम्हे पयिरुपासन्तो पटिल भिन्ति । तत्थ इधाति निपातमत्तं । उपसङ्कमि धम्मसवनायाति तुम्हे उपसङ्कमन्तो पनाहं न चीवरादिहेतु उपसङ्कमन्तो, धम्मसवनत्थाय उपसङ्कमन्तो । एवं उपसङ्कमित्वा सावकाराणं पटिलभं । कदा पन थेरो धम्मसवनत्थाय उपसङ्कमन्तोति । सूकरखत भागिनेय्यदीघनखपरिब्बाजकस्स वेदनापरिग्गहसुत्तन्तकथनदिवसे (म० नि० २.२०५) 58 Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५.१४५-१४५) कुसलधम्मदेसनावण्णना ५९ उपसङ्कमन्तो, तदायेव सावकपारमीञाणं पटिलभीति । तंदिवसहि थेरो तालवण्टं गहेत्वा भगवन्तं बीजमानो ठितो तं देसनं सुत्वा तत्थेव सावकपारमीजाणं हत्थगतं अकासि । उत्तरुत्तरं पणीतपणीतन्ति उत्तरुत्तरञ्चेव पणीतपणीतञ्च कत्वा देसेसि । कण्हसुक्कसप्पटिभागन्ति कण्हञ्चेव सुक्कञ्च । तञ्च खो सप्पटिभागं सविपक्खं कत्वा । कण्हं पटिबाहित्वा सुक्कं, सुक्कं पटिबाहित्वा कण्हन्ति एवं सप्पटिभागं कत्वा कण्हसुक्कं देसेसि, कण्हं देसेन्तोपि च सउस्साहं सविपाकं देसेसि, सुक्कं देसेन्तोपि सउस्साहं सविपाकं देसेसि । तस्मिं धम्मे अभिञा इधेकच्चं धम्मं धम्मेसु निमगमन्ति तस्मिं देसिते धम्मे एकच्चं धम्मं नाम सावकपारमीत्राणं सजानित्वा धम्मेसु निट्ठमगमं । कतमेसु धम्मेसूति ? चतुसच्चधम्मसु । एत्थायं थेरसल्लापो, काळवल्लवासी सुमत्थेरो ताव वदति "चतुसच्चधम्मेसु इदानि निट्ठगमनकारणं नत्थि । अस्सजिमहासावकस्स हि दिढदिवसेयेव सो पठममग्गेन चतुसच्चधम्मेसु निढें गतो, अपरभागे सूकरखतलेणद्वारे उपरि तीहि मग्गेहि चतुसच्चधम्मसु निझैं गतो, इमस्मिं पन ठाने 'धम्मेसूति बुद्धगुणेसु निद्रं गतो"ति । लोकन्तरवासी चूळसीवत्थेरो पन “सब्बं तथैव वत्वा इमस्मिं पन ठाने 'धम्मेसूति अरहत्ते निहुँ गतो"ति आह । दीघभाणकतिपिटकमहासीवत्थेरो पन “तथेव पुरिमवादं वत्वा इमस्मिं पन ठाने 'धम्मेसूति सावकपारमीञाणे निटुं गतो''ति वत्वा “बुद्धगुणा पन नयतो आगता"ति आह । सत्थरि पसीदिन्ति एवं सावकपारमीजाणधम्मेसु निहूँ गन्त्वा भिय्योसोमत्ताय “सम्मासम्बुद्धो वत सो भगवा"ति सत्थरि पसीदिं । स्वाक्खातो भगवता धम्मोति सुटु अक्खातो सुकथितो निय्यानिको मग्गो फलत्थाय निय्याति रागदोसमोहनिम्मदनसमत्थो । - सुप्पटिपनो सोति बुद्धस्स भगवतो सावकसङ्घोपि वङ्कादिदोसविरहितं सम्मापटिपदं पटिपन्नत्ता सुप्पटिपन्नोति पसन्नोम्हि भगवतीति दस्सेति । कुसलधम्मदेसनावण्णना १४५. इदानि दिवाट्टाने निसीदित्वा समापज्जिते सोळस अपरापरियधम्मे दस्सेतुं अपरं पन भन्ते एतदानुत्तरियन्ति देसनं आरभि । तत्थ अनुत्तरियन्ति अनुत्तरभावो। यथा 59 Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (५.१४५-१४५) भगवा धम्म देसेतीति यथा येनाकारेन याय देसनाय भगवा धम्मं देसेति, सा तुम्हाकं देसना अनुत्तराति वदति । कुसलेसु धम्मसूति ताय देसनाय देसितेसु कुसलेसु धम्मसुपि भगवाव अनुत्तरोति दीपेति । या वा सा देसना, तस्सा भूमिं दस्सेन्तोपि “कुसलेसु धम्मेसू"ति आह । तत्रिमे कुसला धम्माति तत्र कुसलेसु धम्मेसूति वृत्तपदे इमे कुसला धम्मा नामाति वेदितब्बा। तत्थ आरोग्यढेन, अनवज्जढेन, कोसल्लसम्भूतढेन, निद्दरथटेन, सुखविपाकट्ठेनाति पञ्चधा कुसलं वेदितब्बं । तेसु जातकपरियायं पत्वा आरोग्यटेन कुसलं वट्टति। सुत्तन्तपरियायं पत्वा अनवज्जढेन। अभिधम्मपरियायं पत्वा कोसल्लसम्भूतनिदरथसुखविपाकटेन । इमस्मिं पन ठाने बाहितिकसुत्तन्तपरियायेन (म० नि० २.३५८) अनवज्जठून कुसलं दट्टब्बं । चत्तारो सतिपट्टानाति चुद्दसविधेन कायानुपस्सनासतिपट्टानं, नवविधेन वेदनानुपस्सनासतिपट्ठानं, सोळसविधेन चित्तानुपस्सनासतिपट्ठानं, पञ्चविधेन धम्मानुपस्सनासतिपट्टानन्ति एवं नानानयेहि विभजित्वा समथविपस्सनामग्गवसेन लोकियलोकुत्तरमिस्सका चत्तारो सतिपट्टाना देसिता। फलसतिपट्ठानं पन इध अनधिप्पेतं । चत्तारो सम्मप्पधानाति पग्गहढेन एकलक्खणा; किच्चवसेन नानाकिच्चा । "इध भिक्खु अनुप्पन्नानं पापकानं अकुसलानं धम्मानं अनुप्पादाया"तिआदिना नयेन समथविपस्सनामग्गवसेन लोकियलोकुत्तरमिस्सकाव चत्तारो सम्मप्पधाना देसिता। चत्तारो इद्धिपादाति इज्झनटेन एकसङ्गहा, छन्दादिवसेन नानासभावा। “इध भिक्खु छन्दसमाधिपधानसङ्खारसमन्नागतं इद्धिपादं भावेती"तिआदिना नयेन समथविपस्सनामग्गवसेन लोकियलोकुत्तरमिस्सकाव चत्तारो इद्धिपादा देसिता । पञ्चिन्द्रियानीति आधिपतेय्यटेन एकलक्खणानि, अधिमोक्खादिसभाववसेन नानासभावानि । समथविपस्सनामग्गवसेनेव च लोकियलोकुत्तरमिस्सकानि सद्धादीनि पञ्चिन्द्रियानि देसितानि । पञ्च बलानीति उपत्थम्भनटेन अकम्पियढेन वा एकसङ्गहानि, सलक्खणेन नानासभावानि । समथविपस्सनामग्गवसेनेव लोकियलोकुत्तरमिस्सकानि सद्धादीनि पञ्च बलानि देसितानि । सत्त बोज्झङ्गाति निय्यानटेन एकसङ्गहा, उपट्ठानादिना सलक्खणेन नानासभावा। समथविपस्सना मग्गवसेनेव लोकियलोकुत्तरमिस्सका सत्त बोज्झङ्गा देसिता । अरियो अट्ठङ्गिको मग्गोति हेतुढेन एकसङ्गहो, दस्सनादिना सलक्खणेन नानासभावो । 60 Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५.१४६-१४७) आयतनपण्णत्तिदेसनावण्णना समथविपस्सनामग्गवसेनेव लोकियलोकुत्तरमिस्सको अरियो अट्ठङ्गिको मग्गो देसितोति अत्थो। इध, भन्ते, भिक्खु आसवानं खयाति इदं किमत्थं आरद्धं ? सासनस्स परियोसानदस्सनत्थं । सासनस्स हि न केवलं मग्गेनेव परियोसानं होति, अरहत्तफलेन पन होति । तस्मा तं दस्सेतुं इदमारद्धन्ति वेदितब्बं । एतदानुत्तरियं, भन्ते, कुसलेसु धम्मसूति भन्ते या अयं कुसलेसु धम्मेसु एवंदेसना, एतदानुत्तरियं । तं भगवाति तं देसनं भगवा असेसं सकलं अभिजानाति । तं भगवतोति तं देसनं भगवतो असेसं अभिजानतो। उत्तरि अभिज्ञेय्यं नत्थीति तदुत्तरि अभिजानितब् नत्थि, अयं नाम इतो अञो धम्मो वा पुग्गलो वा यं भगवा न जानातीति इदं नस्थि । यदभिजानं अञो समणो वाति यं तुम्हेहि अनभिज्ञातं, तं अञो समणो वा ब्राह्मणो वा अभिजानन्तो भगवता भिय्योभितरो अस्स, अधिकतरपझो भवेय्य । यदिदं कुसलेसु धम्मसूति एत्थ यदिदन्ति निपातमत्तं, कुसलेसु धम्मेसु भगवता उत्तरितरो नत्थीति अयमेत्थत्थो। इति भगवाव कुसलेसु धम्मेसु अनुत्तरोति दस्सेन्तो “इमिनापि कारणेन एवंपसन्नो अहं, भन्ते, भगवती''ति दीपेति। इतो परेसु अपरं पनातिआदीसु विसेसमत्तमेव वण्णयिस्साम । पुरिमवारसदिसं पन वुत्तनयेनेव वेदितब् । आयतनपण्णत्तिदेसनावण्णना १४६. आयतनपण्णत्तीसूति आयतनपञापनासु । इदानि ता आयतनपञत्तियो दस्सेन्तो छयिमानि, भन्तेतिआदिमाह । आयतनकथा पनेसा विसुद्धिमग्गे वित्थारेन कथिता, तेन न तं वित्थारयिस्साम, तस्मा तत्थ वुत्तनयेनेव सा वित्थारतो वेदितब्बा। एतदानुत्तरियं, भन्ते, आयतनपण्णत्तीसूति यायं आयतनपण्णत्तीसु अज्झत्तिकबाहिरववत्थानादिवसेन एवं देसना, एतदानुत्तरियं । सेसं वुत्तनयमेव । गभावक्कन्तिदेसनावण्णना १४७. गभावक्कन्तीसूति गब्भोक्कमनेसु । ता गब्भावक्कन्तियो दस्सेन्तो चतस्सो इमा, भन्तेतिआदिमाह । तत्थ असम्पजानोति अजानन्तो सम्मूळ्हो हुत्वा । मातुकुच्छिं Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (५.१४८-१४८) ओक्कमतीति पटिसन्धिवसेन पविसति । ठातीति वसति । निक्खमतीति निक्खमन्तोपि असम्पजानो सम्मूळ्होव निक्खमति । अयं पठमाति अयं पकतिलोकियमनुस्सानं पठमा गब्भावक्कन्ति । सम्पजानो मातुकुच्छिं ओक्कमतीति ओक्कमन्तो सम्पजानो असम्मूळ्हो हुत्वा ओक्कमति । अयं दुतियाति अयं असीतिमहाथेरानं सावकानं दुतिया गब्भावक्कन्ति । ते हि पविसन्ताव जानन्ति, वसन्ता च निक्खमन्ता च न जानन्ति। अयं ततियाति अयं द्विन्नञ्च अग्गसावकानं पच्चेकबोधिसत्तानञ्च ततिया गब्भावक्कन्ति । ते किर कम्मजेहि वातेहि अधोसिरा उद्धंपादा अनेकसतपोरिसे पपाते विय योनिमुखे खित्ता ताळच्छिग्गळेन हत्थी विय सम्बाधेन योनिमुखेन निक्खममाना अनन्तं दुक्खं पापुणन्ति । तेन नेसं "मयं निक्खमम्हा"ति सम्पजानता न होति । एवं पूरितपारमीनम्पि च सत्तानं एवरूपे ठाने महन्तं दुक्खं उप्पज्जतीति अलमेव गब्भावासे निब्बिन्दितुं अलं विरज्जितुं । अयं चतुत्थाति अयं सब्ब बोधिसत्तानं वसेन चतुत्था गब्भावक्कन्ति । सब्ब बोधिसत्ता हि मातुकुच्छिस्मिं पटिसन्धिं गण्हन्तापि जानन्ति, तत्थ वसन्तापि जानन्ति, निक्खमन्तापि जानन्ति, निक्खमनकालेपि च ते कम्मजवाता उद्धंपादे अधोसिरे कत्वा खिपितुं न सक्कोन्ति, द्वे हत्थे पसारेत्वा अक्खीनि उम्मीलेत्वा ठितकाव निक्खमन्ति । भवग्गं उपादाय अवीचिअन्तरे अञ्जो तीसु कालेसु सम्पजानो नाम नत्थि ठपेत्वा सब्ब बोधिसत्ते । तेनेव नेसं मातुकुच्छिं ओक्कमनकाले च निक्खमनकाले च दससहस्सिलोकधातु कम्पतीति । सेसमेत्थ वुत्तनयेनेव वेदितब्बं । __ आदेसनविधादेसनावण्णना १४८. आदेसनविधासूति आदेसनकोट्ठासेसु । इदानि ता आदेसनविधा दस्सेन्तो चतस्सो इमातिआदिमाह । निमित्तेन आदिसतीति आगतनिमित्तेन गतनिमित्तेन ठितनिमित्तेन वा इदं नाम भविस्सतीति कथेति । 62 Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५.१४८ - १४८) त्रिदं वत्थु - एको राजा तिस्सो मुत्ता गहेत्वा पुरोहितं पुच्छि " किं मे, आचरिय, हत्थे 'ति ? सो इतो चितो च ओलोकेसि । तेन च समयेन एका सरबू “मक्खिकं गहेस्सामी 'ति पक्खन्दि, गहणकाले मक्खिका पलाता, सो मक्खिकाय मुत्तत्ता “मुत्ता महाराजा "ति आह । मुत्ता ताव होतु, कति मुत्ताति ? सो पुन निमित्तं ओलोकेसि । अथ अविदूरे कुक्कुटो तिक्खत्तुं सद्दं निच्छारेसि । ब्राह्मणो " तिस्सो महाराजा "ति आह । एवं एकच्चो आगतनिमित्तेन कथेति । एतेनुपायेन गतठितनि मित्तेहिपि कथनं वेदितब्बं । आदेसनविधादेसनावण्णना अमनुस्सानन्ति यक्खपिसाचादीनं । देवतानन्ति चातुमहाराजिकादीनं । सर्व्वं त्वाति अञ्ञस्स चित्तं त्वा कथेन्तानं सद्दं सुत्वा । वितक्कविष्फारसद्दन्ति वितक्कविप्फारवसेन उप्पन्नं विप्पलपन्तानं सुत्तपमत्तादीनं सद्दं । सुत्वाति तं सद्दं सुत्वा । यं वितक्कयतो तस्स सो सद्दो उप्पन्नो, तस्स वसेन " एवम्पि ते मनो" ति आदिसति । मनोसङ्घारा पणिहिताति चित्तसङ्घारा सुट्ठपिता । वितक्केस्सतीति वितक्कयिस्सति पवत्तेस्सतीति पजानाति । जानन्तो च आगमनेन जानाति, पुब्बभागेन जानाति, अन्तोसमापत्तियं चित्तं ओलोकेत्वा जानाति । आगमनेन जानाति नाम कसिणपरिकम्मकालेयेव येनाकारेन एस कसिणभावनं आरद्धो पठमज्झानं वा... पे०... चतुत्थज्झानं वा अट्ठसमापत्तियो वा निब्बत्तेस्सतीति जानाति । पुब्बभागेन जानाति नाम समथविपस्सनाय आरद्धायेव जानाति, येनाकारेन एस विपस्सनं आरद्धो सीतापत्तिमग्गं वा निब्बत्तेस्सति, सकदागामिमग्गं वा निब्बत्तेस्सति, अनागामिमग्गं वा निब्बत्तेस्सति, अरहत्तमग्गं वा निब्बत्तेस्सतीति जानाति । अन्तोसमापत्तियं चित्तं ओलोकेत्वा जानाति नाम येनाकारेन इमस्स मनोसङ्घारा सुट्ठपिता, इमस्स नाम चित्तस्स अनन्तरा इमं नाम वितक्कं वितक्केस्सति । इतो वुट्ठितस्स एतस्स हानभागियो वा समाधि भविस्सति, ठितिभागियो वा विसेसभागियो वा निब्बेधभागियो वा अभिञ्ञायो वा निब्बत्तेस्सतीति जानाति । तत्थ पुथुज्जनो चेतोपरियञाणलाभी पुथुज्जनानंयेव चित्तं जानाति, न अरियानं । अरियेसुपि हेट्ठिमो हेट्ठिमो उपरिमस्स उपरिमस्स चित्तं न जानाति, उपरिमो पन हेट्ठिमस्स जानाति । एतेसु च सोतापन्नो सोतापत्तिफलसमापत्तिं समापज्जति । सकदागामी, अनागामी, अरहा, अरहत्तफलसमापत्तिं समापज्जति । उपरिमो हेट्ठिमं न समापज्जति । सहि हेट्ठिमा हेट्टिमा समापत्ति तत्रुपपत्तियेव होति । तथैव तं होतीति इदं एकंसेन तथेव होति । चेतोपरियञाणवसेन ञातञ्हि अञ्ञथाभावी नाम नत्थि । सेसं पुरिमनयेनेव योजेब्बं । ६३ 63 Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ o दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा _ seni seheringen (473-** (५.१४९-१४९) दस्सनसमापत्तिदेसनावण्णना १४९. आतप्पमन्वायातिआदि ब्रह्मजाले वित्थारितमेव । अयं पनेत्थ सङ्केपो, आतप्पन्ति वीरियं । तदेव पदहितब्बतो पधानं। अनुयुजितब्बतो अनुयोगो। अप्पमादन्ति सतिअविप्पवासं । सम्मामनसिकारन्ति अनिच्चे अनिच्चन्तिआदिवसेन पवत्तं उपायमनसिकारं । चेतोसमाधिन्ति पठमज्झानसमाधिं । अयं पठमा दस्सनसमापत्तीति अयं द्वत्तिं साकारं पटिकूलतो मनसिकत्वा पटिकूलदस्सनवसेन उप्पादिता पठमज्झानसमापत्ति पठमा दस्सनसमापत्ति नाम, सचे पन तं झानं पादकं कत्वा सोतापन्नो होति, अयं निप्परियायेनेव पठमा दस्सनसमापत्ति । अतिक्कम्म चाति अतिक्कमित्वा च । छविमंसलोहितन्ति छविञ्च मंसञ्च लोहितञ्च | अढेि पच्चवेक्खतीति अट्ठि अट्ठीति पच्चवेक्खति । अट्ठि अट्ठीति पच्चवेक्खित्वा उप्पादिता अट्ठिआरम्मणा दिब्बचक्खुपादकज्झानसमापत्ति दुतिया दस्सनसमापत्ति नाम । सचे पन तं झानं पादकं कत्वा सकदागामिमग्गं निब्बत्तेति । अयं निप्परियायेन दुतिया दस्सनसमापत्ति । काळवल्लवासी सुमत्थेरो पन “याव ततियमग्गा वट्टती"ति आह । विज्ञाणसोतन्ति विज्ञाणमेव । उभयतो अब्बोच्छिन्नन्ति द्वीहिपि भागेहि अच्छिन्नं । इध लोके पतिद्वितञ्चाति छन्दरागवसेन इमस्मिञ्च लोके पतिद्वितं । दुतियपदेपि एसेव नयो । कम्मं वा कम्मतो उपगच्छन्तं इध लोके पतिट्टितं नाम । कम्मभवं आकड्डन्तं परलोके पतिहितं नाम । इमिना किं कथितं ? सेक्खपुथुज्जनानं चेतोपरियाणं कथितं । सेक्खपुथुज्जनानहि चेतोपरियजाणं ततिया दस्सनसमापत्ति नाम । इध लोके अप्पतिद्वितञ्चाति निच्छन्दरागत्ता इधलोके च अप्पतिट्टितं । दुतियपदेपि एसेव नयो । कम्मं वा कम्मतो न उपगच्छन्तं इध लोके अप्पतिट्टितं नाम । कम्मभवं अनाकड्डन्तं परलोके अप्पतिद्वितं नाम । इमिना किं कथितं ? खीणासवस्स चेतोपरियाणं कथितं । खीणासवस्स हि चेतोपरियाणं चतुत्था दस्सनसमापत्ति नाम । अपिच द्वत्तिंसाकारे आरद्धविपस्सनापि पठमा दस्सनसमापत्ति । अट्ठिआरम्मणे आरद्धविपस्सना दुतिया दस्सनसमापत्ति । सेक्खपुथुज्जनानं चेतोपरियाणं खीणासवस्स चेतोपरियाणन्ति इदं पदद्वयं निच्चलमेव। अपरो नयो पठमज्झानं पठमा 64 Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५.१५०-१५०) पुग्गलपण्णत्तिदेसनावण्णना दस्सनसमापत्ति। दुतियज्झानं दुतिया। ततियज्झानं ततिया। चतुत्थज्झानं चतुत्था दस्सनसमापत्ति । तथा पठममग्गो पठमा दस्सनसमापत्ति । दुतियमग्गो दुतिया । ततियमग्गो ततिया । चतुत्थमग्गो चतुत्था दस्सनसमापत्तीति । सेसमेत्थ पुरिमनयेनेव योजेतब्बं । पुग्गलपण्णत्तिदेसनावण्णना १५०. पुग्गलपण्णत्तीसूति लोकवोहारवसेन “सत्तो पुग्गलो नरो पोसो''ति एवं पापेतब्बासु लोकपञ्ञत्तीसु । बुद्धानहि द्वे कथा सम्मुतिकथा, परमत्थकथाति पोट्ठपादसुत्ते (दी० नि० अट्ठ० १.४३९-४४३) वित्थारिता । तत्थ पुग्गलपण्णत्तीसूति अयं सम्मुतिकथा। इदानि ये पुग्गले पञपेन्तो पुग्गलपण्णत्तीसु भगवा अनुत्तरो होति, ते दस्सेन्तो सत्तिमे भन्ते पुग्गला। उभतोभागविमुत्तोतिआदिमाह। तत्थ उभतोभागविमुत्तोति द्वीहि भागेहि विमुत्तो, अरूपसमापत्तिया रूपकायतो विमुत्तो, मग्गेन नामकायतो। सो चतुन्नं अरूपसमापत्तीनं एकेकतो वुट्ठाय सङ्घारे सम्मसित्वा अरहत्तप्पत्तानं, चतुनं, निरोधा वुट्ठाय अरहत्तप्पत्तअनागामिनो च वसेन पञ्चविधी होति । पाळि पनेत्थ “कतमो च पुग्गलो उभतोभागविमुत्तो? इधेकच्चो पुग्गलो अट्ठविमोक्खे कायेन फुसित्वा विहरति, पाय चस्स दिस्वा आसवा परिक्खीणा होन्ती"ति (धातु० २४) एवं अट्ठविमोक्खलाभिनो वसेन आगता। पआय विमुत्तोति पआविमुत्तो। सो सुक्खविपस्सको च, चतूहि झानेहि वुट्ठाय अरहत्तं पत्ता चत्तारो चाति इमेसं वसेन पञ्चविधोव होति । पाळि पनेत्थ अट्ठविमोक्खपटिक्खेपवसेनेव आगता। यथाह "न हेव खो अट्ठ विमोक्खे कायेन फुसित्वा विहरति । पञाय चस्स दिस्वा आसवा परिक्खीणा होन्ति । अयं वुच्चति पुग्गलो पञ्जाविमुत्तो"ति (धातु० २५)। फुट्ठन्तं सच्छि करोतीति कायसक्खि। सो झानफस्सं पठमं फुसति, पच्छा निरोधं निब्बानं सच्छिकरोति, सो सोतापत्तिफलटुं आदि कत्वा याव अरहत्तमग्गट्ठा छब्बिधो होतीति वेदितब्बो । तेनेवाह "इधेकच्चो पुग्गलो अट्ठ विमोक्खे कायेन फुसित्वा विहरति, Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (५.१५०-१५०) पाय चस्स दिस्वा एकच्चे आसवा परिक्खीणा होन्ति । अयं वुच्चति पुग्गलो कायसक्खी''ति (धातु० २६) । ___ दिट्ठन्तं पत्तोति दिटिप्पत्तो। तत्रिदं सङ्ग्रेपलक्खणं, दुक्खा सङ्घारा सुखो निरोधोति आतं होति दिटुं विदितं सच्छिकतं पस्सितं पञ्जायाति दिटिप्पत्तो। वित्थारतो पनेसोपि कायसक्खि विय छब्बिधो होति । तेनेवाह - "इधेकच्चो पुग्गलो इदं दुक्खन्ति यथाभूतं पजानाति...पे०... अयं दुक्खनिरोधगामिनी पटिपदाति यथाभूतं पजानाति, तथागतप्पवेदिता चस्स धम्मा पञ्जाय वोदिट्ठा होन्ति वोचरिता, पञाय चस्स दिस्वा एकच्चे आसवा परिक्खीणा होन्ति । अयं वुच्चति पुग्गलो दिट्ठिप्पत्तो''ति (धातु० २७)। ___सद्धाय विमुत्तोति साविमुत्तो। सोपि वुत्तनयेनेव छबिधो होति। तेनेवाह - "इधेकच्चो पुग्गलो इदं दुक्खन्ति यथाभूतं पजानाति, अयं दुक्खसमुदयोति यथाभूतं पजानाति, अयं दुक्खनिरोधोति यथाभूतं पजानाति, अयं दुक्खनिरोधगामिनी पटिपदाति यथाभूतं पजानाति, तथागतप्पवेदिता चस्स धम्मा पञाय वोदिट्ठा होन्ति वोचरिता, पाय चस्स दिस्वा एकच्चे आसवा परिक्खीणा होन्ति नो च खो यथा दिट्ठिप्पत्तस्स । अयं वुच्चति पुग्गलो सद्धाविमुत्तो"ति (धातु० २८)। एतेसु हि सद्धाविमुत्तस्स पुब्बभागमग्गक्खणे सद्दहन्तस्स विय, ओकप्पेन्तस्स विय, अधिमुच्चन्तस्स विय च किलेसक्खयो होति । दिट्ठिप्पत्तस्स पुब्बभागमग्गक्खणे किलेसच्छेदकं आणं अदन्धं तिखिणं सूरं हुत्वा वहति । तस्मा यथा नाम नातितिखिणेन असिना कदलिं छिन्दन्तस्स छिन्नट्ठानं न मटुं होति, असि न सीघं वहति, सद्दो सुय्यति, बलवतरो वायामो कातब्बो होति, एवरूपा सद्धाविमुत्तस्स पुब्बभागमग्गभावना | यथा पन अतिनिसितेन असिना कदलिं छिन्दन्तस्स छिन्नट्ठानं मटुं होति, असि सीघं वहति, सद्दो न सुय्यति, बलवतरं वायामकिच्चं न होति, एवरूपा पञ्जाविमुत्तस्स पुब्बभागमग्गभावना वेदितब्बा । धम्मं अनुस्सरतीति धम्मानुसारी। धम्मोति पञ्जा, पञ्जापुब्बङ्गमं मग्गं भावेतीति अत्थो । सद्धानुसारिम्हिपि एसेव नयो, उभोपेते सोतापत्तिमग्गट्ठायेव । वुत्तम्पि चेतं “यस्स पुग्गलस्स सोतापत्तिफलसच्छिकिरियाय पटिपन्नस्स पञ्जिन्द्रियं अधिमत्तं होति, पञआवाहिं पापुब्बङ्गमं अरियमग्गं भावेति । अयं वुच्चति पुग्गलो धम्मानुसारी"ति । तथा “यस्स पुग्गलस्स सोतापत्तिफलसच्छिकिरियाय पटिपन्नस्स सद्धिन्द्रियं अधिमत्तं 66 Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५.१५१-१५३) पधानदेसनावण्णना होति, सद्धावाहिं सद्धापुब्बङ्गमं अरियमग्गं भावेति । अयं वुच्चति पुग्गलो सद्धानुसारी''ति । अयमेत्थ सङ्केपो, वित्थारतो पनेसा उभतोभागविमुत्तादिकथा विसुद्धिमग्गे पञ्जाभावनाधिकारे वुत्ता। तस्मा तत्थ वुत्तनयेनेव वेदितब्बा। सेसमिधापि पुरिमनयेनेव योजेतब्बं । पधानदेसनावण्णना ___ १५१. पधानेसूति इध पदहनवसेन "सत्त बोज्झङ्गा पधाना"ति वुत्ता। तेसं वित्थारकथा महासतिपट्ठाने वुत्तनयेनेव वेदितब्बा। सेसमिधापि पुरिमनयेनेव योजेतब्बं । पटिपदादेसनावण्णना १५२. दुक्खपटिपदादीसु अयं वित्थारनयो- “तत्थ कतमा दुक्खपटिपदा दन्धाभिञा पञा ? दुक्खेन कसिरेन समाधिं उप्पादेन्तस्स दन्धं तं ठानं अभिजानन्तस्स या पञ्जा पजानना...पे०... अमोहो धम्मविचयो सम्मादिट्ठि, अयं वुच्चति दुक्खपटिपदा दन्धाभिज्ञा पञ्जा। तत्थ कतमा दुक्खपटिपदा खिप्पाभिज्ञा पञा ? दुक्खेन कसिरेन समाधि उप्पादेन्तस्स खिप्पं तं ठानं अभिजानन्तस्स या पञा पजानना...पे०... सम्मादिट्टि, अयं वुच्चति दुक्खपटिपदा खिप्पाभिञा पञ्जा। तत्थ कतमा सुखपटिपदा दन्धाभिजा पञ्जा ? अकिच्छेन अकसिरेन समाधि उप्पादेन्तस्स दन्धं तं ठानं अभिजानन्तस्स या पञा पजानना...पे०... सम्मादिट्ठि, अयं वुच्चति सुखपटिपदा दन्धाभिञा पञआ । तत्थ कतमा सुखपटिपदा खिप्पाभिञा पञ्जा ? अकिच्छेन अकसिरेन समाधिं उप्पादेन्तस्स खिप्पं तं ठानं अभिजानन्तस्स या पञा पजानना...पे०... सम्मादिट्टि, अयं वुच्चति सुखपटिपदा खिप्पाभिञा पञ्जा'"ति (विभं० ८०१)। अयमेत्थ सद्धेपो, वित्थारो पन विसुद्धिमग्गे वुत्तो । सेसमिधापि पुरिमनयेनेव योजेतब्बं । भस्ससमाचारादिवण्णना १५३. न चेव मुसावादूपसहितन्ति भस्ससमाचारे ठितोपि कथामग्गं अनुपच्छिन्दित्वा कथेन्तोपि इधेकच्चो भिक्खु न चेव मुसावादूपसहितं भासति । अट्ठ अनरियवोहारे वज्जेत्वा अट्ठ अरियवोहारयुत्तमेव भासति । न च वेभूतियन्ति भस्ससमाचारे ठितोपि 67 Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८ दीघनिकाये पाधिकवग्गट्ठकथा भेदकरवाचं न भासति । न च पेसुणियन्ति तस्सायेवेतं वेवचनं । वेभूतियवाचा हि पियभावस्स सुञ्ञकरणतो "पेसुणिय "न्ति वुच्चति । नाममेवस्सा एतन्ति महासीवत्थेरो अवोच । न च सारम्भजन्ति सारम्भजा च या वाचा, तञ्च न भासति । "त्वं दुस्सीलो "ति वुत्ते, "त्वं दुस्सीलो तवाचरियो दुस्सीलो "ति वा, " तुम्हं आपत्ती' ति वुत्ते, “अहं पिण्डाय चरित्वा पाटलिपुत्तं गतो" तिआदिना नयेन बहिद्धा विक्खेपकथापवत्तं वा करणुत्तरियवाचं न भासति । जयापेक्खोति जयपुरेक्खारो हुत्वा, यथा हत्थको सक्यपुत्तो तित्थिया नाम धम्मेनपि अधम्मेनपि जेतब्बाति सच्चालिकं यंकिञ्चि भासति, एवं जयापेक्खो जयपुरेक्खारो हुत्वा न भासतीति अत्थो । मन्ता मन्ता च वाचं भासतीति एत्थ मन्ताति च्चति पञ्जा, मन्ताय पञ्ञाय । पुन मन्ताति उपपरिक्खित्वा । इदं वृत्तं होति, भस्ससमाचारे ठितो दिवसभागम्पि कथेन्तो पञ्ञाय उपपरिक्खित्वा युत्तकथमेव कथेतीति । निधानवतिन्ति हृदयेपि निदहितब्बयुत्तं । कालेनाति युत्तपत्तकालेन । एवं भासिता हि वाचा अमुसा चेव होति अपिसुणा च अफरुसा च असठा च असम्फप्पलापा च । एवरूपा च अयं वाचा चतुसच्चनिस्सितातिपि सिक्खत्तयनिस्सितातिपि दसकथावत्थुनिस्सितातिपि तेरसधुतङ्गनिस्सितातिपि सत्तत्तिंसबोधिपक्खियधम्मनिस्सितातिपि मग्गनिस्सितातिपि वुच्चति । तेनाह एतदानुत्तरियं, भन्ते, भस्ससमाचारेति तं पुरिमनयेनेव योजेब्बं । (५.१५३-१५३) सच्चो चस्स सद्घो चाति सीलाचारे ठितो भिक्खु सच्चो च भवेय्य सच्चकथो सद्धो चसद्धासम्पन्नो । ननु हेट्ठा सच्चं कथितमेव, इध कस्मा पुन वुत्तन्ति ? हेट्ठा वाचासच्चं कथितं । सीलाचारे ठितो पन भिक्खु अन्तमसो हसनकथायपि मुसावादं न करोतीति दस्सेतुं इध वृत्तं । इदानि सो धम्मेन समेन जीवितं कप्पेतीति दस्सनत्थं न च कुहकोतिआदि वृत्तं । तत्थ " कुहको 'तिआदीनि ब्रह्मजाले वित्थारितानि । इन्द्रिये गुत्तद्वारो, भोजने मत्तभूति छसु इन्द्रियेसु गुत्तद्वारो भोजनेपि पमाणञ्जू । समकारीति समचारी, कायेन वाचाय मनसा च कायवङ्कादीनि पहाय समं चरतीति अत्थो । जागरियानुयोगमनुयुत्तोति रत्तिन्दिवं छ कोट्ठासे कत्वा " दिवसं चङ्कमेन निसज्जाया’ति वुत्तनयेनेव जागरियानुयोगं युत्तप्पयुत्तो विहरति । अतन्दितोति नन्दी कायालसियविरहितो । आरद्धवीरियोति कायिकवीरियेनापि आरद्ववीरियो होति, गणसङ्गणिकं विनोदेत्वा चतूसु इरियापथेसु अट्ठआरब्भवत्थुवसेन एकविहारी । चेतसिकवीरियेनापि 68 Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसासनविधादिवण्णना आरद्धवीरियो होति, किलेससङ्गणिकं पहाय विनोदेत्वा अट्ठसमापत्तिवसेन एकविहारी । अपि च यथा तथा किलेसुप्पत्तिं निवारेन्तो चेतसिकवीरियेन आरद्ववीरियो होति । झायीति आरम्मणलक्खणूपनिज्झानवसेन झायी । सतिमाति चिरकतादिअनुस्तरणसमत्थाय सतिया समन्नागतो । (५.१५४-१५६) कल्याणपटिभानोति वाक्करणसम्पन्नो चेव होति पटिभानसम्पन्नो च । युत्तपटिभानो खो पन होति नो मुत्तपटिभानो । सीलसमाचारस्मिहि ठितभिक्खु मुत्तपटिभानो न होति, युत्तपटिभानो पन होति वङ्गीसत्थेरो विय । गतिमाति गमनसमत्थाय पञ्ञाय समन्नागतो । धितिमाति धारणसमत्थाय पञ्ञाय समन्नागतो । मतिमाति एत्थ पन मतीति पञ्ञाय नाममेव, तस्मा पञ्ञवाति अत्थो । इति तीहिपि इमेहि पदेहि पञ्ञाव कथिता । तत्थ हेट्ठा समणधम्मकरणवीरियं कथितं इध बुद्धवचनगण्हनवीरियं । तथा हेट्ठा विपस्सनापञ्ञा कथिता, इध बुद्धवचनगण्हनपञ । न च कामेसु गिद्धोति वत्थुकामकिलेसकामेसु अगिद्धो । सतो च निपको चाति अभिक्कन्तपटिक्कन्तादीसु सत्तसु ठानेसु सतिया चेव आणेन च समन्नागतो चरतीति अत्थो । नेपक्कन्ति पञ्ञा, ताय समन्नागतत्ता निपकोति वुत्तो । सेसमिधापि पुरिमनयेनेव योजेतब्बं । अनुसासनविधादिवण्णना १५४. पच्चत्तं योनिसो मनसिकाराति अत्तनो उपायमनसिकारेन । यथानुसिहं तथा पटिपज्जमानोति यथा मया अनुसिद्धं अनुसासनी दिन्ना तथा पटिपज्जमानो । तिण्णं संयोजनानं परिक्खयाति आदि वृत्तत्थमेव । सेसमिधापि पुरिमनयेनेव योजेतब्बं । ६९ १५५. परपुग्गलविमुत्तित्राणेति सोतापन्नादीनं परपुग्गलानं तेन तेन मग्गेन किलेसविमुत्तित्राणे । सेसमिधापि पुरिमनयेनेव योजेतब्बं । १५६. अमुत्रासिं एवंनामोति एको पुब्बेनिवासं अनुरसरन्तो नामगोत्तं परियादियमानो गच्छति । एको सुद्धखन्धेयेव अनुस्सरति, एको हि सक्कोति, एको न सक्कोति । तत्थ यो सक्कोति, तस्स वसेन अग्गहेत्वा असक्कोन्तस्स वसेन गहितं । असक्कोन्तो पन किं करोति ? सुद्धखन्धेयेव अनुसरन्तो अनेकजातिसतसहस्समत्थके ठत्वा नामगोत्तं परियादियमानो ओतरति । तं 69 गन्त्वा दस्सेन्तो Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (५.१५७ - १५९) एवंनामोति आदिमाह । सो एवमाहाति सो दिट्टिगतिको एवमाह । तत्थ किञ्चापि सस्सतोति वत्वा " ते च सत्ता संसरन्ती 'ति वदन्तस्स वचनं पुब्बापरविरुद्धं होति । दिट्ठिगतिकत्ता पनेस एतं न सल्लक्खेसि । दिट्ठिगतिकस्स हि ठानं वा नियमो वा नत्थि । इमं गहेत्वा इमं विस्सज्जेति इमं विस्सज्जेत्वा इमं गण्हातीति ब्रह्मजाले वित्थारितमेवेतं । अयं ततियो सस्सतवादोति थेरो लाभिस्सेव वसेन तयो सस्सतवादे आह । भगवता पन तक्कीवादम्पि गत्वा ब्रह्मजाले चत्तारो वृत्ता । एतेसं पन तिण्णं वादानं वित्थारकथा ब्रह्मजाले (दी० नि० अट्ठ० १.३०) वुत्तनयेनेव वेदितब्बा । सेसमिधापि पुरिमनयेनेव वित्थारेतब्बं । ७० १५७. गणनाय वाति पिण्डगणनाय । सङ्घानेनाति अच्छिद्दकवसेन मनोगणनाय । उभयथापि पिण्डगणनमेव दस्सेति । इदं वुत्तं होति, वस्सानं सतवसेन सहस्सवसेन सतसहस्सवसेन कोटिवसेन पिण्डं कत्वापि एत्तकानि वस्ससतानीति वा एत्तका वस्सकोटियोति वा एवं सङ्घातुं न सक्का । तुम्हे पन अत्तनो दसन्नं पारमीनं पूरितत्ता सब्बञ्जतञ्ञणस्स सुप्पटिविद्धत्ता यस्मा वो अनावरणञाणं सूरं वहति । तस्मा देसनाञाणकुसलतं पुरक्खत्वा वस्सगणनायपि परियन्तिकं कत्वा कप्पगणना परिच्छिन्दित्वा एत्तकन्ति दस्सेथाति दीपेति । पाळियत्थो पनेत्थ वृत्तनयोयेव । समिधापि पुरिमनयेनेव योजेतब्बं । १५८. एतदानुत्तरियं भन्ते, सत्तानं चुतूपपातत्राणेति भन्ते यापि अयं सत्तानं चुतिपटिसन्धिवसेन आणदेसना, सापि तुम्हाकंयेव अनुत्तरा । अतीतबुद्धापि एवमेव देसेसुं । अनागतापि एवमेव देसेस्सन्ति । तुम्हे तेसं अतीतानागतबुद्धानं आणेन संसन्दित्वाव देसयित्थ । “इमिनापि कारणेन एवंपसन्नो अहं भन्ते भगवती "ति दीपेति । पाळियत्थो पत्थ वित्थारितोयेव । १५९. सासवा सउपधिकाति सदोसा सउपारम्भा । नो अरियाति वुच्चतीति अरियिद्धीति न वुच्चति । अनासवा अनुपधिकाति निद्दोसा अनुपारम्भा । अरियाति बुच्चतीति अरियिद्धीति वुच्चति । अप्पटिकूलसञ्जी तत्थ विहरतीति कथं अप्पटिकूलसञ्जी तत्थ विहरतीति ? पटिकूले सत्ते मेत्तं फरति, सङ्घारे धातुसञ्ञ उपसंहरति । यथाह " कथं पटिकूले अप्पटिकूलसञ्जी विहरति (पटि० म० ३.९७ ) ? अनिट्ठस्मिं वत्थुस्मिं मेत्ताय वा फरति, धातुतो वा उपसंहरती 'ति । पटिकूलसञ्जी तत्थ विहरतीति अप्पटिकूले सत्ते असुभसञ्ञ फरति, सङ्घारे अनिच्चसञ्ञ उपसंहरति । यथाह "कथं अप्पटिकूले 70 Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५.१६०-१६०) अञ्ञथासत्थुगुणदस्सनादिवण्णना पटिकूलसञ्ञी विहरति ? इट्ठस्मिं वत्थुस्मिं असुभाय वा फरति, अनिच्चतो वा उपसंहरती”ति । एवं सेसपदेसुपि अत्थो वेदितब्बो । उपेक्खको तत्थ विहरतीति इट्ठे अरज्जन्तो अनिट्टे अदुस्सन्तो यथा अञ असमपेक्खनेन मोहं उप्पादेन्ति, एवं अनुप्पादेन्तो छसु आरम्मणेसु छळङ्गुपेक्खाय उपेक्खको विहरति । एतदानुत्तरियं, भन्ते इद्धिविधासूति, भन्ते, या अयं द्वीसु इद्धीसु एवंदेसना, एतदानुत्तरियं । तं भगवाति तं देसनं भगवा असेसं सकलं अभिजानाति । तं भगवतोति तं देसनं भगवतो असेसं अभिजानतो । उत्तरि अभिज्ञेय्यं नत्थीति उत्तरि अभिजानितब्बं नत्थि । अयं नाम इतो अञ्ञो धम्मो वा पुग्गलो वा यं भगवा न जानाति इदं नत्थि | यदभिजानं अज्ञो समणो वा ब्राह्मणो वाति यं तुम्हेहि अनभिज्ञतं अञ्ञो समणो वा ब्राह्मणो वा अभिजानन्तो भगवता भिय्योभिञ्ञतरो अस्स, अधिकतरपञ्ञो भवेय्य । यदिदं इद्धिविधासूति एत्थ यदिदन्ति निपातमत्तं । इद्धिविधासु भगवता उत्तरितरो नत्थि । अतीतबुद्धापि हि इमा द्वे इद्धियो देसेसुं, अनागतापि इमाव देसेस्सन्ति । तुम्हेपि तेसं आणेन संसन्दित्वा इमाव देसयित्थ । इति भगवा इद्धिविधासु अनुत्तरोति दस्सेन्तो “इमिनापि कारणेन एवंपसन्नो अहं, भन्ते, भगवती "ति दीपेति । एतावता ये धम्मसेनापति दिवाट्ठाने निसीदित्वा सोळस अपरम्परियधम्मे सम्मसि, तेव दस्सिता होन्ति । ७१ अञ्ञथासत्थुगुणदस्सनादिवण्णना १६०. इदानि अपरेनपि आकारेन भगवतो गुणे दस्सेन्तो यं तं भन्तेति आदिमाह । तत्थ सद्धेन कुलपुत्तेनाति सद्धा कुलपुत्ता नाम अतीतानागतपच्चुप्पन्ना बोधिसत्ता । तस्मा यं सब्बबोधिसत्तेन पत्तब्बन्ति वुत्तं होति । किं पन तेन पत्तब्बं ? नव लोकुत्तरधम्मा । आरद्धवीरियेनातिआदीसु "वीरियं थामो "तिआदीनि सब्बानेव वीरियवेवचनानि । तत्थ आरद्धवीरियेनाति पग्गहितवीरियेन । थामवताति थामसम्पन्न थिरवीरियेन । पुरिसथामेनाति तेन थामवता यं पुरिसथामेन पत्तब्बन्ति वृत्तं होति । अनन्तरपदद्वयेपि एसेव नयो । पुरिसधोरव्हेनाति या असमधुरेहि बुद्धेहि वहितब्बा धुरा, तं धुरं वहनसमत्थेन महापुरिसेन । अनुष्पत्तं तं भगवताति तं सब्बं अतीतानागतबुद्धेहि पत्तब्बं, सब्बमेव अनुप्पत्तं, भगवतो एकगुणोपि ऊनो नत्थीति दस्सेति । कामेसु कामसुखल्लिकानुयोगन्ति वत्थुकामेसु कामसुखल्लिकानुयोगं । यथा अञ्ञ केणियजटिलादयो समणब्राह्मणा " को जानाति 71 Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (५.१६१-१६१) परलोकं । सुखो इमिस्सा परिब्बाजिकाय मुदुकाय लोमसाय बाहाय सम्फस्सो"ति मोळिबन्धाहि परिब्बाजिकाहि परिचारेन्ति सम्पत्तं सम्पत्तं रूपादिआरम्मणं अनुभवमाना कामसुखमनुयुत्ता, न एवमनुयुत्तोति दस्सेति । हीनन्ति लामकं । गम्मन्ति गामवासीनं धम्मं । पोथुज्जनिकन्ति पुथुज्जनेहि सेवितब्बं । अनरियन्ति न निदोसं । न वा अरियेहि सेवितब्बं । अनत्थसहितन्ति अनत्थसंयुत्तं । अत्तकिलमथानुयोगन्ति अत्तनो आतापनपरितापनानुयोगं । दुक्खन्ति दुक्खयुत्तं, दुक्खमं वा । यथा एके समणब्राह्मणा कामसुखल्लिकानुयोगं परिवज्जेस्सामाति कायकिलमथं अनुधावन्ति, ततो मुञ्चिस्सामाति कामसुखं अनुधावन्ति, न एवं भगवा । भगवा पन उभो एते अन्ते वज्जेत्वा या सा “अस्थि, भिक्खवे, मज्झिमा पटिपदा तथागतेन अभिसम्बुद्धा चक्खुकरणी'"ति एवं वुत्ता सम्मापटिपत्ति, तमेव पटिपन्नो। तस्मा “न च अत्तकिलमथानुयोग''न्तिआदिमाह । आभिचेतसिकानन्ति अभिचेतसिकानं, कामावचरचित्तानि अतिक्कमित्वा ठितानन्ति अत्थो। दिट्ठधम्मसुखविहारानन्ति इमस्मिंयेव अत्तभावे सुखविहारानं । पोट्टपादसुत्तन्तस्मिव्हि सप्पीतिकदुतियज्झानफलसमापत्ति कथिता (दी० नि० १.४३२)। पासादिकसुत्तन्ते सह मग्गेन विपस्सनापादकज्झानं । दसुत्तरसुत्तन्ते चतुत्थज्झानिकफलसमापत्ति । इमस्मिं सम्पसादनीये दिठ्ठधम्मसुखविहारज्झानानि कथितानि । निकामलाभीति यथाकामलाभी । अकिच्छलाभीति अदुक्खलाभी। अकसिरलाभीति विपुललाभी । अनुयोगदानप्पकारवण्णना १६१. एकिस्सा लोकधातुयाति दससहस्सिलोकधातुया । तीणि हि खेत्तानि - जातिखेत्तं आणाखेत्तं विसयखेत्तं । तत्थ जातिखेत्तं नाम दससहस्सी लोकधातु । सा हि तथागतस्स मातुकुच्छिं ओक्कमनकाले निक्खमनकाले सम्बोधिकाले धम्मचक्कप्पवत्तने आयुसङ्खारोस्सज्जने परिनिब्बाने च कम्पति । कोटिसतसहस्सचक्कवाळं पन आणाखेत्तं नाम । आटानाटियमोरपरित्तधजग्गपरित्तरतनपरित्तादीनहि एत्थ आणा वत्तति । विसयखेत्तस्स पन परिमाणं नत्थि. बद्धानव्हि "यावतकं जाणं, तावतकं अय्यं, यावतकं अय्यं तावतकं आणं, आणपरियन्तिकं अय्यं, जेय्यपरियन्तिकं आण"न्ति (महानि० ५५) वचनतो अविसयो नाम नत्थि। Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५.१६१ - १६१) तिपिटकअन्तरधानकथा इमेसु पन तीसु खेत्तेसु ठपेत्वा इमं चक्कवाळं अञ्ञस्मिं चक्कवाळे बुद्धा उप्पज्जन्तीति सुत्तं नत्थि, नुप्पञ्जन्तीति पन अत्थि । तीणि पिटकानि विनयपिटकं, सुत्तन्तपिटकं अभिधम्मपिटकं । तिस्सो सङ्गीतियो महाकस्सपत्थेरस्स सङ्गीति, यसत्थेरस्स सङ्गीति, मोग्गलिपुत्ततिस्सत्थेरस्स सङ्गीतीति । इमा तिस्सो सङ्गीतियो आरुळ्हे तेपिटके बुद्धवचने “इमं चक्कवाळं मुञ्चित्वा अञ्ञत्थ बुद्धा उप्पज्जन्ती' 'ति सुत्तं नत्थि, जन्तीति न अत्थि । अपुब्बं अचरिमन्ति अपुरे अपच्छा एकतो नुप्पज्जन्ति, पुरे वा पच्छा उप्पज्जन्तीति वुत्तं होति । तत्थ बोधिपल्लङ्के "बोधिं अपत्वा न उट्ठहिस्सामी निसिन्नकालतो पट्ठाय याव मातुकुच्छिस्मिं पटिसन्धिग्गहणं, ताव पुब्बेति न वेदितब्बं । बोधिसत्तस्स हि पटिसन्धिग्गहणे दससहस्सचक्कवाळकम्पनेनेव खेत्तपरिग्गहो कतो । अञ्ञस्स बुद्धस्स उप्पत्तिपि निवारिता होति । परिनिब्बानतो पट्ठाय च याव सासपमत्तापि धातुयो तिट्ठन्ति ताव पच्छाति न वेदितब्बं । धातूसु हि ठितासु बुद्धापि ठिताव होन्ति । तस्मा एत्थन्तरे अञ्ञस्स बुद्धस्स उप्पत्ति निवारिताव होति । धातुपरिनिब्बाने पन जाते अस्स बुद्धस्स उप्पत्ति न निवारिता । तिपिटक अन्तरधानकथा तीणि अन्तरधानानि नाम परियत्ति अन्तरधानं, पटिवेधअन्तरधानं, पटिपत्तिअन्तरधानन्ति । तत्थ परियतीति तीणि पिटकानि । पटिवेधोति सच्चप्पटिवेधो । पटिपत्तीति पटिपदा । तत्थ पटिवेधो च पटिपत्ति च होतिपि न होतिपि । एकस्मिहि काले पटिवेधकरा भिक्खू बहू होन्ति, एस भिक्खु पुथुज्जनोति अङ्गुलिं पसारेत्वा दस्सेतब्बो होति । इमस्मिंयेव दीपे एकवारं पुथुज्जनभिक्खु नाम नाहोसि । पटिपत्तिपूरकापि कदाचि बहू होन्ति, कदाचि अप्पा । इति पटिवेधो च पटिपत्ति च होतिपि न होतिपि । सासनट्ठितिया पन परियत्ति पमाणं । पण्डितो हि तेपिटकं सुत्वा द्वेपि पूरेति । ७३ यथा अम्हाकं बोधिसत्तो आकारस्स सन्तिके पञ्चाभिञ्ञा सत्त च समापत्तियो निब्बत्तेत्वा नेवसञ्जानासञ्ञायतनसमापत्तिया परिकम्मं पुच्छि, सो न जानामीति आह । ततो उदकस्स सन्तिकं गन्त्वा अधिगतविसेसं संसन्दित्वा नेवसञ्जानासञायतनस्स परिकम्मं पुच्छि, सो आचिक्खि, तस्स वचनसमनन्तरमेव महासत्तो तं झानं सम्पादेसि, 73 Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (५.१६१-१६१) एवमेव पचवा भिक्खु परियत्तिं सुत्वा द्वेपि पूरेति । तस्मा परियत्तिया ठिताय सासनं ठितं होति । यदा पन सा अन्तरधायति, तदा पठमं अभिधम्मपिटकं नस्सति । तत्थ पट्टानं सब्बपठमं अन्तरधायति । अनुक्कमेन पच्छा धम्मसङ्गहो, तस्मिं अन्तरहिते इतरेसु द्वीसु पिटकेसु ठितेसुपि सासनं ठितमेव होति। तत्थ सुत्तन्तपिटके अन्तरधायमाने पठमं अद्भुत्तरनिकायो एकादसकतो पट्ठाय याव एकका अन्तरधायति, तदनन्तरं संयुत्तनिकायो चक्कपेय्यालतो पट्ठाय याव ओघतरणा अन्तरधायति । तदनन्तरं मज्झिमनिकायो इन्द्रियभावनतो. पट्ठाय याव मूलपरियाया अन्तरधायति । तदनन्तरं दीघनिकायो दसुत्तरतो पट्ठाय याव ब्रह्मजाला अन्तरधायति । एकिस्सापि द्विन्नम्पि गाथानं पुच्छा अद्धानं गच्छति, सासनं धारेतुं न सक्कोति, सभियपुच्छा आळवकपुच्छा विय च । एता किर कस्सपबुद्धकालिका अन्तरा सासनं धारेतुं नासक्खिंसु। द्वीसु पन पिटकेसु अन्तरहितेसुपि विनयपिटके ठिते सासनं तिट्ठति । परिवारक्खन्धकेसु अन्तरहितेसु उभतोविभङ्गे ठिते ठितमेव होति । उभतोविभङ्गे अन्तरहिते मातिकायपि ठिताय ठितमेव होति। मातिकाय अन्तरहिताय पातिमोक्खपब्बज्जाउपसम्पदासु ठितासु सासनं तिट्ठति । लिङ्गं अद्धानं गच्छति । सेतवत्थसमणवंसो पन कस्सपबुद्धकालतो पट्ठाय सासनं धारेतुं नासक्खि । पटिसम्भिदापत्तेहि वस्ससहस्सं अट्ठासि । छळभिजेहि वस्ससहस्सं । तेविज्जेहि वस्ससहस्सं । सुक्खविपस्सकेहि वस्ससहस्सं। पातिमोक्खेहि वस्ससहस्सं अट्ठासि । पच्छिमकस्स पन सच्चप्पटिवेधतो पच्छिमकस्स सीलभेदतो पट्ठाय सासनं ओसक्कितं नाम होति । ततो पट्ठाय अञस्स बुद्धस्स उप्पत्ति न निवारिता । सासनअन्तरहितवण्णना तीणि परिनिब्बानानि नाम किलेसपरिनिब्बानं खन्धपरिनिब्बानं धातुपरिनिब्बानन्ति | तत्थ किलेसपरिनिब्बानं बोधिपल्लङ्के अहोसि । खन्धपरिनिब्बानं कुसिनारायं । धातुपरिनिब्बानं अनागते भविस्सति । सासनस्स किर ओसक्कनकाले इमस्मिं तम्बपण्णिदीपे धातुयो सन्निपतित्वा महाचेतियं गमिस्सन्ति। महाचेतियतो नागदीपे राजायतनचेतियं । ततो महाबोधिपल्लवं गमिस्सन्ति। नागभवनतोपि देवलोकतोपि ब्रह्मलोकतोपि धातुयो 74 Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५.१६१-१६१) सासनअन्तरहितवण्णना ७५ महाबोधिपल्लङ्कमेव गमिस्सन्ति । सासपमत्तापि धातुयो न अन्तरा नस्सिस्सन्ति । सब्बधातुयो महाबोधिपल्लङ्के रासिभूता सुवण्णक्खन्धो विय एकग्घना हुत्वा छब्बण्णरस्मियो विस्सज्जेस्सन्ति । ता दससहस्सिलोकधातुं फरिस्सन्ति, ततो दससहस्सचक्कवाळदेवता सन्निपतित्वा "अज्ज सत्था परिनिब्बाति, अज्ज सासनं ओसक्कति, पच्छिमदस्सनं दानि इदं अम्हाक"न्ति दसबलस्स परिनिब्बतदिवसतो महन्ततरं कारुचं करिस्सन्ति । ठपेत्वा अनागामिखीणासवे अवसेसा सकभावेन सन्धारेतुं न सक्खिस्सन्ति । धातूसु तेजोधातु उहित्वा याव ब्रह्मलोका उग्गच्छिस्सति । सासपमत्तायपि धातुया सति एकजाला भविस्सति । धातूसु परियादानं गतासु उपच्छिज्जिस्सति । एवं महन्तं आनुभावं दस्सेत्वा धातूसु अन्तरहितासु सासनं अन्तरहितं नाम होति । याव न एवं अन्तरधायति, ताव अचरिमं नाम होति । एवं अपुब्बं अचरिमं उप्पज्जेय्यु, नेतं ठानं विज्जति। कस्मा पन अपुब्बं अचरिमं नुप्पज्जन्तीति ? अनच्छरियत्ता। बुद्धा हि अच्छरियमनुस्सा। यथाह - “एकपुग्गलो, भिक्खवे, लोके उप्पज्जमानो उप्पज्जति अच्छरियमनुस्सो। कतमो एकपुग्गलो ? तथागतो अरहं सम्मासम्बुद्धो"ति (अ० नि० १.१.१७२) । यदि च द्वे वा चत्तारो वा अट्ठ वा सोळस वा एकतो उप्पज्जेय्युं, अनच्छरिया भवेय्युं । एकस्मिहि विहारे द्विन्नं चेतियानम्पि लाभसक्कारो उळारो न होति । भिक्खूपि बहुताय न अच्छरिया जाता, एवं बुद्धापि भवेय्युं, तस्मा नुप्पज्जन्ति । देसनाय च विसेसाभावतो। यहि सतिपट्ठानादिभेदं धम्म एको देसेति । अञ्जेन उप्पज्जित्वापि सोव देसेतब्बो सिया, ततो अनच्छरियो सिया । एकस्मिं पन धम्मं देसेन्ते देसनापि अच्छरिया होति, विवादभावतो च । बहूसु हि बुद्धेसु उप्पन्नेसु बहूनं आचरियानं अन्तेवासिका विय अम्हाकं बुद्धो पासादिको, अम्हाकं बुद्धो मधुरस्सरो लाभी पुञवाति विवदेय्युं । तस्मापि एवं नुप्पज्जन्ति । अपि चेतं कारणं मिलिन्दरञापि पुढेन नागसेनत्थेरेन वित्थारितमेव । वुत्तहि तत्थ - भन्ते, नागसेन, भासितम्पि हेतं भगवता “अट्टानमेतं, भिक्खवे, अनवकासो, यं एकिस्सा लोकधातुया द्वे अरहन्तो सम्मासम्बुद्धा अपुब्बं अचरिमं उप्पज्जेय्यु, नेतं ठानं विज्जतीति । देसयन्ता च, भन्ते नागसेन, सब्बेपि तथागता सत्ततिंस बोधिपक्खिये धम्मे देसेन्ति, कथयमाना च चत्तारि अरियसच्चानि कथेन्ति, 75 Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (५.१६१-१६१) सिक्खापेन्ता च तीसु सिक्खासु सिक्खापेन्ति, अनुसासमाना च अप्पमादप्पटिपत्तियं अनुसासन्ति । यदि, भन्ते नागसेन, सब्बेसम्पि तथागतानं एका देसना एका कथा एकसिक्खा एकानुसासनी, केन कारणेन द्वे तथागता एकक्खणे नुप्पज्जन्ति । एकेनपि ताव बुद्धप्पादेन अयं लोको ओभासजातो, यदि दुतियो बुद्धो भवेय्य, द्विन्नं पभाय अयं लोको भिय्योसोमत्ताय ओभासजातो भवेय्य, ओवदमाना च द्वे तथागता सुखं ओवदेय्युं, अनुसासमाना च सुखं अनुसासेय्युं, तत्थ मे कारणं देसेहि, यथाहं निस्संसयो भवेय्य"न्ति । अयं, महाराज, दससहस्सी लोकधातु एकबुद्धधारणी, एकस्सेव तथागतस्स गुणं धारेति, यदि दुतियो बुद्धो उप्पज्जेय्य, नायं दससहस्सी लोकधातु धारेय्य, चलेय्य, कम्पेय्य, नमेय्य, ओणमेय्य, विनमेय्य, विकिरेय्य, विधमेय्य, विद्धंसेय्य, न ठानमुपगच्छेय्य । यथा, महाराज, नावा एकपुरिससन्धारणी भवेय्य, एकपुरिसे अभिरूळ्हे सा नावा समुपादिका भवेय्य, अथ दुतियो पुरिसो आगच्छेय्य तादिसो आयुना वण्णेन वयेन पमाणेन किसथूलेन सब्बङ्गपच्चङ्गेन, सो तं नावं अभिरूहेय्य, अपि नु सा, महाराज, नावा द्विन्नम्पि धारेय्याति ? न हि, भन्ते, चलेय्य, कम्पेय्य, नमेय्य, ओणमेय्य, विनमेय्य, विकिरेय्य, विधमेय्य, विद्धंसेय्य, न ठानमुपगच्छेय्य ओसीदेय्य उदकेति। एवमेव खो, महाराज, अयं दससहस्सी लोकधातु एकबुद्धधारणी, एकस्सेव तथागतस्स गुणं धारेति, यदि दुतियो बुद्धो उप्पज्जेय्य, नायं दससहस्सी लोकधातु धारेय्य...पे०... न ठानमुपगच्छेय्य । यथा वा पन, महाराज, पुरिसो यावदत्थं भोजनं भुजेय्य छादेन्तं याव कण्ठमभिपूरयित्वा, सो धातो पीणितो परिपुण्णो निरन्तरो तन्दीकतो अनोणमितदण्डजातो पुनदेव तावतकं भोजनं भुजेय्य, अपि नु खो सो, महाराज, पुरिसो सुखितो भवेय्याति ? न हि, भन्ते, सकिं भुत्तोव मरेय्याति; एवमेव खो, महाराज, अयं दससहस्सी लोकधातु एकबुद्धधारणी...पे०... न ठानमुपगच्छेय्याति । किं नु खो, भन्ते नागसेन, अतिधम्मभारेन पथवी चलतीति ? इध, महाराज, 76 Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५.१६१-१६१) सासनअन्तरहितवण्णना | 99 द्वे सकटा रतनपूरिता भवेय्युं याव मुखसमा, एकस्मा सकटतो रतनं गहेत्वा एकस्मिं सकटे आकिरेय्युं, अपि नु खो तं, महाराज, सकटं द्विन्नम्पि सकटानं रतनं धारेय्याति ? न हि, भन्ते, नाभिपि तस्स फलेय्य, अरापि तस्स भिज्जेय्यु, नेमिपि तस्स ओपतेय्य, अक्खोपि तस्स भिज्जेय्याति । किं नु खो, महाराज, अतिरतनभारेन सकटं भिज्जतीति? आम, भन्ते,ति । एवमेव खो, महाराज, अतिधम्मभारेन पथवी चलति । ___ अपिच, महाराज, इमं कारणं बुद्धबलपरिदीपनाय ओसारितं अञम्पि तत्थ अतिरूपं कारणं सुणोहि, येन कारणेन द्वे सम्मासम्बुद्धा एकक्खणे नुप्पज्जन्ति । यदि, महाराज, द्वे सम्मासम्बुद्धा एकक्खणे उप्पज्जेय्यु, तेसं परिसाय विवादो उप्पज्जेय्य "तुम्हाकं बुद्धो अम्हाकं बुद्धो''ति, उभतो पक्खजाता भवेय्युं । यथा, महाराज, द्विन्नं बलवामच्चानं परिसाय विवादो उप्पज्जेय्य “तुम्हाकं अमच्चो अम्हाकं अमच्चो"ति, उभतो पक्खजाता होन्ति; एवमेव खो, महाराज, यदि द्वे सम्मासम्बुद्धा एकक्खणे उप्पज्जेय्यु, तेसं परिसाय विवादो उप्पज्जेय्य "तुम्हाकं बुद्धो, अम्हाकं बुद्धो 'ति, उभतो पक्खजाता भवेय्युं, इदं ताव, महाराज, एकं कारणं, येन कारणेन द्वे सम्मासम्बुद्धा एकक्खणे नुप्पज्जन्ति । अपरम्पि, महाराज, उत्तरं कारणं सुणोहि, येन कारणेन द्वे सम्मासम्बुद्धा एकक्खणे नुप्पज्जन्ति । यदि, महाराज, द्वे सम्मासम्बुद्धा एकक्खणे उप्पज्जेय्यु, "अग्गो बुद्धो"ति यं वचनं, तं मिच्छा भवेय्य, “जेट्ठो बुद्धो"ति, सेट्ठो बुद्धोति, विसिट्ठो बुद्धोति, उत्तमो बुद्धोति, पवरो बुद्धोति, असमो बुद्धोति, असमसमो बुद्धोति, अप्पटिमो बुद्धोति, अप्पटिभागो बुद्धोति, अप्पटिपुग्गलो बुद्धोति यं वचनं, तं मिच्छा भवेय्य । इमम्पि खो त्वं, महाराज, कारणं अत्थतो सम्पटिच्छ, येन कारणेन द्वे सम्मासम्बुद्धा एकक्खणे नुप्पज्जन्ति । अपिच खो, महाराज, बुद्धानं भगवन्तानं सभावपकति एसा, यं एकोयेव बुद्धो लोके उप्पज्जति । कस्मा कारणा ? महन्तताय सब्ब बुद्धगुणानं, यं अझम्पि, महाराज, महन्तं होति, तं एकंयेव होति । पथवी, महाराज, महन्ती, सा एकायेव । सागरो महन्तो, सो एकोयेव । सिनेरु गिरिराजा महन्तो, सो एकोयेव । आकासो महन्तो, सो एकोयेव । सक्को महन्तो, सो एकोयेव । मारो 17 Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (५.१६२-१६२) महन्तो, सो एकोयेव । महाब्रह्मा महन्तो, सो एकोयेव । तथागतो अरहं सम्मासम्बुद्धो महन्तो, सो एकोयेव लोकस्मिं । यत्थ ते उप्पज्जन्ति, तत्थ अओसं ओकासो न होति । तस्मा, महाराज, तथागतो अरहं सम्मासम्बुद्धो एकोयेव लोके उप्पज्जतीति । सुकथितो, भन्ते नागसेन, पञ्हो ओपम्मेहि कारणेहीति (मि० प० ५.१.१)। धम्मस्स चानुधम्मन्ति नवविधस्स लोकुत्तरधम्मस्स अनुधम्म पुब्बभागप्पटिपदं । सहधम्मिकोति सकारणो। वादानुवादोति वादोयेव | अच्छरियअन्भुतवण्णना १६२. आयस्मा उदायीति तयो थेरा उदायी नाम - लाळुदायी, कालुदायी, महाउदायीति । इध महाउदायी अधिप्पेतो। तस्स किर इमं सुत्तं आदितो पट्ठाय याव परियोसाना सुणन्तस्स अब्भन्तरे पञ्चवण्णा पीति उप्पज्जित्वा पादपिडितो सीसमत्थकं गच्छति, सीसमत्थकतो पादपिटुिं आगच्छति, उभतो पट्ठाय मज्झं ओतरति, मज्झतो पट्ठाय उभतो गच्छति। सो निरन्तरं पीतिया फुटसरीरो बलवसोमनस्सेन दसबलस्स गुणं कथेन्तो अच्छरियं भन्तेतिआदिमाह । अप्पिच्छताति नित्तण्हता | सन्तुट्टिताति चतूसु पच्चयेसु तीहाकारेहि सन्तोसो। सल्लेखताति सब्बकिलेसानं सल्लिखितभावो । यत्र हि नामाति यो नाम । न अत्तानं पातुकरिस्सतीति अत्तनो गुणे न आवि करिस्सति । पटाकं परिहरेग्युन्ति "को अम्हेहि सदिसो अत्थी"ति वदन्ता पटाकं उक्खिपित्वा नाळन्दं विचरेय्युं । पस्स खो त्वं, उदायि, तथागतस्स अप्पिच्छताति पस्स उदायि यादिसी तथागतस्स अप्पिच्छताति थेरस्स वचनं सम्पटिच्छन्तो आह | किं पन भगवा नेव अत्तानं पातुकरोति, न अत्तनो गुणं कथेतीति चे? न, न कथेति । अप्पिच्छतादीहि कथेतब्बं, चीवरादिहेतुं न कथेति । तेनेवाह - “पस्स खो त्वं, उदायि, तथागतस्स अप्पिच्छता''तिआदि । बुज्झनकसत्तं पन आगम्म वेनेय्यवसेन कथेति । यथाह - "न मे आचरियो अस्थि, सदिसो मे न विज्जति । सदेवकस्मिं लोकस्मिं, नत्थि मे पटिपुग्गलो"ति ।। (महाव० ११) 78 Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५.१६३-१६३) अच्छरियअब्भुतवण्णना एवं तथागतस्स गुणदीपिका बहू गाथापि सुत्तन्तापि वित्थारेतब्बा ! १६३. अभिक्खणं भासेय्यासीति पुनप्पुनं भासेय्यासि । पुब्बण्हसमये मे कथितन्ति मा मज्झन्हिकादीसु न कथयित्थ | अज्ज वा मे कथितन्ति मा परदिवसादीसु न कथयित्थाति अत्थो । पवेदेसीति कथेसि । इमस्स वेय्याकरणस्साति निग्गाथकत्ता इदं सुत्तं "वेय्याकरण"न्ति वुत्तं । अधिवचनन्ति नामं । इदं पन “इति हिद"न्ति पट्ठाय पदं सङ्गीतिकारेहि ठपितं । सेसं सब्बत्थ उत्तानत्थमेवाति । सुमङ्गलविलासिनिया दीघनिकायट्ठकथाय सम्पसादनीयसुत्तवण्णना निद्विता। 79 Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६. पासादिकसुत्तवण्णना निगण्ठनाटपुत्तकालङ्किरियवण्णना १६४. एवं मे सुतन्ति पासादिकसुत्तं । तत्रायमनुत्तानपदवण्णना- वेधञा नाम सक्याति धनुम्हि कतसिक्खा वेधञनामका एके सक्या । तेसं अम्बवने पासादेति तेसं अम्बवने सिप्पं उग्गण्हत्थाय कतो दीघपासादो अस्थि, तत्थ विहरति । अधुना कालत्तोति सम्पति कालङ्कतो। वेधिकजाताति द्वेज्झजाता, द्वेभागा जाता। भण्डनादीसु भण्डनं पुब्बभागकलहो, तं दण्डादानादिवसेन पण्णत्तिवीतिक्कमवसेन च वड्डितं कलहो। “न त्वं इमं धम्मविनयं आजानासी"तिआदिना नयेन विरुद्धवचनं विवादो। वितुदन्ताति विज्झन्ता । सहितं मेति मम वचनं अत्थसहितं । अधिचिण्णं ते विपरावत्तन्ति यं तव अधिचिण्णं चिरकालासेवनवसेन पगुणं, तं मम वादं आगम्म निवत्तं । आरोपितो ते वादोति तुम्हं उपरि मया दोसो आरोपितो | चर वादप्पमोक्खायाति भत्तपुटं आदाय तं तं उपसङ्कमित्वा वादप्पमोक्खत्थाय उत्तरि परियेसमानो विचर । निब्बेठेहि वाति अथ वा मया आरोपितदोसतो अत्तानं मोचेहि। सचे पहोसीति सचे सक्कोसि । वधोयेवाति मरणमेव । नाटपुत्तियेसूति नाटपुत्तस्स अन्तेवासिकेसु । निम्बिनरूपाति उक्कण्ठितसभावा अभिवादनादीनिपि न करोन्ति। विरत्तरूपाति विगतपेमा। पटिवानरूपाति तेसं सक्कच्चकिरियतो निवत्तनसभावा । यथा तन्ति यथा दुरक्खातादिसभावे धम्मविनये निब्बिन्नविरत्तप्पटिवानरूपेहि भवितब्द, तथैव जाताति अत्थो । दुरक्खातेति दुक्कथिते । दुष्पवेदितेति दुविज्ञापिते । अनुपसमसंवत्तनिकेति रागादीनं उपसमं कातुं असमत्थे । भिन्न)पेति भिन्दप्पतिढे । एत्थ हि नाटपुत्तोव नेसं पतिद्वेन थूपो । सो पन भिन्नो मतो । तेन वुत्तं “भिन्नथूपे'ति । अप्पटिसरणेति तस्सेव अभावेन पटिसरणविरहिते । ननु चायं नाटपुत्तो नाळन्दवासिको, सो कस्मा पावायं कालङ्कतोति ? सो किर Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६.१६५-१६५) निगण्ठनाटपुत्तकालकिरियवण्णना उपालिना गहपतिना पटिविद्धसच्चेन दसहि गाथाहि भासिते बुद्धगुणे सुत्वा उण्हं लोहितं छड्डेसि । अथ नं अफासुकं गहेत्वा पावं अगमंसु । सो तत्थ कालमकासि । कालं कुरुमानो च चिन्तेसि - “मम लद्धि अनिय्यानिका सारविरहिता, मयं ताव नट्ठा, अवसेसजनोपि मा अपायपूरको अहोसि, सचे पनाहं 'मम सासनं अनिय्यानिक न्ति वक्खामि, न सद्दहिस्सन्ति, यंनूनाहं द्वेपि जने न एकनीहारेन उग्गण्हापेय्यं, ते ममच्चयेन अञमञ्च विवदिस्सन्ति, सत्था तं विवादं पटिच्च एकं धम्मकथं कथेस्सति, ततो ते सासनस्स महन्तभावं जानिस्सन्तीति । अथ नं एको अन्तेवासिको उपसङ्कमित्वा आह - "भन्ते तुम्हे दुब्बला, मय्हम्पि इमस्मिं धम्मे सारं आचिक्खथ, आचरियप्पमाण''न्ति । “आवुसो, त्वं ममच्चयेन सस्सतन्ति गण्हेय्यासी''ति । अपरोपि उपसङ्कमि, तं उच्छेदं गण्हापेसि । एवं द्वेपि जने एकलद्धिके अकत्वा बहू नानानीहारेन उग्गण्हापेत्वा कालमकासि । ते तस्स सरीरकिच्चं कत्वा सन्निपतित्वा अञ्जमलं पुच्छिंसु- “कस्सावुसो, आचरियो सारं आचिक्खी"ति ? एको उट्ठहित्वा मरहन्ति आह । किं आचिक्खीति ? सस्सतन्ति । अपरो तं पटिबाहित्वा "मय्हं सारं आचिक्खी"ति आह । एवं सब्बे “महं सारं आचिक्खि, अहं जेठ्ठको"ति अचमनं विवादं वड्डत्वा अक्कोसे चेव परिभासे च हत्थपादप्पहारादीनि च पवत्तेत्वा एकमग्गेन द्वे अगच्छन्ता नानादिसासु पक्कमिंसु । १६५. अथ खो चुन्दो समणुदेसोति अयं थेरो धम्मसेनापतिस्स कनिट्ठभातिको । तं भिक्खू अनुपसम्पन्नकाले “चुन्दो समणुद्देसो"ति समुदाचरित्वा थेरकालेपि तथेव समुदाचरिंसु । तेन वुत्तं- “चुन्दो समणुद्देसो"ति । “पावायं वस्संवुट्ठो येन सामगामो, येनायस्मा आनन्दो तेनुपसङ्कमी"ति कस्मा उपसङ्कमि ? नाटपुत्ते किर कालङ्कते जम्बुदीपे मनुस्सा तत्थ तत्थ कथं पवत्तयिंसु “निगण्ठो नाटपुत्तो एको सत्थाति पञायित्थ, तस्स कालकिरियाय सावकानं एवरूपो विवादो जातो । समणो पन गोतमो जम्बुदीपे चन्दो विय सूरियो विय च पाकटो, सावकापिस्स पाकटायेव । कीदिसो नु खो समणे गोतमे परिनिब्बुते सावकानं विवादो भविस्सती थेरो तं कथं सुत्वा चिन्तेसि - "इमं कथं गहेत्वा दसबलस्स आरोचेस्सामि, सत्था एत अटुप्पत्तिं कत्वा एकं देसनं कथेस्सती''ति । सो निक्खमित्वा येन सामगामो, येनायस्मा आनन्दो तेनुपसङ्कमि। 81 Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (६.१६५-१६५) सामगामोति सामाकानं उस्सन्नत्ता तस्स गामस्स नामं । येनायस्मा आनन्दोति उजुमेव भगवतो सन्तिकं अगन्त्वा येनस्स उपज्झायो आयस्मा आनन्दो तेनुपसङ्कमि । बुद्धकाले किर सारिपुत्तत्थेरो च आनन्दत्थेरो च अञमजं ममायिंसु । सारिपुत्तत्थेरो "मया कातब्बं सत्थु उपट्ठानं करोती"ति आनन्दत्थेरं ममायि । आनन्दत्थेरो "भगवतो सावकानं अग्गो''ति सारिपुत्तत्थेरं ममायि । कुलदारके च पब्बाजेत्वा सारिपुत्तत्थेरस्स सन्तिके उपझं गण्हापेसि । सारिपुत्तत्थेरोपि तथैव अकासि | एवं एकमेकेन अत्तनो पत्तचीवरं दत्वा पब्बाजेत्वा उपज्झं गण्हापितानि पञ्च पञ्च भिक्खुसतानि अहेसुं । आयस्मा आनन्दो पणीतानि चीवरादीनिपि लभित्वा थेरस्स अदासि । धम्मरतनपूजा एको किर ब्राह्मणो चिन्तेसि - "बुद्धरतनस्स च सङ्घरतनस्स च पूजा पञआयति, कथं नु खो धम्मरतनं पूजितं होती"ति ? सो भगवन्तं उपसङ्कमित्वा एतमत्थं पुच्छि। भगवा आह - "सचेपि ब्राह्मण धम्मरतनं पूजेतुकामो, एकं बहुस्सुतं पूजेही"ति | बहुस्सुतं, भन्ते, आचिक्खथाति । भिक्खुसद्धं पुच्छाति । सो भिक्खुसद्धं उपसङ्कमित्वा "बहुस्सुतं, भन्ते, आचिक्खथा"ति आह । आनन्दत्थेरो ब्राह्मणाति । ब्राह्मणो थेरं सहस्सग्घनिकेन तिचीवरेन पूजेसि । थेरो तं गहेत्वा भगवतो सन्तिकं अगमासि । भगवा "कुतो, आनन्द, लद्ध"न्ति आह ? एकेन, भन्ते, ब्राह्मणेन दिन्नं, इदं पनाहं आयस्मतो सारिपुत्तस्स दातृकामोति । देहि, आनन्दाति। चारिकं पक्कन्तो भन्तेति। आगतकाले देहीति, सिक्खापदं भन्ते, पञत्तन्ति | कदा पन सारिपुत्तो आगमिस्सतीति ? दसाहमत्तेन भन्तेति । “अनुजानामि, आनन्द, दसाहपरमं अतिरेकचीवरं निक्खिपितु"न्ति सिक्खापदं पापेसि । सारिपुत्तत्थेरोपि तथैव यंकिञ्चि मनापं लभति, तं आनन्दत्थेरस्स देति । सो इमम्पि अत्तनो कनिट्ठभातिकं थेरस्सेव सद्धिविहारिकं अदासि । तेन वुत्तं- "येनस्स उपज्झायो आयस्मा आनन्दो तेनुपसङ्कमी''ति । एवं किरस्स अहोसि- "उपज्झायो मे महापञो, सो इमं कथं सत्थु आरोचेस्सति, अथ सत्था तदनुरूपं धम्म देसेस्सती"ति । कथापाभतन्ति कथाय मूलं । मूलज्हि “पाभत''न्ति वुच्चति । यथाह - 82 Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६.१६६-१६६) असम्मासम्बुद्धप्पवेदितधम्मविनयवण्णना 63 "अप्पकेनापि मेधावी, पाभतेन विचक्खणो । समुट्ठापेति अत्तानं, अणुं अग्गिंव सन्धम''न्ति ।। (जा० १.१.४) भगवन्तं दस्सनायाति भगवन्तं दस्सनत्थाय । किं पनानेन भगवा न दिट्ठपुब्बोति ? नो न दिट्टपुब्बो । अयहि आयस्मा दिवा नव वारे, रत्तिं नव वारेति एकाहं अट्ठारस वारे उपट्ठानमेव गच्छति । दिवसस्स पन सतवारं वा सहस्सवारं वा गन्तुकामो समानोपि न अकारणा गच्छति, एकं पहुद्धारं गहेत्वाव गच्छति । सो तं दिवसं तेन कथापाभतेन गन्तुकामो एवमाह । असम्मासम्बुद्धप्पवेदितधम्मविनयवण्णना १६६. एवज्हेतं, चुन्द, होतीति भगवा आनन्दत्थेरेन आरोचितेपि यस्मा न आनन्दत्थेरो इमिस्सा कथाय सामिको, चुन्दत्थेरो पन सामिको। सोव तस्सा आदिमज्झपरियोसानं जानाति । तस्मा भगवा तेन सद्धिं कथेन्तो “एवज्हेतं, चुन्द, होती"तिआदिमाह । तस्सत्थो- चुन्द एवव्हेतं होति दुरक्खातादिसभावे धम्मविनये सावका द्वेधिकजाता भण्डनादीनि कत्वा मुखसत्तीहि वितुदन्ता विहरन्ति। इदानि यस्मा अनिय्यानिकसासनेनेव निय्यानिकसासनं पाकटं होति, तस्मा आदितो अनिय्यानिकसासनमेव दस्सेन्तो इध चुन्द सत्था च होति असम्मासम्बुद्धोतिआदिमाह । तत्थ वोक्कम्म च तम्हा धम्मा वत्ततीति न निरन्तरं पूरेति, ओक्कमित्वा ओक्कमित्वा अन्तरन्तरं कत्वा वत्ततीति अत्थो। तस्स ते, आबुसो, लाभाति तस्स तुम्हं एते धम्मानुधम्मप्पटिपत्तिआदयो लाभा । सुलद्धन्ति मनुस्सत्तम्पि ते सुलद्धं । तथा पटिपज्जतूति एवं पटिपज्जतु । यथा ते सत्थारा धम्मो देसितोति येन ते आकारेन सत्थारा धम्मो कथितो । यो च समादपेतीति यो च आचरियो समादपेति । यञ्च समादपेतीति यं अन्तेवासिं समादपेति । यो च समादपितोति यो च एवं समादपितो अन्तेवासिको । यथा आचरियेन समादपितं, तथत्थाय पटिपज्जति । सब्बे तेति तयोपि ते । एत्थ हि आचरियो समादपितत्ता अपुञ्ज पसवति, समादिन्नन्तेवासिको समादिन्नत्ता, पटिपन्नको पटिपन्नत्ता । तेन वुत्तं - “सब्बे ते बहुं अपुजं पसवन्ती"ति । एतेनुपायेन सब्बवारेसु अत्थो वेदितब्बो। 83 Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (६.१६७-१७३) १६७. अपिचेत्थ आयप्पटिपन्नोति कारणप्पटिपन्नो। आयमाराधेस्सतीति कारणं निप्फादेस्सति । वीरियं आरभतीति अत्तनो दुक्खनिब्बत्तकं वीरियं करोति । वृत्तव्हेतं "दुरक्खाते, भिक्खवे, धम्मविनये यो आरद्धवीरियो, सो दुक्खं विहरति । यो कुसीतो, सो सुखं विहरती"ति (अ० नि० १.१.३१८)। सम्मासम्बुद्धप्पवेदितधम्मविनयादिवण्णना १६८. एवं अनिय्यानिकसासनं दस्सेत्वा इदानि निय्यानिकसासनं दस्सेन्तो इध पन, चुन्द, सत्था च होति सम्मासम्बुद्धोतिआदिमाह । तत्थ निय्यानिकोति मग्गत्थाय फलत्थाय च निय्याति । १६९. वीरियं आरभतीति अत्तनो सुखनिष्फादकं वीरियं आरभति । वुत्तज्हेतं "स्वाक्खाते, भिक्खवे, धम्मविनये यो कुसीतो, सो दुक्खं विहरति । यो आरद्धवीरियो, सो सुखं विहरती"ति (अ० नि० १.१.३१९)। . १७०. इति भगवा निय्यानिकसासने सम्मापटिपन्नस्स कुलपुत्तस्स पसंसं दस्सेत्वा पुन देसनं वड्डेन्तो इध, चुन्द, सत्था च लोके उदपादीतिआदिमाह । तत्थ अविज्ञापितत्थाति अबोधितत्था । सबसङ्गाहपदकतन्ति सब्बसङ्गहपदेहि कतं, सब्बसङ्गाहिकं कतं न होतीति अत्थो । “सब्बसङ्गाहपदगत"न्तिपि पाठो, न सब्बसङ्गाहपदेसु गतं, न एकसङ्गहजातन्ति अत्थो । सप्पाटिहीरकतन्ति निय्यानिकं । याव देवमनुस्सेहीति देवलोकतो याव मनुस्सलोका सुप्पकासितं । अनुतप्पो होतीति अनुतापकरो होति । सत्था च नो लोकेति इदं तेसं अनुतापकारदस्सनत्थं वुत्तं । नानुतप्पो होतीति सत्थारं आगम्म सावकेहि यं पत्तब्द, तस्स पत्तत्ता अनुतापकरो न होति ।। १७२. थेरोति थिरो थेरकारकेहि धम्मेहि समन्नागतो। “रत्त"तिआदीनि वुत्तत्थानेव । एतेहि चे पीति एतेहि हेट्ठा वुत्तेहि । १७३. पत्तयोगक्खेमाति चतूहि योगेहि खेमत्ता अरहत्तं इध योगक्खेमं नाम, तं पत्ताति अत्थो । अलं समक्खातुं सद्धम्मस्साति सम्मुखा गहितत्ता अस्स सद्धम्मं सम्मा आचिक्खितुं समत्था । Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६.१७४-१७८) सनायितब्बधम्मादिवण्णना १७४. ब्रह्मचारिनोति ब्रह्मचरियवासं वसमाना अरियसावका। कामभोगिनोति गिहिसोतापन्ना । “इद्धञ्चेवा''तिआदीनि महापरिनिब्बाने वित्थारितानेव । लाभग्गयसग्गपत्तन्ति लाभग्गञ्चेव यसग्गञ्च पत्तं । १७५. सन्ति खो पन मे, चुन्द, एतरहि थेरा भिक्खू सावकाति सारिपुत्तमोग्गल्लानादयो थेरा। भिक्खुनियोति खेमाथेरीउप्पलवण्णथेरीआदयो । उपासका सावका गिही ओदातवत्थवसना ब्रह्मचारिनोति चित्तगहपतिहत्थकआळवकादयो । कामभोगिनोति चूळअनाथपिण्डिकमहाअनाथपिण्डिकादयो । ब्रह्मचारिनियोति नन्दमातादयो । कामभोगिनियोति खुज्जुत्तरादयो। १७६. सब्बाकारसम्पन्नन्ति सब्बकारणसम्पन्नं । इदमेव तन्ति इदमेव ब्रह्मचरियं, इममेव धम्मं सम्मा हेतुना नयेन वदमानो वदेय्य । उदकास्सुदन्ति उदको सुदं। पस्सं न पस्सतीति पस्सन्तो न पस्सति । सो किर इमं पऽहं महाजनं पुच्छि । तेहि “न जानाम, आचरिय. कथेहि नो"ति वत्तो सो आह- "गम्भीरो अयं पञ्हो आहारसप्पाये सति थोकं चिन्तेत्वा सक्का कथेतु''न्ति । ततो तेहि चत्तारो मासे महासक्कारे कते तं पन्हं कथेन्तो किञ्च पस्सं न पस्सतीतिआदिमाह। तत्थ साधुनिसितस्साति सुटुनिसितस्स तिखिणस्स, सुनिसितखुरस्स किर तलं पञ्जायति, धारा न पायतीति अयमेत्थ अत्थो । सङ्गायितब्बधम्मादिवण्णना १७७. सङ्गम समागम्माति सङ्गन्त्वा समागन्त्वा । अत्थेन अत्यं, व्यञ्जनेन व्यञ्जनन्ति अत्थेन सह अत्यं, ब्यञ्जनेनपि सह ब्यञ्जनं समानेन्तेहीति अत्थो। सङ्गायितब्बन्ति वाचेतब्बं सज्झायितब्बं । यथयिदं ब्रह्मचरियन्ति यथा इदं सकलं सासनब्रह्मचरियं । १७८. तत्र चेति तत्र सङ्घमज्झे, तस्स वा भासिते । अत्थञ्चेव मिच्छा गण्हाति, ब्यञ्जनानि च मिच्छा रोपेतीति "चत्तारो सतिपट्टाना"ति एत्थ आरम्मणं "सतिपट्ठान"न्ति अत्थं गण्हाति । “सतिपट्ठानानी"ति ब्यञ्जनं रोपेति । इमस्स नु खो, आवुसो, अत्थस्साति “सतियेव सतिपट्ठान"न्ति । अत्थस्स “चत्तारो सतिपट्ठाना"ति किं नु खो इमानि ब्यञ्जनानि, उदाहु चत्तारि सतिपट्ठानानी"ति एतानि वा ब्यञ्जनानि । कतमानि ओपायिकतरानीति इमस्स अत्थस्स कतमानि ब्यञ्जनानि उपपन्नतरानि अल्लीनतरानि । 85 Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (६.१८१-१८३) 11.1111 इमेसञ्च व्यञ्जनानन्ति “चत्तारो सतिपट्ठाना"ति ब्यञ्जनानं “सतियेव सतिपट्ठान"न्ति किं नु खो अयं अत्थो, उदाहु "आरम्मणं सतिपट्ठान"न्ति एसो अत्थोति? इमस्स खो, आवुसो, अत्थस्साति “आरम्मणं सतिपट्ठान''न्ति इमस्स अत्थस्स | या चेव एतानीति यानि चेव एतानि मया वुत्तानि | या चेव एसोति यो चेव एस मया वुत्तो। सो नेव उस्सादेतब्बोति तुम्हेहि ताव सम्मा अत्थे च सम्मा ब्यञ्जने च ठातब्बं । सो पन नेव उस्सादेतब्बो, न अपसादेतब्बो। सापेतब्बोति जानापेतब्बो। तस्स च अत्थस्साति "सतियेव सतिपट्ठान'"न्ति अत्थस्स च । तेसञ्च व्यञ्जनानन्ति “सतिपट्ठाना"ति व्यञ्जनानं । निसन्तियाति निसामनत्थं धारणत्थं । इमिना नयेन सब्बवारेसु अत्थो वेदितब्बो। १८१. तादिसन्ति तुम्हादिसं। अत्थुपेतन्ति अत्थेन उपेतं अत्थस्स विञातारं । व्यञ्जनुपेतन्ति ब्यञ्जनेहि उपेतं ब्यञ्जनानं विज्ञातारं । एवं एतं भिक्खुं पसंसथ । एसो हि भिक्खु न तुम्हाकं सावको नाम, बुद्धो नाम एस चुन्दाति । इति भगवा बहुस्सुतं भिक्खु अत्तनो ठाने ठपेसि । पच्चयानुञातकारणादिवण्णना __१८२. इदानि ततोपि उत्तरितरं देसनं वड्डेन्तो न वो अहं, चुन्दातिआदिमाह । तत्थ दिठ्ठधम्मिका आसवा नाम इधलोके पच्चयहेतु उप्पज्जनका आसवा। सम्परायिका आसवा नाम परलोके भण्डनहेतु उप्पज्जनका आसवा । संवरायाति यथा ते न पविसन्ति, एवं पिदहनाय । पटिघातायाति मूलघातेन पटिहननाय । अलं वो तं यावदेव सीतस्स पटिघातायाति तं तुम्हाकं सीतस्स पटिघाताय समत्थं । इदं वुत्तं होति, यं वो मया चीवरं अनुज्ञातं, तं पारुपित्वा दप्पं वा मानं वा कुरुमाना विहरिस्सथाति न अनुज्ञातं, तं पन पारुपित्वा सीतप्पटिघातादीनि कत्वा सुखं समणधम्मं योनिसो मनसिकारं करिस्सथाति अनुज्ञातं । यथा च चीवरं, एवं पिण्डपातादयोपि । अनुपदसंवण्णना पनेत्थ विसुद्धिमग्गे वुत्तनयेनेव वेदितब्बा। सुखल्लिकानुयोगादिवण्णना १८३. सुखल्लिकानुयोगन्ति सुखल्लियनानुयोगं, सुखसेवनाधिमुत्तन्ति अत्थो । सुखेतीति सुखितं करोति । पीणेतीति पीणितं थूलं करोति । . 86 Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६.१८६-१८७) पहब्याकरणवण्णना १८६. अद्वितधम्माति नट्टितसभावा । जिव्हा नो अस्थीति यं यं इच्छन्ति, तं तं कथेन्ति, कदाचि मग्गं कथेन्ति, कदाचि फलं कदाचि निब्बानन्ति अधिप्पायो । जानताति सब्ब तञाणेन जानन्तेन । पस्सताति पञ्चहि चक्खूहि पस्सन्तेन । गम्भीरनेमोति गम्भीरभूमिं अनुपविट्ठो। सुनिखातोति सुटु निखातो। एवमेव खो, आवुसोति एवं खीणासवो अभब्बो नव ठानानि अज्झाचरितुं । तस्मिं अनज्झाचारो अचलो असम्पवेधी । तत्थ सञ्चिच्च पाणं जीविता वोरोपनादीसु सोतापन्नादयोपि अभब्बा। सन्निधिकारकं कामे परिभुज्जितुन्ति वत्थुकामे च किलेसकामे च सन्निधिं कत्वा परिभुजितुं । सेय्यथापि पुब्बे अगारिकभूतोति यथा पुब्बे गिहिभूतो परिभुञ्जति, एवं परिभुञ्जितुं अभब्बो । पहब्याकरणवण्णना १८७. अगारमज्झे वसन्ता हि सोतापन्नादयो यावजीवं गिहिब्यञ्जनेन तिट्ठन्ति । खीणासवो पन अरहत्तं पत्वाव मनुस्सभूतो परिनिब्बाति वा पब्बजति वा । चातुमहाराजिकादीसु कामावचरदेवेसु मुहुत्तम्पि न तिठ्ठति । कस्मा ? विवेकट्ठानस्स अभावा । भुम्मदेवत्तभावे पन ठितो अरहत्तं पत्वापि तिट्ठति । तस्स वसेन अयं पञ्हो आगतो। भिन्नदोसत्ता पनस्स भिक्खुभावो वेदितब्बो। अतीरकन्ति अतीरं अपरिच्छेदं महन्तं । नो च खो अनागतन्ति अनागतं पन अद्धानं आरब्भ एवं न पञपेति, अतीतमेव मञ्चे समणो । गोतमो जानाति, न अनागतं। तथा हिस्स अतीते अड्डछट्ठसतजातकानुस्सरणं पायति । अनागते एवं बहुं अनुस्सरणं न पचायतीति इममत्थं मञ्जमाना एवं वदेय्युं । तयिदं किं सूति अनागते अपञापनं किं नु खो ? कथंसूति केन नु खो कारणेन अजानन्तोयेव नु खो अनागतं नानुस्सरति, अननुस्सरितुकामताय नानुस्सरतीति । अञविहितकेन आणदस्सनेनाति पच्चक्खं विय कत्वा दस्सनसमत्थताय दस्सनभूतेन आणेन अञ्जत्थविहितकेन आणेन अझं आरब्भ पवत्तेन, अञविहितकं अजं आरब्भ पवत्तमानं आणदस्सनं सङ्गाहेतब्बं पापेतब्बं मञ्जन्ति । ते हि चरतो च तिट्ठतो च सुत्तस्स च जागरस्स च सततं समितं आणदस्सनं पच्युपट्टितं मञन्ति, तादिसञ्च आणं नाम नत्थि । तस्मा यथरिव बाला अब्यत्ता, एवं मञ्जन्तीति वेदितब्बो। सतानुसारीति पुब्बेनिवासानुस्सतिसम्पयुत्तकं । यावतकं आकङ्कतीति यत्तकं ज्ञातुं इच्छति, तत्तकं जानिस्सामीति आणं पेसेसि । अथस्स दुब्बलपत्तपुटे पक्खन्दनाराचो विय Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (६.१८८-१८८) अप्पटिहतं अनिवारितं आणं गच्छति, तेन यावतकं आकङ्घति तावतकं अनुस्सरति । बोधिजन्ति बोधिमूले जातं । आणं उप्पज्जतीति चतुमग्गजाणं उप्पज्जति । अयमन्तिमा जातीति तेन आणेन जातिमूलस्स पहीनत्ता पुन अयमन्तिमा जाति । नत्थिदानि पुनभवोति अपरम्प आणं उप्पज्जति । अनत्थसंहितन्ति न इधलोकत्थं वा परलोकत्थं वा निस्सितं । न तं तथागतो व्याकरोतीति तं भारतयुद्धसीताहरणसदिसं अनिय्यानिककथं तथागतो न कथेति । भूतं तच्छं अनत्थसंहितन्ति राजकथादितिरच्छानकथं । कालघू तथागतो होतीति कालं जानाति । सहेतुकं सकारणं कत्वा युत्तपत्तकालेयेव कथेति । १८८. तस्मा तथागतोति बुच्चतीति यथा यथा गदितब्, तथा तथेव गदनतो दकारस्स तकारं कत्वा तथागतोति वुच्चतीति अत्थो। दिट्ठन्ति रूपायतनं । सुतन्ति सद्दायतनं । मुतन्ति मुत्वा पत्वा गहेतब्बतो गन्धायतनं रसायतनं फोटब्बायतनं । विज्ञातन्ति सुखदुक्खादिधम्मायतनं । पत्तन्ति परियेसित्वा वा अपरियेसित्वा वा पत्तं । परियेसितन्ति पत्तं वा अपत्तं वा परियेसितं। अनुविचरितं मनसाति चित्तेन अनुसञ्चरितं । “तथागतेन अभिसम्बुद्ध''न्ति इमिना एतं दस्सेति, यहि अपरिमाणासु लोकधातूसु इमस्स सदेवकस्स लोकस्स नीलं पीतकन्तिआदि रूपारम्मणं चक्खुद्वारे आपाथमागच्छति, “अयं सत्तो इमस्मिं खणे इमं नाम रूपारम्मणं दिस्वा सुमनो वा दुम्मनो वा मज्झत्तो वा जातो"ति सब्द तं तथागतस्स एवं अभिसम्बुद्धं । तथा यं अपरिमाणासु लोकधातूसु इमस्स सदेवकस्स लोकस्स भेरिसद्दो मुदिङ्गसद्दोतिआदि सद्दारम्मणं सोतद्वारे आपाथमागच्छति । मूलगन्धो तचगन्धोतिआदि गन्धारम्मणं घानद्वारे आपाथमागच्छति । मूलरसो खन्धरसोतिआदि रसारम्मणं जिव्हाद्वारे आपाथमागच्छति। कक्खळं मुदुकन्तिआदि पथवीधातुतेजोधातुवायोधातुभेदं फोठुब्बारम्मणं कायद्वारे आपाथमागच्छति । “अयं सत्तो इमस्मिं खणे इमं नाम फोठुब्बारम्मणं फुसित्वा सुमनो वा दुम्मनो वा मज्झत्तो वा जातो''ति सब्बं तं तथागतस्स एवं अभिसम्बुद्धं । तथा यं अपरिमाणासु लोकधातूसु इमस्स सदेवकस्स लोकस्स सुखदुक्खादिभेदं धम्मारम्मणं मनोद्वारस्स आपाथमागच्छति, “अयं सत्तो इमस्मिं खणे इदं नाम धम्मारम्मणं विजानित्वा सुमनो वा दुम्मनो वा मज्झत्तो वा जातो"ति सब्बं तं तथागतस्स एवं अभिसम्बुद्धं । यहि, चुन्द, इमेसं सत्तानं दिटुं सुतं मुतं विजातं तत्थ तथागतेन अदिटुं वा असुतं वा अमुतं वा अविज्ञातं वा नत्थि । इमस्स महाजनस्स परियेसित्वा पत्तम्पि अस्थि, परियेसित्वा अप्पत्तम्पि अत्थि। अपरियेसित्वा पत्तम्पि अस्थि, अपरियेसित्वा 88 Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६.१८९-१९१) अब्याकतट्ठानवण्णना अप्पत्तम्पि अस्थि । सब्बम्पि तं तथागतस्स अप्पत्तं नाम नत्थि, आणेन असच्छिकतं नाम । "तस्मा तथागतोति वुच्चती''ति । यं यथा लोकेन गतं तस्स तथेव गतत्ता "तथागतो''ति वुच्चति । पाळियं पन अभिसम्बुद्धन्ति वुत्तं, तं गतसद्देन एकत्थं । इमिना नयेन सब्बवारेसु “तथागतो"ति निगमनस्स अत्थो वेदितब्बो, तस्स युत्ति ब्रह्मजाले तथागतसद्दवित्थारे वुत्तायेव । अब्याकतहानवण्णना १८९. एवं अत्तनो असमतं अनुत्तरतं सब्बञ्जतं धम्मराजभावं कथेत्वा इदानि "पुथुसमणब्राह्मणानं लद्धीसु मया अज्ञातं अदिटुं नाम नत्थि, सब्बं मम जाणस्स अन्तोयेव परिवत्ततीति सीहनादं नदन्तो ठानं खो पनेतं, चुन्द, विज्जतीतिआदिमाह । तत्थ तथागतोति सत्तो । न हेतं, आधुसो, अत्थसंहितन्ति इधलोकपरलोकअत्थसंहितं न होति । न च धम्मसंहितन्ति नवलोकुत्तरधम्मनिस्सितं न होति। न आदिब्रह्मचरियकन्ति सिक्खत्तयसङ्गहितस्स सकलसासनब्रह्मचरियस्स आदिभूतं न होति ।। १९०. इदं दुक्खन्ति खोतिआदीसु तण्हं ठपेत्वा अवसेसा तेभुम्मका धम्मा इदं दुक्खन्ति ब्याकतं । तस्सेव दुक्खस्स पभाविका जनिका तण्हा दुक्खसमुदयोति ब्याकतं । उभिन्नं अप्पवत्ति दुक्खनिरोधोति ब्याकतं । दुक्खपरिजाननो समुदयपजहनो निरोधसच्छिकरणो अरियमग्गो दुक्खनिरोधगामिनी पटिपदाति ब्याकतं । “एतन्हि, आवुसो, अत्थसंहित"न्तिआदीसु एतं इधलोकपरलोकअत्थनिस्सितं नवलोकुत्तरधम्मनिस्सितं सकलसासनब्रह्मचरियस्स आदि पधानं पुब्बङ्गमन्ति अयमत्थो। पुब्बन्तसहगतदिट्ठिनिस्सयवण्णना १९१. इदानि यं तं मया न ब्याकतं, तं अजानन्तेन न ब्याकतन्ति मा एवं सञमकंसु । जानन्तोव अहं एवं "एतस्मिं ब्याकतेपि अत्थो नत्थी"ति न ब्याकरिं। यं पन यथा ब्याकातब्बं, तं मया ब्याकतमेवाति सीहनादं नदन्तो पुन येपि ते, चुन्दातिआदिमाह । तत्थ दिट्ठियोव दिहिनिस्सया, दिट्ठिनिस्सितका दिह्रिगतिकाति अत्थो । इदमेव सच्चन्ति इदमेव दस्सनं सच्चं । मोघमञन्ति अञसं वचनं मोघं । असयंकारोति असयं कतो। Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९० दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (६.१९२-१९६) १९२. तत्राति तेसु समणब्राह्मणेसु । अत्थि नु खो इदं आवुसो बुच्चतीति, आवुसो, यं तुम्हेहि सस्सतो अत्ता च लोको चाति वुच्चति, इदमस्थि नु खो उदाहु नत्थीति एवमहं ते प्रच्छामीति अथो ) ग्रञ्च छो के माति ए एन ने बटोर मनं मोघमञ"न्ति वदन्ति, तं तेसं नानुजानामि । पञत्तियाति दिट्ठिपञत्तिया। समसमन्ति समेन जाणेन समं। यदिदं अधिपञत्तीति या अयं अधिपत्ति नाम । एत्थ अहमेव भिय्यो उत्तरितरो न मया समो अस्थि । तत्थ यञ्च वुत्तं "पत्तियाति यञ्च अधिपञत्ती"ति उभयमेतं अत्थतो एकं । भेदतो हि पञत्ति अधिपञ्जत्तीति द्वयं होति । तत्थ पञत्ति नाम दिट्ठिपञत्ति। अधिपत्ति नाम खन्धपत्ति धातुपञत्ति आयतनपञत्ति इन्द्रियपत्ति सच्चपञत्ति पुग्गलपञ्ञत्तीति एवं वुत्ता छ पञ्जत्तियो । इध पन पत्तियाति एत्थापि पञत्ति चेव अधिपञत्ति च अधिप्पेता, अधिपञत्तीति एत्थापि । भगवा हि पत्तियापि अनुत्तरो, अधिपञ्जत्तियापि अनुत्तरो। तेनाह -- “अहमेव तत्थ भिय्यो यदिदं अधिपञत्ती"ति । १९६. पहानायाति पजहनत्थं | समतिक्कमायाति तस्सेव वेवचनं । देसिताति कथिता । पअत्ताति ठपिता। सतिपट्ठानभावनाय हि घनविनिब्भोगं कत्वा सब्बधम्मेसु याथावतो दिढेसु "सुद्धसङ्खारपुञ्जोयं नयिध सत्तूपलब्भती''ति सन्निट्ठानतो सब्बदिट्ठिनिस्सयानं पहानं होतीति । तेन वुत्तं । दिट्ठिनिस्सयानं पहानाय समतिक्कमाय एवं मया इमे चत्तारो सतिपट्ठाना देसिता पञत्ता''ति । सेसं सब्बत्थ उत्तानत्थमेवाति । सुमङ्गलविलासिनिया दीघनिकायट्ठकथाय पासादिकसुत्तवण्णना निहिता। 90 Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७. लक्खणसुत्तवण्णना द्वत्तिंसमहापुरिसलक्खणवण्णना १९९. एवं मे सुतन्ति लक्खणसुत्तं । तत्रायमनुत्तानपदवण्णना। द्वत्तिसिमानीति द्वत्तिंस इमानि | महापुरिसलक्खणानीति महापुरिसब्यञ्जनानि महापुरिसनिमित्तानि “अयं महापुरिसो"ति सञ्जाननकारणानि । “येहि समन्नागतस्स महापुरिसस्सा"तिआदि महापदाने वित्थारितनयेनेव वेदितब् । "बाहिरकापि इसयो धारेन्ति, नो च खो जानन्ति 'इमस्स कम्मस्स कतत्ता इमं लक्खणं पटिलभती'ति" कस्मा आह ? अटुप्पत्तिया अनुरूपत्ता। इदहि सुत्तं सअटुप्पत्तिकं । सा पनस्स अटुप्पत्ति कत्थ समुट्ठिता ? अन्तोगामे मनुस्सानं अन्तरे । तदा किर सावत्थिवासिनो अत्तनो अत्तनो गेहेसु च गेहद्वारेसु च सन्थागारादीसु च निसीदित्वा कथं समुट्ठापेसुं- "भगवतो असीतिअनुब्यञ्जनानि ब्यामप्पभा द्वत्तिंसमहापुरिसलक्खणानि, येहि च भगवतो कायो, सब्बफालिफुल्लो विय पारिच्छत्तको, विकसितमिव कमलवनं, नानारतनविचित्तं विय सुवण्णतोरणं, तारामरिचिविरोचमिव गगनतलं, इतो चितो च विधावमाना विप्फन्दमाना छब्बण्णरस्मियो मुञ्चन्तो अतिविय सोभति । भगवतो च इमिना नाम कम्मेन इदं लक्खणं निब्बत्तन्ति कथितं नत्थि, यागुउळुङ्कमत्तम्पि पन कटच्छुभत्तमत्तं वा पुब्बे दिन्नपच्चया एवं उप्पज्जतीति भगवता वुत्तं । किं नु खो सत्था कम्मं अकासि, येनस्स इमानि लक्खणानि निब्बत्तन्ती''ति । अथायस्मा आनन्दो अन्तोगामे चरन्तो इमं कथासल्लापं सुत्वा कतभत्तकिच्चो विहारं आगन्त्वा सत्थु वत्तं कत्वा वन्दित्वा ठितो "मया, भन्ते, अन्तोगामे एका कथा सुता'"ति आह । ततो भगवता "किं ते, आनन्द, सुत"न्ति वुत्ते सब्बं आरोचेसि । सत्था थेरस्स 91 Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९२ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (७.२०१-२०१) वचनं सुत्वा परिवारेत्वा निसिन्ने भिक्खू आमन्तेत्वा "द्वत्तिंसिमानि, भिक्खवे, महापुरिसस्स महापुरिसलक्खणानी"ति पटिपाटिया लक्खणानि दस्सेत्वा येन कम्मेन यं निब्बत्तं, तस्स दस्सनत्थं एवमाह । सुप्पतिद्वितपादतालक्खणवण्णना २०१. पुरिमं जातिन्तिआदीसु पुब्बे निवुत्थक्खन्धा जातवसेन "जाती"ति वृत्ता । तथा भवनवसेन “भवो"ति, निवुत्थवसेन आलयद्वेन वा “निकेतो"ति । तिण्णम्पि पदानं पुब्बे निवुत्थक्खन्धसन्ताने ठितोति अत्थो । इदानि यस्मा तं खन्धसन्तानं देवलोकादीसुपि वत्तति । लक्खणनिब्बत्तनसमत्थं पन कुसलकम्मं तत्थ न सुकरं, मनुस्सभूतस्सेव सुकरं । तस्मा यथाभूतेन यं कम्मं कतं, तं दस्सेन्तो पुब्बे मनुस्सभूतो समानोति आह । अकारणं वा एतं । हत्थिअस्समिगमहिंसवानरादिभूतोपि महापुरिसो पारमियो पूरेतियेव । यस्मा पन एवरूपे अत्तभावे ठितेन कतकम्मं न सक्का सुखेन दीपेतुं, मनुस्सभावे ठितेन कतकम्म पन सक्का सुखेन दीपेतुं । तस्मा “पुब्बे मनुस्सभूतो समानो"ति आह । ___दहसमादानोति थिरगहणो। कुसलेसु धम्मसूति दसकुसलकम्मपथेसु । अवत्थितसमादानोति निच्चलगहणो अनिवत्तितगहणो। महासत्तस्स हि अकुसलकम्मतो अग्गिं पत्वा कुक्कुटपत्तं विय चित्तं पटिकुटति, कुसलं पत्वा वितानं विय पसारियति । तस्मा दळ्हसमादानो होति अवस्थितसमादानो । न सक्का केनचि समणेन वा ब्राह्मणेन वा देवेन वा मारेन वा ब्रह्मना वा कुसलसमादानं विस्सज्जापेतुं । तत्रिमानि वत्थूनि - पुब्बे किर महापुरिसो कलन्दकयोनियं निब्बत्ति । अथ देवे वुढे ओघो आगन्त्वा कुलावकं गहेत्वा समुद्दमेव पवेसेसि। महापुरिसो “पुत्तके नीहरिस्सामी"ति नटुं तेमेत्वा तेमेत्वा समुद्दतो उदकं बहि खिपि । सत्तमे दिवसे सक्को आवज्जित्वा तत्थ आगम्म “किं करोसी"ति पुच्छि ? सो तस्स आरोचेसि । सक्को महासमुद्दतो उदकस्स दुन्नीहरणीयभावं कथेसि। बोधिसत्तो तादिसेन कुसीतेन सद्धिं कथेतुम्पि न वट्टति । “मा इध तिठ्ठा'"ति अपसारेसि । सक्को “अनोमपुरिसेन गहितगहणं न सक्का विस्सज्जापेतु"न्ति तुट्ठो तस्स पुत्तके आनेत्वा अदासि | महाजनककालेपि महासमुदं तरमानो “कस्मा महासमुदं तरसी"ति देवताय पुट्ठो “पारं गन्त्वा कुलसन्तके रटे रज्जं गहेत्वा दानं दातुं तरामी"ति आह । ततो देवताय – “अयं महासमुद्दो 92 Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७.२०१-२०१) सुप्पतिद्वितपादतालक्खणवण्णना गम्भीरो चेव पुथुलो च, कदा नं तरिस्सती"ति वुत्ते सो आह “तवेसो महासमुद्दसदिसो, महं पन अज्झासयं आगम्म खुद्दकमातिका विय खायति । त्वंयेव मं दक्खिस्ससि समुदं तरित्वा समुद्दपारतो धनं आहरित्वा कुलसन्तकं रज्जं गहेत्वा दानं ददमान''न्ति । देवता "अनोमपुरिसेन गहितगहणं न सक्का विस्सज्जापेतु''न्ति बोधिसत्तं आलिङ्गत्वा हरित्वा उय्याने निपज्जापेसि । सो छत्तं उस्सापेत्वा दिवसे दिवसे पञ्चसतसहस्सपरिच्चागं कत्वा अपरभागे निक्खम्म पब्बजितो। एवं महासत्तो न सक्का केनचि समणेन वा...पे०... ब्रह्मना वा कुसलसमादानं विस्सज्जापेतुं । तेन वुत्तं- “दळहसमादानो अहोसि कुसलेसु धम्मेसुअवत्थितसमादानो''ति । ___ इदानि येसु कुसलेसु धम्मेसु अवस्थितसमादानो अहोसि, ते दस्सेतुं कायसुचरितेतिआदिमाह। दानसंविभागेति एत्थ च दानमेव दिय्यनवसेन दानं, संविभागकरणवसेन संविभागो। सीलसमादानेति पञ्चसीलदससीलचतुपारिसुद्धिसीलपूरणकाले। उपोसथूपवासेति चातुद्दसिकादिभेदस्स उपोसथस्स उपवसनकाले | मत्तेय्यतायाति मातुकातब्बवत्ते। सेसपदेसुपि एसेव नयो । अञतरञतरेसु चाति अञ्चेसु च एवरूपेसु । अधिकुसलेसूति एत्थ अस्थि कुसला, अस्थि अधिकुसला । सब्बेपि कामावचरा कुसला कुसला नाम, रूपावचरा अधिकुसला । उभोपि ते कुसला नाम, अरूपावचरा अधिकुसला । सब्बेपि ते कुसला नाम, सावकपारमीपटिलाभपच्चया कुसला अधिकुसला नाम । तेपि कुसला नाम, पच्चेकबोधिपटिलाभपच्चया कुसला अधिकुसला । तेपि कुसला नाम, सब्ब ताणप्पटिलाभपच्चया पन कुसला इध “अधिकुसला''ति अधिप्पेता । तेसु अधिकुसलेसु धम्मेसु दळहसमादानो अहोसि अवस्थितसमादानो। कटत्ता उपचितत्ताति एत्थ सकिम्पि कतं कतमेव, अभिण्हकरणेन पन उपचितं होति । उस्सन्नत्ताति पिण्डीकतं रासीकतं कम्मं उस्सन्नन्ति वुच्चति । तस्मा “उस्सन्नत्ता'"ति वदन्तो मया कतकम्मस्स चक्कवाळं अतिसम्बाधं, भवग्गं अतिनीचं, एवं मे उस्सन्नं कम्मन्ति दस्सेति । विपुलत्ताति अप्पमाणत्ता। इमिना “अनन्तं अपरिमाणं मया कतं कम्म"न्ति दस्सेति । अधिग्गण्हातीति अधिभवति, अञ्जेहि देवेहि अतिरेकं लभतीति अत्थो । पटिलभतीति अधिगच्छति। सब्बावन्तेहि पादतलेहीति इदं “समं पादं भूमियं निक्खिपती"ति एतस्स वित्थारवचनं । तत्थ सब्बावन्तेहीति सब्बपदेसवन्तेहि, न एकेन पदेसेन पठमं फुसति, न Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९४ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा एकेन पच्छा, सब्बेहेव पादतलेहि समं फुसति, समं उद्धरति । सचेपि हि तथागतो “अनेकसतपोरिसं नरकं अक्कमिस्सामी" ति पादं अभिनीहरति । तावदेव निन्नट्ठानं वातपूरिता विय कम्मारभस्ता उन्नमित्वा पथविसमं होति । उन्नतट्ठानम्पि अन्तो पविसति । “दूरे अक्कमिस्सामी ति अभिनीहरन्तस्स सिनेरुप्पमाणोपि पब्बतो सुसेदितवेत् ओनमित्वा पादसमीपं आगच्छति । तथा हिस्स यमकपाटिहारियं कत्वा “युगन्धरपब्बतं अक्कमिस्सामीति पादे अभिनीहटे पब्बतो ओनमित्वा पादसमीपं आगतो । सोपि तं अक्कमित्वा दुतियपादेन तावतिंसभवनं अक्कमि । न हि चक्कलक्खणेन पतिट्ठातब्बट्ठानं विसमं भवितुं सक्कोति । खाणु वा कण्टको वा सक्खरा वा कथला वा उच्चारपस्सावखेळसिङ्घाणिकादीनि वा पुरिमतरं वा अपगच्छन्ति, तत्थ तत्थेव वा पथवि पविसन्ति। तथागतस्स हि सीलतेजेन पुञ्ञतेजेन धम्मतेजेन दसन्नं पारमीनं आनुभावेन अयं महापथवी सम्मा मुदुपुप्फाभिकिण्णा होति । २०२. सागरपरियन्तन्ति सागरसीमं । न हि तस्स रज्जं करोन्तस्स अन्तरा रुक्खो वा पब्बतो वा नदी वा सीमा होति महासमुद्दोव सीमा । तेन वुत्तं " सागरपरियन्त "न्ति । अखिलमनिमित्तमकण्टकन्ति निच्चोरं । चोरा हि खरसम्फस्सट्टेन खिला, उपद्दवपच्चयट्ठेन निमित्ता, विज्झनट्ठेन कण्टकाति वुच्चन्ति । इन्ति समिद्धं । फीतन्ति सब्बसम्पत्तिफालिफुल्लं । खेमन्ति निब्भयं । सिवन्ति निरुपद्दवं । निरब्बुदन्ति अब्बुदविरहितं, गुम्बं गुम्बं हुत्वा चरन्तेहि चोरेहि विरहितन्ति अत्थो । अक्खम्भियोति अविक्खम्भनीयो । न नं कोचि ठानतो चालेतुं सक्कोति । पच्चत्थिकेनाति पटिपक्खं इच्छन्तेन । पच्चामित्तेनाति पटिविरुद्धेन अमित्तेन । उभयम्पेतं सपत्तवेवचनं । अब्भन्तरेहीति अन्तो उट्टितेहि रागादीहि । ( ७.२०२ - २०२ ) बाहिरेहीति समणादीहि । तथा हि नं बाहिरा देवदत्तकोकालिकादयो समणापि सोणदण्डकूटदण्डादयो ब्राह्मणापि सक्कसदिसा देवतापि सत्त वस्सानि अनुबन्धमानो मारोपि बकादयो ब्रह्मानोपि विक्खम्भेतुं नासक्खिंसु । एत्तावता भगवता कम्मञ्च कम्मसरिक्खकञ्च लक्खणञ्च लक्खणानिसंसो च वुत्तो होति । कम्मं नाम सतसहस्सकप्पाधिकानि चत्तारि असङ्ख्येय्यानि दळ्हवीरियेन हुत्वा कतं कम्मं । कम्मसरिक्खकं नाम दलहेन हुत्वा कतभावं सदेवको लोको जानातूति सुप्पतिट्ठितपादमहापुरिसलक्खणं । लक्खणं नाम सुप्पतिट्ठितपादता । लक्खणानिसंसो नाम पच्चत्थिकेहि अविक्खम्भनीयता । 94 Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७.२०३-२०४) पादतलचक्कलक्खणवण्णना पादतलचक्कलक्खणवण्णना २०३. तत्थेतं बुच्चतीति तत्थ वुत्ते कम्मादिभेदे अपरम्पि इदं वुच्चति, गाथाबन्धं सन्धाय वुत्तं । एता पन गाथा पोराणकत्थेरा “आनन्दत्थेरेन ठपिता वण्णनागाथा"ति वत्वा गता। अपरभागे थेरा “एकपदिको अत्थुद्धारो"ति आहंसु । तत्थ सच्चेति वचीसच्चे । धम्मेति दसकुसलकम्मपथधम्मे । दमेति इन्द्रियदमने । संयमेति सीलसंयमे। “सोचेय्यसीलालयुपोसथेसु चा"ति एत्थ कायसोचेय्यादि तिविधं सोचेय्यं । आलयभूतं सीलमेव सीलालयो। उपोसथकम्मं उपोसथो। अहिंसायाति अविहिंसाय । समत्तमाचरीति सकलं अचरि। अन्वभीति अनुभवि। वेय्यञ्जनिकाति लक्खणपाठका। पराभिभूति अभिभवनसमत्थो । सत्तुभीति सपत्तेहि अक्खम्भियो होति । परे न सो गच्छति जातु खम्भनन्ति सो एकंसेनेव अग्गपुग्गलो विक्खम्भेतब्बतं न गच्छति । एसा हि तस्स धम्मताति तस्स हि एसा धम्मता अयं सभावो । पादतलचक्कलक्खणवण्णना २०४. उब्बेगउत्तासभयन्ति उब्बेगभयञ्चेव उत्तासभयञ्च । तत्थ चोरतो वा राजतो वा पच्चत्थिकतो वा विलोपनबन्धनादिनिस्सयं भयं उब्बेगो नाम, तंमुहत्तिकं चण्डहत्थिअस्सादीनि वा अहियक्खादयो वा पटिच्च लोमहंसनकरं भयं उत्तासभयं नाम । तं सब्बं अपनुदिता वूपसमेता । संविधाताति संविदहिता । कथं संविदहति ? अटवियं सासङ्कट्ठानेसु दानसालं कारेत्वा तत्थ आगते भोजेत्वा मनुस्से दत्वा अतिवाहेति, तं ठानं पविसितुं असक्कोन्तानं मनुस्से पेसेत्वा पवेसेति | नगरादीसुपि तेसु तेसु ठानेसु आरक्खं ठपेति, एवं संविदहति । सपरिवारञ्च दानं अदासीति अन्नं पानन्ति दसविधं दानवत्थु । तत्थ अनन्ति यागुभत्तं । तं ददन्तो न द्वारे ठपेत्वा अदासि, अथ खो अन्तोनिवेसने हरितुपलित्तहाने लाजा चेव पुप्फानि च विकिरित्वा आसनं पञपेत्वा वितानं बन्धित्वा गन्धधूमादीहि सक्कारं कत्वा भिक्खुसद्धं निसीदापेत्वा यागु अदासि । यागुं देन्तो च सब्यञ्जनं अदासि । यागुपानावसाने पादे धोवित्वा तेलेन मक्खेत्वा नानप्पकारकं अनन्तं खज्जकं दत्वा परियोसाने अनेकसूपं अनेकव्यञ्जनं पणीतभोजनं अदासि । पानं देन्तो 95 Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९६ ( ७.२०५ - २०५) अम्बपानादिअट्ठविधं पानं अदासि, तम्पि यागुभत्तं दत्वा । वत्थं देन्तो न सुद्धवत्थमेव अदासि, एकपट्टदुपट्टादिपहोनकं पन दत्वा सुचिम्पि अदासि, सुत्तम्पि अदासि, सुत्तं वट्टेसि, सूचिकम्मकरणट्टाने भिक्खूनं आसनानि यागुभत्तं पादमक्खनं, पिट्ठिमक्खनं, रजनं, पण्डुपलासं, रजनदोणिकं, अन्तमसो चीवररजनकं कप्पियकारकम्पि अदासि । दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा यानन्ति उपाहनं । तं ददन्तोपि उपाहनत्थविकं उपाहनदण्डकं मक्खनतेलं हेट्ठा वृत्तानि च अन्नादीनि तस्सेव परिवारं कत्वा अदासि । मालं देन्तोपि न सुद्धमालमेव अदासि, अथ खो नं गन्धेहि मिस्सेत्वा हेट्ठिमानि चत्तारि तस्सेव परिवारं कत्वा अदासि । बोधिचेतियआसनपोत्थकादिपूजनत्थाय चेव चेतियघरधूपनत्थाय च गन्धं देन्तोपि न सुद्धगन्धमेव अदासि, गन्धपिसनकनिसदाय चेव पक्खिपनकभाजनेन च सद्धिं हेट्ठिमानि पञ्च तस्स परिवारं कत्वा अदासि । चेतियपूजादीनं अत्थाय हरितालमनोसिलाचीनपिट्ठादिविलेपनं देन्तोपि न सुद्धविलेपनमेव अदासि विलेपनभाजनेन सद्धिं हेट्ठिमानि छ तस्स परिवारं कत्वा अदासि । सेय्याति मञ्चपीठं । तं देन्तोपि न अदासि, सुद्ध कोजवकम्बलपच्चत्थरणमञ्चप्पटिपादकेहि सद्धिं अन्तमसो मङ्गुलसोधनदण्डकं हेट्टिमानि च सत्त तस्स परिवारं कत्वा अदासि । आवसथं देन्तोपि न गेहमत्तमेव अदासि, अथ खो नं मालाकम्मलताकम्मपटिमण्डितं सुपञ्ञत्तं मञ्चपीठं कारेत्वा हेट्ठिमानि अट्ठ तस्स परिवारं कत्वा अदासि । पदीपेय्यन्ति पदीपतेलं । तं देन्तो चेतियङ्गणे बोधियङ्गणे धम्मस्सवनग्गे वसनगेहे पोत्थकवाचनट्ठाने इमिना दीपं जालापेथाति न सुद्धतेलमेव अदासि, वट्टि कपल्लकतेलभाजनादीहि सद्धिं हेट्ठिमानि नव तस्स परिवारं कत्वा अदासि । सुविभत्तन्तरानीति सुविभत्त अन्तरानि । राजानोति अभिसित्ता। भोगियाति भोजका कुमाराति राजकुमारा । इध कम्मं नाम सपरिवारं दानं । कम्मसरिक्खकं नाम सपरिवारं कत्वा दानं अदासीति इमिना कारणेन सदेवको लोको जानातूति निब्बत्तं चक्कलक्खणं । लक्खणं नाम तदेव चक्कलक्खणं । आनिसंसो महापरिवारता । २०५. तत्थेतं वुच्चतीति इमा तदत्थपरिदीपना गाथा वुच्चन्ति । दुविधा हि गाथा होन्ति - तदत्थपरिदीपना च विसेसत्थपरिदीपना च । तत्थ पाळिआगतमेव अत्थं परिदीपना तदत्थपरिदीपना नाम । पाळियं अनागतं परिदीपना विसेसत्थपरिदीपना नाम । इमा पन तदत्थपरिदीपना । तत्थ पुरेति पुब्बे । पुरस्थाति तस्सेव वेवचनं । पुरिमासु जातीसूति इमिस्सा 96 Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७.२०६-२०७) आयतपण्हितादितिलक्खणवण्णना जातिया पुब्बेकतकम्मपटिक्खेपदीपनं। उब्बेगउत्तासभयापनूदनोति उत्तासभयस्स च अपनूदनो । उस्सुकोति अधिमुत्तो । उब्बेगभयस्स च सतपुञलक्खणन्ति सतेन सतेन पुञकम्मेन निब्बत्तं एकेकं लक्खणं । एवं सन्ते यो कोचि बुद्धो भवेय्याति न रोचयिंसु, अनन्तेसु पन चक्कवाळेसु सब्बे सत्ता एकेकं कम्मं सतक्खत्तुं करेय्युं, एत्तकेहि जनेहि कतं कम्मं बोधिसत्तो एकोव एकेकं सतगुणं कत्वा निब्बत्तो। तस्मा “सतपुञलक्खणो"ति इममत्थं रोचयिंसु । मनुस्सासुरसक्करक्खसाति मनुस्सा च असुरा च सक्का च रक्खसा च । आयतपण्हितादितिलक्खणवण्णना २०६. अन्तराति पटिसन्धितो सरसचुतिया अन्तरे | इध कम्मं नाम पाणातिपाता विरति । कम्मसरिक्खकं नाम पाणातिपातं करोन्तो पदसद्दसवनभया अग्गग्गपादेहि अक्कमन्ता गन्त्वा परं पातेन्ति । अथ ते इमिना कारणेन तेसं तं कम्मं जनो जानातूति अन्तोवपादा वा बहिवङ्कपादा वा उक्कुटिकपादा वा अग्गकोण्डा वा पण्हिकोण्डा वा भवन्ति । अग्गपादेहि गन्त्वा परस्स अमारितभावं पन तथागतस्स सदेवको लोको इमिना कारणेन जानातूति आयतपण्हि महापुरिसलक्खणं निब्बत्तति । तथा परं घातेन्ता उन्नतकायेन गच्छन्ता अजे पस्सिस्सन्तीति ओनता गन्त्वा परं घातेन्ति । अथ ते एवमिमे गन्त्वा परं घातयिंसूति नेसं तं कम्मं इमिना कारणेन परो जानातूति खुज्जा वा वामना वा पीठसप्पि वा भवन्ति । तथागतस्स पन एवं गन्त्वा परेसं अघातितभावं इमिना कारणेन सदेवको लोको जानातूति ब्रह्मजुगत्तमहापुरिसलक्खणं निब्बत्तति । तथा परं घातेन्ता आवुधं वा मुग्गरं वा गण्हित्वा मुट्ठिकतहत्था परं घातेन्ति । ते एवं तेसं परस्स घातितभावं इमिना कारणेन जनो जानातूति रस्सङ्गुली वा रस्सहत्था वा वङ्कङ्गुली वा फणहत्थका वा भवन्ति । तथागतस्स पन एवं परेसं अघातितभावं सदेवको लोको इमिना कारणेन जानातूति दीघङ्गुलिमहापुरिसलक्खणं निब्बत्तति । इदमेत्थ कम्मसरिक्खकं। इदमेव पन लक्खणत्तयं लक्खणं नाम । दीघायुकभावो लक्खणानिसंसो। २०७. मरणवधभयत्तनोति एत्थ मरणसङ्घातो वधो मरणवधो, मरणवधतो भयं मरणवधभयं, तं अत्तनो जानित्वा । पटिविरतो परंमारणायाति यथा मय्हं मरणतो भयं मम 91 Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा जीवितं पियं, एवं परेसम्पीति ञत्वा परं मारणतो पटिविरतो अहोसि । सुचरितेनाति सुचिणेन । सग्गमगमाति सग्गं गतो । ९८ चविय पुनरिधागतोति चवित्वा पुन इधागतो । दीघपासहिकोति दीघपण्हिको । ब्रह्माव जूति ब्रह्मा विय सुट्टु उजु । सुभुजोति सुन्दरभुजो । सुसूति महल्लककालेपि तरुणरूपो । सुसण्ठानसम्पन्नो । मुदुतलुनङ्गुलियस्साति मुदू च तलुना च अङ्गुलियो अस्स । तीभीति तीहि । पुरिसवरग्गलक्खणेहीति पुरिसवरस्स अग्गलक्खणेहि । चिरयपनायाति चिरं यापनाय, दीघायुकभावाय । ( ७.२०८ - २०८ ) चिरं यपेतीति चिरं यापेति । चिरतरं पब्बजति यदि ततोति ततो चिरतरं यापेति, यदि पब्बजतीति अत्थो । यापयति च वसिद्धिभावनायाति वसिप्पत्तो हुत्वा इद्धिभावनाय यापेति । सत्तुस्तदतालक्खणवण्णना २०८. रसितानन्ति रससम्पन्नानं । “खादनीयान "न्तिआदीसु खादनीयानि नाम पिट्ठखज्जकादीनि । भोजनीयानीति पञ्च भोजनानि । सायनीयानीति सायितब्बानि सप्पिनवनीतादीनि । लेहनीयानीति निल्लेहितब्बानि पिट्ठपायासादीनि । पानानीति अट्ठ पानकानि । इध कम्मं नाम कप्पसतसहस्साधिकानि चत्तारि असङ्ख्येय्यानि दिन्नं इदं पणीतभोजनदानं । कम्मसरिक्खकं नाम लूखभोजने कुच्छिगते लोहितं सुस्सति, मंसं मिलायति । तस्मा लूखदायका सत्ता इमिना कारणेन नेसं लूखभोजनस्स दिन्नभावं जनो जानातूति अप्पमंसा अप्पलोहिता मनुस्सपेता विय दुल्लभन्नपाना भवन्ति । पणीतभोजने पन कुच्छिगते मंसलोहितं वड्ढति, परिपुण्णकाया पासादिका अभिरूपदस्सना होन्ति । तस्मा तथागतस्स दीघरतं पणीतभोजनदायकत्तं सदेवको लोको इमिना कारणेन जानातूति सत्तुस्सदमहापुरिसलक्खणं निब्बत्तति । लक्खणं नाम सत्तुस्सदलक्खणमेव । पणीतलाभिता आनिसंसो । 98 Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७.२०९-२१०) करचरणादिलक्खणवण्णना २०९. खज्जभोज्जमथलेय्यसायितन्ति खज्जकञ्च भोजनञ्च लेहनीयञ्च सायनीयञ्च । उत्तमग्गरसदायकोति उत्तमो अग्गरसदायको, उत्तमानं वा अग्गरसानं दायको । सत्त चुस्सदेति सत्त च उस्सदे। तदत्थजोतकन्ति खज्जभोज्जादिजोतकं, तेसं लाभसंवत्तनिकन्ति अत्थो । पब्बजम्पि चाति पब्बजमानोपि च। तदाधिगच्छतीति तं अधिगच्छति । लाभिरुत्तमन्ति लाभि उत्तमं । करचरणादिलक्खणवण्णना २१०. दानेनातिआदीसु एकच्चो दानेनेव सङ्गण्हितब्बो होति, तं दानेन सङ्गहेसि । पब्बजितानं पब्बजितपरिक्खारं, गिहीनं गिहिपरिक्खारं अदासि । पेय्यवज्जेनाति एकच्चो हि “अयं दातब्बं नाम देति, एकेन पन वचनेन सब् मक्खेत्वा नासेति, किं एतस्स दान"न्ति वत्ता होति । एकच्चो “अयं किञ्चापि दानं न देति, कथेन्तो पन तेलेन विय मक्खेति । एसो देतु वा मा वा, वचनमेव तस्स सहस्सं अग्घती"ति वत्ता होति । एवरूपो पुग्गलो दानं न पच्चासीसति, पियवचनमेव पच्चासीसति । तं पियवचनेन सङ्गहेसि । अत्थचरियायाति अत्थसंवड्डनकथाय । एकच्चो हि नेव दानं, न पियवचनं पच्चासीसति । अत्तनो हितकथं वड्डितकथमेव पच्चासीसति । एवरूपं पुग्गलं "इदं ते कातब्द, इदं ते न कातब्बं । एवरूपो पुग्गलो सेवितब्बो, एवरूपो पुग्गलो न सेवितब्बो''ति एवं अत्थचरियाय सङ्गहेसि ।। समानत्ततायाति समानसुखदुक्खभावेन । एकच्चो हि दानादीसु एकम्पि न पच्चासीसति, एकासने निसज्ज, एकपल्लङ्के सयनं, एकतो भोजनन्ति एवं समानसुखदुक्खतं पच्चासीसति । तत्थ जातिया हीनो भोगेन अधिको दुस्सङ्गहो होति । न हि सक्का तेन सद्धिं एकपरिभोगो कातुं, तथा अकरियमाने च सो कुज्झति । भोगेन हीनो जातिया अधिकोपि दुस्सङ्गहो होति । सो हि “अहं जातिमा''ति भोगसम्पन्नेन सद्धिं एकपरिभोगं न इच्छति, तस्मिं अकरियमाने कुज्झति । उभोहिपि हीनो पन सुसङ्गहो होति । न हि सो इतरेन सद्धिं एकपरिभोगं इच्छति, न अकरियमाने च कुज्झति । Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (७.२११-२११) उभोहि सदिसोपि सुसङ्गहोयेव । भिक्खूसु दुस्सीलो दुस्सङ्गहो होति । न हि सक्का तेन सद्धिं एकपरिभोगो कातुं, तथा अकरियमाने च कुज्झति । सीलवा सुसङ्गहो होति । सीलवा हि अदीयमानेपि अकरियमानेपि न कुज्झति । अझं अत्तना सद्धिं परिभोगं अकरोन्तम्पि न पापकेन चित्तेन पस्सति । परिभोगोपि तेन सद्धिं सुकरो होति । तस्मा एवरूपं पुग्गलं एवं समानत्तताय सङ्गहेसि । सुसङ्गहितास्स होन्तीति सुसङ्गहिता अस्स होन्ति । देतु वा मा वा देतु, करोतु वा मा वा करोतु, सुसङ्गहिताव होन्ति, न भिज्जन्ति । “यदास्स दातब्बं होति, तदा देति । इदानि मञ्झे नत्थि, तेन न देति । किं मयं ददमानमेव उपट्ठहाम ? अदेन्तं अकरोन्तं न उपट्ठहामा"ति एवं चिन्तेन्ति । इध कम्मं नाम दीघरतं कतं दानादिसङ्गहकम्मं । कम्मसरिक्खकं नाम यो एवं असङ्गाहको होति, सो इमिना कारणेनस्स असङ्गाहकभावं जनो जानातूति थद्धहत्थपादो चेव होति, विसमट्टितावयवलक्खणो च । तथागतस्स पन दीघरत्तं सङ्गाहकभावं सदेवको लोको इमिना कारणेन जानातूति इमानि द्वे लक्खणानि निब्बत्तन्ति । लक्खणं नाम इदमेव लक्खणद्वयं । सुसङ्गहितपरिजनता आनिसंसो। २११. करियाति करित्वा । चरियाति चरित्वा । अनवमतेनाति अनवातेन । "अनपमोदेना''तिपि पाठो, न अप्पमोदेन, न दीनेन न गब्भितेनाति अत्थो । चवियाति चवित्वा । अतिरुचिर सुवग्गु दस्सनेय्यन्ति अतिरुचिरञ्च सुपासादिकं सुवग्गु च सुटु छेकं दस्सनेय्यञ्च दट्टब्बयुत्तं । सुसु कुमारोति सुट्ठ सुकुमारो । परिजनस्सवोति परिजनो अस्सवो वचनकरो। विधेय्योति कत्तब्बाकत्तब्बेसु यथारुचि विधातब्बो । महिमन्ति महिं इमं । पियवदू हितसुखतं जिगीसमानोति पियवदो हुत्वा हितञ्च सुखञ्च परियेसमानो। वचनपटिकरस्सा भिष्पसनाति वचनपटिकरा अस्स अभिप्पसन्ना । धम्मानुधम्मन्ति धम्मञ्च अनुधम्मञ्च । 100 Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७.२१२-२१४) उस्सङ्खपादादिलक्खणवण्णना उस्सङ्खपादादिलक्खणवण्णना २१२. अत्थूपसंहितन्ति इधलोकपरलोकत्थनिस्सितं । धम्मूपसंहितन्ति दसकुसलकम्मपथनिस्सितं । बहुजनं निदंसेसीति बहुजनस्स निदंसनकथं कथेसि | पाणीनन्ति सत्तानं । “अग्गो’तिआदीनि सब्बानि अञ्ञमञ्ञवेवचनानि । इध कम्मं नाम दीघरत्तं भासिता उद्धङ्गमनीया अत्थूपसंहिता वाचा । कम्मसरिक्खकं नाम यो एवरूपं उग्गतवाचं न भासति, सो इमिना कारणेन उग्गतवाचाय अभासनं जनो जानातूति अधोसङ्घपादो च होति अधोनतलोमो च । तथागतस्स पन दीघरत्तं एवरूपाय उग्गतवाचाय भासितभावं सदेवको लोको इमिना कारणेन जानातूति उस्सङ्गपादलक्खणञ्च उद्धग्गलोमलक्खणञ्च निब्बत्तति । लक्खणं नाम इदमेव लक्खणद्वयं । उत्तमभावो आनिसंसो । २१३. एरयन्ति भणन्तो । बहुजनं निदंसयीति बहुजनस्स हितं दस्सेति । धम्मयागन्ति धम्मदानयञ् । १०१ उब्भमुप्पतितलोमवा सोति सो एस उद्धग्गतलोमवा होति । पादगण्ठिरहूति पादगोप्फका अहेसुं । साधुसण्ठिताति सुट्टु सण्ठिता । मंसलोहिताचिताति मंसेन च लोहितेन आचिता । तचोत्थताति तचेन परियोनद्धा निगुळहा । बजतीति गच्छति । अनोमनिक्कमोति अनोमविहारी सेट्ठविहारी । च एणिजङ्खलक्खणवण्णना २१४. सिप्पं वातिआदीसु सिप्पं नाम द्वे सिप्पानि हीनञ्च सिप्पं, उक्कट्ठञ्च सिप्पं । हीनं नाम सिप्पं नळकारसिप्पं, कुम्भकारसिप्पं पेसकारसिप्पं नहापितसिप्पं । उक्कट्ठ नाम सिप्पं लेखा मुद्दा गणना । विज्जाति अहिविज्जादि अनेकविधा । चरणन्ति पञ्चसीलं दससीलं पातिमोक्खसंवरसीलं । कम्मन्ति कम्मस्सकताजाननपञ । किलिस्सेय्यन्ति किलमेय्युं । अन्तेवासिकवत्तं नाम दुक्खं तं नेसं मा चिरमहोसीति चिन्तेसि । राजारहानीति रञ्ञो अनुरूपानि हत्थिअस्सादीनि, तानियेव रज्ञो सेनाय अङ्गभूतत्ता राजङ्गानीति वुच्चन्ति । राजूपभोगानीति रञ्ञो उपभोगपरिभोगभण्डानि तानि चैव सत्तरतनानि च । राजानुच्छविकानीति रञ्ञो अनुच्छविकानि । तेसंयेव सब्बेसं इदं गहणं । 101 Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (७.२१५-२१६) समणारहानीति समणानं अनुरूपानि चीवरादीनि । समणगानीति समणानं कोट्ठासभूता चतस्सो परिसा। समणूपभोगानीति समणानं उपभोगपरिक्खारा । समणानुच्छविकानीति तेसंयेव अधिवचनं । इध पन कम्मं नाम दीघरत्तं सक्कच्चं सिप्पादिवाचनं । कम्मसरिक्खकं नाम यो एवं सक्कच्चं सिप्पं अवाचेन्तो अन्तेवासिके उक्कुटिकासनजङ्घपेसनिकादीहि किलमेति, तस्स जङ्घमंसं लिखित्वा पातितं विय होति । तथागतस्स पन सक्कच्चं वाचितभावं सदेवको लोको इमिना कारणेन जानातूति अनुपुब्बउग्गतवट्टितं एणिजङ्गलक्खणं निब्बत्तति । लक्खणं नाम इदमेव लक्खणं । अनुच्छविकलाभिता आनिसंसो। २१५. यदूपघातायाति यं सिप्पं कस्सचि उपघाताय न होति । किलिस्सतीति किलमिस्सति । सुखुमत्तचोत्थताति सुखुमत्तचेन परियोनद्धा । किं पन अञ्जन कम्मेन अझं लक्खणं निब्बत्ततीति ? न निब्बत्तति । यं पन निब्बत्तति, तं अनुब्यञ्जनं होति, तस्मा इध वुत्तं । सुखुमच्छविलक्खणवण्णना २१६. समणं वाति समितपापटेन समणं । ब्राह्मणं वाति बाहितपापढेन ब्राह्मणं । महापञोतिआदीसु महापञ्जादीहि समन्नागतो होतीति अत्थो । तत्रिदं महापञ्जादीनं नानत्तं । तत्थ कतमा महापञा? महन्ते सीलक्खन्धे परिग्गण्हातीति महापञ्जा, महन्ते समाधिक्खन्धे पञाक्खन्धे विमुत्तिक्खन्धे विमुत्तित्राणदस्सनक्खन्धे परिग्गण्हातीति महापञ । महन्तानि ठानाठानानि महन्ता विहारसमापत्तियो महन्तानि अरियसच्चानि महन्ते सतिपट्ठाने सम्मप्पधाने इद्धिपादे महन्तानि इन्द्रियानि बलानि महन्ते बोज्झङ्गे महन्ते अरियमग्गे महन्तानि सामञफलानि महन्ता अभिजायो महन्तं परमत्थं निब्बानं परिग्गण्हातीति महापा। कतमा पुथुपा ? पुथुनानाखन्धेसु आणं पवत्ततीति पुथुपा। पुथुनानाधातूसु 102 Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७.२१६-२१६) सुखुमच्छविलक्खणवण्णना पुथुनानाआयतनेसु पुथुनानापटिच्चसमुप्पादेसु पुथुनानासुञ्ञतमनुपलब्धेसु पुथुनानाअत्थेसु धम्मेसु निरुत्तीसु पटिभानेसु । पुथुनानासीलक्खन्धेसु पुथुनानासमाधिपञविमुत्तिविमुत्तिञाण दस्सनक्खन्धेसु पुथुनानाठानाठानेसु पुथुनानाविहारसमापत्तीसु पुथुनाना अरियसच्चेसु पुथुनानासतिपट्ठानेसु सम्मप्पधानेसु इद्धिपादेसु इन्द्रिये बलेसु बोझ पुथुनानाअरियमग्गेसु सामञ्ञफलेसु अभिज्ञासु पुथुज्जनसाधारणे धम्मे समतिक्कम्म परमत्थे निब्बाने आणं पवत्ततीति पुथुपञ्ञा । कतमा हास ? इधेकच्चो हासबहुलो वेदबहुलो तुट्टिबहुलो पामोज्जबहुलो सीलं परिपूति इन्द्रियसंवरं परिपूरेति भोजने मत्तञ्जुतं जागरियानुयोगं सीलक्खन्धं समाधिक्खन्धं पञ्ञाक्खन्धं विमुत्तिक्खन्धं विमुत्तित्राणदस्सनक्खन्धं परिपूरेतीति हासपञ्ञा । हास बहुली...पे०... पामोज्जबहुलो ठानाठानं पटिविज्झतीति हासपञ्ञा । हासबहुलो विहारसमापत्तियो परिपूरेतीति हासपञ्ञा । हासबहुलो अरियसच्चानि पटिविज्झतीति हासपञ्ञा । सतिपट्ठाने सम्मप्पधाने इद्धिपादे इन्द्रियानि बलानि बोज्झ अरियमग्गं भावेतीति हासपञ्ञा । हासबहुलो सामञ्ञफलानि सच्छिकरोतीति हासपञ्ञा । अभिज्ञायो पटिविज्झतीति हासपञा । हासबहुलो वेदतुट्ठपामोज्जबहुलो परमत्थं निब्बानं सच्छिकरोतीति हासपञ्ञा । १०३ कतमा जवनपञ्ञ ? यंकिञ्चि रूपं अतीतानागतपच्चुप्पन्नं यं दूरे सन्तिके वा सब्बं तं रूपं अनिच्चतो खिप्पं जवतीति जवनपञ्ञ । दुक्खतो खिप्पं अनत्ततो खिप्पं जवतीति जवनपञ्ञा । या काचि वेदना...पे०... यकिञ्चि विञ्ञाणं अतीतानागतपच्चुप्पन्नं, सब्बं तं विञ्ञाणं अनिच्चतो दुक्खतो अनत्ततो खिप्पं जवतीति जवनपञ्ञा । चक्खु...पे०... जरामरणं अतीतानागतपच्चुप्पन्नं अनिच्चतो दुक्खतो अनत्ततो खिप्पं जवतीति जवनपञ्ञा । रूपं अतीतानागतपच्चुप्पन्नं अनिच्चं खयट्ठेन दुक्खं भट्ठेन अनत्ता असारकट्ठेनाति तुलयित्वा तीरयित्वा विभावयित्वा विभूतं कत्वा रूपनिरोधे निब्बाने खिप्पं जवतीति जवनपञ्ञा । वेदना सञ्ञा सङ्घारा विञ्ञाणं चक्खु... पे०... जरामरणं अतीतानागतपच्चुप्पन्नं अनिच्चं खयट्ठेन... पे०... विभूतं कत्वा जरामरणनिरोधे निब्बाने खिप्पं जवतीति जवनपञ्ञा । रूपं अतीतानागतपच्चुप्पन्नं । चक्खु... पे०... जरामरणं अनिच्वं सङ्घतं पटिच्चसमुप्पन्नं खयधम्मं वयधम्मं विरागधम्मं निरोधधम्मन्ति तुलयित्वा तीरयित्वा विभावयित्वा विभूतं कत्वा जरामरणनिरोधे निब्बाने खिप्पं जवतीति जवनपञ्ञा । 103 Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (७.२१७-२१८) कतमा तिक्खपञा। खिप्पं किलेसे छिन्दतीति तिक्खपञ्जा। उप्पन्नं कामवितक्कं नाधिवासेति, उप्पन्नं ब्यापादवितक्कं, उप्पन्नं विहिंसावितक्कं, उप्पन्नुप्पन्ने पापके अकुसले धम्मे उप्पन्नं रागं दोसं मोहं कोधं उपनाहं मक्खं पळासं इस्सं मच्छरियं मायं साठेय्यं थम्भं सारम्भं मानं अतिमानं मदं पमादं सब्बे किलेसे सब्बे दुच्चरिते सब्बे अभिसङ्खारे सब्बे भवगामिकम्मे नाधिवासेति पजहति विनोदेति ब्यन्ती करोति अनभावं गमेतीति तिक्खपञा। एकस्मिं आसने चत्तारो अरियमग्गा चत्तारि सामञफलानि चतस्सो पटिसम्भिदायो छ अभिज्ञायो अधिगता होन्ति सच्छिकता फस्सिता पञायाति तिक्खपञ्जा। कतमा निब्बेधिकपा। इधेकच्चो सब्बसङ्खारेसु उब्बेगबहुलो होति उत्तासबहुलो उक्कण्ठनबहुलो अरतिबहुलो अनभिरतिबहुलो बहिमुखो न रमति सब्बसङ्खारेसु, अनिब्बिद्धपुब्बं अपदालितपुब् लोभक्खन्धं निबिज्झति पदालेतीति निब्बेधिकपा । अनिब्बिद्धपुब्बं अपदालितपुब्बं दोसक्खन्धं मोहक्खन्धं कोधं उपनाहं...पे०... सब्बे भवगामिकम्मे निब्बिज्झति पदालेतीति निब्बेधिकपाति (पटि० म० ३.३)। २१७. पब्बजितं उपासिताति पण्डितं पब्बजितं उपसङ्कमित्वा पयिरुपासिता । अत्यन्तरोति यथा एके रन्धगवेसिनो उपारम्भचित्तताय दोसं अब्भन्तरं करित्वा निसामयन्ति, एवं अनिसामेत्वा अत्थं अब्भन्तरं कत्वा अत्थयुत्तं कथं निसामयि उपधारयि । पटिलाभगतेनाति पटिलाभत्थाय गतेन । उप्पादनिमित्तकोविदाति उप्पादे च निमित्ते च छेका । अवेच्च दक्खितीति ञत्वा पस्सिस्सति । अत्थानुसिट्ठीसु परिग्गहेसु चाति ये अत्थानुसासनेसु परिग्गहा अत्थानत्थं परिग्गाहकानि आणानि, तेसूति अत्थो । सुवण्णवण्णलक्खणवण्णना २१८. अक्कोधनोति न अनागामिमग्गेन कोधस्स पहीनता, अथ खो सचेपि मे कोधो उप्पज्जेय्य, खिप्पमेव नं पटिविनोदेय्यन्ति एवं अक्कोधवसिकत्ता । नाभिसज्जीति कुटिलकण्टको विय तत्थ तत्थ मम्मं तुदन्तो विय न लग्गि। न कुष्पि न 104 Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोसोहितवत्थगुय्हलक्खण ततो ब्यापज्जीतिआदीसु पुब्बुप्पत्तिको कोपो । बलवतरो व्यापादो । ततो बलवतरा पतित्थियना । तं सब्बं अकरोन्तो न कुप्पि न ब्यापज्जि न पतित्थियि । अप्पच्चयन्ति दोमनस्सं । न पात्वाकासीति न कायविकारेन वा वचीविकारेन वा पाकटमकासि । ( ७.२१९ - २२० ) इध कम्मं नाम दीघरत्तं अक्कोधनता चेव सुखुमत्थरणादिदानञ्च । कम्मसरिक्खकं नाम कोधनस्स छविवण्णो आविलो होति मुखं दुद्दसियं वत्थच्छादनसदिसञ्च मण्डनं नाम नत्थि । तस्मा यो कोधनो चेव वत्थच्छादनानञ्च अदाता, सो इमिना कारणेनस्स जनो कोधनादिभावं जानातूति दुब्बण्णो होति दुस्सण्ठानो । अक्कोधनस्स पन मुखं विरोचति, छविवण्णो विप्पसीदति । सत्ता हि चतूहि कारणेहि पासादिका होन्ति आमिसदानेन वा वत्थदानेन वा सम्मज्जनेन वा अक्कोधनताय वा । इमानि चत्तारिपि कारणानि दीघरत्तं तथागतेन कतानेव । तेनस्स इमेसं कतभावं सदेवको लोको इमिना कारणेन जानातूति सुवण्णवणं महापुरिसलक्खणं निब्बत्तति । लक्खणं नाम इदमेव लक्खणं । सुखुमत्थरणादिलाभिता आनिसंसो । २१९. अभिविस्सजीति अभिविस्सज्जेसि । महिमिव सुरो अभिवस्सन्ति सुरो वुच्चति देवो, महापथविं अभिवस्सन्तो देवो विय । सुरवरतरोवि इन्दोति सुरानं वरतरो इन्दो विय । अपब्बज्जमिच्छन्ति अपब्बज्जं गिहिभावं इच्छन्तो । महतिमहिन्ति महन्तिं पथविं । उत्तमपावुरणानञ्च । अच्छादनवत्थमोक्खपावुरणानन्ति अच्छादनानञ्चेव वत्थानञ्च पनासोति विनासो | १०५ कोसोहितवत्थगुप्हलक्खणवण्णना २२० मातरम्प पुत्तेन समानेता अहोसीति इमं कम्मं रज्जे पतिट्ठितेन सक्का कातुं । तस्मा बोधिसत्तोपि रज्जं कारयमानो अन्तोनगरे चतुक्कादीसु चतूसु नगरद्वारेसु बहिनगरे चतूसु दिसासु इमं कम्मं करोथाति मनुस्से ठपेसि । ते मातरं कुहिं मे पुत्तो 105 Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (७.२२१-२२२) पुत्तं न पस्सामीति विलपन्तिं परियेसमानं दिस्वा एहि, अम्म, पुत्तं दक्खसीति तं आदाय गन्त्वा नहापेत्वा भोजेत्वा पुत्तमस्सा परियेसित्वा दस्सेन्ति । एस नयो सब्बत्थ। . इध कम्मं नाम दीघरत्तं ज्ञातीनं समङ्गिभावकरणं । कम्मसरिक्खकं नाम ज्ञातयो हि समङ्गीभूता अञमञ्जस्स वज्जं पटिच्छादेन्ति । किञ्चापि हि ते कलहकाले कलहं करोन्ति, एकस्स पन दोसे उप्पन्ने अझं जानापेतुं न इच्छन्ति । अयं नाम एतस्स दोसोति वुत्ते सब्बे उट्ठहित्वा केन दिटुं केन सुतं, अम्हाकं आतीसु एवरूपं कत्ता नाम नत्थीति । तथागतेन च तं आतिसङ्गहं करोन्तेन दीघरत्तं इदं वज्जप्पटिच्छादनकम्मं नाम कतं होति । अथस्स सदेवको लोको इमिना कारणेन एवरूपस्स कम्मस्स कतभावं जानातूति कोसोहितवत्थगुय्हलक्खणं निब्बत्तति । लक्खणं नाम इदमेव लक्खणं । पहूतपुत्तता आनिसंसो। २२१. वत्थछादियन्ति वत्थेन छादेतब्बं वत्थगुरहं । अमित्ततापनाति अमित्तानं पतापना। गिहिस्स पीतिं जननाति गिहिभूतस्स सतो पीतिजनना। परिमण्डलादिलक्खणवण्णना २२२. समं जानातीति “अयं तारुक्खसमो अयं पोक्खरसातिसमो''ति एवं तेन तेन समं जानाति । सामं जानातीति सयं जानाति । पुरिसं जानातीति "अयं सेट्ठसम्मतो"ति पुरिसं जानाति । पुरिसविसेसं जानातीति मुग्गं मासेन समं अकत्वा गुणविसिट्ठस्स विसेसं जानाति । अयमिदमरहतीति अयं पुरिसो इदं नाम दानसक्कारं अरहति । पुरिसविसेसकरो अहोसीति पुरिसविसेसं ञत्वा कारको अहोसि । यो यं अरहति, तस्सेव तं अदासि । यो हि कहापणारहस्स अटुं देति, सो परस्स अटुं नासेति । यो द्वे कहापणे देति, सो अत्तनो कहापणं नासेति । तस्मा इदं उभयम्पि अकत्वा यो यं अरहति, तस्स तदेव अदासि | सद्धाधनन्तिआदीसु सम्पत्तिपटिलाभढेन सद्धादीनं धनभावो वेदितब्बो। इध कम्मं नाम दीघरतं पुरिसविसेसं ञत्वा कतं समसङ्गहकम्मं । कम्मसरिक्खकं नाम 106 Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७.२२३-२२६) सीहब्बद्धकायादिलक्खणवण्णना तदस्स कम्मं सदेवको लोको इमिना कारणेन जानातूति इमानि द्वे लक्खणानि निब्बत्तन्ति । लक्खणं नाम इदमेव लक्खणद्वयं । धनसम्पत्ति आनिसंसो । २२३. तुलियाति तुलयित्वा । पटिविचयाति पटिविचिनित्वा । महाजनसङ्गाहकन्ति महाजनसङ्ग्रहणं । समेक्खमानोति समं पेक्खमानो। अतिनिपुणा मनुजाति अतिनिपुणा सुखुमपञ्ञा लक्खणपाठकमनुस्सा । बहुविविधा गिहीनं अरहानीति बहू विविधानि गिहीनं अनुच्छविकानि पटिलभति । दहरो सुसु कुमारो " अयं दहरो कुमारो पटिल भिस्सती 'ति ब्याकंसु महीपतिस्साति रञो । १०७ सीहब्बद्धकायादिलक्खणवण्णना २२४, योगक्खेमकामोति योगतो खेमकामो । पञ्ञयाति कम्मस्सकतपञ्ञाय । इध कम्मं नाम महाजनस्स अत्थकामता । कम्मसरिक्खकं नाम तं महाजनस्स अत्थकामताय वड्डिमेव पच्चासीसितभावं सदेवको लोको इमिना कारणेन जानातूति इमानि समन्तपरिपूरानि अपरिहीनानि तीणि लक्खणानि निब्बत्तन्ति । लक्खणं नाम इदमेव लक्खणत्तयं । धनादीहि चेव सद्धादीहि च अपरिहानि आनिसंसो । २२५. सद्धायाति ओकप्पनसद्धाय पसादसद्धाय । सीलेनाति पञ्चसीलेन दससीलेन | सुतेनाति परियत्तिसवनेन । बुद्धियाति एतेसं बुद्धिया, “ किन्ति एतेहि वड्डेय्यु "न्ति एवं चिन्तेसीति अत्थो । धम्मेनाति लोकियधम्मेन । बहूहि साधूहीति अहिपि बहूहि उत्तमगुणेहि । असहानधम्मतन्ति अपरिहीनधम्मं । रसग्गसग्गितालक्खणवण्णना २२६. समाभिवाहिनियोति यथा तिलफलमत्तम्पि जिव्हाग्गे ठपितं सब्बत्थ फरति, एवं समा हुत्वा वहन्ति । इध कम्मं नाम अविहेठनकम्मं । कम्मसरिक्खकं नाम पाणिआदीहि पहारं लद्धस्स तत्थ तत्थ लोहितं सण्ठाति, गण्ठि गण्ठि हुत्वा अन्तोव पुब्बं गण्हाति, अन्तोव भिज्जति, एवं सो बहुरोगो होति । तथागतेन पन दीघरत्तं इमं आरोग्यकरणकम्मं कतं । तदस्स सदेवको लोको इमिना कारणेन जानातूति आरोग्यकरं रसग्गसग्गिलक्खणं निब्बत्तति । लक्खणं नाम इदमेव लक्खणं । अप्पाबाधता आनिसंसो । 107 Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (७.२२७-२३०) २२७. मरणवधेनाति “एतं मारेथ एतं घातेथा"ति एवं आणत्तेन मरणवधेन । उब्बाधनायाति बन्धनागारप्पवेसनेन । अभिनीलनेत्तादिलक्खणवण्णना २२८. न च विसटन्ति कक्कटको विय अक्खीनि नीहरित्वा न कोधवसेन पेक्खिता अहोसि । न च विसाचीति वङ्कक्खिकोटिया पेक्खितापि नाहोसि । न च पन विचेय्य पेक्खिताति विचेय्य पेरिखता नाम यो कुज्झित्वा यदा नं परो ओलोकेति, तदा निम्मीलेति न ओलोकेति, पुन गच्छन्तं कुज्झित्वा ओलोकेति, एवरूपो नाहोसि । "विनेय्यपेक्खिता''तिपि पाठो, अयमेवत्थो । उजुं तथा पसटमुजुमनोति उजुमनो हुत्वा उजु पेक्खिता होति, यथा च उजुं, तथा पसटं विपुलं वित्थतं पेक्खिता होति । पियदस्सनोति पियायमानेहि पस्सितब्बो। इध कम्मं नाम दीघरत्तं महाजनस्स पियचक्खुना ओलोकनकम्मं । कम्मसरिक्खकं नाम कुज्झित्वा ओलोकेन्तो काणो विय काकक्खि विय होति, वङ्कक्खि पन आविलक्खि च होतियेव । पसन्नचित्तस्स पन ओलोकयतो अक्खीनं पञ्चवण्णो पसादो पायति । तथागतो च तथा ओलोकेसि । अथस्स तं दीघरत्तं पियचक्खुना ओलोकितभावं सदेवको लोको इमिना कारणेन जानातूति इमानि नेत्तसम्पत्तिकरानि द्वे महापुरिसलक्खणानि निब्बत्तन्ति । लक्खणं नाम इदमेव लक्खणद्वयं । पियदस्सनता आनिसंसो। अभियोगिनोति लक्खणसत्थे युत्ता। उण्हीससीसलक्खणवण्णना २३०. बहुजनपुब्बङ्गमो अहोसीति बहुजनस्स पुब्बङ्गमो अहोसि गणजेट्ठको । तस्स दिट्ठानुगतिं अञ्चे आपज्जिंसु | इध कम्मं नाम पुब्बङ्गमता। कम्मसरिक्खकं नाम यो पुब्बङ्गमो हुत्वा दानादीनि कुसलकम्मानि करोति, सो अमङ्कुभूतो सीसं उक्खिपित्वा पीतिपामोज्जेन परिपुण्णसीसो विचरति, महापुरिसो च होति । तथागतो च तथा अकासि । अथस्स सदेवको लोको इमिना कारणेन इदं पुब्बङ्गमकम्मं जानातूति उण्हीससीसलक्खणं निब्बत्तति । लक्खणं नाम इदमेव लक्खणं । महाजनानुवत्तनता आनिसंसो। 108 Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७.२३१-२३६) एकेकलोमतादिलक्खणवण्णना १०९ २३१. बहुजनं हेस्सतीति बहुजनस्स भविस्सति । पटिभोगियाति वेय्यावच्चकरा, एतस्स बहू वेय्यावच्चकरा भविस्सन्तीति अत्थो । अभिहरन्ति तदाति दहरकालेयेव तदा एवं ब्याकरोन्ति । पटिहारकन्ति वेय्यावच्चकरभावं । विसवीति चिण्णवसी । एकेकलोमतादिलक्खणवण्णना २३२. उपवत्ततीति अज्झासयं अनुवत्तति, इध कम्मं नाम दीघरत्तं सच्चकथनं । कम्मसरिक्खकं नाम दीघरत्तं अद्वेज्झकथाय परिसुद्धकथाय कथितभावमस्स सदेवको लोको इमिना कारणेन जानाति एकेकलोमलक्खणञ्च उण्णालक्खणञ्च निब्बत्तति। लक्खणं नाम इदमेव लक्खणद्वयं । महाजनस्स अज्झासयानुकूलेन अनुवत्तनता आनिसंसो। एकेकलोमूपचितङ्गवाति एकेकेहि लोमेहि उपचितसरीरो । चत्तालीसादिलक्खणवण्णना २३४. अभेज्जपरिसोति अभिन्दितब्बपरिसो। इध कम्मं नाम दीघरत्तं अपिसुणवाचाय कथनं । कम्मसरिक्खकं नाम पिसुणवाचस्स किर समग्गभावं भिन्दनतो दन्ता अपरिपुण्णा चेव होन्ति विरळा च। तथागतस्स पन दीघरत्तं अपिसुणवाचतं सदेवको लोको इमिना कारणेन जानातूति इदं लक्खणद्वयं निब्बत्तति । लक्खणं नाम इदमेव लक्खणद्वयं । अभेज्जपरिसता आनिसंसो। चतुरो दसाति चत्तारो दस चत्तालीसं । पहूतजिव्हादिलक्खणवण्णना २३६. आदेय्यवाचो होतीति गहेतब्बवचनो होति । इध कम्मं नाम दीघरत्तं अफरुसवादिता । कम्मसरिक्खकं नाम ये फरुसवाचा होन्ति, ते इमिना कारणेन नेसं जिव्हं परिवत्तेत्वा परिवत्तेत्वा फरुसवाचाय कथितभावं जनो जानातूति बद्धजिव्हा वा होन्ति, गूळ्हजिव्हा वा द्विजिव्हा वा मम्मना वा | ये पन जिव्हं परिवत्तेत्वा परिवत्तेत्वा फरुसवाचं न वदन्ति, ते बद्धजिव्हा गूळ्हजिव्हा द्विजिव्हा न होन्ति । मुदु नेसं जिव्हा होति रत्तकम्बलवण्णा । तस्मा तथागतस्स दीघरत्तं जिव्हं परिवत्तेत्वा फरुसाय वाचाय अकथितभावं सदेवको लोको इमिना कारणेन जानातूति पहूतजिव्हालक्खणं निब्बत्तति । फरुसवाचं कथेन्तानञ्च सद्दो भिज्जति । ते सद्दभेदं कत्वा फरुसवाचाय कथितभावं जनो 109 Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (७.२३७-२३९) जानातूति छिन्नस्सरा वा होन्ति भिन्नस्सरा वा काकस्सरा वा। ये पन सरभेदकरं फरुसवाचं न कथेन्ति, तेसं सद्दो मधुरो च होति पेमनीयो। तस्मा तथागतस्स दीघरत्तं सरभेदकराय फरुसवाचाय अकथितभावं सदेवको लोको इमिना कारणेन जानातूति ब्रह्मस्सरलक्खणं निब्बत्तति । लक्खणं नाम इदमेव लक्खणद्वयं । आदेय्यवचनता आनिसंसो। २३७. उब्बाधिकन्ति अक्कोसयुत्तत्ता आबाधकरिं बहुजनप्पमद्दनन्ति बहुजनानं पमद्दनि अबाळ्हं गिरं सो न भणि फरुसन्ति एत्थ अकारो परतो भणिसद्देन योजेतब्बो । बाल्हन्ति बलवं अतिफरुसं। बाळ्हं गिरं सो न अभणीति अयमेत्थ अत्थो । सुसंहितन्ति सुटु पेमसहितं । सखिलन्ति मुदुकं । वाचाति वाचायो। कण्णसुखाति कण्णसुखायो । "कण्णसुख"न्तिपि पाठो, यथा कण्णानं सुखं होति, एवं एरयतीति अत्थो । वेदयथाति वेदयित्थ । ब्रह्मस्सरत्तन्ति ब्रह्मस्सरतं । बहुनो बहुन्ति बहुजनस्स बहुं । “बहूनं बहुन्ति''पि पाठो, बहुजनानं बहुन्ति अत्थो । सीहहनुलक्खणवण्णना २३८. अप्पधंसिको होतीति गुणतो वा ठानतो वा पधंसेतुं चावेतुं असक्कुणेय्यो । इध कम्मं नाम पलापकथाय अकथनं । कम्मसरिक्खकं नाम ये तं कथेन्ति, ते इमिना कारणेन नेसं हनुकं चालेत्वा चालेत्वा पलापकथाय कथितभावं जनो जानातूति अन्तोपविट्ठहनुका वा वङ्कहनुका वा पब्भारहनुका वा होन्ति । तथागतो पन तथा न कथेसिं । तेनस्स हनुकं चालेत्वा चालेत्वा दीघरत्तं पलापकथाय अकथितभावं सदेवको लोको इमिना कारणेन जानातूति सीहहनुलक्खणं निब्बत्तति । लक्खणं नाम इदमेव लक्खणं । अप्पधंसिकता आनिसंसो। २३९. अविकिण्णवचनव्यप्पथो चाति अविकिण्णवचनानं विय पुरिमबोधिसत्तानं वचनपथो अस्साति अविकिण्णवचनब्यप्पथो। द्विदुगमवरतरहनुत्तमलत्याति द्वीहि द्वीहि गच्छतीति द्विदुगमो, द्वीहि द्वीहीति चतूहि, चतुप्पदानं वरतरस्स सीहस्सेव हनुभावं अलत्थाति अत्थो । मनुजाधिपतीति मनुजानं अधिपति । तथत्तोति तथसभावो। . 110 Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७.२४०-२४१) समदन्तादिलक्खणवण्णना १११ समदन्तादिलक्खणवण्णना २४०. सुचिपरिवारोति परिसुद्धपरिवारो। इध कम नाम सम्माजीवता । कम्मसरिक्खकं नाम यो विसमेन संकिलिट्ठाजीवेन जीवितं कप्पेति, तस्स दन्तापि विसमा होन्ति दाठापि किलिट्ठा । तथागतस्स पन समेन सुद्धाजीवेन जीवितं कप्पितभावं सदेवको लोको इमिना कारणेन जानातूति समदन्तलक्खणञ्च सुसुक्कदाठालक्खणञ्च. निब्बत्तति । लक्खणं नाम इदमेव लक्खणद्वयं । सुचिपरिवारता आनिसंसो। २४१. अवस्सजीति पहासि तिदिवपुरवरसमोति तिदिवपुरवरेन सक्केन समो। लपनजन्ति मुखजं, दन्तन्ति अत्थो। दिजसमसुक्कसुचिसोभनदन्तोति द्वे वारे जातत्ता दिजनामका सुक्का सुचि सोभना च दन्ता अस्साति दिजसमसुक्कसुचिसोभनदन्तो । न च जनपदतुदनन्ति यो तस्स चक्कवाळपरिच्छिन्नो जनपदो, तस्स अञ्जन तुदनं पीळा वा आबाधो वा नत्थि । हितमपि च बहुजन सुखञ्च चरन्तीति बहुजना समानसुखदुक्खा हुत्वा तस्मिं जनपदे अञमञ्जस्स हितञ्चेव सुखञ्च चरन्ति । विपापोति विगतपापो । विगतदरथकिलमथोति विगतकायिकदरथकिलमथो। मलखिलकलिकिलेसे पनुदेहीति रागादिमलानञ्चेव रागादिखिलानञ्च दोसकलीनञ्च सब्बकिलेसानञ्च अपनुदेहि । सेसं सब्बत्थ उत्तानत्थमेवाति । सुमङ्गलविलासिनिया दीघनिकायट्ठकथाय लक्खणसुत्तवण्णना निहिता। 111 Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८. सिङ्गालसुत्तवण्णना निदानवण्णना २४२. एवं मे सुतन्ति सिङ्गालसुत्तं । तत्रायमनुत्तानपदवण्णना- वेळुवने कलन्दकनिवापेति वेळुवनन्ति तस्स उय्यानस्स नामं । तं किर वेळूहि परिक्खित्तं अहोसि अट्ठारसहत्थेन च पाकारेन गोपुरट्टालकयुत्तं नीलोभासं मनोरमं तेन वेळुवनन्ति वुच्चति । कलन्दकानञ्चेत्थ निवापं अदंसु, तेन कलन्दकनिवापोति वुच्चति । पुब्बे किर अञ्ञतरो राजा तत्थ उय्यानकीळनत्थं आगतो सुरामदेन मत्तो दिवा निद्दं ओक्कमि । परिजनोपिस्स "सुत्तो राजा ' ' ति पुप्फफलादीहि पलोभियमानो इतो चितो च पक्कामि । अथ सुरागन्धेन अञ्ञतरस्मा सुसिररुक्खा कण्हसप्पो निक्खमित्वा रञ अभिमुखो आगच्छति, तं दिस्वा रुक्खदेवता " रञ्ञो जीवितं दम्मी "ति काळकवेसेन आगन्त्वा कण्णमूले सद्दमकासि । राजा पटिबुज्झि । कण्हसप्पो निवत्तो । सो तं दिवा "इमाय काळकाय मम जीवितं दिन्नन्ति काळकानं तत्थ निवापं पट्ठपेसि, अभयघोसञ्च घोसापेसि । तस्मा तं ततो पभुति “कलन्दकनिवापो" ति सङ्ख्यं गतं । कलन्दकातिि काळकानं एतं नामं । तेन खो पन समयेनाति यस्मिं समये भगवा राजगहं गोचरगामं कत्वा वेळुवने कलन्दकनिवापे विहरति, तेन समयेन । सिङ्गालको गहपतिपुत्तोति सिङ्गालकोति तस्स नामं । गहपतिपुत्तोति गहपतिस्स पुत्तो गहपतिपुत्तो । तस्स किर पिता गहपतिमहासालो, निदहित्वा ठपिता चस्स गेहे चत्तालीस धनकोटियो अत्थि । सो भगवति निट्ठङ्गतो उपासको सोतापन्नो, भरियापिस्स सोतापन्नायेव । पुत्तो पनस्स अस्सद्धो अप्पसन्नो । अथ नं मातापितरो अभिक्खणं एवं ओवदन्ति - “ तात सत्थारं उपसङ्कम, धम्मसेनापतिं - 112 Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८.२४३-२४३) महामोग्गल्लानं महाकस्सपं असीतिमहासावके उपसङ्कमा 'ति । सो एवमाह - "नत्थि मम तुम्हाकं समणानं उपसङ्कमनकिच्चं, समणानं सन्तिकं गन्त्वा वन्दितब्बं होति, ओनमित्वा वन्दन्तस्स पिट्ठि रुज्जति, जाणुकानि खरानि होन्ति, भूमियं निसीदितब्बं होति, तत्थ निसिन्नस्स वत्थानि किलिस्सन्ति जीरन्ति, समीपे निसिन्नकालतो पट्ठाय कथासल्लापो होति, तस्मिं सति विस्सासो उप्पज्जति, ततो निमन्तेत्वा चीवरपिण्डपातादीनि दातब्बानि होन्ति । एवं सन्ते अत्थो परिहायति, नत्थि मय्हं तुम्हाकं समणानं उपसङ्कमनकिच्च "न्ति । इति नं यावजीवं ओवदन्तापि मातापितरो सासने उपनेतुं नासक्खिंसु । निदानवण्णना अथस्स पिता मरणमञ्चे निपन्नो " मम पुत्तस्स ओवादं दातुं वट्टती 'ति चिन्तेत्वा पुन चिन्तेसि - " दिसा तात नमस्साही "ति एवमस्स ओवादं दस्सामि, सो अत्यं अजानन्तो दिसा नमस्सिस्सति, अथ नं सत्था वा सावका वा पस्सित्वा " किं करोसी" ति पुच्छिस्सन्ति। ततो “मय्हं पिता दिसा नमस्सनं करोहीति मं ओवदी 'ति वक्खति । अथस्स ते “न तुम्हं पिता एता दिसा नमस्सापेति, इमा पन दिसा नमस्सापेती 'ति धम्मं देसेस्सन्ति । सो बुद्धसासने गुणं ञत्वा “पुञ्ञकम्मं करिस्सती 'ति । अथ नं आमन्तात्वा "तात, पातोव उट्ठाय छ दिसा नमस्सेय्यासी" ति आह । मरणमञ्चे निपन्नस्स कथा नाम यावजीवं अनुस्तरणीया होति । तस्मा सो गहपतिपुत्तो तं पितुवचनं अनुस्मरन्तो तथा अकासि । तस्मा “कालस्सेव उट्ठाय राजगहा निक्खमित्वा 'तिआदि वृत्तं । २४३. पुथुदिसाति बहुदिसा । इदानि ता दस्सेन्तो पुरत्थिमं दिसन्तिआदिमाह । पाविसीति न ताव पविट्ठो, पविसिस्सामीति निक्खन्तत्ता पन अन्तरामग्गे वत्तमानोपि एवं वुच्चति । अद्दसा खो भगवाति न इदानेव अद्दस, पच्चूससमयेपि बुद्धचक्खुना लोकं वोलोकेन्तो एतं दिसा नमस्समानं दिस्वा " अज्ज अहं सिङ्गालस्स गहपतिपुत्तस्स गिहिविनयं सिङ्गालसुत्तन्तं कथेस्सामि महाजनस्स सा कथा सफला भविस्सति, गन्तब्बं मया एत्था "ति । तस्मा पातोव निक्खमित्वा राजगहं पिण्डाय पाविसि, पविसन्तो च नं तथेव अद्दस । तेन वुत्तं - " अद्दसा खो भगवा ' 'ति । एतदवोचाति सो किर अविदूरे ठितम्पि सत्थारं न पस्सति, दिसायेव नमस्सति । अथं नं भगवा सूरियरस्मिसम्फस्सेन विकसमानं महापदुमं विय मुखं विवरित्वा " किं नु खो त्वं, गहपतिपुत्ता'' तिआदिकं एतदवोच । ११३ 113 Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (८.२४४-२४६) छदिसादिवण्णना २४४. यथा कथं पन, भन्तेति सो किर तं भगवतो वचनं सुत्वाव चिन्तेसि “या किर मम पितरा छ दिसा नमस्सितब्बा"ति वुत्ता, न किर ता एता, अञा किर अरियसावकेन छ दिसा नमस्सितब्बा । हन्दाहं अरियसावकेन नमस्सितब्बा दिसायेव पुच्छित्वा नमस्सामीति । सो ता पुच्छन्तो यथा कथं पन, भन्तेतिआदिमाह । तत्थ यथाति निपातमत्तं । कथं पनाति इदमेव पुच्छापदं । कम्मकिलेसाति तेहि कम्मेहि सत्ता किलिस्सन्ति, तस्मा कम्मकिलेसाति वुच्चन्ति । ठानेहीति कारणेहि। अपायमुखानीति विनासमुखानि । सोति सो सोतापन्नो अरियसावको । चुद्दस पापकापगतोति एतेहि चुद्दसहि पापकेहि लामकेहि अपगतो। छद्दिसापटिछादीति छ दिसा पटिच्छादेन्तो । उभोलोकविजयायाति उभिन्नं इधलोकपरलोकानं विजिननत्थाय । अयञ्चेव लोको आरद्धो होतीति एवरूपस्स हि इध लोके पञ्च वेरानि न होन्ति, तेनस्स अयञ्चेव लोको आरद्धो होति परितोसितो चेव निष्पादितो च । परलोकेपि पञ्च वेरानि न होन्ति, तेनस्स परो च लोको आराधितो होति । तस्मा सो कायस्स भेदा परम्मरणा सुगतिं सग्गं लोकं उपपज्जति । २४५. इति भगवा सङ्केपेन मातिकं ठपेत्वा इदानि तमेव वित्थारेन्तो कतमस्स चत्तारो कम्मकिलेसातिआदिमाह। कम्मकिलेसोति कम्मञ्च तं किलेससम्पयुत्तत्ता किलेसो चाति कम्मकिलेसो। सकिलेसोयेव हि पाणं हनति, निक्किलेसो न हनति, तस्मा पाणातिपातो "कम्मकिलेसो"ति वुत्तो। अदिनादानादीसुपि एसेव नयो। अथापरन्ति अपरम्प एतदत्थपरिदीपकमेव गाथाबन्धं अवोचाति अत्थो । चतुठानादिवण्णना २४६. पापकम्मं करोतीति इदं भगवा यस्मा कारके दस्सिते अकारको पाकटो होति, तस्मा “पापकम्मं न करोती"ति मातिकं ठपेत्वापि देसनाकुसलताय पठमतरं कारकं दस्सेन्तो आह । तत्थ छन्दागतिं गच्छन्तोति छन्देन पेमेन अगतिं गच्छन्तो अकत्तब्धं करोन्तो । परपदेसुपि एसेव नयो । तत्थ यो "अयं मे मित्तो वा सम्भत्तो वा सन्दिट्ठो वा आतको वा लजं वा पन मे देती''ति छन्दवसेन अस्सामिकं सामिकं करोति, अयं छन्दागतिं गच्छन्तो पापकम्मं करोति नाम । यो “अयं मे वेरी''ति पकतिवेरवसेन 114 Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८.२४७-२४७) छअपायमुखादिवण्णना तङ्खणुप्पन्नकोधवसेन वा सामिकं अस्सामिकं करोति, अयं दोसागतिं गच्छन्तो पापकम्म करोति नाम । यो पन मन्दत्ता मोमूहत्ता यं वा तं वा वत्वा अस्सामिकं सामिकं करोति, अयं मोहागतिं गच्छन्तो पापकम्मं करोति नाम । यो पन “अयं राजवल्लभो वा विसमनिस्सितो वा अनत्थम्पि मे करेय्या"ति भीतो अस्सामिकं सामिकं करोति, अयं भयागतिं गच्छन्तो पापकम्मं करोति नाम । यो पन यंकिञ्चि भाजेन्तो “अयं मे सन्दिट्ठो वा सम्भत्तो वा''ति पेमवसेन अतिरेकं देति, “अयं मे वेरी"ति दोसवसेन ऊनकं देति, मोमूहत्ता दिन्नादिन्नं अजानमानो कस्सचि ऊनं कस्सचि अधिकं देति, “अयं इमस्मिं अदिय्यमाने मय्हं अनत्थम्पि करेय्या"ति भीतो कस्सचि अतिरेकं देति, सो चतुब्बिधोपि यथानुक्कमेन छन्दागतिआदीनि गच्छन्तो पापकम्मं करोति नाम । अरियसावको पन जीवितक्खयं पापुणन्तोपि छन्दागतिआदीनि न गच्छति । तेन वुत्तं- “इमेहि चतूहि ठानेहि पापकम्मं न करोती''ति । निहीयति यसो तस्साति तस्स अगतिगामिनो कित्तियसोपि परिवारयसोपि निहीयति परिहायति । छअपायमुखादिवण्णना २४७. सुरामेरयमज्जप्पमादद्वानानुयोगोति एत्थ सुराति पिट्ठसुरा पूवसुरा ओदनसुरा किण्णपक्खित्ता सम्भारसंयुत्ताति पञ्च सुरा। मेरयन्ति पुप्फासवो फलासवो मध्वासवो गुळासवो सम्भारसंयुत्तोति पञ्च आसवा । तं सब्बम्पि मदकरणवसेन मज्जं। पमादट्ठानन्ति पमादकारणं । याय चेतनाय तं मज्जं पिवति, तस्स एतं अधिवचनं । अनुयोगोति तस्स सुरामेरयमज्जप्पमादट्ठानस्स अनुअनुयोगो पुनप्पुनं करणं | यस्मा पनेतं अनुयुत्तस्स उप्पन्ना चैव भोगा परिहायन्ति, अनुप्पन्ना च नुप्पज्जन्ति, तस्मा “भोगानं अपायमुख"न्ति वुत्तं । विकालविसिखाचरियानुयोगोति अवेलाय विसिखासु चरियानुयुत्तता । समज्जागमनं । आलस्यानुयोगोति समज्जाभिचरणन्ति नच्चादिदस्सनवसेन कायालसियताय युत्तप्पयुत्तता। 115 Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (८.२४८-२४९) सुरामेरयस्स छआदीनवादिवण्णना __२४८. एवं छन्नं अपायमुखानं मातिकं ठपेत्वा इदानि तानि विभजन्तो छ खो मे, गहपतिपुत्त आदीनवातिआदिमाह । तत्थ सन्दिट्टिकाति सामं पस्सितब्बा, इधलोकभाविनी । धनजानीति धनहानि । कलहप्पवहनीति वाचाकलहस्स चेव हत्थपरामासादिकायकलहस्स च वड्डनी। रोगानं आयतनन्ति तेसं तेसं अक्खिरोगादीनं खेत्तं । अकित्तिसज्जननीति सुरं पिवित्वा हि मातरम्प पहरन्ति पितरम्पि, अनं बहुम्पि अवत्तब्बं वदन्ति, अकत्तब्धं करोन्ति । तेन गरहम्पि दण्डम्पि हत्थपादादिछेदम्पि पापुणन्ति, इधलोकेपि परलोकेपि अकित्तिं पापुणन्ति, इति तेसं सा सुरा अकित्तिसञ्जननी नाम होति । कोपीननिदंसनीति गुरहट्ठानहि विवरियमानं हिरिं कोपेति विनासेति, तस्मा "कोपीन"न्ति वुच्चति, सुरामदमत्ता च तं तं अङ्गं विवरित्वा विचरन्ति, तेन नेसं सा सुरा कोपीनस्स निदंसनतो "कोपीननिदंसनी"ति वुच्चति । पञआय दुब्बलिकरणीति सागतत्थेरस्स विय कम्मस्सकतपत्रं दुब्बलं करोति, तस्मा “पञाय दुब्बलिकरणी"ति वुच्चति । मग्गपनं पन दुब्बलं कातुं न सक्कोति। अधिगतमग्गानहि सा अन्तोमुखमेव न पविसति । छटुं पदन्ति छटुं कारणं । __ २४९. अत्तापिस्स अगुत्तो अरखितो होतीति अवेलाय चरन्तो हि खाणुकण्टकादीनिपि अक्कमति, अहिनापि यक्खादीहिपि समागच्छति, तं तं ठानं गच्छतीति ञत्वा वेरिनोपि नं निलीयित्वा गण्हन्ति वा हनन्ति वा । एवं अत्तापिस्स अगुत्तो होति अरक्खितो । पुत्तदारापि “अम्हाकं पिता अम्हाकं सामि रत्तिं विचरति, किमङ्गं पन मय"न्ति इतिस्स पुत्तधीतरोपि भरियापि बहि पत्थनं कत्वा रत्तिं चरन्ता अनयब्यसनं पापुणन्ति । एवं पुत्तदारोपिस्स अगुत्तो अरक्खितो होति। सापतेय्यन्ति तस्स पुत्तदारपरिजनस्स रत्तिं चरणकभावं ञत्वा चोरा सुझं गेहं पविसित्वा यं इच्छन्ति, तं हरन्ति । एवं सापतेय्यम्पिस्स अगुत्तं अरक्खितं होति। सडियो च होतीति अबेहि कतपापकम्मेसुपि “इमिना कतं भविस्सती"ति सङ्कितब्बो होति । यस्स यस्स घरद्वारेन याति, तत्थ यं अञ्जेन चोरकम्मं परदारिककम्मं वा कतं, तं “इमिना कतन्ति वुत्ते अभूतं असन्तम्पि तस्मिं रूहति पतिट्ठाति । बहूनञ्च दुक्खधम्मानन्ति एत्तकं दुक्खं, एत्तकं दोमनस्सन्ति वत्तुं न सक्का, अञ्जस्मिं पुग्गले असति सब्बं विकालचारिम्हि आहरितब्बं होति, इति सो बहूनं दुक्खधम्मानं पुरक्खतो पुरेगामी होति । 116 Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८.२५०-२५२) पापमित्तताय छआदीनवादिवण्णना ११७ २५०. क्व नच्चन्ति “कस्मिं ठाने नटनाटकादिनच्चं अत्थी"ति पुच्छित्वा यस्मिं गामे वा निगमे वा तं अत्थि, तत्थ गन्तब् होति, तस्स "स्वे नच्चदस्सनं गमिस्सामी"ति अज्ज वत्थगन्धमालादीनि पटियादेन्तस्सेव सकलदिवसम्पि कम्मच्छेदो होति, नच्चदस्सनेन एकाहम्पि द्वीहम्पि तीहम्पि तत्थेव होति, अथ वुट्ठिसम्पत्तियादीनि लभित्वापि वप्पादिकाले वप्पादीनि अकरोन्तस्स अनुप्पन्ना भोगा नुप्पज्जन्ति, तस्स बहि गतभावं ञत्वा अनारक्खे गेहे चोरा यं इच्छन्ति, तं करोन्ति, तेनस्स उप्पन्नापि भोगा विनस्सन्ति। क्व गीतन्तिआदीसुपि एसेव नयो । तेसं नानाकरणं ब्रह्मजाले वुत्तमेव । .२५१. जयं वेरन्ति “जितं मया"ति परिसमज्झे परस्स साटकं वा वेठनं वा गण्हाति, सो “परिसमज्झे मे अवमानं करोसि, होतु, सिक्खापेस्सामि न"न्ति तत्थ वेरं बन्धति, एवं जिनन्तो सयं वेरं पसवति । जिनोति अञ्जेन जितो समानो यं तेन तस्स वेठनं वा साटको वा अझं वा पन हिरञ्जसुवण्णादिवित्तं गहितं, तं अनुसोचति "अहोसि वत मे, तं तं वत मे नत्थी"ति तप्पच्चया सोचति । एवं सो जिनो वित्तं अनुसोचति । सभागतस्स वचनं न रूहतीति विनिच्छयट्ठाने सक्खिपुट्ठस्स सतो वचनं न रूहति, न पतिढाति, "अयं अक्खसोण्डो जूतकरो, मा तस्स वचनं गण्हित्था"ति वत्तारो भवन्ति । मित्तामच्चानं परिभूतो होतीति तहि मितामच्चा एवं वदन्ति- “सम्म, त्वम्पि नाम कुलपुत्तो जूतकरो छिन्नभिन्नको हुत्वा विचरसि, न ते इदं जातिगोत्तानं अनुरूपं, इतो पट्ठाय मा एवं करेय्यासी''ति । सो एवं वुत्तोपि तेसं वचनं न करोति । ततो तेन सद्धिं एकतो न तिट्ठन्ति न निसीदन्ति । तस्स कारणा सक्खिपुट्ठापि न कथेन्ति । एवं मित्तामच्चानं परिभूतो होति । ___ आवाहविवाहकानन्ति आवाहका नाम ये तस्स घरतो दारिकं गहेतुकामा। विवाहका नाम ये तस्स गेहे दारिकं दातुकामा । अपत्थितो होतीति अनिच्छितो होति। नालं दारभरणायाति दारभरणाय न समत्थो । एतस्स गेहे दारिका दिन्नापि एतस्स गेहतो आगतापि अम्हेहि एव पोसितब्बा भविस्सतियेव । पापमित्तताय छआदीनवादिवण्णना २५२. धुत्ताति अक्खधुत्ता। सोण्डाति इत्थिसोण्डा भत्तसोण्डा पूवसोण्डा मूलकसोण्डा | पिपासाति पानसोण्डा । नेकतिकाति पतिरूपकेन वञ्चनका। वञ्चनिकाति 117 Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (८.२५३-२५३) सम्मुखावञ्चनाहि वञ्चनिका । साहसिकाति एकागारिकादिसाहसिककम्मकारिनो । त्यास्स मित्ता होन्तीति ते अस्स मित्ता होन्ति । अञ्जेहि सप्पुरिसेहि सद्धिं न रमति गन्धमालादीहि अलङ्करित्वा वरसयनं आरोपितसूकरो गूथकूपमिव, ते पापमित्तेयेव उपसङ्कमति । तस्मा दिढे चेव धम्मे सम्परायञ्च बहु अनत्थं निगच्छति । २५३. अतिसीतन्ति कम्मं न करोतीति मनुस्सेहि कालस्सेव वुट्ठाय “एथ भो कम्मन्तं गच्छामा'ति वुत्तो “अतिसीतं ताव, अट्ठीनि भिज्जन्ति विय, गच्छथ तुम्हे पच्छा जानिस्सामी"ति अग्गिं तपन्तो निसीदति । ते गन्त्वा कम्मं करोन्ति । इतरस्स कम्म परिहायति । अतिउण्हन्तिआदीसुपि एसेव नयो।। होति पानसखा नामाति एकच्चो पानट्ठाने सुरागेहेयेव सहायो होति । "पन्नसखा"तिपि पाठो, अयमेवत्थो। सम्मियसम्मियोति सम्म सम्माति वदन्तो सम्मुखेयेव सहायो होति, परम्मुखे वेरीसदिसो ओतारमेव गवेसति । अत्थेसु जातेसूति तथारूपेसु किच्चेसु समुप्पन्नेसु । वेरप्पसवोति वेरबहुलता। अनत्थताति अनत्थकारिता । सुकदरियताति सुट्ठ कदरियता थद्धमच्छरियभावो । उदकमिव इणं विगाहतीति पासाणो उदकं विय संसीदन्तो इणं विगाहति । ____ रत्तिनुहानदेस्सिनाति रत्तिं अनुट्ठानसीलेन । अतिसायमिदं अहूति इदं अतिसायं जातन्ति ये एवं वत्वा कम्मं न करोन्ति । इति विस्सलुकम्मन्तेति एवं वत्वा परिच्चत्तकम्मन्ते । अत्था अच्चेन्ति माणवेति एवरूपे पुग्गले अत्था अतिक्कमन्ति, तेसु न तिद्वन्ति। तिणा भिय्योति तिणतोपि उत्तरि । सो सुखं न विहायतीति सो पुरिसो सुखं न जहाति, सुखसमझीयेव होति । इमिना कथामग्गेन इममत्थं दस्सेति “गिहिभूतेन सता एत्तकं कम्मं न कातब्बं, करोन्तस्स वड्डि नाम नस्थि। इधलोके परलोके गरहमेव पापुणाती"ति । 118 . Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८.२५४-२५७) मित्तपतिरूपकादिवण्णना मित्तपतिरूपकादिवण्णना २५४. इदानि यो एवं करोतो अनत्थो उप्पज्जति, अञानि वा पन यानि कानिचि भयानि येकेचि उपद्दवा येकेचि उपसग्गा, सब्बे ते बालं निस्साय उप्पज्जन्ति । तस्मा "एवरूपा बाला न सेवितब्बा'"ति बाले मित्तपतिरूपके अमित्ते दस्सेतुं चत्तारोमे, गहपतिपुत्त अमित्तातिआदिमाह । तत्थ अञदत्युहरोति सयं तुच्छहत्थो आगन्त्वा एकंसेन यंकिञ्चि हरतियेव । वचीपरमोति वचनपरमो वचनमत्तेनेव दायको कारको विय होति | अनुप्पियभाणीति अनुप्पियं भणति । अपायसहायोति भोगानं अपायेसु सहायो होति । २५५. एवं चत्तारो अमित्ते दस्सेत्वा पुन तत्थ एकेकं चतूहि कारणेहि विभजन्तो चतूहि खो, गहपतिपुत्तातिआदिमाह । तत्थ अञदत्थुहरो होतीति एकंसेन हारकोयेव होति । सहायस्स गेहं रित्तहत्थो आगन्त्वा निवत्थसाटकादीनं वण्णं भासति, सो “अतिविय त्वं सम्म इमस्स वण्णं भाससी''ति अनं निवासेत्वा तं देति । अप्पेन बहुमिच्छतीति यंकिञ्चि अप्पकं दत्वा तस्स सन्तिका बहुं पत्थेति । भयस्स किच्चं करोतीति अत्तनो भये उप्पन्ने तस्स दासो विय हुत्वा तं तं किच्चं करोति, अयं सब्बदा न करोति, भये उप्पन्ने करोति, न पेमेनाति अमित्तो नाम जातो। सेवति अत्थकारणाति मित्तसन्थववसेन न सेवति, अत्तनो अत्थमेव पच्चासीसन्तो सेवति । २५६. अतीतेन पटिसन्थरतीति सहाये आगते “हिय्यो वा परे वा न आगतोसि, अम्हाकं इमस्मिं वारे सस्सं अतिविय निप्फन्नं, बहूनि सालियवबीजादीनि ठपेत्वा मग्गं ओलोकेन्ता निसीदिम्ह, अज्ज पन सब्बं खीण"न्ति एवं अतीतेन सङ्गण्हाति । अनागतेनाति "इमस्मिं वारे अम्हाकं सस्सं मनापं भविस्सति, फलभारभरिता सालिआदयो, सस्ससङ्गहे कते तुम्हाकं सङ्गहं कातुं समत्था भविस्सामा''ति एवं अनागतेन सङ्गण्हाति । निरत्थकेनाति हत्थिक्खन्धे वा अस्सपिढे वा निसिन्नो सहायं दिस्वा “एहि, भो, इध निसीदा'"ति वदति । मनापं साटकं निवासेत्वा "सहायकस्स वत मे अनुच्छविको अओ पन मय्हं नत्थी''ति वदति, एवं निरत्थकेन सङ्गण्हाति नाम । पच्चुप्पनेसु किच्चेसु व्यसनं दस्सेतीति “सकटेन मे अत्थो"ति वुत्ते "चक्कमस्स भिन्नं, अक्खो छिनो"तिआदीनि वदति। २५७. पापकम्पिस्स अनुजानातीति पाणातिपातादीसु यंकिञ्चि करोमाति वुत्ते “साधु 119 Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (८.२६०-२६३) सम्म करोमा'"ति अनुजानाति । कल्याणेपि एसेव नयो । सहायो होतीति "असुकट्ठाने सुरं पिवन्ति, एहि तत्थ गच्छामा"ति वुत्ते साधूति गच्छति । एस नयो सब्बत्थ । इति बिआयाति "मित्तपतिरूपका एते''ति एवं जानित्वा । सुहदमित्तादिवण्णना २६०. एवं न सेवितब्बे पापमित्ते दस्सेत्वा इदानि सेवितब्बे कल्याणमित्ते दस्सेन्तो पुन चत्तारोमे, गहपतिपुत्तातिआदिमाह । तत्थ सुहदाति सुन्दरहदया। २६१. पमत्तं रक्खतीति मज्जं पिवित्वा गाममज्झे वा गामद्वारे वा मग्गे वा निपन्नं दिस्वा "एवंनिपन्नस्स कोचिदेव निवासनपारुपनम्पि हरेय्या'ति समीपे निसीदित्वा पबुद्धकाले गहेत्वा गच्छति । पमत्तस्स सापतेय्यन्ति सहायो बहिगतो वा होति सुरं पिवित्वा वा पमत्तो, गेहं अनारक्खं “कोचिदेव यंकिञ्चि हरेय्या"ति गेहं पविसित्वा तस्स धनं रक्खति । भीतस्साति किस्मिञ्चिदेव भये उप्पन्ने “मा भायि, मादिसे सहाये ठिते किं भायसी"ति तं भयं हरन्तो पटिसरणं होति । तद्दिगुणं भोगन्ति किच्चकरणीये ने सहायं अत्तनो सन्तिकं आगतं दिस्वा वदति "कस्मा आगतोसी"ति? राजकले कम्मं अत्थीति । किं लड़े वट्टतीति ? एको कहापणोति । “नगरे कम्मं नाम न एककहापणेन निष्फज्जति, द्वे गण्हाही''ति एवं यत्तकं वदति, ततो दिगुणं देति । २६२. गुव्हमस्स आचिक्खतीति अत्तनो गुरहं निगूहितुं युत्तकथं अञस्स अकथेत्वा तस्सेव आचिक्खति । गुप्हमस्स परिगृहतीति तेन कथितं गुहं यथा अञो न जानाति, एवं रक्खति । आपदासु न विजहतीति उप्पन्ने भये न परिच्चजति । जीवितम्पिस्स अत्थायाति अत्तनो जीवितम्पि तस्स सहायस्स अत्थाय परिच्चत्तमेव होति, अत्तनो जीवितं अगणेत्वापि तस्स कम्मं करोतियेव । २६३. पापा निवारेतीति अम्हेसु पस्सन्तेसु पस्सन्तेसु त्वं एवं कातुं न लभसि, पञ्च वेरानि दस अकुसलकम्मपथे मा करोहीति निवारेति । कल्याणे निवेसेतीति कल्याणकम्मे तीसु सरणेसु पञ्चसीलेसु दसकुसलकम्मपथेसु वत्तस्सु, दानं देहि पुलं करोहि धम्मं सुणाहीति एवं कल्याणे नियोजेति । अस्तुतं सावेतीति अस्सुतपुब्बं सुखुमं 120 Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८.२६४-२६५) सुहदमित्तादिवण्णना १२१ निपुणं कारणं सावेति । सग्गस्स मग्गन्ति इदं कम्मं कत्वा सग्गे निब्बत्तन्तीति एवं सग्गस्स मग्गं आचिक्खति । २६४. अभवेनस्स न नन्दतीति तस्स अभवेन अवुड्डिया पुत्तदारस्स वा परिजनस्स वा तथारूपं पारिजुलं दिस्वा वा सुत्वा वा न नन्दति, अनत्तमनो होति। भवेनाति वुड्डिया तथारूपस्स सम्पत्तिं वा इस्सरियप्पटिलाभं वा दिस्वा वा सुत्वा वा नन्दति, अत्तमनो होति । अवण्णं भणमानं निवारेतीति “असुको विरूपो न पासादिको दुज्जातिको दुस्सीलो"ति वा वुत्ते “एवं मा भणि, रूपवा च सो पासादिको च सुजातो च सीलसम्पन्नो चा"तिआदीहि वचनेहि परं अत्तनो सहायस्स अवण्णं भणमानं निवारेति । वण्णं भणमानं पसंसतीति “असुको रूपवा पासादिको सुजातो सीलसम्पन्नो"ति वुत्ते “अहो सुट्ठ वदसि, सुभासितं तया, एवमेतं, एस पुरिसो रूपवा पासादिको सुजातो सीलसम्पन्नोति एवं अत्तनो सहायकस्स परं वण्णं भणमानं पसंसति । २६५. जलं अग्गीव भासतीति रत्तिं पब्बतमत्थके जलमानो अग्गि विय विरोचति । भोगे संहरमानस्साति अत्तानम्पि परम्प अपीळेत्वा धम्मेन समेन भोगे सम्पिण्डेन्तस्स रासिं करोन्तस्स । भमरस्सेव इरीयतोति यथा भमरो पुप्फानं वण्णगन्धं अपोथयं तुण्डेनपि पक्खेहिपि रसं आहरित्वा अनुपुब्बेन चक्कप्पमाणं मधुपटलं करोति, एवं अनुपुब्बेन महन्तं भोगरासिं करोन्तस्स । भोगा सनिचयं यन्तीति तस्स भोगा निचयं गच्छन्ति । कथं ? अनुपुब्बेन उपचिकाहि संवड्डियमानो वम्मिको विय । तेनाह "वम्मिकोवुपचीयती"ति । यथा वम्मिको उपचियति, एवं निचयं यन्तीति अत्थो। समाहत्वाति समाहरित्वा । अलमत्थोति युत्तसभावो समत्थो वा परियत्तरूपो घरावासं सण्ठापेतुं । इदानि यथा वा घरावासो सण्ठपेतब्बो, तथा ओवदन्तो चतुधा विभजे भोगेतिआदिमाह । तत्थ स वे मित्तानि गन्थतीति सो एवं विभजन्तो मित्तानि गन्थति नाम अभेज्जमानानि ठपेति। यस्स हि भोगा सन्ति, सो एव मित्ते ठपेतुं सक्कोति, न इतरो। 121 Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा एकेन भोगे भुञ्जेय्याति एकेन कोट्ठासेन भोगे भुञ्जेय्य । द्वीहि कम्मं पयोजयेति द्वीहि कोट्ठासेहि कसिवाणिज्जादिकम्मं पयोजेय्य । चतुत्थञ्च निधापेय्याति चतुत्थं कोट्ठासं निधापेत्वा ठपेय्य । आपदासु भविस्सतीति कुलानञ्हि न सब्बकालं एकसदिसं वत्तति, कदाचि राजादिवसेन आपदापि उप्पज्जन्ति, तस्मा एवं आपदासु उप्पन्नासु भविस्सतीति " एकं कोट्टासं निधापेय्या "ति आह । इमेसु पन चतूसु कोट्ठासेसु कतरकोट्ठासं गत्वा कुसलं कातब्बन्ति ? "भोगे भुञ्जेय्या "ति वुत्तकोट्ठासं । ततो गण्हित्वा भिक्खूनम्पि कपणद्धिकादीनम्पि दातब्बं, पेसकारन्हापितादीनम्पि वेतनं दातब्बं । छद्दिसापटिच्छादनकण्डवण्णना २६६. इति भगवा एत्तकेन कथामग्गेन एवं गहपतिपुत्तस्स अरियसावको चहि कारणेहि अकुसलं पहाय छहि कारणेहि भोगानं अपायमुखं वज्जेत्वा सोळस मित्तानि सेवन्तो घरावासं सण्ठपेत्वा दारभरणं करोन्तो धम्मिकेन आजीवेन जीवति, देवमनुस्सानञ्च अन्तरे अग्गिक्खन्धो विय विरोचतीति वज्जनीयधम्मवज्जनत्थं सेवितब्बधम्मसेवनत्थञ्च ओवादं दत्वा इदानि नमस्सितब्बा छ दिसा दस्सेन्तो कथञ्च गहपतिपुत्ताति आदिमाह । (८.२६६-२६७) तत्थ छद्दिसापटिच्छादीति यथा छहि दिसाहि आगमनभयं न आगच्छति, खेमं होति निब्भयं एवं विहरन्तो " छद्दिसापटिच्छादी "ति वुच्चति । "पुरत्थिमा दिसा मातापितरो वेदितब्बा'तिआदीसु मातापितरो पुब्बुपकारिताय पुरत्थिमा दिसाति वेदितब्बा । आचरिया दक्खिय्यताय दक्खिणा दिसाति । पुत्तदारा पिट्ठितो अनुबन्धनवसेन पच्छिमा दिसाति । मित्तामच्चा यस्मा सो मित्तामच्चे निस्साय ते ते दुक्खविसेसे उत्तरति, तस्मा उत्तरा दिसाति । दासकम्मकरा पादमूले पतिट्ठानवसेन हेट्ठिमा दिसाति । समणब्राह्मणा गुणेहि उपरि ठितभावेन उपरिमा दिसाति वेदितब्बा | २६७. भतो ने भरिस्सामीति अहं मातापितूहि थञ्ञ पायेत्वा हत्थपादे वड्डेत्वा मुखेन सिङ्घाणिकं अपनेत्वा नहापेत्वा मण्डेत्वा भतो भरितो जग्गितो, स्वाहं अज्ज ते महल्लके पादधोवनन्हापनयागुभत्तदानादीहि भरिस्सामि । किच्चं नेसं करिस्सामीति अत्तनो कम्मं ठपेत्वा मातापितूनं राजकुलादीसु उप्पन्नं 122 Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८.२६७-२६७) छदिसापटिच्छादनकण्डवण्णना १२३ किच्चं गन्त्वा करिस्सामि। कुलवंसं सण्ठपेस्सामीति मातापितूनं सन्तकं खेत्तवत्थुहिरञसुवण्णादिं अविनासेत्वा रक्खन्तोपि कुलवंसं सण्ठपेति नाम । मातापितरो अधम्मिकवंसतो हारेत्वा धम्मिकवंसे ठपेन्तोपि, कुलवंसेन आगतानि सलाकभत्तादीनि अनुपच्छिन्दित्वा पवत्तेन्तोपि कुलवंसं सण्ठपेति नाम । इदं सन्धाय वुत्तं - "कुलवंसं सण्ठपेस्सामी"ति । दायजं पटिपज्जामीति मातापितरो अत्तनो ओवादे अवत्तमाने मिच्छापटिपन्ने दारके विनिच्छयं पत्वा अपुत्ते करोन्ति, ते दायज्जारहा न होन्ति। ओवादे वत्तमाने पन कुलसन्तकस्स सामिके करोन्ति, अहं एवं वत्तिस्सामीति अधिप्पायेन “दायज्जं पटिपज्जामी"ति वुत्तं । दक्खिणं अनुप्पदस्सामीति तेसं पत्तिदानं कत्वा ततियदिवसतो पट्ठाय दानं अनुप्पदस्सामि । पापा निवारेन्तीति पाणातिपातादीनं दिट्ठधम्मिकसम्परायिकं आदीनवं वत्वा, "तात, मा एवरूपं करी"ति निवारेन्ति, कतम्पि गरहन्ति । कल्याणे निवेसेन्तीति अनाथपिण्डिको विय लज्जं दत्वापि सीलसमादानादीसु निवेसेन्ति । सिप्पं सिक्खापेन्तीति अत्तनो ओवादे ठितभावं ञत्वा वंसानुगतं मुद्दागणनादिसिप्पं सिक्खापेन्ति । पतिरूपेनाति कुलसीलरूपादीहि अनुरूपेन । समये दायज्जं निय्यादेन्तीति समये धनं देन्ति । तत्थ निच्चसमयो कालसमयोति द्वे समया। निच्चसमये देन्ति नाम "उट्ठाय समुट्ठाय इमं गण्हितब्बं गण्ह, अयं ते परिब्बयो होतु, इमिना कुसलं करोही''ति देन्ति। कालसमये देन्ति नाम सिखाठपनआवाहविवाहादिसमये देन्ति । अपिच पच्छिमे काले मरणमञ्चे निपन्नस्स "इमिना कुसलं करोही"ति देन्तापि समये देन्ति नाम। पटिच्छन्ना होतीति यं पुरत्थिमदिसतो भयं आगच्छेय्य, यथा तं नागच्छति, एवं पिहिता होति । सचे हि पुत्ता विप्पटिपन्ना, अस्सु, मातापितरो दहरकालतो पट्ठाय जग्गनादीहि सम्मा पटिपन्ना, एते दारका, मातापितूनं अप्पतिरूपाति एतं भयं आगच्छेय्य । पुत्ता सम्मा पटिपन्ना, मातापितरो विप्पटिपन्ना, मातापितरो पुत्तानं नानुरूपाति एतं भयं आगच्छेय्य | उभोसु विप्पटिपन्नेसु दुविधम्पि तं भयं होति । सम्मा पटिपन्नेसु सब्बं न होति । तेन वुत्तं“पटिच्छन्ना होति खेमा अप्पटिभया'ति । 123 Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा एवञ्च पन वत्वा भगवा सिङ्गालकं एतदवोच "न खो ते, गहपतिपुत्त, पिता लोकसम्मतं पुरात्थिमं दिसं नमस्सापेति । मातापितरो पन पुरत्थिमदिसासदिसे कत्वा नमस्सापेति । अयञ्हि ते पितरा पुरत्थिमा दिसा अक्खाता, नो अञ्ञा'ति । २६८. उट्ठानेनाति आसना उट्ठानेन । अन्तेवासिकेन हि आचरियं दूरतोव आगच्छन्तं दिस्वा आसना वुट्ठाय पच्चुग्गमनं कत्वा हत्थतो भण्डकं गत्वा आसनं पञ्ञपेत्वा निसीदापेत्वा बीजनपादधोवनपादमक्खनानि कातब्बानि । तं सन्धाय वृत्तं “उट्ठानेना”ति । उपट्ठानेनाति दिवसस्स तिक्खत्तुं उपट्ठानगमनेन । सिप्पुग्गहणकाले पन अवस्सकमेव गन्तब्बं होति । सुस्सूसायाति सद्दहित्वा सवनेन । असद्द हित्वा सुन्तो हि विसेसं नाधिगच्छति । पारिचरियायाति अवसेसखुद्दकपारिचरियाय । अन्तेवासिकेन हि आचरियरस पातोव वुट्ठाय मुखोदकदन्तकट्ठे दत्वा भत्तकिच्चकालेपि पानीयं गत्वा पच्चुपट्ठानादीनि कत्वा वन्दित्वा गन्तब्बं । किलिट्ठवत्थादीनि धोवितब्बानि, सायं नहानोदकं पच्चुपट्ठपेतब्बं । अफासुकाले उपट्ठातब्बं । पब्बजितेनपि सब्बं अन्तेवासिकवत्तं कातब्बं । इदं सन्धाय वुत्तं - “पारिचरियाया ''ति । सक्कच्चं सिप्पपटिग्गहणेनाति सक्कच्चं पटिग्गहणं नाम थोकं गत्वा बहुवारे सज्झायकरणं, एकपदम्पि विसुद्धमेव गहेतब्बं । (८.२६८-२६८) सुविनीतं विनेन्तीति “ एवं ते निसीदितब्बं, एवं ठातब्बं एवं खादितब्बं, एवं भुञ्जितब्बं पापमित्ता वज्जेतब्बा, कल्याणमित्ता सेवितब्बा "ति एवं आचारं सिक्खान्ति विनेन्ति । सुग्गहितं गाहापेन्तीति यथा सुग्गहितं गण्हाति, एवं अत्थञ्च ब्यञ्जनञ्च सोधेत्वा पयोगं दस्सेत्वा गण्हापेन्ति । मित्तामच्चेसु पटियादेन्तीति “अयं अम्हाकं अन्तेवासिको ब्यत्तो बहुस्सुतो मया समसमो, एतं सल्लक्खेय्याथा "ति एवं गुणं कथेत्वा मित्तामच्चेसु पतिट्ठपेन्ति । दिसासु परित्ताणं करोतीति सिप्पसिक्खापनेनेवस्स सब्बदिसासु रक्खं करोन्ति । उग्गहितसिप्पो हि यं यं दिसं गन्त्वा सिप्पं दस्सेति, तत्थ तत्थस्स लाभसक्कारो उप्पज्जति । सो आचरियेन कतो नाम होति, गुणं कथेन्तोपिस्स महाजनो आचरियपादे धोवित्वा वसितअन्तेवासिको वत अयन्ति पठमं आचरियस्सेव गुणं कथेन्ति, ब्रह्मलोकप्पमाणोपिस्स लाभो उप्पज्जमानो आचरियसन्तकोव होति । अपिच यं विज्जं परिजप्पित्वा गच्छन्तं अटवियं चोरा न पस्सन्ति, अमनुस्सा वा दीघजाति आदयो वा न विहेठेन्ति, तं सिक्खापेन्तापि दिसासु परित्ताणं करोन्ति । यं वा सो दिसं गतो होति, 124 Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८.२६९-२७१) छद्दिसापटिच्छादनकण्डवण्णना १२५ ततो कङ्गं उप्पादेत्वा अत्तनो सन्तिकं आगतमनुस्से “एतिस्सं दिसायं अम्हाकं अन्तेवासिको वसति, तस्स च मय्हञ्च इमस्मिं सिप्पे नानाकरणं नत्थि, गच्छथ तमेव पुच्छथा"ति एवं अन्तेवासिकं पग्गण्हन्तापि तस्स तत्थ लाभसक्कारुप्पत्तिया परित्ताणं करोन्ति नाम, पतिद्वं करोन्तीति अत्थो । सेसमेत्थ पुरिमनयेनेव योजेतब्बं । ___२६९. ततियदिसावारे सम्माननायाति देवमाते तिस्समातेति एवं सम्भावितकथाकथनेन । अनवमाननायाति यथा दासकम्मकरादयो पोथेत्वा विहेठेत्वा कथेन्ति, एवं हीळेत्वा विमानेत्वा अकथनेन । अनतिचरियायाति तं अतिक्कमित्वा बहि अाय इत्थिया सद्धिं परिचरन्तो तं अतिचरति नाम, तथा अकरणेन । इस्सरियवोस्सग्गेनाति इथियो हि महालतासदिसम्पि आभरणं लभित्वा भत्तं विचारेतुं अलभमाना कुज्झन्ति, कटच्छु हत्थे ठपेत्वा तव रुचिया करोहीति भत्तगेहे विस्सटे सब्बं इस्सरियं विस्सटुं नाम होति, एवं करणेनाति अत्थो। अलङ्कारानुप्पदानेनाति अत्तनो विभवानुरूपेन अलङ्कारदानेन । सुसंविहितकम्मन्ताति यागुभत्तपचनकालादीनि अनतिक्कमित्वा तस्स तस्स साधुकं करणेन सुट्ट संविहितकम्मन्ता । सङ्गहितपरिजनाति सम्माननादीहि चेव पहेणकपेसनादीहि च सङ्गहितपरिजना। इध परिजनो नाम सामिकस्स चेव अत्तनो च आतिजनो । अनतिचारिनीति सामिकं मुञ्चित्वा अझं मनसापि न पत्थेति। सम्भतन्ति कसिवाणिज्जादीनि कत्वा आभतधनं । दक्खा च होतीति यागुभत्तसम्पादनादीसु छेका निपुणा होति । अनलसाति निक्कोसज्जा । यथा अञआ कुसीता निसिन्नट्ठाने निसिन्नाव होन्ति ठितट्ठाने ठिताव, एवं अहुत्वा विप्फारितेन चित्तेन सब्बकिच्चानि निप्फादेति । सेसमिधापि पुरिमनयेनेव योजेतब्बं । २७०. चतुत्थदिसावारे अविसंवादनतायाति यस्स यस्स नामं गण्हाति, तं तं अविसंवादेत्वा इदम्पि अम्हाकं गेहे अत्थि, इदम्पि अत्थि, गहेत्वा गच्छाहीति एवं अविसंवादेत्वा दानेन । अपरपजा चस्स पटिपूजेन्तीति सहायस्स पुत्तधीतरो पजा नाम, तेसं पन पुत्तधीतरो च नत्तुपनत्तका च अपरपजा नाम । ते पटिपूजेन्ति केळायन्ति ममायन्ति मङ्गलकालादीसु तेसं मङ्गलादीनि करोन्ति । सेसमिधापि पुरिमनयेनेव वेदितब्बं । २७१. यथाबलं कम्मन्तसंविधानेनाति दहरेहि कातब्बं महल्लकेहि, महल्लकेहि वा कातब्बं दहरेहि, इत्थीहि कातब्बं पुरिसेहि, पुरिसेहि वा कातब् इत्थीहि अकारेत्वा तस्स तस्स बलानुरूपेनेव कम्मन्तसंविधानेन । भत्तवेतनानुष्पदानेनाति अयं खुद्दकपुत्तो, अयं 125 Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (८.२७२-२७२) एकविहारीति तस्स तस्स अनुरूपं सल्लक्खेत्वा भत्तदानेन चेव परिब्बयदानेन च । गिलानुपट्टानेनाति अफासुककाले कम्मं अकारेत्वा सप्पायभेसज्जादीनि दत्वा पटिजग्गनेन । अच्छरियानं रसानं संविभागेनाति अच्छरिये मधुररसे लभित्वा सयमेव अखादित्वा तेसम्पि ततो संविभागकरणेन । समये वोस्सग्गेनाति निच्चसमये च कालसमये च वोस्सज्जनेन । निच्चसमये वोस्सज्जनं नाम सकलदिवसं कम्मं करोन्ता किलमन्ति । तस्मा यथा न किलमन्ति, एवं वेलं ञत्वा विस्सज्जनं । कालसमये वोस्सग्गो नाम छणनक्खत्तकीळादीसु अलङ्कारभण्डखादनीयभोजनीयादीनि दत्वा विस्सज्जनं । दिनादायिनोति चोरिकाय किञ्चि अगहेत्वा सामिकेहि दिन्नस्सेव आदायिनो । सुकतकम्मकराति “किं एतस्स कम्मेन कतेन, न मयं किञ्चि लभामा"ति अनुज्झायित्वा तुट्ठहदया यथा तं कम्मं सुकतं होति, एवं कारका । कित्तिवण्णहराति परिसमज्झे कथाय सम्पत्ताय "को अम्हाकं सामिकेहि सदिसो अत्थि, मयं अत्तनो दासभावम्पि न जानाम, तेसं सामिकभावम्पि न जानाम, एवं नो अनुकम्पन्ती"ति गुणकथाहारका । सेसमिधापि पुरिमनयेनेव योजेतब्बं । . २७२. मेत्तेन कायकम्मेनातिआदीस मेत्तचित्तं पच्चूपट्टपेत्वा कतानि कायकम्मादीनि मेत्तानि नाम वुच्चन्ति । तत्थ भिक्खू निमन्तेस्सामीति विहारगमनं, धमकरणं गहेत्वा उदकपरिस्सावनं, पिट्ठिपरिकम्मपादपरिकम्मादिकरणञ्च मेत्तं कायकम्मं नाम। भिक्खू पिण्डाय पविढे दिस्वा "सक्कच्चं यागु देथ, भत्तं देथा'"तिआदिवचनञ्चेव, साधुकारं दत्वा धम्मसवनञ्च सक्कच्चं पटिसन्थारकरणादीनि च मेत्तं वचीकम्मं नाम । “अम्हाकं कुलूपकत्थेरा अवेरा होन्तु अब्यापज्जाति एवं चिन्तनं मेत्तं मनोकम्मं नाम । अनावटद्वारतायाति अपिहितद्वारताय । तत्थ सब्बद्वारानि विवरित्वापि सीलवन्तानं अदायको अकारको पिहितद्वारोयेव। सब्बद्वारानि पन पिदहित्वापि तेसं दायको कारको विवटद्वारोयेव । इति सीलवन्तेसु गेहद्वारं आगतेसु सन्तंयेव नत्थीति अवत्वा दातब्बं । एवं अनावटद्वारता नाम होति । आमिसानुप्पदानेनाति पुरेभत्तं परिभुजितब्बकं आमिसं नाम, तस्मा सीलवन्तानं यागुभत्तसम्पदानेनाति अत्थो । कल्याणेन मनसा अनुकम्पन्तीति “सब्बे सत्ता सुखिता होन्तु अवेरा अरोगा अब्यापज्जा"ति एवं हितफरणेन । अपिच उपट्ठाकानं गेहं अञ्जे सीलवन्ते सब्रह्मचारी गहेत्वा पविसन्तापि कल्याणेन चेतसा अनुकम्पन्ति नाम । सुतं परियोदापेन्तीति यं तेसं पकतिया सुतं अत्थि, तस्स अत्थं कथेत्वा कथं विनोदेन्ति, तथत्ताय वा पटिपज्जापेन्ति । सेसमिधापि पुरिमनयेनेव योजेतब्बं । 126 Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छद्दिसापटिच्छादनकण्डवण्णना २७३. अलमत्तोति पुत्तदारभरणं कत्वा अगारं अज्झावसनसमत्थो । पण्डितोति दिसानमस्सनट्ठाने पण्डितो हुत्वा । सहोति सुखुमत्थदस्सनेन सण्हवाचाभणनेन वा सहो हुत्वा । पटिभानवाति दिसानमस्सनट्ठाने पटिभानवा हुत्वा निवातवृत्तीति नीचवृत्ति | अत्थद्धोति थम्भरहितो । उट्ठानकोति उट्ठानवीरियसम्पन्नो । अनलसोति निक्कोसज्जो । अच्छिन्नवृत्तीति निरन्तरकरणवसेन अखण्डवृत्ति । मेधावीति ठानुप्पत्तिया पञ्चाय समन्नागतो । (८.२७३ - २७४) सङ्गाहकोति चतूहि सङ्ग्रहवत्थूहि सङ्गहकरो । मित्तकरोति मित्तगवेसनो । वदति पुब्बकारिना, वुत्तवचनं जानाति । सहायकस्स घरं गतकाले “मय्हं सहायकस्स वेठनं देथ, साटकं देथ, मनुस्सानं भत्तवेतनं देथा ति वुत्तवचनमनुस्सरन्तो तस्स अत्तनो गेहं आगतस्स तत्तकं वा ततो अतिरेकं वा पटिकत्ताति अत्थो । अपिच सहायकस्स घरं गन्त्वा इमं नाम गहिस्सामीति आगतं सहायकं लज्जाय गण्हितुं असक्कोन्तं अनिच्छारितम्पि तस्स वाचं ञत्वा येन अत्थेन सो आगतो, तं निप्फादेन्तो वद नाम । येन येन वा पन सहायकस्स ऊनं होति, ओलोकेत्वा तं तं देन्तोपि वदञ्ज्येव । नेताति तं तं अत्थं दस्सेन्तों पञ्ञाय नेता । विविधानि कारणानि दस्सेन्तो नेतीति विनेता । पुनप्पुनं नेतीति अनुनेता । तत्थ तत्थाति तस्मिं तस्मिं पुग्गले । रथस्साणीव यायतोति यथा आणिया सतिव रथो याति, असति न याति एवं इमेसु सङ्गहेसु सतियेव लोको वत्तति, असति न वत्तति । तेन वुत्तं - “एते खो सङ्गहा लोके, रथस्साणीव यायतो 'ति । १२७ न माता पुत्तकारणाति यदि माता एते सङ्ग्रहे पुत्तस्स न करेय्य, पुत्तकारणा मानं वा पूजं वा न लभेय्य । सङ्गहा एतेति उपयोगवचने पच्चत्तं । “सङ्गहे एते 'ति वा पाठो । सम्मपेक्खन्तीति सम्मा पेक्खन्ति । पासंसा च भवन्तीति पसंसनीया च भवन्ति । २७४. इति भगवा या दिसा सन्धाय ते गहपतिपुत्त पिता आह "दि नमस्सेय्यासी”ति, इमा ता छ दिसा । यदि त्वं पितु वचनं करोसि, इमा दिसा नमस्साति दस्सेन्तो सिङ्गालस्स पुच्छाय ठत्वा देसनं मत्थकं पापेत्वा राजगहं पिण्डाय 127 Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (८.२७४-२७४) पाविसि। सिङ्गालकोपि सरणेसु पतिट्ठाय चत्तालीसकोटिधनं बुद्धसासने विकिरित्वा पुञकम्मं कत्वा सग्गपरायणो अहोसि । इमस्मिञ्च पन सुत्ते यं गिहीहि कत्तब्बं कम्म नाम, तं अकथितं नत्थि, गिहिविनयो नामायं सुत्तन्तो। तस्मा इमं सुत्वा यथानुसिटुं पटिपज्जमानस्स वुद्धियेव पाटिकवा, नो परिहानीति । सुमङ्गलविलासिनिया दीघनिकायट्ठकथाय सिङ्गालसुत्तवण्णना निहिता। 128 Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९. आटानाटियसुत्तवण्णना पठमभाणवारवण्णना २७५. एवं मे सुतन्ति आटानाटियसुत्तं । तत्रायमपुब्बपदवण्णना चतुद्दिसं रक्खं ठपेत्वाति असुरसेनाय निवारणत्थं सक्कस्स देवानमिन्दस्स चतूसु दिसासु आरक्खं ठपेत्वा । गुम्बं ठपेत्वाति बलगुम्बं ठपेत्वा । ओवरणं ठपेत्वाति चतूसु दिसासु आरक्खके ठपेत्वा । एवं सक्कस्स देवानमिन्दस्स आरक्खं सुसंविहितं कत्वा आटानाटनगरे निसिन्ना सत्त बुद्धे आरम्भ इमं परित्तं बन्धित्वा “ये सत्थु धम्मआणं अम्हाकञ्च राजआणं न सुणन्ति, तेसं इदञ्चिदञ्च करिस्सामा "ति सावनं कत्वा अत्तनोपि चतूसु दिसासु महतिया च यक्खसेनायातिआदीहि चतूहि सेनाहि आरक्खं संविदहित्वा अभिक्कन्ताय रत्तिया...पे०... एकमन्तं निसीदिंसु । अभिक्कन्ताय रत्तियाति एत्थ अभिक्कन्तसद्दी खयसुन्दराभिरूपअब्भनुमोदनादीसु दिस्सति । तत्थ " अभिक्कन्ता, भन्ते रत्ति, निक्खन्तो पठमो यामो, चिरनिसिन्नो भिक्खुसङ्घो उद्दिसतु, भन्ते, भगवा भिक्खूनं पातिमोक्खन्ति (अ० नि० ३.८.२० ) एवमादीसु खये दिस्सति । " अयं इमेसं चतुन्नं पुग्गलानं अभिक्कन्ततरो पणीततरो चा' 'ति (अ० नि० १.४.१००) एवमादीसु सुन्दरे । “को मे वन्दति पादानि, इद्धिया यससा जलं । अभिक्कन्तेन वण्णेन सब्बा ओभासयं दिसाति ।। (वि० व० ८५७) एवमादीसु अभिरूपे । "अभिक्कन्तं भो गोतमा, ति ( पारा० १५) एवमादीसु " 129 Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० ( ९.२७५ - २७५ ) अब्भनुमोदने । इध पन खये । तेन अभिक्कन्ताय रत्तिया, परिक्खीणाय रत्तियाति वृत्तं होति । दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा अभिक्कन्तवण्णाति इध अभिक्कन्तद्दो अभिरूपे । वणसो पन छविथुतिकुलवग्गकारणसण्ठानपमाणरूपायतनादीसु दिस्सति । तत्थ “सुवण्णवण्णोसि भगवा "ति (म० नि० २.३९९) एवमादीसु छवियं । "कदा सञ्जूळ्हा पन ते, गहपति, इमे समणस्स गोतमस्स वण्णा "ति (म० नि० २.७७) एवमादीसु थुतियं । " चत्तारोमे, भो गोतम, वण्णा" ति ( दी० नि० १.२६६) एवमादीसु कुलवग्गे । “अथ केन नु वणेन गन्धथेनोति वुच्चती' 'तिआदीसु (सं० नि० १.२३४) कारणे । “महन्तं हत्थिराजवण्णं अभिनिम्मिनित्वा" ति (सं० नि०१.१.१३८) एवमादीसु सण्ठाने । “यो पत्तस्स वण्णा ति ( पारा० ६०२) एवमादीसु पमाणे । “वण्णो गन्धो रसो ओजा" ति एवमादीसु रूपायतने । सो इध छवियं दट्ठब्बी । तेन “ अभिक्कन्तवण्णा अभिरूपच्छवी 'ति तं । केवलकप्पन्ति एत्थ केवलसद्दो अनवसेसयेभुय्यअब्यामिस्सानतिरेकदळहत्थविसंयोगादि अनेकत्थो । तथा हिस्स " केवलपरिपुण्णं परिसुद्धं ब्रह्मचरियन्ति ( पारा० १) एवमादीसु अनवसेसता अत्थो । “केवलकप्पा च अङ्गमागधा पहूतं खादनीयं भोजनीयं आदाय अभिक्कमितुकामा होन्ती ति ( महाव० ४३) एवमादीसु येभुय्यता । "केवलस्स दुक्खक्खन्धस्स समुदयो होती 'ति ( महाव० १) एवमादीसु अब्यामिस्सता । “केवलं सद्धामत्तकं नून अयमायस्मा ति ( अ० नि० २.६.५५) एवमादीसु अनतिरेकता । “आयस्मतो, भन्ते, अनुरुद्धस्स बाहिको नाम सद्धिविहारिको केवलकप्पं सङ्घभेदाय ठितो 'ति (अ० नि० १.४.२४३) एवमादीसु दळहत्थता । "केवली वुसितवा उत्तमपुरिसोति वुच्चती 'ति (अ० नि० ३.१०.१२) एवमादीसु विसंयोगो । इध पनस्स अनवसेसत्थो अधिप्पेतो । " कप्पसद्दोपनायं अभिसद्दहनवोहारकालपञ्ञत्तिछेदनविकप्पलेससमन्तभावादि अनेकत्थो । तथा हिस्स “ओकप्पनियमेतं भोतो गोतमस्स । यथा तं अरहतो सम्मासम्बुद्धस्सा " ति ( म० नि० १.३८७ ) एवमादीसु अभिसद्दहनमत्थो । 'अनुजानामि, भिक्खवे, पञ्चहि समणकप्पेहि फलं परिभुञ्जितु "न्ति (चूळव० २५० ) एवमादीसु वोहारो । “येन सुदं निच्चकप्पं विहरामी'ति (म० नि० १.३८७) एवमादीसु कालो । “इच्चायस्मा कप्पो "ति 130 Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ९.२७६-२७७) पठमभाणवारवण्णना ( सु० नि० १०९८ ) एवमादीसु पञ्ञत्ति । " अलङ्कतो कप्पितकेसमस्सू 'ति (वि० व० १०९४) एवमादीसु छेदनं । “कप्पति द्वङ्गुलकप्पो ति ( चूळव० ४४६) एवमादीसु विकप्पो, अत्थि कप्पो निपज्जितु "न्ति (अ० नि० ३.८.८०) एवमादीसु लेसो । "केवलकप्पं वेळुवनं ओभासेत्वा "ति (सं० नि० १.१.९४) एवमादीसु समन्तभावो । इध पन समन्तभावो अत्थो अधिप्पेतो । तस्मा “ केवलकप्पं गिज्झकूट "न्ति एत्थ अनवसेसं समन्ततो गिज्झकूटन्ति एवमत्थो दट्ठब्बो । ओभासेत्वाति वत्थमालालङ्कारसरीरसमुट्ठिताय आभाय फरित्वा, चन्दिमा विय सूरियो विय च एकोभासं एकपज्जोतं करित्वाति अत्थो । एकमन्तं निसीदिंसूति देवतानं दसबलस्स सन्तिके निसिन्नट्ठानं नाम न बहु, इमस्मिं पन सुत्ते परित्तगारववसेन निसीदिंसु । १३१ २७६. वेस्सवणोति किञ्चापि चत्तारो महाराजानो आगता, वेस्सवणो पन दसबलस्स विस्सासिको कथापवत्तने ब्यत्तो सुसिक्खितो, तस्मा वेस्सवणो महाराजा भगवन्तं एतदवोच । उळाराति महेसक्खानुभावसम्पन्ना । पाणातिपाता वेरमणियाति पाणातिपाते दिट्ठधम्मिकसम्परायिकं आदीनवं दस्सेत्वा ततो वेरमणिया धम्मं देसेति । सेसेसुपि एसेव नयो । तत्थ सन्ति उळारा यक्खा निवासिनोति तेसु सेनासनेसु सन्ति उळारा यक्खा निबद्धवासिनो । आटानाटियन्ति आटानाटनगरे बद्धत्ता एवंनामं । किं पन भगवतो अपच्चक्खधम्मो नाम अत्थीति, नत्थि । अथ कस्मा वेस्सवणो “उग्गण्हातु, भन्ते, भगवा'' तिआदिमाह ? ओकासकरणत्थं । सो हि भगवन्तं इमं परित्तं सावेतुं ओकासं कारेन्तो एवमाह । सत्थु कथिते इमं परित्तं गरु भविस्सतीतिपि आह । फासुविहारायाति गमनट्ठानादीसु चतूसु इरियापथेसु सुखविहाराय | २७७. चक्खुमन्तस्साति न विपस्सीयेव चक्खुमा सत्तपि बुद्धा चक्खुमन्तो, तस्मा एकेकस्स बुद्धस्स एतानि सत्त सत्त नामानि होन्ति । सब्बेपि बुद्धा चक्खुमन्तो, सब्बे सब्बभूतानुकम्पिनो, सब्बे न्हात किलेसत्ता न्हातका । सब्बे मारसेनापमद्दिनो, सब्बे वुसितवन्तो, सब्बे विमुत्ता, सब्बे अङ्गतो रस्मीनं निक्खन्तत्ता अङ्गीरसा । न केवलञ्च बुद्धानं एतानेव सत्त नामानि असङ्ख्येय्यानि नामानि सगुणेन महेसिनोति वृत्तं । वेरसवणो पन अत्तनो पाकटनामवसेन एवमाह । ते जनाति इध खीणासवा जनाति अधिप्पेता । अपिसुणाथाति देसनासीसमत्तमेतं, अमुसा अपिसुणा अफरुसा मन्तभाणिनोति 131 Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (९.२७८-२७८) अत्थो । महत्ताति महन्तभावं पत्ता । “महन्ता"तिपि पाठो, महन्ताति अत्थो । वीतसारदाति निस्सारदा विगतलोमहंसा। हितन्ति मेत्ताफरणेन हितं । यं नमस्सन्तीति एत्थ यन्ति निपातमत्तं । महत्तन्ति महन्तं । अयमेव वा पाठो, इदं वुत्तं होति “ये चापि लोके किलेसनिब्बानेन निब्बुता यथाभूतं विपस्सिसुं, विज्जादिगुणसम्पन्नञ्च हितं देवमनुस्सानं गोतमं नमस्सन्ति, ते जना अपिसुणा, तेसम्पि नमत्थू'ति । अट्ठकथायं पन ते जना अपिसुणाति ते बुद्धा अपिसुणाति एवं पठमगाथाय बुद्धानंयेव वण्णो कथितो, तस्मा पठमगाथा सत्तन्नं बुद्धानं वसेन वुत्ता । दुतियगाथाय “गोतम''न्ति देसनामुखमत्तमेतं । अयम्पि हि सत्तन्नंयेव वसेन वुत्ताति वेदितब्बा । अयज्हेत्थ अत्थो- लोके पण्डिता देवमनुस्सा यं नमस्सन्ति गोतमं, तस्स च ततो पुरिमानञ्च बुद्धानं नमत्थूति । २७८. यतो उग्गच्छतीति यतो ठानतो उदेति । आदिच्चोति अदितिया पुत्तो, वेवचनमत्तं वा एतं सूरियसद्दस्स । महन्तं मण्डलं अस्साति मण्डलीमहा। यस्स चुग्गच्छमानस्साति यम्हि उग्गच्छमाने । संवरीपि निरुज्झतीति रत्ति अन्तरधायति । यस्स चुग्गतेति यस्मिं उग्गते । रहदोति उदकरहदो । तत्थाति यतो उग्गच्छति सूरियो, तस्मिं ठाने । समुद्दोति यो सो रहदोति वुत्तो, सो न अञो, अथ खो समुद्दो । सरितोदकोति विसटोदको, सरिता नानप्पकारा नदियो अस्स उदके पविठ्ठाति वा सरितोदको। एवं तं तत्थ जानन्तीति तं रहदं तत्थ एवं जानन्ति । किन्ति जानन्ति ? समुद्दो सरितोदकोति एवं जानन्ति । इतोति सिनेरुतो वा तेसं निसिन्नट्ठानतो वा । जनोति अयं महाजनो। एकनामाति इन्दनामेन एकनामा । सब्बेसं किर तेसं सक्कस्स देवरो नाममेव नाममकंसु । असीति दस एको चाति एकनवुतिजना । इन्दनामाति इन्दोति एवंनामा। बुद्धं आदिच्चबन्धुनन्ति किलेसनिद्दापगमनेनापि बुद्धं । आदिच्चेन समानगोत्ततायपि आदिच्चबन्धुनं । कुसलेन समेक्खसीति अनवज्जेन निपुणेन वा सब्ब ताणेन महाजनं ओलोकेसि । अमनुस्सापि तं वन्दन्तीति अमनुस्सापि तं "सब्ब ताणेन महाजनं ओलोकेसी"ति वत्वा वन्दन्ति । सुतं नेतं अभिण्हसोति एतं अम्हेहि अभिक्खणं सुतं । जिनं वन्दथ गोतमं, जिनं वन्दाम गोतमन्ति अम्हेहि पुट्ठा जिनं वन्दाम गोतमन्ति वदन्ति । 132 Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९.२७९-२८१) पठमभाणवारवण्णना २७९. येन पेता पवुच्चन्तीति पेता नाम कालङ्कता, ते येन दिसाभागेन नीहरियन्तूति वुच्चन्ति । पिसुणा पिट्ठिमंसिकाति पिसुणावाचा चेव पिट्ठिमंसं खादन्ता विय परम्मुखा गरहका च । एते च येन नीहरियन्तूति वुच्चन्ति सब्बेपि हेते दक्खिणद्वारेन नीहारित्वा दक्खिणतो नगरस्स डय्हन्तु वा छिज्जन्तु वा हञ्ञन्तु वाति एवं वुच्चन्ति । इतो सा दक्खिणा दिसाति येन दिसाभागेन ते पेता च पिसुणादिका च नीहरियन्तूति वुच्चन्ति इतो सा दक्खिणा दिसा । इतोति सिनेरुतो वा तेसं निसिन्नट्ठानतो वा । कुम्भण्डानन्ति ते किर देवा महोदरा होन्ति, रहस्सङ्गम्पि च नेसं कुम्भो विय महन्तं होति । तस्मा कुम्भण्डाति वुच्चन्ति । २८०. यत्थ चोग्गच्छति सूरियोति यस्मिं दिसाभागे सूरियो अत्थं गच्छति । २८१. येनाति येन दिसाभागेन । महानेरूति महासिनेरु पब्बतराजा । सुदस्स सोवण्णमयत्ता सुन्दरदस्सनो । सिनेरुस्स हि पाचीनपस्सं रजतमयं दक्खिणपस्सं मणिमयं, पच्छिमपस्सं फलिकमयं, उत्तरपस्सं सोवण्णमयं तं मनुञ्ञदस्सनं होति । तस्मा ये दिसाभागेन सिनेरु सुदस्सनोति अयमेत्थत्थो । मनुस्सा तत्थ जायन्तीति तत्थ उत्तरकुरुम्ह मनुस्सा जायन्ति । अममाति वत्थाभरणपानभोजनादीसुपि ममत्तविरहिता । अपरिहा इत्थिपरिग्गहेन अपरिग्गहा । तेसं किर " अयं मय्हं भरिया "ति ममत्तं न होति, मातरं वा भगिनिं वा दिस्वा छन्दरागो नुप्पज्जति । नपि नीयन्ति नङ्गलाति नङ्गलानिपि तत्थ “ कसिकम्मं करिस्सामा "ति न खेत्तं नीयन्ति । अकट्ठपाकिमन्ति अकट्ठे भूमिभागे अरज्ञे सयमेव जातं । तण्डुलप्फलन्ति तण्डुलाव तस्स फलं होति । १३३ तुण्डिकीरे पचित्वानाति उक्खलियं आकिरित्वा निद्धुमङ्गारेन अग्गिना पचित्वा । तथ किर जोतिकपासाणा नाम होन्ति । अथ खो ते तयो पासाणे ठपेत्वा तं उक्खलि आरोपेन्ति। पासाणेहि तेजो समुट्ठहित्वा तं पचति । ततो भुञ्जन्ति भोजनन्ति ततो उक्खलितो भोजनमेव भुञ्जन्ति, अञ्ञो सूपो वा ब्यञ्जनं वा न होति, भुञ्जन्तानं चित्तानुकूलोयेवस्स रसो होति । ते तं ठानं सम्पत्तानं देन्तियेव, मच्छरियचित्तं नाम न होति । बुद्धपच्चेकबुद्धादयोपि महिद्धिका तत्थ गन्त्वा पिण्डपातं गण्हन्ति । 133 Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (९.२८१-२८१) गाविं एकखुरं कत्वाति गाविं गहेत्वा एकखुरं वाहनमेव कत्वा। तं अभिरुय्ह वेस्सवणस्स परिचारका यक्खा । अनुयन्ति दिसोदिसन्ति ताय ताय दिसाय चरन्ति । पसुं एकखुरं कत्वाति ठपेत्वा गाविं अवसेसचतुप्पदजातिकं पसु एकखुरं वाहनमेव कत्वा दिसोदिसं अनुयन्ति। इत्थिं वा वाहनं कत्वाति येभुय्येन गब्मिनिं मातुगामं वाहनं करित्वा । तस्सा पिट्ठिया निसीदित्वा चरन्ति । तस्सा किर पिट्टि ओनमितुं सहति । इतरा पन इत्थियो याने योजेन्ति । पुरिसं वाहनं कत्वाति पुरिसे गहेत्वा याने योजेन्ति । गण्हन्ता च सम्मादिट्ठिके गहेतुं न सक्कोन्ति । येभुय्येन पच्चन्तिममिलक्खुवासिके गण्हन्ति । अञतरो किरेत्थ जानपदो एकस्स थेरस्स समीपे निसीदित्वा निद्दायति, थेरो "उपासक अतिविय निद्दायसी"ति पुच्छि । “अज्ज, भन्ते, सब्बरत्तिं वेस्सवणदासेहि किलमितोम्ही"ति आह । कुमारं वाहनं कत्वाति कुमारियो गहेत्वा एकखुरं वाहनं कत्वा रथे योजेन्ति । कुमारवाहनेपि एसेव नयो । पचारा तस्स राजिनोति तस्स रो परिचारिका । हत्थियानं अस्सयानन्ति न केवलं गोयानादीनियेव, हथिअस्सयानादीनिपि अभिरुहित्वा विचरन्ति । दिब्बं यानन्ति अज्ञम्पि नेसं बहुविधं दिब्बयानं उपट्टितमेव होति, एतानि ताव नेसं उपकप्पनयानानि । ते पन पासादे वरसयनम्हि निपन्नापि पीठसिविकादीसु च निसिन्नापि विचरन्ति । तेन वुत्तं “पासादा सिविका चेवा"ति । महाराजस्स यसस्सिनोति एवं आनुभावसम्पन्नस्स यसस्सिनो महाराजस्स एतानि यानानि निब्बत्तन्ति । तस्स च नगरा अहु अन्तलिक्खे सुमापिताति तस्स रञो आकासे सुट्ठ मापिता एते आटानाटादिका नगरा अहेसुं, नगरानि भविंसूति अत्थो । एकहिस्स नगरं आटानाटा नाम आसि, एकं कुसिनाटा नाम, एकं परकुसिनाटा नाम, एकं नाटसूरिया नाम, एकं परकुसिटनाटा नाम । उत्तरेन कसिवन्तोति तस्मिं ठत्वा उजु उत्तरदिसाय कसिवन्तो नाम अखं नगरं । जनोघमपरेन चाति एतस्स अपरभागे जनोघं नाम अझं नगरं । नवनवतियोति अझम्पि नवनवतियो नाम एकं नगरं । अपरं अम्बरअम्बरवतियो नाम । आळकमन्दाति अपरम्पि आळकमन्दा नाम राजधानी । 134 Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९.२८१-२८१) पठमभाणवारवण्णना १३५ तस्मा कुवेरो महाराजाति अयं किर अनुप्पन्ने बुद्धे कुवेरो नाम ब्राह्मणो हुत्वा उच्छुवप्पं कारेत्वा सत्त यन्तानि योजेसि। एकिस्साय यन्तसालाय उद्वितं आयं आगतागतस्स महाजनस्स दत्वा पुनं अकासि । अवसेससालाहि तत्थेव बहुतरो आयो उट्ठासि, सो तेन पसीदित्वा अवसेससालासुपि उप्पज्जनकं गहेत्वा वीसति वस्ससहस्सानि दानं अदासि । सो कालं कत्वा चातुमहाराजिकेसु कुवेरो नाम देवपुत्तो जातो । अपरभागे विसाणाय राजधानिया रज्जं कारेसि । ततो पट्ठाय वेस्सवणोति वुच्चति । पच्चेसन्तो पकासेन्तीति पटिएसन्तो विसुं विसुं अत्थे उपपरिक्खमाना अनुसासमाना अछे द्वादस यक्खरट्ठिका पकासेन्ति । ते किर यक्खरट्ठिका सासनं गहेत्वा द्वादसनं यक्खदोवारिकानं निवेदेन्ति । यक्खदोवारिका तं सासनं महाराजस्स निवेदेन्ति । इदानि तेसं यक्खरट्ठिकानं नाम दस्सेन्तो ततोलातिआदिमाह । तेसु किर एको ततोला नाम, एको तत्तला नाम, एको ततोतला नाम, एको ओजसि नाम, एको तेजसि नाम, एको ततोजसी नाम । सूरो राजाति एको सूरो नाम, एको राजा नाम, एको सूरोराजा नाम, अरिट्ठो नेमीति एको अरिठ्ठो नाम, एको नेमि नाम, एको अरिठ्ठनेमि नाम । रहदोपि तत्थ धरणी नामाति तत्थ पनेको नामेन धरणी नाम उदकरहदो अस्थि, पण्णासयोजना महापोक्खरणी अत्थीति वुत्तं होति । यतो मेघा पवस्सन्तीति यतो पोक्खरणितो उदकं गहेत्वा मेघा पवस्सन्ति । वस्सा यतो पतायन्तीति यतो वुट्ठियो अवत्थरमाना निगच्छन्ति । मेघेसु किर उद्वितेसु ततो पोक्खरणितो पुराणउदकं भस्सति । उपरि मेघो उट्ठहित्वा तं पोक्खरणिं नवोदकेन पूरेति । पुराणोदकं हेट्ठिमं हुत्वा निक्खमति । परिपुण्णाय पोक्खरणिया वलाहका विगच्छन्ति । सभापीति सभा। तस्सा किर पोक्खरणिया तीरे सालवतिया नाम लताय परिक्खित्तो द्वादसयोजनिको रतनमण्डपो अत्थि, तं सन्धायेतं वुत्तं । पयिरुपासन्तीति निसीदन्ति । तत्थ निच्चफला रुक्खाति तस्मिं ठाने तं मण्डपं परिवारेत्वा सदा फलिता अम्बजम्बुआदयो रुक्खा निच्चपुप्फिता च चम्पकमालादयोति दस्सेति । नानादिजगणायुताति विविधपक्खिसङ्घसमाकुला। मयूरकोञ्चाभिरुदाति मयूरेहि कोञ्चसकुणेहि च अभिरुदा उपगीता । जीवजीवकसदेत्थाति “जीव जीवा''ति एवं विरवन्तानं जीवजीवकसकुणानम्पि एत्थ 135 Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा सद्दो अत्थि । ओट्ठवचित्तकाति “ उट्ठेहि, चित्त, उट्ठेहि चित्ता "ति एवं वस्समाना उट्ठवचित्तकसकुणापि तत्थ विचरन्ति । कुक्कुटकाति वनकुक्कुटका । कुळीरकाति सुवण्णकक्कटका । वनेति पदुमवने । पोक्खरसातकाति पोक्खरसातका नाम सकुणा । सुकाळिकसद्देत्थाति सुकानञ्च साळिकानञ्च सद्दो एत्थ । दण्डमाणवकानि चाति मनुस्समुखसकुणा । ते किर द्वीहि हत्थेहि सुवण्णदण्डं गहेत्वा एकं पोक्खरपत्तं अक्कमित्वा अनन्तरे पोक्खरपत्ते सुवण्णदण्डं निक्खिपन्ता विचरन्ति । सोभति सब्बकालं साति सा पोक्खरणी सब्बकालं सोभति । कुबेरनळिनीति कुवेरस्स नळिनी पदुमसरभूता सा धरणी नाम पोक्खरणी सदा निरन्तरं सोभति । ( ९.२८२ - २८२ ) २८२. यस्स कस्सचीति इदं वेस्सवणो आटानाटियं रक्खं निट्ठपेत्वा तस्सा परिकम्मं दसेतो आह । तत्थ सुग्गहिताति अत्थञ्च ब्यञ्जनञ्च परिसोधेत्वा सुट्टु उग्गहिता । समत्ता परियापुताति पदब्यञ्जनानि अहापेत्वा परिपुण्णं उग्गहिता । अत्थम्पि पाळिम्पि विसंवादेत्वा सब्बसो वा पन अप्पगुणं कत्वा भणन्तस्स हि परित्तं तेजवन्तं न होति, सब्बसो पगुणं कत्वा भणन्तस्सेव तेजवन्तं होति । लाभहेतु उग्गहेत्वा भणन्तस्सापि अत्थं न साधेति, निस्सरणपक्खे ठत्वा मेत्तं पुरेचारिकं कत्वा भणन्तस्सेव अत्थाय होतीति दस्सेति । यक्खपचारोति यक्खपरिचारको । 1 त्युं बात घरवत्युं वा । वासं बाति तत्थ निबद्धवासं वा । समितिन्ति समागमं । अनावहन्ति न आवाहयुत्तं । अविवय्हन्ति न विवाहयुत्तं । तेन सह आवाहविवाहं न करेय्यन्ति अत्थो । अत्ताहिपि परिपुण्णाहीति “कळारक्खि कळारदन्ता "ति एवं एतेसं अत्तभावं उपनेत्वा वुत्ताहि परिपुण्णब्यञ्जनाहि परिभासाहि परिभासेय्युं यक्खअक्कोसेहि नाम अक्कोसेय्यन्ति अत्थो । रित्तम्पिस्स पत्तन्ति भिक्खूनं पत्तसदिसमेव लोहपत्तं होति । तं सीसे निक्कुज्जितं याव गलवाटका भस्सति । अथ नं मज्झे अयोखीलेन आकोटेन्ति । चण्डाति कोधना । रुद्धाति विरुद्धा । रभसाति करणुत्तरिया । नेव महाराजानं आदियन्तीति वचनं न गण्हन्ति, आणं न करोन्ति । महाराजानं पुरिसकानन्ति अट्ठवीसतियक्खसेनापतीनं । पुरिसकानन्ति यक्खसेनापतीनं ये मनस्सा तेसं । अवरुद्धा नामाति पच्चामित्ता वेरिनो । उज्झापेतब्बन्ति परितं वत्वा अमनुस्से पटिक्कमापेतुं असक्कोन्तेन एतेसं यक्खानं उज्झापेतब्बं, एते जानापेतब्बाति अत्थो । 136 Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९.२८२-२८२) परित्तपरिकम्मकथा १३७ . . परित्तपरिकम्मकथा इध पन ठत्वा परित्तस्स परिकम्मं कथेतब्बं । पठममेव हि आटानाटियसुत्तं न भणितब्, मेत्तसुत्तं धजग्गसुत्तं रतनसुत्तन्ति इमानि सत्ताहं भणितब्बानि । सचे मुञ्चति, सुन्दरं । नो चे मुञ्चति, आटानाटियसुत्तं भणितब्बं, तं भणन्तेन भिक्खुना पिटुं वा मंसं वा न खादितब्बं, सुसाने न वसितब्बं । कस्मा ? अमनुस्सा ओकासं लभन्ति । परित्तकरणट्ठानं हरितुपलित्तं कारेत्वा तत्थ परिसुद्धं आसनं पञपेत्वा निसीदितब्बं | परित्तकारको भिक्खु विहारतो घरं नेन्तेहि फलकावुधेहि परिवारेत्वा नेतब्बो। अब्भोकासे निसीदित्वा न वत्तब्बं, द्वारवातपानानि पिदहित्वा निसिन्नेन आवुधहत्थेहि संपरिवारितेन मेत्तचित्तं पुरेचारिकं कत्वा वत्तब्बं । पठमं सिक्खापदानि गाहापेत्वा सीले पतिद्वितस्स परित्तं कातब् । एवम्पि मोचेतुं असक्कोन्तेन विहारं आनेत्वा चेतियङ्गणे निपज्जापेत्वा आसनपूजं कारेत्वा दीपे जालापेत्वा चेतियङ्गणं सम्मज्जित्वा मङ्गलकथा वत्तब्बा। सब्बसन्निपातो. घोसेतब्बो। विहारस्स उपवने जेट्ठकरुक्खो नाम होति, तत्थ भिक्खुसङ्घो तुम्हाकं आगमनं पटिमानेतीति पहिणितब्बं । सब्बसन्निपातट्ठाने अनागन्तुं नाम न लब्भति। ततो अमनुस्सगहितको “त्वं को नामा"ति पुच्छितब्बो। नामे कथिते नामेनेव आलपितब्बो। इत्थन्नाम तुम्हं मालागन्धादीसु पत्ति आसनपूजाय पत्ति पिण्डपाते पत्ति, भिक्खुसङ्घन तुम्हं पण्णाकारत्थाय महामङ्गलकथा वुत्ता, भिक्खुसङ्घ गारवेन एतं मुञ्चाहीति मोचेतब्बो। सचे न मुञ्चति, देवतानं आरोचेतब्बं “तुम्हे जानाथ, अयं अमनुस्सो अम्हाकं वचनं न करोति, मयं बुद्धआणं करिस्सामा''ति परित्तं कातब्बं । एतं ताव गिहीनं परिकम्मं । सचे पन भिक्खु अमनुस्सेन गहितो होति, आसनानि धोवित्वा सब्बसन्निपातं घोसापेत्वा गन्धमालादीसु पत्तिं दत्वा परित्तं भणितब्बं । इदं भिक्खूनं परिकम्म। विक्कन्दितब्बन्ति सब्बसन्निपातं घोसापेत्वा अट्ठवीसति यक्खसेनापतयो कन्दितब्बा । विरवितब्बन्ति “अयं यक्खो गण्हाती''तिआदीनि भणन्तेन तेहि सद्धिं कथेतब्बं । तत्थ गण्हातीति सरीरे अधिमुच्चति । आविसतीति तस्सेव वेवचनं । अथ वा लग्गति न अपेतीति वुत्तं होति । हेठेतीति उप्पन्नं रोगं वड्डेन्तो बाधति | विहेठेतीति तस्सेव वेवचनं । हिंसतीति अप्पमंसलोहितं करोन्तो दुक्खापेति । विहिंसतीति तस्सेव वेवचनं । न मुञ्चतीति अप्पमादगाहो हुत्वा मुञ्चितुं न इच्छति, एवं एतेसं विरवितब्बं । 137 Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (९.२८३-२८३) २८३. इदानि येसं एवं विरवितळ, ते दस्सेतुं कतमेसं यक्खानन्तिआदिमाह । तत्थ इन्दो सोमोतिआदीनि तेसं नामानि । तेसु वेस्सामित्तोति वेस्सामित्तपब्बतवासी एको यक्खो। युगन्धरोपि युगन्धरपब्बतवासीयेव । हिरि नेत्ति च मन्दियोति हिरि च नेत्ति च मन्दियो च । मणि माणि वरो दीघोति मणि च माणि च वरो च दीघो च। अथो सेरीसको सहाति तेहि सह अञ्जो सेरीसको नाम। "इमेसं यक्खानं...पे०... उज्झापेतब्ब"न्ति अयं यक्खो इमं हेठेति विहेठेति न मुञ्चतीति एवं एतेसं यक्खसेनापतीनं आरोचेतब् । ततो ते भिक्खुसङ्घो अत्तनो धम्मआणं करोति, मयम्पि अम्हाकं यक्खराजआणं करोमाति उस्सुक्कं करिस्सन्ति । एवं अमनुस्सानं ओकासो न भविस्सति, बुद्धसावकानं फासुविहारो च भविस्सतीति दस्सेन्तो “अयं खो सा, मारिस, आटानाटिया रक्खा"तिआदिमाह । तं सब्बं, ततो परञ्च उत्तानत्थमेवाति । सुमङ्गलविलासिनिया दीघनिकायट्ठकथाय आटानाटियसुत्तवण्णना निहिता। 138 Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०. सङ्गीतिसुत्तवण्णना २९६. एवं मे सुतन्ति सङ्गीतिसुत्तं । तत्रायमपुब्बपदवण्णना- चारिकं चरमानोति निबद्धचारिकं चरमानो । तदा किर सत्था दससहस्सचक्कवाळे आणजालं पत्थरित्वा लोकं वोलोकयमानो पावानगरवासिनो मल्लराजानो दिस्वा इमे राजानो महं सब्बञ्जतचाणजालस्स अन्तो पञ्जायन्ति, किं नु खोति आवज्जन्तो "राजानो एकं सन्धागारं कारेसुं, मयि गते मङ्गलं भणापेस्सन्ति, अहं तेसं मङ्गलं वत्वा उय्योजेत्वा 'भिक्खुसङ्घस्स धम्मकथं कथेही'ति सारिपुत्तं वक्खामि, सारिपुत्तो तीहि पिटकेहि सम्मसित्वा चुद्दसपहाधिकेन पञ्हसहस्सेन पटिमण्डेत्वा भिक्खुसङ्घस्स सङ्गीतिसुत्तं नाम कथेस्सति, सुत्तन्तं आवज्जेत्वा पञ्च भिक्खुसतानि सह पटिसम्भिदाहि अरहत्तं पापुणिस्सन्ती''ति इममत्थं दिस्वा चारिकं पक्कन्तो। तेन वुत्तं- "मल्लेसु चारिकं चरमानो''ति । उब्भतकनवसन्धागारवण्णना २९७. उन्भतकन्ति तस्स नाम, उच्चत्ता वा एवं वुत्तं । सन्धागारन्ति नगरमज्झे सन्धागारसाला । समणेन वाति एत्थ यस्मा घरवत्थपरिग्गहकालेयेव देवता अत्तनो वसनद्रानं गण्हन्ति। तस्मा देवेन वाति अवत्वा "समणेन वा ब्राह्मणेन वा केनचि वा मनुस्सभूतेना"ति वुत्तं । येन भगवा तेनुपसङ्कमिंसूति भगवतो आगमनं सुत्वा “अम्हेहि गन्त्वापि न भगवा आनीतो, दूतं पेसेत्वापि न पक्कोसापितो, सयमेव पन महाभिक्खुसङ्घपरिवारो अम्हाकं वसनट्ठानं सम्पत्तो, अम्हेहि च सन्धागारसाला कारिता, एत्थ मयं दसबलं आनेत्वा मङ्गलं भणापेस्सामा"ति चिन्तेत्वा उपसङ्कमिंसु । २९८. येन सन्धागारं तेनुपसङ्कमिंसूति तं दिवसं किर सन्धागारे चित्तकम्मं निट्ठपेत्वा अट्टका मुत्तमत्ता होन्ति, बुद्धा च नाम अरअज्झासया अरारामा, अन्तोगामे वसेय्यु 139 Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा वा नो वा । तस्मा भगवतो मनं जानित्वाव पटिजग्गिस्सामाति चिन्तेत्वा ते भगवन्तं उपसङ्कमिंसु । इदानि पन मनं लभित्वा पटिजग्गितुकामा येन सन्धागारं तेनुपसङ्कमिंसु । सब्बसन्थरिन्ति यथा सब्बं सन्थतं होति, एवं । येन भगवा तेनुपसङ्कमिंसूति एत्थ पन ते मल्लराजानो सन्धागारं पटिजग्गित्वा नगरवीथियोपि सम्मज्जापेत्वा धजे उस्सापेत्वा गेहद्वारेसु पुण्णघटे च कदलियो च ठपापेत्वा सकलनगरं दीपमालादीहि विप्पकिण्णतारकं विय कत्वा खीरपायके दारके खीरं पाय्येथ, दहरे कुमारे लहुं लहुं भोजापेत्वा सयापेथ, उच्चासद्दं मा करित्थ, अज्ज एकरत्तिं सत्था अन्तोगामे वसिस्सति, बुद्धा नाम अप्पसद्दकामा होन्तीति भेरिं चरापेत्वा सयं दण्डदीपिकं आदाय येन भगवा तेनुपसङ्कमिंसु । २९९. भगवन्तंयेव पुरक्खत्वाति भगवन्तं पुरतो कत्वा । तत्थ भगवा भिक्खूनञ्चेव उपासकानञ्च मज्झे निसिन्नो अतिविय विरोचति, समन्तपासादिको सुवण्णदण्णो अभिरूपो दस्सनीयो । पुरिमकायतो सुवण्णवण्णा रस्मि उट्ठहित्वा असीतित्थं नं गण्हाति । पच्छिमकायतो । दक्खिणहत्थतो । वामहत्थतो सुवण्णवण्णा रस्मि उट्ठहित्वा असीतिहत्थं ठानं गण्हाति । उपरि केसन्ततो पट्ठाय सब्बकेसावट्टेहि मोरगीववण्णा रस्मि उट्ठहित्वा गगनतले असीतिहत्थं ठानं गण्हाति । हेट्ठा पादतलेहि पवाळवण्णा रस्मि उट्ठहित्वा घनपथवियं असीतिहत्थं ठानं गण्हाति । एवं समन्ता असीति हत्थमत्तं ठानं छब्बण्णा बुद्धरस्मियो विज्जोतमाना विप्फन्दमाना विधावन्ति । सब्बे दिसाभागा सुवण्णचम्पकपुप्फेहि विकिरियमाना विय सुवण्णघटतो निक्खन्तसुवण्णरसधाराहि सिञ्चमाना विय पसारितसुवण्णपटपरिक्खित्ता विय वेरम्भवातसमुट्ठितकिंसुककणिकारपुप्फण्णसमाकिण्णा विय च विप्पकासन्ति । ( १०.२९९-२९९) भगवतोप असीतिअनुब्यञ्जनब्यामप्पभाद्वत्तिंसवरलक्खणसमुज्जलं सरीरं समुग्गततारकं विय गगनतलं, विकसितमिव पदुमवनं, सब्बपालिफुल्लो विय योजनसतिको पारिच्छत्तको परिपाटिया ठपितानं द्वत्तिंसचन्दानं द्वत्तिंससूरियानं द्वत्तिंसचक्कवत्तिराजानं द्वत्तिंसदेवराजानं द्वत्तिंसमहाब्रह्मानं सिरिया सिरिं अभिभवमानं विय विरोचति । परिवारेत्वा निसिन्ना भिक्खूपि सब्बेव अप्पिच्छा सन्तुट्टा पविवित्ता असंसट्टा आरद्धवीरिया वत्तारो वचनक्खमा चोदका पापगरहिनो सीलसम्पन्ना समाधिसम्पन्ना पञ्ञाविमुत्ति विमुत्तिञाणदस्सनसम्पन्ना । तेहि परिवारितो भगवा रत्तकम्बलपरिक्खित्तो वि 140 Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०.३००-३००) उब्भतकनवसन्धागारवण्णना सुवण्णक्खन्धो, रत्तपदुमवनसण्डमज्झगता विय सुवण्णनावा, पवाळवेदिकापरिक्खित्तो विय सुवण्णपासादो विरोचिस्थ । असीतिमहाथेरापि नं मेघवण्णं पंसुकूलं पारुपित्वा मणिवम्मवम्मिता विय महानागा परिवारयिंसु वन्तरागा भिन्नकिलेसा विजटितजटा छिन्नबन्धना कुले वा गणे वा अलग्गा । इति भगवा सयं वीतरागो वीतरागेहि, वीतदोसो वीतदोसेहि, वीतमोहो वीतमोहेहि, नित्तण्हो नित्तण्हेहि, निक्किलेसो निक्किलेसेहि, सयं बुद्धो बहुस्सुतबुद्धेहि परिवारितो पत्तपरिवारितं विय केसरं, केसरपरिवारिता विय कण्णिका, अट्ठनागसहस्सपरिवारितो विय छद्दन्तो नागराजा, नवुतिहंससहस्सपरिवारितो विय धतरट्ठो हंसराजा, सेनङ्गपरिवारितो विय चक्कवत्तिराजा, मरुगणपरिवारितो विय सक्को देवराजा, ब्रह्मगणपरिवारितो विय हारितो महाब्रह्मा, असमेन बुद्धवेसेन अपरिमाणेन बुद्धविलासेन तस्सं परिसति निसिन्नो पावेय्यके मल्ले बहुदेव रत्तिं धम्मिया कथाय सन्दस्सेत्वा उय्योजेसि । एत्थ च धम्मिकथा नाम सन्धागारअनुमोदनप्पटिसंयुत्ता पकिण्णककथा वेदितब्बा । तदा हि भगवा आकासगङ्गं ओतारेन्तो विय पथवोज आकड्डन्तो विय महाजम्बु मत्थके गहेत्वा चालेन्तो विय योजनियमधुगण्डं चक्कयन्तेन पीळेत्वा मधुपानं पायमानो विय च पावेय्यकानं मल्लानं हितसुखावहं पकिण्णककथं कथेसि । ३००. तुण्हीभूतं तुण्हीभूतन्ति यं यं दिसं अनुविलोकेति, तत्थ तत्थ तुण्हीभूतमेव । अनुविलोकेत्वाति मंसचक्खुना दिब्बचक्खुनाति द्वीहि चक्खूहि ततो ततो विलोकेत्वा । मंसचक्खुना हि नेसं बहिद्धा इरियापथं परिग्गहेसि । तत्थ एकभिक्खुस्सापि नेव हत्थकुक्कुच्चं न पादकुक्कुच्चं अहोसि, न कोचि सीसमुक्खिपि, न कथं कथेसि, न निदायन्तो निसीदि । सब्बेपि तीहि सिक्खाहि सिक्खिता निवाते पदीपसिखा विय निच्चला निसीदिंसु । इति नेसं इमं इरियापथं मंसचक्खुना परिग्गहेसि । आलोकं पन वड्डयित्वा दिब्बचक्खुना हदयरूपं दिस्वा अब्भन्तरगतं सीलं ओलोकेसि । सो अनेकसतानं भिक्खूनं अन्तोकुम्भियं जलमानं पदीपं विय अरहत्तुपगं सीलं अद्दस । आरद्धविपस्सका हि ते भिक्खू । इति नेसं सीलं दिस्वा “इमेपि भिक्खू मय्हं अनुच्छविका, अहम्पि इमेसं अनुच्छविको"ति चक्खुतलेसु निमित्तं ठपेत्वा भिक्खुसङ्घ ओलोकेत्वा आयस्मन्तं सारिपुत्तं आमन्तेसि “पिट्टि मे आगिलायतीति । कस्मा आगिलायति ? भगवतो हि छब्बस्सानि 141 Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (१०.३०१-३०३) महापधानं पदहन्तस्स महन्तं कायदुक्खं अहोसि । अथस्स अपरभागे महल्लककाले पिढिवातो उप्पज्जि। सङ्घाटिं पापेत्वाति सन्धागारस्स किर एकपस्से ते राजानो कप्पियमञ्चकं पञ्ञपेसुं "अप्पेव नाम सत्था निपज्जेय्या"ति । सत्थापि चतूहि इरियापथेहि परिभुत्तं इमेसं महप्फलं भविस्सतीति तत्थ सङ्घाटिं पापेत्वा निपज्जि । भिन्ननिगण्ठवत्थुवण्णना ३०१. तस्स कालतिरियायातिआदीसु यं वत्तब्बं, तं सब्द हेट्ठा वुत्तमेव । ३०२. आमन्तेसीति भण्डनादिवूपसमकरं स्वाख्यातं धम्मं देसेतुकामो आमन्तेसि । एककवण्णना ३०३. तत्थाति तस्मिं धम्मे। समायितब्बन्ति समग्गेहि गायितब्बं, एकवचनेहि अविरुद्धवचनेहि भणितब्बं । न विवदितब्बन्ति अत्थे वा ब्यञ्जने वा विवादो न कातब्बो । एको धम्मोति एककदुकतिकादिवसेन बहुधा सामग्गिरसं दस्सेतुकामो पठमं ताव "एको धम्मो"ति आह । सब्बे सत्ताति कामभवादीसु सञ्जाभवादीसु एकवोकारभवादीसु च सब्बभवेस सब्बे सत्ता। आहारद्वितिकाति आहारतो ठिति एतेसन्ति आहारद्वितिका। इति सब्बसत्तानं ठिति हेतु आहारो नाम एको धम्मो अम्हाकं सत्यारा याथावतो ञत्वा सम्मदक्खातो आवुसोति दीपेति ।। __ननु च एवं सन्ते यं वुत्तं “असञसत्ता देवा अहेतुका अनाहारा अफस्सका"तिआदि, (विभं० १०१७) तं वचनं विरुज्झतीति, न विरुज्झति । तेसहि झानं आहारो होति । एवं सन्तेपि "चत्तारोमे, भिक्खवे, आहारा भूतानं वा सत्तानं ठितिया सम्भवेसीनं वा अनुग्गहाय। कतमे चत्तारो? कबळीकारो आहारो ओळारिको वा सुखुमो वा, फस्सो दुतियो, मनोसञ्चेतना ततिया, विज्ञाणं चतुत्थ"न्ति (सं० नि० १.२.११) इदम्पि विरुज्झतीति, इदम्पि न विरुज्झति । एतस्मिहि सुत्ते निप्परियायेन आहारलक्खणाव धम्मा आहाराति वुत्ता। इध पन परियायेन पच्चयो आहारोति वुत्तो । 142 Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०.३०३ - ३०३) एककवण्णना सब्बधम्मानञ्हि पच्चयो लद्धुं वट्टति । सो च यं यं फलं जनेति, तं तं आहरति नाम, तस्मा आहारोति वुच्चति । तेनेवाह “अविज्जम्पाहं, भिक्खवे, साहारं वदामि, नो अनाहारं । को च, भिक्खवे, अविज्जाय आहारो ? पञ्चनीवरणातिस्स वचनीयं । पञ्चनीवरणेपाहं, भिक्खवे, साहारे वदामि, नो अनाहारे । को च, भिक्खवे, पञ्चन्नं नीवरणानं आहारो ? अयोनिसोमनसिकारोतिस्स वचनीय "न्ति (अ० नि० ३.१०.६१) । अयं इध अधिप्पेतो । एतस्मिहि पच्चयाहारे गहिते परियायाहारोपि निप्परियायाहारोपि सब्बो गहितोव होति । तत्थ असञ्ञभवे पच्चयाहारो लब्भति । अनुप्पन्ने हि बुद्धे तित्थायतने पब्बजिता वायोकसिणे परिकम्मं कत्वा चतुत्थज्झानं निब्बत्तेत्वा ततो वुट्ठाय धी चित्तं धिब्बतेतं चित्तं चित्तस्स नाम अभावोयेव साधु, चित्तहि निस्सायेव वधबन्धादिपच्चयं दुक्खं उप्पज्जति । चित्ते असति नत्थेतन्ति खन्तिं रुचिं उप्पादेत्वा अपरिहीनज्झाना कालङ्कत्वा असञ्ञभवे निब्बत्तन्ति । यो यस्स इरियापथो मनुस्सलोके पणिहितो अहोसि, सो तेन इरियापथेन निब्बत्तित्वा पञ्च कप्पसतानि ठितो वा निसिन्नो वा निपन्नो वा होति । एवरूपानम्पि सत्तानं पच्चयाहारो लब्भति । ते हि यं झानं भावेत्वा निब्बत्ता, तदेव नेसं पच्चयो होति । यथा जियावेगेन खित्तसरो याव जियावेगो अत्थि, ताव गच्छति, एवं याव झानपच्चयो अत्थि, ताव तिट्ठन्ति । तस्मिं निट्ठिते खीणवेगो सरो विय पतन्ति । ये पन ते नेरयिका नेव उट्ठानफलूपजीवी न पुञ्ञफलूपजीवीति वुत्ता, तेसं को आहारोति ? तेसं कम्ममेव आहारो । किं पञ्च आहारा अत्थीति चे । पञ्च, न पञ्चाति इदं न वत्तब्बं। ननु पच्चयो आहारोति वुत्तमेतं । तस्मा येन कम्मेन ते निरये निब्बत्ता, तदेव तेसं ठितिपच्चयत्ता आहारो होति । यं सन्धाय इदं वुत्तं " न च ताव कालङ्करोति, याव न तं पापकम्मं ब्यन्ती होती " ति (म० नि० ३.२५० ) । १४३ कबळीकारं आहारं आरम्भ चेत्थ विवादो न कातब्बो । मुखे उप्पन्नो खेळोपि हि तेसं आहारकिच्चं साधेति । खेळोपि हि निरये दुक्खवेदनियो हुत्वा पच्चयो होति, सग्गे सुखवेदनियो। इति कामभवे निप्परियायेन चत्तारो आहारा । रूपारूपभवेसु ठपेत्वा असञ्ञ सेसानं तयो । असञ्ञानञ्चेव अवसेसानञ्च पच्चयाहारोति इमिना आहारेन ‘“सब्बे सत्ता आहारट्ठितिका "ति एतं पञ्हं कथेत्वा "अयं खो आवुसो "ति एवं निय्यातनम्पि “अत्थि खो आवुसो "ति पुन उद्धरणम्पि अकत्वा “सब्बे सत्ता सङ्घारट्ठतिका ति दुतियप विस्सज्जेसि । 143 Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (१०.३०४-३०४) कस्मा पन न निय्यातेसि न उद्धरित्थ ? तत्थ तत्थ निय्यातियमानेपि उद्धरियमानेपि परियापुणितुं वाचेतुं दुक्खं होति, तस्मा द्वे एकाबद्धे कत्वा विस्सज्जेसि । इमस्मिम्पि विस्सज्जने हेट्ठा वृत्तपच्चयोव अत्तनो फलस्स सङ्घरणतो सङ्खारोति वुत्तो। इति हेट्ठा आहारपच्चयो कथितो, इध सङ्खारपच्चयोति अयमेत्थ हेट्ठिमतो विसेसो। “हेट्ठा निप्परियायाहारो गहितो, इध परियायाहारोति एवं गहिते विसेसो पाकटो भवेय्य, नो च गण्हिंसूति महासीवत्थेरो आह । इन्द्रियबद्धस्सपि हि अनिन्द्रियबद्धस्सपि पच्चयो लद्धं वट्टति । विना पच्चयेन धम्मो नाम नत्थि । तत्थ अनिन्द्रियबद्धस्स तिणरुक्खलतादिनो पथवीरसो आपोरसो च पच्चयो होति । देवे अवस्सन्ते हि तिणादीनि मिलायन्ति, वस्सन्ते च पन हरितानि होन्ति । इति तेसं पथवीरसो आपोरसो च पच्चयो होति । इन्द्रियबद्धस्स अविज्जा तण्हा कम्मं आहारोति एवमादयो पच्चया, इति हेट्ठा पच्चयोयेव आहारोति कथितो, इध सङ्खारोति । अयमेवेत्थ विसेसो । __ अयं खो, आवुसोति आवुसो अम्हाकं सत्थारा महाबोधिमण्डे निसीदित्वा सयं सब्ब ताणेन सच्छिकत्वा अयं एकधम्मो देसितो। तत्थ एकधम्मे तुम्हेहि सब्बेहेव सङ्गायितब्बं न विवदितब् । यथयिदं ब्रह्मचरियन्ति यथा सजायमानानं तुम्हाकं इदं सासनब्रह्मचरियं अद्धनियं अस्स । एकेन हि भिक्खुना “अस्थि, खो आवुसो, एको धम्मो सम्मदक्खातो। कतमो एको धम्मो ? सब्बे सत्ता आहारहितिका। सब्बे सत्ता सङ्खारहितिका'"ति कथिते तस्स कथं सुत्वा अञो कथेस्सति । तस्सपि अञोति एवं परम्परकथानियमेन इदं ब्रह्मचरियं चिरं तिट्ठमानं सदेवकस्स लोकस्स अत्थाय हिताय भविस्सतीति एककवसेन धम्मसेनापति सारिपुत्तत्थेरो सामग्गिरसं दस्सेसीति । एककवण्णना निहिता। दुकवण्णना ३०४. इति एककवसेन सामग्गिरसं दस्सेत्वा इदानि दुकवसेन दस्सेतुं पुन देसनं आरभि । तत्थ नामरूपदुके नामन्ति चत्तारो अरूपिनो खन्धा निब्बानञ्च । तत्थ चत्तारो खन्धा नामनढेन नाम। नामनटेनाति नामकरणद्वैन । यथा हि महाजनसम्मतत्ता 144 Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०.३०४-३०४) दुकवण्णना महासम्मतस्स “महासम्मतो''ति नामं अहोसि, यथा मातापितरो “अयं तिस्सो नाम होतु, फुस्सो नाम होतू"ति एवं पुत्तस्स कित्तिमनामं करोन्ति, यथा वा "धम्मकथिको विनयधरो"ति गुणतो नाम आगच्छति, न एवं वेदनादीनं । वेदनादयो हि महापथवीआदयो विय अत्तनो नामं करोन्ताव उप्पज्जन्ति । तेसु उप्पन्नेसु तेसं नामं उप्पन्नमेव होति । न हि वेदनं उप्पन्नं “त्वं वेदना नाम होही"ति, कोचि भणति, न चस्सा येन केनचि कारणेन नामग्गहणकिच्चं अस्थि, यथा पथविया उप्पन्नाय "त्वं पथवी नाम होही"ति नामग्गहणकिच्चं नत्थि, चक्कवाळसिनेरुम्हि चन्दिमसूरियनक्खत्तेसु उप्पन्नेसु "त्वं चक्कवाळं नाम, त्वं नक्खत्तं नाम होही"ति नामग्गहणकिच्चं नत्थि, नामं उप्पन्नमेव होति, ओपपातिका पञत्ति निपतति, एवं वेदनाय उप्पन्नाय "त्वं वेदना नाम होही''ति नामग्गहणकिच्चं नत्थि, ताय उप्पन्नाय वेदनाति नाम उप्पन्नमेव होति । सादीसुपि एसेव नयो अतीतेपि हि वेदना वेदनायेव । सञआ। सङ्घारा। विज्ञाणं विज्ञाणमेव । अनागतेपि । पच्चुप्पन्नेपि। निब्बानं पन सदापि निब्बानमेवाति । नामनढेन नाम । नमनटेनापि चेत्थ चत्तारो खन्धा नामं । ते हि आरम्मणाभिमुखं नमन्ति । नामनढेन सबम्पि नामं। चत्तारो हि खन्धा आरम्मणे अचमनं नामन्ति, निब्बानं आरम्मणाधिपतिपच्चयताय अत्तनि अनवज्जधम्मे नामेति । रूपन्ति चत्तारो च महाभूता चतुन्नञ्च महाभूतानं उपादाय रूपं, तं सब्बम्पि रुप्पनटेन रूपं । तस्स वित्थारकथा विसुद्धिमग्गे वुत्तनयेनेव वेदितब्बा । ____ अविज्जाति दुक्खादीसु अाणं । अयम्पि वित्थारतो विसुद्धिमग्गे कथितायेव । भवतण्हाति भवपत्थना । यथाह "तत्थ कतमा भवतण्हा ? यो भवेसु भवच्छन्दो''तिआदि (ध० स० १३१९)। भवदिट्ठीति भवो वुच्चति सस्सतं, सस्सतवसेन उप्पज्जनकदिट्ठि । सा “तत्थ कतमा भवदिट्टि ? 'भविस्सति अत्ता च लोको चाति या एवरूपा दिट्ठि दिविगत"न्तिआदिना (ध० स० १३२०) नयेन अभिधम्मे वित्थारिता । विभवदिट्ठीति विभवो वुच्चति उच्छेदं, उच्छेदवसेन उप्पज्जनकदिट्ठि। सापि “तत्थ कतमा विभवदिट्टि ? 'न भविस्सति अत्ता च लोको चाति (ध० स० २८५)। या एवरूपा दिट्ठि दिद्विगत'"न्तिआदेिना (ध० स० १३२१) नयेन तत्थेव वित्थारिता । 145 Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (१०.३०४-३०४) __ अहिरिकन्ति “यं न हिरीयति हिरीयितब्बेना"ति (ध० स० १३२८) एवं वित्थारिता निल्लज्जता । अनोत्तप्पन्ति “यं न ओत्तप्पति ओत्तप्पितब्बेना"ति (ध० स० १३२९) एवं वित्थारितो अभायनकआकारो | हिरी च ओत्तप्पञ्चाति “यं हिरीयति हिरीयितब्बेन, ओत्तप्पति ओत्तप्पितब्बेना"ति (ध० स० १३३०-३१) एवं वित्थारितानि हिरिओत्तप्पानि । अपि चेत्थ अज्झत्तसमुट्ठाना हिरी, बहिद्धासमुट्ठानं ओत्तप्पं। अत्ताधिपतेय्या हिरी, लोकाधिपतेय्यं ओत्तप्पं । लज्जासभावसण्ठिता हिरी, भयसभावसण्ठितं ओत्तप्पं । वित्थारकथा पनेत्थ सब्बाकारेन विसुद्धिमग्गे वुत्ता। दोवचस्सताति दुक्खं वचो एतस्मिं विप्पटिकूलगाहिम्हि विपच्चनीकसाते अनादरे पुग्गलेति दुब्बचो, तस्स कम्मं दोवचस्सं, तस्स भावो दोवचस्सता। वित्थारतो पनेसा “तत्थ कतमा दोवचस्सता ? सहधम्मिके वुच्चमाने दोवचस्साय"न्ति (ध० स० १३३२) अभिधम्मे आगता | सा अत्थतो सङ्खारक्खन्धो होति । "चतुन्नञ्च खन्धानं एतेनाकारेन पवत्तानं एतं अधिवचनन्ति वदन्ति । पापमित्तताति पापा अस्सद्धादयो पुग्गला एतस्स मित्ताति पापमित्तो, तस्स भावो पापमित्तता। वित्थारतो पनेसा - “तत्थ कतमा पापमित्तता ? ये ते पुग्गला अस्सद्धा दुस्सीला अप्पस्सुता मच्छरिनो दुप्पा । या तेसं सेवना निसेवना संसेवना भजना संभजना भत्ति संभत्ति तंसम्पवङ्कता''ति (ध० स० १३३३) एवं आगता | सापि अत्थतो दोवचस्सता विय दट्ठब्बा। सोवचस्सता च कल्याणमित्तता च वुत्तप्पटिपक्खनयेन वेदितब्बा । उभोपि पनेता इध लोकियलोकुत्तरमिस्सका कथिता । आपत्तिकुसलताति “पञ्चपि आपत्तिक्खन्धा आपत्तियो, सत्तपि आपत्तिक्खन्धा आपत्तियो । या तासं आपत्तीनं आपत्तिकुसलता पञ्जा पजानना''ति (ध० स० १३३६) एवं वुत्तो आपत्तिकुसलभावो । आपत्तिवुट्ठानकुसलताति “या ताहि आपत्तीहि वुट्ठानकुसलता पञा पजानना''ति (ध० स० १३३७) एवं वुत्ता सह कम्मवाचाय आपत्तीहि वुढानपरिच्छेदजानना पञ्जा । 146 Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०.३०४-३०४) दुकवण्णना १४७ समापत्तिकुसलताति “अत्थि सवितक्कसविचारा समापत्ति, अस्थि अवितक्कविचारमत्ता समापत्ति, अत्थि अवितक्कअविचारा समापत्ति । या तासं समापत्तीनं कुसलता पञ्जा पजानना''ति (ध० स० १३३८) एवं वुत्ता सह परिकम्मेन अप्पनापरिच्छेदजानना पञा। समापत्तिबुट्ठानकुसलताति “या ताहि समापत्तीहि वुट्ठानकुसलता पञ्जा पजानना''ति (ध० स० १३३९) एवं वुत्ता यथापरिच्छिन्नसमयवसेनेव समापत्तितो वुट्टानसमत्था "एत्तकं गते सूरिये उट्ठहिस्सामी"ति वुट्ठानकालपरिच्छेदका पञ्जा । धातुकुसलताति “अट्ठारस धातुयो चक्खुधातु...पे०... मनोविज्ञाणधातु । या तासं धातूनं कुसलता पञा पजानना''ति (ध० स० १३४०) एवं वुत्ता अट्ठारसन्नं धातूनं सभावपरिच्छेदका सवनधारणसम्मसनपटिवेधपा | मनसिकारकुसलताति “या तासं धातूनं मनसिकारकुसलता पञा पजानना''ति (ध० स० १३४१) एवं वुत्ता तासंयेव धातूनं सम्मसनपटिवेधपच्चवेक्खणपञ्जा। आयतनकुसलताति "द्वादसायतनानि चक्खायतनं...पे०... धम्मायतनं । या तेसं आयतनानं आयतनकुसलता पञा पजानना"ति (ध० स० १३४२) एवं वुत्ता द्वादसन्नं आयतनानं उग्गहमनसिकारपजानना पञा। अपिच धातकसलतापि उग्गहमनसिकारसवनसम्मसनपटिवेधपच्चवेक्खणेसु वत्तति मनसिकारकुसलतापि आयतनकुसलतापि । अयं पनेत्थ विसेसो, सवनउग्गहपच्चवेक्खणा लोकिया, पटिवेधो लोकुत्तरो, सम्मसनमनसिकारा लोकियलोकुत्तरमिस्सका। पटिच्चसमुप्पादकुसलताति "अविज्जापच्चया सङ्खारा...पे०... समुदयो होतीति या तत्थ पञा पजानना'ति (ध० स० १३४३) एवं वुत्ता द्वादसन्नं पच्चयाकारानं उग्गहादिवसेन पवत्ता पञ्जा। ___ठानकुसलताति “ये ये धम्मा येसं येसं धम्मानं हेतुपच्चया उप्पादाय तं तं ठानन्ति या तत्थ पञा पजानना'"ति (ध० स० १३४४) एवं वुत्ता “चक्खं वत्थु कत्वा रूपं आरम्मणं कत्वा उप्पन्नस्स चक्खुविआणस्स चक्खुरूपं (ध० स० अट्ठ० १३४४) ठानञ्चेव कारणञ्चा'"ति एवं ठानपरिच्छिन्दनसमत्था पञा। अट्ठानकुसलताति “ये ये धम्मा येसं येसं धम्मानं न हेतू न पच्चया उप्पादाय तं तं अट्ठानन्ति या तत्थ पञ्जा पजानना''ति (ध० स० १३४५) एवं वुत्ता “चक्युं वत्थु कत्वा रूपं आरम्मणं कत्वा सोतविाणादीनि नुप्पज्जन्ति, तस्मा तेसं चक्खुरूपं न ठानं न कारण"न्ति एवं अट्ठानपरिच्छिन्दनसमत्था पञा अपिच एतस्मिं दुके “कित्तावता पन, ' भन्ते, 147 Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (१०.३०४-३०४) ठानाठानकुसलो भिक्खूति अलं वचनायाति । इधानन्द, भिक्खु अट्ठानमेतं अनवकासो, यं दिट्ठिसम्पन्नो पुग्गलो कञ्चि सङ्खारं निच्चतो उपगच्छेय्य, नेतं ठानं विज्जतीति पजानाति । ठानञ्च खो एतं विज्जति, यं पुथुज्जनो कञ्चि सङ्खारं निच्चतो उपगच्छेय्या"ति (म० नि० ३.१२७) इमिनापि सुत्तेन अत्थो वेदितब्बो । __ अज्जवन्ति गोमुत्तवङ्कता चन्दवङ्कता नङ्गलकोटिवङ्कताति तयो अनज्जवा । एकच्चो हि भिक्खु पठमवये एकवीसतिया अनेसनासु छसु च अगोचरेसु चरति, मज्झिमपच्छिमवयेसु लज्जी कुक्कुच्चको सिक्खाकामो होति, अयं गोमुत्तवकता नाम । एको पठमवयेपि पच्छिमवयेपि चतुपारिसुद्धिसीलं पूरेति, लज्जी कुक्कुच्चको सिक्खाकामो होति, मज्झिमवये पुरिमसदिसो, अयं चन्दवङ्कता नाम । एको पठमवयेपि मज्झिमवयेपि चतुपारिसुद्धिसीलं पूरेति, लज्जी कुक्कुच्चको सिक्खाकामो होति, पच्छिमवये पुरिमसदिसो अयं नङ्गलकोटिवकता नाम । एको सब्बमेतं वङ्कतं पहाय तीसुपि वयेसु पेसलो लज्जी कुक्कुच्चको सिक्खाकामो होति। तस्स यो सो उजुभावो, इदं अज्जवं नाम । अभिधम्मपि वुत्तं- “तत्थ कतमो अज्जवो। या अज्जवता अजिम्हता अवकता अकुटिलता, अयं वुच्चति अज्जवो"ति (ध० स० १३४६) । लज्जवन्ति “तत्थ कतमो लज्जवो ? यो हिरीयति हिरीयितब्बेन हिरीयति पापकानं अकुसलानं धम्मानं समापत्तिया । अयं वुच्चति लज्जवो"ति एवं वुत्तो लज्जीभावो । खन्तीति “तत्थ कतमा खन्ति ? या खन्ति खमनता अधिवासनता अचण्डिक्कं अनस्सुरोपो अत्तमनता चित्तस्सा"ति (ध० स० १३४८) एवं वुत्ता अधिवासनखन्ति । सोरच्चन्ति “तत्थ कतमं सोरच्चं ? यो कायिको अवीतिक्कमो, वाचसिको अवीतिक्कमो, कायिकवाचसिको अवीतिक्कमो । इदं वुच्चति सोरच्चं । सब्बोपि सीलसंवरो सोरच्च"न्ति (ध० स० १३४९) एवं वुत्तो सुरतभावो । साखल्यन्ति "तत्थ कतमं साखल्यं ? या सा वाचा अण्डका कक्कसा परकटुका पराभिसज्जनी कोधसामन्ता असमाधिसंवत्तनिका, तथारूपिं वाचं पहाय या सा वाचा नेळा कण्णसुखा पेमनीया हदयङ्गमा पोरी बहुजनकन्ता बहुजनमनापा, तथारूपिं वाचं भासिता होति । या तत्थ सण्हवाचता सखिलवाचता अफरुसवाचता । इदं वुच्चति साखल्य"न्ति (ध० स० १३५०) एवं वुत्तो सम्मोदकमुदुकभावो। पटिसन्थारोति अयं लोकसन्निवासो आमिसेन धम्मेन चाति द्वीहि छिद्दो, तस्स तं छिदं यथा न पचायति, एवं पीठस्स 148 Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०.३०४-३०४) दुकवण्णना १४९ विय पच्चत्थरणेन आमिसेन धम्मेन च पटिसन्थरणं । अभिधम्मपि वुत्तं “तत्थ कतमो पटिसन्थारो ? आमिसपटिसन्थारो च धम्मपटिसन्थारो च । इधेकच्चो पटिसन्थारको होति आमिसपटिसन्थारेन वा धम्मपटिसन्थारेन वा । अयं वुच्चति पटिसन्थारो"ति (ध० स० १३५१)। एत्थ च आमिसेन सङ्ग्रहो आमिसपटिसन्थारो नाम । तं करोन्तेन मातापितूनं भिक्खुगतिकस्स वेय्यावच्चकरस्स रो चोरानञ्च अग्गं अग्गहेत्वापि दातुं वट्टति । आमसित्वा दिन्ने हि राजानो च चोरा च अनत्थम्पि करोन्ति जीवितक्खयम्पि पापेन्ति, अनामसित्वा दिन्ने अत्तमना होन्ति । चोरनागवत्थुआदीनि चेत्थ वत्थूनि कथेतब्बानि । तानि समन्तपासादिकाय विनयट्ठकथायं (पाचि० अट्ठ० १८५-७) वित्थारितानि । सक्कच्चं उद्देसदानं पाळिवण्णना धम्मकथाकथनन्ति एवं धम्मेन सङ्गहो धम्मपटिसन्थारोनाम । अविहिंसाति करुणापि करुणापुब्बभागोपि । वुत्तम्पि चेतं- "तत्थ कतमा अविहिंसा? या सत्तेसु करुणा करुणायना करुणायितत्तं करुणाचेतोविमुत्ति, अयं वुच्चति अविहिंसा''ति । सोचेय्यन्ति मेत्ताय च मेत्तापुब्बभागस्स च वसेन सुचिभावो । वुत्तम्पि चेतं- "तत्थ कतमं सोचेय्यं ? या सत्तेसु मेत्ति मेत्तायना मेत्तायितत्तं मेत्ताचेतोविमुत्ति, इदं वुच्चति सोचेय्यन्ति । मुट्ठस्सच्चन्ति सतिविप्पवासो, यथाह "तत्थ कतमं मुट्ठस्सच्चं? या असति अननुस्सति अप्पटिस्सति अस्सरणता अधारणता पिलापनता सम्मुस्सनता, इदं वुच्चति मुट्ठस्सच्चं" (ध० स० १३५६)। असम्पजञन्ति, "तत्थ कतमं असम्पजलं? यं अजाणं अदस्सनं अविज्जालङ्गी मोहो अकुसलमूल"न्ति एवं वुत्ता अविज्जायेव । सति सतियेव । सम्पजनं आणं । इन्द्रियेसु अगुत्तद्वारताति “तत्थ कतमा इन्द्रियेसु अगुत्तद्वारता ? इधेकच्चो चक्खुना रूपं दिस्वा निमित्तग्गाही होती"तिआदिना (ध० स० १३५२) नयेन वित्थारितो इन्द्रियसंवरभेदो । भोजने अमत्त ताति “तत्थ कतमा भोजने अमत्तञ्जता ? इधेकच्चो अप्पटिसङ्खा अयोनिसो आहारं आहारेति दवाय मदाय मण्डनाय विभूसनाय । या तत्थ असन्तुट्टिता अमत्त ता अप्पटिसङ्खा भोजने'"ति एवं आगतो भोजने अमत्त भावो । अनन्तरदुको वुत्तप्पटिपक्खनयेन वेदितब्बो । पटिसङ्खानबलन्ति “तत्थ कतमं पटिसङ्खानबलं? या पञ्जा पजानना"ति एवं 149 Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा वित्थारितं अप्पटिसङ्घाय अकम्पनञाणं । भावनाबलन्ति भावेन्तस्स उप्पन्नं बलं । अत्थतो वीरियसम्बोज्झङ्गसीसेन सत्त बोझङ्गा होन्ति । वुत्तम्पि चेतं - " तत्थ कतमं भावनाबलं ? या कुसलानं धम्मानं आसेवना भावना बहुलीकम्मं, इदं वुच्चति भावनाबलं । सत्तबोज्झङ्गा भावनाबल' 'न्ति । सतिबलन्ति अस्सतिया अकम्पनवसेन सतियेव । समाधिबलन्ति उद्धच्चे अकम्पनवसेन समाधियेव । समथो समाधि । विपस्सना पञ्ञा । समथोव तं आकारं गहेत्वा पुन पवत्तेतब्बस्स समथस्स निमित्तवसेन समथनिमित्तं पग्गाहनिमित्तेपि एसेव नयो । पग्गाहो वीरियं। अविक्खेपो एकग्गता । इमेहि पन सति च सम्पजञ्ञञ्च पटिसङ्घानबलञ्च भावनाबलञ्च सतिबलञ्च समाधिबलञ्च समथो च विप्पस्सना च समथनिमित्तञ्च पग्गाहनिमित्तञ्च पग्गाहो च अविक्खेपो चाति छहि दुकेहि परतो सीलदिट्ठिसम्पदादुकेन च लोकियोकुत्तरमिस्सका धम्मा कथिता । ( १०.३०४-३०४) सीलविपत्तीति " तत्थ कतमा सीलविपत्ति ? कायिको वीतिक्कमो...पे०... सब्बम्पि दुस्सील्यं सीलविपत्ती 'ति एवं वुत्तो सीलविनासको असंवरो । दिट्ठिविपत्तीति "तत्थ कतमा दिट्ठविपत्ति ? नत्थि दिन्नं नत्थि यिट्ठन्ति एवं आगता सम्मादिट्ठिविनासिका मिच्छादिट्ठि | सीलसम्पदाति " तत्थ कतमा सीलसम्पदा ? कायिको अवीतिक्कमो "ति एवं पुब्बे वुत्तसोरच्चमेव सीलस्स सम्पादनतो परिपूरणतो “सीलसम्पदा "ति वृत्तं । एत्थ च "सब्बोपि सीलसंवरो सीलसम्पदा" ति इदं मानसिकपरियादानत्थं वृत्तं । दिट्ठिसम्पदाति “ तत्थ कतमा दिट्ठिसम्पदा ? अस्थि दिन्नं अत्थि यिट्टं... पे०... सच्छिकत्वा पवेदेन्तीति या एवरूपा पञ्ञा पजानना'ति एवं आगतं दिट्ठिपारिपूरिभूतं जाणं । सीलविसुद्धीति विसुद्धिं पापेतुं समत्थं सीलं । अभिधम्मे पनायं “ तत्थ कतमा सीलविसुद्धि ? कायिको अवीतिक्कमो वाचसिको अवीतिक्कमो कायिकवाचसिको अवतिक्कमो, अयं वुच्चति सीलविसुद्धी" ति एवं विभत्ता । दिट्ठविसुद्धीति विद्धिं पापेतुं समत्थं दस्सनं । अभिधम्मे पनायं “ तत्थ कतमा दिट्ठिविसुद्धि ? कम्मस्सकतञाणं सच्चानुलोमिकञाणं मग्गसमङ्गिस्सत्राणं फलसमङ्गिस्सञाण "न्ति एवं वृत्ता । एत्थ च तिविधं दुच्चरितं अत्तना कतम्पि परेन कतम्पि सकं नाम न होति अत्थभञ्जनतो । सुचरितं सकं नाम अत्थजननतोति एवं जाननं कम्मस्सकतञाणं नाम । तस्मिं ठत्वा बहुं वट्टगामिकम्मं 150 Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (१०.३०५-३०५) तेनेवाह "खये आणन्ति मग्गसमनिस्स आणं। अनुप्पादे आणन्ति फलसमनिस्स आण"न्ति । इमे खो, आवुसोतिआदि एकके वुत्तनयेनेव योजेतब्बं । इति पञ्चतिंसाय दुकानं वसेन थेरो सामग्गिरसं दस्सेसीति । दुकवण्णना निहिता। तिकवण्णना ३०५. इति दुकवसेन सामग्गिरसं दस्सेत्वा इदानि तिकवसेन दस्सेतुं पुन आरभि | तत्थ लुब्भतीति लोभो। अकुसलञ्च तं मूलञ्च, अकुसलानं वा मूलन्ति अकुसलमूलं । दुस्सतीति दोसो। मुव्हतीति मोहो। तेसं पटिपक्खनयेन अलोभादयो वेदितब्बा। दुटु चरितानि, विरूपानि वा चरितानीति दुचरितानि । कायेन दुच्चरितं, कायतो वा पवत्तं दुच्चरितन्ति कायदुच्चरितं । सेसेसुपि एसेव नयो । सुट्ठ चरितानि, सुन्दरानि वा चरितानीति सुचरितानि। द्वेपि चेते तिका पण्णत्तिया वा कम्मपथेहि वा कथेतब्बा । पञत्तिया ताव कायद्वारे पञ्चत्तसिक्खापदस्स वीतिक्कमो कायदुच्चरितं । अवीतिक्कमो कायसुचरितं। वचीद्वारे पञत्तसिक्खापदस्स वीतिक्कमो वचीदुच्चरितं, अवीतिक्कमो वचीसुचरितं। उभयत्थ पञ्चत्तस्स सिक्खापदस्स वीतिक्कमोव मनोदुच्चरितं, अवीतिक्कमो मनोसुचरितं। अयं पण्णत्तिकथा । पाणातिपातादयो पन तिस्सो चेतना कायद्वारेपि वचीद्वारेपि उप्पन्ना कायदुच्चरितं। चतस्सो मुसावादादिचेतना वचीदुच्चरितं। अभिज्झा ब्यापादो मिच्छादिट्ठीति तयो चेतनासम्पयुत्तधम्मा मनोदुच्चरितं । पाणातिपातादीहि विरमन्तस्स उप्पन्ना तिस्सो चेतनापि विरतियोपि कायसुचरितं । मुसावादादीहि विरमन्तस्स चतस्सो चेतनापि विरतियोपि वचीसुचरितं। अनभिज्झा अब्यापादो सम्मादिट्ठीति तयो चेतनासम्पयुत्तधम्मा मनोसुचरितन्ति अयं कम्मपथकथा । कामपटिसंयुत्तो वितक्को कामवितक्को। ब्यापादपटिसंयुत्तो वितक्को ब्यापादवितक्को। विहिंसापटिसंयुत्तो वितक्को विहिंसावितक्को। तेसु द्वे सत्तेसुपि सङ्खारेसुपि उप्पज्जन्ति । कामवितक्को हि पिये मनापे सत्ते वा सङ्खारे वा वितक्केन्तस्स उप्पज्जति । 152 Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (१०.३०५-३०५) तेनेवाह “खये आणन्ति मग्गसमनिस्स आणं। अनुप्पादे आणन्ति फलसमङ्गिस्स जाण''न्ति । इमे खो, आवुसोतिआदि एकके वुत्तनयेनेव योजेतब्बं । इति पञ्चतिंसाय दुकानं वसेन थेरो सामग्गिरसं दस्सेसीति । दुकवण्णना निहिता। तिकवण्णना ३०५. इति दुकवसेन सामग्गिरसं दस्सेत्वा इदानि तिकवसेन दस्सेतुं पुन आरभि । तत्थ लुब्भतीति लोभो। अकुसलञ्च तं मूलञ्च, अकुसलानं वा मूलन्ति अकुसलमूलं । दुस्सतीति दोसो। मुव्हतीति मोहो। तेसं पटिपक्खनयेन अलोभादयो वेदितब्बा । दुट्ठ चरितानि, विरूपानि वा चरितानीति दुच्चरितानि। कायेन दुच्चरितं, कायतो वा पवत्तं दुच्चरितन्ति कायदुच्चरितं। सेसेसुपि एसेव नयो । सुट्ट चरितानि, सुन्दरानि वा चरितानीति सुचरितानि। द्वेपि चेते तिका पण्णत्तिया वा कम्मपथेहि वा कथेतब्बा । पञ्चत्तिया ताव कायद्वारे पञत्तसिक्खापदस्स वीतिक्कमो कायदुच्चरितं। अवीतिक्कमो कायसुचरितं। वचीद्वारे पञत्तसिक्खापदस्स वीतिक्कमो वचीदुच्चरितं, अवीतिक्कमो वचीसुचरितं। उभयत्थ पञत्तस्स सिक्खापदस्स वीतिक्कमोव मनोदुच्चरितं, अवीतिक्कमो मनोसुचरितं। अयं पण्णत्तिकथा । पाणातिपातादयो पन तिस्सो चेतना कायद्वारेपि वचीद्वारेपि उप्पन्ना कायदुच्चरितं। चतस्सो मुसावादादिचेतना वचीदुच्चरितं। अभिज्झा ब्यापादो मिच्छादिट्ठीति तयो चेतनासम्पयुत्तधम्मा मनोदुच्चरितं । पाणातिपातादीहि विरमन्तस्स उप्पन्ना तिस्सो चेतनापि विरतियोपि कायसुचरितं । मुसावादादीहि विरमन्तस्स चतस्सो चेतनापि विरतियोपि वचीसुचरितं। अनभिज्झा अब्यापादो सम्मादिट्ठीति तयो चेतनासम्पयुत्तधम्मा मनोसुचरितन्ति अयं कम्मपथकथा । कामपटिसंयुत्तो वितक्को कामवितक्को। ब्यापादपटिसंयुत्तो वितक्को व्यापादवितक्को। विहिंसापटिसंयुत्तो वितक्को विहिंसावितक्को। तेसु द्वे सत्तेसुपि सङ्खारेसुपि उप्पज्जन्ति । कामवितक्को हि पिये मनापे सत्ते वा सङ्घारे वा वितक्केन्तस्स उप्पज्जति । 152 Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०.३०५-३०५) तिकवएणना १५३ ब्यापादवितक्को अप्पिये अमनापे सत्ते वा सङ्घारे वा कुज्झित्वा ओलोकनकालतो पट्ठाय याव विनासना उप्पज्जति । विहिंसावितक्को सङ्खारेसु नुप्पज्जति । सङ्खारो हि दुक्खापेतब्बो नाम नत्थि । इमे सत्ता हञ्जन्तु वा उच्छिज्जन्तु वा विनस्सन्तु वा मा वा अहेसुन्ति चिन्तनकाले पन सत्तेसु उप्पज्जति । __नेक्खम्मपटिसंयुत्तो वितक्को नेक्खम्मवितक्को। सो असुभपुब्बभागे कामावचरो होति । असुभज्झाने रूपावचरो। तं झानं पादकं कत्वा उप्पन्नमग्गफलकाले लोकुत्तरो । अब्यापादपटिसंयुत्तो वितक्को अव्यापादवितक्को। सो मेत्तापुब्बभागे कामावचरो होति । मेत्ताझाने रूपावचरो। तं झानं पादकं कत्वा उप्पन्नमग्गफलकाले लोकुत्तरो | अविहिंसापटिसंयुत्तो वितक्को अविहिंसावितक्को। सो करुणापुब्बभागे कामावचरो | करुणाझाने रूपावचरो। तं झानं पादकं कत्वा उप्पन्नमग्गफलकाले लोकुत्तरो। यदा अलोभो सीसं होति, तदा इतरे द्वे तदन्वायिका भवन्ति । यदा मेत्ता सीसं होति, तदा इतरे द्वे तदन्वायिका भवन्ति । यदा करुणा सीसं होति, तदा इतरे द्वे तदन्वायिका भवन्तीति । कामसङ्कप्पादयो वुत्तनयेनेव वेदितब्बा । देसनामत्तमेव हेतं । अत्थतो पन कामवितक्कादीनञ्च कामसङ्कप्पादीनञ्च नानाकरणं नत्थि । कामपटिसंयुत्ता सञआ कामसा। ब्यापादपटिसंयुत्ता सञ्जा व्यापादसञ्जा। विहिंसापटिसंयुत्ता सञ्जा विहिंसासा। तासम्पि कामवितक्कादीनं विय उप्पज्जनाकारो वेदितब्बो । तंसम्पयुत्तायेव हि एता । नेक्खम्मसञादयोपि नेक्खम्मवितक्कादिसम्पयुत्तायेव । तस्मा तासम्पि तथैव कामावचरादिभावो वेदितब्बो । कामधातुआदीसु “कामपटिसंयुत्तो तक्को वितक्को मिच्छासङ्कप्पो । अयं वुच्चति कामधातु । सब्बेपि अकुसला धम्मा कामधातू"ति अयं कामधातु। “ब्यापादपटिसंयुत्तो तक्को वितक्को मिच्छासङ्कप्पो । अयं वुच्चति ब्यापादधातु । दससु आघातवत्थूसु चित्तस्स आघातो पटिघातो अनत्तमनता चित्तस्सा"ति अयं ब्यापादधातु। “विहिंसा पटिसंयुत्तो तक्को वितक्को मिच्छासङ्कप्पो । अयं वुच्चति विहिंसाधातु । इधेकच्चो पाणिना वा लेड्डना वा दण्डेन वा सत्थेन वा रज्जुया वा अञ्जतरञतरेन वा सत्ते विहेठेती"ति अयं विहिंसाधातु। तत्थ द्वे कथा सब्बसङ्गाहिका च असम्भिन्ना च । तत्थ कामधातुया गहिताय इतरा द्वे गहिताव होन्ति, ततो पन नीहरित्वा अयं ब्यापादधातु अयं विहिंसाधातूति दस्सेतीति अयं सब्बसङ्गाहिककथा नाम । कामधातुं कथेन्तो पन भगवा ब्यापादधातुं 153 Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (१०.३०५-३०५) ब्यापादधातुट्ठाने, विहिंसाधातुं विहिंसाधातुट्ठाने ठपेत्वा अवसेसं कामधातु नामाति कथेसीति अयं असम्भिन्नकथा नाम । नेक्खम्मधातुआदीसु “नेक्खम्मपटिसंयुत्तो तक्को वितक्को सम्मासङ्कप्पो। अयं वुच्चति नेक्खम्मधातु। सब्बेपि कुसला धम्मा नेक्खम्मधातू"ति अयं नेक्खम्मधातु। "अब्यापादपटिसंयुत्तो तक्को...पे०... अयं वुच्चति अब्यापादधातु | या सत्तेसु मेत्ति...पे०... मेत्ताचेतोविमुत्तीति अयं अब्यापादधातु। “अविहिंसापटिसंयुत्तो तक्को...पे०... अयं वुच्चति अविहिंसाधातु। या सत्तेसु करुणा...पे०... करुणाचेतोविमुत्ती"ति अयं अविहिंसाधातु। इधापि वुत्तनयेनेव द्वे कथा वेदितब्बा । अपरापि तिस्सो धातुयोति अञापि सुञतटेन तिस्सो धातुयो । तासु "तत्थ कतमा कामधातु ? हेट्ठतो अवीचिनिरयं परियन्तं करित्वा"ति एवं वित्थारितो कामभवो कामधातु नाम । “हेतो ब्रह्मलोकं परियन्तं करित्वा आकासानञ्चायतनुपगे देवे परियन्तं करित्वा''ति एवं वित्थारिता पन रूपारूपभवा इतरा द्वे धातुयो। धातुया आगतवानम्हि हि भवेन परिच्छिन्दितब्बा । भवस्स आगतहाने धातुया परिच्छिन्दितब्बा। इध भवेन परिच्छेदो कथितो । रूपधातुआदीसु रूपारूपधातुयो रूपारूपभवायेव । निरोधधातुया निब्बानं कथितं । हीनादीसु हीना धातूति द्वादस अकुसलचित्तुष्पादा। अवसेसा तेभूमकधम्मा मज्झिमधातु। नव लोकुत्तरधम्मा पणीतधातु । कामतण्हाति पञ्चकामगुणिको रागो। रूपारूपभवेसु पन रागो झाननिकन्तिसस्सतदिट्ठिसहगतो रागो भववसेन पत्थना भवतण्हा। उच्छेददिट्ठिसहगतो रागो विभवतण्हा। अपिच ठपेत्वा पच्छिमं तण्हाद्वयं सेसतण्हा कामतण्हा नाम । यथाह "तत्थ कतमा भवतण्हा ? भवदिट्ठिसहगतो रागो सारागो चित्तस्स सारागो। अयं वुच्चति भवतण्हा | तत्थ कतमा विभवतण्हा ? उच्छेददिट्ठिसहगतो रागो सारागो चित्तस्स सारागो, अयं वुच्चति विभवतण्हा । अवसेसा तण्हा कामतण्हा'ति । पुन कामतण्हादीसु पञ्चकामगुणिको रागो कामतण्हा । रूपारूपभवेसु छन्दरागो इतरा द्वे तण्हा । अभिधम्मे पनेता “कामधातुपटिसंयुत्तो...पे०... अरूपधातुपटिसंयुत्तो"ति एवं वित्थारिता । इमिना वारेन किं दस्सेति ? सब्बेपि तेभूमका धम्मा रजनीयढेन तण्हावत्थुकाति सब्बतण्हा कामतण्हाय परियादियित्वा ततो नीहरित्वा इतरा द्वे तण्हा दस्सेति । रूपतण्हादीसु 154 Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०.३०५ - ३०५) रूपभवे छन्दरागो रूपतण्हा । अरूपभवे छन्दरागो अरूपतण्हा । उच्छेददिट्ठिसहगतो रागो निरोधतण्हा । तिकवण्णना संयोजनत्तिके वट्टस्मिं संयोजयन्ति बन्धन्तीति संयोजनानि । सति रूपादिभेदे काये दिट्ठि, विज्जमाना वा काये दिट्ठीति सक्कायदिट्ठि । विचिनन्तो एताय किच्छति, न सक्कोति सन्निट्ठानं कातुन्ति विचिकिच्छा । सीलञ्च वतञ्च परामसतीति सीलब्बतपरामासो । अत्थतो पन “रूपं अत्ततो समनुपस्सती 'तिआदिना नयेन आगता वीसतिवत्थुका सक्कायदिट्ठि नाम । " सत्थरि कङ्क्षती "तिआदिना नयेन आगता अट्ठवत्थुका विमति विचिकिच्छा नाम । “इधेकच्चो सीलेन सुद्धि वतेन सुद्धि सीलब्बतेन सुद्धीति सीलं परामसति, वतं परामसति, सीलब्बतं परामसति । या एवरूपा दिट्ठि दिट्ठिगत "न्तिआदिना नयेन आगतो विपरियेसग्गाहो सीलब्बतपरामासो नाम । तयो आसवाति एत्थ चिरपारिवासियट्ठेन वा आसवनट्टेन वा आसवा । तत्थ “पुरिमा, भिक्खवे, कोटि न पञ्ञायति अविज्जाय, इतो पुब्बे अविज्जा नाहोसि, अथ पच्छा समभवी”ति, “पुरिमा, भिक्खवे, कोटि न पञ्ञायति भवतण्हाय भवदिट्ठिया, इतो पुब्बे भवदिट्ठि नाहोसि, अथ पच्छा समभवी "ति एवं ताव चिरपारिवासियट्ठेन आसवा वेदितब्बा । चक्खुतो रूपे सवति आसवति सन्दति पवत्तति । सोततो सद्दे । घानतो गन्धे । जिव्हातो रसे । कायतो फोट्ठब्बे । मनतो धम्मे सवति आसवति सन्दति पवत्ततीति एवं आसवनट्ठेन आसवाति वेदितब्बा । I १५५ पाळियं पन कत्थचि द्वे आसवा आगता “ दिट्ठधम्मिका च आसवा सम्परायिका च आसवा "ति, कत्थचि “तयोमे, भिक्खवे, आसवा । कामासवो भवासवो अविज्जासवो "ति तयो । अभिधम्मे तेयेव दिट्ठासवेन सद्धिं चत्तारो । निब्बेधिकपरियाये “अस्थि, भिक्खवे, आसवा निरयगामिनिया, अत्थि आसवा तिरच्छानयोनिगामिनिया, अत्थि आसवा पेत्तिविसयगामिनिया, अत्थि आसवा मनुस्सलोकगामिनिया अत्थि आसवा देवलोकगामिनिया'ति एवं पञ्च । छक्कनिपाते आहुनेय्यसुत्ते “अत्थि, भिक्खवे, आसवा संवरा पहातब्बा, अत्थि आसवा पटिसेवना पहातब्बा, अत्थि आसवा परिवज्जना पहातब्बा, अत्थि आसवा अधिवासना पहातब्बा, अत्थि आसवा विनोदना पहातब्बा, अत्थि आसवा भावना पहातब्बा " ति एवं छ । सब्बासवपरियाये तेयेव दस्सनापहातब्बेहि सद्धिं सत्त । इमस्मिं पन सङ्गीतिसुत्ते तयो । तत्थ " यो कामेसु कामच्छन्दो 'ति एवं वुत्तो 155 Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (१०.३०५-३०५) पञ्चकामगुणिको रागो कामासवो नाम । “यो भवेसु भवच्छन्दो"ति एवं वुत्तो सस्सतदिट्ठिसहगतो रागो, भववसेन वा पत्थना भवासवो नाम । “दुक्खे अचाण''न्तिआदिना नयेन आगता अविज्जा अविज्जासवो नामाति । कामभवादयो कामधातुआदिवसेन वुत्तायेव । कामेसनादीसु “तत्थ कतमा कामेसना ? यो कामेसु कामच्छन्दो कामज्झोसानं, अयं वुच्चति कामेसना"ति एवं वुत्तो कामगवेसनरागो कामेसना नाम । “तत्थ कतमा भवेसना ? यो भवेसु भवच्छन्दो भवज्झोसानं, अयं वुच्चति भवेसना"ति एवं वुत्तो भवगवेसनरागो भवेसना नाम। “तत्थ कतमा ब्रह्मचरियेसना ? सस्सतो लोकोति वा...पे०... नेव होति न नहोति तथागतो परम्मरणाति वा, या एवरूपा दिट्टि दिट्ठिगतं विपरियेसग्गाहो, अयं वुच्चति ब्रह्मचरियेसना"ति एवं वुत्ता दिद्विगतिकसम्मतस्स ब्रह्मचरियस्स गवेसनदिट्ठि ब्रह्मचरियेसना नाम । न केवलञ्च भवरागदिट्ठियोव, तदेकट्ठ कम्मम्पि एसनायेव । वुत्तव्हेतं “तत्थ कतमा कामेसना ? कामरागो तदेकर्ट्स अकुसलं कायकम्मं वचीकम्मं मनोकम्मं, अयं वुच्चति कामेसना । तत्थ कतमा भवेसना ? भवरागो तदेकट्ठ अकुसलं कायकम्मं वचीकम्मं मनोकम्मं, अयं वुच्चति भवेसना । तत्थ कतमा ब्रह्मचरियेसना ? अन्तग्गाहिका दिट्टि तदेकटुं अकुसलं कायकम्मं वचीकम्मं मनोकम्म, अयं वुच्चति ब्रह्मचरियेसना'ति । विधासु “कथंविधं सीलवन्तं वदन्ति, कथंविधं पञ्जवन्तं वदन्ती"तिआदीसु (सं० नि० १.१.९५) आकारसण्ठानं विधा नाम। “एकविधेन आणवत्थु दुविधेन आणवत्थू"तिआदीसु (विभं० ७५१) कोट्ठासो । “सेय्योहमस्मीति विधा"तिआदीसु (विभं० ९२०) मानो विधा नाम । इध सो अधिप्पेतो । मानो हि सेय्यादिवसेन विदहनतो विधाति वुच्चति । सेय्योहमस्मीति इमिना सेय्यसदिसहीनानं वसेन तयो माना वुत्ता । सदिसहीनेसुपि एसेव नयो । अयहि मानो नाम सेय्यस्स तिविधो, सदिसस्स तिविधो, हीनस्स तिविधोति नवविधो होति । तत्थ "सेय्यस्स सेय्योहमस्मी"ति मानो राजूनञ्चेव पब्बजितानञ्च उप्पज्जति । राजा हि रटेन वा धनवाहनेहि वा “को मया सदिसो अत्थी"ति एतं मानं 156 Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०.३०५-३०५) तिकवण्णना १५७ करोति । पब्बजितोपि सीलधुतगादीहि “को मया सदिसो अत्थी''ति एतं मानं करोति । "सेय्यस्स सदिसोहमस्मी"ति मानोपि एतेसंयेव उप्पज्जति । राजा हि रटेन वा धनवाहनेहि वा अञराजूहि सद्धिं मय्हं किं नानाकरणन्ति एतं मानं करोति । पब्बजितोपि सीलधुतगादीहिपि अभेन भिक्खुना मय्ह किं नानाकरणन्ति एतं मानं करोति । “सेय्यस्स हीनोहमस्मी"ति मानोपि एतेसंयेव उप्पज्जति । यस्स हि रञो रटुं वा धनवाहनादीनि वा नातिसम्पन्नानि होन्ति, सो मय्हं राजाति वोहारमुखमत्तमेव, किं राजा नाम अहन्ति एतं मानं करोति । पब्बजितोपि अप्पलाभसक्कारो अहं धम्मकथिको बहुस्सुतो महाथेरोति कथामत्तकमेव, किं धम्मकथिको नामाहं किं बहुस्सुतो किं महाथेरो यस्स मे लाभसक्कारो नत्थीति एतं मानं करोति । “सदिसस्स सेय्योहमस्मी"ति मानादयो अमच्चादीनं उप्पज्जन्ति । अमच्चो वा हि रट्ठियो वा भोगयानवाहनादीहि को मया सदिसो अञो राजपुरिसो अत्थीति वा महं अञ्जेहि सद्धिं किं नानाकरणन्ति वा अमच्चोति नाममेव मरहं, घासच्छादनमत्तम्पि मे नत्थि, किं अमच्चो नामाहन्ति वा एते माने करोति । "हीनस्स सेय्योहमस्मी"ति मानादयो दासादीनं उप्पज्जन्ति । दासो हि मातितो वा पितितो वा को मया सदिसो अञ्जो दासो नाम अत्थि, अछे जीवितुं असक्कोन्ता कुच्छिहेतु दासा जाता, अहं पन पवेणीआगतत्ता सेय्योति वा पवेणीआगतभावेन उभतोसुद्धिकदासत्तेन असुकदासेन नाम सद्धिं किं महं नानाकरणन्ति वा कुच्छिवसेनाहं दासब्य उपगतो, मातापितुकोटिया पन मे दासट्टानं नत्थि, किं दासो नाम अहन्ति वा एते माने करोति । यथा च दासो, एवं पुक्कुसचण्डालादयोपि एते माने करोन्तियेव । एत्थ च सेय्यस्स सेय्योहमस्मीति, च सदिसस्स सदिसोहमस्मीति च हीनस्स हीनोहमस्मीति च इमे तयो माना याथावमाना नाम अरहत्तमग्गवज्झा । सेसा छ माना अयाथावमाना नाम पठममग्गवज्झा । तयो अद्धाति तयो काला । अतीतो अद्धातिआदीसु उपरियाया सुत्तन्तपरियायो च अभिधम्मपरियायो च । सुत्तन्तपरियायेन पटिसन्धितो पुब्बे अतीतो अद्धा नाम । चुतितो पच्छा अनागतो अद्धा नाम। सह चुतिपटिसन्धीहि तदन्तरं पच्चुप्पन्नो अद्धा नाम । अभिधम्मपरियायेन तीसु खणेसु भङ्गतो उद्धं अतीतो अद्धा नाम । उप्पादतो पुब्बे 157 Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (१०.३०५-३०५) अनागतो अद्धा नाम । खणत्तये पच्चुप्पनो अद्धा नाम । अतीतादिभेदो च नाम अयं धम्मानं होति, न कालस्स । अतीतादिभेदे पन धम्मे उपादाय इध परमस्थतो अविज्जमानोपि कालो तेनेव वोहारेन वुत्तोति वेदितब्बो । तयो अन्ताति तयो कोट्ठासा । “कायबन्धनस्स अन्तो जीरती"तिआदीसु (चूळव० २७८) हि अन्तोयेव अन्तो । “एसेवन्तो दुक्खस्सा"तिआदीसु (सं० नि० १.२.५१) परभागो अन्तो। “अन्तमिदं, भिक्खवे, जीविकान"न्ति (सं० नि० २.३.८०) एत्थ लामकभावो अन्तो। “सक्कायो खो, आवुसो, पठमो अन्तो''तिआदीसु (अ० नि० २.६.६१) कोट्ठासो अन्तो। इध कोट्ठासो अधिप्पेतो । सक्कायोति पञ्चुपादानक्खन्धा । सक्कायसमुदयोति तेसं निब्बत्तिका पुरिमतण्हा। सक्कायनिरोधोति उभिन्नं अप्पवत्तिभूतं निब्बानं । मग्गो पन निरोधाधिगमस्स उपायत्ता निरोधे गहिते गहितोवाति वेदितब्बो। दुक्खदुक्खताति दुक्खभूता दुक्खता। दुक्खवेदनायेतं नामं । सङ्खारदुक्खताति सङ्खारभावेन दुक्खता। अदुक्खमसुखावेदनायेतं नामं । सा हि सङ्खतत्ता उप्पादजराभङ्गपीळिता, तस्मा अञदुक्खसभावविरहतो सङ्खारदुक्खताति वुत्ता । विपरिणामदुक्खताति विपरिणामे दुक्खता। सुखवेदनायेतं नामं । सुखस्स हि विपरिणामे दुक्खं उप्पज्जति, तस्मा सुखं विपरिणामदुक्खताति वुत्तं । अपिच ठपेत्वा दुक्खवेदनं सुखवेदनञ्च सब्बेपि तेभूमका धम्मा “सब्बे सङ्खारा दुक्खा'ति वचनतो सङ्खारदुक्खताति वेदितब्बा । मिच्छत्तनियतोति मिच्छासभावो हुत्वा नियतो। नियतमिच्छादिट्ठिया सद्धिं आनन्तरियकम्मस्सेतं नामं । सम्मासभावे नियतो सम्मत्तनियतो। चतुन्नं अरियमग्गानमेतं नामं । न नियतोति अनियतो। अवसेसानं धम्मानमेतं नामं। तयो तमाति “तमन्धकारो सम्मोहो अविज्जोघो महाभयो'"ति वचनतो अविज्जा तमो नाम । इध पन अविज्जासीसेन विचिकिच्छा वुत्ता। आरम्भाति आगम्म । कङ्घतीति कङ्ख उप्पादेति । विचिकिच्छतीति विचिनन्तो किच्छं आपज्जति, सन्निट्ठातुं न सक्कोति | नाधिमुच्छतीति तत्थ अधिमुच्छितुं न सक्कोति । न सम्पसीदतीति तं आरब्भ पसादं आरोपेतुं न सक्कोति। 158 Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०.३०५-३०५) तिकवण्णना १५९ अरक्खेय्यानीति न रक्खितब्बानि । तीसु द्वारेसु पच्चेकं रक्खणकिच्चं नत्थि, सब्बानि सतिया एव रक्खितानीति दीपेति । नत्थि तथागतस्साति । "इदं नाम मे सहसा उप्पन्नं कायदुच्चरितं, इमाहं यथा मे परो न जानाति, तथा रक्खामि, पटिच्छादेमी''ति एवं रक्खितब्बं नत्थ तथागतस्स कायदुच्चरितं । सेसेसुपि एसेव नयो। किं पन सेसखीणासवानं कायसमाचारादयो अपरिसुद्धाति ? नो अपरिसुद्धा । न पन तथागतस्स विय परिसुद्धा । अप्पस्सुतखीणासवो हि किञ्चापि लोकवज्जं नापज्जति, पण्णत्तियं पन अकोविदत्ता विहारकारं कुटिकारं सहगारं सहसेय्यन्ति एवरूपा कायद्वारे आपत्तियो आपज्जति । सञ्चरित्तं पदसोधम्मं उत्तरिछप्पञ्चवाचं भूतारोचनन्ति एवरूपा वचीद्वारे आपत्तियो आपज्जति। उपनिक्खित्तसादियनवसेन मनोद्वारे रूपियप्पटिग्गाहणापत्तिं आपज्जति, धम्मसेनापतिसदिसस्सापि हि खीणासवस्स मनोद्वारे सउपारम्भवसेन मनोदुच्चरितं उप्पज्जति एव । चातुमवत्थुस्मिहि पञ्चहि भिक्खुसतेहि सद्धिं सारिपुत्तमोग्गल्लानानं पणामितकाले तेसं अत्थाय चातुमेय्यकेहि सक्येहि भगवति खमापिते थेरो भगवता "किन्ति ते सारिपुत्त अहोसि मया भिक्खुसो पणामिते"ति पुट्ठो अहं परिसाय अब्यत्तभावेन सत्थारा पणामितो। इतो दानि पट्ठाय परं न ओवदिस्सामीति चित्तं उप्पादेत्वा आह “एवं खो मे, भन्ते, अहोसि भगवता भिक्खुसङ्घो पणामितो, अप्पोस्सुक्को दानि भगवा दिट्ठधम्मसुखविहारं अनुयुत्तो विहरिस्सति, मयम्पि दानि अप्पोस्सुक्का दिठ्ठधम्मसुखविहारं अनुयुत्ता विहरिस्सामा"ति । अथस्स तस्मिं मनोदुच्चरिते उपारम्भं आरोपेन्तो सत्था आह- "आगमेहि त्वं, सारिपुत्त न खो ते, सारिपुत्त, पुनपि एवरूपं चित्तं उप्पादेतब्बन्ति । एवं परं न ओवदिस्सामि नानुसासिस्सामीति वितक्कितमत्तम्पि थेरस्स मनोदुच्चरितं नाम जातं । भगवतो पन एत्तकं नाम नत्थि, अनच्छरियञ्चेतं । सब्बञ्जतं पत्तस्स दुच्चरितं न भवेय्य । बोधिसत्तभूमियं ठितस्स छब्बस्सानि पधानं अनुयुञ्जन्तस्सापि पनस्स नाहोसि । उदरच्छविया पिट्टिकण्टकं अल्लीनाय "कालङ्कतो समणो गोतमो"ति देवतानं विमतिया उप्पज्जमानायपि “सिद्धत्थ कस्मा किलमसि ? सक्का भोगे च भुजितुं पुनानि च कातु"न्ति मारेन पापिमता वुच्चमानस्स "भोगे भुजिस्सामी"ति वितक्कमत्तम्पि नुप्पज्जति । अथ नं मारो बोधिसत्तकाले छब्बस्सानि बुद्धकाले एकं वस्सं अनुबन्धित्वा किञ्चि वज्जं अपस्सित्वा इदं वत्वा पक्कामि 159 Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (१०.३०५-३०५) “सत्तवस्सानि भगवन्तं, अनुबन्धिं पदापदं । ओतारं नाधिगच्छिस्सं, सम्बुद्धस्स सतीमतो''ति ।। (सु० नि० ४४८) अपिच अट्ठारसन्नं बुद्धधम्मानं वसेनापि भगवतो दुच्चरिताभावो वेदितब्बो । अट्ठारस बुद्धधम्मा नाम नत्थि तथागतस्स कायदुच्चरितं, नत्थि वचीदुच्चरितं, नत्थि मनोदुच्चरितं, अतीते बुद्धस्स अप्पटिहतञाणं, अनागते, पच्चुप्पन्ने बुद्धस्स अप्पटिहतजाणं, सब् कायकम्मं बुद्धस्स भगवतो आणानुपरिवत्ति, सब्बं वचीकम्मं, सब्बं मनोकम्मं बुद्धस्स भगवतो आणानुपरिवत्ति, नत्थि छन्दस्स हानि, नत्थि वीरियस्स हानि, नत्थि सतिया हानि, नत्थि दवा, नत्थि रवा, नत्थि चलितं नत्थि सहसा, नत्थि अब्यावटो मनो, नत्थि अकुसलचित्तन्ति । किञ्चनाति पलिबोधा । रागो किञ्चनन्ति रागो उप्पज्जमानो सत्ते बन्धति पलिबुन्धति तस्मा किञ्चनन्ति वुच्चति । इतरेसुपि द्वीसु एसेव नयो । अग्गीति अनुदहनटेन अग्गि। रागग्गीति रागो उप्पज्जमानो सत्ते अनुदहति झापति, तस्मा अग्गीति वुच्चति । इतरेसुपि एसेव नयो । तत्थ वत्थूनि एका दहरभिक्खुनी चित्तलपब्बतविहारे उपोसथागारं गन्त्वा द्वारपालरूपकं ओलोकयमाना ठिता । अथस्सा अन्तो रागो उप्पन्नो । सा तेनेव झायित्वा कालमकासि । भिक्खुनियो गच्छमाना “अयं दहरा ठिता, पक्कोसथ, न"न्ति आहंस । एका गन्त्वा कस्मा ठितासीति हत्थे गण्हि । गहितमत्ता परिवत्तित्वा पपता। इदं ताव रागस्स अनुदहनताय वत्थु । दोसस्स पन अनुदहनताय मनोपदोसिका देवा। मोहस्स अनुदहनताय खिड्डापदोसिका देवा दट्ठब्बा। मोहवसेन हि तासं सतिसम्मोसो होति । तस्मा खिड्डावसेन आहारकालं अतिवत्तित्वा कालङ्करोन्ति । ___ आहुनेय्यग्गीतिआदीसु आहुनं वुच्चति सक्कारो, आहुनं अरहन्तीति आहुनेय्या। मातापितरो हि पुत्तानं बहूपकारताय आहुनं अरहन्ति । तेसु विप्पटिपज्जमाना पुत्ता निरयादीसु निब्बत्तन्ति । तस्मा किञ्चापि मातापितरो नानुदहन्ति, अनुदहनस्स पन पच्चया होन्ति । इति अनुदहनठून आहुनेय्यग्गीति वुच्चन्ति । स्वायमत्थो मित्तविन्दकवत्थुना दीपेतब्बो मित्तविन्दको हि मातरा "तात, अज्ज उपोसथिको हुत्वा विहारे सब्बरत्तिं 160 Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०.३०५-३०५) तिकवण्णना १६१ धम्मस्सवनं सुण, सहस्सं ते दस्सामी''ति वुत्तो धनलोभेन उपोसथं समादाय विहारं गन्त्वा इदं ठानं अकुतोभयन्ति सल्लक्खेत्वा धम्मासनस्स हेट्ठा निपन्नो सब्बरत्तिं निद्दायित्वा घरं अगमासि । माता पातोव यागु पचित्वा उपनामेसि । सो सहस्सं गहेत्वाव पिवि । अथस्स एतदहोसि- “धनं संहरिस्सामी"ति । सो नावाय समुदं पक्खन्दितुकामो अहोसि । अथ नं माता “तात, इमस्मिं कुले चत्तालीसकोटिधनं अत्थि, अलं गमनेना'"ति निवारेसि । सो तस्सा वचनं अनादियित्वा गच्छति एव । माता पुरतो अट्ठासि । अथ नं कुज्झित्वा “अयं महं पुरतो तिकृती"ति पादेन पहरित्वा पतितं अन्तरं कत्वा अगमासि । ___माता उट्ठहित्वा "मादिसाय मातरि एवरूपं कम्मं कत्वा गतस्स ते गतट्ठाने सुखं भविस्सतीति एवंसञी नाम त्वं पुत्ता"ति आह । तस्स नावं आरुयह गच्छतो सत्तमे दिवसे नावा अट्ठासि । अथ ते मनुस्सा “अद्धा एत्थ पापपुरिसो अत्थि सलाकं देथा"ति आहेसु । सलाका दिय्यमाना तस्सेव तिक्खत्तुं पापुणाति । ते तस्स उळुम्पं दत्वा तं समुद्दे पक्खिपिंसु । सो एकं दीपं गन्त्वा विमानपेतीहि सद्धिं सम्पत्तिं अनुभवन्तो ताहि "पुरतो पुरतो मा अगमासी''ति वुच्चमानोपि तद्दिगुणं तद्दिगुणं सम्पत्तिं पस्सन्तो अनुपुब्बेन खुरचक्कधरं एकं अद्दस । तस्स तं चक्कं पदुमपुष्पं विय उपट्टासि । सो तं आह - “अम्भो, इदं तया पिळन्धितं पदुमं मय्हं देही"ति । “न इदं सामि पदुमं, खुरचक्कं एत"न्ति । सो “वञ्चेसि मं, त्वं किं मया पदुमं अदिठ्ठपुब्ब"न्ति वत्वा त्वं लोहितचन्दनं विलिम्पित्वा पिळन्धनं पदुमपुष्पं मय्हं न दातुकामोति आह । सो चिन्तेसि “अयम्पि मया कतसदिसं कम्मं कत्वा तस्स फलं अनुभवितुकामो"ति । अथ नं “हन्द रे"ति वत्वा तस्स मत्थके चक्कं पक्खिपि । तेन वुत्तं- । "चतुब्मि अट्ठज्झगमा, अट्ठाहिपि च सोळस । सोळसाहि च बात्तिंस, अत्रिच्छं चक्कमासदो । इच्छाहतस्स पोसस्स, चक्कं भमति मत्थके''ति ।। (जा० १.१.१०४) गहपतीति पन गेहसामिको वुच्चति । सो मातुगामस्स सयनवत्थालङ्कारादिअनुप्पदानेन बहूपकारो । तं अतिचरन्तो मातुगामो निरयादीसु निब्बत्तति, तस्मा सोपि पुरिमनयेनेव अनुदहनतुन गहपतग्गीति वुत्तो। तत्थ वत्थु - कस्सपबुद्धस्स काले सोतापन्नस्स उपासकस्स भरिया अतिचारिनी 161 Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (१०.३०५-३०५) अहोसि । सो तं पच्चक्खतो दिस्वा “कस्मा त्वं एवं करोसी''ति आह । सा “सचाहं एवरूपं करोमि, अयं मे सुनखो विलुप्पमानो खादतू"ति वत्वा कालङ्कृत्वा कण्णमुण्डकदहे वेमानिकपेती हुत्वा निब्बत्ता । दिवा सम्पत्तिं अनुभवति, रत्तिं दुक्खं । तदा बाराणसीराजा मिगवं चरन्तो अरबं पविसित्वा अनुपुब्बेन कण्णमुण्डकदहं सम्पत्तो ताय सद्धिं सम्पत्तिं अनुभवति । सा तं वञ्चेत्वा रत्तिं दुक्खं अनुभवति। सो ञत्वा “कत्थ नु खो गच्छती"ति पिट्टितो पिढितो गन्त्वा अविदूरे ठितो कण्णमुण्डकदहतो निक्खमित्वा तं “पटपट"न्ति खादमानं एकं सुनखं दिस्वा असिना द्विधा छिन्दि । द्वे अहेसुं । पुन छिन्ने चत्तारो । पुन छिन्ने अट्ठ । पुन छिन्ने सोळस अहेसुं । सा "किं करोसि सामी''ति आह । सो “किं इदन्ति आह । सा “एवं अकत्वा खेळपिण्डं भूमियं निट्ठभित्वा पादेन घंसाही''ति आह । सो तथा अकासि | सुनखा अन्तरधायिंसु । तं दिवसं तस्सा कम्म खीणं । राजा विप्पटिसारी हुत्वा गन्तुं आरद्धो । सा “महं, सामि, कम्मं खीणं मा अगमा"ति आह । राजा असुत्वाव गतो । दक्खिणेय्यग्गीति एत्थ पन दक्खिणाति चत्तारो पच्चया, भिक्खुसङ्घो दक्खिणेय्यो । सो गिहीनं तीसु सरणेसु पञ्चसु सीलेसु दससु सीलेसु मातापितुउपट्ठाने धम्मिकसमणब्राह्मणउपट्ठानेति एवमादीसु कल्याणधम्मेसु नियोजनेन बहूपकारो, तस्मिं मिच्छापटिपन्ना गिही भिक्खुसङ्घ अक्कोसित्वा परिभासित्वा निरयादी निब्बत्तन्ति, तस्मा सोपि पुरिमनयेनेव अनुदहनतुन दक्खिणेय्यग्गीति वुत्तो। इमस्स पनत्थस्स विभावनत्थं विमानवत्थुस्मिं रेवतीवत्थु वित्थारेतब्बं । “तिविधेन रूपसङ्गहो"ति एत्थ तिविधेनाति तीहि कोट्ठासेहि। सङ्गहोति जातिसञ्जातिकिरियगणनवसेन चतुब्बिधो सङ्गहो । तत्थ सब्बे खत्तिया आगच्छन्तूतिआदिको (म० नि० १.४६२) जातिसङ्गहो। सब्बे कोसलकातिआदिको सञ्जातिसङ्गहो । सब्बे हत्थारोहातिआदिको किरियसङ्गहो । चक्खायतनं कतमं खन्धगणनं गच्छतीति ? चक्खायतनं रूपक्खन्धगणनं गच्छतीति । हञ्चि चक्खायतनं रूपक्खन्धेन सङ्गहितन्ति अयं गणनसङ्गहो, सो इध अधिप्पेतो । तस्मा तिविधेन रूपसङ्गहोति तीहि कोट्ठासेहि रूपगणनाति अत्थो । सनिदस्सनादीसु अत्तानं आरब्भ पवत्तेन चक्खुविज्ञाणसङ्खातेन सह निदस्सनेनाति सनिदस्सनं। चक्खुपटिहननसमत्थतो सह पटियेनाति सप्पटिघं। तं अत्थतो रूपायतनमेव । चक्खुविज्ञाणसङ्खातं नास्स निदस्सनन्ति अनिदस्सनं। सोतादिपटिहननसमत्थतो सह 162 Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०.३०५-३०५) तिकवण्णना १६३ पटिघेनाति सप्पटिघं। तं अस्थतो चक्खायतनादीनि नव आयतनानि । वुत्तप्पकारं नास्स निदस्सनन्ति अनिदस्सनं। नास्स पटिघोति अप्पटिघं। तं अत्थतो ठपेत्वा दसायतनानि अवसेसं सुखुमरूपं । तयो सङ्खाराति सहजातधम्मे चेव सम्पराये फलधम्मे च सङ्घरोन्ति रासी करोन्तीति सङ्घारा । अभिसङ्घरोतीति अभिसङ्खारो । पुञ्जो अभिसङ्खारो पुञाभिसङ्कारो । "तत्थ कतमो पुजाभिसङ्घारो ? कुसला चेतना कामावचरा रूपावचरा दानमया सीलमया भावनामया"ति एवं वुत्तानं अट्ठन्नं कामावचरकुसलमहाचित्तचेतनानं, पञ्चन्नं रूपावचरकुसलचेतनानञ्चेतं अधिवचनं । एत्थ च दानसीलमया अट्टेव चेतना होन्ति । भावनामया तेरसापि । यथा हि पगुणं धम्मं सज्झायमानो एकं द्वे अनुसन्धिं गतोपि न जानाति, पच्छा आवज्जन्तो जानाति, एवमेव कसिणपरिकम्मं करोन्तस्स पगुणज्झानं पच्चवेक्खन्तस्स आणविप्पयुत्तापि भावना होति । तेन वुत्तं "भावनामया तेरसापी''ति । तत्थ दानमयादीसु “दानं आरब्म दानमधिकिच्च या उप्पज्जति चेतना सञ्चेतना चेतयितत्तं, अयं वुच्चति दानमयो पुञाभिसङ्खारो। सीलं आरब्भ, भावनं आरब्भ, भावनमधिकिच्च या उप्पज्जति चेतना सञ्चेतना चेतयितत्तं, अयं वुच्चति भावनामयो पुञाभिसङ्खारो"ति अयं स पदेसना । चीवरादीसु पन चतूसु पच्चयेसु रूपादीसु वा छसु आरम्मणेसु अन्नादीसु वा दससु दानवत्थूसु तं तं देन्तस्स तेसं उप्पादनतो पट्ठाय पुब्बभागे, परिच्चागकाले, पच्छा सोमनस्सचित्तेन अनुस्सरणे चाति तीसु कालेसु पवत्ता चेतना दानमया नाम | सीलपूरणत्थाय पन पब्बजिस्सामीति विहारं गच्छन्तस्स, पब्बजन्तस्स मनोरथं मत्थकं पापेत्वा पब्बजितो वतम्हि साधु साधूति आवज्जन्तस्स, पातिमोक्खं संवरन्तस्स, चीवरादयो पच्चये पच्चवेक्खन्तस्स, आपाथगतेसु रूपादीसु चक्खुद्वारादीनि संवरन्तस्स, आजीवं सोधेन्तस्स च पवत्ता चेतना सीलमया नाम ।। पटिसम्भिदायं वुत्तेन विपस्सनामग्गेन "चक् अनिच्चतो दुक्खतो अनत्ततो भावेन्तस्स...पे०... मनं । रूपे। धम्मे। चक्खुविज्ञाणं...पे०... मनोविज्ञाणं । चक्खुसम्फस्सं...पे०... मनोसम्फस्सं । चक्खुसम्फस्सजं वेदनं...पे०... मनोसम्फस्सजं वेदनं । 163 Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा दाधा (१०.३०५-३०५) रूपसज्जे, जरामरणं अनिच्चतो दुक्खतो अनत्ततो भावेन्तस्स पवत्ता चेतना भावनामया नामा"ति अयं वित्थारकथा । अपुञ्जो च सो अभिसङ्खारो चाति अपुञाभिसङ्खारो। द्वादसअकुसलचित्तसम्पयुत्तानं चेतनानं एतं अधिवचनं । वुत्तम्पि चेतं “तत्थ कतमो अपुञाभिसङ्खारो ? अकुसलचेतना कामावचरा, अयं वुच्चति अपुञाभिसङ्खारो''ति । आनेजं निच्चलं सन्तं विपाकभूतं अरूपमेव अभिसङ्घरोतीति आनेजाभिसङ्खारो। चतुन्नं अरूपावचरकुसलचेतनानं एतं अधिवचनं । यथाह "तत्थ कतमो आनेजाभिसङ्खारो ? कुसलचेतना अरूपावचरा, अयं वुच्चति आनेजाभिसङ्खारो''ति । पुग्गलत्तिके सत्तविधो पुरिसपुग्गलो, तिस्सो सिक्खा सिक्खतीति सेक्खो। खीणासवो सिक्खितसिक्खत्ता पुन न सिक्खिस्सतीति असेक्खो। पुथुज्जनो सिक्खाहि परिबाहियत्ता नेवसेक्खो नासेक्खो। थेरत्तिके जातिमहल्लको गिही जातित्थेरो नाम । “चत्तारोमे, भिक्खवे, थेरकरणा धम्मा । इध, भिक्खवे, थेरो सीलवा होति, बहुस्सुतो होति, चतुन्नं झानानं लाभी होति, आसवानं खया बहुस्सुतो होति, चतुन्नं झानानं लाभी होति, आसवानं खया अनासवं चेतोविमुत्तिं पाविमुत्तिं दिढेव धम्मे सयं अभिजा सच्छिकत्वा उपसम्पज्ज विहरति । इमे खो, भिक्खवे, चत्तारो थेरकरणा धम्मा"ति (अ० नि० १.४.२२)। एवं वुत्तेसु धम्मेसु एकेन वा अनेकेहि वा समन्नागतो धम्मथेरो नाम | अञ्चतरो थेरनामको भिक्खूति एवं थेरनामको वा, यं वा पन महल्लककाले पब्बजितं सामणेरादयो दिस्वा थेरो थेरोति वदन्ति, अयं सम्मतिथेरो नाम । पुञ्जकिरियवत्थूसु दानमेव दानमयं। पुञ्जकिरिया च सा तेसं तेसं आनिसंसानं वत्यु चाति पुञ्जकिरियवत्थु। इतरेसुपि द्वीसु एसेव नयो। अत्थतो पन पुब्बे वुत्तदानमयचेतनादिवसेनेव सद्धिं पुब्बभागअपरभागचेतनाहि इमानि तीणि पुञ्जकिरियवत्थूनि वेदितब्बानि । एकमेकञ्चेत्थ पुब्बभागतो पट्ठाय कायेन करोन्तस्स कायकम्मं होति । तदत्थं वाचं निच्छारेन्तस्स वचीकम्मं । कायङ्गवाचङ्गं अचोपेत्वा मनसा चिन्तेन्तस्स मनोकम्मं । अन्नादीनि देन्तस्स चापि अन्नदानादीनि देमीति वा दानपारमिं 164 Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०.३०५-३०५) तिकवण्णना १६५ आवज्जेत्वा वा दानकाले दानमयं पुञ्जकिरियवत्थु होति । वत्तसीसे ठत्वा ददतो सीलमयं । खयतो वयतो सम्मसनं पट्ठपेत्वा ददतो भावनामयं पुजकिरियवत्थु होति । अपरानिपि सत्त पुञ्जकिरियवत्थूनि अपचितिसहगतं पुजकिरियवत्थु, वेय्यावच्चसहगतं, पत्तानुप्पदानं, पत्तब्भनुमोदनं, देसनामयं, सवनमयं, दिद्विजुगतं पुञ्जकिरियवत्थूति । तत्थ महल्लकं दिस्वा पच्चुग्गमनपत्तचीवरप्पटिग्गहणअभिवादनमग्गसम्पदानादिवसेन अपचितिसहगतं वेदितब्बं । वुड्डतरानं वत्तप्पटिपत्तिकरगवसेन, गामं पिण्डाय पविलु भिक्खुं दिस्वा पत्तं गहेत्वा गामे भिक्खं समादपेत्वा उपसंहरणवसेन, “गच्छ भिक्खून पत्तं आहराति सुत्वा वेगेन गन्त्वा पत्ताहरणादिवसेन च वेय्यावच्चसहगतं वेदितब्बं । चत्तारो पच्चये दत्वा सब्बसत्तानं पत्ति होतूति पवत्तनवसेन पत्तानुप्पदानं वेदितब्बं । परेहि दिन्नाय पत्तिया साधु सुति अनुमोदनावसेन पत्तब्भनुमोदनं वेदितब्बं । एको “एवं मं 'धम्मकथिको'तिजानिस्सन्ती"ति इच्छाय ठत्वा लाभगरुको हुत्वा देसेति, तं न महप्फलं । एको अत्तनो पगुणधम्म अपच्चासीसमानो परेसं देसेति, इदं देसनामयं पुञ्जकिरियवत्थु नाम । एको सुणन्तो "इति मं 'सद्धोति 'जानिस्सन्ती"ति सुणाति, तं न महप्फलं । एको “एवं मे महप्फलं भविस्सती''ति हितप्फरणेन मुदुचित्तेन धम्मं सुणाति, इदं सवनमयं पुञ्जकिरियवत्थु । दिट्ठिजुगतं पन सब्बेसं नियमलक्खणं । यंकिञ्चि पुजं करोन्तस्स हि दिट्ठिया उजुभावेनेव महप्फलं होति। इति इमेसं सत्तन्नं पुञ्जकिरियवत्थूनं पुरिमेहेव तीहि सङ्गहो वेदितब्बो। एत्थ हि अपचितिवेय्यावच्चानि सीलमये । पत्तिदानपत्तब्भनुमोदनानि दानमये। देसनासवनानि भावनामये । दिट्ठिजुगतं तीसुपि सङ्गहं गच्छति । चोदनावत्थूनीति चोदनाकारणानि । दिवेनाति मंसचक्खुना वा दिब्बचक्खुना वा वीतिक्कम दिस्वा चोदेति । सुतेनाति पकतिसोतेन वा दिब्बसोतेन वा परस्स सदं सुत्वा चोदेति । परिसङ्काय वाति दिट्ठपरिसङ्कितेन वा सुतपरिसङ्कितेन वा मुतपरिसङ्कितेन वा चोदेति । अयमेत्थ सङ्केपो, वित्थारो पन समन्तपासादिकायं वुत्तनयेनेव वेदितब्बो । कामूपपत्तियोति कामूपसेवना कामप्पटिलाभा वा। पच्चुपद्वितकामाति निबद्धकामा निबद्धारम्मणा । सेय्यथापि मनुस्साति यथा मनुस्सा । मनुस्सा हि निबद्धेयेव वत्थुस्मिं वसं 165 Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (१०.३०५-३०५) वत्तेन्ति । यत्थ पटिबद्धचित्ता होन्ति, सतम्पि सहस्सम्पि दत्वा मातुगामं आनेत्वा निबद्धभोगं भुञ्जन्ति । एकच्चे देवा नाम चतुदेवलोकवासिनो । तेपि निबद्धवत्थुस्मिंयेव वसं वत्तेन्ति । एकच्चे विनिपातिका नाम नेरयिके ठपेत्वा अवसेसा मच्छकच्छपादयोपि हि निबद्धवत्थुस्मिंयेव वसं वत्तेन्ति । मच्छो अत्तनो मच्छिया कच्छपो कच्छपियाति । निम्मिनित्वा निम्मिनित्वाति नीलपीतादिवसेन यादिसं यादिसं अत्तनो रूपं इच्छन्ति, तादिसं तादिसं निम्मिनित्वा आयस्मतो अनुरुद्धस्स पुरतो मनापकायिका देवता विय । निम्मानरतीति एवं सयं निम्मिते निम्मिते निम्माने रति एतेसन्ति निम्मानरती । परनिम्मितकामाति परेहि निम्मितकामा । तेसहि मनं ञत्वा परे यथारुचितं कामभोगं निम्मिनन्ति, ते तत्थ वसं वत्तेन्ति । कथं परस्स मनं जानन्तीति ? पकतिसेवनवसेन । यथा हि कुसलो सूदो रञो भुञ्जन्तस्स यं यं सो बहुं गण्हाति, तं तं तस्स रुच्चतीति जानाति, एवं पकतिया अभिरुचितारम्मणं ञत्वा तादिसकंयेव निम्मिनन्ति । ते तत्थ वसं वत्तेन्ति, मेथुनं सेवन्ति । केचि पन थेरा “हसितमत्तेन ओलोकितमत्तेन आलिङ्गितमत्तेन च तेसं कामकिच्चं इज्झती"ति वदन्ति, तं अट्ठकथायं “एतं पन नत्थी''ति पटिक्खित्तं । न हि कायेन अफुसन्तस्स फोट्ठब्बं कामकिच्चं साधेति । छन्नम्पि हि कामावचरानं कामा पाकतिका एव । वुत्तम्पि चेतं “छ एते कामावचरा, सब्बकामसमिद्धिनो । सब्बेसं एकसञ्जातं, आयु भवति कित्तक"न्ति ।। (विभं० १०२३) सुखूपपत्तियोति सुखप्पटिलाभा। उप्पादेत्वा उप्पादेत्वा सुखं विहरन्तीति ते हेट्ठा पठमज्झानसुखं निब्बत्तेत्वा उपरि विपाकज्झानसुखं अनुभवन्तीति अत्थो। सुखेन अभिसनाति दुतियज्झानसुखेन तिन्ता । परिसन्नाति समन्ततो तिन्ता | परिपूराति परिपुण्णा । परिप्फुटाति तस्सेव वेवचनं । इदम्पि विपाकज्झानसुखमेव सन्धाय वुत्तं । अहोसुखं अहोसुखन्ति तेसं किर भवलोभो महा उप्पज्जति । तस्मा कदाचि करहचि एवं उदानं उदानेन्ति। सन्तमेवाति पणीतमेव । तुसिताति ततो उत्तरं सुखस्स अपत्थनतो सन्तुट्ठा हुत्वा । सुखं पटिवेदेन्तीति ततियज्झानसुखं अनुभवन्ति । __ सेक्खा पति सत्त अरियपञा। अरहतो पञ्जा असेक्खा। अवसेसा पञ्जा नेवसेक्खानासेक्खा। 166 Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०.३०५ - ३०५) तिकवण्णना चिन्तामयादीसु अयं वित्थारो - " तत्थ कतमा चिन्तामया पञ्ञा ? योगविहितेसु वा कम्मायतनेसु योगविहितेसु वा सिप्पायतनेसु योगविहितेसु वा विज्जाट्ठानेसु कम्मस्कतं वा सच्चानुलोमिकं वा रूपं अनिच्चन्ति वा... पे०... विञ्ञाणं अनिच्चन्ति वा यं एवरूपं अनुलोमिकं खन्तिं दिट्ठि रुचिं मुत्तिं पेक्खं धम्मनिज्झानक्खन्तिं परतो असुत्वा पटिलभति, अयं वुच्चति चिन्तामया पञ्ञा । तत्थ कतमा सुतमया पञ्ञा ? योगविहितेसु वा कम्मायतनेसु...पे०... धम्मनिज्झानक्खन्तिं परतो सुत्वा पटिलभति, अयं वुच्चति सुतमया पञ्ञा । (तत्थ कतमा भावनामया पञ्ञा ?) सब्बापि समापन्नस्स पञ्ञा भावनामया पञ्ञति (विभं० ७६८-६९) । सुतावुधन्ति सुतमेव आवुधं । तं अत्थतो तेपिटकं बुद्धवचनं । तहि निस्साय भिक्खु पञ्ञावुधं निस्साय सूरो योधो अविकम्पमानो महाकन्तारं विय संसारकन्तारं अतिक्कमति अविहञ्ञमानो । तेनेव वुत्तं - "सुतावुधो, भिक्खवे, अरियसावको अकुसलं पजहति, कुसलं भावेति, सावज्जं पजहति, अनवज्जं भावेति, सुद्धमत्तानं परिहरती 'ति (अ० नि० २.७.६७) । पविवेकावुधन्ति “कायविवेको चित्तविवेको उपधिविवेको "ति अयं तिविधोप विवेकोव आवुधं । तस्स नानाकरणं कायविवेको विवेकट्ठकायानं नेक्खम्माभिरतानं । चित्तविवेको च परिसुद्धचित्तानं परमवोदानप्पत्तानं । उपधिविवेको च निरुपधीनं पुग्गलानं । इमस्मिञ् ितिविधे विवेके अभिरतो, न कुतोचि भायति । तस्मा अयम्पि अवस्सयन आवुधन्ति वृत्तो । लोकियोकुत्तरपञ्ञाव आवुधं पञ्ञवुधं । यस्स सा अत्थि, सो न कुतोचि भायति, न चस्स कोचि भायति । तस्मा सापि अवस्सयट्ठेनेव आवुधन्ति वृत्ता । १६७ अनञ्ञातञ्ञस्सामीतिन्द्रियन्ति इतो पुब्बे अनञ्ञातं अविदितं धम्मं जानिस्सामीति पटिपन्नस्स उप्पन्नं इन्द्रियं । सोतापत्तिमग्गञाणस्सेतं अधिवचनं । अञ्ञिन्द्रियन्ति अञ्ञाभूतं आजाननभूतं इन्द्रियं । सोतापत्तिफलतो पट्ठाय छसु ठानेसु आणस्सेतं अधिवचनं । अञ्ञाताविन्द्रियन्ति अञ्ञातावीसु जाननकिच्चपरियोसानप्पत्तेसु धम्मे इन्द्रियं । अरहत्तफलञणस्सेतं अधिवचनं । मंसचक्खु चक्खुपसादो । दिब्बचक्खु आलोकनिस्सितं जाणं । लोकियोकुत्तरपञ्ञा । 167 पञ्ञचक्खु Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६८ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (१०.३०५-३०५) अधिसीलसिक्खादीसु अधिसीलञ्च तं सिक्खितब्बतो सिक्खा चाति अधिसीलसिक्खा। इतरस्मिं द्वयेपि एसेव नयो । तत्थ सीलं अधिसीलं, चित्तं अधिचित्तं, पञ्जा अधिपजाति अयं पभेदो वेदितब्बो सीलं नाम पञ्चसीलदससीलानि, पातिमोक्खसंवरो अधिसीलं नाम । अट्ठ समापत्तियो चित्तं, विपस्सनापादकज्झानं अधिचित्तं। कम्मस्सकतजाणं पञ्जा, विपस्सनापञ्जा अधिपञ्जा। अनुप्पन्नेपि हि बुद्धप्पादे पवत्ततीति पञ्चसीलदससीलानि सीमेव, पातिमोक्खसंवरसीलं बुद्धप्पादेयेव पवत्ततीति अधिसीलं। चित्तपञासुपि एसेव नयो । अपिच निब्बानं पत्थयन्तेन समादिन्नं पञ्चसीलम्पि दससीलम्पि अधिसीलमेव । समापन्ना अट्ठ समापत्तियोपि अधिचित्तमेव । सब् वा लोकियं सीलमेव, लोकुत्तरं अधिसीलं । चित्तपञासुपि एसेव नयो । भावनासु खीणासवस्स पञ्चद्वारिककायो कायभावना नाम | अट्ठ समापत्तियो चित्तभावना नाम । अरहत्तफलपञा पञआभावना नाम। खीणासवस्स हि एकन्तेनेव पञ्चद्वारिककायो सुभावितो होति । अट्ठ समापत्तियो चस्स न अजेसं विय दुब्बला, तस्सेव च पञ्जा भाविता नाम होति पञ्जावेपुल्लपत्तिया। तस्मा एवं वुत्तं । अनुत्तरियेसु विपस्सना दस्सनानुत्तरियं मग्गो पटिपदानुस्सरियं। फलं विमुत्तानुत्तरियं । फलं वा दस्सनानुत्तरियं । मग्गो पटिपदानुत्तरियं । निब्बानं विमुत्तानुत्तरियं । निब्बानं वा दस्सनानुत्तरियं, ततो उत्तरिहि दट्टब्बं नाम नत्थि। मग्गो पटिपदानुत्तरियं । फलं विमुत्तानुत्तरियं । अनुत्तरियन्ति उत्तमं जेट्टकं । समाधीसु पठमज्झानसमाधि सवितक्कसविचारो। पञ्चकनयेन दुतियज्झानसमाधि अवितक्कविचारमत्तो। सेसो अवितक्कअविचारो। सुञतादीसु तिविधा कथा आगमनतो, सगुणतो, आरम्मणतोति । आगमनतो नाम एको भिक्खु अनत्ततो अभिनिविसित्वा अनत्ततो दिस्वा अनत्ततो वुट्टाति, तस्स विपस्सना सुञता नाम होति । कस्मा ? असुञतत्तकारकानं किलेसानं अभावा। विपस्सनागमनेन मग्गसमाधि सुञतो नाम होति । मग्गागमनेन फलसमाधि सुञतो नाम । अपरो अनिच्चतो अभिनिविसित्वा अनिच्चतो दिस्वा अनिच्चतो वुट्टाति । तस्स विपस्सना 168 Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०.३०५-३०५) तिकवण्णना अनिमित्ता नाम होति । कस्मा ? निमित्तकारककिलेसाभावा । विपस्सनागमनेन मग्गसमाधि अनिमित्तो नाम होति। मग्गागमनेन फलं अनिमित्तं नाम । अपरो दुक्खतो अभिनिविसित्वा दुक्खतो दिस्वा दुक्खतो वुट्टाति, तस्स विपस्सना अप्पणिहिता नाम होति । कस्मा ? पणिधिकारककिलेसाभावा । विपस्सनागमनेन मग्गसमाधि अप्पणिहितो नाम । मग्गागमनेन फलं अप्पणिहितं नामाति अयं आगमनतो कथा । मग्गसमाधि पन रागादीहि सुझतत्ता सुञतो, रागनिमित्तादीनं अभावा अनिमित्तो, रागपणिधिआदीनं अभावा अप्पणिहितोति अयं सगुणतो कथा। निब्बानं रागादीहि सुझतत्ता रागादिनिमित्तपणिधीनञ्च अभावा सुञतञ्चेव अनिमित्तञ्च अप्पणिहितञ्च। तदारम्मणो मग्गसमाधि सुञतो अनिमित्तो अप्पणिहितो। अयं आरम्मणतो कथा । सोचेय्यानीति सुचिभावकरा सोचेय्यप्पटिपदा धम्मा। वित्थारो पनेत्थ "तत्थ कतम कायसोचेय्यं ? पाणातिपाता वेरमणी"तिआदिना नयेन वुत्तानं तिण्णं सुचरितानं वसेन वेदितब्बो। मोनेय्यानीति मुनिभावकरा मोनेय्यप्पटिपदा धम्मा। तेसं वित्थारो “तत्थ कतमं कायमोनेय्यं ? तिविधकायदुच्चरितस्स पहानं कायमोनेय्यं, तिविधं कायसुचरितं कायमोनेय्यं, कायारम्मणे जाणं कायमोनेय्यं, कायपरिञा कायमोनेय्यं, कायपरिञासहगतो मग्गो कायमोनेय्यं, कायस्मिं छन्दरागप्पहानं कायमोनेय्यं, कायसङ्खारनिरोधा चतुत्थज्झानसमापत्ति कायमोनेय्यं । तत्थ कतमं वचीमोनेय्यं ? चतुब्बिधवचीदुच्चरितस्स पहानं वचीमोनेय्यं, चतुब्बिधं वचीसुचरितं वचीमोनेय्यं, वाचारम्मणे आणं वचीमोनेय्यं वाचापरिक्षा वचीमोनेय्यं परिञासहगतो मग्गो, वाचाय छन्दरागप्पहानं, वचीसङ्खारनिरोधा दुतियज्झानसमापत्ति वचीमोनेय्यं । तत्थ कतमं मनोमोनेय्यं? तिविधमनोदुच्चरितस्स पहानं मनोमोनेय्यं, तिविध मनोसुचरितं मनोमोनेय्यं, मनारम्मणे आणं मनोमोनेय्यं, मनोपरिञा मनोमोनेय्यं । परिञासहगतो मग्गो, मनस्मिं छन्दरागप्पहानं, चित्तसङ्खारनिरोधा सञ्जावेदयितनिरोधसमापत्ति मनोमोनेय्य''न्ति (महानि० १४)। कोसल्लेसु आयोति वुड्डि। अपायोति अवुड्डि। तस्स तस्स कारणं उपायो। तेसं पजानना कोसल्लं । वित्थारो पन विभङ्गे वुत्तोयेव । वुत्तहेतं- “तत्थ कतमं आयकोसल्लं ? इमे धम्मे मनसिकरोतो अनुप्पन्ना चेव 169 Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७० दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (१०.३०५-३०५) अकुसला धम्मा नुप्पज्जन्ति, उप्पन्ना च अकुसला धम्मा निरुज्झन्ति । इमे वा पन मे धम्मे मनसिकरोतो अनुप्पन्ना चेव कुसला धम्मा उप्पज्जन्ति, उप्पन्ना च कुसला धम्मा भिय्योभावाय वेपुल्लाय भावनाय पारिपूरिया संवत्तन्तीति, या तत्थ पञआ पजानना...पे०... सम्मादिहि । इदं वुच्चति आयकोसल्लं । तत्थ कतमं अपायकोसल्लं ? इमे धम्मे मनसिकरोतो अनुप्पन्ना चेव कुसला धम्मा न उप्पज्जन्ति, उप्पन्ना च कुसला धम्मा निरुज्झन्ति । इमे वा पन मे धम्मे मनसिकरोतो अनुप्पन्ना चेव अकुसला धम्मा उप्पज्जन्ति, उप्पन्ना च अकुसला धम्मा भिय्योभावाय वेपुल्लाय भावनाय पारिपूरिया संवत्तन्तीति, या तत्थ पञ्जा पजानना...पे०... सम्मादिहि । इदं वुच्चति अपायकोसल्लं । सब्बापि तत्रुपाया पञ्जा उपायकोसल्ल''न्ति (विभं० ७७१) । इदं पन अच्चायिककिच्चे वा भये वा उप्पन्ने तस्स तिकिच्छनत्थं ठानुप्पत्तिया कारणजाननवसेनेव वेदितब्बं । मदाति मज्जनाकारवसेन पवत्तमाना। तेसु “अहं निरोगो सठ्ठि वा सत्तति वा वस्सानि अतिक्कन्तानि, न मे हरीतकीखण्डम्पि खादितपुर, इमे पनजे असुकं नाम ठानं रुज्जति, भेसज्जं खादामाति विचरन्ति, को अञो मादिसो निरोगो नामा''ति एवं मानकरणं आरोग्यमदो। “महल्लककाले पुलं करिस्साम, दहरम्ह तावा"ति योब्बने ठत्वा मानकरणं योब्बनमदो। “चिरं जीविं, चिरं जीवामि, चिरं जीविस्सामि; सुखं जीविं, सुखं जीवामि, सुखं जीविस्सामी"ति एवं मानकरणं जीवितमदो। ___ आधिपतेय्येसु अधिपतितो आगतं आधिपतेय्यं । “एत्तकोम्हि सीलेन समाधिना पञ्जाय विमुत्तिया, न मे एतं पतिरूप"न्ति एवं अत्तानं अधिपत्तिं जेट्ठकं कत्वा पापस्स अकरणं अत्ताधिपतेय्यं नाम । लोकं अधिपतिं कत्वा अकरणं लोकाधिपतेय्यं नाम । लोकुत्तरधम्मं अधिपतिं कत्वा अकरणं धम्माधिपतेय्यं नाम । कथावत्थूनीति कथाकारणानि । अतीतं वा अद्धानन्ति अतीतं धम्मं, अतीतक्खन्धेति अत्थो । अपिच "यं, भिक्खवे, रूपं अतीतं निरुद्धं विपरिणतं, 'अहोसी'ति तस्स सङ्खा, 'अहोसी'ति तस्स पञत्ति 'अहोसी'ति तस्स समझा, न तस्स सङ्खा 'अत्थी'ति, न तस्स सङ्खा ‘भविस्सती'ति (सं० नि० २.३.६२) एवं आगतेन निरुत्तिपथसुत्तेनपेत्थ अत्थो दीपेतब्बो। विज्जाति तमविज्झनटेन विज्जा। विदितकरणद्वेनापि विज्जा । 170 Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०.३०६-३०६) चतुक्कवण्णना १७१ पुब्बेनिवासानुस्सतित्राणहि उप्पज्जमानं पुब्बेनिवासं छादेत्वा ठितं तमं विज्झति, पुब्बेनिवासञ्च विदितं करोतीति विज्जा। चुतूपपातञाणं चुतिपटिसन्धिच्छादकं तमं विज्झति, तञ्च विदितं करोतीति विज्जा । आसवानं खये आणं चतुसच्चच्छादकं तमं विज्झति, चतुसच्चधम्मञ्च विदितं करोतीति विज्जा । विहारेसु अट्ठ समापत्तियो दिब्बो विहारो। चतस्सो अप्पमा ब्रह्मा विहारो। फलसमापत्ति अरियो विहारो। पाटिहारियानि केवट्टसुत्ते वित्थारितानेव । “इमे खो, आवुसो"तिआदीसु वुत्तनयेनेव योजेतब् । इति समसट्ठिया तिकानं वसेन असीतिसतपञ्हे कथेन्तो थेरो सामग्गिरसं दस्सेसीति । तिकवण्णना निट्ठिता। चतुक्कवण्णना ३०६. इति तिकवसेन सामग्गिरसं दस्सेत्वा इदानि चतुक्कवसेन दस्सेतुं पुन देसनं आरभि । तत्थ “सतिपट्ठानचतुक्कं" पुब्बे वित्थारितमेव । सम्मप्पधानचतुक्के छन्दं जनेतीति “यो छन्दो छन्दिकता कत्तुकम्यता कुसलो धम्मच्छन्दो''ति एवं वुत्तं कत्तुकम्यतं जनेति । वायमतीति वायामं करोति । वीरियं आरभतीति वीरियं जनेति । चित्तं पग्गण्हातीति चित्तं उपत्थम्भेति । अयमेत्थ सङ्केपो । वित्थारो पन सम्मप्पधानविभङ्गे आगतोयेव । इद्धिपादेसु छन्दं निस्साय पवत्तो समाधि छन्दसमाधि। पधानभूता सङ्खारा पधानसकारा। समनागतन्ति तेहि धम्मेहि उपेतं । इद्धिया पादं, इद्धिभूतं वा पादन्ति 171 Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७२ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्टकथा (१०.३०७-३०७) इद्धिपादं। सेसेसुपि एसेव नयो। अयमेत्य सङ्ग्रेपो, वित्थारो पन इद्धिपादविभङ्गे आगतो एव । विसुद्धिमग्गे पनस्स अत्थो दीपितो। झानकथापि विसुद्धिमग्गे वित्थारिताव । ३०७. दिवधम्मसुखविहारायाति इमस्मिंयेव अत्तभावे सुखविहारत्थाय। इध फलसमापत्तिझानानि, खीणासवस्स अपरभागे निब्बत्तितझानानि च कथितानि । आलोकसझं मनसिकरोतीति दिवा वा रत्तिं वा सूरियचन्दपज्जोतमणिआदीनं आलोकं आलोकोति मनसिकरोति । दिवासझं अधिटातीति एवं मनसि कत्वा दिवातिसचं ठपेति । यथा दिवा तथा रत्तिन्ति यथा दिवा दिट्ठो आलोको, तथैव तं रत्तिं मनसिकरोति । यथा रत्तिं तथा दिवाति यथा रत्तिं आलोको दिट्ठो, एवमेव दिवा मनसिकरोति । इति विवटेन चेतसाति एवं अपिहितेन चित्तेन। अपरियोनद्धेनाति समन्ततो अनद्धेन । सप्पभासन्ति सओभासं । आणदस्सनपटिलाभायाति आणदस्सनपटिलाभत्थाय । इमिना किं कथितं ? मिद्धविनोदनआलोको कथितो परिकम्मआलोको वा। इमिना किं कथितं होति ? खीणासवस्स दिब्बचक्खुजाणं। तस्मिं वा आगतेपि अनागतेपि पादकज्झानसमापत्तिमेव सन्धाय “सप्पभासं चित्तं भावेती"ति वुत्तं । सतिसम्पजञायाति सत्तट्ठानिकस्स सतिसम्पजस्स अत्थाय । विदिता वेदना उप्पज्जन्तीतिआदीसु खीणासवस्स वत्थु विदितं होति आरम्मणं विदितं वत्थारम्मणं विदितं । वत्थारम्मणविदितताय एवं वेदना उप्पज्जन्ति, एवं तिट्ठन्ति, एवं निरुज्झन्ति । न केवलञ्च वेदना एव इध वुत्ता सादयोपि, अवुत्ता चेतनादयोपि, विदिता च उप्पज्जन्ति चेव तिट्ठन्ति च निरुज्झन्ति च । अपि च वेदनाय उप्पादो विदितो होति, उपट्टानं विदितं होति । अविज्जासमुदया वेदनासमुदयो, तण्हासमुदया कम्मसमुदयो, फस्ससमुदया वेदनायसमुदयो । निब्बत्तिलक्खणं पस्सन्तोपि वेदनाक्खन्धस्स समुदयं पस्सति । एवं वेदनाय उप्पादो विदितो होति । कथं वेदनाय उपट्टानं विदितं होति ? अनिच्चतो मनसिकरोतो खयतूपट्टानं विदितं होति । दुक्खतो मनसिकरोतो भयतूपट्टानं विदितं होति । अनत्ततो मनसिकरोतो सुझतूपट्टानं विदितं होति । एवं वेदनाय उपट्टानं विदितं होति, खयतो भयतो सुञतो जानाति । कथं वेदनाय अत्थङ्गमो विदितो होति ? अविज्जानिरोधा वेदनानिरोधो ।...पे०... एवं वेदनाय अत्थङ्गमो विदितो होति । इमिनापि नयेनेत्थ अत्थो वेदितब्बो। 172 Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०.३०८-३०९) अरियवंसचतुक्कवण्णना १७३ इति रूपन्तिआदि वुत्तनयमेव । अयं आवुसो समाधिभावनाति अयं आसवानं खयाणस्स पादकज्झानसमाधिभावना । ३०८. अप्पमाति पमाणं अगहेत्वा अनवसेसफरणवसेन अप्पमाव । अनुपदवण्णना पन भावनासमाधिविधानञ्च एतासं विसुद्धिमग्गे वित्थारितमेव । अरूपकथापि विसुद्धिमग्गे वित्थारिताव । अपस्सेनानीति अपस्सयानि । सङ्खायाति आणेन ञत्वा । पटिसेवतीति आणेन अत्वा सेवितब्बयुत्तकमेव सेवति । तस्स च वित्थारो “पटिसङ्घा योनिसो चीवरं परिभुञ्जती"तिआदिना नयेन वेदितब्बो। सङ्कायेकं अधिवासेतीति आणेन ञत्वा अधिवासेतब्बयुत्तकमेव अधिवासेति । वित्थारो पनेत्थ “पटिसङ्खा योनिसो खमो होति सीतस्सा"तिआदिना नयेन वेदितब्बो। परिवज्जेतीति आणेन अत्वा परिवज्जेतं यत्तमेव परिवज्जेति । तस्स वित्थारो "पटिसका योनिसो चण्डं हत्थिं परिवज्जेती"तिआदिना नयेन वेदितब्बो । विनोदेतीति आणेन अत्वा विनोदेतब्बमेव विनोदेति, नुदति नीहरति अन्तो पविसितुं न देति । तस्स वित्थारो "उप्पन्नं कामवितक्कं नाधिवासेती''तिआदिना नयेन वेदितब्बो। अरियवंसचतुक्कवण्णना ३०९. अरियवंसाति अरियानं वंसा । यथा हि खत्तियवंसो, ब्राह्मणवंसो, वेस्सवंसो, सुद्दवंसो, समणवंसो, कुलवंसो, राजवंसो, एवं अयम्पि अट्ठमो अरियवंसो अरियतन्ति अरियपवेणी नाम होति । सो खो पनायं अरियवंसो इमेसं वंसानं मूलगन्धादीनं काळानुसारितगन्धादयो विय अग्गमक्खायति । के पन ते अरिया येसं एते वंसाति ? अरिया वुच्चन्ति बुद्धा च पच्चेकबुद्धा च तथागतसावका च, एतेसं अरियानं वंसाति अरियवंसा। इतो पुब्बे हि सतसहस्सकप्पाधिकानं चतुन्नं असङ्ख्येय्यानं मत्थके तण्हङ्करो मेधङ्करो सरणङ्करो दीपङ्करोति चत्तारो बुद्धा उप्पन्ना, ते अरिया, तेसं अरियानं वंसाति अरियवंसा । तेसं बुद्धानं परिनिब्बानतो अपरभागे असङ्ख्येय्यं अतिक्कमित्वा कोण्डो नाम बुद्धो उप्पन्नो...पे०... इमस्मिं कप्पे ककुसन्धो, कोणागमनो, कस्सपो, अम्हाकं भगवा गोतमोति चत्तारो बुद्धा उप्पन्ना । तेसं अरियानं वंसाति अरियवंसा। अपिच अतीतानागतपच्चुप्पन्नानं सब्बबुद्धपच्चेकबुद्धबुद्धसावकानं अरियानं वंसाति अरियवंसा । ते 173 Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७४ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (१०.३०९-३०९) खो पनेते अग्गज्ञा अग्गाति जानितब्बा । रत्तञा दीघरतं पवत्ताति जानितब्बा । वंसज्ञा वंसाति जानितब्बा। पोराणाति न अधुनुप्पत्तिका | असंकिण्णा अविकिण्णा अनपनीता। असंकिण्णपुब्बा अतीतबुद्धेहि न संकिण्णपुब्बा। “किं इमेही"ति न अपनीतपुब्बा ? न सहीयन्तीति इदानिपि न अपनीयन्ति । न सकीयिस्सन्तीति अनागतबुद्धेहिपि न अपनीयिस्सन्ति, ये लोके विजू समणब्राह्मणा, तेहि अप्पटिकुट्ठा, समणेहि ब्राह्मणेहि विहि अनिन्दिता अगरहिता। सन्तुट्ठो होतीति पच्चयसन्तोसवसेन सन्तुट्ठो होति । इतरीतरेन चीवरेनाति थूलसुखुमलूखपणीतथिरजिण्णानं येन केनचि । अथ खो यथालद्धादीनं इतरीतरेन येन केनचि सन्तुट्ठो होतीति अत्थो । चीवरस्मिहि तयो सन्तोसा - यथालाभसन्तोसो, यथाबलसन्तोसो, यथासारुप्पसन्तोसोति । पिण्डपातादीसुपि एसेव नयो। तेसं वित्थारकथा सामञफले वुत्तनयेनेव वेदितब्बा । इमे तयो सन्तोसे सन्धाय “सन्तुट्ठो होति, इतरीतरेन यथालद्धादीसु येन केनचि चीवरेन सन्तुट्ठो होती"ति वुत्तं । एत्थ च चीवरं जानितब्, चीवरक्खेत्तं जानितळ, पंसुकूलं जानितब्बं, चीवरसन्तोसो जानितब्बो, चीवरपटिसंयुत्तानि धुतङ्गानि जानितब्बानि । तत्थ चीवरं जानितब्बन्ति खोमादीनि छ चीवरानि दुकूलादीनि छ अनुलोमचीवरानि जानितब्बानि । इमानि द्वादस कप्पियचीवरानि । कुसचीरं वाकचीरं फलकचीरं केसकम्बलं वाळकम्बलं पोत्थको चम्मं उलूकपक्खं रुक्खदुस्सं लतादुस्सं एरकदुस्सं कदलिदुस्सं वे दुस्सन्ति एवमादीनि पन अकप्पियचीवरानि । चीवरक्खेत्तन्ति “सङ्घतो वा गणतो वा आतितो वा मित्ततो वा अत्तनो वा धनेन पंसुकूलं वा"ति एवं उप्पज्जनतो छ खेत्तानि, अट्ठन्नञ्च मातिकानं वसेन अट्ठ खेत्तानि जानितब्बानि । पंसुकूलन्ति सोसानिकं, पापणिकं, रथियं सङ्कारकूटकं, सोत्थियं, सिनानं, तित्थं, गतपच्चागतं, अग्गिदटुं, गोखायितं उपचिकखायितं, उन्दूरखायितं, अन्तच्छिन्नं, दसाच्छिन्नं, धजाहट, थूपं, समणचीवरं, सामुद्दियं, आभिसेकियं, पन्थिकं, वाताहटं, इद्धिमयं, देवदत्तियन्ति तेवीसति पंसुकूलानि वेदितब्बानि । एत्थ च सोत्थियन्ति गब्भमलहरणं । गतपच्चागतन्ति मतकसरीरं पारुपित्वा सुसानं नेत्वा आनीतचीवरं । धजाहटन्ति धजं उस्सापेत्वा ततो आनीतं । थूपन्ति वम्मिके - 174 Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०.३०९-३०९) अरियवंसचतुक्कवण्णना १७५ पूजितचीवरं । सामुहियन्ति समुद्दवीचीहि थलं पापितं । पन्थिकन्ति पन्थं गच्छन्तेहि चोरभयेन पासाणेहि कोट्टेत्वा पारुतचीवरं । इद्धिमयन्ति एहिभिक्खुचीवरं । सेसं पाकटमेव । चीवरसन्तोसोति वीसति चीवरसन्तोसा, वितक्कसन्तोसो, गमनसन्तोसो, परियेसनसन्तोसो, पटिलाभसन्तोसो, मत्तप्पटिग्गहणसन्तोसो, लोलुप्पविवज्जनसन्तोसो, यथालाभसन्तोसो, यथाबलसन्तोसो, यथासारुप्पसन्तोसो, उदकसन्तोसो, धोवनसन्तोसो, करणसन्तोसो, परिमाणसन्तोसो, सुत्तसन्तोसो, सिब्बनसन्तोसो, रजनसन्तोसो, कप्पसन्तोसो, परिभोगसन्तोसो, सन्निधिपरिवज्जनसन्तोसो, विस्सज्जनसन्तोसोति । __ तत्थ सादकभिक्खुना तेमासं निबद्धवासं वसित्वा एकमासमत्तं वितक्केतुं वट्टति । सो हि पवारेत्वा चीवरमासे चीवरं करोति । पंसुकूलिको अड्डमासेनेव करोति । इति मासड्डमासमत्तं वितक्कनं वितक्कसन्तोसो। वितक्कसन्तोसेन पन सन्तुढेन भिक्खुना पाचीनक्खण्डराजिवासिकपंसुकूलिकत्थेरसदिसेन भवितब्बं । थेरो किर चेतियपब्बतविहारे चेतियं वन्दिस्सामीति आगतो चेतियं वन्दित्वा चिन्तेसि "मरहं चीवरं जिण्णं बहूनं वसनट्ठाने लभिस्सामी"ति । सो महाविहारं गन्त्वा सङ्घत्थेरं दिस्वा वसनट्ठानं पुच्छित्वा तत्थ वुत्थो पुनदिवसे चीवरं आदाय आगन्त्वा थेरं वन्दि । थेरो किं आवुसोति आह । गामद्वारं, भन्ते, गमिस्सामीति । अहम्पावुसो, गमिस्सामीति । साध. भन्तेति गच्छन्तो महाबोधिद्वारकोटके ठत्वा पञ्जवन्तानं वसनट्राने मनापं लभिस्सामीति चिन्तेत्वा अपरिसुद्धो मे वितक्कोति ततोव पटिनिवत्ति । पुनदिवसे अम्बङ्गणसमीपतो, पुनदिवसे महाचेतियस्स उत्तरद्वारतो, तथैव पटिनिवत्तित्वा चतुत्थदिवसे थेरस्स सन्तिकं अगमासि । थेरो इमस्स भिक्खुनो वितक्को न परिसुद्धो भविस्सतीति चीवरं गहेत्वा तेन सद्धिंयेव पऽहं पुच्छमानो गामं पाविसि । तञ्च रत्तिं एको मनुस्सो उच्चारपलिबद्धो साटकेयेव वच्चं कत्वा तं सङ्काराने छडेसि। पंसकलिकत्थेरो तं नीलमक्खिकाहि सम्परिकिण्णं दिस्वा अञ्जलिं पग्गहेसि । महाथेरो “किं, आसो, सङ्कारट्टानस्स अञ्जलिं पग्गण्हासी"ति? "नाहं. भन्ते. सङ्कारशानस्स अञ्जलिं पग्गण्हामि. मय्हं पितु दसबलस्स परगण्हामि, पुण्णदासिया सरीरं पारुपित्वा छड्डितं पंसुकूलं तुम्बमत्ते पाणके विधुनित्वा सुसानतो गण्हन्तेन दुक्करं कतं, भन्ते''ति । महाथेरो “परिसुद्धो वितक्को पंसुकूलिकस्सा'"ति चिन्तेसि । पंसुकूलिकत्थेरोपि तस्मिंयेव ठाने ठितो विपस्सनं 175 Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (१०.३०९-३०९) वड्हेत्वा तीणि फलानि पत्तो तं साटकं गहेत्वा चीवरं कत्वा पारुपित्वा पाचीनक्खण्डराजिं गन्त्वा अग्गफलं अरहत्तं पापुणि । चीवरत्थाय गच्छन्तस्स पन “कत्थ लभिस्सामी''ति अचिन्तेत्वा कम्मट्ठानसीसेनेव गमनं गमनसन्तोसो नाम । परियेसन्तस्स पन येन वा तेन वा सद्धिं अपरियेसित्वा लज्जिं पेसलं भिक्खुं गहेत्वा परियेसनं परियेसनसन्तोसो नाम । एवं परियेसन्तस्स आहरियमानं चीवरं दूरतो दिस्वा “एतं मनापं भविस्सति, एतं अमनाप"न्ति एवं अवितक्केत्वा थूलसुखुमादीसु यथालद्धेनेव सन्तुस्सनं पटिलाभसन्तोसो नाम। एवं लद्धं गण्हन्तस्सापि “एत्तकं दुपट्टस्स भविस्सति, एत्तकं एकपट्टस्सा''ति अत्तनो पहोनकमत्तेनेव सन्तुस्सनं मत्तप्पटिग्गहणसन्तोसो नाम । चीवरं परियेसन्तस्स पन “असुकस्स घरद्वारे मनापं लभिस्सामी"ति अचिन्तेत्वा द्वारपटिपाटिया चरणं लोलुप्पविवज्जनसन्तोसो नाम | लूखपणीतेसु येन केनचि यापेतुं सक्कोन्तस्स यथालद्धेनेव यापनं यथालाभसन्तोसो नाम। अत्तनो थामं जानित्वा येन यापेतुं सक्कोति, तेन यापनं यथाबलसन्तोसो नाम । मनापं अञस्स दत्वा अत्तनो येन केनचि यापनं यथासारुप्पसन्तोसो नाम । “कत्थ उदकं मनापं, कत्थ अमनाप"न्ति अविचारेत्वा येन केनचि धोवनुपगेन उदकेन धोवनं उदकसन्तोसो नाम । पण्डुमत्तिकगेरुकपूतिपण्णरसकिलिट्ठानि पन उदकानि वज्जेतुं वट्टति । 176 Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०.३०९-३०९) अरियवंसचतुक्कवण्णना १७७ धोवन्तस्स पन मुग्गरादीहि अपहरित्वा हत्येहि महित्वा धोवनं धोवनसन्तोसो नाम । तथा असुज्झन्तं पण्णानि पक्खिपित्वा तापितउदकेनापि धोवितुं वट्टति । एवं धोवित्वा करोन्तस्स इदं थूलं, इदं सुखुमन्ति अकोपेत्वा पहोनकनीहारेनेव करणं करणसन्तोसो नाम । तिमण्डलप्पटिच्छादनमत्तस्सेव करणं परिमाणसन्तोसो नाम । चीवरकरणत्थाय पन मनापसुत्तं परियेसिस्सामीति अविचारेत्वा रथिकादीसु वा देवट्ठाने वा आहरित्वा पादमूले वा ठपितं यंकिञ्चिदेव सुत्तं गहेत्वा करणं सुत्तसन्तोसो नाम । कुसिबन्धनकाले पन अङ्गुलमत्ते सत्तवारे न विज्झितब्, एवं करोन्तस्स हि यो भिक्खु सहायो न होति, तस्स वत्तभेदोपि नस्थि । तिवङ्गुलमत्ते पन सत्तवारे विज्झितब्, एवं करोन्तस्स मग्गपटिपन्नेनापि सहायेन भवितब्बं । यो न होति, तस्स वत्तभेदो। अयं सिब्बनसन्तोसो नाम । रजन्तेन पन काळकच्छकादीनि परियेसन्तेन न रजितब्बं । सोमवक्कलादीसु यं लभति, तेन रजितब्बं । अलभन्तेन पन मनुस्सेहि अरञ्जे वाकं गहेत्वा छड्डितरजनं वा भिक्खूहि पचित्वा छड्डितकसटं वा गहेत्वा रजितब्बं, अयं रजनसन्तोसो नाम । नीलकद्दमकाळसामेसु यंकिञ्चि गहेत्वा हस्थिपिढे निसिन्नस्स पायमानकपकरणं कप्पसन्तोसो नाम । हिरिकोपीनपटिच्छादनमत्तवसेन परिभुञ्जनं परिभोगसन्तोसो नाम । दुस्सं पन लभित्वा सुत्तं वा सूचिं वा कारकं वा अलभन्तेन ठपेतुं वट्टति, लभन्तेन न वट्टति । कतम्पि सचे अन्तेवासिकादीनं दातुकामो होति, ते च असन्निहिता याव आगमना ठपेतुं वट्टति । आगतमत्तेसु दातब्बं । दातुं असक्कोन्तेन अधिट्ठातब्बं । 177 Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७८ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (१०.३०९-३०९) अञ्जस्मिं चीवरे सति पच्चत्थरणम्पि अधिट्ठातुं वट्टति । अनधिट्ठितमेव हि सन्निधि होति । अधिट्टितं न होतीति महासीवत्थेरो आह । अयं सन्निधिपरिवज्जनसन्तोसो नाम । विस्सज्जन्तेन पन न मुखं ओलोकेत्वा दातब्बं । सारणीयधम्मे ठत्वा विस्सज्जितब्बन्ति अयं विस्सज्जनसन्तोसो नाम । चीवरपटिसंयुत्तानि धुतङ्गानि नाम पंसुकूलिकणञ्चेव तेचीवरिकङ्गञ्च । तेसं वित्थारकथा विसुद्धिमग्गतो वेदितब्बा । इति चीवरसन्तोसमहाअरियवंसं पूरयमानो भिक्खु इमानि द्वे धुतङ्गानि गोपेति । इमानि गोपेन्तो चीवरसन्तोसमहाअरियवंसेन सन्तुट्ठो होति । वण्णवादीति एको सन्तुट्ठो होति, सन्तोसस्स वण्णं न कथेति, एको न सन्तुट्ठो होति, सन्तोसस्स वण्णं कथेति, एको नेव सन्तुट्ठो होति, न सन्तोसस्स वण्णं कथेति, एको सन्तुट्ठो चेव होति, सन्तोसस्स च वण्णं कथेति, तं दस्सेतुं “इतरीतरचीवरसन्तुट्ठिया च वण्णवादी''ति वुत्तं । ___ अनेसनन्ति दूतेय्यपहिनगमनानुयोगप्पभेदं नानप्पकारं अनेसनं । अप्पतिरूपन्ति अयुत्तं । अलद्धा चाति अलभित्वा । यथा एकच्चो “कथं नु खो चीवरं लभिस्सामी''ति । पुञ्जवन्तेहि भिक्खूहि सद्धिं एकतो हुत्वा कोहलं करोन्तो उत्तसति परितसति, सन्तुट्ठो भिक्खु एवं अलद्धा चीवरं न परितसति। लद्धा चाति धम्मेन समेन लभित्वा । अगधितोति विगतलोभगिद्धो | अमुच्छितोति अधिमत्ततण्हाय मुच्छं अनापन्नो । अनज्झापनोति तण्हाय अनोत्थतो अपरियोनद्धो । आदीनवदस्सावीति अनेसनापत्तियञ्च गेधितपरिभोगे च आदीनवं पस्समानो। निस्सरणपञोति “यावदेव सीतस्स पटिघाताया''ति वुत्तं निस्सरणमेव पजानन्तो। इतरीतरचीवरसन्तुट्ठियाति येन केनचि चीवरेन सन्तुट्ठिया। नेवत्तानुक्कंसेतीति “अहं पंसुकूलिको मया उपसम्पदमाळेयेव पंसुकूलिकङ्गं गहितं, को मया सदिसो अत्थी'ति अत्तुक्कंसनं न करोति । न परं वम्भेतीति “इमे पनचे भिक्खू न पंसुकूलिका"ति वा "पंसुकूलिकङ्गमत्तम्पि एतेसं नत्थी"ति वा एवं परं न वम्भेति । यो हि तत्थ दक्खोति यो तस्मिं चीवरसन्तोसे, वण्णवादादीसु वा दक्खो छेको ब्यत्तो। अनलसोति 178 Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०.३०९ - ३०९) अरियवंसचतुक्कवण्णना सातच्चकिरियाय आलसियविरहितों । सम्पजानो पटिस्सतोति सम्पजानपञ्ञाय चेव सतिया च युत्तो । अरियवंसे ठितोति अरियवंसे पतिट्ठितो । इतरीतरेन पिण्डपातेनाति येन केनचि पिण्डपातेन । एत्थापि पिण्डपातो जानितब्बो । पिण्डपातक्खेत्तं जानितब्बं, पिण्डपातसन्तोसो जानितब्बो, पिण्डपातपटिसंयुत्तं धुत जानितब्बं । तत्थ पिण्डपातोति “ओदनो, कुम्मासो, सत्तु, मच्छो, मंसं खीरं, दधि, सप्पि, नवनीतं, तेलं, मधु, फाणितं यागु खादनीयं, सायनीयं, लेहनीय "न्ति सोळस पिण्डपाता । १७९ पिण्डपातक्खेत्तन्ति सङ्घभत्तं, उद्देसभत्तं, निमन्तनं, सलाकभत्तं, पक्खिकं, उपोसथिकं, पाटिपदिकं, आगन्तुकभत्तं, गमिकभत्तं, गिलानभत्तं, गिलानुपट्टाकभत्तं, धुरभत्तं कुटिभत्तं, वारभत्तं, विहारभत्तन्ति पन्नरस पिण्डपातक्खेत्तानि । पिण्डपातसन्तोसोति पिण्डपाते वितक्कसन्तोसो, गमनसन्तोसो, परियेसनसन्तोसो पटिलाभसन्तोसो, पटिग्गहणसन्तोसो, मत्तप्पटिग्गहणसन्तोसो, लोलुप्पविवज्जनसन्तोसो, यथालाभसन्तोसो, यथाबलसन्तोसो, यथासारूप्पसन्तोसो, उपकारसन्तोसो, परिमाणसन्तोसो, परिभोगसन्तोसो, सन्निधिपरिवज्जनसन्तोसो, विस्सज्जनसन्तोसोति पन्नरस सन्तोसा । तत्थ सादको भिक्खु मुखं धोवित्वा वितक्केति । पिण्डपातिकेन पन गणेन सद्धिं चरता सायं थेरूपट्ठानकाले “स्वे कत्थ पिण्डाय चरिस्सामाति असुकगामे, भन्ते", ति एत्तकं चिन्तेत्वा ततो पट्ठाय न वितक्केतब्बं । एकचारिकेन वितक्कमाळके ठत्वा वितक्केतब्बं । ततो परं वितक्केन्तो अरियवंसा चुतो होति परिबाहिरो । अयं वितक्कसन्तोसो नाम । पिण्डाय पविसन्तेन “कुहिं लभिस्सामी " ति अचिन्तेत्वा कम्मट्ठानसीसेन गन्तब्बं । अयं गमनसन्तोसो नाम । परियेसन्तेन यं वा तं वा अगहेत्वा लज्जिं पेसलमेव गहेत्वा परियेसितब्बं । अयं परियेसनसन्तोसो नाम । 179 Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८० दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (१०.३०९-३०९) दूरतोव आहरियमानं दिस्वा "एतं मनापं, एतं अमनाप"न्ति चित्तं न उप्पादेतब्बं । अयं पटिलाभसन्तोसो नाम | "इमं मनापं गण्हिस्सामि, इमं अमनापं न गण्हिस्सामी"ति अचिन्तेत्वा यंकिञ्चि यापनमत्तं गहेतब्बमेव, अयं पटिग्गहणसन्तोसो नाम । एत्थ पन देय्यधम्मो बहु, दायको अप्पं दातुकामो, अप्पं गहेतब्बं । देय्यधम्मो बहु, दायकोपि बहुं दातुकामो, पमाणेनेव गहेतब्बं । देय्यधम्मो न बहु, दायकोपि अप्पं दातुकामो, अप्पं गहेतब्बं । देय्यधम्मो न बहु, दायको पन बहुं दातुकामो, पमाणेन गहेतब्बं । पटिग्गहणस्मिहि मत्तं अजानन्तो मनुस्सानं पसादं मक्खेति, सद्धादेय्यं विनिपातेति, सासनं न करोति, विजातमातुयापि चित्तं गहेतुं न सक्कोति । इति मत्तं जानित्वाव पटिग्गहेतब्बन्ति अयं मत्तप्पटिग्गहणसन्तोसो नाम । सद्धकुलानियेव अगन्त्वा द्वारप्पटिपाटिया गन्तब्बं । अयं लोलुप्पविवज्जनसन्तोसो नाम । यथालाभसन्तोसादयो चीवरे वुत्तनया एव । पिण्डपातं परिभुजित्वा समणधम्मं अनुपालेस्सामीति एवं उपकारं अत्वा परिभुञ्जनं उपकारसन्तोसो नाम | पत्तं पूरेत्वा आनीतं न पटिग्गहेतब्बं, अनुपसम्पन्ने सति तेन गाहापेतब्बं, असति हरापेत्वा पटिग्गहणमत्तं गहेतब्बं । अयं परिमाणसन्तोसो नाम । "जिघच्छाय पटिविनोदनं इदमेत्थ निस्सरण"न्ति एवं परिभुञ्जनं परिभोगसन्तोसो नाम। निदहित्वा न परिभुजितब्बन्ति अयं सनिधिपरिवज्जनसन्तोसो नाम । मुखं अनोलोकेत्वा सारणीयधम्मे ठितेन विस्सज्जेतब्बं । अयं विस्सज्जनसन्तोसो नाम । पिण्डपातपटिसंयुत्तानि पन पञ्च धुतङ्गानि- पिण्डपातिकङ्गं, सपदानचारिकॉ, 180 Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०.३०९-३०९) अरियवंसचतुक्कवण्णना १८१ एकासनिकङ्गं, पत्तपिण्डिकङ्गं, खलुपच्छाभत्तिकङ्गन्ति । तेसं वित्थारकथा विसुद्धिमग्गे वुत्ता । इति पिण्डपातसन्तोसमहाअरियवंसं पूरयमानो भिक्खु इमानि पञ्च धुतङ्गानि गोपेति । इमानि गोपेन्तो पिण्डपातसन्तोसमहाअरियवंसेन सन्तुट्ठो होति । “वण्णवादी"तिआदीनि वुत्तनयेनेव वेदितब्बानि । सेनासनेनाति इध सेनासनं जानितब्द, सेनासनक्खेत्तं जानितब्द, सेनासनसन्तोसो जानितब्बो, सेनासनपटिसंयुत्तं धुतङ्गं जानितब्बं । तत्थ सेनासनन्ति मञ्चो, पीठं, भिसि, बिम्बोहनं, विहारो, अड्डयोगो, पासादो, हम्मियं, गुहा, लेणं, अट्टो, माळो, वेळुगुम्बो, रुक्खमूलं, यत्थ वा पन भिक्खू पटिक्कमन्तीति इमानि पन्नरस सेनासनानि । सेनासनक्खेत्तन्ति “सङ्घतो वा गणतो वा जातितो वा मित्ततो वा अत्तनो वा धनेन पंसुकूलं वा"ति छ खेत्तानि । सेनासनसन्तोसोति सेनासने वितक्कसन्तोसादयो पन्नरस सन्तोसा। ते पिण्डपाते वुत्तनयेनेव वेदितब्बा। सेनासनपटिसंयुत्तानि पन पञ्च धुतङ्गानि- आरञिकङ्गं, रुक्खमूलिकणं, अब्भोकासिकङ्गं, सोसानिकङ्गं, यथासन्ततिकङ्गन्ति । तेसं वित्थारकथा विसुद्धिमग्गे वुत्ता। इति सेनासनसन्तोसमहाअरियवंसं पूरयमानो भिक्खु इमानि पञ्च धुतङ्गानि गोपेति । इमानि गोपेन्तो सेनासनसन्तोसमहाअरियवंसेन सन्तुट्ठो होति । गिलानपच्चयो पन पिण्डपातेयेव पविट्ठो । तत्थ यथालाभयथाबलयथासारुप्पसन्तोसेनेव सन्तुस्सितब् । नेसज्जिकङ्गं भावनारामअरियवंसं भजति । वुत्तम्पि चेतं - “पञ्च सेनासने वुत्ता, पञ्च आहारनिस्सिता । एको वीरियसंयुत्तो, द्वे च चीवरनिस्सिता''ति ।। . इति आयस्मा धम्मसेनापति सारिपुत्तत्थेरो पथविं पत्थरमानो विय सागरकुच्छिं पूरयमानो विय आकासं वित्थारयमानो विय च पठमं चीवरसन्तोसं अरियवंसं कथेत्वा चन्दं उट्ठापेन्तो विय सूरियं उल्लङ्घन्तो विय च दुतियं पिण्डपातसन्तोसं कथेत्वा सिनेरुं उक्खिपेन्तो विय ततियं सेनासनसन्तोसं अरियवंसं कथेत्वा इदानि सहस्सनयप्पटिमण्डितं 181 Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८२ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (१०.३०९-३०९) चतुत्थं भावनारामं अरियवंसं कथेतुं पुन चपरं आवुसो भिक्खु पहानारामो होतीति देसनं आरभि । तत्थ आरमनं आरामो, अभिरतीति अत्थो। पञ्चविधे पहाने आरामो अस्साति पहानारामो। कामच्छन्दं पजहन्तो रमति, नेक्खम्मं भावेन्तो रमति, ब्यापादं पजहन्तो रमति...पे०... सब्बकिलेसे पजहन्तो रमति, अरहत्तमग्गं भावेन्तो रमतीति एवं पहाने रतोति पहानरतो। वुत्तनयेनेव भावनाय आरामो अस्साति भावनारामो। भावनाय रतोति भावनारतो। ___ इमेसु पन चतूसु अरियवंसेसु पुरिमेहि तीहि तेरसन्नं धुतङ्गानं चतुपच्चयसन्तोसस्स च वसेन सकलं विनयपिटकं कथितं होति । भावनारामेन अवसेसं पिटकद्वयं । इमं पन भावनारामतं अरियवंसं कथेन्तेन भिक्खुना पटिसम्भिदामग्गे नेक्खम्मपाळिया कथेतब्बो । दीघनिकाये दसुत्तरसुत्तन्तपरियायेन कथेतब्बो। मज्झिमनिकाये सतिपट्ठानसुत्तन्तपरियायेन कथेतब्बो । अभिधम्मे निद्देसपरियायेन कथेतब्बो । तत्थ पटिसम्भिदामग्गे नेक्खम्मपाळियाति सो नेक्खम्म भावन्तो रमति, कामच्छन्दं पजहन्तो रमति । अब्यापादं ब्यापादं । आलोकसनं, थिनमिद्धं । अविक्खेपं उद्धच्वं । धम्पववत्थानं, विचिकिच्छं। जाणं, अविज्ज । पामोज्जं, अरतिं । पठमं झानं, पञ्च नीवरणे। दुतियं झानं, वितक्कविचारे । ततियं झानं, पीति । चतुत्थं झानं, सुखदुक्खे । आकासानञ्चायतनसमापत्तिं भावेन्तो रमति, रूपसझं पटिघसनं नानत्तसलं पजहन्तो रमति | विज्ञाणञ्चायतनसमापत्तिं...पे०... नेवसञानासज्ञायतनसमापत्तिं भावेन्तो रमति, आकिञ्चायतनसलं पजहन्तो रमति । अनिच्चानुपस्सनं भावेन्तो रमति, निच्चसधे पजहन्तो रमति । दुक्खानुपस्सनं, सुखसकं । अनत्तानुपस्सनं, अत्तसकं । निब्बिदानुपस्सनं, नन्दिं । विरागानुपस्सनं, रागं । निरोधानुपस्सनं, समुदयं । पटिनिस्सग्गानुपस्सनं, आदानं । खयानुपस्सनं, घनसबं । वयानुपस्सनं, आयूहनं। विपरिणामानुपस्सनं, धुवसझं। अनिमित्तानुपस्सनं, निमित्तं । अपणिहितानुपस्सनं, पणिधिं । सुञतानुपस्सनं अभिनिवेसं। अधिपञ्जाधम्मविपस्सनं, सारादानाभिनिवेसं। यथाभूतञाणदस्सनं, सम्मोहाभिनिवेसं। आदीनवानुपस्सनं, आलयाभिनिवेसं। पटिसङ्खानुपस्सनं, अप्पटिसङ्ख । विवट्टानुपस्सनं, संयोगाभिनिवेसं । 182 . Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०.३०९-३०९) अरियवंसचतुक्कवण्णना १८३ सोतापत्तिमग्गं, दिढेकडे किलेसे | सकदागामिमग्गं, ओळारिके किलेसे । अनागामिमग्गं, अणुसहगते किलेसे । अरहत्तमग्गं भावेन्तो रमति, सब्बकिलेसे पजहन्तो रमतीति एवं पटिसम्भिदामग्गे नेक्खम्मपाळिया कथेतब्बो । दीघनिकाये दसुत्तरसुत्तन्तपरियायेनाति एकं धम्मं भावेन्तो रमति, एकं धम्मं पजहन्तो रमति...पे०... दस धम्मे भावेन्तो रमति, दस धम्मे पजहन्तो रमति । कतमं एकं धम्म भावेन्तो रमति ? कायगतासतिं सातसहगतं । इमं एकं धम्मं भावेन्तो रमति । कतमं एवं धम्मं पजहन्तो रमति ? अस्मिमानं । इमं एकं धम्मं पजहन्तो रमति । कतमे द्वे धम्मे...पे०... कतमे दस धम्मे भावेन्तो रमति ? दस कसिणायतनानि । इमे दस धम्मे भावेन्तो रमति। कतमे दस धम्मे पजहन्तो रमति ? दस मिच्छत्ते । इमे दस धम्मे पजहन्तो रमति । एवं खो, भिक्खवे, भिक्खु भावनारामो होतीति एवं दीघनिकाये दसुत्तरसुत्तन्तपरियायेन कथेतब्बो । मज्झिमनिकाये सतिपट्टानसुत्तन्तपरियायेनाति एकायनो, भिक्खवे, मग्गो सत्तानं विसुद्धिया, सोकपरिदेवानं समतिक्कमाय, दुक्खदोमनस्सानं अत्थङ्गमाय, आयस्स अधिगमाय, निब्बानस्स सच्छिकिरियाय यदिदं चत्तारो सतिपट्ठाना । कतमे चत्तारो ? इध, भिक्खवे, भिक्खु काये कायानुपस्सी विहरति... वेदनासु वेदनानुपस्सी... चित्ते चित्तानुपस्सी... धम्मेसु धम्मानुपस्सी... 'अत्थि धम्मा'ति वा पनस्स सति पच्युपट्ठिता होति यावदेव आणमत्ताय पटिस्सतिमत्ताय अनिस्सितो च विहरति न च किञ्चि लोके उपादियति । एवम्पि, भिक्खवे, भिक्खु भावनारामो होति भावनारतो, पहानारामो होति पहानरतो । पुन चपरं, भिक्खवे, भिक्खु गच्छन्तो वा गच्छामीति पजानाति...पे०... पुन चपरं, भिक्खवे, भिक्खु सेय्यथापि पस्सेय्य सरीरं सिवथिकाय छड्डितं...पे०... पूतीनि चुण्णकजातानि । सो इममेव कार्य उपसंहरति, अयम्पि खो कायो एवंधम्मो एवंभावी एवंअनतीतोति । इति अज्झत्तं वा काये कायानुपस्सी विहरति...पे०... एवम्पि खो, भिक्खवे, भिक्खु भावनारामो होतीति एवं मज्झिमनिकाये सतिपट्टानसुत्तन्तपरियायेन कथेतब्बो। अभिधम्मे निदेसपरियायेनाति सब्बेपि सङ्खते अनिच्चतो दुक्खतो रोगतो गण्डतो...पे०... संकिलेसिकधम्मतो पस्सन्तो रमति । अयं, भिक्खवे, भिक्खु भावनारामो होतीति एवं निद्देसपरियायेन कथेतब्बो । 183 Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८४ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा नेव अत्तानुक्कंसेतीति अज्ज मे सट्ठि वा सत्तति वा वस्सानि अनिच्चं दुक्खं अनत्ताति विपस्सनाय कम्मं करोन्तस्स को मया सदिसो अत्थीति एवं अत्तुक्कंसनं न करोति । न परं बम्भेतीति अनिच्चं दुक्खन्ति विपस्सनामत्तकम्पिनत्थि, किं इमे विस्सट्ठकम्मट्ठाना चरन्तीति एवं परं वम्भनं न करोति । सेसं वुत्तनयमेव । ३१०. पधानानीति उत्तमवीरियानि । संवरपधानन्ति चक्खादीनि संवरन्तस्स उप्पन्नवीरियं । पहानपधानन्ति कामवितक्कादयो पजहन्तस्स उप्पन्नवीरियं । भावनापधानन्ति बोज्झङ्गे भावेन्तस्स उप्पन्नवीरियं । अनुरक्खणापधानन्ति समाधिनिमित्तं अनुरक्खन्तस्स उप्पन्नवीरियं । ( १०.३१० - ३१०) विवेकनिस्सितन्तिआदीसु विवेको विरागो निरोधोति तीणिपि निब्बानस्स नामानि । निब्बानञ्हि उपधिविवेकत्ता विवेको । तं आगम्म रागादयो विरज्जन्तीति विरागो । निरुज्झन्तीति निरोधो । तस्मा “विवेकनिस्सित ''न्तिआदीसु आरम्मणवसेन अधिगन्तब्बवसेन वा निब्बाननिस्सितन्ति अत्थो । वोस्सग्गपरिणामिन्ति एत्थ द्वे वोस्सग्गा परिच्चागवोस्सग्गो च पक्खन्दनवोस्सग्गो च । तत्थ विपस्सना तदङ्गवसेन किलेसे च खन्धे च परिच्चजतीति परिच्चागवोस्सग्गो | मग्गो आरम्मणवसेन निब्बानं पक्खन्दतीति पक्खन्दनवोस्सग्गो । तस्मा वोस्सग्गपरिणामिन्ति यथा भावियमानो सतिसम्बोज्झङ्गो वोस्सग्गत्थाय परिणमति, विपस्सनाभावञ्च मग्गभावञ्च पापुणाति, एवं भावेतीति अयमेत्थ अत्थो । सेसपदेसुपि एसेव नयो । च भद्रकन्ति भद्दकं । समाधिनिमित्तं वुच्चति अट्ठिकसदिवसेन अधिगतो समाधियेव । अनुरक्खतीति समाधिपरिबन्धकधम्मे रागदोसमोहे सोधेन्तो रक्खति । एत्थ अट्ठिकसञ्ञादिका पञ्चेव सञ्ञ वृत्ता । इमस्मिं पन ठाने दसपि असुभानि वित्थारेत्वा कथेतब्बानि । तेसं वित्थारो विसुद्धिमग्गे वृत्तोयेव । धम् आन्ति एकपटवेधवसेन चतुसच्चधम्मे आणं चतुसच्चब्भन्तरे निरोधसच्चे धम्मे ञणञ्च । यथाह – ‘" तत्थ कतमं धम्मे जाणं ? चतूसु मग्गेसु चतूसु फलेसु आण "न्ति (विभं० ७९६) । अन्वये त्राणन्ति चत्तारि सच्चानि पच्चक्खतो दिस्वा यथा इदानि, एवं अतीतेपि अनागतेपि इमेव पञ्चक्खन्धा दुक्खसच्चं, अयमेव तण्हा समुदयसच्चं, अयमेव निरोधो निरोधसच्चं, अयमेव मग्गो मग्गसच्चन्ति एवं तस्स ञाणस्स अनुगतियं आणं । 184 Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०.३११-३११) सोतापत्तियङ्गादिचतुक्कवण्णना १८५ तेनाह - “सो इमिना धम्मेन आतेन दिटेन पत्तेन विदितेन परियोगाळहेन अतीतानागतेन नयं नेती"ति । परिये आणन्ति परेसं चित्तपरिच्छेदे आणं । यथाह – “तत्थ कतमं परिये आणं ? इध भिक्खु परसत्तानं परपुग्गलानं चेतसा चेतो परिच्च जानाती''ति (विभं० ७९६) वित्थारेतब्बं । ठपेत्वा पन इमानि तीणि आणानि अवसेसं सम्मुतित्राणं नाम । यथाह - "तत्थ कतमं सम्मुतिञाणं ? ठपेत्वा धम्मे आणं ठपेत्वा अन्वये आणं ठपेत्वा परिच्छेदे आणं अवसेसं सम्मुतित्राण"न्ति (विभं० ७९६)। दुक्खे आणादीहि अरहत्तं पापेत्वा एकस्स भिक्खुनो निग्गमनं चतुसच्चकम्मट्ठानं कथितं । तत्थ द्वे सच्चानि वढें, द्वे विवढें, वट्टे अभिनिवेसो होति, नो विवट्टे । द्वीसु सच्चेसु आचरियसन्तिके परियत्तिं उग्गहेत्वा कम्मं करोति, द्वीसु सच्चेसु “निरोधसच्चं नाम इटुं कन्तं मनापं, मग्गसच्चं नाम इटुं कन्तं मनाप"न्ति सवनवसेन कम्मं करोति । द्वीसु सच्चेसु उग्गहपरिपुच्छासवनधारणसम्मसनपटिवेधो वट्टति, द्वीसु सवनपटिवेधो वट्टति । तीणि किच्चवसेन पटिविज्झति, एकं आरम्मणवसेन । द्वे सच्चानि दुद्दसत्ता गम्भीरानि, द्वे गम्भीरत्ता दुद्दसानि। सोतापत्तियङ्गादिचतुक्कवण्णना ३११. सोतापत्तियङ्गानीति सोतापत्तिया अङ्गानि, सोतापत्तिमग्गस्स पटिलाभकारणानीति अत्थो । सप्पुरिससंसेवोति बुद्धादीनं सप्पुरिसानं उपसङ्कमित्वा सेवनं । सद्धम्मस्सवनन्ति सप्पायस्स तेपिटकधम्मस्स सवनं । योनिसोमनसिकारोति अनिच्चादिवसेन मनसिकारो। धम्मानुधम्मप्पटिपत्तीति लोकुत्तरधम्मस्स अनुधम्मभूताय पुब्बभागपटिपत्तिया पटिपज्जनं। अवेच्चप्पसादेनाति अचलप्पसादेन । “इतिपि सो भगवा''तिआदीनि विसुद्धिमग्गे वित्थारितानि । फलधातुआहारचतुक्कानि उत्तानत्थानेव । अपिचेत्थ लूखपणीतवत्युवसेन ओळारिकसुखुमता वेदितब्बा। विज्ञआणद्वितियोति विज्ञाणं एतासु तिकृतीति विज्ञाणट्ठितियो । आरम्मणट्ठितिवसेनेतं वुत्तं । रूपूपायन्ति रूपं उपगतं हुत्वा । पञ्चवोकारभवस्मिहि अभिसङ्खारविाणं रूपक्खन्धं निस्साय तिट्ठति । तं सन्धायेतं वुत्तं । रूपारम्मणन्ति रूपक्खन्धगोचरं रूपपतिट्टितं हुत्वा । 185 Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा नन्दूपसेचनन्ति लोभसहगतं सम्पयुत्तनन्दियाव उपसित्तं हुत्वा । इतरं उपनिस्सयकोटिया । वुद्धिं विरुळ्हिं वेपुल्लं आपज्जतीति सट्ठिपि सत्ततिपि वस्सानि एवं पवत्तमानं वुद्धिं विरूळ्हिं वेपुल्लं आपज्जति । वेदनूपायादीसुपि एसेव नयो । इमेहि पन तीहि पदेहि चतुवोकारभवे अभिसङ्घारविञ्ञाणं वृत्तं । तस्स यावतायुकं पवत्तनवसेन वुद्धिं विरूहिं वेल्लं आपज्जना वेदितब्बा । चतुक्कवसेन पन देसनाय आगतत्ता विञ्ञाणूपायन्ति न वृत्तं । एवं वुच्चमाने च " कतमं नु खो एत्थ कम्मविञ्ञाणं, कतमं विपाकविञ्ञाण”न्ति सम्मोहो भवेय्य, तस्मापि न वुत्तं । अगतिगमनानि वित्थारितानेव । १८६ चीवरहेतूति तत्थ मनापं चीवरं लभिस्सामीति चीवरकारणा उप्पज्जति । इति भवाभवहेतूति एत्थ इतीति निदस्सनत्थे निपातो । यथा चीवरादिहेतु, एवं भवाभवहेतूपीति अत्थो । भवाभवति चेत्थ पणीतपणीततरानि तेलमधुफाणितादीनि अधिप्पेतानि । इमेसं पन चतुन्नं तण्हुप्पादानं पहानत्थाय परिपाटियाव चत्तारो अरियवंसा देसिताति वेदितब्बा । पटिपदाचतुक्कं हेट्ठा वुत्तमेव । अक्खमादीसु पधानकरणकाले सीतादीनि न खमतीति अक्खमा । खमतीति खमा । इन्द्रियदमनं “उप्पन्नं कामवितक्कं नाधिवासेती”तिआदिना नयेन वितक्कसमनं समा । दमा । धम्मपदानीति धम्मकोट्ठासानि । अनभिज्झा धम्मपदं नाम अलोभो वा अलोभसीसेन अधिगतज्झानविपस्सनामग्गफलनिब्बानानि वा । अब्यापादो धम्मपदं नाम अकोपो वा मेत्तासीसेन अधिगतज्झानादीनि वा । सम्मासति धम्मपदं नाम सुप्पट्ठितसति वा सतिसीसेन अधिगतज्झानादीनि वा । सम्मासमाधि धम्मपदं नाम समापत्ति वा अट्ठसमापत्तिवसेन अधिगतज्झानविपस्सनामग्गफलनिब्बानानि वा । दसासुभवसेन वा अधिगतज्झानादीनि अनभिज्झा धम्मपदं । चतुब्रह्मविहारवसेन अधिगतानि अब्यापादो धम्मपदं । दसानुस्सतिआहारेपटिकूलसञवसेन अधिगतानि सम्माि दसकसिणआनापानवसेन अधिगतानि सम्मासमाधिधम्मपदन्ति । धम्मपदं । ( १०.३११-३११) धम्मसमादानेसु पठमं अचेलकपटिपदा । दुतियं तिब्बकिलेसस्स अरहत्तं गहेतुं असक्कोन्तस्स अस्सुमुखस्सापि रुदतो परिसुद्धब्रह्मचरियचरणं । ततियं कामेसु पातब्यता । चतुत्थं चत्तारो पच्चये अलभमानस्सापि झानविपस्सनावसेन सुखसमङ्गिनो सासनब्रह्मचरियं । 186 Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०.३१२-३१२) पहब्याकरणादिचतुक्कवण्णना १८७ धम्मक्खन्धाति एत्थ गुणट्ठो खन्धट्ठो। सीलक्खन्धोति सीलगुणो। एत्थ च फलसीलं अधिप्पेतं । सेसपदेसुपि एसेव नयो । इति चतूसुपि ठानेसु फलमेव वुत्तं । बलानीति उपत्थम्भनटेन अकम्पियटेन च बलानि । तेसं पटिपक्खेहि कोसज्जादीहि अकम्पनियता वेदितब्बा। सब्बानिपि समथविपस्सनामग्गवसेन लोकियलोकुत्तरानेव कथितानि । अधिवानानीति एत्थ अधीति उपसग्गमत्तं । अत्थतो पन तेन वा तिट्ठन्ति, तत्थ वा तिट्ठन्ति, ठानमेव वा तंतंगुणाधिकानं पुरिसानं अधिट्टानं, पञ्जाव अधिट्टानं पाधिट्टानं । एत्थ च पठमेन अग्गफलपञ्जा । दुतियेन वचीसच्चं । ततियेन आमिसपरिच्चागो । चतुत्थेन किलेसूपसमो कथितोति वेदितब्बो । पठमेन च कम्मस्सकतपनं विपस्सनापखं वा आदि कत्वा फलपा कथिता । दुतियेन वचीसच्चं आदि कत्वा परमत्थसच्चं निब्बानं । ततियेन आमिसपरिच्चागं आदि कत्वा अग्गमग्गेन किलेसपरिच्चागो । चतुत्थेन समापत्तिविक्खम्भिते किलेसे आदिं कत्वा अग्गमग्गेन किलेसवूपसमो। पञआधिट्ठानेन वा एकेन अरहत्तफलपञा कथिता | सेसेहि परमत्थसच्चं । सच्चाधिट्ठानेन वा एकेन परमत्थसच्चं कथितं । सेसेहि अरहत्तपञाति मूसिकाभयत्थेरो आह । पञ्हब्याकरणादिचतुक्कवण्णना ३१२. पहब्याकरणानि महापदेसकथाय वित्थारितानेव । कण्हन्ति काळकं दसअकुसलकम्मपथकम्मं | कण्हविपाकन्ति अपाये निब्बत्तनतो काळकविपाकं । सुक्कन्ति पण्डरं कुसलकम्मपथकम्मं । सुक्कविपाकन्ति सग्गे निब्बत्तनतो पण्डरविपाकं । कण्हसुक्कन्ति मिस्सककम्मं । कण्हसुक्कविपाकन्ति सुखदुक्खविपाकं । मिस्सककम्महि कत्वा अकुसलेन तिरच्छानयोनियं मङ्गलहत्थिट्टानादीसु उप्पन्नो कुसलेन पवत्ते सुखं वेदयति । कुसलेन राजकुलेपि निब्बत्तो अकुसलेन पवत्ते दुक्खं वेदयति । अकण्हअसुक्कन्ति कम्मक्खयकरं चतुमग्गजाणं अधिप्पेतं । तहि यदि कण्हं भवेय्य, कण्हविपाकं ददेय्य | यदि सुक्कं भवेय्य, सुक्कविपाकं ददेय्य । उभयविपाकस्स पन अदानतो अकण्हासुक्कविपाकत्ता अकण्हं असुक्कन्ति अयमेत्थ अत्थो । 187 Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८८ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (१०.३१२-३१२) सच्छिकरणीयाति पच्चक्खकरणेन चेव पटिलाभेन च सच्छिकातब्बा। चक्खुनाति दिब्बचक्खुना । कायेनाति सहजातनामकायेन । पञआयाति अरहत्तफलजाणेन । ___ ओघाति वट्टस्मिं सत्ते ओहनन्ति ओसीदापेन्तीति ओघा । तत्थ पञ्चकामगुणिको रागो कामोघो। रूपारूपभवेसु छन्दरागो भवोघो। तथा झाननिकन्ति सस्सतदिविसहगतो च रागो। द्वासट्ठि दिट्ठियो दिट्ठोघो। वट्टस्मिं योजेन्तीति योगा। ते ओघा विय वेदितब्बा । ___ विसंयोजेन्तीति विसञ्जोगा। तत्थ असुभज्झानं कामयोगविसंयोगो । तं पादकं कत्वा अधिगतो अनागामिमग्गो एकन्तेनेव कामयोगविसञोगो नाम। अरहत्तमग्गो भवयोगविसञोगो नाम। सोतापत्तिमग्गो दिद्वियोगविसञोगो नाम। अरहत्तमग्गो अविज्जायोगविसञोगो नाम । गन्थनवसेन गन्था। वट्टस्मिं नामकायञ्चेव रूपकायञ्च गन्थति बन्धति पलिबुन्धतीति कायगन्थो। इदंसच्चाभिनिवेसोति इदमेव सच्चं, मोघमञ्जन्ति एवं पवत्तो दिट्ठाभिनिवेसो । उपादानानीति आदानग्गहणानि । कामोति रागो, सोयेव गहणटेन उपादानन्ति कामुपादानं। दिट्ठीति मिच्छादिट्ठि, सापि गहणटेन उपादानन्ति दिदुपादानं। इमिना सुद्धीति एवं सीलवतानं गहणं सीलब्बतुपादानं। अत्ताति एतेन वदति चेव उपादियति चाति अत्तवादुपादानं। योनियोति कोट्ठासा। अण्डे जाताति अण्डजा। जलाबुम्हि जाताति जलाबुजा। संसेदे जाताति संसेदजा। सयनस्मिं पूतिमच्छादीसु च निब्बत्तानमेतं अधिवचनं । वेगेन आगन्त्वा उपपतिता वियाति ओपपातिका। तत्थ देवमनुस्सेसु संसेदजओपपातिकानं अयं विसेसो । संसेदजा मन्दा दहरा हुत्वा निब्बत्तन्ति | ओपपातिका सोळसवस्सुद्देसिका हुत्वा । मनुस्सेसु हि भुम्मदेवेसु च इमा चतस्सोपि योनियो लब्भन्ति । तथा तिरच्छानेसु सुपण्णनागादीसु । वुत्त हेतं- “तत्थ, भिक्खवे, अण्डजा सुपण्णा अण्डजेव नागे हरन्ति, न जलाबुजे न संसेदजे न ओपपातिके"ति (सं० नि० २.३.३९३) । चातुमहाराजिकतो पट्ठाय उपरिदेवा 188 Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दक्खिणाविसुद्धादिचतुक्कवण्णना ओपपातिकायेव । तथा नेरयिका । पेतेसु चतस्सोपि लब्भन्ति । गब्भावक्कन्तियो सम्पसादनीये कथिता एव I ( १०.३१३ - ३१३) अत्तभावपटिलाभेसु पठमो खिड्डापदोसिकवसेन वेदितब्बो । दुतियो ओरब्मिकादीहि घातियमानउरब्भादिवसेन। ततियो मनोपदोसिकावसेन । चतुत्थो चातुमहाराजिके उपादाय उपरिसेसदेवतावसेन। ते हि देवा नेव अत्तसञ्चेतनाय मरन्ति, न परसञ्चेतनाय । दक्खिणाविसुद्धादिचतुक्कवण्णना ३१३. दक्खिणाविसुद्धियोति दानसङ्घाता दक्खिणा विसुज्झन्ति महफ्फला होन्ति एताहीति दक्खिणाविसुद्धियो । १८९ दायकतो विसुज्झति, नो पटिग्गाहकतोति यत्थ दायको सीलवा होति, धम्मेनुप्पन्नं देय्यधम्मं देति, पटिग्गाहको दुस्सीलो । अयं दक्खिणा वेस्सन्तरमहाराजस्स दक्खिणासदिसा। पटिग्गाहकतो विसुज्झति, नो दायकतोति यत्थ पटिग्गाहको सीलवा होति, दायको दुस्सीलो, अधम्मेनुप्पन्नं देति, अयं दक्खिणा चोरघातकस्स दक्खिणासदिसा । नेव दायकतो विसुज्झति, नो पटिग्गाहकतोति यत्थ उभोपि दुस्सीला देय्यधम्मोपि अधम्मेन निब्बत्तो । विपरियायेन चतुत्था वेदितब्बा । सङ्ग्रहवत्थूनीति सङ्ग्रहकारणानि । तानि हेट्ठा विभत्तानेव । अनरियवहारात अनरियानं लामकानं वोहारा । अरियवोहाराति अरियानं सप्पुरिसानं वोहारा । दिट्ठवादिताति दिट्टं मयाति एवं वादिता । एत्थ च तंतंसमुट्ठापकचेतनावसेन अथ वेदितब्बो | 189 Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (१०.३१४-३१४) अत्तन्तपादिचतुक्कवण्णना ३१४. अत्तन्तपादीसु पठमो अचेलको । दुतियो ओरब्मिकादीसु अञतरो। ततियो यजयाजको । चतुत्थो सासने सम्मापटिपन्नो । अत्तहिताय पटिपन्नादीसु पठमो यो सयं सीलादिसम्पन्नो, परं सीलादीसु न समादपेति आयस्मा वक्कलित्थेरो विय। दुतियो यो अत्तना न सीलादिसम्पन्नो, परं सीलादीसु समादपेति आयस्मा उपनन्दो विय । ततियो यो नेवत्तना सीलादिसम्पन्नो, परं सीलादीसु न समादपेति देवदत्तो विय । चतुत्थो यो अत्तना च सीलादिसम्पन्नो परञ्च सीलादीसु समादपेति आयस्मा महाकस्सपो विय। तमादीसु तमोति अन्धकारभूतो । तमपरायणोति तममेव परं अयनं गति अस्साति तमपरायणो। एवं सब्बपदेसु अत्थो वेदितब्बो। एत्थ च पठमो नीचे चण्डालादिकुले दुज्जीविते हीनत्तभावे निब्बत्तित्वा तीणि दुच्चरितानि परिपूरेति । दुतियो तथाविधो हुत्वा तीणि सुचरितानि परिपूरेति । ततियो उळारे खत्तियकुले बहुअन्नपाने सम्पन्नत्तभावे निब्बत्तित्वा तीणि दुच्चरितानि परिपूरेति । चतुत्थो तादिसोव हुत्वा तीणि सुचरितानि परिपूरेति । समणमचलोति समणअचलो। म-कारो पदसन्धिमत्तं । सो सोतापन्नो वेदितब्बो । सोतापन्नो हि चतूहि वातेहि इन्दखीलो विय परप्पवादेहि अकम्पियो । अचलसद्धाय समन्नागतोति समणमचलो। वुत्तम्पि चेतं- “कतमो च पुग्गलो समणमचलो? इधेकच्चो पुग्गलो तिण्णं संयोजनानं परिक्खया'ति (पु० प० १९०) वित्थारो। रागदोसानं पन तनुभूतत्ता सकदागामी समणपदुमो नाम । तेनाह - "कतमो पन पुग्गलो समणपदुमो ? इधेकच्चो पुग्गलो सकिदेव इमं लोकं आगन्त्वा दुक्खस्सन्तं करोति, अयं वुच्चति पुग्गलो समणपदुमो"ति (पु० प० १९०)। रागदोसानं अभावा खिप्पमेव पुप्फिस्सतीति अनागामी समणपुण्डरीको नाम । तेनाह - "कतमो च पुग्गलो समणपुण्डरीको? इधेकच्चो पुग्गलो पञ्चन्नं ओरम्भागियानं...पे०... अयं वुच्चति पुग्गलो समणपुण्डरीको''ति (पु० प० १९०)। अरहा पन सब्बेसम्पि गन्थकारकिलेसानं अभावा समणेसु समणसुखुमालो नाम | तेनाह - "कतमो च पुग्गलो समणेसु समणसुखुमालो? इधेकच्चो आसवानं खया...पे०... उपसम्पज्ज विहरति । अयं वुच्चति पुग्गलो समणेसु समणसुखुमालो"ति । 190 Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०.३१५-३१५) पञ्चकवण्णना “इमे खो, आवुसो''तिआदि वुत्तनयेनेव योजेतब्बं । इति समपञ्जासाय चतुक्कानं वसेन द्वेपञ्हसतानि कथेन्तो थेरो सामग्गिरसं दस्सेसीति । चतुक्कवण्णना निहिता। पञ्चकवण्णना ३१५. इति चतुक्कवसेन सामग्गिरसं दस्सेत्वा इदानि पञ्चकवसेन दस्सेतुं पुन देसनं आरभि । तत्थ पञ्चसु खन्धेसु रूपक्खन्धो लोकियो। सेसा लोकियलोकुत्तरा। उपादानक्खन्धा लोकियाव । वित्थारतो पन खन्धकथा विसुद्धिमग्गे वुत्ता। कामगुणा हेट्ठा वित्थारिताव । सुकतदुक्कटादीहि गन्तब्बाति गतियो। निरयोति निरस्सादो। सहोकासेन खन्धा कथिता। ततो परेसु तीसु निब्बत्ता खन्धाव वुत्ता । चतुत्थे ओकासोपि । आवासे मच्छरियं आवासमच्छरियं । तेन समन्नागतो भिक्खु आगन्तुकं दिस्वा "एत्थ चेतियस्स वा सङ्घस्स वा परिक्खारो ठपितो"तिआदीनि वत्वा सङ्घिकम्पि आवासं निवारेति । सो कालङ्कृत्वा पेतो वा अजगरो वा हुत्वा निब्बत्तति । कुले मच्छरियं कुलमच्छरियं । तेन समन्नागतो भिक्खु तेहि कारणेहि अत्तनो उपट्ठाककुले अजेसं पवेसनम्पि निवारेति । लाभे मच्छरियं लाभमच्छरियं। तेन समन्नागतो भिक्खु सचिकम्पि लाभं मच्छरायन्तो यथा अञ्चे न लभन्ति, एवं करोति । वण्णे मच्छरियं वण्णमच्छरियं । वण्णोति चेत्थ सरीरवण्णोपि गुणवण्णोपि वेदितब्बो । परियत्तिधम्मे मच्छरियं धम्ममच्छरियं । तेन समन्नागतो भिक्खु "इमं धम्म परियापुणित्वा एसो मं अभिभविस्सती"ति अञस्स न देति । यो पन धम्मानुग्गहेन वा पुग्गलानुग्गहेन वा न देति, न तं मच्छरियं । चित्तं निवारेन्ति परियोनन्धन्तीति नीवरणानि। कामच्छन्दो नीवरणपत्तो अरहत्तमग्गवज्झो। कामरागानुसयो कामरागसंयोजनपत्तो अनागामिमग्गवज्झो। थिनं 191 Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९२ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (१०.३१६-३१६) चित्तगेलनं । मिद्धं खन्धत्तयगेलनं । उभयम्पि अरहत्तमग्गवज्झं । तथा उद्धच्चं । कुक्कुच्चं अनागामिमग्गवझं । विचिकिच्छा पठममग्गवज्झा । ___ संयोजनानीति बन्धनानि । तेहि पन बद्धेसु पुग्गलेसु रूपारूपभवे निब्बत्ता सोतापन्नसकदागामिनो अन्तोबद्धा बहिसयिता नाम । तेसहि कामभवे बन्धनं । कामभवे अनागामिनो बहिबद्धा अन्तोसयिता नाम। तेसहि रूपारूपभवे बन्धनं । कामभवे सोतापन्नसकदागामिनो अन्तोबद्धा अन्तोसयिता नाम । रूपारूपभवे अनागामिनो बहिबद्धा बहिसयिता नाम । खीणासवो सब्बत्थ अबन्धनो। सिक्खितब्बं पदं सिक्खापदं, सिक्खाकोट्ठासोति अत्थो। सिक्खाय वा पदं सिक्खापदं, अधिचित्तअधिपञासिक्खाय अधिगमुपायोति अत्थो । अयमेत्थ सङ्ग्रेपो । वित्थारतो पन सिक्खापदकथा विभङ्गप्पकरणे सिक्खापदविभङ्गे आगता एव । अभब्बट्ठानादिपञ्चकवण्णना ३१६. “अभब्बो, आवुसो, खीणासवो भिक्खु सञ्चिच्च पाण''न्तिआदि देसनासीसमेव, सोतापन्नादयोपि पन अभब्बा | पुथुज्जनखीणासवानं निन्दापसंसथम्पि एवं वुत्तं । पुथुज्जनो नाम गारव्हो, मातुघातादीनिपि करोति । खीणासवो पन पासंसो, कुन्थकिपिल्लिकघातादीनिपि न करोतीति । ब्यसनेसु वियस्सतीति ब्यसनं, हितसुखं खिपति विद्धंसेतीति अत्थो । जातीनं ब्यसनं आतिव्यसनं, चोररोगभयादीहि आतिविनासोति अत्थो। भोगानं ब्यसनं भोगव्यसनं, राजचोरादिवसेन भोगविनासोति अत्थो । रोगो एव ब्यसनं रोगव्यसनं। रोगो हि आरोग्यं ब्यसति विनासेतीति ब्यसनं, सीलस्स ब्यसनं सीलव्यसनं। दुस्सील्यस्सेतं नामं । सम्मादिढेि विनासयमाना उप्पन्ना दिट्ठि एव ब्यसनं दिडिव्यसनं। एत्थ च आतिब्यसनादीनि तीणि नेव अकुसलानि न तिलक्खणाहतानि | सीलदिट्ठिव्यसनद्वयं अकुसलं तिलक्खणाहतं । तेनेव "नावुसो, सत्ता जातिव्यसनहेतु वा"तिआदिमाह । जातिसम्पदाति ज्ञातीनं सम्पदा पारिपूरी बहुभावो । भोगसम्पदायपि एसेव नयो । आरोग्यस्स सम्पदा आरोग्यसम्पदा। पारिपूरी दीघरत्तं अरोगता | सीलदिद्विसम्पदासुपि एसेव 192 Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०.३१७-३१७) पधानियङ्गपञ्चकवण्णना नयो । इधापि ज्ञातिसम्पदादयो नो कुसला, न तिलक्खणाहता। सीलदिट्ठिसम्पदा कुसला, तिलक्खणाहता । तेनेव “नावुसो, सत्ता आतिसम्पदाहेतु वा"तिआदिमाह । सीलविपत्तिसीलसम्पत्तिकथा महापरिनिब्बाने वित्थारिताव | चोदकेनाति वत्थुसंसन्दस्सना, आपत्तिसंसन्दस्सना, संवासप्पटिक्खेपो, सामीचिप्पटिक्खेपोति चतूहि चोदनावत्थूहि चोदयमानेन । कालेन वक्खामि नो अकालेनाति एत्थ चुदितकस्स कालो कथितो, न चोदकस्स। परं चोदेन्तेन हि परिसमज्झे वा उपोसथपवारणग्गे वा आसनसालाभोजनसालादीसु वा न चोदेतब्बं । दिवाट्ठाने निसिन्नकाले "करोतायस्मा ओकासं, अहं आयस्मन्तं वत्तुकामो''ति एवं ओकासं कारेत्वा चोदेतब्बं । पुग्गलं पन उपपरिक्खित्वा यो लोलपुग्गलो अभूतं वत्वा भिक्खूनं अयसं आरोपेति, सो ओकासकम्मं विनापि चोदेतब्बो । भूतेनाति तच्छेन सभावेन । सण्हेनाति मढेन मुदुकेन । अत्थसहितेनाति अत्थकामताय हितकामताय उपेतेन । पधानियङ्गपञ्चकवण्णना ३१७. पधानियङ्गानीति पधानं वुच्चति पदहनं, पधानमस्स अत्थीति पधानियो, पधानियस्स भिक्खुनो अङ्गानि पधानियङ्गानि। सद्धोति सद्धाय समन्नागतो। सद्धा पनेसा आगमनसद्धा, अधिगमनसद्धा, ओकप्पनसद्धा, पसादसद्धाति चतुब्बिधा। तत्थ सब्ब बोधिसत्तानं सद्धा अभिनीहारतो आगतत्ता आगमनसद्धा नाम । अरियसावकानं पटिवेधेन अधिगतत्ता अधिगमनसद्धा नाम । बुद्धो धम्मो सङ्घोति वुत्ते अचलभावेन ओकप्पनं ओकप्पनसद्धा नाम । पसादुप्पत्ति पसादसद्धा नाम । इध ओकप्पनसद्धा अधिप्पेता । बोधिन्ति चतुत्थमग्गाणं । तं सुप्पटिविद्धं तथागतेनाति सद्दहति । देसनासीसमेव चेतं, इमिना पन अङ्गेन तीसुपि रतनेसु सद्धा अधिप्पेता । यस्स हि बुद्धादीसु पसादो बलवा, तस्स पधानवीरियं इज्झति । अप्पाबाधोति अरोगो। अप्पातङ्कोति निढुक्खो। समवेपाकिनियाति समविपाचनीया। गहणियाति कम्मजतेजोधातुया। नातिसीताय नाच्चुण्हायाति अतिसीतगहणिको सीतभीरू होति, अच्चुण्हगहणिको उहभीरू होति, तेसं पधानं न इज्झति । मज्झिमगहणिकस्स इज्झति । तेनाह - “मज्झिमाय पधानक्खमाया''ति । यथाभूतं अत्तानं आविकत्ताति यथाभूतं अत्तनो अगुणं पकासेता। उदयत्थगामिनियाति उदयञ्च अत्थङ्गमञ्च गन्तुं परिच्छिन्दितुं समत्थाय, एतेन पासलक्खणपरिग्गाहकं उदयब्बयाणं 193 Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९४ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (१०.३१८-३१९) वुत्तं । अरियायाति परिसुद्धाय। निब्बेधिकायाति अनिब्बिद्धपुब्बे लोभक्खन्धादयो निबिज्झितुं समत्थाय । सम्मा दुक्खक्खयगामिनियाति तदङ्गवसेन किलेसानं पहीनत्ता यं यं दुक्खं खीयति, तस्स तस्स दुक्खस्स खयगामिनिया। इति सब्बेहि इमेहि पदेहि विपस्सनापाव कथिता । दुप्पञस्स हि पधानं न इज्झति । सुद्धावासादिपञ्चकवण्णना ३१८. सुद्धावासाति सुद्धा इध आवसिंसु आवसन्ति आवसिस्सन्ति वाति सुद्धावासा । सुद्धाति किलेसमलरहिता अनागामिखीणासवा । अविहातिआदीसु यं वत्तब्ध, तं महापदाने वुत्तमेव । __ अनागामीसु आयुनो मज्झं अनतिक्कमित्वा अन्तराव किलेसपरिनिब्बानं अरहत्तं पत्तो अन्तरापरिनिब्बायी नाम | मझं उपहच्च अतिक्कमित्वा पत्तो उपहच्चपरिनिब्बायी नाम । असङ्खारेन अप्पयोगेन अकिलमन्तो सुखेन पत्तो असङ्घारपरिनिब्बायी नाम | ससङ्खारेन सप्पयोगेन किलमन्तो दुक्खेन पत्तो ससङ्घारपरिनिब्बायी नाम । इमे चत्तारो पञ्चसुपि सुद्धावासेसु लब्भन्ति । उद्धंसोतोअकनिट्ठगामीति एत्थ पन चतुक्कं वेदितब् । यो हि अविहातो पट्ठाय चत्तारो देवलोके सोधेत्वा अकनिटुं गन्त्वा परिनिब्बायति, अयं उद्धंसोतो अकनिट्ठगामी नाम । यो अविहातो दुतियं वा ततियं वा चतुत्थं वा देवलोकं गन्त्वा परिनिब्बायति, अयं उद्धंसोतो न अकनिट्ठगामी नाम । यो कामभवतो अकनिटेसु निब्बत्तित्वा परिनिब्बायति, अयं न उद्धंसोतो अकनिट्ठगामी नाम । यो हेट्ठा चतूस देवलोकेसु तत्थ तत्थेव निब्बत्तित्वा परिनिब्बायति, अयं न उद्धंसोतो न अकनिट्ठगामी नामाति । चेतोखिलपञ्चकवण्णना ३१९. चेतोखिलाति चित्तस्स थद्धभावा | सत्थरि ककतीति सत्थु सरीरे वा गुणे वा कवति । सरीरे कङ्खमानो “द्वत्तिंसमहापुरिसवरलक्खणपटिमण्डितं नाम सरीरं अत्थि नु खो नत्थी''ति कति । गुणे कङ्खमानो “अतीतानागतपच्चुप्पन्नजाननसमत्थं सब्ब ताणं अस्थि नु खो नत्थी''ति कङ्खति । आतप्पायाति वीरियकरणत्थाय । अनुयोगायाति पुनप्पुनं योगाय । सातच्चायाति सततकिरियाय। पधानायाति पदहनत्थाय । अयं पठमो चेतोखिलोति अयं 194 Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०.३२०-३२१) चेतसोविनिबन्धादिपञ्चकवण्णना १९५ सत्थरि विचिकिच्छासङ्घातो पठमो चित्तस्स थद्धभावो । धम्मेति परियत्तिधम्मे च पटिवेधधम्मे च । परियत्तिधम्मे कङ्खमानो "तेपिटकं बुद्धवचनं चतुरासीतिधम्मक्खन्धसहस्सानीति वदन्ति, अस्थि नु खो एतं नत्थी'"ति कङ्खति । पटिवेधधम्मे कङ्खमानो “विपस्सनानिस्सन्दो मग्गो नाम, मग्गनिस्सन्दो फलं नाम, सब्बसङ्खारपटिनिस्सग्गो निब्बानं नामाति वदन्ति, तं अस्थि नु खो नत्थी"ति कङ्घति । सो कङ्कतीति “उजुप्पटिपन्नोतिआदीनं पदानं वसेन एवरूपं पटिपदं पटिपन्नो चत्तारो मग्गट्ठा चत्तारो फलट्ठाति अट्ठन्नं पुग्गलानं समूहभूतो सङ्घो नाम अत्थि नु खो नत्थी''ति कवति। सिक्खाय कङ्घमानो “अधिसीलसिक्खा नाम, अधिचित्तअधिपचासिक्खा नामाति वदन्ति, सा अत्थि नु खो नत्थी'ति कङ्खति । अयं पञ्चमोति अयं सब्रह्मचारीसु कोपसङ्खातो पञ्चमो चित्तस्स थद्धभावो कचवरभावो खाणुकभावो । चेतसोविनिबन्धादिपञ्चकवण्णना ३२०. चेतसोविनिबन्धाति चित्तं बन्धित्वा मुट्ठियं कत्वा विय गण्हन्तीति चेतसोविनिबन्धा । कामेति वत्थुकामेपि किलेसकामेपि। कायेति अत्तनो काये । रूपेति बहिद्धारूपे। यावदत्थन्ति यत्तकं इच्छति, तत्तकं । उदरावदेहकन्ति उदरपूरं । तहि उदरं अवदेहनतो “उदरावदेहक''न्ति वुच्चति । सेय्यसुखन्ति मञ्चपीठसुखं । पस्ससुखन्ति यथा सम्परिवत्तकं सयन्तस्स दक्खिणपस्सवामपस्सानं सुखं होति, एवं उप्पन्नं सुखं | मिद्धसुखन्ति निद्दासुखं । अनुयुत्तोति युत्तप्पयुत्तो विहरति । पणिधायाति पत्थयित्वा । ब्रह्मचरियेनाति मेथुनविरतिब्रह्मचरियेन । देवो वा भविस्सामीति महेसक्खदेवो वा भविस्सामि । देवञतरो वाति अप्पेसक्खदेवेसु वा अञतरो। इन्द्रियेसु पठमपञ्चके लोकियानेव कथितानि । दुतियपञ्चके पठमदुतियचतुत्थानि लोकियानि, ततियपञ्चमानि लोकियलोकुत्तरानि। ततियपञ्चके समथविपस्सनामग्गवसेन लोकियलोकुत्तरानि । निस्सरणियपञ्चकवण्णना ३२१. निस्सरणियाति निस्सटा विसझुत्ता। धातुयोति अत्तसुञसभावा । कामे मनसिकरोतोति कामे मनसिकरोन्तस्स, असुभज्झानतो वुट्टाय अगदं गहेत्वा विसं 195 Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९६ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (१०.३२२-३२२) वीमंसन्तो विय वीमंसनत्थं कामाभिमुखं चित्तं पेसेन्तस्साति अत्थो । न पक्खन्दतीति न पविसति। न पसीदतीति पसादं नापज्जति । न सन्तिद्वतीति न पतिद्वति । न विमुच्चतीति नाधिमुच्चति । यथा पन कुक्कुटपत्तं वा न्हारुदकुलं वा अग्गिम्हि पक्खित्तं पतिलीयति पतिकुटति पतिवत्तति न सम्पसारियति; एवं पतिलीयति न पसारियति । नेक्खम्म खो पनाति इध नेक्खम्मं नाम दससु असुभेसु पठमज्झानं, तदस्स मनसिकरोतो चित्तं पक्खन्दति । तस्स तं चित्तन्ति तस्स तं असुभज्झानचित्तं । सुगतन्ति गोचरे गतत्ता सुट्ठ गतं । सुभावितन्ति अहानभागियत्ता सुटु भावितं । सुवुट्टितन्ति कामतो सुटु वुट्टितं । सुविमुत्तन्ति कामेहि सुट्ठ विमुत्तं । कामपच्चया आसवा नाम कामहेतुका चत्तारो आसवा । विधाताति दुक्खा । परिळाहाति कामरागपरिळाहा। न सो तं वेदनं वेदेतीति सो तं कामवेदनं विघातपरिळाहवेदनञ्च न वेदयति । इदमक्खातं कामानं निस्सरणन्ति इदं असुभज्झानं कामेहि निस्सटत्ता कामानं निस्सरणन्ति अक्खातं । यो पन तं झानं पादकं कत्वा सङ्खारे सम्मसन्तो ततियं मग्गं पत्वा अनागामिफलेन निब्बानं दिस्वा पुन कामा नाम नत्थीति जानाति, तस्स चित्तं अच्चन्तनिस्सरणमेव । सेसपदेसुपि एसेव नयो । अयं पन विसेसो, दुतियवारे मेत्ताझानानि ब्यापादस्स निस्सरणं नाम । ततियवारे करुणाझानानि विहिंसाय निस्सरणं नाम । चतुत्थवारे अरूपज्झानानि रूपानं निस्सरणं नाम । अच्चन्तनिस्सरणे चेत्थ अरहत्तफलं योजेतब्बं । पञ्चमवारे सक्कायं मनसिकरोतोति सुद्धसङ्खारे परिग्गण्हित्वा अरहत्तं पत्तस्स सुक्खविपस्सकस्स फलसमापत्तितो वुट्ठाय वीमंसनत्थं पञ्चुपादानक्खन्धाभिमुखं चित्तं पेसेन्तस्स । इदमक्खातं सक्कायनिस्सरणन्ति इदं अरहत्तमग्गेन च फलेन च निब्बानं दिस्वा ठितस्स भिक्खुनो पुन सक्कायो नत्थीति उप्पन्नं अरहत्तफलसमापत्तिचित्तं सक्कायस्स निस्सरणन्ति अक्खातं। विमुत्तायतनपञ्चकवण्णना ___३२२. विमुत्तायतनानीति विमुच्चनकारणानि । अत्थपटिसंवेदिनोति पाळिअत्थं जानन्तस्स । धम्मपटिसंवेदिनोति पाळिं जानन्तस्स | पामोज्जन्ति तरुणपीति। पीतीति तुट्ठाकारभूता बलवपीति। कायोति नामकायो पटिपस्सम्भति। सुखं वेदयतीति सुखं पटिलभति । चित्तं समाधियतीति अरहत्तफलसमाधिना समाधियति । अयहि तं धम्मं सुणन्तो 196 Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०.३२३-३२३) छक्कवण्णना १९७ आगतागतद्वाने झानविपस्सनामग्गफलानि जानाति, तस्स एवं जानतो पीति उप्पज्जति । सो तस्सा पीतिया अन्तरा ओसक्कितुं न देन्तो उपचारकम्मट्ठानिको हुत्वा विपस्सनं वड्वेत्वा अरहत्तं पापुणाति । तं सन्धाय वुत्तं - “चित्तं समाधियती"ति । सेसेसुपि एसेव नयो । अयं पन विसेसो, समाधिनिमित्तन्ति अट्ठतिसाय आरम्मणेसु अञतरो समाधियेव समाधिनिमित्तं । सुग्गहितं होतीतिआदीसु आचरियसन्तिके कम्मट्ठानं उग्गण्हन्तेन सुट्ठ गहितं होति । सुट्ठ मनसिकतन्ति सुट्ट उपधारितं । सुप्पटिविद्धं पञ्जायाति पाय सुटु पच्चक्खं कतं । तस्मिं धम्मेति तस्मिं कम्मट्ठानपाळिधम्मे । विमुत्तिपरिपाचनीयाति विमुत्ति वुच्चति अरहत्तं, तं परिपाचेन्तीति विमुत्तिपरिपाचनीया। अनिच्चसाति अनिच्चानुपस्सनााणे उप्पन्नसज्ञा। अनिच्चे दुक्खसजाति दुक्खानुपस्सनाजाणे उप्पन्नसञ्जा। दुक्खे अनत्तसज्ञाति अनत्तानुपस्सनाजाणे उप्पन्नसञ्जा। पहानसजाति पहानानुपस्सनााणे उप्पन्नसा। विरागसञ्जाति विरागानुपस्सनााणे उप्पन्नसआ। "इमे खो आवुसो"तिआदि वुत्तनयेनेव योजेतब्बं । इति छब्बीसतिया पञ्चकानं वसेन तिंससतपन्हे कथेन्तो थेरो सामग्गिरसं दस्सेसीति । पञ्चकवण्णना निहिता। छक्कवण्णना ३२३. इति पञ्चकवसेन सामग्गिरसं दस्सेत्वा इदानि छक्कवसेन दस्सेतुं पुन देसनं आरभि । तत्थ अज्झत्तिकानीति अज्झत्तज्झत्तिकानि। बाहिरानीति ततो अज्झत्तज्झत्ततो बहिभूतानि । वित्थारतो पन आयतनकथा विसुद्धिमग्गे कथिताव | विणकायाति विज्ञाणसमूहा। चक्खुविज्ञाणन्ति चक्खुपसादनिस्सितं कुसलाकुसलविपाकविज्ञाणं । एस नयो सब्बत्थ । चक्खुसम्फस्सोति चक्खुनिस्सितो सम्फस्सो। सोतसम्फस्सादीसुपि एसेव नयो । मनोसम्फस्सोति इमे दस सम्फस्से ठपत्वा सेसो सब्बो मनोसम्फस्सो नाम । वेदनाछक्कम्पि एतेनेव नयेन वेदितब्बं । रूपसञ्जाति 197 Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९८ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (१०.३२५-३२५) रूपं आरम्मणं कत्वा उप्पन्ना सञ्जा। एतेनुपायेन सेसापि वेदितब्बा। चेतनाछक्केपि एसेव नयो । तथा तण्हाछक्के । अगारवोति गारवविरहितो। अप्पतिस्सोति अप्पतिस्सयो अनीचवुत्ति । एत्थ पन यो भिक्खु सत्थरि धरमाने तीसु कालेसु उपट्टानं न याति। सत्थरि अनुपाहने चङ्कमन्ते सउपाहनो चङ्कमति, नीचे चङ्कमन्ते उच्चे चङ्कमति, हेट्ठा वसन्ते उपरि वसति, सत्थुदस्सनट्ठाने उभो अंसे पारुपति, छत्तं धारेति, उपाहनं धारेति, नहायति, उच्चारं वा पस्सावं वा करोति । परिनिब्बुते पन चेतियं वन्दितुं न गच्छति, चेतियस्स पायनट्ठाने सत्थुदस्सनट्ठाने वुत्तं सब्बं करोति, अयं सत्थरि अगारवो नाम । यो पन धम्मस्सवने संघुढे सक्कच्चं न गच्छति, सक्कच्चं धम्मं न सुणाति, समुल्लपन्तो निसीदति, सक्कच्चं न गण्हाति, न वाचेति, अयं धम्मे अगारवो नाम । यो पन थेरेन भिक्खुना अनज्झिट्ठो धम्म देसेति, निसीदति, पहं कथेति, वुड्डे भिक्खू घट्टेन्तो गच्छति, तिट्ठति, निसीदति, दुस्सपल्लत्थिकं वा हत्थपल्लत्थिकं वा करोति, सङ्घमज्झे उभो अंसे पारुपति, छत्तुपाहनं धारेति, अयं सङ्गे अगारवो नाम । एकभिक्खुस्मिम्पि हि अगारवे कते सङ्घ अगारवो कतोव होति । तिस्सो सिक्खा पन अपूरयमानोव सिक्खाय अगारवो नाम । अप्पमादलक्खणं अननुब्रूहयमानो अप्पमादे अगारवो नाम । दुविधम्पि पटिसन्थारं अकरोन्तो पटिसन्थारे अगारवो नाम । छ गारवा वुत्तप्पटिपक्खवसेन वेदितब्बा। सोमनस्सूपविचाराति सोमनस्ससम्पयुत्ता विचारा। सोमनस्सट्ठानियन्ति सोमनस्सकारणभूतं । उपविचरतीति वितक्केन वितक्केत्वा विचारेन परिच्छिन्दति । एस नयो सब्बत्थ । दोमनस्सूपविचारापि एवमेव वेदितब्बा। तथा उपेक्खपविचारा। सारणीयधम्मा हेट्ठा वित्थारिता । दिहिसामञ्जगतोति इमिना पन पदेन कोसम्बकसुत्ते पठममग्गो कथितो । इध चत्तारोपि मग्गा । विवादमूलछक्कवण्णना ३२५. विवादमूलानीति विवादस्स मूलानि । कोधनोति कुज्झनलक्खणेन कोधेन समन्नागतो। उपनाहीति वेरअप्पटिनिस्सग्गलक्खणेन उपनाहेन समन्नागतो। अहिताय दुक्खाय देवमनुस्सानन्ति द्विनं भिक्खूनं विवादो कथं देवमनुस्सानं अहिताय दुक्खाय संवत्तति । कोसम्बकक्खन्धके विय द्वीसु भिक्खूसु विवादं आपन्नेसु तस्मिं विहारे तेसं 198 Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०.३२६-३२६) निस्सरणियछक्कवण्णना १९९ अन्तेवासिका विवदन्ति । तेसं ओवादं गण्हन्तो भिक्खुनिसङ्घो विवदति । ततो तेसं उपट्ठाका विवदन्ति । अथ मनुस्सानं आरक्खदेवता द्वे कोट्ठासा होन्ति । तत्थ धम्मवादीनं आरक्खदेवता धम्मवादिनियो होन्ति अधम्मवादीनं अधम्मवादिनियो । ततो आरक्खदेवतानं मित्ता भुम्मा देवता भिज्जन्ति । एवं परम्परा याव ब्रह्मलोका ठपेत्वा अरियसावके सब्बे देवमनुस्सा द्वे कोट्ठासा होन्ति । धम्मवादीहि पन अधम्मवादिनोव बहुतरा होन्ति। ततो "यं बहुकेहि गहितं, तं तच्छन्ति धम्मं विस्सज्जेत्वा बहुतराव अधम्मं गण्हन्ति । ते अधम्मं पुरक्खत्वा वदन्ता अपायेसु निब्बत्तन्ति । एवं द्विन्नं भिक्खूनं विवादो देवमनुस्सानं अहिताय दक्खाय होति। अज्झत्तं वाति तुम्हाकं अब्भन्तरपरिसाय । बहिद्धा वाति परेसं परिसाय । मक्खीति परेसं गुणमक्खनलक्खणेन मक्खेन समन्नागतो। पळासीति युगग्गाहलक्खणेन पळासेन समन्नागतो | इस्सुकीति परसक्कारादीनि इस्सायनलक्खणाय इस्साय समन्नागतो। मच्छरीति आवासमच्छरियादीहि समन्नागतो। सठोति केराटिको । मायावीति कतपापपटिच्छादको । पापिच्छोति असन्तसम्भावनिच्छको दुस्सीलो । मिच्छादिट्ठीति नत्थिकवादी अहेतुकवादी अकिरियवादी। सन्दिट्ठिपरामासीति सयं दिट्ठिमेव परामसति । आधानग्गाहीति दळहग्गाही। दुष्पटिनिस्सग्गीति न सक्का होति गहितं विस्सज्जापेतुं । ___ पथवीधातूति पतिद्वाधातु । आपोधातूति आबन्धनधातु | तेजोधातूति परिपाचनधातु | वायोधातूति वित्थम्भनधातु ।आकासधातूति असम्फुट्टधातु । विआणधातूति विजाननधातु । निस्सरणियछक्कवण्णना ३२६. निस्सरणिया धातुयोति निस्सटधातुयोव । परियादाय तिद्वतीति परियादियित्वा हापेत्वा तिट्ठति । ‘मा हेवन्तिस्स वचनीयोति यस्मा अभूतं ब्याकरणं ब्याकरोति, तस्मा मा एवं भणीति वत्तब्बो। यदिदं मेत्ताचेतोविमुत्तीति या अयं मेत्ताचेतोविमुत्ति, इदं निस्सरणं ब्यापादस्स, ब्यापादतो निस्सटाति अत्थो। यो पन मेत्ताय तिकचतुक्कज्झानतो वुट्ठितो सङ्खारे सम्मसित्वा ततियमग्गं पत्वा "पुन ब्यापादो नत्थी'"ति ततियफलेन निब्बानं पस्सति, तस्स चित्तं अच्चन्तं निस्सरणं ब्यापादस्स । एतेनुपायेन सब्बत्थ अत्थो वेदितब्बो । 199 Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०० दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा अनिमित्ता चेतोविमुत्तीति अरहत्तफलसमापत्ति । सा हि रागनिमित्तादीनञ्चेव रूपनिमित्तादीनञ्च निच्चनिमित्तादीनञ्च अभावा " अनिमित्ता" ति वृत्ता । निमित्तानुसारीति वृत्तप्पभेदं निमित्तं अनुसरतीति निमित्तानुसारी | अस्मीति अस्मिमानो । अयमहमस्मीति पञ्चसु खन्धेसु अयं नाम अहं अस्मीति एत्तावता अरहत्तं ब्याकतं होति । विचिकिच्छाकथंकथासल्लन्ति विचिकिच्छाभूतं ( १०.३२७-३२७) कथंकथासल्लं । ' मा हेवन्तिस्स वचनीयोति सचे ते पठममग्गवज्झा विचिकिच्छा उप्पज्जति, अरहत्तब्याकरणं मिच्छा होति, तस्मा मा अभूतं भणीति वारेतब्बो । अस्मिमानसमुग्धातोति अरहत्तमग्गो । अरहत्तमग्गफलवसेन हि निब्बाने दिट्ठे पुन अस्मिमानो नत्थीति अरहत्तमग्गो अस्मिमानसमुग्घातोति वृत्तो । अनुत्तरियादिछक्कवण्णना ३२७. अनुत्तरियानीति अनुत्तरानि जेट्ठकानि । दस्सनेसु अनुत्तरियं दस्सनानुत्तरियं । सेसपदेसुपि एसेव नयो । तत्थ हस्थिरतनादीनं दस्सनं न दस्सनानुत्तरियं निविट्ठसद्धस्स पन निविट्ठपेमवसेन दसबलस्स वा भिक्खुसङ्घस्स वा कसिणासुभनिमित्तादीनं वा अञ्ञतरस्स दस्सनं दस्सनानुत्तरियं नाम । खत्तियादीनं गुणकथासवनं न सवनानुत्तरियं निविट्ठसद्धस्स पन निविट्ठपेमवसेन तिण्णं वा रतनानं गुणकथासवनं तेपिटकबुद्धवचनसवनं वा सवनानुत्तरियं नाम । मणिरतनादिलाभो न लाभानुत्तरियं सत्तविध अरियधनलाभो पन लाभानुत्तरियं नाम । हत्थिसिप्पादिसिक्खनं न सिक्खानुत्तरियं, सिक्खत्तयपूरणं पन सिक्खानुत्तरियं नाम । खत्तियादीनं पारिचरिया न पारिचरियानुत्तरियं तिण्णं पन रतनानं पारिचरिया पारिचरियानुत्तरियं नाम । खत्तियादीनं गुणानुस्सरणं नानुस्सतानुत्तरियं तिण्णं पन रतनानं गुणानुस्सरणं अनुस्सतानुत्तरियं नाम । अनुरसतियोव अनुस्सतिट्ठानानि नाम । बुद्धानुस्सतीति बुद्धस्स गुणानुस्सरणं । एवं अनुस्सरतो हि पीति उप्पज्जति । सो तं पीतिं खयतो वयतो पट्टपेत्वा अरहत्तं पापुणाति । उपचारकम्मट्ठानं नामेतं गिहीनम्पि लब्भति, एस नयो सब्बत्थ | वित्थारकथा पत्थ विद्धिमग्गे वृत्तनयेनेव वेदितब्बा । 200 " Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०.३२८-३२९) सततविहारछक्कवण्णना २०१ सततविहारछक्कवण्णना ३२८. सततविहाराति खीणासवस्स निच्चविहारा। चक्खुना रूपं दिस्वाति चक्खुद्वारारम्मणे आपाथगते तं रूपं चक्खुविज्ञाणेन दिस्वा जवनक्खणे इढे अरज्जन्तो नेव सुमनो होति, अनिढे अदुस्सन्तो न दुम्मनो। असमपेक्खने मोहं अनुप्पादेन्तो उपेक्खको विहरति मज्झत्तो, सतिया युत्तत्ता सतो, सम्पजओन युत्तत्ता सम्पजानो। सेसपदेसुपि एसेव नयो । इति छसुपि द्वारेसु उपेक्खको विहरतीति इमिना छळअपेक्खा कथिता । सम्पजानोति वचनतो पन चत्तारि आणसम्पयुत्तचित्तानि लब्भन्ति । सततविहाराति वचनतो अट्ठपि महाचित्तानि लब्भन्ति अरज्जन्तो अदुस्सन्तोति वचनतो दसपि चित्तानि लब्भन्ति । सोमनस्सं कथं लब्मतीति चे आसेवनतो लब्भति । अभिजातिछक्कवण्णना ३२९. अभिजातियोति जातियो । कण्हाभिजातिको समानोति कण्हे नीचकुले जातो हुत्वा । कण्हं धम्मं अभिजायतीति काळकं दसदुस्सील्यधम्मं पसवति करोति । सो तं अभिजायित्वा निरये निब्बत्तति । सुक्कं धम्मन्ति अहं पुब्बेपि पुञानं अकतत्ता नीचकुले निब्बत्तो । इदानि पुलं करोमीति पुञसङ्खातं पण्डरं धम्मं अभिजायति । सो तेन सग्गे निब्बत्तति । अकण्हं असुक्कं निब्बानन्ति निब्बानहि सचे कण्हं भवेय्य, कण्हविपाकं ददेय्य । सचे सुक्कं, सुक्कविपाकं ददेय्य । द्विन्नम्पि अप्पदानतो पन “अकण्हं असुक्क"न्ति वुत्तं । निब्बानञ्च नाम इमस्मिं अत्थे अरहत्तं अधिप्पेतं । तहि किलेसनिब्बानन्ते जातत्ता निब्बानं नाम । तं एस अभिजायति पसवति करोति । सुक्काभिजातिको समानोति सुक्के उच्चकुले जातो हुत्वा । सेसं वुत्तनयेनेव वेदितब्बं । निब्बेधभागियछक्कवण्णना निब्बेधभागियाति निब्बेधो वुच्चति निब्बानं, तं भजन्ति उपगच्छन्तीति निब्बेधभागिया। अनिच्चसञ्जादयो पञ्चके वुत्ता। निरोधानुपस्सनाञाणे सज्ञा निरोधसञ्जा नाम । 201 Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (१०.३३०-३३०) ___“इमे खो, आवुसो''तिआदि वुत्तनयेनेव योजेतब्बं । इति द्वावीसतिया छक्कानं वसेन बात्तिंससतपञ्हे कथेन्तो थेरो सामग्गिरसं दस्सेसीति । छक्कवण्णना निहिता। सत्तकवण्णना ३३०. इति छक्कवसेन सामग्गिरसं दस्सेत्वा इदानि सत्तकवसेन दस्सेतुं पुन देसनं आरभि । ___ तत्थ सम्पत्तिपटिलाभटेन सद्धाव धनं सद्धाधनं। एस नयो सब्बत्थ । पञाधनं पनेत्थ सब्बसेढें । पञ्जाय हि ठत्वा तीणि सुचरितानि पञ्चसीलानि दससीलानि पूरेत्वा सग्गूपगा होन्ति, सावकपारमीजाणं, पच्चेकबोधिआणं, सब्ब ताणञ्च पटिविज्झन्ति । इमासं सम्पत्तीनं पटिलाभकारणतो पञ्जा "धन"न्ति वुत्ता। सत्तपि चेतानि लोकियलोकुत्तरमिस्सकानेव कथितानि । बोज्झङ्गकथा कथिताव । समाधिपरिक्खाराति समाधिपरिवारा। सम्मादिवादीनि वुत्तत्थानेव । इमेपि सत्त परिक्खारा लोकियलोकुत्तराव कथिता । असतं धम्मा असन्ता वा धम्मा लामका धम्माति असद्धम्मा। विपरियायेन सद्धम्मा वेदितब्बा । सेसमेत्थ उत्तानत्थमेव । सम्मेसु पन सद्धादयो सब्बेपि विपस्सकस्सेव कथिता । तेसुपि पञा लोकियलोकुत्तरा । अयं विसेसो।। सप्पुरिसानं धम्माति सप्पुरिसधम्मा। तत्थ सुत्तगेय्यादिकं धम्मं जानातीति धम्म। तस्स तस्सेव भासितस्स अत्थं जानातीति अत्यञ्जू। “एत्तकोम्हि सीलेन समाधिना पञाया"ति एवं अत्तानं जानातीति अत्तञ्जू। पटिग्गहणपरिभोगेसु मत्तं जानातीति मत्त। अयं कालो उद्देसस्स, अयं कालो परिपुच्छाय, अयं कालो योगस्स अधिगमायाति एवं कालं जानातीति कालखू। एत्थ च पञ्च वस्सानि उद्देसस्स कालो । 202 Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०.३३१-३३१) सत्तकवण्णना २०३ दस परिपुच्छाय। इदं अतिसम्बाधं । दस वस्सानि पन उद्देसस्स कालो। वीसति परिपुच्छाय । ततो परं योगे कम्मं कातब्बं । अट्ठविधं परिसं जानातीति परिसञ्जू। सेवितब्बासेवितब्बं पुग्गलं जानातीति पुग्गल। ३३१. निदसवत्थूनीति निद्दसादिवत्थूनि । निद्दसो भिक्खु, निब्बीसो, नित्तिंसो, निच्चत्तालीसो, निप्पासो भिक्खूति एवं वचनकारणानि । अयं किर पञ्हो तित्थियसमये उप्पन्नो। तित्थिया हि दसवस्सकाले मतं निगण्ठं निद्दसोति वदन्ति । सो किर पुन दसवस्सो न होति । न केवलञ्च दसवस्सोव । नववस्सोपि...पे०... एकवस्सोपि न होति । एतेनेव नयेन वीसतिवस्सादिकालेपि मतं निब्बीसो, नित्तिंसो, निच्चत्तालीसो, निप्पञ्जासोति वदन्ति । आयस्मा आनन्दो गामे विचरन्तो तं कथं सुत्वा विहारं गन्त्वा भगवतो आरोचेसि । भगवा आह "न इदं, आनन्द, तित्थियानं अधिवचनं मम सासने खीणासवस्सेतं अधिवचनं । खीणासवो हि दसवस्सकाले परिनिब्बुतो पुन दसवस्सो न होति । न केवलञ्च दसवस्सोव, नववस्सोपि...पे०... एकवस्सोपि । न केवलञ्च एकवस्सोव, दसमासिकोपि...पे०... एकमासिकोपि। एकदिवसिकोपि । एकमुहुत्तोपि न होति एव । कस्मा ? पुन पटिसन्धिया अभावा । निब्बीसादीसुपि एसेव नयो । इति भगवा मम सासने खीणासवस्सेतं अधिवचन"न्ति वत्वा येहि कारणेहि सो निद्दसो होति, तानि दस्सेतुं सत्त निद्दसवत्थूनि देसेति । थेरोपि तमेव देसनं उद्धरित्वा सत्त निद्दसवत्थूनि इधावुसो, भिक्खु, सिक्खासमादानेतिआदिमाह । तत्थ इधाति इमस्मिं सासने । सिक्खासमादाने तिब्बच्छन्दो होतीति सिक्खत्तयपूरणे बहलच्छन्दो होति । आयतिञ्च सिक्खासमादाने अविगतपेमोति अनागते पुनदिवसादीसुपि सिक्खापूरणे अविगतपेमेन समन्नागतो होति । धम्मनिसन्तियाति धम्मनिसामनाय । विपस्सनायेतं अधिवचनं । इच्छाविनयेति तण्हाविनयने । पटिसल्लानेति एकीभावे । वीरियारम्भेति कायिकचेतसिकस्स वीरियस्स पूरणे । सतिनेपक्केति सतियञ्चेव नेपक्कभावे च । दिद्विपटिवेधेति मग्गदस्सने । सेसं सब्बत्थ वुत्तनयेनेव वेदितब्बं । सासु असुभानुपस्सनाआणे सञा असुभसा। आदीनवानुपस्सनाञाणे सञ्जा आदीनवसा नाम । सेसा हेट्ठा वुत्ता एव | बलसत्तकविञआणट्ठितिसत्तकपुग्गलसत्तकानि 203 Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (१०.३३१-३३१) वुत्तनयानेव | अप्पहीनतुन अनुसयन्तीति अनुसया। थामगतो कामरागो कामरागानुसयो । एस नयो सब्बत्थ । संयोजनसत्तकं उत्तानत्थमेव । अधिकरणसमथसत्तकवण्णना अधिकरणसमथेसु अधिकरणानि समेन्ति वूपसमेन्तीति अधिकरणसमथा। उप्पचुप्पनानन्ति उप्पन्नानं उप्पन्नानं । अधिकरणानन्ति विवादाधिकरणं अनुवादाधिकरणं आपत्ताधिकरणं किच्चाधिकरणन्ति इमेसं चतुन्नं । समथाय वूपसमायाति समथत्थञ्चेव वूपसमनत्थञ्च । सम्मुखाविनयो दातब्बो...पे०... तिणवत्थारकोति इमे सत्त समथा दातब्बा । तत्रायं विनिच्छयनयो। अधिकरणेसु ताव धम्मोति वा अधम्मोति वा अट्ठारसहि वत्थूहि विवदन्तानं भिक्खूनं यो विवादो, इदं विवादाधिकरणं नाम । सीलविपत्तिया वा आचारदिडिआजीवविपत्तिया वा अनुवदन्तानं अनुवादो उपवदना चेव चोदना च, इदं अनुवादाधिकरणं नाम । मातिकाय आगता पञ्च, विभङ्गे वेति सत्तपि आपत्तिक्खन्धा, इदं आपत्ताधिकरणं नाम । सङ्घस्स अपलोकनादीनं चतुन्नं कम्मानं करणं, इदं किच्चाधिकरणं नाम । तत्थ विवादाधिकरणं द्वीहि समथेहि सम्मति सम्मुखाविनयेन च येभुय्यसिकाय च । सम्मुखाविनयेनेव सम्ममानं यस्मिं विहारे उप्पन्नं तस्मिंयेव वा अञत्थ वूपसमेतुं गच्छन्तानं अन्तरामग्गे वा यत्थ गन्त्वा सङ्घस्स निय्यातितं तत्थ सङ्घन वा सङ्घ वूपसमेतुं असक्कोन्ते तत्थेव उब्बाहिकाय सम्मतपुग्गलेहि वा विनिच्छितं सम्मति । एवं सम्ममाने च पनेतस्मिं या सङ्घसम्मुखता धम्मसम्मुखता विनयसम्मुखता पुग्गलसम्मुखता, अयं सम्मुखाविनयो नाम । तत्थ च कारकसङ्घस्स सङ्घसामग्गिवसेन सम्मुखीभावो सङ्कसम्मुखता। समेतब्बस्स वत्थुनो भूतता धम्मसम्मुखता। यथा तं समेतब्बं, तथैव सम्मनं विनयसम्मुखता। यो च विवदति, येन च विवदति, तेसं उभिन्नं अत्थपच्चत्थिकानं सम्मुखीभावो पुग्गलसम्मुखता। उब्बाहिकाय वूपसमे पनेत्थ सङ्घसम्मुखता परिहायति। एवं ताव सम्मुखाविनयेनेव सम्मति। 204 Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०.३३१-३३१) अधिकरणसमथसत्तकवण्णना २०५ सचे पनेवम्पि न सम्मति, अथ नं उब्बाहिकाय सम्मता भिक्खू “न मयं सक्कोम वूपसमेतु"न्ति सङ्घस्सेव निय्यातेन्ति, ततो सङ्घो पञ्चङ्गसमन्नागतं भिक्खुं सलाकग्गाहापकं सम्मन्नति । तेन गुळ्हकविवटकसकण्णजप्पकेसु तीसु सलाकग्गाहेसु अञतरवसेन सलाकं गाहापेत्वा सन्निपतितपरिसाय धम्मवादीनं येभुय्यताय यथा ते धम्मवादिनो वदन्ति, एवं वूपसन्तं अधिकरणं सम्मुखाविनयेन च येभुय्यसिकाय च वूपसन्तं होति ।। तत्थ सम्मुखाविनयो वुत्तनयो एव। यं पन येभुय्यसिकाकम्मस्स करणं, अयं येभुष्यसिका नाम । एवं विवादाधिकरणं द्वीहि समथेहि सम्मति । अनुवादाधिकरणं चतूहि समथेहि सम्मति- सम्मुखाविनयेन च सतिविनयेन च अमूळ्हविनयेन च तस्सपापियसिकाय च । सम्मुखाविनयेनेव सम्ममानं यो च अनुवदति, यञ्च अनुवदति, तेसं वचनं सुत्वा सचे काचि आपत्ति नत्थि, उभो खमापेत्वा, सचे अस्थि, अयं नामेत्थ आपत्तीति एवं विनिच्छितं वूपसम्मति । तत्थ सम्मुखाविनयलक्खणं वुत्तनयमेव । यदा पन खीणासवस्स भिक्खुनो अमूलिकाय सीलविपत्तिया अनुसितस्स सतिविनयं याचमानस्स सङ्घो अत्तिचतुत्थेन कम्मेन सतिविनयं देति, तदा सम्मुखाविनयेन च सतिविनयेन च वूपसन्तं होति । दिन्ने पन सतिविनये पुन तस्मिं पुग्गले कस्सचि अनुवादो न रुहति । यदा उम्मत्तको भिक्खु उम्मादवसेन अस्सामणके अज्झाचारे “सरतायस्मा एवरूपिं आपत्ति"न्ति भिक्खूहि चोदियमानो "उम्मत्तकेन मे, आवुसो, एतं कतं, नाहं तं सरामी"ति भणन्तोपि भिक्खूहि चोदियमानोव पुन अचोदनत्थाय अमूळ्हविनयं याचति, सङ्घो चस्स अत्तिचतुत्थेन कम्मेन अमूळ्हविनयं देति, तदा सम्मुखाविनयेन च अमूळ्हविनयेन च वूपसन्तं होति । दिन्ने पन अमूळ्हविनये पुन तस्मिं पुग्गले कस्सचि तप्पच्चया अनुवादो न रुहति । - यदा पन पाराजिकेन वा पाराजिकसामन्तेन वा चोदियमानस्स अगेननं पटिचरतो पापुस्सन्नताय पापियस्स पुग्गलस्स "सचायं अच्छिन्नमूलो भविस्सति, सम्मा वत्तित्वा ओसारणं लभिस्सति । सचे छिन्नमूलो अयमेवस्स नासना भविस्सती"ति मञ्जमानो सङ्घो अत्तिचतुत्थेन कम्मेन तस्सपापियसिकं करोति, तदा सम्मुखाविनयेन च तस्सपापियसिकाय च वूपसन्तं होतीति । एवं अनुवादाधिकरणं चतूहि समथेहि सम्मति । आपत्ताधिकरणं तीहि समथेहि सम्मति सम्मुखाविनयेन च पटिञातकरणेन च तिणवत्थारकेन च। तस्स सम्मुखाविनयेनेव वूपसमो नत्थि। यदा पन एकस्स वा 205 Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (१०.३३१-३३१) भिक्खुनो सन्तिके सङ्घगणमझेसु वा भिक्खु लहुकं आपत्तिं देसेति, तदा आपत्ताधिकरणं सम्मुखाविनयेन च पटिञातकरणेन च वूपसम्मति । तत्थ सम्मुखाविनये ताव यो च देसेति, यस्स च देसेति, तेसं सम्मुखीभावो पुग्गलसम्मुखता। सेसं वुत्तनयमेव ।। पुग्गलस्स गणस्स च देसनाकाले सङ्घसम्मुखता परिहायति । या पनेत्थ अहं, भन्ते, इत्थन्नामं आपत्तिं आपन्नोति च आम, पस्सामीति च पटिञा, ताय पटिञाय “आयतिं संवरेय्यासी"ति करणं, तं पटिञातकरणं नाम। सङ्घादिसेसे हि परिवासादियाचना पटिञा। परिवासादीनं दानं पटिञातकरणं नाम । द्वे पक्खजाता पन भण्डनकारका भिक्खू बहुं अस्सामणकं अज्झाचरित्वा पुन लज्जिधम्मे उप्पन्ने सचे मयं इमाहि आपत्तीहि अचमचं कारेस्साम, सियापि तं अधिकरणं कक्खळत्ताय संवत्तेय्याति अञमधे आपत्तिया कारापने दोसं दिस्वा यदा तिणवत्थारककम्मं करोन्ति, तदा आपत्ताधिकरणं सम्मुखाविनयेन च तिणवत्थारकेन च सम्मति । तत्थ हि यत्तका हत्थपासूपगता “न मेतं खमती"ति एवं दिट्ठाविकम्मं अकत्वा निद्दम्पि ओक्कन्ता होन्ति, सब्बेसं ठपेत्वा थुल्लवज्जञ्च गिहिपटिसंयुत्तञ्च सब्बापत्तियो वुट्ठहन्ति, एवं आपत्ताधिकरणं तीहि समथेहि सम्मति । किच्चाधिकरणं एकेन समथेन सम्मति सम्मुखाविनयेनेव । इमानि चत्तारि अधिकरणानि यथानुरूपं इमेहि सत्तहि समथेहि सम्मन्ति । तेन वुत्तं- उप्पन्नप्पन्नानं अधिकरणानं समथाय वूपसमाय सम्मुखाविनयो दातब्बो...पे०... तिणवत्थारकोति । अयमेत्थ विनिच्छयनयो । वित्थारो पन समथक्खन्धके आगतोयेव । विनिच्छयोपिस्स समन्तपासादिकायं वुत्तो। "इमे खो, आवुसो''तिआदि वुत्तनयेनेव योजेतब्बं । इति चुद्दसन्नं सत्तकानं वसेन अट्ठनवुति पन्हे कथेन्तो थेरो सामग्गिरसं दस्सेसीति । सत्तकवण्णना निट्ठिता। 206 Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०.३३३-३३६) अट्ठकवण्णना २०७ अट्ठकवण्णना ३३३. इति सत्तकवसेन सामग्गिरसं दस्सेत्वा इदानि अट्ठकवसेन दस्सेतुं पुन देसनं आरभि । तत्थ मिच्छत्ताति अयाथावा मिच्छासभावा । सम्मत्ताति याथावा सम्मासभावा । ३३४. कुसीतवत्थूनीति कुसीतस्स अलसस्स वत्थूनि पतिट्ठा कोसज्जकारणानीति अत्थो । कम्मं कत्तबं होतीति चीवरविचारणादिकम्मं कातळ होति । न वीरियं आरभतीति दुविधम्पि वीरियं नारभति । अप्पत्तस्साति झानविपस्सनामग्गफलधम्मस्स अप्पत्तस्स पत्तिया । अनधिगतस्साति तस्सेव अनधिगतस्स अधिगमत्थाय । असच्छिकतस्साति तस्सेव अपच्चक्खकतस्स सच्छिकरणत्थाय । इदं पठमन्ति इदं हन्दाहं निपज्जामीति एवं ओसीदनं पठमं कुसीतवत्थु । इमिना नयेन सब्बत्थ अत्थो वेदितब्बो । “मासाचितं मजे"ति एत्थ पन मासाचितं नाम तिन्तमासो। यथा तिन्तमासो गरुको होति, एवं गरुकोति अधिप्पायो । गिलाना वुद्वितो होतीति गिलानो हुत्वा पच्छा वुट्टितो होति । ३३५. आरम्भवत्थूनीति वीरियकारणानि । तेसम्पि इमिनाव नयेन अत्थो वेदितब्बो । ३३६. दानवत्थूनीति दानकारणानि । आसज्ज दानं देतीति पत्वा दानं देति । आगतं दिस्वाव मुहत्तंयेव निसीदापेत्वा सक्कारं कत्वा दानं देति, दस्सामि दस्सामीति न किलमेति । इति एत्थ आसादनं दानकारणं नाम होति । भया दानं देतीतिआदीसुपि भयादीनि दानकारणानीति वेदितब्बानि । तत्थ भयं नाम अयं अदायको अकारकोति गरहाभयं वा अपायभयं वा । अदासि मेति मय्हं पुब्बे एस इदं नाम अदासीति देति । दस्सति मेति अनागते इदं नाम दस्सतीति देति । साहु दानन्ति दानं नाम साधु सुन्दरं, बुद्धादीहि पण्डितेहि पसत्थन्ति देति । चित्तालारचित्तपरिक्खारत्थं दानं देतीति समथविपस्सनाचित्तस्स अलङ्कारत्थञ्चेव परिवारत्थञ्च देति । दानहि चित्तं मुदुकं करोति । येन लद्धं होति, सोपि लद्धं मेति मुदुचित्तो होति, येन दिन्नं, सोपि दिन्नं मयाति मुदुचित्तो होति, इति उभिन्नम्पि चित्तं मुदुकं करोति, तेनेव “अदन्तदमनं दान"न्ति वुच्चति । यथाह - “अदन्तदमनं दानं, अदानं दन्तदूसकं । दानेन पियवाचाय, उन्नमन्ति नमन्ति चा"ति ।। 207 Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०८ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (१०.३३७-३३८) इमेसु पन अट्ठसु दानेसु चित्तालङ्कारदानमेव उत्तमं । ३३७. दानूपपत्तियोति दानपच्चया उपपत्तियो । दहतीति ठपेति । अधिवातीति तस्सेव वेवचनं। भावेतीति वड्डेति । हीने विमुत्तन्ति हीनेसु पञ्चकामगुणेसु विमुत्तं । उत्तरि अभावितन्ति ततो उत्तरि मग्गफलत्थाय अभावितं । तत्रूपपत्तिया संवत्ततीति यं पत्थेत्वा कुसलं कतं, तत्थ तत्थ निब्बत्तनत्थाय संवत्तति । वीतरागस्साति मग्गेन वा समुच्छिन्नरागस्स समापत्तिया वा विक्खम्भितरागस्स । दानमत्तेनेव हि ब्रह्मलोके निब्बत्तितुं न सक्का । दानं पन समाधिविपस्सनाचित्तस्स अलङ्कारो परिवारो होति । ततो दानेन मुदुचित्तो ब्रह्मविहारे भावेत्वा ब्रह्मलोके निब्बत्तति । तेन वुत्तं “वीतरागस्स नो सरागस्सा"ति । खत्तियानं परिसा खत्तियपरिसा, समूहोति अत्यो । एस नयो सब्बत्थ । लोकस्स धम्मा लोकधम्मा। एतेहि मुत्तो नाम नत्थि, बुद्धानम्पि होन्तियेव । वुत्तम्पि चेतं- “अट्ठिमे, भिक्खवे, लोकधम्मा लोकं अनुपरिवत्तन्ति, लोको च अट्ठ लोकधम्मे अनुपरिवत्ततीति (अ० नि० ३.८.५)। लाभो अलाभोति लाभे आगते अलाभो आगतो एवाति वेदितब्बो। यसादीसुपि एसेव नयो । ३३८. अभिभायतनविमोक्खकथा हेट्ठा कथिता एव । "इमे खो, आवुसो''तिआदि वुत्तनयेनेव योजेतब्बं । इति एकादसनं अट्ठकानं वसेन अट्ठासीति पञ्हे कथेन्तो थेरो सामग्गिरसं दस्सेसीति । अट्ठकवण्णना निहिता। 208 Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०.३४०-३४४) नवकवण्णना २०९ नवकवण्णना ३४०. इति अट्ठकवसेन सामग्गिरसं दस्सेत्वा इदानि नवकवसेन दस्सेतुं पुन देसनं आरभि । तत्थ आघातवत्यूनीति आघातकारणानि | आघातं बन्धतीति कोपं बन्धति करोति उप्पादेति । तं कुतेत्थ लब्भाति तं अनत्थचरणं मा अहोसीति एतस्मिं पुग्गले कुतो लब्भा, केन कारणेन सक्का ल« ? परो नाम परस्स अत्तनो चित्तरुचिया अनत्थं करोतीति एवं चिन्तेत्वा आघातं पटिविनोदेति । अथ वा सचाहं पटिकोपं करेय्यं, तं कोपकरणं एत्थ पुग्गले कुतो लब्भा, केन कारणेन लद्धब्बन्ति अत्थो। कुतो लाभातिपि पाठो, सचाहं एत्थ कोपं करेय्यं, तस्मिं मे कोपकरणे कुतो लाभा, लाभा नाम के सियुन्ति अत्थो । इमस्मिञ्च अत्थे तन्ति निपातमत्तमेव होति ।। ३४१. सत्तावासाति सत्तानं आवासा, वसनट्ठानानीति अत्थो । तत्थ सुद्धावासापि सत्तावासोव, असब्बकालिकत्ता पन न गहिता | सुद्धावासा हि बुद्धानं खन्धावारसदिसा । असङ्ख्येय्यकप्पे बुद्धेसु अनिब्बत्तन्तेसु तं ठानं सुझं होतीति असब्बकालिकत्ता न गहिता । सेसमेत्थ यं वत्तब्द, तं हेट्ठा वुत्तमेव।। ३४२. अक्खणेसु धम्मो च देसियतीति चतुसच्चधम्मो देसियति । ओपसमिकोति किलेसूपसमकरो। परिनिब्बानिकोति किलेसपरिनिब्बानेन परिनिब्बानावहो । सम्बोधगामीति चतुमग्गाणपटिवेधगामी । अञतरन्ति असञभवं वा अरूपभवं वा । ३४३. अनुपुब्बविहाराति अनुपटिपाटिया समापज्जितब्बविहारा । ३४४. अनुपुब्बनिरोधाति अनुपटिपाटिया निरोधा | "इमे, खो आवुसो"तिआदि वुत्तनयेनेव योजेतब्बं । इति छन्नं नवकानं वसेन चतुपण्णास पन्हे कथेन्तो थेरो सामग्गिरसं दस्सेसीति । नवकवण्णना निट्टिता। 209 Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१० दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (१०.३४५-३४५) दसकवण्णना ३४५. इति नवकवसेन सामग्गिरसं दस्सेत्वा इदानि दसकवसेन दस्सेतुं पुन देसनं आरभि । तत्थ नाथकरणाति "सनाथा, भिक्खवे, विहरथ मा अनाथा, दस इमे, भिक्खवे, धम्मा नाथकरणा''ति (अ० नि० ३.१०.१८) एवं अक्खाता अत्तनो पतिट्ठाकरा धम्मा । कल्याणमित्तोतिआदीसु सीलादिगुणसम्पन्ना कल्याणा अस्स मित्ताति कल्याणमित्तो। ते चस्स ठाननिसज्जादीसु सह अयनतो सहायाति कल्याणसहायो। चित्तेन चेव कायेन च कल्याणमित्तेसु एव सम्पवको ओनतोति कल्याणसम्पवङ्को। सुवचो होतीति सुखेन वत्तब्बो होति सुखेन अनुसासितब्बो। खमोति गाळ्हेन फरुसेन कक्खळेन वुच्चमानो खमति, न कुप्पति । पदक्खिणग्गाही अनुसासनिन्ति यथा एकच्चो ओवदियमानो वामतो गण्हाति, पटिप्फरति वा असुणन्तो वा गच्छति, एवं अकत्वा “ओवदथ, भन्ते, अनुसासथ, तुम्हेसु अनोवदन्तेसु को अञो ओवदिस्सती"ति पदक्खिणं गण्हाति। उच्चावचानीति उच्चानि च अवचानि च । किं करणीयानीति किं करोमीति एवं वत्वा कत्तब्बकम्मानि । तत्थ उच्चकम्मानि नाम चीवरस्स करणं रजनं चेतिये सुधाकम्म उपोसथागारचेतियघरबोधियघरेसु कत्तब्बन्ति एवमादि। अवचकम्मं नाम पादधोवनमक्खनादिखुद्दककम्मं । तत्रुपायायाति तत्रुपगमनीया। अलं कातुन्ति कातुं समत्थो होति । अलं संविधातुन्ति विचारेतुं समत्थो । धम्मे अस्स कामो सिनेहोति धम्मकामो, तेपिटकं बुद्धवचनं पियायतीति अत्थो । पियसमुदाहारोति परस्मिं कथेन्ते सक्कच्चं सुणाति, सयञ्च परेसं देसेतुकामो होतीति अत्थो । “अभिधम्मे अभिविनये"ति एत्थ धम्मो अभिधम्मो, विनयो अभिविनयोति चतुक्कं वेदितब्बं । तत्थ धम्मोति सुत्तन्तपिटकं । अभिधम्मोति सत्त पकरणानि । विनयोति उभतोविभङ्गा । अभिविनयोति खन्धकपरिवारा । अथ वा सुत्तन्तपिटकम्पि अभिधम्मपिटकम्पि धम्मो एव । मग्गफलानि अभिधम्मो। सकलं विनयपिटकं विनयो। किलेसवूपसमकारणं अभिविनयो। इति सब्बस्मिम्पि एत्थ धम्मे अभिधम्मे विनये अभिविनये च । उळारपामोजोति बहुलपामोज्जो होतीति अत्थो । 210 Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०.३४६-३४७) कुसले धम्मेति कारणत्थे भुम्मं चतुभूमककुसलधम्मकारणा, तेसं अधिगमत्थाय अनिक्खित्तधुरो होतीति अत्थो । अकुसलकम्मपथदसकवण्णना ३४६. कसिणदसके सकलट्ठेन कसिणानि । तदारम्मणानं धम्मानं खेत्तट्ठेन वा अधिट्ठानवेन वा आयतनानि । उद्धन्ति उपरि गगनतलाभिमुखं । अधोति हेट्ठा भूमितलाभिमुखं । तिरियन्ति खेत्तमण्डलमिव समन्ता परिच्छिन्दित्वा । एकच्चो हि उद्धमेव कसिणं वड्ढेति, एकच्चो अधो, एकच्चो समन्ततो । तेन तेन वा कारणेन एवं पसारेति आलोकमिव रूपदस्सनकामो । तेन वुत्तं “पथवीकसिणमेको सञ्जानाति उद्धं अधो तिरियन्ति । अद्वयन्ति इदं पन एकस्स अञ्ञभावानुपगमनत्थं वृत्तं । यथा हि उदकं पविट्ठस्स सब्बदिसासु उदकमेव होति, न अञ्ञ, एवमेव पथवीकसिणं पथवीकसिणमेव होति, नत्थि तस्स अञ्ञो कसिणसम्भेदोति । एस नयो सब्बत्थ । अप्पमाणन्ति इदं तस्स तस्स फरणअप्पमाणवसेन वुत्तं । तहि चेतसा फरन्तो सकलमेव फरति, न " अयमस्स आदि, इदं मज्झन्ति पमाणं गण्हातीति । विज्ञाणकसिणन्ति चेत्थ कसिणुग्घाटिमाका पवत्तविञ्ञणं । तत्थ कसिणवसेन कसिणुग्घाटिमाकासे कसिणुग्घाटिमाकासवसेन तत्थ पवत्तविञ्ञणे उद्धं अधो तिरियता वेदितब्बा । अयमेत्थ सङ्क्षेपो । कम्मट्ठानभावनानयेन पनेतानि पथवीकसिणादीनि वित्थारतो विसुद्धिमग्गे वृत्तानेव । अकुसलकम्मपथदसकवण्णना ३४७. कम्मपथेसु कम्मानेव सुगतिदुग्गतीनं पथभूतत्ता कम्मपथा नाम । तेसु पाणातिपातो अदिन्नादानं मुसावादादयो च चत्तारो ब्रह्मजाले वित्थारिता एव । कामेसुमिच्छाचारोति एत्थ पन कामेसूति मेथुनसमाचारेसु मेथुनवत्थूसु वा । मिच्छाचारोति एकन्तनिन्दितो लामकाचारो । लक्खणतो पन असद्धम्माधिप्पायेन कायद्वारप्पवत्ता अगमनीयट्ठानवीतिक्कमचेतना कामेसुमिच्छाचारो । २११ तत्थ अगमनीयट्ठानं नाम पुरिसानं ताव मातुरक्खिता, पितुरक्खिता, मातापितुरक्खिता, भातुरक्खिता, भगिनिरक्खिता, जातिरक्खिता, गोत्तरक्खिता, धम्मरक्खिता, सारक्खा, सपरिदण्डाति मातुरक्खितादयो दस । धनक्कीता, छन्दवासिनी, भोगवासिनी, पटवासिनी, ओदपत्तकिनी, ओभतचुम्बटा, दासी च भरिया च, कम्मका च भरिया च धजाहटा, मुहुत्तिकाति एता धनक्कीतादयो दसाति वीसति । इत्थीसु पन 211 Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (१०.३४७-३४७) द्विन्नं सारक्खसपरिदण्डानं दसन्नञ्च धनक्कीतादीनन्ति द्वादसन्नं इत्थीनं अछे पुरिसा । इदं अगमनीयट्ठानं नाम। सो पनेस मिच्छाचारो सीलादिगुणरहिते अगमनीयट्ठाने अप्पसावज्जो। सीलादिगुणसम्पन्ने महासावज्जो। तस्स चत्तारो सम्भारा अगमनीयवत्थु, तस्मिं सेवनचित्तं, सेवनप्पयोगो, मग्गेनमग्गप्पटिपत्तिअधिवासनन्ति । एको पयोगो साहत्थिको एव । अभिज्झायतीति अभिज्झा, परभण्डाभिमुखी हुत्वा तन्निन्नताय पवत्ततीति अत्थो । सा "अहो वत इदं ममस्सा"ति एवं परभण्डाभिज्झायनलक्खणा अदिन्नादानं विय अप्पसावज्जा महासावज्जा च। तस्सा द्वे सम्भारा परभण्डं, अत्तनो परिणामनञ्च । परभण्डवत्थुके हि लोभे उप्पन्नेपि न ताव कम्मपथभेदो होति, याव "अहो वतीदं ममस्सा''ति अत्तनो न परिणामेति । हितसुखं ब्यापादयतीति व्यापादो। सो परं विनासाय मनोपदोसलक्खणो फरुसावाचा विय अप्पसावज्जो महासावज्जो च। तस्स द्वे सम्भारा परसत्तो च, तस्स विनासचिन्ता च। परसत्तवत्थुके हि कोधे उप्पन्नेपि न ताव कम्मपथभेदो होति, याव "अहो वतायं उच्छिज्झेय्य विनस्सेय्या'ति तस्स विनासं न चिन्तेति । यथाभुच्चगहणाभावेन मिच्छा पस्सतीति मिच्छादिवि। सा “नत्थि दिन्न'न्तिआदिना नयेन विपरीतदस्सनलक्खणा । सम्फप्पलापो विय अप्पसावज्जा महासावज्जा च । अपिच अनियता · अप्पसावज्जा, नियता महासावज्जा। तस्सा द्वे सम्भारा वत्थुनो च गहिताकारविपरीतता, यथा च तं गण्हाति, तथाभावेन तस्सूपट्ठानन्ति । इमेसं पन दसन्नं अकुसलकम्मपथानं धम्मतो कोट्ठासतो आरम्मणतो वेदनातो मूलतोति पञ्चहाकारेहि विनिच्छयो वेदितब्बो । तत्थ धम्मतोति एतेसु हि पटिपाटिया सत्त चेतनाधम्माव होन्ति । अभिज्झादयो तयो चेतनासम्पयुत्ता। कोट्ठासतोति पटिपाटिया सत्त, मिच्छादिट्ठि चाति इमे अट्ठ कम्मपथा एव होन्ति, 212 Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०.३४७-३४७) कुसलकम्मपथदसकवण्णना नो मूलानि । अभिज्झाब्यापादा कम्मपथा चेव मूलानि च । अभिज्झा हि मूलं पत्वा लोभी अकुसलमूलं होति । ब्यापादो दोसो अकुसलमूलं होति । आरम्मणतोति पाणातिपातो जीवितिन्द्रियारम्मणतो सङ्घारारम्मणो होति । अदिन्नादानं सत्तारम्मणं वा सङ्घारारम्मणं वा, मिच्छाचारो फोटुब्बवसेन सङ्घारारम्मणो । “सत्तारम्मणो”तिपि एके । मुसावादी सत्तारम्मणो वा सङ्घारारम्मणो वा, तथा पिसुणवाचा । फरुसवाचा सत्तारम्मणाव । सम्फप्पलापो दिट्ठसुतमुतविज्ञातवसेन सत्तारम्मणो वा सङ्घारारम्मणो वा। तथा अभिज्झा । ब्यापादो सत्तारम्मणोव । मिच्छादिट्ठि तेभूमकधम्मवसेन सङ्घारारम्मणा । २१३ वेदनातोति पाणातिपातो दुक्खवेदनो होति । किञ्चापि हि राजानो चोरं दिवा हसमानापि ‘“गच्छथ नं घातेथा "ति वदन्ति, सन्निट्ठापकचेतना पन दुक्खसम्पत्ताव होति । अदिन्नादानं तिवेदनं । मिच्छाचारो सुखमज्झत्तवसेन द्विवेदनो । सन्निट्ठापकचित्ते पन मज्झत्तवेदनो न होति । मुसावादो तिवेदनो । तथा पिसुणवाचा । फरुसवाचा दुक्खवेदना । सम्फप्पलापो तिवेदनो। अभिज्झा सुखमज्झत्तवसेन द्विवेदना तथा मिच्छादिट्ठि । ब्यापादो दुखवेदन | मूलतोति पाणातिपातो दोसमोहवसेन द्विमूलको होति । अदिन्नादानं दोसमोहवसेन वा लोभमोहवसेन वा । मिच्छाचारो लोभमोहवसेन । मुसावादो दोसमोहवसेन वा लोभमोहवसेन वा तथा पिसुणवाचा सम्फप्पलापो च । फरुसवाचा दोसमोहवसेन । अभिज्झा मोहवसेन एकमूला । तथा ब्यापादो । मिच्छादिट्ठि लोभमोहवसेन द्विमूलाति । कुसलकम्मपथदसकवण्णना पाणातिपाता वेरमणिआदीनि समादानसम्पत्तसमुच्छेदविरतिवसेन वेदितब्बानि । धम्मतो पन एतेसुपि परिपाटिया सत्त चेतनापि वत्तन्ति विरतियोपि । अन्ते तयो चेतनासम्पयुत्ताव । कोट्ठासतोति पटिपाटिया सत्त कम्मपथा एव, नो मूलानि । अन्ते तयो कम्मपथा चेव 213 Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४ ( १०.३४८ - ३४८) मूलानि च । अनभिज्झा हि मूलं पत्वा अलोभो कुसलमूलं होति । अब्यापादो अदोसो कुसलमूलं । सम्मादिट्ठि अमोहो कुसलमूलं । दीघनिकाये पार्थिकवरगट्ठकथा आरम्मणतोति पाणातिपातादीनं आरम्मणानेव एतेसं आरम्मणानि । वीतिक्कमितब्बतोयेव हि वेरमणी नाम होति । यथा पन निब्बानारम्मणो अरियमग्गो किलेसे पजहति, एवं जीवितिन्द्रियादिआरम्मणापेते कम्मपथा पाणातिपातादीनि दुस्सील्यानि पजहन्तीति वेदितब्बा । वेदनातोति सब्बे सुखवेदना होन्ति मज्झत्तवेदना वा । कुसलं पत्वा हि दुक्खवेदना नाम नत्थि । मूलतोति परिपाटिया सत्त आणसम्पत्तचित्तेन विरमन्तस्स अलोभअदोस अमोहवसेन तिमूलानि होन्ति, आणविप्पयुत्तचित्तेन विरमन्त द्विमूलानि । अनभिज्झा ञाणसम्पयुत्तचित्तेन विरमन्तस्स द्विमूला, ञाणविप्पयुत्तचित्तेन एकमूला । अलोभो पन अत्तनाव अत्तनो मूलं न होति । अब्यापादेपि एसेव नयो । सम्मादिट्ठि अलोभादोसवसेन द्विमूला एवाति । अरियवासदसकवण्णना ३४८. अरियवासाति अरिया एव वसिंसु वसन्ति वसिस्सन्ति एतेसूति अरियवासा । पञ्चङ्गविप्पहीनोति पञ्चहि अहि विप्पयुत्तोव हुत्वा खीणासवो अवसि वसति वसिस्सीति तस्मा अयं पञ्चङ्गविप्पहीनता, अरियस्स वासत्ता अरियवासोति वृत्तो । एस नयो सब्बत्थ । एवं खो, आबुसो, भिक्खु छळङ्गसमन्नागतो होतीति छळङ्गुपेक्खाय समन्नागतो होति । छळपेक्खा नाम केति ? आणादयो । " ञाण "न्ति वुत्ते किरियतो चत्तारि आणसम्पयुत्तचित्तानि लब्भन्ति । " सततविहारो "ति वुत्ते अट्ठ महाचित्तानि । “रज्जनदुस्सनं नत्थीति वुत्ते दस चित्तानि लब्भन्ति । सोमनस्सं आसेवनवसेन लब्भति । सतारक्खेन चेतसाति खीणासवस्स हि तीसु द्वारेसु सब्बकालं सति आरक्खकिच्चं 214 Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०.३४८ - ३४८) असेक्खधम्मदसकवण्णना साधेति । तेनेवस्स "चरतो च तिट्ठतो च सुत्तस्स च जागरस्स च सततं समितं ञणदस्सनं पच्चुपट्ठितं होती "ति वुच्चति । पुथुसमणब्राह्मणानन्ति बहूनं समणब्राह्मणानं । एत्थ च समणाति पब्बज्जुपगता । ब्राह्मणाति भोवादिनो । पुथुपच्चेकसच्चानीति बहूनि पाटेक्कसच्चानि, इदमेव दस्सनं सच्चं, इदमेव दस्सनं सच्चन्ति एवं पाटियेक्कं गहितानि बहूनि सच्चानीति अत्थो । नुन्नानीति निहतानि । पणुन्नानीति सुट्टु निहतानि । चत्तानीति विस्सट्ठानि । वन्तानीति वमितानि । मुत्तानीति छिन्नबन्धनानि कतानि । पहीनानीति पजहितानि । पटिनिस्सट्ठानीति यथा न पुन चित्तं आरुहन्ति, एवं पटिनिस्सज्जितानि । सब्बानेव तानि गहितग्गहणस्स विस्सट्ठभाववेवचनानि । २१५ समवयसट्ठेसनोति एत्थ अवयाति अनूना । सट्ठाति विस्सट्ठा। सम्मा अवया सट्टा एसना अस्साति समवयसद्वेसनो । सम्मा विस्सट्ठसब्बएसनोति अत्थो । विमुत्तन्तिआदीहि मग्गस्स किच्चनिप्पत्ति कथिता । रागा चित्तं रागो मे पहीनोतिआदीहि पच्चवेक्खणाय फलं कथितं । असेक्खधम्मदसकवण्णना असेक्खा सम्मादिट्ठीतिआदयो सब्बेपि फलसम्पयुत्तधम्मा एव । एत्थ च सम्मादिट्ठि, सम्माञणन्ति द्वीसु ठानेसु पञ्ञाव कथिता । सम्माविमुत्तीति इमिना पदेन वुत्तावसेसा । फलसमापत्तिधम्मा सङ्गहिताति वेदितब्बा | " इमे खो, आवुसो 'तिआदि वृत्तनयेनेव योजेतब्बं । इति छन्नं दसकानं वसेन समसट्ठि पञ्हे कथेतो थेरो सामग्गिरसं दस्सेसीति । दसकवण्णना निट्ठिता । 215 Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१६ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (१०.३४९-३४९) पहसमोधानवण्णना ३४९. इध पन ठत्वा पञ्हा समोधानेतब्बा । इमस्मिहि सुत्ते एककवसेन द्वे पञ्हा कथिता । दुकवसेन सत्तति । तिकवसेन असीतिसतं | चतुक्कवसेन द्वेसतानि । पञ्चकवसेन तिंससतं। छक्कवसेन बात्तिंससतं । सत्तकवसेन अट्ठनवुति । अट्ठकवसेन अट्ठासीति । नवकवसेन चतुपण्णास । दसकवसेन समसट्ठीति एवं सहस्सं चुद्दस पञ्हा कथिता । _इमहि सुत्तन्तं ठपेत्वा तेपिटके बुद्धवचने अजओ सुत्तन्तो एवं बहुपहपटिमण्डितो नत्थि। भगवा इमं सुत्तन्तं आदितो पट्ठाय सकलं सुत्वा चिन्तेसि- "धम्मसेनापति सारिपुत्तो बुद्धबलं दीपेत्वा अप्पटिवत्तियं सीहनादं नदति । सावकभासितोति वुत्ते ओकप्पना न होति, जिनभासितोति वुत्ते होति, तस्मा जिनभासितं कत्वा देवमनुस्सानं ओकप्पनं इमस्मिं सुत्तन्ते उप्पादेस्सामी"ति । ततो वुट्ठाय साधुकारं अदासि । तेन वुत्तं “अथ खो भगवा वुट्ठहित्वा आयस्मन्तं सारिपुत्तं आमन्तेसि, साधु, साधु, सारिपुत्त, साधु खो त्वं सारिपुत्त, भिक्खूनं सङ्गीतिपरियायं अभासी"ति । तत्थ सङ्गीतिपरियायन्ति सामग्गिया कारणं । इदं वुत्तं होति- “साधु, खो त्वं, सारिपुत्त, मम सब्ब ताणेन संसन्दित्वा भिक्खून सामग्गिरसं अभासी"ति । समनुज्ञो सत्था अहोसीति अनुमोदनेन समनुञो अहोसि । एत्तकेन अयं सुत्तन्तो जिनभासितो नाम जातो । देसनापरियोसाने इमं सुत्तन्तं मनसिकरोन्ता ते भिक्खू अरहत्तं पापुर्णिसूति । सुमङ्गलविलासिनिया दीघनिकायट्ठकथाय - सङ्गीतिसुत्तवण्णना निद्विता। 216 Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११. दसुत्तरसुत्तवण्णना ३५०. एवं मे सुतन्ति दसुत्तरसुत्तं । तत्रायं अपुब्बपदवण्णना- आबुसो भिक्खवेति सावकानं आलपनमेतं । बुद्धा हि परिसं आमन्तयमाना 'भिक्खवे'ति वदन्ति । सावका सत्थारं उच्चट्ठाने ठपेस्सामाति सत्थु आलपनेन अनालपित्वा आवुसोति आलपन्ति । ते भिक्खूति ते धम्मसेनापतिं परिवारेत्वा निसिन्ना भिक्खू । के पन ते भिक्खूति ? अनिबद्धवासा दिसागमनीया भिक्खू । बुद्धकाले द्वे वारे भिक्खू सन्निपतन्तिउपकट्ठवस्सूपनायिककाले च पवारणकाले च। उपकट्ठवस्सूपनायिकाय दसपि वीसतिपि तिसम्पि चत्तालीसम्पि पासम्पि भिक्खू वग्गा वग्गा कम्मट्ठानत्थाय आगच्छन्ति । भगवा तेहि सद्धिं सम्मोदित्वा कस्मा, भिक्खवे, उपकट्ठाय वस्सूपनायिकाय विचरथाति पुच्छति । अथ ते “भगवा कम्मट्ठानत्थं आगतम्ह, कम्मट्ठानं नो देथा"ति याचन्ति । सत्था तेसं चरियवसेन रागचरितस्स असुभकम्मट्ठानं देति । दोसचरितस्स मेत्ताकम्मट्ठानं, मोहचरितस्स उद्देसो परिपुच्छा - 'कालेन धम्मस्सवनं, कालेन धम्मसाकच्छा, इदं तुम्हं सप्पायन्ति आचिक्खति । वितक्कचरितस्स आनापानस्सतिकम्मट्ठानं देति । सद्धाचरितस्स पसादनीयसुत्तन्ते बुद्धसुबोधिं धम्मसुधम्मतं सङ्घसुप्पटिपत्तिञ्च पकासेति । आणचरितस्स अनिच्चतादिपटिसंयुत्ते गम्भीरे सुत्तन्ते कथेति । ते कम्मट्ठानं गहेत्वा सचे सप्पायं होति, तत्थेव वसन्ति । नो चे होति, सप्पायं सेनासनं पुच्छित्वा गच्छन्ति । ते तत्थ वसन्ता तेमासिकं पटिपदं गहेत्वा घटेत्वा वायमन्ता सोतापन्नापि होन्ति सकदागामिनोपि अनागामिनोपि अरहन्तोपि। ततो वुत्थवस्सा पवारेत्वा सत्थु सन्तिकं गन्त्वा “भगवा अहं तुम्हाकं सन्तिके कम्मट्ठानं गहेत्वा सोतापत्तिफलं पत्तो...पे०... अहं अग्गफलं अरहत्त"न्ति पटिलद्धगुणं आरोचेन्ति । तत्थ इमे भिक्खू उपकट्ठाय वस्सूपनायिकाय आगता । एवं आगन्त्वा गच्छन्ते 217 Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१८ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (११.३५१-३५१) पन भिक्खू भगवा अग्गसावकानं सन्तिकं पेसेति, यथाह "अपलोकेथ पन, भिक्खवे, सारिपत्तमोग्गल्लाने"ति । भिक्ख च वदन्ति "किं न खो मयं, भन्ते, अपलोकेम सारिपुत्तमोग्गल्लाने"ति (सं० नि० २.३.२)। अथ ने भगवा तेसं दस्सने उय्योजेसि । "सेवथ, भिक्खवे, सारिपुत्तमोग्गल्लाने; भजथ, भिक्खवे, सारिपुत्तमोग्गल्लाने | पण्डिता भिक्खू अनुग्गाहका सब्रह्मचारीनं । सेय्यथापि, भिक्खवे, जनेता एवं सारिपुत्तो । सेय्यथापि जातस्स आपादेता एवं मोग्गल्लानो। सारिपुत्तो, भिक्खवे, सोतापत्तिफले विनेति, मोग्गल्लानो उत्तमत्थे''ति (म० नि० ३.३७१)। तदापि भगवा इमेहि भिक्खूहि सद्धिं पटिसन्थारं कत्वा तेसं भिक्खूनं आसयं उपपरिक्खन्तो “इमे भिक्खू सावकविनेय्या"ति अद्दस | सावकविनेय्या नाम ये बुद्धानम्पि धम्मदेसनाय बुज्झन्ति सावकानम्पि । बुद्धविनेय्या पन सावका बोधेतुं न सक्कोन्ति । सावकविनेय्यभावं पन एतेसं अत्वा कतरस्स भिक्खुनो देसनाय बुज्झिस्सन्तीति ओलोकेन्तो सारिपुत्तस्साति दिस्वा थेरस्स सन्तिकं पेसेसि । थेरो ते भिक्खू पुच्छि “सत्यु सन्तिकं गतत्थ आवुसो"ति । “आम, गतम्ह सत्थारा पन अम्हे तुम्हाकं सन्तिकं पेसिता"ति । ततो थेरो “इमे भिक्खू महं देसनाय बुज्झिस्सन्ति, कीदिसी नु खो तेसं देसना वट्टती"ति चिन्तेन्तो “इमे भिक्खू समग्गारामा, सामग्गिरसस्स दीपिका नेसं देसना वट्टती"ति सन्निट्ठानं कत्वा तथारूपं देसनं देसेतुकामो दसुत्तरं पवक्खामीतिआदिमाह । तत्थ दसधा मातिकं ठपेत्वा विभत्तोति दसुत्तरो, एककतो पट्ठाय याव दसका गतोतिपि दसुत्तरो, एकेकस्मिं पब्बे दस दस पञ्हा विसेसितातिपि दसुत्तरो, तं दसुत्तरं । पवक्खामीति कथेस्सामि । धम्मन्ति सुत्तं । निब्बानपत्तियाति निब्बानपटिलाभत्थाय । दुक्खस्सन्तकिरियायाति सकलस्स वट्टदुक्खस्स परियन्तकरणत्थं । सब्बगन्थप्पमोचनन्ति अभिज्झाकायगन्थादीनं सब्बगन्थानं पमोचनं । इति थेरो देसनं उच्चं करोन्तो भिक्खूनं तत्थ पेमं जनेन्तो एवमेतं उग्गहेतब्बं परियापुणितब्बं धारेतब्बं वाचेतब्बं मञिस्सन्तीति चतूहि पदेहि वण्णं कथेसि, “एकायनो अयं, भिक्खवे, मग्गो'"तिआदिना नयेन तेसं तेसं सुत्तानं भगवा विय । एकधम्मवण्णना ३५१. (क) तत्थ बहुकारोति बहूपकारो । 218 Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११.३५१-३५१) एकधम्मवण्णना २१९ (ख) भावेतब्बोति वड्वेतब्बो। (ग) परिजेय्योति तीहि परिचाहि परिजानितब्बो । (घ) पहातब्बोति पहानानुपस्सनाय पजहितब्बो । (ङ) हानभागियोति अपायगामिपरिहानाय संवत्तनको । (च) विसेसभागियोति विसेसगामिविसेसाय संवत्तनको । (छ) दुप्पटिविझोति दुप्पच्चक्खकरो । (ज) उप्पादेतब्बोति निप्फादेतब्बो । (झ) अभिनेय्योति आतपरिञाय अभिजानितब्बो । (ञ) सच्छिकातब्बोति पच्चक्खं कातब्बो । एवं सब्बत्थ मातिकासु अत्थो वेदितब्बो । इति आयस्मा सारिपुत्तो यथा नाम दक्खो वेलुकारो सम्मुखीभूतं वेळु छेत्वा निग्गण्ठिं कत्वा दसधा खण्डे कत्वा एकमेकं खण्डं हीरं हीरं करोन्तो फालेति, एवमेव तेसं भिक्खून सप्पायं देसनं उपपरिक्खित्वा दसधा मातिकं ठपेत्वा एकेककोट्ठासे एकेकपदं विभजन्तो “कतमो एको धम्मो बहुकारो, अप्पमादो कुसलेसु धम्मेसूति"तिआदिना नयेन देसनं वित्थारेतुं आरद्धो। तत्थ अप्पमादो कुसलेसु धम्मसूति सब्बत्थकं उपकारकं अप्पमादं कथेसि । अयव्हि अप्पमादो नाम सीलपूरणे, इन्द्रियसंवरे, भोजने मत्त ताय, जागरियानुयोगे, सत्तसु सद्धम्मेसु, विपस्सनागब्भं गण्हापने, अत्याटिसम्भिदादीसु, सीलक्खन्धदिपञ्चधमक्खन्धेसु, ठानाहानेसु, महाविहारसमापत्तियं, अरियसच्चेसु, सतिपट्टानादीसु, बोधिपक्खियेसु, विपस्सनाञाणादीसु अट्ठसु विज्जासूति सब्बेसु अनवज्जतुन कुसलेसु धम्मेसु बहूपकारो । 219 Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२० दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (११.३५१-३५१) तेनेव नं भगवा "यावता, भिक्खवे, सत्ता अपदा वा...पे०... तथागतो तेसं अग्गमक्खायति । एवमेव खो, भिक्खवे, ये केचि कुसला धम्मा, सब्बेते अप्पमादमूलका अप्पमादसमोसरणा, अप्पमादो तेसं धम्मानं अग्गमक्खायती"तिआदिना (सं० नि० ३.५.१३९) नयेन हत्थिपदादीहि ओपम्मेहि ओपमेन्तो संयुत्तनिकाये अप्पमादवग्गे नानप्पकारं थोमेति । तं सब्बं एकपदेनेव सङ्गहेत्वा थेरो अप्पमादो कुसलेसु धम्मेसूति आह । धम्मपदे अप्पमादवग्गेनापिस्स बहूपकारता दीपेतब्बा । असोकवत्थुनापि दीपेतब्बा - (क) असोकराजा हि निग्रोधसामणेरस्स "अप्पमादो अमतपदन्ति गाथं सुत्वा एव "तिट्ट, तात, मय्हं तया तेपिटकं बुद्धवचनं कथित"न्ति सामणेरे पसीदित्वा चतुरासीतिविहारसहस्सानि कारेसि । इति थामसम्पन्नेन भिक्खुना अप्पमादस्स बहूपकारता तीहि पिटकेहि दीपेत्वा कथेतब्बा । यंकिञ्चि सुत्तं वा गाथं वा अप्पमाददीपनत्थं आहरन्तो "अट्ठाने ठत्वा आहरसि, अतित्थेन पक्खन्दो"ति न वत्तब्बो । धम्मकथिकस्सेवेत्थ थामो च बलञ्च पमाणं । (ख) कायगतासतीति आनापानं चतुइरियापथो सतिसम्पजलं द्वत्तिंसाकारो चतुधातुववत्थानं दस असुभा नव सिवथिका चुण्णिकमनसिकारो केसादीसु चत्तारि रूपज्झानानीति एत्थ उप्पन्नसतिया एतं अधिवचनं । सातसहगताति ठपेत्वा चतुत्थज्झानं अञत्थ सातसहगता होति सुखसम्पयुत्ता, तं सन्धायेतं वुत्तं । ___(ग) सासवो उपादानियोति आसवानञ्चेव उपादानानञ्च पच्चयभूतो। इति तेभूमकधम्ममेव नियमेति । (घ) अस्मिमानोति रूपादीसु अस्मीति मानो। (ङ) अयोनिसो मनसिकारोति अनिच्चे निच्चन्तिआदिना नयेन पवत्तो उप्पथमनसिकारो। (च) विपरियायेन योनिसो मनसिकारो वेदितब्बो । (छ) आनन्तरिको चेतोसमाधीति अञत्थ मग्गानन्तरं फलं आनन्तरिको चेतोसमाधि 220 Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११.३५२-३५२) द्वेधम्मवण्णना २२१ नाम | इध पन विपस्सनानन्तरो मग्गो विपस्सनाय वा अनन्तरत्ता अत्तनो वा अनन्तरं फलदायकत्ता आनन्तरिको चेतोसमाधीति अधिप्पेतो । (ज) अकुप्पं आणन्ति अञ्जत्थ फलपञ्जा अकुप्पजाणं नाम । इध पच्चवेक्षणपञ्जा अधिप्पेता। (झ) आहारद्वितिकाति पच्चयट्ठितिका । अयं एको धम्मोति येन पच्चयेन तिठ्ठन्ति, अयं एको धम्मो आतपरिञाय अभिनेय्यो । (ञ) अकुप्पा चेतोविमुत्तीति अरहत्तफलविमुत्ति । इमस्मिं वारे अभिज्ञाय आतपरिज्ञा कथिता। परिज्ञाय तीरणपरिञा । पहातब्बसच्छिकातब्बेहि पहानपरिञा। दुष्पटिविज्झोति एत्थ पन मग्गो कथितो । सच्छिकातब्बोति फलं कथितं, मग्गो एकस्मिंयेव पदे लब्मति । फलं पन अनेकेसुपि लब्भतियेव । भूताति सभावतो विज्जमाना। तच्छाति याथावा । तथाति यथा वुत्ता तथासभावा । अवितथाति यथा वुत्ता न तथा न होन्ति । अनञथाति वुत्तप्पकारतो न अजथा। सम्मा तथागतेन अभिसम्बुद्धाति तथागतेन बोधिपल्लङ्के निसीदित्वा हेतुना कारणेन सयमेव अभिसम्बुद्धा आता विदिता सच्छिकता। इमिना थेरो “इमे धम्मा तथागतेन अभिसम्बुद्धा, अहं पन तुम्हाकं रञो लेखवाचकसदिसोति जिनसुत्तं दस्सेन्तो ओकप्पनं जनेसि । एकधम्मवण्णना निहिता। द्वेधम्मवण्णना ३५२. (क) इमे वे धम्मा बहुकाराति इमे द्वे सतिसम्पजञा धम्मा सीलपूरणादीसु अप्पमादो विय सब्बत्थ उपकारका हितावहा । 221 Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२२ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (११.३५३-३५३) (ख) समथो च विपस्सना चाति इमे द्वे सङ्गीतिसुत्ते लोकियलोकुत्तरा कथिता । इमस्मिं दसुत्तरसुत्ते पुब्बभागा कथिता । (छ) सत्तानं संकिलेसाय सत्तानं विसुद्धियाति अयोनिसो मनसिकारो हेतु चेव पच्चयो च सत्तानं संकिलेसाय, योनिसो मनसिकारो विसुद्धिया। तथा दोवचस्सता पापमित्तता संकिलेसाय: सोवचस्सता कल्याणमित्तता विसुद्धिया। तथा तीणि अकुसलमूलानि; तीणि कुसलमूलानि । चत्तारो योगा चत्तारो विसंयोगा । पञ्च चेतोखिला पञ्चिन्द्रियानि । छ अगारवा छ गारवा । सत्त असद्धम्मा सत्त सद्धम्मा। अट्ठ कुसीतवत्थूनि अट्ठ आरम्भवत्थूनि । नव आघातवत्थूनि नव आघातप्पटिविनया। दस अकुसलकम्मपथा दस कुसलकम्मपथाति एवं पभेदा इमे द्वे धम्मा दुप्पटिविज्झाति वेदितब्बा। (झ) सङ्घता धातूति पच्चयेहि कता पञ्चक्खन्धा । असङ्खता धातूति पच्चयेहि अकतं निब्बानं । (ञ) विजा च विमुत्ति चाति एत्थ विज्जाति तिस्सो विज्जा । विमुत्तीति अरहत्तफलं । इमस्मिं वारे अभिज्ञादीनि एककसदिसानेव, उप्पादेतब्बपदे पन मग्गो कथितो, सच्छिकातब्बपदे फलं । द्वेधम्मवण्णना निट्टिता। तयोधम्मवण्णना ३५३. (छ) कामानमेतं निस्सरणं यदिदं नेक्खम्मन्ति एत्थ नेक्खम्मन्ति अनागामिमग्गो अधिप्पेतो । सो हि सब्बसो कामानं निस्सरणं । रूपानं निस्सरणं यदिदं आरुष्पन्ति एत्थ आरुप्पेपि अरहत्तमग्गो। पुन उप्पत्तिनिवारणतो सब्बसो रूपानं निस्सरणं नाम । निरोधो 222 Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११.३५४-३५४) चत्तारोधम्मवण्णना २२३ तस्स निस्सरणन्ति इध अरहत्तफलं निरोधोति अधिप्पेतं । अरहत्तफलेन हि निब्बाने दिढे पुन आयतिं सब्बसङ्खारा न होन्तीति अरहत्तं सङ्खतनिरोधस्स पच्चयत्ता निरोधोति वुत्तं । (ज) अतीतंसे आणन्ति अतीतंसारम्मणं आणं इतरेसुपि एसेव नयो । इमस्मिम्पि वारे अभिञादयो एककसदिसाव । दुप्पटिविज्झपदे पन मग्गो कथितो, सच्छिकातब्बे फलं। तयोधम्मवण्णना निट्टिता । चत्तारोधम्मवण्णना ३५४. (क) चत्तारि चक्कानीति एत्थ चक्कं नाम दारुचक्कं, रतनचक्कं, धम्मचक्कं, इरियापथचक्कं, सम्पत्तिचक्कन्ति पञ्चविधं । तत्थ “यं पनिदं सम्म, रथकार, चक्कं छहि मासेहि निहितं, छारत्तूनेही"ति (अ० नि० १.३.१५) इदं दारुचक्कं । "पितरा पवत्तितं चक्कं अनुप्पवत्तेती"ति (अ० नि० २.५.१३२) इदं रतनचक्कं । "पवत्तितं चक्क"न्ति (म० नि० २.३९९) इदं धम्मचक्कं । “चतुचक्कं नवद्वार"न्ति (सं० नि० १.१.२९) इदं इरियापथचक्कं । “चत्तारिमानि, भिक्खवे, चक्कानि, येहि समन्नागतानं देवमनुस्सानं चतुचक्कं पवत्तती"ति (अ० नि० १.४.३१) इदं सम्पत्तिचक्कं । इधापि एतदेव अधिप्पेतं । पतिरूपदेसवासोति यत्थ चतस्सो परिसा सन्दिस्सन्ति, एवरूपे अनुच्छविके देसे वासो। सप्पुरिसूपनिस्सयोति बुद्धादीनं सप्पुरिसानं अवस्सयनं सेवनं भजनं । अत्तसम्मापणिधीति अत्तनो सम्मा ठपनं, सचे पन पुब्बे अस्सद्धादीहि समन्नागतो होति, तानि पहाय सद्धादीसु पतिट्ठापनं । पुब्बे च कतपुञताति पुब्बे उपचितकुसलता । इदमेवेत्थ पमाणं । येन हि आणसम्पयुत्तचित्तेन कुसलं कतं होति, तदेव कुसलं तं पुरिसं पतिरूपदेसे उपनेति, सप्पुरिसे भजापेसि । सो एव च पुग्गलो अत्तानं सम्मा ठपेति । 223 Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२४ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (११.३५५-३५५) चतूसु आहारेसु पठमो लोकियोव । सेसा पन तयो सङ्गीतिसुत्ते लोकियलोकुत्तरमिस्सका कथिता । इध पुब्बभागे लोकिया । (च) कामयोगविसंयोगादयो अनागामिमग्गादिवसेन वेदितब्बा । (छ) हानभागियादीसु पठमस्स झानस्स लाभी कामसहगता सञ्जामनसिकारा समुदाचरन्ति हानभागियो समाधि । तदनुधम्मता सति सन्तिट्ठति ठितिभागियो समाधि । वितक्कसहगता सञ्जामनसिकारा समुदाचरन्ति विसेसभागियो समाधि । निबिदासहगता सञ्जामनसिकारा समुदाचरन्ति विरागूपसम्हितो निब्बेधभागियो समाधीति इमिना नयेन सब्बसमापत्तियो वित्थारेत्वा अत्थो वेदितब्बो । विसुद्धिमग्गे पनस्स विनिच्छयकथा कथिताव । इमस्मिम्पि वारे अभिज्ञादीनि एककसदिसानेव । अभिज्ञापदे पनेत्थ मग्गो कथितो । सच्छिकातब्बपदे फलं । चत्तारोधम्मवण्णना निद्विता । पञ्चधम्मवण्णना ३५५. (ख) पीतिफरणतादीसु पीति फरमाना उप्पज्जतीति द्वीसु झानेसु पञ्जा पीतिफरणता नाम । सुखं फरमानं उप्पज्जतीति तीसु झानेसु पञा सुखफरणता नाम | परेसं चेतो फरमाना उप्पज्जतीति चेतोपरियपञा चेतोफरणता नाम। आलोकफरणे उप्पज्जतीति दिब्बचक्खुपञा आलोकफरणता नाम | पच्चवेक्खणाणं पच्चवेक्खणनिमित्तं नाम | वुत्तम्पि चेतं "द्वीसु झानेसु पञ्जा पीतिफरणता, तीसु झानेसु पञ्जा सुखफरणता । परचित्ते पञा चेतोफरणता, दिब्बचक्खु आलोकफरणता । तम्हा तम्हा समाधिम्हा वुट्ठितस्स पच्चवेक्खणजाणं पच्चवेक्खणनिमित्त''न्ति (विभं० ८०४)। तत्थ पीतिफरणता सुखफरणता द्वे पादा विय। चेतोफरणता आलोकफरणता द्वे 224 Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११.३५६-३५६) छधम्मवण्णना २२५ हत्था विय। अभिञापादकज्झानं मज्झिमकायो विय। पच्चवेक्खणनिमित्तं सीसं विय । इति आयस्मा सारिपुत्तत्थेरो पञ्चङ्गिकं सम्मासमाधि अङ्गपच्चङ्गसम्पन्नं पुरिसं कत्वा दस्सेसि | (ज) अयं समाधि पच्चुप्पन्नसुखो चे वातिआदीसु अरहत्तफलसमाधि अधिप्पेतो । सो हि अप्पितप्पितक्खणे सुखत्ता पच्चुप्पन्नसुखो। पुरिमो पुरिमो पच्छिमस्स पच्छिमस्स समाधिसुखस्स पच्चयत्ता आयतिं सुखविपाको। किलेसेहि आरकत्ता अरियो। कामामिसवट्टामिसलोकामिसानं अभावा निरामिसो। बुद्धादीहि महापुरिसेहि सेवितत्ता अकापुरिससेवितो। अङ्गसन्तताय आरम्मणसन्तताय सब्बकिलेसदरथसन्तताय च सन्तो। अतप्पनीयटेन पणीतो। किलेसपटिप्पस्सद्धिया लद्धत्ता किलेसपटिप्पस्सद्धिभावं वा लद्धत्ता पटिप्पस्सद्धलदो। पटिप्पस्सद्धं पटिप्पस्सद्धीति हि इदं अत्थतो एकं। पटिप्पस्सद्धकिलेसेन वा अरहता लद्धत्ता पटिप्पस्सद्धलद्धो । एकोदिभावेन अधिगतत्ता एकोदिभावमेव वा अधिगतत्ता एकोदिभावाधिगतो। अप्पगणसासवसमाधि विय ससङ्खारेन सप्पयोगेन चित्तेन पच्चनीकधम्मे निग्गय्ह किलेसे वारेत्वा अनधिगतत्ता नससङ्खारनिग्गरहवारितगतो। तञ्च समाधिं समापज्जन्तो ततो वा वुट्ठहन्तो सतिवेपल्लपत्तत्ता। सतोव समापज्जति सतो वहति। यथापरिच्छिन्नकालवसेन वा सतो समापज्जति सतो वुट्टहति । तस्मा यदेत्थ “अयं समाधि पच्चुप्पन्नसुखो चेव आयतिञ्च सुखविपाको''ति एवं पच्चवेक्खमानस्स पच्चत्तंयेव अपरप्पच्चयं जाणं उप्पज्जति, तं एकमङ्गं । एस नयो सेसेसुपि। एवमिमेहि पञ्चहि पच्चवेक्खणाणेहि अयं समाधि “पञ्चाणिको सम्मासमाधी''ति वुत्तो । इमस्मिं वारे विसेसभागियपदे मग्गो कथितो। सच्छिकातब्बपदे फलं । सेसं पुरिमसदिसमेव । छधम्मवण्णना ३५६. छक्केसु सब्बं उत्तानत्थमेव । दुष्पटिविज्झपदे पनेत्थ मग्गो कथितो। सेसं पुरिमसदिसं। 225 Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा (११.३५७-३५८) सत्तधम्मवण्णना ३५७. (अ) सम्मप्पञ्जाय सुदिवा होन्तीति हेतुना नयेन विपस्सनााणेन सुदिवा होन्ति । कामाति वत्थुकामा च किलेसकामा च, द्वेपि सपरिळाहटेन अङ्गारकासु विय सुदिट्ठा होन्ति। विवेकनिन्नन्ति निब्बाननिन्नं । पोणं पन्भारन्ति निन्नस्सेतं वेवचनं । व्यन्तीभूतन्ति नियतिभूतं । नित्तण्हन्ति अत्थो । कुतो ? सब्बसो आसवट्ठानीयेहि धम्मेहि तेभूमकधम्मेहीति अत्थो । इध भावेतब्बपदे मग्गो कथितो। सेसं पुरिमसदिसमेव । अट्ठधम्मवण्णना ३५८. (क) आदिब्रह्मचरियिकाय पञआयाति सिक्खत्तयसङ्गहस्स मग्गब्रह्मचरियस्स आदिभूताय पुब्बभागे तरुणसमथविपस्सनापञाय | अट्ठङ्गिकस्स वा मग्गस्स आदिभूताय सम्मादिट्ठिपाय । तिब्बन्ति बलवं। हिरोत्तप्पन्ति हिरी च ओत्तप्पञ्च । पेमन्ति गेहस्सितपेमं। गारवोति गरुचित्तभावो। गरुभावनीयहि उपनिस्साय विहरतो किलेसा नुप्पज्जन्ति ओवादानुसासनिं लभति । तस्मा तं निस्साय विहारो पापटिलाभस्स पच्चयो होति । (छ) अक्खणेसु यस्मा पेता असुरानं आवाहनं गच्छन्ति, विवाहनं गच्छन्ति, तस्मा पेत्तिविसयेनेव असुरकायो गहितोति वेदितब्बो । (ज) अप्पिछस्साति एत्थ पच्चयअप्पिच्छो, अधिगमअप्पिच्छो, परियत्तिअप्पिच्छो, धुतङ्गअप्पिच्छोति चत्तारो अप्पिच्छा । तत्थ पच्चयअप्पिच्छो बहुं देन्ते अप्पं गण्हाति, अप्पं देन्ते अप्पतरं वा गण्हाति, न वा गण्हाति, न अनवसेसगाही होति । अधिगमअप्पिच्छो मज्झन्तिकत्थेरो विय अत्तनो अधिगमं अञ्जेसं जानितुं न देति । परियत्तिअप्पिच्छो तेपिटकोपि समानो न बहुस्सुतभावं जानापेतुकामो होति साकेततिस्सत्थेरो विय । धुतङ्गअप्पिच्छो धुतङ्गपरिहरणभावं अञ्जेसं जानितुं न देति द्वेभातिकत्थेरेसु जेट्टकत्थेरो विय । वत्थु विसुद्धिमग्गे कथितं । अयं धम्मोति एवं सन्तगुणनिगृहनेन च पच्चयपटिग्गहणे मत्तञ्जताय च अप्पिच्छस्स पुग्गलस्स अयं नवलोकुत्तरधम्मो सम्पज्जति, नो महिच्छस्स । एवं सब्बत्थ योजेतब्बं । 226 Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११.३५९-३५९) नवधम्मवण्णना २२७ सन्तुट्ठस्साति चतूसु पच्चयेसु तीहि सन्तोसेहि सन्तुट्ठस्स। पविवित्तस्साति कायचित्तउपधिविवेकेहि विवित्तस्स । तत्थ कायविवेको नाम गणसङ्गणिकं विनोदेत्वा अट्ठआरम्भवत्थुवसेन एकीभावो। एकीभावमत्तेन पन कम्मं न निप्फज्जतीति कसिणपरिकम्मं कत्वा अट्ठ समापत्तियो निब्बत्तेति, अयं चित्तविवेको नाम । समापत्तिमत्तेनेव कम्मं न निष्फज्जतीति झानं पादकं कत्वा सङ्खारे सम्मसित्वा सह पटिसम्भिदाहि अरहत्तं पापुणाति, अयं उपधिविवेको नाम । तेनाह भगवा- "कायविवेको च विवेकट्ठकायानं नेक्खम्माभिरतानं । चित्तविवेको च परिसुद्धचित्तानं परमवोदानप्पत्तानं । उपधिविवेको च निरुपधीनं पुग्गलानं विसङ्घारगतान"न्ति (महानि० ४९)। सङ्गणिकारामस्साति गणसङ्गणिकाय चेव किलेससङ्गणिकाय च रतस्स | आरद्धवीरियस्साति कायिकचेतसिकवीरियवसेन आरद्धवीरियस्स। उपद्वितसतिस्साति चतुसतिपट्ठानवसेन उपट्टितसतिस्स। समाहितस्साति एकग्गचित्तस्स। पञवतोति कम्मस्सकतपञाय पञवतो । निप्पपञ्चस्साति विगतमानतण्हादिछिपपञ्चस्स | इध भावेतब्बपदे मग्गो कथितो । सेसं पुरिमसदिसमेव । नवधम्मवण्णना ३५९. (ख) सीलविसुद्धीति विसुद्धिं पापेतुं समत्थं चतुपारिसुद्धिसीलं । पारिसुद्धिपधानियङ्गन्ति परिसुद्धभावस्स पधानङ्गं । चित्तविसुद्धीति विपस्सनाय पदट्ठानभूता अट्ठ पगुणसमापत्तियो । दिद्विविसुद्धीति सपच्चयनामरूपदस्सनं। कलावितरणविसुद्धीति पच्चयाकारजाणं । अद्धत्तयेपि हि पच्चयवसेनेव धम्मा पवत्तन्तीति पस्सतो कङ्ख वितरति । मग्गामग्गाणदस्सनविसुद्धीति ओभासादयो न मग्गो, वीथिप्पटिपन्नं उदयब्बयाणं मग्गोति एवं मग्गामग्गे जाणं । पटिपदाआणदस्सनविसुद्धीति रथविनीते वुढानगामिनिविपस्सना कथिता, इध तरुणविपस्सना। आणदस्सनविसुद्धीति रथविनीते मग्गो कथितो, इध वुट्ठानगामिनिविपस्सना । एता पन सत्तपि विसुद्धियो वित्थारेन विसुद्धिमग्गे कथिता । पाति अरहत्तफलपञा.। विमुत्तिपि अरहत्तफलविमुत्तियेव । (छ) धातुनानत्तं पटिच्च उप्पज्जति फस्सनानत्तन्ति चक्खादिधातुनानत्तं पटिच्च चक्खुसम्फस्सादिनानत्तं उप्पज्जतीति अत्थो । फस्सनानत्तं पटिच्चाति चक्खुसम्फस्सादिनानत्तं 227 Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२८ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा पटिच्च । वेदनानानत्तन्ति चक्खुसम्फस्सजादिवेदनानानत्तं । सञनानत्तं पटिच्चाति कामसञ्जदिनानत्तं पटिच्च । सङ्घप्पनानत्तन्ति कामसङ्कप्पादिनानत्तं । सङ्घप्पनानत्तं पटिच्च उप्पज्जति छन्दनानत्तन्ति सङ्कप्पनानत्तताय रूपे छन्दो सद्दे छन्दोति एवं छन्दनानत्तं उप्पज्जति । परिळाहनानत्तन्ति छन्दनानत्तताय रूपपरिळाहो सद्दपरिळाहोति एवं परिळाहनानत्तं उप्पज्जति । परियेसनानानत्तन्ति परिळाहनानत्तताय रूपपरियेसनादिनानत्तं उप्पज्जति । लाभनानत्तन्ति परियेसनानानत्तताय रूपपटिलाभादिनानत्तं उप्पज्जति । (ज) सञ्ञासु मरणसञ्जति मरणानुपस्सनाञणे सञ्ञा । आहारेपटिकूलसञ्जति आहारं परिग्गण्हन्तस्स उप्पन्नसञ्ञा । सब्बलोके अनभिरतिसञ्ञाति सब्बस्मिं वट्टे उक्कण्ठन्तस्स उप्पन्नसा । सेसा हेट्ठा कथिता एव । इध बहुकारपदे मग्गो कथित । सं पुरिमसदिसमेव । (११.३६०-३६०) दसधम्मवण्णना ३६०. (झ) निज्जरवत्थूनीति निज्जरकारणानि । मिच्छादिट्ठि निज्जिण्णा होतीति अयं हेट्ठा विपस्सनायपि निज्जिण्णा एव पहीना । कस्मा पुन गहिताति असमुच्छिन्नत्ता । विपस्सनाय हि किञ्चापि जिण्णा, न पन समुच्छिन्ना, मग्गो पन उप्पज्जित्वा तं समुच्छिन्दति, न पुन वुट्ठातुं देति । तस्मा पुन गहिता । एवं सब्बपदेसु नयो नेतब्बो । एत्थ च सम्मादिट्ठिपच्चया चतुसट्ठि धम्मा भावनापारिपूरिं गच्छन्ति । कतमे चतुसट्ठि ? सोतापत्तिमग्गक्खणे अधिमोक्खट्ठेन सद्धिन्द्रियं परिपूरेति, पग्गहट्ठेन वीरियिन्द्रियं परिपूरेति, अनुस्सरणट्टेन सतिन्द्रियं परिपूरेति, अविक्खेपट्ट्ठेन समाधिन्द्रियं परिपूरेति, दस्सनट्ठेन पञ्ञिन्द्रियं परिपूरेति, विजाननट्ठेन मनिन्द्रियं अभिनन्दनट्ठेन सोमनस्सिन्द्रियं, पवत्तसन्ततिअधिपतेय्यट्ठेन जीवितिन्द्रियं परिपूरेति... पे०... अरहत्तफलक्खणे अधिमक्खन सद्धिन्द्रियं, पवत्तसन्ततिअधिपतेय्यट्ठेन जीवितिन्द्रियं परिपूरेतीति एवं चतूसु मग्गेसु चतूसु फलेसु अट्ठ अट्ठ हुत्वा चतुसट्ठि धम्मा पारिपूरिं गच्छन्ति । इध अभिज्ञेय्यपदे मग्गो कथितो। सेसं पुरिमसदिसमेव । इध ठत्वा पञ्हा समोधानेतब्बा । दसके सतं पञ्हा कथिता । एकके च नवके च 228 Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११.३६०-३६०) दसधम्मवण्णना २२९ सतं, दुके च अट्ठके च सतं, तिके च सत्तके च सतं, चतुक्के च छक्के च सतं, पञ्चके पासाति अड्डछट्ठानि पहसतानि कथितानि होन्ति । "इदमवोच आयस्मा सारिपुत्तो, अत्तमना ते भिक्खू आयस्मतो सारिपुत्तस्स भासितं अभिनन्दु"न्ति साधु, साधूति अभिनन्दन्ता सिरसा सम्पटिच्छिंसु । ताय च पन अत्तमनताय इममेव सुत्तं आवज्जमाना पञ्चसतापि ते भिक्खू सह पटिसम्भिदाहि अग्गफले अरहत्ते पतिहिंसूति । सुमङ्गलविलासिनिया दीघनिकायट्ठकथाय दसुत्तरसुत्तवण्णना निद्विता। निविता च पाथिकवग्गस्स वण्णनाति । पाथिकवग्गट्ठकथा निहिता। 229 Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३० एत्तावता च दीघनिकाये पाथिकवरगट्ठकथा निगमनकथा आयाचितो सुमङ्गल, परिवेणनिवासिना थिरगुणेन । दाटानागसङ्घत्थेरेन, थेरवंसन्वयेन । । दीघागमवरस्स दसबल, गुणगणपरिदीपनस्स अट्ठकथं । यं आरभि सुमङ्गल, विलासिनिं नाम नामेन । । सा हि महाट्ठकथाय, सारमादाय निट्ठिता । एसा एकासीतिपमाणाय, पाळिया भाणवारेहि । । एकूनसट्टिमत्तो, बिसुद्धिमग्गोपि भाणवारेहि । अत्थप्पकासनत्थाय, आगमानं कतो यस्मा । । तस्मा तेन सहायं, अट्ठकथा भाणवारगणनाय । सुपरिमितपरिच्छिन्नं चत्तालीससतं होति । । सब्बं चत्तालीसाधिकसत, परिमाणं भाणवारतो एवं | समयं पकासयन्तिं, महाविहारे निवासिनं । । मूलकट्ठकथासार, मादाय मया इमं करोन्तेन । यं पुञ्ञमुपचितं तेन, होतु सब्बो सुखी लोकोति । । परमविसुद्धसद्धाबुद्धिवीरियपटिमण्डितेन सीलाचारज्जवमद्दवादिगुणसमुदयसमुदितेन सकसमयसमयन्तरगहनज्झोगाहणसमत्थेन पञ्ञवेय्यत्तियसमन्नागतेन तिपिटकपरियत्तिप्पभेदे साट्ठकथे सत्थुसासने अप्पटिहतञाणप्पभावेन महावेय्याकरणेन करणसम्पत्तिजनितसुखविनिग्गतमधुरोदारवचनलावण्णत्तेन युत्तमुत्तवादिना वादीवरेन महाकविना पभिन्नपटिसम्भिदापरिवारे छळभिञादिप्पभेदगुणपटिमण्डिते उत्तरमध 230 (११.३६०-३६०) Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११.३६०-३६०) निगमनकथा सुप्पतिट्ठितबुद्धीनं थेरवंसप्पदीपानं थेरानं महाविहारवासीनं वंसालङ्कारभूतेन विपुलविसुद्धबुद्धिना बुद्धघोसोति गरूहि गहितनामधेय्येन थेरेन कता अयं सुमङ्गलविलासिनी नाम दीघनिकायट्ठकथा - ताव तिट्ठतु लोकस्मिं, लोकनित्थरणेसिनं । दस्सेन्ती कुलपुत्तानं, नयं दिट्ठिविसुद्धिया ।। याव बुद्धोति नामम्पि, सुद्धचित्तस्स तादिनो । लोकम्हि लोकजेट्ठस्स, पवत्तति महेसिनोति । । सुमङ्गलविलासिनी नाम दीघनिकायट्ठकथा निट्ठिता । 231 २३१ Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सद्दानुक्कमणिका अकट्ठपाकिमन्ति-१३३ अकट्ठपाकोति-४७ अकणोति-४७ अकण्हअसुक्कन्ति-१८७ अकथितभावं-१०९,११० अकनिट्ठगामी-१९४ । अकप्पियचीवरानि-१७४ अकम्पनजाणं-१५० अकरणभावो-३३ अकसिरलाभीति-७२ अकसिरेन-६७ अकारकोति-२०७ अ-कारो-२० अकालेनाति-१९३ अकिच्छलाभीति-७२ अकिच्छेन-६७ अकित्तिसञ्जननी-११६ अकित्तिसजननीति-११६ अकुप्पाणं - २२१ अकुसलकम्मतो-९२ अकुसलकम्मपथे-३०,१२० अकुसलचित्तन्ति-१६० अकुसलचित्तुप्पादधम्मा-२४ अकुसलचित्तुप्पादा-२४,१५४ अकुसलचेतना-१६४ अकुसलमूलन्ति-१४९ अकुसलसङ्खाताति-२४,४२ अकुसला धम्मा-१५३,१७० अकुसलानि-१९२ अक्खधुत्ता-११७ अक्खमा-१८६ अक्खम्भियोति - ९४ अक्खरं-४८ अक्खसोण्डो-११७ अक्खातो-५९ अक्खिरोगादीनं-११६ अक्खो -११९ अखिलमनिमित्तमकण्टकन्ति-९४ अगमनीयट्ठानवीतिक्कमचेतना-२११ अगमनीयट्ठानं-२११, २१२ अगारवो-१९८ अगारवोति-१९८ अग्गकोण्डा-९७ अग्गजेनाति-४८ अग्गपरिवारं-७ अग्गपुग्गलो-९५ अग्गपुरिसो-१५ अग्गप्पत्ता-२२ अग्गफलं-१७६, २१७ अग्गब्राह्मणानं-४१ अग्गरसदायको-९९ Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२] दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा [अ-अ] अग्गसावका-५३, ५५ अग्गाति-१७४ अग्गिक्खन्धो-१२२ अग्गीति-१६० अग्गुपट्टायिका-३९ अग्गोति-८२ अङ्गीरसा-१३१ अङ्गत्तरनिकायो-७४ अचरिमन्ति-७३ अचलसद्धाय - १९० अचेलकपटिपदा-१८६ अचेलको-२०,१९० अचेलकोति-७ अचेलो-५,७,९,१० अचेलोति-४ अचेलं-४,५ अच्चन्तनिस्सरणमेव-१९६ अच्छन्तीति-४९ अच्छरियअब्भुतवण्णना-७८,७९ अच्छरियमनुस्सो-७५ अच्छादनवत्थमोक्खपावुरणानन्ति-१०५ अच्छिद्दकादिपाठगणका-३२ अच्छिन्नमूलो-२०५ अच्छिन्नवुत्तीति-१२७ अजवीथि -४६ अजितोपि-९ अज्जवं-१४८ अज्झत्तज्झत्तिकानि-१९७ अज्झत्तसमुट्ठाना-१४६ अज्झत्तिकानीति-१९७ अज्झापन्नोति-१९ अज्झासयन्ति-१८ अज्झासयादिब्रह्मचरियभूतं-१८ अञतित्थिया-१६ अञतित्थियाति-१६ अजथाभावी-६३ अञदत्थुहरो-११९ अञ्चदत्युहरोति-११९ अबदुक्खसभावविरहतो- १५८ अञभावानुपगमनत्यं -२११ अवसरणपटिक्खेपवचनं-२७ अज्ञा-११४, १२५ अज्ञाताविन्द्रियन्ति-१६७ अजाति-१२४ अचिन्द्रियन्ति-१६७ अटवियं-९५, १२४ अट्ठकथायं-१३२,१६६ अट्ठङ्गिको मग्गो - ६१ अट्ठधम्मवण्णना-२२६ अट्ठविमोक्खपटिक्खेपवसेनेव-६५ अट्ठविमोक्खलाभिनो-६५ अट्ठविमोक्खे -६५ अट्ठसमापत्तियो-६३ अट्ठानकुसलताति-१४७ अट्ठारसबुद्धधम्मे-५२ अद्वितधम्माति-८७ अटुप्पत्तिया-९१ अण्डजा-१८८ अतिउण्हन्तिआदीसुपि-११८ अतिधम्मभारेन-७६,७७ अतिनिपुणा-१०७ अतिबलवलोभो-३३ अतिमानीति-२१ अतिरेकचीवरं-८२ अतिसीतन्ति-११८ अतीतबुद्धेहि-१७४ अतीतानागतपच्चुप्पन्नजाननसमत्थं-१९४ अतीतानागतपच्चुप्पन्नबुद्धानं-५८ अतीतो-५,१५७, १५८ अतुट्ठाकारभूतं-७ Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [अ-अ] सद्दानुक्कमणिका अत्थङ्गमनकालो-४६ अत्थचरियायाति-९९ अत्यञ्जू-२०२ अत्यपटिसम्भिदा-५२ अत्थपटिसम्भिदादीसु-२१९ अत्थपटिसंवेदिनोति-१९६ अत्थसहितं-८० अस्थिभावं-९ अत्युद्धारोति-९५ अत्युपेतन्ति-८६ अत्यूपसंहितन्ति-१०१ अत्तकिलमथानुयोगन्ति-७२ अत्तकिलमथानुयोगमनुयुत्ता-१८ अत्तञ्जू-२०२ अत्तदीपा-३७ अत्तदीपाति-२७ अत्तभावपटिलाभेसु-१८९ अत्तवादुपादानं-१८८ अत्तसञ्चेतनाय - १८९ अत्तसज्जे- १८२ अत्तसम्मापणिधीति-२२३ अत्तसरणाति-२७ अत्तहिताय-१९० अत्ता च लोको-९०,१४५ अत्ताति-१८८ अत्ताधिपतेय्यं-१७० अत्तानुक्कंसेतीति-१९, १८४ अथुसोति-४७ अदिनादानं-२११,२१२, २१३ अदुक्खमसुखावेदनायेतं-१५८ अदुक्खलाभी-७२ अदुस्सन्तोति -२०१ अद्धाति-१५७ अद्वेज्झवचना-६ अधम्मकिरिया-३१ अधम्मरागोति-३३ अधम्मसम्मतन्ति-४८ अधम्मोति-४३,४८,२०४ अधिकतरपञो-६१,७१ अधिकरणसमथा- २०४ अधिकरणानन्ति-२०४ अधिकरणानं-२०६ अधिकुसलाति-९३ अधिकुसलेसु-९३ अधिगतज्झानविपस्सनामग्गफलनिब्बानानि-१८६ अधिगतमग्गानहि-११६ अधिगमत्थाय-२०७,२११ अधिगमनसद्धा-१९३ अधिचिण्णं-८० अधिचित्तअधिपासिक्खा-१९५ अधिचित्तं-१६८ अधिजेगुच्छेति-१८ अधिट्ठानचित्तेन - १० अधिवानानीति-१८७ अधिट्ठानं-१८७ अधिपत्ति-९० अधिपञत्तीति-९० अधिपञ्जा-१६८ अधिपञ्जाधम्मविपस्सनं-१८२ अधिमत्ततण्हाय-१७८ अधिमुच्चति-१३७ अधिमुत्ति-१५१ अधिवचनन्ति -७९,१४६,२०३ अधिवचनं-९, १०२, ११५, १५१, १६३, १६४, १६७,१८८,२०३, २२० अधिसीलसिक्खा-१६८,१९५ अधिसीलं-१६८ अधोति-२११ अधोमुखोति-२३ अधोसळपादो-१०१ Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४] अनझापन्नोति - १७८ अनवातस्सामीतिन्द्रियन्ति - १६७ अनत्यचरणं - २०९ अनत्थसहितन्ति - ७२ अनत्थसंयुत्तं - ७२ अनत्तसञ्जाति- १९७ अनत्तानुपस्सनाजाणे १९७ अनत्तानुपस्सनं १८२ अनधिगतस्साति - २०७ अननुस्सरितुकामताय ८७ अनन्तमपरिमाणन्ति - ५४ अनन्तमपरिमाणं - ५४ अनभिरतिबहुलो- १०४ अनभिसम्पुणमानाति ४९ अनरियवोहाराति १८९ अनरियवोहारे - ६७ अनलसोति - १२७, १७८ अनवज्जट्ठेन - ६०, २१९ - अनवज्जधम्मे १४५ अनदज्जलक्खणानं - २८ अनवमाननायाति - १२५ अनागतबुद्धानं - ५६ अनागतो अद्धा - १५७, १५८ अनागामिलीणासवा १९४ अनागामिनो - १९२ अनागामिफलेन - १९६ अनागामिमग्गवज्झं - १९२ अनागामिमग्गो - १८८, २२२ अनागामी १५, ५३, ६३, १९० अनाथपिण्डिकस्स ४० अनाथपिण्डिको - १२३ अनादीनवदस्सावीति आदीनवमत्तम्पि - २० अनावरणत्राणं - ७० अनासवा ७० अनाहारा - १४२ - - दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा 4 अनिक्खित्तछन्दता - १५१ अनिक्खित्तधुरता १५१ अनिच्चतादिपटिसंयुते २१७ अनिच्चतो - ७१, १०३, १६३, १६४, १६८, १७२, १८३ अनिच्चसञ्ञाति - १९७ अनिच्चसञ्ञादयो - २०१ अनिच्चानुपस्सनाआणे - १९७ अनिच्चानुपस्सनं १८२ अनिच्चे ६४, १९७, २२० अनिच्छितो ११७ अनिदस्सनं १६२, १६३ अनिन्द्रियबद्धस्स १४४ अनिमित्तानुपस्सनं १८२ अनिमित्तं १६९ अनियतो १५८ अनिय्यानिककथं - ८८ अनिस्सरणपञ्ञति - २० अनिस्सितो १८३ अनुयोगो ११५ अनुकम्पन्तीति- १२६ अनुच्छाविककम्मं - ४३ अनुद्वानसीलेन ११८ - - - - - - अनुतापकारदस्सनत्थं - ८४ अनुत्तरभावो ५९ अनुत्तरासम्मासम्बोधि – ५८ अनुतरियन्ति ५९, १६८ अनुत्तरियानीति २०० अनुत्तरोति ५३, ६०, ६१, ७१ अनुदहनताय - १६० अनुधम्मभूताय १८५ अनुधम्मं - ७८ अनुपरियायपयन्ति ५७ अनुपरिवत्ततीति २०८ अनुपसमसंवत्तनिकेति ८० - - - [ अ- अ ] - Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [अ-अ] सद्दानुक्कमणिका अनुपुब्बनिरोधाति-२०९ अनुपुब्बविहाराति-२०९ अनुप्पत्तसदत्थो-४३ अनुप्पादपरियोसाने -१५१ अनुप्पादाय-१५१ अनुप्पियभाणीति-११९ अनुभवन्तीति-१६६ अनुमानज्ञाणं-५७ अनुयन्तखत्तिया-३१ अनुयुत्तोति-१९५ अनुयोगक्खमो-५६ अनुयोगो-५७, ५८, ६४ अनुयोगोति-५७,११५ ।। अनुरक्खणापधानन्ति-१८४ अनुरूपयानवाहनसम्पदानेनपि-३१ अनुलोमचीवरानि-१७४ अनुवादाधिकरणं-२०४,२०५ अनुविचरितं-८८ अनुसन्धिं-१२,३७,१६३ अनुसया-२०४ अनुसासनीविधासु-५३ अनुस्सतानुत्तरियं-२०० अनुस्सतिद्वानानि-५२, २०० अनुस्सरतीति-६६ अनुस्सरितुमारद्धो-५१,५२ अनेकपरियायेनाति-३ अनेसनन्ति-१७८ अनेसनं-१७८ अनोत्तप्पन्ति-१४६ अनोमदस्सीबुद्धस्स-५२ अनोमनिक्कमोति-१०१ अनोमविहारी-१०१ अन्तग्गाहिकायाति-२१ अन्तमन्तानेव-१७ अन्तमन्तानेवाति-१७ अन्तरदीपादीसु-३५ अन्तराति-९७ अन्तरापरिनिब्बायी-१९४ अन्तलिक्खे-१३४ अन्तिमपुरिसो-३२ अन्तेवासिकम्यताति - २४ अन्तेवासिकसमणा-१३ अन्तोजनसङ्खातं-३१ अन्तोमणिविमाने-४५ . अन्तोवङ्कपादो-४ अन्तोवापियं-४७ अन्तोसमापत्तियं-६३ अन्तोसारविरहितेन-१३ अन्धभावकरणं-४४ अन्वयबुद्धिया-५४ अन्वये आणं-१८५ अपचितिवेय्यावच्चानि-१६५ अपणिहितानुपस्सनं-१८२ अपण्णत्तिकभावं-५६ अपरगोयानदीपे-४६ अपरपजा-१२५ अपरम्परियधम्मा-५३ अपरिपुण्णवस्सत्ता-४० अपरिमाणगणना-९ अपरियोनद्धनाति-१७२ अपरिसावचरोति-१७ अपरिसावचरं-२३ अपरिसुद्धाति-१५९ अपरिहीनधम्म- १०७ अपस्सेनानीति-१७३ अपायगामिपरिहानाय -२१९ अपायमुखानीति-११४ अपायसहायोति-११९ अपायोति-१६९ अपुञाभिसकारोति-१६४ u Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [६] दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा [अ-अ] अप्पगुणसासवसमाधि-२२५ अप्पच्चयञ्च -७ अप्पटिकूलसवी-७० अप्पटिघं-१६३ अप्पटिहतञाणं-१६० अप्पणिहितोति-१६९ अप्पतिस्सोति-१९८ अप्पत्तस्साति-२०७ अप्पनिग्घोसानीति-१६ अप्पमञाति-१७३ अप्पमत्तो-२९ अप्पमाणन्ति-२११ अप्पमाददीपनत्यं-२२० अप्पमादप्पटिपत्तियं-७६ अप्पमादलक्खणं-१९८ अप्पमादवग्गे-२२० अप्पमादसमोसरणा - २२० अप्पमंसलोहितं-१३७ अप्पलाभसक्कारो-१५७ अप्पसद्दानीति-१६ अप्पस्सुतखीणासवो-१५९ अप्पहीनविपल्लासानव्हि-२५ अप्पाबाधोति-१९३ अफरुसवाचता-१४८ अबुद्धोति-४३ अबुद्धोव-८ अब्बोच्छिन्नन्ति-६४ अब्अन्तरेहीति-९४ अब्भोकासिकङ्ग-१८१ अब्मोकासेति-१७ अब्याकतवानवण्णना-८९ अब्यापादधातु-१५४ अब्यापादपटिसंयुत्तो-१५३, १५४ अब्यापादवितक्को-१५३ अब्यावटो-१६० अभयघोसञ्च-११२ अभयदानेन-३१ अभिक्कन्तवण्णाति-१३० अभिक्कन्तसद्दो- १२९,१३० अभिचेतसिकानं-७२ अभिजातियोति-२०१ अभिजानाति-६१,७१ अभिजायतीति-२०१ अभिज्झाकायगन्थादीनं-२१८ अभिज्झादोमनस्सं-२८ अभिज्झाब्यापादाति-३३ अभिज्झायतीति-२१२ अभिवापादकज्झानं-२२५ अभिजायो-६३, १०२,१०३,१०४ अभिञ्नेय्योति-२१९ अभिधम्मपरियायं-६० अभिधम्मपिटकं-७३,७४ अभिधम्मोति-२१० .. अभिनिब्बतेतीति-१९ अभिनिवज्जेय्यासीति-३१ अभिनीलनेत्तादिलक्खणवण्णना-१०८ अभिप्पसन्ना-१०० अभिभवनसमत्थो-९५ अभिभायतनविमोक्खकथा-२०८ अभिभायतनानि-५२ अभियोगिनोति-१०८ अभिरतीति-१८२ अभिरुचितारम्मणं-१६६ अभिरूपच्छवीति-१३० अभिविनयोति-२१० अभिसङ्घरोतीति-१६३, १६४ अभिसङ्खारो-१६३, १६४ अभिसम्बुद्धन्ति-८८,८९ अभिसम्बुद्धाति-२२१ अभिसित्ता-९६ Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [अ-अ] सद्दानुक्कमणिका [७] अभीतनादं-१०,२५ अमतनिब्बानसच्छिकिरियाय-३ अमतपदन्ति-२२० अमतपानं-३८ अमतं-३१ अमायावी-२४ अमोहो-६७,१५१, २१४ अम्बट्ठसुत्ते-५० अम्बणम्बणं-४८ अम्बपानादिअट्ठविधं-९६ अम्बवने -५१,८० अयोनिसो-१४९, २२०, २२२ अयोनिसोमनसिकारोतिस्स-१४३ अरवज्झासया-१३९ अरञवनपत्थानीति-१६ अरञ्जवासोपि-२३ अरहतीति-४,४४ अरहत्तनिकूटेन-२५, ३८, ५० अरहत्तपञ्चाति-१८७ अरहत्तप्पटिलाभमेव -५ अरहत्तप्पत्तअनागामिनो-६५ अरहत्तफलत्राणेन-१८८ अरहत्तफलपा -१६८,१८७, २२७ अरहत्तफलविमुत्ति-२२१ अरहत्तफलसङ्घातं -३८ अरहत्तफलसमाधि-२२५ अरहत्तफलसमापत्ति-२०० अरहत्तफलसमापत्तिचित्तं-१९६ अरहत्तफलं-३८,५२,१९६, २२२ अरहत्तमग्गआणे-५५ अरहत्तमग्गजाणं-५५ अरहत्तमग्गट्ठा-६५ अरहत्तमग्गवज्झा-१५७ अरहत्तमग्गेन-१९६ अरहत्तमग्गेनेव-५५ अरहत्तमग्गो-५२,१८८,२००,२२२ अरहन्ति-१६० अरहन्तं-५,१२ अरहाति-४,५ अरिहो-२१,१३५ अरियचक्कवत्तिवत्तं-३२ अरियधम्मतो-४४ अरियपवा-१६६ अरियफले-१५१ अरियभूमियं-४४ अरियमग्गो-५८,८९, २१४ अरियमग्गं-१८, ६६, ६७, १०३ अरियवासा-२१४ अरियवासाति-२१४ अरियवोहाराति-१८९ अरियवंसाति-१७३ अरियसावका-८५ अरियाय विमुत्तिया-१५ अरियिद्धीति-७० अरियेन-१५ अरियो विहारो-१७१ अरूपज्झानानि-१९६ अरूपतण्हा-१५५ अरूपधातुपटिसंयुत्तोति-१५४ अरूपसमापत्तिया-६५ अरूपावचरकुसलचेतनानं-१६४ अरोगो-१९३ अलङ्कारदानेन-१२५ अलङ्कारानुप्पदानेनाति-१२५ अलमरियाति-४२ अलसकव्याधिना-५ अलाभोति-२०८ अलिकतुच्छनिष्फलवाचाय-९ अलोभअदोसअमोहवसेन-२१४ अलं-२७, ६२,८४, ८६,१४८,१६१,२१० Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [<] - - अलंपतेय्याति - ३३ अवसेस अरहन्तेहि - ५३ अवसेसखुद्दकपारिचरियाय १२४ अविकिण्णवचनव्यप्पथो - ११० अविक्खम्भनीयो - ९४ अविक्खेपो - १५० अविगतपेमोति २०३ अविज्जा - १४४, १५५, १५६, १५८ अविज्जाति - १४५ अविज्जानिरोधा १७२ अविज्जापच्चया १४७ अविज्जासमुदया- १७२ अविज्जासवोति - १५५ अविज्जोघो - १५८ अविनापितल्याति - ८४ अवितक्कअविचारो - १६८ अवितक्कविचारमत्तो- १६८ अविदितट्ठानेति – ५७ अविदितनिब्बाना – १३ अविष्कारिकभावो - ३५ अविसयो ७२ अविसहन्तोति-३ अविसंवादनतायाति - १२५ - ** असद्धम्मा- २०२, २२२ असनिविचक्कन्ति - २० असन्तसम्भावनपत्थनलक्खणाय- २१ असब्मिकथं - ३४ असमाधिसंवत्तनिका १४८ असमुच्छिनत्ता २२८ असमो - ७७ असम्पजञ्जन्ति १४९ असम्पज १४९ असम्पजानो - ६२ असम्पजानोति ६१ असम्पवेधी ५६.८७ असम्फप्पलापा - ६८ असम्मूळहो - ६२ असहानधम्मतन्ति १०७ असाधारणत्राणानि - ५२ - - असीति अनुब्यञ्जनानि ९१ असीतिमहासावके ११३ असीतिसतपञ्हे १७१ 1 - अविहिंसाति १४९ अविहिंसाधातु - १५४ अविहिंसावितक्को - १५३ असुभकम्मट्टानं २१७ असुभज्झानचितं १९६ असुभज्झानं - १८८, १९६ - अविहेठनकम्मं - १०७ अवीचि - ३५ अवीचिअन्तरे ६२ अवीचिनिरयं - १५४ अवीचिमहानिरयो - ३५ अवीतिक्कमोति - १५० अवेच्यप्पसादेनाति १८५ असुभसञ्ञा - २०३ असुभानुपस्सनाजाणे २०३ असुरकायो २२६ असुरयोनितो ६ असुरा - ९७ असेक्खधम्मे-५२ - अवेलाय ११५, ११६ असङ्घता - २२२ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा 8 असङ्कारपरिनिब्बायी - १९४ असग्राहकभावं - १०० असच्छिकतस्साति २०७ असञ्ञसत्ता - १४२ असेक्खा १६६.२१५ असोकराजा - २२० असंविज्जमानट्टेनाति - १३ [ अ- अ ] Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [आ-आ] सद्दानुक्कमणिका __[९] असंहारियाति-४४ अस्मिमानदोसेन-११ अस्मिमानसमुग्घातोति-२०० अस्मिमानोति-२२० अस्सजिमहासावकस्स-५९ अस्सपिढे-११९ अस्सयानन्ति-१३४ अस्सासपत्ताति-१८ अहियक्खादयो-९५ अहिरिकन्ति-१४६ अहिविज्जादिअनेकविधा-१०१ अहेतुकवादी - १९९ आ आकासगङ्गं-१४१ आकासधातूति-१९९ आकासानञ्चायतनसमापत्ति-५१ आकासाभिमुखि-५४ आकिञ्चञ्चायतनसमापत्ति-५१ आगतनिमित्तेन-६२, ६३ आगतसद्धा-४३ आगमनभयं-१२२ आगमनसद्धा-१९३ आघातप्पटिविनया-२२२ आघातो-३४,१५३ आचरियपरम्पराय-५६ आचरियभरियाति-३४ आचरियवादो-१३ आचरिया -१२२ आचरियोति-२४ आजाननभूतं-१६७ आटानाटनगरे-१२९,१३१ आटानाटा-१३४ आटानाटादिका -१३४ आटानाटियन्ति-१३१ आटानाटियसुत्तं-१२९, १३७ आणाखेत्तं-७२ आणापवत्तिट्ठाने-३१ आतप्पन्ति-६४ आतापी-२८ आदिच्चबन्धुनन्ति-१३२ आदिच्चबन्धुनं-१३२ आदिब्रह्मचरियन्ति-१८ आदिब्रह्मचरियिकाय-२२६ आदीनवदस्सनत्थं -३ आदीनवदस्सावीति-१७८ आदीनवसञ्जा-२०३ आदीनवानुपस्सनाजाणे-२०३ आदेसनाविधासु-५३ आधानग्गाही-२१ आधिपतेय्यद्वेन-६० आनन्तरिको-२२०,२२१ आनन्दत्थेरो-८२,८३ आनन्दोति-८२ आनापानस्सतिकम्मट्ठानं-२१७ आनापानस्सतिं-५२ आनापानं-२२० आनिसंसो-९६, ९८, १००, १०१, १०२, १०५, १०६, १०७, १०८,१०९,११०,१११ आनीतचीवरं-१७४ आनुभावसम्पन्नस्स - १३४ आनेजाभिसङ्घारोति-१६४ आपत्ताधिकरणं-२०४,२०५,२०६ आपत्तिकुसलताति-१४६ आपत्तिवुवानकुसलताति-१४६ आपाथकनिसादी -२० आपायिकोति-३ आपोधातूति-१९९ आपोरसो-१४४ Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१०] दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा आबन्धनधातु-१९९ आभतधनं-१२५ आभिचेतसिकानन्ति-७२ आमिसदानेन-१०५ आमिसपटिसन्थारो-१४९ आमिसपरिच्चागो- १८७ आयतनकुसलताति-१४७ आयतनपञत्तियं-५३ आयतनपञआपनासु-६१ आयतनानि-१६३,२११ आयतन्ति-३५ आयतपण्हि-९७ आयुसङ्घारोस्सज्जने-७२ आयोति-१६९ आरक्खकिच्चं-२१४ आरक्खदेवता - १९९ आरञिकङ्ग-१८१ आरद्धविपस्सको-१५१ आरद्धविपस्सना-६४ आरद्धवीरियस्साति-२२७ आरद्धवीरियेनाति-७१ आरद्धवीरियो -६८, ६९, ८४ आरम्मणतोति-१६८,२१३,२१४ आरम्मणलक्खणूपनिज्झानवसेन-६९ आरम्मणाभिमुखं-१४५ आरोग्यकरणकम्मं-१०७ आरोग्यद्वेन -६० आलोकनिस्सितं-१६७ आलोकसऑ-१७२, १८२ आलोकोति-१७२ आवसथं-९६ आवाटमण्डूके-१२ आवासकुललाभवण्णधम्मेसु-२१ आवासमच्छरियं-१९१ आवाहका-११७ आवाहविवाहकानन्ति-११७ आविलक्खि - १०८ आवुधन्ति-१६७ आसनपूजं-१३७ आसनसालाभोजनसालादीसु-१९३ आसभीति-५६ आसवक्खयपरियोसाने-३८ आसवक्खया-३८ आसवनटेन - १५५ आसवाति-१५५ आसवानं-४२, ६१,१६४, १७१, १७३, १९० आसादेतब्बन्ति-१२ आसाळ्हमासे-४६ आहारकिच्चं-४४, १४३ आहारहितिका-१४२,१४४ आहारहितिकाति-१४२, १४३, २२१ आहारनिस्सिता-१८१ आहारपच्चयो-१४४ आहाराति-१४२ आहारेपटिकूलसञ्जाति-२२८ आहुनेय्यग्गीति-१६० आहुनेय्यसुत्ते- १५५ आळकमन्दाति - १३४ आळवकपुच्छा -७४ इच्छाति-३५ इच्छाविनयेति-२०३ इतरीतरचीवरसन्तुट्ठियाति-१७८ इतिपीति-४४ इथिलिङ्ग-४७,४८ इत्थिसोण्डा-११७ इदंसच्चाभिनिवेसोति-१८८ इद्धिपाटिहारियन्ति-२,७ Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [उ-उ] सद्दानुक्कमणिका [१ ] इद्धिपाटिहारियं-३,४ इद्धिपादविभङ्गे-१७२ इद्धिपादाति-६० इद्धिपादं-६०,१७२ इद्धिभावनाय-९८ इद्धिविधजाणं-५२ इद्धिविधासूति -७१ इद्धिविधे-५३ इधत्तभावे-४३ इधलोकभाविनी-११६ इन्दखीलो-१९० इन्दनामाति-१३२ इन्दो-१०५,१३८ इन्द्रियदमनं-१८६ इन्द्रियपत्ति- ९० इन्द्रियभावनतो-७४ इन्द्रियसंवरे-२१९ इब्मेति-४१ इरियतीति-१५ इरियापथचक्कं - २२३ इरियापथो-१४३ इरियापथं-१४१ इस्सरकुत्तं -१३ इस्सरियवोस्सग्गेनाति - १२५ इस्सरोति-१३ इस्सुकीति- १९९ उग्गहमनसिकारपजानना-१४७ उच्चकम्मानि-२१० उच्चारपलिबुद्धो- १७५ उच्चावचानीति-२१० उच्छिट्ठमंसं-११ उच्छेददिट्ठिसहगतो-१५४, १५५ उजुजातिकोति-२४ उजुष्पटिपन्नोतिआदीनं-१९५ उद्यानकोति- १२७ उठानफलूपजीवी-१४३ उठानवीरियसम्पन्नो-१२७ उण्हीससीसलक्खणं-१०८ उतुसंवच्छरा-४७ उत्तमग्गरसदायकोति-९९ उत्तमनिस्सयभूतं-१८ उत्तमपुरिसोति-१३० उत्तमो-७७, ९९ उत्तरकाति-४ उत्तरकुरूसु-४६ उत्तरा-१२२ उत्तरिछप्पञ्चवाचं-१५९ उत्तरितराणोति-५५ उत्तरिमनुस्सधम्मे-२३० उत्तासबहुलो-१०४ उत्तासभयं-९५ उदकरहदो-१३२, १३५ उदकसन्तोसो-१७५,१७६ उदकसोण्डियं-११ उदकास्सुदन्ति-८५ उदयत्थगामिनियाति-१९३ उदरावदेहकन्ति-१९५ उदुम्बरिकसुत्तं - १५ उदुम्बरेहि-३६ उद्धग्गलोमलक्खणञ्च-१०१ उद्धग्गिकन्तिआदीसु-३२ उक्कट्ठञ्च-१०१ उक्कण्ठनबहुलो-१०४ उक्कण्ठितसभावा-८० उक्कुटिकपादा-९७ उक्खलिं-१३३ उग्गतउदकं-५५ Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१२] उद्धच्चं १८२, १९२ उद्घुमाउरो - ५ उद्धसोतो - १९४ उद्धसोतो अकनिडुगामीति- १९४ उपकट्ठवस्सूपनायिकाय – २१७ उपकारसन्तोसो - १७९, १८० उपक्किलेसाति- ५७ उपक्किलेसो - १९ उपचारकम्मड्डानं २०० उपचितत्ताति - ९३ उपज्झायो - ८२ उपट्ठाककुले १९१ उपट्टाको - ५, ८, ९ उपट्ठितसतिस्साति - २२७ उपपथन्ति - ८ उपधिविवेकोति - १६७ उपनाहीति - २१, १९८ उपनिज्झायतन्ति ४८ उपनिस्सयकोटिया - १८६ उपभोगपरिक्खारा - १०२ उपयोगं - ३९ - परिभूमि - ३९ उपरिमा - १२२ उपसङ्क्रमनकिच्चन्ति ११३ उपहच्चपरिनिब्बायी - १९४ - उपादानक्खन्धा - १९१ उपादानानीति १८८ उपायको सल्लन्ति - १७० उपायमनसिकारं - ६४ उपारम्भचितताय- १०४ - उपालिना ८१ उपाहनत्थविकं ९६ उपाहनदण्डर्क - ९६ उपेक्खको - ७१, २०१ उपेक्खूपविचारा १९८ दीघनिकाये पाधिकवग्गद्गुकथा उपोसथकम् ९५ उपोसथङ्गानि - १५ उपोसथागारचेतियघरबोधियघरेसु २१० उपोसथूपवासेति ९३ उपोसथो - ९५ उप्पज्जनकतण्हा - ३५ उप्पज्जनकदिट्टि - १४५ उप्पन्नमग्गफलकाले - १५३ उप्पलोभो ४५ उप्पन्नवीरियं - १८४ उष्पन्नसतिया २२० उप्पन्नसद्धो - ५५ उप्पन्न सोमनस्सपवेदनत्थं - ५१ उप्पन्नुप्पन्नानं - २०६ उप्पादजराभङ्गपीडिता १५८ उब्बाधनायाति १०८ उब्बाधिकन्ति - ११० उब्बेगभयस्स - ९७ उतोभागविमुक्तो - ६५ उभतोभागविमुत्तोति ६५ उभतोविभते ७४ उभयकारी - ५० उभयविपाकदानट्ठानं - ५० उभयेसूति ४२ उलूकपख १७४ - उसूयनलक्खणाय २१ उस्सङ्क्षपादलक्खणञ्च - १०१ उस्सुकोति ९७ उळारपामोज्जोति - २१० उलारसद्दी - ५५ उळाराति - ५५, ५६, १३१ उलारो - ५६, ७५ ए 127 - एकखुरं १३४ - -- [ए- ए] Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ओ-क] 1 एकगुणोषि ७१ एकग्गचित्तस्स - २२७ एककुलम २९ एकधम्मो - १४४ एकनामाति १३२ - एकनीहारेन - ८१ एकपटिवेधवसेन - १८४ एकपल्- ९९ एकपादेन - २० एकपुग्गलो- ७५ एकपुरिससन्धारणी - ७६ एकबुद्धधारणी-७६ एकलक्खणा ६० एकविहारीति - १२६ एकसिक्खा ७६ एकानुसासनी - ७६ एकायनो १८३,२१८ एकासनिक - १८१ एकासने - ९९ एकीभावमत्तेन - २२७ एकीभावो - २२७ एकेकलोमलक्खणञ्च - १०९ एकोदिकीभूतन्ति - ४४ एकोदिभावाधिगतो - २२५ एणिजलक्खणं - १०२ एतदानुत्तरियन्ति ५३.५९ एकदुस्सं १७४ एवंसीलाति आदीसु ५६ ओ ओकप्पनसद्धा १९३ ओघतरणा- ७४ ओघाति - १८८ ओजसि १३५ सद्दानुक्कमणिका ओजाति- १३० ओट्ठवचित्तकाति - १३६ ओतारन्ति - २७ ओदनकुम्मासन्ति ७ ओपपातिका - ४४, १४५, १८८ ओपाधिकतरानीति - ८५ ओभासेत्वाति - १३१ ओरसोति - ४४ ओरोधेय्यामाति - १७ ओलोकनकम्मं - १०८ ओलोकितसञ्चय - २७ ओहितभारो - ४३ ओहितोति ४३ ओळारिक सुखुमता - १८५ - क ककुसन्धो १७३ कक्खळत्ताय २०६ कतीति १५८, १९४, १९५ कङ्क्षावितरणविसुद्धीति - २२७ कच्छपियाति १६६ कच्छपो- १६६ कच्छुत्तमत्तं - ९१ कणिकारपुप्फसदिसो ४४ कष्टको ९४ 13 - - कण्ठमभिपूरयित्वा - ७६ कण्णसुखाति ११० कण्हन्ति ५९, १८७ कण्हविपाकन्ति - १८७ कण्हविपाकाति ४२ कण्हसप्पो - ११२ कण्डसुक्कविपाकन्ति १८७ कण्हसुक्कं - ५९ कण्डोति ४१ -- - — [१३] Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१४] कण्हं ५९. १८७, २०१ कतकम् - ९२ कतकरणीयो ४३ कतप्पटिच्छादनलक्खणाय २१ कतरकोट्ठासं - १२२ कतसिक्खा ८० - कत्तब्बकम्मानि २१० कत्तिकादिनक्खत्तानि - ४७ दीघनिकाये पाधिकवग्गडुकथा कम्मसरिक्खर्क ९४, ९६, ९७, ९८, १००, १०१. १०२, १०५, १०६, १०७, १०८, १०९, ११०, १११ कम्मस्सकतजाणं १५०,१६८ कम्मस्सकताजाननपञा - १०१ कम्मायतनेसु - १६७ कम्मारभस्ता- ९४ करणसन्तोसो - १७५, १७७ करणीयोति- ३८ कत्तुकम्यता - १७१ कथला - ९४ - करुणाचेोविमुत्तीति - १५४ करुणाझानानि - १९६ कलन्दकनियापोति ११२ कलन्दकयोनियं - ९२ कलन्दकाति ११२ कलहप्पवनीति ११६ कल्याणकम्मे - १२० कल्याणमत्ता १२४ कल्याणमित्तो २१० कल्याणसहायो - २१० कसायरसपीतानि - ३० कसिकम्मं - १३३ कसिणपरिकम्मं १६३.२२७ कसिणभावनं - ६३ कसिणसम्भेदोति- २११ कसिणानि२११ कसिवाणिज्जादिकम्मं - १२२ कथापाभतन्ति - ८२ कथासल्लापन्ति - १७ कथंकथासल्लं - २०० कदलिदुस्सं १७४ कलिं – ६६ कन्दरा - ५५ कप्पसन्तोसो - १७५, १७७ कप्पितभावं - १११ कप्पियकारकम्पि ९६ कवळीकारो १४२ कमलवनं ९१ कम्मकिलेसाति ११४ कम्मकिलेसोति ११४ कम्मक्खयकरं - १८७ कम्मच्छेदो - ११७ कम्मजतेजोधातुया १९३ कम्मजवाता - ६२ कम्मट्ठानपाळिधम्मे १९७ कम्मट्ठानसुद्धिको १९२१ कम्मट्ठानं १९७ २१७ कम्मन्तसंविधानेनाति १२५ - 18 - कस्सपबुद्धकालिका – ७४ कस्सपबुद्धस्स १६१ कस्सपो - १७३ - कम्मभवं - ६४ कहापणारहस्स - १०६ कहापणोति १२० कळारजनको - ३२ कळारदन्ताति १३६ काणगावी १७ कामकिच्चं १६६ कम्मवाचाय- १४६ कम्मविञ्ञाणं- १८६ कम्मसमुदयो - १७२ - 14 - [ क क] Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [क-क] सद्दानुक्कमणिका [१५] कामगवेसनरागो-१५६ कामगुणा-२२,२८,१९१ कामच्छन्दोति-१५६ कामतण्हा-१५४ कामतण्हाति-१५४ कामधातु-१५३,१५४ कामधातूति-१५३ कामपच्चया-१९६ कामभोगिनियोति-८५ कामभोगिनोति-८५ कामयोगविसंयोगो-१८८ कामरागानुसयो-१९१, २०४ कामवितक्को-१५२,१५३ कामवितकं- १०४, १७३, १८६ कामवेदनं-१९६ कामसवा-१५३ कामसुखल्लिकानुयोगन्ति-७१ कामसुखं-७२ कामाति-२२६ कामावचरकुसलमहाचित्तचेतनानं -१६३ कामावचरचित्तानि-७२ कामासवो- १५५, १५६ कामुपादानं-१८८ कामूपपत्तियोति-१६५ कामूपसंहिता-२८ कामेसुमिच्छाचारोति-२११ कामोघो - १८८ कामोति-१८८ कायकम्म-१२६,१५६,१६०,१६४ कायकिलमथं-७२ कायगतासतीति-२२० कायगन्थो-१८८ कायचित्तउपधिविवेकेहि-२२७ कायदुक्खं-१४२ कायदुच्चरितं-१५२, १५९,१६० कायदुब्बलभावोति-३५ कायपरिक्षा-१६९ कायपरिञासहगतो-१६९ कायभावना-१६८ कायमोनेय्यं-१६९ कायविनेय्या-२८ कायविवेको-१६७, २२७ कायसक्खीति-६६ कायसङ्कारनिरोधा--१६९ कायसमाचारादयो-१५९ कायसुचरितेतिआदिमाह -९३ कायसुचरितं-१५२,१६९ कायसोचेय्यं-१६९ कायानुपस्सनासतिपट्टानं-६० कायानुपस्सी-२८, १८३ कायानुपस्सीतिआदीनि-२७ कायारम्मणे-१६९ कायालसियताय-११५ कायालसियविरहितो-६८ कायिको-१४८,१५० कायेनाति-१८८ कायो-४४, ९१,१८३ कायोति-१९६ कारणप्पटिपन्नो-८४ कारु जातो-११ कालकञ्चिकाति-५ कालज्ञ-८८, २०२ कालन्ति-३१ कालपरिच्छेदं -५१ कालसमये-१२३, १२६ कालसमयोति-१२३ काळकविपाकं-१८७ काळपक्खउपोसथतो-४६ काळवल्लवासी-५९,६४ काळसीहो-१० 15 Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१६] दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा [क-क] काळुदायी-७८ किच्चाधिकरणन्ति-२०४ कित्तिवण्णहराति-१२६ किमेविदं-४४ किरियसङ्गहो-१६२ किलेसकामा-२२६ किलेसकामे-८७ किलेसक्खयो-६६ किलेसदरथसम्पयुत्ता-२४ किलेसनिब्बानेन-१३२ किलेसनिब्बानं-१३ किलेसपरिच्चागो-१८७ किलेसपरिनिब्बानेन-२४,५०, २०९ किलेसपरिनिब्बानं-७४, १९४ किलेसमारोपि-२७ किलेसविमुत्तित्राणे -६९ किलेसवूपसमो-१८७ किलेससम्पयुत्तत्ता-११४ कुक्कुच्च-१९२ कुक्कुटकाति-१३६ कुक्कुटो-६३ कुज्झनलक्खणेन-२१, १९८ कुटिलकण्टको-१०४ कुटिलचित्तो-२४ कुमारवाहनेपि-१३४ कुम्भकारसिप्पं-१०१ कुम्भण्डानन्ति-१३३ कुलवंसो-१७३ कुलवंसं-१२३ कुलावकं-९२ कुवेरनळिनीति-१३६ कुवेरो-१३५ कुसचीरं-१७४ कुसलकम्मपथाति-२२२ कुसलचेतना-१६४ कुसलधम्मे-५२ कुसलन्ति-३३ कुसलपत्तियं -५३ कुसलमूलानि-२२२ कुसलमूलं-२१४ कुसला-६०,९३,१५४,१६३, १७०,१९३, २२० कुसलाकुसलकम्मानि-५० कुसलाकुसलविपाकविवाणं-१९७ कुसिनाटा-१३४ कुसिनारायं-७४ कुसीतवत्यूनीति-२०७ कुसुम्भकन्दरा-५५ कुसुम्मा-५५ कुहकोतिआदि-६८ . केणियजटिलादयो-७१ केराटिकलक्खणेन-२१ केवलकप्पन्ति-१३० केवलपरिपुण्णं-१३० केवलसद्दी-१३० केवली-१३० केसकम्बलं-१७४ केसमस्सुन्ति-३० केसरभारमत्तमेव-११ केसरसीहो-१० केसरं-१४१ कोटिगामो -३६ कोट्ठासतोति-२१२, २१३ कोणागमनो - १७३ कोण्डो -१७३ कोधनादिभावं-१०५ कोधनोति-१९८ कोधसामन्ता-१४८ कोपसङ्खातो-१९५ कोपीननिदंसनीति-११६ कोपो-३४,१०५ 16 Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ख - ग] सद्दानुक्कमणिका [१७] कोरक्खत्तियोति-४,६ कोसल्लसम्भूतटेन-६० कोसल्लं-१६९ कोसोहितवत्यगुव्हलक्खणं-१०६ खुद्दकमातिका-९३ खुद्दमधुन्ति -४४ खुरचक्कधरं-१६१ खेत्तपरिग्गहो-७३ खेत्तविसुद्धिया-३५ खेत्तसामिनो-४८ खेमन्ति-९४ खेमाथेरीउप्पलवण्णथेरीआदयो-८५ खेमं-१२२ खज्जक-९५ खज्जभोज्जादिजोतकं-९९ खज्जोपनका-५ खत्तियकुले-५०,१९० खत्तियधम्म-४९ खत्तियपरिसा-२०८ खत्तियो-४,४८ खदिरत्थम्भे-२९ खन्तीति-१४८ खन्धत्तयगेलवं-१९२ खन्धपचत्ति-९० खन्धपरिनिब्बानं-७४ खमतीति-१९, २०,१८६, २०६ खयगामिनिया-१९४ खयाणस्स-१७३ खयधम्म-१०३ खयानुपस्सनं-१८२ खलमूसिकायोति-१२ खलुपच्छाभत्तिकङ्गन्ति-१८१ खिड्डापदोसिकन्ति-१३ खिड्डापदोसिका-१६० खिप्पाभिञा-६७ खीणासवबलानि-५२ खीणासवा-१३१ खीणासवो-४३, ८७,१६४, १९२, २०३, २१४ खीरभत्तं-१९ खुज्जा-९७ खुज्जुत्तरादयो-८५ गणकमहामत्ताति-३२ गणजेट्ठको-१०८ गणना-१०१ गतनिमित्तेन-६२ गतपच्चागतं - १७४ गतियो-१९१ गन्था-१८८ गन्धकुटिं-८,५१ गन्धधूमादीहि-९५ गन्धपिसनकनिसदाय-९६ गन्धसम्पन्नाति-४४ गन्धायतनं-८८ गब्भमलहरणं-१७४ गब्भसहस्सप्पटिमण्डितो-३९ गब्भावक्कन्ति-६२ गब्भावक्कन्तियं-५३ गब्भावासे -६२ गब्मिनियोति - ४२ गब्मोक्कमनेसु-६१ गम्भीरभूमि-८७ गरुचित्तभावो-२२६ गरुचित्तं -३४ गलवाटका-१३६ Jain Education Interational Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१८] गहपतिनेचयिकाति - ९ गहपतिमहासाली - ११२ गहपतीति - १६१ गतब्बबुद्धगुणायेव ५४ गारवोति २२६ गाविं - १३४ गिज्झकूटन्ति- १३१ गिद्धोति ६९ गिरिराजा - ७७ गिलानपच्चयो - १८१ गिलाना - २०७ गिहिभूतेन ११८ गिडिविनयो १२८ - - - गिहिविनयं - ११३ गिहिसोतापना ८५ गुणदीपिका- ७९ गुणानुसरणं - २०० गुळासवो - ११५ गूळ्हजिव्हा १०९ जातो - १९ गोकाणन्ति - २३ गोचरगामं - १, ४,२६,५१, ११२ गोतमन्ति - १३२ गोतमो - ५, ८, ९, १०, १३, १६, १८, ८१, ८७ गोतमोति - १५९, १७३ गोपुरट्टालकयुत्तं - ११२ गोमयपिण्डमत्तम्पि - ४८ गोमुत्तवता १४८ गोरक्ख - ४९ गोवीथीति - ४६ घ घनपथवियं - १४० घनस १८२ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा घरावासो१२१ घातितभावं - ९७ घानविज्ञेय्या - २८ च 18 चक्कपेय्यालतो - ७४ चक्करतनमत्थके- २९ चक्करतनं २९ चक्कलक्खणं - ९६ चक्कवत्तिराजा १४१ चक्कवत्तिसिरीविभवो - २९ चक्कवत्तिसुतं २६ चक्कवाळसमीपेन ४६ चक्कवाळेसु ९७ - चक्कवाळं ४४, ७३, ९३, १४५ - - चक्कानीति - २२३ चक्खायतनं १६२ चक्करणीति - ७२ चक्खुद्वारारम्मणे २०१ चक्खुनाति १८८ चक्खुपटिहननसमत्थतो - १६२ चक्खुपसादो १६७ चक्खुमा १३१ चक्रूपं १४७ - - - चक्वान्ति - १९७ चक्वणसङ्घातं १६२ चविञ्ञाणुप्पत्तिनिवारणेन ४४ - चक्युविय्या - २८. चक्दुसम्फस्सर्ज १६३ चक्नुसम्फस्सोति - १९७ चकमतीति - ४० चण्डालपुत्तो - १७ चतुक्कुण्डिकोति ४ चतुचत्तालीस ५२ - - - - [घ-च] Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [च-च] सद्दानुक्कमणिका [१९] चतुत्थज्झानिकफलसमापत्ति-७२ चतुत्थमग्गजाणं-१९३ चतुत्थं झानं-५१,१८२ चतुधातुववत्थानं-२२० चतुपारिसुद्धिसीलं-१४८, २२७ चतुब्बिधवचीदुच्चरितस्स- १६९ चतुबिधो-१६२ चतुब्रह्मविहारवसेन-१८६ चतुभूमककुसलधम्मकारणा-२११ चतुमग्गाणपटिवेधगामी-२०९ चतुयोनिपरिच्छेदकाणं-५२ चतुवण्णसुद्धिवण्णना - ४२, ४३ चतुसच्चकम्मट्ठानं-१८५ चतुसच्चधम्मञ्च -१७१ चतुसच्चधम्मो-२०९ चतुसट्ठि-२२८ चतुसतिपट्ठानवसेन- २२७ चत्तालीसकोटिधनं-१२८,१६१ चन्दभागमहानदि-५५ चन्दभागा-५५ चन्दमण्डलं-४५,४६ चन्दवङ्कता-१४८ चन्दिमसूरियाति-४५ चन्दिमा-४५,१३१ चन्दोति-४५ चम्मक्खण्डं-५१,५५ चम्म-१७४ चरणकभावं-११६ चरणन्ति-१०१ चरणं-१७६ चरियवसेन-२१७ चातुमहाराजिकादीनं-६३ चातुयामसंवरसंवुतोति-२२ चातुयामसंवरोपि-२३ चारिकं-८२,१३९ चित्तकम्म-१३९ चित्तगहपतिहत्थकआळवकादयो-८५ चित्तगेलब्लं-१९२ चित्तन्ति-१९६ चित्तपरिच्छेदे - १८५ चित्तभावना-१६८ चित्तलपब्बतविहारे - १६० चित्तविवेको-१६७, २२७ चित्तविसुद्धीति-२२७ चित्तसङ्खारनिरोधा-१६९ चित्तसङ्घारा-६३ चित्तानुपस्सनासतिपट्टानं-६० चित्तानुपस्सी-२८, १८३ चित्तालङ्कारचित्तपरिक्खारत्यं-२०७ चित्तुत्रासभयं-९ चित्तं-२,८,१५,२५,२६, ३४, ३७,५७, ६३,९२, १४३, १५९, १६८, १७१, १७२, १८०, १९१, १९५, १९६, १९७, १९९, २०७, २१५ चिन्तामया-१६७ चिरनिसिन्नो-१२९ चिरपारिवासियटेन-१५५ चीवरकुटि-२० चीवरक्खेत्तं-१७४ चीवररजनकं-९६ चीवरसन्तोसमहाअरियवंसं-१७८ चीवरहेतूति-१८६ चुतिपटिसन्धिच्छादकं-१७१ चुतिपटिसन्धिवसेन-७० चुतूपपातञाणं-१७१ चुन्दत्थेरो-८३ चूळअनाथपिण्डिकमहाअनाथपिण्डिकादयो- ८५ चूळसीवत्थेरो-५९ चेतसाति-१७२, २१४ चेतसोविनिबन्धा-१९५ चेतियघरधूपनत्थाय -९६ 19 Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२०] दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा [छ-ज] छिन्नपादो-१० छिन्नमूलो-२०५ चेतियङ्गणे-९६,१३७ चेतियपब्बतविहारे-१७५ चेतियपूजादीनं-९६ चेतियं-१७५, १९८ चेतोखिला-२२२ चेतोपरियाणन्ति-६४ चेतोपरियाणलाभी-६३ चेतोपरियाणवसेन-६३ चेतोपरियपञ्जा-२२४ चेतोविमुत्तीति-२००,२२१ चेतोसमाधिन्ति-६४ चेतोसमाधीति-२२०,२२१ चोदकेनाति-१९३ चोरकम्म-३३,११६ चोरतो-९५ चोरा-९४, ११६, ११७, १२४,१४९ चोरादिउपद्दवनिवारणत्थं -३१ जङ्गमसं-१०२ जनाति-१३१ जनोघं-१३४ जम्बुदीपे-४१,८१ जयापेक्खोति-६८ जरसिङ्गालो-११,१७ जरसिङ्गालोति-१२ जराति-३५ जरामरणनिरोधे-१०३ जलाबुजा-१८८ जवनखणे-२०१ जवनपञ्जा-१०३ जागरियानुयोगमनुयुत्तोति-६८ जागरियानुयोग-६८,१०३ जातिखेतं-७२ जातिजरामरणियाति-२४ जातित्थेरो-१६४ जातिमूलस्स-८८ जातिसङ्गहो-१६२ जानपदा-३१ जिनभासितोति-२१६ जिनसुत्तं-२२१ जियावेगो-१४३ जिव्हग्गे-४५,१०७ जिव्हाविजेय्या-२८ जीवकम्बवनं-५१ जीवजीवकसद्देत्थाति-१३५ जीवितक्खयं-११५ जीवितमदो-१७० जीवितिन्द्रियं-२२८ छअपायमुखादिवण्णना- ११५ छआदीनवादिवण्णना-११६, ११७, ११८ छधम्मवण्णना- २२५ छन्दरागप्पहानं-१६९ छन्दरागवसेन-६४ छन्दवासिनी-२११ छन्दसमाधि-१७१ छन्दसमाधिपधानसङ्खारसमन्नागतं-६० छन्दोति-२२८ छन्दं-४५,१५१,१७१ छन्त्रपरिब्बाजको-१५ छमानिकिण्णन्ति-४ छविमंसलोहितन्ति-६४ छळङ्गसमन्त्रागतो-२१४ छळछुपेक्खा-२०१, २१४ Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [झ-त] सद्दानुक्कमणिका [२१] जूतकरो-११७ जेट्टकरुक्खो -१३७ जेट्ठो-७७ जेतवनमहाविहारं-४० जोतिकपासाणा-१३३ जातिसम्पदाति-१९२ आयप्पटिपन्नोति-८४ अय्यपरियन्तिकं-७२ झाननिकन्तिसस्सतदिट्ठिसहगतो- १५४ झानपच्चयो-१४३ झानफस्सं-६५ झानविपस्सनामग्गफलधम्मस्स-२०७ झानविपस्सनामग्गफलानि-१९७ झानविपस्सनावसेन-१८६ झानसमापत्तियो-२२ झानसुखं-३७ झानानि-३७ झामअङ्गारो-५६ झायीति-६९ ठपितचित्ता-५८ ठानकुसलताति - १४७ ठानन्ति– १७, १४७, १५१ ठानपरिच्छिन्दनसमत्था-१४७ ठानाठानकुसलो-१४८ ठितनिमित्तेन-६२ ठितभिक्खु-६९ ठितिभागियो-६३, २२४ आणजालं-२,१३९ जाणदस्सनपटिलाभायाति-१७२ आणदस्सनविसुद्धीति-२२७ आणदस्सनं-८७,१५१, २१५ आणदेसना-७० जाणपरियन्तिकं-७२ आणवादेन-८ आणवादेना-८ आणविप्पयुत्तचित्तेन-२१४ जाणसम्पयुत्तचित्तेन-२१४, २२३ आणानुपरिवत्ति-१६० आतपरिञा-२२१ जातिव्यसनं-१९२ तङ्क्षणुप्पन्नकोधवसेन- ११५ तच्छा-५,६ तण्डुलमेव-४७ तण्हकरो-१७३ तण्हा-४३, ४५, ८९, १४४, १५४, १५५, १८४ तण्हाछक्के-१९८ तण्हाद्वयं-१५४ तण्हासमुदया- १७२ तण्हाहेतु-२० तण्हुप्पादानं-१८६ ततियज्झानसुखं-१६६ ततियमग्गो-६५ ततियाति-६२ ततियं झानं-५१, १८२ ततोजसी-१३५ ततोतला-१३५ ततोला-१३५ तत्तला-१३५ 21 Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२२] दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा तत्रुपपत्तिजननतोति-३२ तथसभावो-११० तथागतप्पवेदिता-६६ तथागतबलानि-५२ तथागतसद्दवित्थारे-८९ तथागतसावका-१७३ तथागताति-६ तथागतेति-१२ तथागतेन-७२,८८,१०५, १०६,१०७,२२१ तदत्थजोतकन्ति-९९ तदत्थपरिदीपना-९६ तदनुधम्मता- २२४ तदाधिगच्छतीति-९९ तपनिस्सितको-१९ तपस्सिनो-१९ तपस्सिभावेन-२२ तपस्सीति-१९, २१ तपोजिगुच्छाति-१८ तमपरायणोति-१९० तम्बपण्णिदीपे-७४ तरुणपीति-१९६ तरुणविपस्सना-२२७ तरुणसमथविपस्सनापञ्चाय-२२६ तस्सज्झासयं-२४ तापसपब्बज्जं-३० तारकरूपानीति-४७ तालवण्टं-५९ तावर्तिसभवनं-९४ ताळच्छिग्गळेन-६२ तिकचतुक्कज्झानतो-१९९ तिक्खपञा-१०४ तिणवत्थारककर्म-२०६ तिणसीहो-१० तिण्णं-३,४०,४१,६९,७०,१६९,१९०,२०० तित्थियपरिवासं-४० तित्थियाति-१६ तिथियानहि-२२ तिन्दुकखाणुकपरिब्बाजकारामे - १० तिपिटकपरियत्तिप्पभेदे -२३० तिपिटकमहासीवत्थेरो-५९ तिब्बच्छन्दो-२०३ तिरच्छानयोनिगामिनिया-१५५ तिरच्छानयोनियं-५०, १८७ तिरित्तमंसं-११ तिरियन्ति-२११ तिलक्खणाहतं-७,१९२ तिविधकायदुच्चरितस्स-१६९ तिवेदनो-२१३ तिवेदनं-२१३ तिसन्धिपल्लङ्घ-५१ तीरणपरिक्षा-२२१ तुच्छकुम्भीव-१७ तुच्छपुरिसाति-२५ तुट्ठिबहुलो-१०३ तुण्हीभूतोति-२३ तेचीवरिकाञ्च -१७८ तेजसि-१३५ तेजो-१३३ तेजोधातूति-१९९ तेपिटकबुद्धवचनसवनं-२०० तेपिटके -७३, २१६ तेभूमकधम्मा-१५४ तेरसधुतङ्गसमादानं-१९ तेविज्जसुत्तं-४० थद्धभावो-१९५ थद्धमच्छरियभावो-११८ थद्धो-२१ Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [द-द] सद्दानुक्कमणिका [२३] थम्भरहितो-१२७ थामवता-७१ थिनमिद्धं-१८२ थिरगहणो-९२ थूपन्ति-१७४ थूलन्ति-१० थूलसरीरो-११ थेरसल्लापो-५९ थेरोति-८४,१६४ दक्खिणाति-१६२ दक्खिणाविसुद्धियोति-१८९ दक्खिणेय्यग्गीति-१६२ दक्खिणेय्यताय-१२२ दण्डदीपिकं-१४० दण्डमाणवकानि-१३६ दन्तकूटं-२० दन्तोति-२३ दन्धाभिञा-६७ दमा-१८६ दसअकुसलकम्मपथकम्म-१८७ दसकसिणआनापानवसेन-१८६ दसकुसलकम्मपथधर्म-३० दसदुस्सील्यधम्म-२०१ दसबलं-२२,२६,१३९ दसब्यामट्ठाने-५४ दससहस्सचक्कवाळदेवता-७५ दससहस्सिलोकधातु-६२ दससीलानि-२०२ दसायतनानि-१६३ दसुत्तरतो-७४ दसुत्तरसुत्तन्ते-७२ दस्सनजाणं-१५१ दस्सनसमापत्ति-६४,६५ दस्सनसमापत्तियं-५३ दस्सनसमापत्तीति-६४, ६५ दस्सनानुत्तरियं-१६८, २०० दहरभिक्खुनी-१६० दळहनेमि-२९ दळ्हपाकारतोरणन्ति-५७ दळ्हसमादानोति-९२ दळ्हुद्धापन्ति-५७ दाठानागसङ्घत्थेरेन - २३० दानकारणानीति-२०७ दानपच्चया-२०८ दानपारमि-१६४ दानमयं-१६४,१६५ दानवत्थूनीति-२०७ दानसालं-९५ दानसीलमया-१६३ दानसंविभागेति-९३ दानादिसङ्गहकम्म-१०० दानूपपत्तियोति-२०८ दायज्जं-३०,१२३ दायादा-४१ दारभरणाय-११७ दारुचक्कं-२२३ दारुपत्तिकन्तेवासीति-१० दालिद्दियन्ति-३२ दासकम्मकरा-१२२ दिट्ठधम्मसुखविहारज्झानानि-७२ दिठ्ठधम्मसुखविहारायाति-१७२ दिठ्ठधम्मसुखविहारं -१५९ दिठ्ठधम्मिका-८६,१५५ दिट्ठबुद्धगुणा-५४ दिट्ठाविकम्म-२०६ दिट्ठिजुगतं-१६५ दिट्ठिनिज्झानक्खन्तिया-५६ Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२४] दिट्ठपञ्ञत्ति - ९० दिट्ठिपटिवेधेति – २०३ दिट्ठिब्यसनं - १९२ दिट्ठिविपत्तीति - १५० दिट्ठिविसुद्धि - १५०, १५१ दिट्ठीति - १५५, १८८ दिपादानं - १८८ दिट्टोघो - १८८ दिट्ठ - ६६, ८८, १०६, १८९ दित्तोति - ११ दिन्नादायिनोति - १२६ दिब्बगन्धं – ४४,४७ दिब्बचक्खु - २३, १६७, २२४ दिब्बचक्खुत्राणं- - १७२ दिब्बचक्खुपञ्ञ - २२४ दिब्बचक्खुपादकज्झानसमापत्ति - ६४ दिब्बयानं - १३४ दिब्बसोतत्राणं - ५२ दिवास - १७२ दीघङ्गुलिमहापुरिसलक्खणं - ९७ दीघनिकाये - १८२, १८३ दीघपहिको - ९८ दीघपासादो - ८० दीघभाणकमहासीवत्थेरो - ५८ दीघोति - १३८ दीपङ्करोति - १७३ दीपसिखा - ५६ दुक्कटमत्तं - २१ दुक्खक्खयगामिनियाति - १९४ दुक्खदुक्खताति - १५८ दुक्खदोमनस्सानं - १८३ दुक्खधम्मानन्ति - ११६ दुक्खनिरोधगामिनी - ६६,८९ दुक्खनिरोधोति - ६६,८९ दुक्खपटिपदा - ६७ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा दुक्खपरिजाननो - ८९ दुक्खवेदना - २१३, २१४ दुक्खवेदनियो - १४३ दुक्खवेदनं - १५८ दुक्खति - १९७ दुक्खसमुदयोति - ६६, ८९ दुक्खस्सन्तकिरियायाति - २१८ दुक्खाति- १५८ दुक्खानुपस्सनात्राणे - १९७ दुक्खानुपस्सनं - १८२ दुक्खोति - ४२ दुक्खं - १३, ६२, ८४, १०१, १०३, ११६, १४३, १४४, १४६, १५८, १६२, १८४, १८७, १९४ दुच्चरितन्ति - १५२ दुच्चरितानि - १५२, १९० दुतियज्झानसमाधि - १६८ दुतियज्झानसमापत्ति - १६९ दुतियज्झानसुखेन - १६६ दुतियपादेन - ९४ दुतियमग्गो - ६५ दुतियं ज्ञानं - ५१, १८२ दुप्पच्चक्खकरो - २१९ दुप्पटिनिस्सग्गीति - १९९ दुप्पटिविज्झाति - २२२ दुप्पटिविज्झोति - २१९, २२१ दुस्सीलोति - ६८, १२१ दूतेय्यपहिनगमनानुयोगप्पभेदं - १७८ देव्यधम्मेन - ३१ देवदत्तो - १९० देवपुत्तमारोपि - २७ देसनाञाणकुसलतं - ७० देसनासवनानि - १६५ देसेतीति - ६० दोमनस्सन्ति - ११६ दोमनस्ससङ्घातं - ७ 24 [द-द] Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ध-ध]] - दोवचस्सताति- १४६ दोवारिकाति - ३२ दोसक्खन्धं - १०४ दोसमोहवसेन - २१३ दोसोति २१०६ हलकप्पोति १३१ द्वत्तिंसमहापुरिसक्खणानि - ९१ द्वत्तिंसवरलक्खणप्पटिमण्डितं - ४३ इत्तिंससूरियानं १४० द्वत्तिंसिमानीति - ९१ द्वादस अकुलचित्तसम्पयुत्तानं १६४ द्वारं - ५८ द्विजिव्हा - १०९ द्विमूलको - २१३ द्विमूलाति २१३ द्विवेदना २१३ द्वेधिकजाताति - ८० - C - ध थजग्गसुतं १३७ धरट्ठो - १४१ धनन्ति २०२ धनसम्पत्ति - १०७ धमकरणं - १२६ धम्मआणं १२९, १३८ - धम्मकथिकोति - १६५ धम्मकथं १४,८१,१३९ धम्मकामो - २१० धम्मकायो - ४४ धम्कायोति - ४४ धम्मकेतूति - ३० धम्मक्खन्धाति १८७ धम्मचक्कप्पवत्तने ७२ धम्मचक्कं २२३ - सद्दानुक्कमणिका धम्मच्छन्दोति १७१ धम्मजो - ४४ धम्म- २०२ धम्मताति ९५ धम्मतेजेन - ९४ धम्मतोति - २१२ धम्मथेरो - १६४ धम्मदानयज्ञ- १०१ धम्मदायादो ४४. धम्मदेसनाकाले - ५६ धम्मद्धजो - ३० धम्मनिज्झानक्खन्तिं - १६७ धम्मनिम्मितोति - ४४ धम्मनिसन्तियाति २०३ - धम्मन्ति २५,३०, २०१,२१८ धम्मन्दयेन- ५४,५८ धम्मन्वयोति - ५७ धम्मपटिसन्थारो - १४९ धम्मपटिसम्भिदा ५२ धम्मपटिसंवेदिनोति - १९६ धम्मपदानीति १८६ धम्मप्पटिग्गाहका २७ धम्मभण्डागारिकं २७ धम्मभूतोति - ४४ धम्मयागन्ति - १०१ धम्मरतनपूजा - ८२ धम्मरतनं - ८२ धम्मराजभावं ८९ धम्मवादिनियो - १९९ धम्मविचयो ६७,१५१ धम्मविनयं ८० धम्मसङ्गहो - ७४ धम्मसभावो - ४४ 25 - - धम्मसरणा- २७ धम्मसवनञ्च - १२६ [२५] Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२६] धम्मसवनायाति ५८ धम्मसुधम्मतं - २१७ धम्मसेनापति - ५८, ७१, १४४, १५९, १८१, २१६ धम्मसेनापति - ११२,२१७ धम्मसंहितन्ति - ८९ धम्मस्सवनं १६१,२१७ धम्माति २४, ६०, १६४, १८३, २०२ धम्माधिपतेय्योति - ३० - धम्माधिपतेय्यं - १७० धम्मानुधम्मन्ति १०० धम्मानुधम्मप्पटिपत्तीति- १८५ धम्मानुपस्सनासतिपट्ठानन्ति - ६० धम्मानुपस्सी २८, १८३ धम्मानुसारीति ६६ धम्माभिसमयो - २५ - धम्मायतनं १४७ धम्मारम्मणं - ८८ धम्मिकथा १४१ धम्मूपसंहितन्ति - १०१ धम्मोति - ४८, ५९, ६६, १४२, २०४, २१०, २२१, २२६ धातुकुसलतापि - १४७ धातुपरिनिब्बानन्ति - ७४ धातुपरिनिब्बानं ७४ धातुयोति १५४, १९५, १९९ - - धातुस - ७० धारणत्यं ८६ धारेति ७६,१९८ घितिमाति ६९ धुत अपिच्छोति २२६ धुतङ्गगुणे धुतङ्गधरस्स - २१ धुतङ्गधरोति १९ धुतङ्गसुद्धिको १९ धुतङ्गानि १७४, १७८, १८०, १८१ दीघनिकाये पाधिकवग्गडुकथा - धुत १९१७९, १८१ धुत्ताति ११७ धुवस - १८२ थोवनसन्तोसो १७५.१७७ न नक्खत्ततारका - ४६ नगरं - २६, ३६, ५१, ५८, १३४ नङ्गलकट्ठकरणं - २७, २८ नङ्गलकोटिवङ्कताति - १४८ नक्लाति १३३ नमुट्ठ - ११, ९२ नटनाटकादिनच्चं - ११७ नत्धिकवादी १९९ नन्दूपसेचनन्ति - १८६ नमत्थूति १३२ नमस्सन्ति - १३२ नयग्गाहो - ५७ नलाटमण्डलं – १७ नवद्वारन्ति २२३ नवव्यामयोत्तेन - ५४ नवलोकुत्तरधम्मदायज्जं ४४ नवलोकुत्तरधम्मनिस्सितं - ८९ नवलोकुतरधम्मो - २२६ नहानोदकं - १२४ नहापितसिष्यं १०१ नळकारदेवपुत्तो - ३६ नळकारसिप्पं - १०१ 26 - - . - नळकारा - ३६ नागदीपे ७४ नागवीथि ४६ नागसेनत्थेरेन - ७५ नाटपुत्तस्स - ८० नाटपुत्तो ८०, ८१ [न-न] Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [न-न] सद्दानुक्कमणिका [२७] नाटसूरिया-१३४ नातितिखिणेन-६६ नाथकरणाति-२१० नाधिमुच्छतीति-१५८ नानत्तसचं-१८२ नानत्ताभावं-५८ नानाकिच्चा-६० नानारतनविचित्तं-९१ नानासभावा-६० नाभिपि-७७ नाभिसज्जीति-१०४ नामकायो-१९६ नामग्गहणकिच्चं-१४५ नावा-७६,१६१ नाळन्दवासिको-८० नाळन्दाति-५१ निकामलाभीति-७२ निक्किलेसभावेन-४२ निक्कुण्डको-४७ निक्कोसज्जा - १२५ निक्खन्तदन्तमत्तको-७ निगण्ठनाटपुत्तकालङ्किरियवण्णना-८० निगण्ठो-८१ निगमोति-१ निग्रोधसामणेरस्स-२२० निग्रोधाति-२३ निग्रोधो-१६ निच्चफला-१३५ निच्चलगहणो-९२ निच्चविहारा-२०१ निच्चसमये-१२३, १२६ निच्छन्दरागत्ता-६४ निज्जरवत्थूनीति- २२८ निट्ठगमनकारणं-५९ नित्तण्हो - १४१ निदंसनकथं-१०१ निद्दासुखं-१९५ निद्देसपरियायेनाति-१८३ निद्धमङ्गारेन-१३३ निपकोति-६९ निपच्चकारन्ति-४३ निब्बत्तितझानानि-१७२ निब्बत्तिलक्खणं-१७२ निब्बानथले-१२ निब्बाननिस्सितन्ति-१८४ निब्बानन्ति-८७,२०१ निब्बानपत्तियाति-२१८ निब्बानारम्मणो-२१४ निब्बानं-५८, ६५, १०२, १०३, १४५,१५१,१५४, १५८,१६८, १६९, १८४, १८७, १९५, १९६, १९९, २०१,२२२ निब्बिदानुपस्सनं-१८२ निब्बुतदीपसिखा-३० निब्बुति-१३ निब्बेधभागिया-५२,२०१ निब्बेधभागियाति-२०१ निब्बेधभागियो-६३,२२४ निब्बेधिकपञाति-१०४ निब्बेधिकपरियाये-१५५ निब्बेधिकायाति-१९४ निमित्तग्गाही-१४९ निमित्तानुसारीति-२०० निम्मानरतीति-१६६ निम्मितकामा-१६६ निम्मिनन्ति-१६६ नियतमिच्छादिट्ठिया-१५८ नियतीति-१५८ नियमलक्खणं-१६५ नियमो-७० निय्यानिकसासनं-८३, ८४ 27 Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२८] दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा [प-प]] नेवसञ्जानासचायतनसमापत्ति.-५२ नेवसेक्खानासेक्खा-१६६ नेसज्जिकनं-१८१ न्हातकिलेसत्ता-१३१ निय्यानिको-५९ निरत्थकभावं-१८ निरपेक्खो-३७ निरयगामिनिया-१५५ निरयोति-१९१ निरामिसो-२२५ निरुज्झतीति-१३२ निरुत्तिपटिसम्भिदा-५२ निरुपक्किलेसो-२१ निरोगो-१७० निरोधतण्हा-१५५ निरोधधम्मन्ति-१०३ निरोधधातुया- १५४ निरोधसच्च-१८४,१८५ निरोधसच्छिकरणो-८९ निरोधसञ्जा-२०१ निरोधानुपस्सनाआणे -२०१ निरोधानुपस्सनं-१८२ निरोधोति-६६,१८४,२२२,२२३ निवातवुत्तीति-१२७ निविट्ठसद्धो-४३ निसिन्नपासाणफलकं-१० निस्सरणन्ति-१८०,१९६, २२२ निस्सरणपञोति-१७८ नीवरणप्पहानम्पि-२३ नीवरणानि-५७,१९१ नेकतिकाति-११७ नेक्खम्मधातूति-१५४ नेक्खम्मपाळियाति-१८२ नेक्खम्मवितक्को-१५३ नेक्खम्मसञादयोपि-१५३ नेगमा-३१ नेचयिकाति-९ नेपक्कन्ति-६९ नेमि-१३५ पकतिलोकियमनुस्सानं-६२ पक्खित्तदिब्बोजा -४४ पगुणज्झानं-१६३ पगुणधम्म-१६५ पगुणसमापत्तियो-२२७ पग्गहितवीरियेन-७१ पग्गाहनिमित्तञ्च -१५० पग्गाहो-१५० पच्चक्खातोति-२ पच्चत्थिकतो-९५ पच्चत्थिकेनाति-९४ पच्चत्तं-६९, १२७ पच्चनीकदिट्ठि-३३ पच्चनीकधम्मे-२२५ पच्चयहेतु-८६ पच्चयाकारजाणं-२२७ पच्चवेक्खणाणानि-५२ पच्चवेक्खणाणं-२२४ पच्चवेक्खणनिमित्तन्ति-२२४ पच्चवेक्खणपा-२२१ पच्चवेक्खतीति-६४ पच्चुपट्टितकामाति-१६५ पच्चुपट्टितो-३४ पच्चुप्पन्नसुखो-२२५ पच्चुप्पन्नो-१५७, १५८ पच्चेकबुद्धा-५३, ५५, १७३ पच्चेकबोधित्राणं-५५,२०२ पच्चेकबोधिपटिलाभपच्चया-९३ 28 Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [प-प] सद्दानुक्कमणिका [२९] पच्चेकबोधिसत्तानञ्च-६२ पाभावना-१६८ पच्छिमदस्सनं-७५ पञआयाति-६६, १०४, १०७, १८८, १९७, २०२, पच्छिमा- १२२ २२६ पजानना-१५१, १६९ पाविमुत्तस्स-६६ पजाननाति-१४६, १४७, १४९, १५० पञ्जाविमुत्ति-१४० पञ्चकामगुणिको-१५४,१५६,१८८ पञाविमुत्तोति-६५ पञ्चङ्गिकंसम्मासमाधि-५२ पञावुधं-१६७ पञ्चत्राणिको-२२५ पञ्जावेपुल्लपत्तिया -१६८ पञ्चदस-४७,५२ . पञ्चिन्द्रियं-६६,२२८ पञ्चद्वारिककायो-१६८ पटवासिनी-२११ पञ्चधम्मवण्णना-२२४ पटिकूलसञ्जी-७०,७१ पञ्चनीवरणेपाहं - १४३ पटिग्गाहकतोति-१८९ पञ्चवण्णा-७८ पटिघसञ्जे-१८२ पञ्चवोकारभवस्मिहि-१८५ पटिघोति-१६३ पञ्चसीलदससीलचतुपारिसुद्धिसीलपूरणकाले-९३ पटिच्चसमुप्पन्न- १०३ पञ्चसीलानि-२०२ पटिच्चसमुप्पादकुसलताति-१४७ पञ्चातपं-२० पटियातकरणं -२०६ पञ्चाभिआ-७३ पटिपत्तिअन्तरधानन्ति-७३ पञ्चिन्द्रियानीति-६० पटिपदाचतुक्कं- १८६ पञ्चुपादानक्खन्धा-१५८ पटिपदाआणदस्सनविसुद्धीति-२२७ पञ्चुपादानक्खन्धाभिमुखं-१९६ पटिपदानुत्तरियं-१६८ पञत्तसिक्खापदस्स-१५२ पटिपदासु-५३ पञवतोति-२२७ पटिपन्नो-७२, १९५ पञवाति-६९ पटिपुग्गलोति-७८ पा -१७,३२,५१,५२, ५३,६६,६७,६८,६९, | पटिप्पस्सद्धलद्धो-२२५ १४६, १४७, १४९, १५०,१५१, १६६, १६७, | पटिबद्धचित्ता-१६६ १६८,१७०, २०२, २२४ पटिभानपटिसम्भिदा-५२ पाक्खन्धं-१०३ पटिभानवाति-१२७ पञाचक्खु-१६७ पटिभानसम्पन्नो-६९ पाति-६७,१६६, १६७, २२७ पटिलाभसन्तोसो-१७५,१७६,१७९,१८० पञआधनं-२०२ पटिविरताति-३१ पाधिट्ठानं-१८७ पटिविरूळ्हन्ति-४७ पापटिलाभहेतू-५२ पटिवेधअन्तरधानं-७३ पापारिपूरिन्ति-२४ पटिवेधधम्मे-१९५ पापुब्बङ्गम-६६ पटिवेधोति-७३ 29 Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३०] - पटिसङ्घानबलन्ति - १४९ पटिसङ्घानुपरसनं १८२ पटिसन्थरणं - १४९ पटिसन्धारे १९८ पटिसन्धिग्गहणं ७३ पटिसन्धिवसेन - ६२, १५१ पटिसम्मिदापत्तेहि ७४ पटिसम्भिदामग्गे - १८२, १८३ पटिसल्लानसारुप्पानीति - १६ पटिसल्लीनोति १५ पटिस्सतिमत्ताय १८३ पटिस्सतोति १७९ पटिहारकन्ति - १०९ पट्ठानं - ७४ पठमज्झानसमाधि - १६८ पठमज्झानसमापत्ति - ६४ पठमज्झानसुखं १६६ पठमज्झानं ६३ ६४. १९६ पठममग्गवज्झा - १५७, १९२, २०० - - - A पठममग्गो - ६५, १९८ पठ झानं ५१, १८२ पणिधिकारककिलेसाभावा १६९ - पणीततरञ्च - २२ पणीतधातु १५४ पणीतपणीतन्ति - ५९ पणीतभोजनदानं - ९८ पणीतलाभिता - ९८ पणतो - २२५ पण्डरविपाकं १८७ - पण्डरो - ४१ पण्डितदोवारिकेहि - ५७ पण्डितदोवारिको ५८ पण्डितदोवारिकं - ५८ पण्डितो ७३ १२७ पण्डुपलासं ९६ - - दीघनिकाये पाचिकवग्गगुकथा 30 पण्डुसीको १० पण्णसानं - ३६ पहिकोण्डा - ९७ - पतिद्वितसद्धो ४३ पतितमक्कटो - ५६ पतितमुसला ४९ पतित्थियना १०५ पतिरूपदेसवासोति २२३ पलक्खन्धोति २३ पत्तचीवरमादाय - ५१ पत्तचीवरं ८२ पत्तपिण्डिक १८१ पत्तयोगक्खेमाति - ८४ पत्तिदानं - १२३ पत्तिं - १३७ पथवीकसिणं - २११ पथवीधातुतेजोधातुवायो धातुभेदं - ८८ पथवीधातूति १९९ - पथवीरसो- १४४ - पथवोजं - १४१ - -- पदक्खिणं - २१० पदसोधम्मं १५९ पदालता - ४७ पदीपतेलं ९६ पदीपसिखा - १४१ पदीपेय्यन्ति - ९६ पदुमपुष्कं १६१ पदुमवने १३६ - - - पदुमवनं - १४० पदुमुत्तरं ३९ पधान-२२७ पधानवीरियं - १९३ पधानसङ्घारा - १७१ पधानियङ्गानीति – १९३ - पधानं ६४, ८९, १५९, १९३, १९४ [प-प] Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [प-प] सद्दानुक्कमणिका [३१] पन्थघातं-३३ पन्थदुहनन्ति-३३ पन्थिकन्ति-१७५ पन्नरस-१७९,१८१ पपटिकप्पत्ता-२२ पबुद्धकाले-१२० पब्बज्जाकालो-३० पब्बतमत्थके-१२१ पभित्रपटिसम्भिदापरिवारे-२३० पमाणञ्जू-६८ पमादट्ठानन्ति-११५ पयिरुपासिता-१०४ पयोगो-२१२ परकुसिटनाटा-१३४ परत्तभावे-४३ परपुग्गलविमुत्तिाणेति-६९ परभण्डाभिज्झायनलक्खणा-२१२ परमत्थं - १०२,१०३ परमविसुद्धसद्धाबुद्धिवीरियपटिमण्डितेन-२३० परलोकत्थं-८८ परवादभिन्दनं - २५ परविसये-२७, २८ परसञ्चेतनाय -१८९ पराजयोति-८ परामसतीति-१५५ परिकम्मआलोको-१७२ परिक्खीणभवसंयोजनो-४३ परिक्खीणा-४३, ६५, ६६ परिच्छिन्दति-१९८ परिजाननादिकरणीयं-४३ परिवाय-२२१ परिजेय्योति-२१९ परित्तपरिकम्मकथा-१३७ परित्ताणं-१२४, १२५ परिदीपना-९६ परिनिब्बानतो-७३, १७३ परिनिब्बानिकोति-२०९ परिनिब्बायतीति-५० परिनिब्बुतोति-२४ परिपाचनधातु-१९९ परिपुण्णकाया-९८ परिपुण्णसङ्कप्पोति- १९ परिपुण्णसीसो-१०८ परिब्बाजकानं-२५ परिब्बाजकारामे-१५ परिब्बाजकाराम-२,१० परिब्बाजकोति-१५ परिभोगसन्तोसो-१७५, १७७, १७९, १८० परियत्ति-७३ परियत्तिअन्तरधानं-७३ परियत्तिधम्मे-१९१,१९५ परियत्तीति-७३ परियायपथं-५८ परियुट्ठासि-२५ परियुट्टितचित्ता-२५ परियुट्टितभावं-२५ परियेसनसन्तोसो-१७५,१७६, १७९ परियेसनानानत्तन्ति-२२८ परियेसितन्ति-८८ परियोगाळ्हेन-१८५ परियोसानदस्सनत्थं-६१ परियोसितसङ्कप्पो-१९ परिवज्जेति-१७३ परिवज्जेतीति-१७३ परिसङ्काय - १६५ परिसावचरा-३२ परिसुद्धचित्तानं-१६७, २२७ परिसुद्धपरिवारो-१११ परिसुद्धपाळि-२३ परिसुद्धपाळिमत्तम्पि-२३ 31 Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३२] दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा [प-प] परिसुद्धब्रह्मचरियचरणं-१८६ परिसुद्धभावस्स-२२७ परिळाहोति-४८ परोपण्णास-५२ पलिबुन्धतीति-१८८ पलिबोधा-१६० पवत्तविचाणं-२११ पवत्तिवेदनीयं-५० पवरो-७७ पवाळवण्णा-१४० पवाळवेदिकापरिक्खित्तो-१४१ पविवेकावुधन्ति-१६७ पवुच्चन्तीति-१३३ पवेसनकनिक्खमनके-५८ पसन्नचित्तस्स-१०८ पसादनीयसुत्तन्ते-२१७ पसादमत्तानुरक्खणे-१४ पसादसद्धाति-१९३ पस्ससुखन्ति - १९५ पहातब्बोति-२१९ पहानपधानन्ति-१८४ पहानपरिज्ञा-२२१ पहानसाति-१९७ पहानानुपस्सनाञाणे-१९७ पहानारामो-१८२,१८३ पहूतजिव्हालक्खणं-१०९ पाकटजरा-३५ पाकारविवरन्ति-५७ पाकारसन्धिन्ति-५७ पाकारो-५८ पाटलिपुत्तं-६८ पाटिहारियानि-६,७,१७१ पाटिहारियं-२,४,६,७,८,९,१०,१२ पाणातिपातं-३५, ९७ पातिमोक्खन्ति-१२९ पातिमोक्खसंवरसीलं-१०१, १६८ पात्वाकासीति-७,१०५ पाथिकपुत्तोति - ८,९ पाथिकपुत्तं - ९,१० पादकज्झानसमाधिभावना-१७३ पादकज्झानसमापत्तिमेव -१७२ पादकुक्कुच्चं-१४१ पादक-६४,१५३, १८८,१९६, २२७ पादधोवनमक्खनादिखुद्दककम्म-२१० पादमूले -३९, ५२,१२२,१७७ पादापच्चेति-४१ पानट्ठाने-११८ पानसखा-११८ पानसोण्डा-११७ पानानीति-९८ पापजिगुच्छनवादो-१८, २२ पापज्झासयो-४ पापमित्तता-१४६, २२२ पापमित्तो-१४६ पापिच्छोति-१९९ पाभतेन - ८३ पामोज्जन्ति-१९६ पामोज्जबहुलो-१०३ पायमानाति-४२ पारगू-४०,४१ पारमियो-३, ५, ९२ पाराजिकसदिसं-२१ पारिचरियानुत्तरियं -२०० पारिच्छत्तको-९१, १४० पारिसुद्धिपधानियङ्गन्ति-२२७ पारुतचीवरं - १७५ पावळा-१० पावानगरवासिनो-१३९ पावारिकम्बवनेति-५१ पासाणफलके-१० Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [प-प] सद्दानुक्कमणिका [३३]] पासादिकसुत्तन्ते -७२ पासादिकसुत्तं -८० पाळिअत्थं-१९६ पिटकसम्पदानेन-५६ पिटकानि-७३ पिट्ठिमक्खनं-९६ पिण्डगणनाय-७० पिण्डपातक्खेत्तन्ति-१७९ पिण्डपातसन्तोसमहाअरियवंसं-१८१ पिण्डपातसन्तोसोति-१७९ पिण्डपातिककं- १८० पिण्डपातोति-१७९ पितुवचनं -११३ पिपासाति-११७ पियचक्खुना-१०८ पियदस्सनोति-१०८ पियवचनं - ९९ पियवदू-१०० पियसमुदाहारोति-२१० पिसुणवाचा -२१३ पीठसप्पि-९७ पीठसप्पिम्पि-५० पीति-७८,८४, १९७,२०० पीतिपामोज्जेन-१०८ पीतिभक्खा-४४ पीतिसोमनस्सं - ५५ पीतीति-१९६ पुग्गलत्तिके-१६४ पुग्गलपञत्तियं -५३ पुग्गलपञत्तीति-९० पुग्गलसम्मुखता-२०४, २०६ पुञकम्म-११३,१२८ पुञ्जकिरियवत्थूति-१६५ पुञ्जकिरिया -१६४ पुञफलन्ति-२९ पुञ्जमुपचितं - २३० पुञ्जविपाकोपि -२९ पुञानुभावेन-३६ पुजाभिसङ्घारोति-१६३ पुण्णवड्डनकुमारस्स-३९ पुथुज्जनकल्याणका – ४३ पुथुज्जनखीणासवानं-१९२ पुथुदिसाति-११३ पुथुनानासमाधिपचाविमुत्तिविमुत्तित्राणदस्सनक्खन्धेसु १०३ पुथुनानासीलक्खन्धेसु-१०३ पुथुपञ्जा-१०२,१०३ पुथुसमणब्राह्मणानन्ति-२१५ पुप्फासवो-११५ पुब्बङ्गमकम्म- १०८ पुब्बभागमग्गक्खणे-६६ पुब्बविदेहे-४६ पुब्बारामे-३९, ४० पुब्बेकतकम्मपटिक्खेपदीपनं - ९७ पुब्बेनिवासाणे-५३ पुब्बेनिवासादीनि-२३ पुब्बेनिवासं -६९, १७१ पुरस्थिमा–१२२,१२४ पुराणोदक-१३५ पुरिमकायतो- १४० पुरिमतण्हा-१५८ पुरिमबोधिसत्तानं-११० पुरिसत्तभावं-४८ पुरिसधोरव्हेनाति-७१ पुरिसपुग्गलो-१६४. पुरिसलिङ्ग-४८ पुरिसवरग्गलक्खणेहीति-९८ पुरिसविसेसं-१०६ पुरिससीलसमाचारे-५३ पुरिसोति-३४ Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३४] दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा [फ-ब] पुरेचारिकं-१३६, १३७ पुरोहितं-६३ पूजारहा -३३ पूजितचीवरं-१७५ पूवसुरा-११५ पेक्खन्ति-१२७ पेत्तिविसयगामिनिया-१५५ पेत्तिविसये-३४ पेमनीयो-११० पेसकारसिप्पं-१०१ पोक्खरणिया-१३५ पोक्खरसातका-१३६ पोक्खरसातिसमोति-१०६ पोट्ठपादसुत्तन्तस्मिहि-७२ पोट्ठपादसुत्ते-१४, १५, १६, ६५ पोणं-२२६ पोनोमविकाति-२४ पोराणकत्थेरा-९५ पोराणाति-१७४ पोराणं-४१ पोसोति-६५ पंसुकूलन्ति-१७४ पंसुकूलिकॉ-१७८ फलसतिपट्टानं-६० फलसमनिस्सआणन्ति-१५० फलसमाधि-१६८ फलसमापत्ति-१७१ फलसमापत्तिझानानि-१७२ फलसमापत्तितो-१९६ फलसमापत्तिधम्मा-२१५ फलसीलं-१८७ फलासवो-११५ फस्सनानत्तन्ति-२२७ फस्ससमुदया-१७२ फस्सो-१४२ फासुविहारायाति -१३१ फीतन्ति-९४ फोटुब्बायतनं-८८ फोटुब्बारम्मणं-८८ फणहत्थका-९७ फरुससद्देन -३२ फरुसावाचा-२१२ फलकचीरं-१७४ फलधम्मे-१६३ फलधातुआहारचतुक्कानि-१८५ फलपञञ्च-२४ फलपञ्जा-१८७,२२१ फलभारभरिता-११९ बन्धुभूते - ४१ बन्धूति-४१ बलकायो-३१ बलवकोपो-३४ बलवतण्हाय-१९ बलानीति-६०,१८७ बहलच्छन्दो-२०३ बहिद्धारूपे-१९५ बहिद्धासमुट्ठानं-१४६ बहिमुखो-१०४ बहिवतपादा-९७ बहुकारोति-२१८ बहुजन-१११ बहुजनपुब्बङ्गमो-१०८ बहुरोगो-१०७ बहुलीकम्मन्ति-१५१ Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ब-ब] सद्दानुक्कमणिका [३५] बहुस्सुतभावं-२२६ बहूपकारो-१६१,१६२, २१८,२१९ बाराणसीराजा-१६२ बालोति-१० बाहितपापढेन-१०२ बाहिरानीति-१९७ बाळ्हन्ति-११० बिम्बोहनं-१८१ बीजमानो-५९ बीरणत्यम्बके-६ बुद्धगुणा-५४, ५५, ५९ बुद्धगुणे-५३, ५५, ८१ बुद्धगुणेसु-५९ बुद्धघोसोति-२३१ बुद्धचक्खुना-११३ बुद्धजाणानि-५२ बुद्धधम्मानं-१६० बुद्धबलं-२५, २१६ बुद्धरतनस्स - ८२ बुद्धरस्मियो-१४० बुद्धरूपं-४३ बुद्धवचनगण्हनपञा-६९ बुद्धवचनं-४४, १६७, १९५, २१०, २२० बुद्धविनेय्या-२१८ बुद्धविसयो-६ बुद्धसासने - ४०, ११३, १२८ बुद्धा-३५, ४३, ५५, ५६, ५८, ७३, ७५, १३१, १३२,१३९, १४०,१७३, २१७ बुद्धानुस्सतीति-२०० बुद्धप्पादे-१६८ बुद्धोति-८,७७,२३१ बोज्झङ्गकथा-२०२ बोज्झङ्गमिस्सका-५८ बोज्झनाति-६० बोधिचेतियआसनपोत्थकादिपूजनत्थाय -- ९६ बोधिजन्ति-८८ बोधिपक्खियधम्मा-२९ बोधिपक्खियानन्ति-५० बोधिपल्लङ्के-७३,७४,२२१ बोधिमूले-१७,८८ बोधिसत्तकाले-१५९ बोधिसत्तभूमियं-१५९ बोधिसत्तो-४८,७३,९२, ९७ व्यग्घोति-१२ व्यञ्जनन्ति-८५ व्यत्तोति-५७ ब्यन्तीभूतन्ति-२२६ ब्याकरोतीति-८८ व्याधिभयं-१५१ ब्यापादधातु-१५३ ब्यापादवितक्को-१५२,१५३ ब्यापादसञा-१५३ ब्यापादो-३३, ३४, १०५, १५२,१९९, २१२, २१३ ब्यामप्पमाणं-५३ ब्रह्मकायो-४४ ब्रह्मकुत्तन्ति-१३ ब्रह्मचरियन्ति-८५,१३०,१४४ ब्रह्मचरियवासं-४३, ८५ ब्रह्मचरियेसना-१५६ ब्रह्मचारिनियोति-८५ ब्रह्मचारिनोति-८५ ब्रह्मजाति-४१ ब्रह्मजाले-१३, ४४,६४,६८,७०,८९,११७,२११ ब्रह्मदायादाति-४१,४२ ब्रह्मनिम्मिताति-४१ ब्रह्मभूतो-४४ ब्रह्मलोका-७५, १९९ ब्रह्मविहारा-३७ ब्रह्मविहारादीनि-२३ ब्रह्मस्सरतं-११० Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३६] - दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा - . ब्रह्मस्सरलक्खणं - ११० ब्राह्मणकुलीनाति ४० ब्राह्मणकुले ५० ब्राह्मणजच्चाति - ४० ब्राह्मणवंसो - १७३ ब्राह्मणाति - ४१, ८२, २१५ ब्राह्मणियोति ४१ ब्राह्मणो ५५ ६१.६३.७१,८२,१३५ भवदिट्ठिसहगतो - १५४ भवरागो - १५६ भदलोभी- १६६ भवाभवोति १८६ भवासवो १५५ १५६ भवेसनाति - १५६ भवोघो - १८८ भवोति ९२ भ - - - भगवतोति ६१, ७१ भगवाति ५७, ५८, ५९, ६१, ७१. ११३, १३० भग्गवगोत्तं - २ भक्तो - १५८ भण्डनकारका - २०६ भत्तकिच्चं - २६ भत्तपुटं ८० भतवेतनानुष्पदानेनाति - १२५ - भस्ससमाचारे ५३. ६७, ६८ भारतयुद्धसीताहरणसदिसं - ८८ भारद्वाजो - ४० भावनापधानन्ति १८४ भावनापारिपूरि २२८ भावनावलन्ति १५० भावनामयाति १६३ भावनामये - १६५ भावनामयं १६५ भावनारतो - १८२, १८३० भावनाराम अरियवंसं १८१ भावनारामो - १८२, १८३ - 7 भत्तसोण्डा- ११७ भत्तानुमोदनं २६ भद्दजिडि ३६ भद्दालता - ४७ भद्दियनगरे – ३९ भद्रकन्ति १८४ भावेतब्बोति - २१९ भासितभावं १०१ भिक्खवेति - २९, २१७ - - भिक्खुनियोति ८५ भिक्खुभावं - ४० भन्तेति ४, ७,२२,५६,७७, ८२, ११४, १७५, १७९ भिक्खुति२७, १४८, १६४, २०३, २१७ भयन्ति ९ भिन्नकिलेसा - १४१ भूताति २२१ - - भयसभावसण्ठितं १४६ भरियाति - १३३ भवगवेसनरागो - १५६ भूतारोचनन्ति - १५९ भवगामिकम्मे १०४ भवच्छन्दोति- १५६ भवतण्हा - १४५, १५४ भवतण्डाति १४५ भवदिट्ठि - १४५, १५५ भेदकरवाचं - ६८ भैरण्डकंयेवाति - ११ भोगवासिनी २११ भोगविनासोति १९२ भोगसम्पदायपि १९२ भोगादिसम्पन्नं - ४० 36 [भ-भ] Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [म-म] सद्दानुक्कमणिका [३७] भोगियाति-९६ भोजनन्ति-९९,१३३ भोजनीयानीति-९८ म-कारो-१९० मक्खनतेलं-९६ मक्खिभावे-३ मक्खीति-१९९ मगधक्खेत्ते -२६ मग्गदस्सने-२०३ मग्गन्ति-१२१ मग्गपञापारिपूरि-२४ मग्गपञ्च-११६ मग्गपटिपन्नेनापि-१७७ । मग्गफलनिब्बानसम्पत्ति-२९ मग्गफलं-२२ मग्गब्रह्मचरियस्स-२२६ मग्गमूलेन-४४ मग्गवसेनेव-६० मग्गसच्चन्ति-१८४ मग्गसमनिस्सत्राणं-१५० मग्गसमाधि-१६८,१६९ मग्गामग्गाणदस्सनविसुद्धीति-२२७ मग्गेनमग्गप्पटिपत्तिअधिवासनन्ति-२१२ मघदेववंसस्स-३२ मङ्कुभूतोति-२३ मङ्गलअस्सं-५० मङ्गलउसभं-५० मच्चुमारोपि-२७ मच्छरियचित्तं-१३३ मच्छरियं-१०४, १९१ मच्छरीति-२१, १९९ मज्झत्तवेदना-२१४ मज्झन्तिकत्थेरो-२२६ मज्झिमकायो-२२५ मज्झिमधातु-१५४ मज्झिमनिकाये -४०, १८२, १८३ मज्झिमपदेसे-५७ मज्झिमयामोति-४६ मञ्चपीठसुखं-१९५ मञ्चपीठं-९६ मवतीति-१२ मचनलक्खणेन-२१ मणिमयं-१३३ मतसरीरं -६ मतिमाति-६९ मत्तञ्जूति-६८ मत्तप्पटिग्गहणसन्तोसो-१७५, १७६,१७९, १८० मत्तेय्यतायाति-९३ मदप्पमादा-३१ मधुपानं-१४१ मधुरमंसानीति-११ मधुररसे-१२६ मधुररसं-४७ मध्वासवो-११५ मनसाति-८८ मनसिकरोतीति-१७२ मनसिकारकुसलताति-१४७ मनापसुत्तं-१७७ मनिन्द्रियं-२२८ मनुञदस्सनं -१३३ मनुस्सधम्माति-२ मनुस्सभूतो-८७, ९२ मनुस्सराहस्सेय्यकानीति-१६ मनुस्सलोकगामिनिया-१५५ मनोकम्म-१२६,१५६,१६०,१६४ मनोगणनाय-७० मनोदुच्चरितं-१५२,१५९,१६० 37 Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३८] दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा [म-म] मनोपदोसिका-१६० मनोपदोसोति-३४ मनोपरिञा-१६९ मनोभावनीयानन्ति-१५ मनोमयिद्धिञाणं-५२ मनोमोनेय्यं-१६९ मनोविज्ञाणधातु-१४७ मनोविज्ञाणं-१६३ मनोसकारा-६३ मनोसञ्चेतना-१४२ मनोसम्फस्सजं-१६३ मनोसम्फस्सोति-१९७ मनोसुचरितन्ति-१५२ मन्तभाणिनोति-१३१ मन्तस्साजीविनोति-३२ मन्ताति-६८ मन्दनिग्योसानि-१६ मन्दसद्दानि-१६ ममत्तविरहिता-१३३ मयूरकोञ्चाभिरुदाति-१३५ मरणभयन्ति-१५१ मरणवधभयत्तनोति-९७ मरणवधभयं-९७ मरणवधेनाति-१०८ मरणवधो-९७ मरणसञाति-२२८ मरणानुपस्सनाजाणे-२२८ महाउदायीति-७८ महाकरुणासमापत्तितो-२६ महाकस्सपत्थरस्स-७३ महाकस्सपं-११३ महागङ्गाय-३६ महाचेतियं-७४ महाट्ठकथाय-२३० महाथेरोति-१५७ महादानं-२६ महाधनधजनिचयो-९ महानेरूति-१३३ महापा -१०२ महापथवितो-५४ महापथवी-९४ महापनादो-३६ महापरिनिब्बाने-८५,१९३ महापुरिसनिमित्तानि-९१ । महापुरिसलक्खणानीति-९१, ९२ महापुरिसलक्खणं-९४, ९७,१०५ महापुरिसवितक्के-५२ महापुरिसोति-९१ महाबन्धनाति-१२ महाबोधिपल्लङ्के-७५ महाब्रह्मा-७८,१४१ महामङ्गलकथा-१३७ महामोग्गल्लानं-११३ महाविदुग्गाति-१२ महाविहारवासीनं-२३१ महाविहारसमापत्तियं-२१९ महासक्कारे-८५ महासतिपट्टाने-२७, ६७ महासत्तो-७३,९३ महासमुद्दो-५३, ५४, ५५, ९२ महासीवत्थेरो-६८,१४४,१७८ महासुदस्सने-३२ महेसिनोति -१३१, २३१ महोदरा-१३३ मातापितरो-३५, ११२, ११३, १२२, १२३, १२४, १४५, १६० मातिकानं - १७४ मातुलनगरवासिनो-२६ मातुलरुक्खं-२६ मातुलानीति-३४ 38 Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [म-म] सद्दानुक्कमणिका [३९] मानथद्धतं-२ मानद्धजं-१७,२३ मानसिकपरियादानत्थं -१५० मानो-१५६, २२० मायावीति-२१,१९९ मारबलन्ति-३८ मारो-२५, २८,४३, ५५,७७,१५९ मारोति-२७ मालाकम्मलताकम्मपटिमण्डितं-९६ मालं-९६ मिगरीति-१० मिगराजा-११ मिगसञ्जन्ति-३४ मिगारमाताति-३९ मिगारमातुपासादेति-३९, ४० मिगारसेट्टिपुत्तस्स-३९ मिच्छत्तनियतोति-१५८ मिच्छत्ताति-२०७ मिच्छा-५,७७,८५, २००, २१२ मिच्छाचारोति-२११ मिच्छादिट्ठि-१५०, १८८, २१२, २१३, २२८ मिच्छादिट्टिकम्मसमादानहेतूति-४९ मिच्छादिट्टिकम्मस्स- ४९ मिच्छादिट्टिवसेन-४९ मिच्छादिट्ठीति-३३,१५२, १९९ मिच्छाधम्मोति-३३ मिच्छापटिपन्ना-१६२ मिच्छासङ्कप्पो-१५३ मिच्छासभावो-१५८ मित्तकरोति-१२७ मित्तपतिरूपका-१२० मित्तविन्दको-१६० मित्तामच्चा - १२२ मिद्धविनोदनआलोको-१७२ मिद्धसुखन्ति-१९५ मिलिन्दरवापि-७५ मुखच्छेदकवादं- ४२ मुखोदकदन्तकट्ठ- १२४ मुट्ठस्सच्चन्ति-१४९ मुण्डसमणकस्स-४१ मुतन्ति-८८ मुतपरिसङ्कितेन - १६५ मुत्ततालपक्कं-८ मुत्ताति-६३ मुचित्तो-२०७, २०८ मुदुपुष्फाभिकिण्णा-९४ मुदुमद्दवचित्तं-२९ मुदुमंसानीति-१० मुद्दा-१०१ मुसावादादिचेतना-१५२ मुसावादूपसहितन्ति-६७ मुसावादेन-६,९,१३ मुसावादं-३३, ४३, ६८ मूलकसोण्डा-११७ मूलघच्चन्ति-३२ मूलतोति-२१२, २१३, २१४ मूलपरियाया-७४ मूसिकाभयत्थेरो-१८७ मेण्डकसेट्टिपुत्तस्स-३९ मेत्तचितं-३४,१२६,१३७ मेत्तसुत्तं-१३७ मेत्ताकम्मट्ठानं-२१७ मेत्ताचेतोविमुत्ति-१४९, १९९ मेत्ताचेतोविमुत्तीति- १५४, १९९ मेत्ताझानानि-१९६ मेत्तानिसंसे-५२ मेथुनधम्म-४९ मेधङ्करो-१७३ मेधावीति-५७,१२७ मोग्गलिपुत्ततिस्सत्थेरस्स-७३ Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४०] दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा [य-र] मोग्गल्लानो-२१८ मोघपुरिसाति-२,३ मोघमचन्ति-८९, ९०,१८८ मोनेय्यप्पटिपदा-१६९ मोरगीववण्णा-१४० मोरनिवापोति-१७ मोहक्खन्धं-१०४ मोहागति-११५ मोहो-१४९, १५२ मंसखण्ड-११ मंसचक्खु-१६७ मंसचक्खुना-१४१, १६५ मंसभोजनं-१९ यागुभत्तं-२,४९, ९५, ९६ युगन्धरपब्बतं-९४ युगेहि-१० युत्तपटिभानो-६९ यूपोति-३६ योगक्खेमकामोति-१०७ योगखेमं-८४ योगो-३८ योनिजाव-४२ योनियोति-१८८ योनिसोमनसिकारमूलके-५२ योनिसोमनसिकारोति-१८५ योब्बनमदो-१७० यक्खचेतियट्टानं-७ यक्खदोवारिका-१३५ यक्खपरिचारको-१३६ यस्खपिसाचादीनं-६३ यक्खराजआणं-१३८ यक्खा -१३१,१३४ यथाकामलाभी-७२ यथानुरूपं-२०६ यथाबलसन्तोसो-१७४,१७५,१७६,१७९ यथाभूतत्राणदस्सनं-१८२ यथाभूतन्ति-५८ यथालाभसन्तोसादयो- १८० यथालाभसन्तोसो-१७४,१७५,१७६,१७९ यथासारुप्पसन्तोसोति-१७४ यन्तसालाय-१३५ यमकपाटिहारियं-९४ यमकमहानदीमहोघो-५४ यसग्गप्पत्तोति -७ यसत्येरस्स-७३ रक्खणकिच्चं-१५९ रक्खतीति-३१,१२० रक्खावरणगुत्ति-३१ रजतमयं-१३३ रजनदोणिकं-९६ रजनसन्तोसो-१७५,१७७ रजनीया-२८ रजनं-९६, २१० रतनचक्कं - २२३ रतनपूरिता-७७ रतनमण्डपो-१३५ रतनसुत्तन्ति-१३७ रत्तकम्बलपरिक्खित्तो-१४० रत्तिन्दिवाति-४७ रत्तियाति-- १२९, १३० रथस्साणीव-१२७ रन्धगवेसिनो-१०४ रभसाति-१३६ रमतीति--१८२,१८३ 40 Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सद्दानुक्कमणिका [४१] रूपतण्हा-१५५ रूपपतिद्वितं-१८५ रूपपरिळाहो-२२८ रूपसमाति-१९७ रूपादिगोचरतो-१५ रूपायतनं-८८ रूपारम्मणन्ति-१८५ रूपावचरकुसलचेतनानञ्चेतं-१६३ रूपियप्पटिग्गाहणापत्तिं-१५९ रोगब्यसनं-१९२ रसगिद्धा-४१ रसग्गसग्गिलक्खणं-१०७ रसन्ति-४७ रसपथवि-४५ रससम्पन्नाति-४४ रससम्पन्नानं-९८ रसायतनं -८८ रसारम्मणं-८८ रागग्गीति-१६० रागदोसमोहनिम्मदनसमत्थो-५९ रागनिमित्तादीनं-१६९ रागादिखिलानञ्च -१११ राजआणं-१२९ राजकथादितिरच्छानकथं-८८ राजगहे-१६ राजगह-२५,११२,११३, १२७ राजङ्गानीति-१०१ राजतो-९५ राजधम्म-३२ राजपब्बजिता-३० राजपवेणिं-३२ राजवल्लभो-११५ राजवंसं-३२ राजाति-११२, १३५,१५७ राजायतनचेतियं-७४ राजिनोति-१३४ राजिसयोति-३० राजिसिम्हीति-३० रित्तकुम्भिसदिसं-१७ रित्तघट-१७ रुक्खदुस्सं-१७४ रुक्खमूलिकॉ-१८१ रुप्पनटेन-१४५ रूपकायञ्च-१८८ रूपक्खन्छ-१८५ लक्खणत्तयं- ९७, १०७ लक्खणद्वयं-१००, १०१,१०७,१०८,१०९,११०, १११ लक्खणनिब्बत्तनसमत्थं-- ९२ लक्खणानिसंसो-९४, ९७ लज्जवन्ति-१४८ लज्जासभावसण्ठिता - १४६ लज्जिधम्मे-२०६ लज्जीभावो-१४८ लतादुस्सं-१७४ लापो-२७, २८ लाभग्गप्पत्तोति-७ लाभग्गयसग्गपत्तन्ति-८५ लाभनानत्तन्ति-२२८ लाभसक्कारसिलोकन्ति-१९ लाभसक्कारो-२२,७५, १२४,१५७ लाभिरुत्तमन्ति-९९ लामकं-७२ लालुदायी-७८ लिङ्गविपल्लासो-६ लुद्दाचारकम्मखुद्दाचारकम्मुना - ४९ लुब्मतीति-१५२ Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४२] लूखतपस्सिनो - २१ लूखाजीविन्ति - २० लेखा - ४६. १०१ लेहनीयानीति ९८ लोकधम्मा २०८ लोकधातु ७२.७६ लोकधातुयाति ७२ लोकन्तरवासी - ५९ लोकपञ्ञत्तिं - ३ लोकविनासो - ३४ लोकवोहारवसेन - ६५ लोकसमुदाचारवसेन - २ लोकाधिपतेय्यं १४६, १७० लोकियधम्मेन - १०७ लोकियोकुत्तरपा– १६७ लोकियोकुत्तरा - १९१, २०२, २२२ लोकियानि १९५ टोकियो १९१ लोकुत्तरधम्मा ७१,१५४ लोकुत्तरो १४७, १५३ लोकुप्पत्तिचरियवंसं ४१ लोकुप्पत्तिवंसकथं ४७ लोकुप्पत्तिसमये ४८ लोकोति - १५६, २३० लोभो - १५२, २१३ लोमहंसनकरं - ९५ लोमहंसोति - ९ लोलजातिकोति ४४ लोलुप्पविवज्जनसन्तोसो - १७५, १७६, १७९, १८० - व - - - — लोहितचन्दनं १६१ - - वक्कलित्थेरो १९० दक्खि - १०८ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा 127 वङ्कादिदोसविरहितं - ५९ वङ्गीसत्येरो - ६९ वचनपटिकरा १०० 42 वचीकम्मं १२६, १५६, १६०, १६४ वचीदुच्चरितं - १५२, १६० वचीपरमोति - ११९ वचीमोनेय्यं - १६९ वचीसङ्घारनिरोधा - १६९ वच्छायनो ५६ वजिरनाळियो - ३९ - - वज्जनीयधम्मवज्जनत्यं - १२२ वज्जप्पटिच्छादनकम्मं - १०६ वज्जिगामेति ३ वझभेरिया ३२ वञ्चनिका ११८. वडगामी २९ वह्नितुकामेहि ३७, ३८ वड्डिस्सति - ३२ वण्णकसिणं - १३ वण्णमच्छरियं १९१ वणवादीति १७८ वण्णसम्पन्नाति - ४४ वत्थदानेन - १०५ वत्यमालालङ्कारसरीरसमुद्वताय १३१ वत्थारम्मणं १७२ - - - वत्युकामा २२६ वत्तपटिपत्तियं ३० वधकचित्तन्ति - ३४ वनकुक्कुटका १३६ वयधम्मं १०३ वयानुपस्सनं - १८२ वलाहका - १३५ वल्लि - ६ वस्सूपनायिकाय २१७ वाकचीरं १७४ -- - [य] Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [व-व] सद्दानुक्कमणिका [४३] वाक्करणसम्पन्नो-६९ वाचापरिञा-१६९ वातपूरिता-९४ वादानुवादोति-७८ वामना-९७ वायमतीति-१७१ वायोकसिणे-१४३ वायोधातूति -१९९ वासेट्ठभारद्वाज-५० वाहनं-१३४ वाळकम्बलं-१७४ विकालविसिखाचरियानुयोगोति-११५ विक्खम्भितरागस्स-२०८ विगतदरथकिलमथोति-१११ विगतपापो-१११ . विगतलोभगिद्धो-१७८ विघातपरिळाहवेदनञ्च-१९६ विघाताति-१९६ विघाससंवड्डोति-११ विचिकिच्छतीति-१५८ विचिकिच्छा - १५५, १५८,१९२, २०० विचिकिच्छासङ्घातो-१९५ विजनवातानीति-१६ विजम्भनकाले-११ विजाननधातु-१९९ विजायमानाति-४२ विज्जाति-१०१,१५१, १७०, २२२ विज्ञाणकसिणन्ति-२११ विचाणकायाति-१९७ विआणट्ठितियोति-१८५ विज्ञाणधातूति-१९९ विआणसमूहा-१९७ विज्ञाणसोतन्ति-६४ विज्ञाणं-४३,१०३, १४२, १४५, १६७,१८५ विजातन्ति-८८ विज्ञातारं-८६ विहि-१७४ वितक्कमाळके-१७९ वितक्कविचारे-१८२ वितक्कविष्फारसद्दन्ति-६३ वितक्कसन्तोसो- १७५, १७९ वितक्कसहगता-२२४ वितक्केस्सतीति-६३ वितक्कोति-१७५ वित्थम्भनधातु-१९९ विदितकरणद्वेनापि-१७० विदितहाने-५७ विदिताति-१३,५६ विद्धंसेतीति-१९२ विधाति-१५६ विनट्ठरूपो-१० विनयट्ठकथायं-१४९ विनयधरोति-१४५ विनयपिटके -७४ विनयसम्मुखता-२०४ विनासचिन्ता-२१२ विनासमुखानि-११४ विनासेतीति-१९२ विनिच्छयनयो-२०४, २०६ विनिपातेति-१८० विनीवरणं-१५ विनेय्य-२८ विनोदेतीति-१७३ विपरिणामदुक्खताति-१५८ विपरिणामानुपस्सनं -१८२ विपरीतचित्तो-१३ विपरीतसञो-१३ विपरीतोति-१३ विपस्सना-५८,१५०, १६८,१६९, १८४, २२२ विपस्सनागमं - २१९ 43 Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४४] दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा [व-व] विपस्सनागमनेन-१६८,१६९ विपस्सनाआणेन - २२६ विपस्सनाजाणं-५२,१५१ विपस्सनाति-५८ विपस्सनानन्तरो-२२१ विपस्सनानिस्सन्दो-१९५ विपस्सनापञ्जा-६९,१६८ विपस्सनापादकज्झानं-७२,१६८ विपस्सनाभावञ्च-१८४ विपस्सनामग्गेन-१६३ विपस्सनामत्तकम्पि-१८४ विपस्सनायेतं-२०३ विपस्सनं-६३, १५१, १७५, १९७ विपस्सीयेव-१३१ विपाकज्झानसुखं-१६६ विपाकन्ति-६ विपाकविज्ञाणन्ति-१८६ विपाकोति-६ विपाकं-६, २९ विपापोति-१११ विपुलत्ताति-९३ विपुललाभी-७२ विपुलविसुद्धबुद्धिना- २३१ विप्पटिपन्ना-१२३ विभवतण्हा- १५४ विभवदिट्ठीति-१४५ विमानवत्थुस्मिं-१६२ विमुच्चतीति-१९६ विमुत्तानुत्तरियं-१६८ विमुत्तायतनानीति-१९६ विमुत्ति-५१, १९७, २२२ विमुत्तिक्खन्धं-१०३ विमुत्तित्राणदस्सनसम्पन्ना- १४० विमुत्तित्राणदस्सनं-५१, ५२ विमुत्तिपरिपाचनीयाति-१९७ विमुत्तीति-१५१, २२२ विरत्तरूपाति-८० विरागधम्म-१०३ विरागसञाति-१९७ विरागानुपस्सनाजाणे - १९७ विरागानुपस्सनं-१८२ विरागो-१८४ विरुज्झतीति-१४२ विरुद्धवचनं-८० विरूळ्हं-४७ विलासिनिं-२३० विवटेन-१७२ विवगामिकुसलं-२९ विवट्टगामी-२९ विवट्टानुपस्सनं-१८२ विवादाधिकरणं-२०४,२०५ विवाहका-११७ विविधपक्खिसङ्घसमाकुला-१३५ विवेकजं-३७ विवेकट्ठकायानं-१६७,२२७ विवेकनिन्नन्ति-२२६ विवेकनिस्सितन्तिआदीसु-१८४ विवेको-१८४ विसङ्घारगतानन्ति-२२७ विसटोदको-१३२ विसदजाणो-५७ विसमद्वितावयवलक्खणो-१०० विसमलोभोति-३३ विसयखेत्तं-७२ विसहीति-३ विसाखा-४० विसाखाति-३९ विसिट्ठो-७७ विसुद्धिमग्गतो-१७८ विसुद्धियाति-२२२ Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [व] विसेसत्यपरिदीपना ९६ विसेसभागियोति - २१९ विसेसाभावतो - ७५ विसंयोगो - १३० विसंयोजेन्तीति - १८८ विस्सकम्मदेवपुत्तं ३६ विस्सज्जनसन्तोसो - १७८, १८० दिस्सदुकम्मट्ठाना १८४ विस्सट्ठसब्बएसनोति - २१५ विस्सासकरणं - २६ विहरतीति १,५१, ७०, ७१ ८४, २०१ - वेदनानुपस्सनासतिपट्ठानं - ६० वेदनानुपस्सी - २८, १८३ वेदनापरिग्गहसुत्तन्तकथनदिवसे ५८ वेदनायसमुदयो १७२ वेदनासमुदयो १७२ वेदनासु २८, १८३ वेदबहुलो १०३ वेदयतीति- १९६ वेदानं – ४०, ४१ वेदेतीति- १९६ i विहारङ्गणं - २० विहारसमापत्तियो १०२, १०३ विहिंसाधातु - १५३ विहिंसाधातूति - १५३ विहिंसावितक्को - १५२, १५३ विहिंसासञ्ञा - १५३ बीतदोसो १४१ वीतमोहो - १४१ वीतरागो - १४१ वीतसारदाति - १३२ वीथियोति - ४६ वीरियसम्बोज्झङ्गसीसेन - १५० वीरिवारम्भेति २०३ वीरियिन्द्रियं २२८ वेधञ्ञनामका - ८० वेधञ्जा ८० वेपुल्लत्तञ्चाति - २४ वेभूतियवाचा ६८ देव्यञ्जनिकाति ९५ वैय्याकरणन्ति - ७९ वेय्यावच्चकरभावं - १०९ वीरियं - २२, ६४, ७१, ८४, १५०, १५१, १७१,२०७ वेरप्पसवोति - ११८ वेरमणियाति - १३१ वीसतिब्यामट्ठाने - ५४ बुट्ठानकालपरिच्छेदका १४७ दुहानकुसलता १४६. १४७ वुट्ठानगामिनिविपस्सना - २२७ वुट्ठानपरिच्छेदजानना - १४६ वुत्तप्पटपक्खनयेन १४६, १४९ - बुसितया ४३ १३० दूपसमनत्यञ्च- २०४ वूपसमायाति २०४ सद्दानुक्कमणिका - 45 वेठनं - ११७, १२७ वेदतुट्ठिपामोज्जबहुलो १०३ वेदनावखन्धस्स १७२ वेदनाछक्कम्पि १९७ वेदनाति १४५ वेदनातोति २१३.२१४ वेदनानानत्तन्ति - २२८ वेदनानिरोधो १७२ - - - - देरमणी - २१४ वेसालिन्ति - ७ -- वेसालीनगरे - ३ वेस्सवणो - १३१, १३६ वेस्सवंसो - १७३ वेस्सामित्तपब्बतवासी - १३८ वेस्सामित्तोति - १३८ वेळुकारो - २१९ [४५] Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४६] वेगुम्बो १८१ वेदुस्सन्ति- १७४ वेळुवनन्ति - ११२ वोस्सग्गपरिणामिन्ति - १८४ वोस्सज्जनेन १२६ स - - सउपधिकाति - ७० सकटं - ७७ सकदागामिनोपि २१७ सकदागामी ५३, ६३, १९० सकभावेन - ७५ सकलचक्कवाळगणे-५३ - सकलसरीरचलनं - ९ सकलसासनब्रह्मचरियस्स - ८९ सक्कच्यकिरियतो ८० सक्काति - २५,४९ सक्कायदिडि - १५५ सक्कायनिरोधोति - १५८ सक्कायनिस्सरणन्ति - १९६ सक्कायसमुदयोति १५८ - सक्कायोति १५८ सक्को ३६, ७७, ९२, १४१ सक्खरा - ९४ सक्यपुत्तियोति ४ - - - सक्याति - ८० सखिलन्ति - ११० सगुणतो- १६८, १६९ सग्गपरायणो १२८ सग्गसंवत्तनिका - ३२ सग्गस्स - ३२, १२१ सपना- २२८ सङ्घतनिरोधस्स २२३ सङ्घता - २२२ - दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा सङ्घारक्खन्धो - १४६ सङ्घारट्ठितिकाति - १४३, १४४ सङ्कारदुक्खताति- १५८ सङ्घारा - ६६, १०३, १४५, १५८, १६३, १७१ सङ्गारोति १४४ सङ्ग्रहवत्थूनीति- १८९ 46 सङ्ग्रहित परिजनाति १२५ सङ्ग्राहकभावं - १०० सङ्गीतिकारेहि - ७९ सङ्गीतिपरियायन्ति - २१६ सङ्गीतीति – ७३ सङ्घरतनस्स - ८२ सङ्घसुप्पटिपत्तिञ्च २१७ सङ्घादिसेसे – २०६ सङ्घोति - ५९, १९३ सच्चकथनं - १०९ सच्चपञ्ञति - ९० सच्चप्पटिवेधी ७३ सच्चवचनं ४२ सच्चानुलोमिकआणं १५० सच्छिकरणीयाति १८८ सच्छिकरोतीति १०३ सच्छिकातब्बति २१९, २२१ सज्झायकरणं १२४ सञ्चरितं - १५९ - - — सञ्जातपुण्फाति ४२ सञ्जातिसङ्ग्रहो - १६२ सञानानत्तं - २२८ समापेतब्बति - ८६ सठोति १९९ सहेनाति - १९३ सतहो - १९ सततकिरियाय - १९४ सततविहाराति २०१ सतपुलक्खन्ति ९७ - [ स स ] Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [स-स] सद्दानुक्कमणिका [४७]] सति-२९, ७५, ८५, ११३, १४९, १५०, १५५, | सद्धाविमुत्तोति-६६ १७८,१८०, १८३, २१४, २२४ सद्धासम्पन्नो-६८ सतिनेपक्केति-२०३ सद्धिन्द्रियं-६६,२२८ सतिन्द्रियं-२२८ सद्धिविहारिको-१३० सतिपट्ठानचतुक्कं-१७१ सद्धिविहारिकं-८२ सतिपट्टानन्ति-८५, ८६ सद्धोति-१६५, १९३ सतिपट्ठानभावनाय-५८,९० सनिदस्सनं-१६२ सतिपट्टानाति-५०,५८,६०,८५,८६ सन्तुट्ठो-१७४, १७८,१८१ सतिपट्टानानीति-८५ सन्दिटिकाति-११६ सतिबलञ्च-१५० सन्दिट्ठिपरामासी-२१ सतिबलन्ति-१५० सन्दिट्ठिपरामासीति-१९९ सतिमाति-६९ सन्धागारं-१३९,१४० सतिसम्पजञस्स-१७२ सन्धानो-१५,१६ सतिसम्पजायाति-१७२ सन्निट्ठापकचित्ते-२१३ सतिसम्पजनं-२२० सन्निट्ठापकचेतना-२१३ सतिसम्बोज्झगो-१८४ सन्निधिकारकन्ति-४८ सत्तबोज्झना - १५० सन्निधिपरिवज्जनसन्तोसो-१७५,१७८,१७९,१८० सत्तरतनानि-१०१ सपच्चयनामरूपदस्सनं-२२७ सत्तविधअरियधनलाभो-२०० सपदानचारिकॉ-१८० सत्तसत्तति-५२ सपरिळाहटेन-२२६ सत्ताति-३३,१४२ सप्पटिघं-१६२,१६३ सत्तावासदेसना-५२ सप्पटिभाग-५९ सत्तावासाति-२०९ सप्पभासन्ति-१७२ सत्तोति-४८ सप्पाटिहीरकतन्ति-८४ सहायतनं-८८ सप्पिनवनीतादीनि-९८ सद्दारम्मणं-८८ सप्पुरिसधम्मा-२०२ सद्धम्मस्सवनन्ति-१८५ सप्पुरिससंसेवोति-१८५ सद्धम्म-८४ सप्पुरिसूपनिस्सयोति-२२३ सद्धा-४३,७१,१९३ सब्बकिरियानं-३० सद्धादयो-२०२ सब्बकिलेसपरिनिब्बानत्थाय-२४ सद्धाधनं-२०२ सब्बकिलेसानञ्च-१११ सद्धानुसारिम्हिपि-६६ सब्बगन्थप्पमोचनन्ति-२१८ सद्धानुसारीति-६७ सब्ब ताणगतिको-५७ सद्धापुब्बङ्गम-६७ सब्बञ्जतवाणञ्च -२०२ सद्धाविमुत्तो-६६ सब्ब तणञ्चाति-५८ Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४८] दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा [स-स] सब्बञ्जतवाणप्पटिलाभपच्चया-९३ सब्ब तवाणेन-८७,१३२,१४४, २१६ सब्बञ्जतञाणं-५७, ५८ सब्बञ्जुनो-४ सब्ब पवारणं-१८ सब्ब बोधिसत्तानं-६२,१९३ सब्बतण्हा-१५४ सब्बभूतानुकम्पिनो-१३१ सब्बलोकियमहाजनतो-५३ सब्बलोकेअनभिरतिसञाति-२२८ सब्बवट्टदुक्खक्खयाय-३ सब्बसमापत्तियो-२२४ सब्बावन्तेहि-९३ सभावपकति-७७ सभियपुच्छा-७४ समकारीति-६८ समचारी-६८ समज्जागमनं-११५ समज्जाभिचरणन्ति-११५ समणानीति-१०२ समणधम्मकरणवीरियं-६९ समणधम्म-८६,१८० समणपदुमो-१९० समणपुण्डरीको-१९० समणब्राह्मणा-३१, ३४,७१,७२, १२२, १७४ समणमचलो-१९० समणमण्डलं-४९ समणवंसो-१७३ समणसुखुमालो - १९० समणानुच्छविकानीति-१०२ समणारहानीति-१०२ समणूपभोगानीति-१०२ समणो-४,५,९,१०,१३,१६, १८, ५५, ६१,७१, ८१,८७,१५९ समथनिमित्तं-१५० समथविपस्सना-२४,६० समथविपस्सनाचित्तस्स-२०७ समथविपस्सनामग्गवसेन-६०,१८७,१९५ समयविपस्सनाय-६३ समथो-१५०,२२२ समदन्तलक्खणञ्च-१११ समन्तपरिपूरानि-१०७ समसङ्गहकम्म-१०६ समसमन्ति-९० समादिन्नकम्महेतु- ४९ समादिन्नधुतङ्गो-२० समादियतीति-१९ समाधि-५१, ६३, १५०,१७१, २२४, २२५ समाधिक्खन्धं-१०३ समाधिनिमित्तन्ति-१९७ समाधिनिमित्तं-१८४,१९७ समाधिन्द्रियं-२२८ समाधिपरिक्खाराति-२०२ समाधिबलन्ति-१५० समाधिभावनाति-१७३ समाधियतीति-१९६,१९७ समाधिविपस्सनाचित्तस्स-२०८ समाधिसुखस्स-२२५ समापज्जितब्बविहारा-२०९ समापत्तिकुसलताति-१४७ समापत्तियो-७३, १५१, १६८, १७१, २२७ समापत्तिवुहानकुसलताति-१४७ समितपापढेन-१०२ समितपापबाहितपापा-३१ समुग्गततारकं-१४० समुच्छिन्नरागस्स-२०८ समुदयसच्चं-१८४ समुद्दपरियन्तन्ति-३० समुद्दोति-१३२ सम्पजञञ्च-१५० 48 Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [स-स] सद्दानुक्कमणिका [४९] सम्पजओन-२०१ सम्पजळ-१४९ सम्पजानता-६२ सम्पजानपञाय-१७९ सम्पजानो-२८, ६२, १७९, २०१ सम्पजानोति-२०१ सम्पत्तिचक्कन्ति-२२३ सम्पसादनीयसुत्तं-५१ सम्पसादनीये-७२,१८९ सम्पसीदतीति-१५८ सम्फप्पलापो-२१२,२१३ सम्बुद्धानं-१२ सम्बोज्झङ्गा-५८ सम्बोधगामीति-२०९ सम्बोधि-५५ सम्बोधिकाले-७२ सम्मतपुग्गलेहि-२०४ सम्मता-२०५ सम्मत्तनियतो-१५८ सम्मदक्खातो- १४२,१४४ सम्मदञा-४२,४३ सम्मप्पाय-२२६ सम्मप्पधानविभने-१७१ सम्मप्पधानाति-६० सम्मसनपटिवेधपच्चवेक्षणपवा-१४७ सम्मसनमनसिकारा-१४७ सम्माआणन्ति-२१५ सम्मादिहि-६७,१५१,१७०, २१४, २१५ सम्मादिट्ठिपच्चया-२२८ सम्मादिट्ठीति-१५२ सम्माननायाति-१२५ सम्मापटिपत्तिं-४९ सम्मापटिपदं-५९ सम्मापटिपन्नो-१९० सम्मामनसिकारन्ति-६४ सम्माविमुत्तीति-२१५ सम्मासङ्कप्पो-१५४ सम्मासति-१८६ सम्मासमाधि- १८६ सम्मासमाधीति-२२५ सम्मासम्बुद्धोति -७५ सम्मासम्बोधिन्ति-५८ सम्मुखाविनयलक्खणं-२०५ सम्मुखाविनयो-२०४, २०५, २०६ सम्मुखीभावो-२०४, २०६ सम्मुतिकथा-६५ सम्मुतित्राणन्ति-१८५ सम्मुतिथेरो-१६४ सयनं-९९ सयंपभाय-४५ सरणङ्करो-१७३ सरसचुतिया-९७ सरितोदकोति-१३२ सरीरकिच्चं-९,८१ सल्लापत्थिको-१६ सल्लेखताति-७८ सवनउग्गहपच्चवेक्खणा-१४७ सवनधारणसम्मसनपटिवेधपञ्जा-१४७ सवनपटिवेधो-१८५ सवितक्कसविचारा-१४७ सवितक्कसविचारो-१६८ सविपाकं-५९ ससकारपरिनिब्बायी-१९४ सस्सतदिट्ठिसहगतो-१५६, १८८ सस्सतवादेसु-५३ सस्सतवादोति-७० सस्सं-११९ सहधम्मिकोति-७८ साकेततिस्सत्थेरो-२२६ साखल्यं-१४८ Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [५०] दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा [स-स] सागरपरियन्तन्ति-९४ सागरसीमं-९४ साटकं-११७, ११९, १२७, १७६ साठेय्येन-१३, १४, २१ साधुकमनुरक्खाति-१४ सानुचारिको-७ सामगामो-८१ सामञफलानि-१०२, १०३, १०४ सामञफले-२२, २४,१७४ सामीचिकम्मन्ति-४३ सायनीयानीति-९८ सारणीयधम्मा-१९८ सारप्पत्तभावं-२२ सारप्पत्ता-२२ सारम्भजा-६८ सारिपुत्त-५६, १५९, २१६ सारिपुत्तत्थेरो-५३, ८२, १४४, १८१, २२५ सारिपुत्तमोग्गल्लाने - २१८ सारिपुत्ताति-५६ सारिपुत्तो-५४,५८,८२,१३९, २१६, २१८, २१९, २२९ सालवतिया-१३५ सालिभाग-४८ सालियवबीजादीनि-११९ सावकपारमीजाणे-५४, ५७, ५८, ५९ सावकपारमीजाणं-५२, ५५, ५८,५९, २०२ सावकपारमीपटिलाभपच्चया-९३ सासनहितिया-७३ सासनब्रह्मचरियं-८५,१४४,१८६ सासवा-७० साहसिकाति-११८ सिक्खतीति-१६४ सिक्खाकामो-१४८ सिक्खाकोट्ठासोति-१९२ सिक्खानुत्तरियं-२०० सिक्खापदं - ८२, १९२ सिङ्गालकोति-११२ सिङ्गालकं-१२, १२४ सिङ्गालसुत्तं-११२ सिजालं-११ सिनेरु-७७, १३३ सिनेरुभिमुखा-४६ सिनेरुसमीपेन-४६ सिप्पुग्गहणकाले - १२४ सिब्बनसन्तोसो-१७५,१७७ सिलापथवियं-४३ सिवन्ति-९४ सीलक्खन्धोति-१८७ सीलतो-२२ सीलदिट्ठिसम्पदा - १९३ सीलदिविसम्पदासुपि-१९२ सीलधुतगादीहि-१५७ सीलब्बतपरामासो-१५५ । सीलब्बतुपादानं-१८८ सीलमयं-१६५ सीलवा-१००, १६४, १८९ सीलविनासको-१५० सीलविपत्तीति-१५० सीलविसुद्धि-१५० सीलसमादानेति-९३ सीलसमाधितो-१३ सीलसम्पत्तिया -३५ सीलसम्पदाति-१५० सीलसम्पन्नोति-१२१ सीलसंवरो-१४८,१५० सीलालयो-९५ सीलं-२२,५१,५२,५८,१०३,१४१,१५०,१५१, १५५, १६३,१६८ सीसमत्थकं-७८ सीहनादन्ति-१०,२५ Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [स-स] सद्दानुक्कमणिका [५१] सीहनादो-११ सीहहनुलक्खणं-११० सुकतकम्मकराति-१२६ सुकसाळिकसद्देत्थाति-१३६ सुक्कविपाकन्ति-१८७ सुक्काति-४२ सुक्को -४२ सुक्कं-५९, १८७, २०१ सुक्खकललपटलं-४७ सुक्खविपस्सकस्स-१९६ सुक्खविपस्सको-६५ सुखदुक्खप्पटिसंवेदी-५० सुखदुक्खविपाकं- १८७ सुखदुक्खादिधम्मायतनं-८८ सुखनिप्फादकं-८४ सुखल्लिकानुयोगन्ति -८६ . सुखल्लियनानुयोगं-८६ सुखविपाकट्ठेनाति-६० सुखविपाकोति-२२५ सुखवेदनञ्च-१५८ सुखवेदना-२१४ सुखवेदनियो-१४३ सुखसञ्ज-१८२ सुखसेवनाधिमुत्तन्ति-८६ सुखुमपञ्जा-१०७ सुखुमरूपं-१६३ सुखूपपत्तियोति-१६६ सुगतमहाचीवरं-२७ सुगन्धोति-४७ सुचरितेनाति-९८ सुचिपरिवारोति-१११ सुञतानुपस्सनं-१८२ सुञतो-१६८,१६९, १७२ सुञवनेति-१२ सुञागारेसु-१७ सुतपरिसङ्कितेन-१६५ सुतमया-१६७ सुतावुधन्ति-१६७ सुत्तन्तपरियायं-६० सुत्तन्तपिटके-७४ सुत्तन्तपिटकं-७३,२१० सुत्तसन्तोसो-१७५,१७७ सुदस्सनोति-१३३ सुद्दा-४९ सुद्धचित्तस्स-२३१ सुद्धसङ्घारपुजोयं-९० सुद्धावासाति-१९४ सुधाकम्म-२१० सुनक्खत्तो-२,३,४,८ सुनिखातइन्दखीलो-४४ सुन्दरदस्सनो-१३३ सुन्दरहदया-१२० सुपरिमितपरिच्छिन्नं-२३० सुपरिसुद्धं-४७ सुप्पटिपन्नो-५९ सुप्पटिपन्नोति-५९ सुप्पट्टितसति-१८६ सुप्पतिहितचित्ताति-५८ सुप्पतिट्टितपादता-९४ सुप्पतिद्वितबुद्धीनं-२३१ सुभुजोति-९८ सुमत्थेरो-५९,६४ सुमनदेविया-३९ सुमागधायाति-१७ सुरभिकुसुमदाम-३१ सुरामदेन-११२ सुरं-११६, १२० सुवण्णकक्कटका-१३६ सुवण्णचम्पकपुप्फेहि-१४० सुवण्णतोरणं-९१ Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [५२] दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा सुवण्णपासादो-१४१ सुविमुत्तन्ति-१९६ सुवुट्टितन्ति - १९६ सुसङ्गहितपरिजनता- १०० सुसण्ठानसम्पन्नो-९८ सुसानभावं -६ सुसिक्खितो-१३१ सुसूति- ९८ सुसंविहितकम्मन्ताति-१२५ सुसंहितन्ति-११० सुहदाति - १२० सूकरखतलेणद्वारे-५९ सूकरमंसं-५ सूचिकम्मकरणट्टाने-९६ सूचिपासेन-५४ सूपो-१३३ सूरियमण्डलं-४५ सूरियरस्मिसम्फस्सेन-११३ सूरियुग्गमनकालो-४६ सूरियोति-४५, १३३ सूरियं-२, २०,१८१ सेक्खा -४३, १६६ सेट्ठनादो-५६ सेट्ठविहारी-१०१ सेट्ठो-४१, ४२,७७ सेनासनक्खेत्तं-१८१ सेनासनसन्तोसोति-१८१ सेनासनेनाति-१८१ सेय्यथापि-५३, ५५, ५७,८७,१६५, १८३,२१८ सेरीसको-१३८ सेवनचित्तं-२१२ सेवनप्पयोगो-२१२ सेसखीणासवानं-१५९ सेसतण्हा -१५४ सोकपरिदेवानं-१८३ सोचेय्यप्पटिपदा-१६९ सोण्डाति-११७ सोतविद्येय्या-२८ सोतसम्फस्सादीसुपि-१९७ सोतापत्तिफलटुं-६५ सोतापत्तिफलसच्छिकिरियाय-६६ सोतापत्तिफलसमापत्तिं-६३ सोतापत्तिफलं-२१७ सोतापत्तिमग्गक्खणे-२२८ सोतापत्तिमग्गो-५२,१८८ सोतापत्तिमग्गं-६३, १८३ सोतापत्तियङ्गानीति-१८५ सोतापन्नसकदागामिनो-१९२ सोतापन्ना-३९ सोतापन्नो-४३, ५३, ६३, ६४,११२, ११४, १९० सोस्थियन्ति-१७४ सोमनस्सिन्द्रियं-२२८ सोमोतिआदीनि-१३८ .. सोरच्चन्ति-१४८ सोवग्गिका-३२ सोवण्णमयं-१३३ सोसानिकङ्ग-१८१ संकिलिट्ठन्ति -२१ संकिलेसिका -२४ संयुत्तनिकाये-२२० संयोगाभिनिवेसं-१८२ संयोजनानि-१५५ संयोजनानीति-१९२ संयोजयन्ति-१५५ संवच्छरोति-४७ संवट्टविवट्टकथा-४४ संवरपधानन्ति-१८४ संवरीपि-१३२ संवेगोति-१५१ संसीदन्तो-११८ 52 Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ह-ह] सद्दानुक्कमणिका संसेदजा-१८८ स्वाक्खातो-५९ हत्थकुक्कुच्चं - १४१ हत्थिनागानं-४६ हदयङ्गमा-१४८ हदयरूपं - १४१ हनुकं- ११० हनुभावं-११० हरितुपलित्तट्ठाने - ९५ हरितुपलित्तं-१३७ हरीतकीखण्डम्पि-१७० हानभागियोति-२१९ हासपञ्जा-१०३ हासबहुलो-१०३ हिरिओत्तप्पानि-१४६ हिरी-५८, १४६, २२६ हिरोत्तप्पन्ति-२२६ हीनज्झासयो-४ हीनञ्च-१०१ हीनसम्मतन्ति-४९ हीनायावत्तो-३ हेतुपच्चया-१४७ हेतुभूतेन-३६ हेतूति-४४ Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथानुक्कमणिका न अदन्तदमनं दानं-२०७ अप्पकेनापि मेधावी-८३ तस्मा तेन सहा'यं-२३० ताव तिट्टतु लोकस्मिं-२३१ आ दा आयाचितो सुमङ्गल -२३० दीघागमवरस्स दसबल - २३० न मे आचरियो अत्थि-७८ एकूनसट्ठिमत्तो-२३० एवमेतं तदा आसि-३६ पञ्च सेनासने वुत्ता-१८१ पनादो नाम सो राजा-३६ को मे वन्दति पादानि- १२९ चतुब्मि अट्ठज्झगमा-१६१ बुद्धोपि बुद्धस्स भणेय्य वणं-५४ म छ एते कामावचरा-१६६ मूलकट्ठकथासार -२३० Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [५६] दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा [य-स] याव बुद्धोति नामम्पि-२३१ सत्तवस्सानि भगवन्तं-- १६० सब्बं चत्तालीसाधिकसत-२३० सहस्सकण्डो सतगेण्डु-३६ सा हि महाट्ठकथाय-२३० 56 Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संदर्भ-सूची पालि टेक्स्ट सोसायटी (लंदन)- १९७१ पालि टेक्स्ट सोसायटी पृष्ठ संख्या पालि टेक्स्ट सोसायटी प्रथम वाक्यांश वि. वि. वि. वि. वि. वि. पृष्ठ संख्या पंक्ति संख्या ८१६ ८१७ ८१८ ૮૨૨ ८२३ ८२५ ८२७ एवं मे सुतं एतदवोचा ति अमतनिब्बानसच्छिकिरियाय यथा तं आपायिको एतदवोचा ति मत्तं मत्तन्ति अथ नेसं वल्ली चेतियन्ति उपड्डपथन्ति रक्खतेन्ति अहं अतिमहन्तं पाटिकपुत्तो वा ति करोति । तेन कोत्थू ति सिगालो पच्चत्तं येव निब्बुति एत्तकं धम्मकथं एवं मे सुतन्ति यावता ति यत्तका केन पुग्गलेन असम्भिन्नकेसरसीहं कथं अपरिपुण्णा ति लब्भन्ती ति लाभा खीयनलक्खणं घद्धो होति ന ന ന orms ന ന ന ന ८३६ ८३७ ८३९ 57 Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [५८] दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा ८४४ ८४५ ८५२ ८५३ ८५४ ८५५ ८५६ ८५७ ८५८ अग्गं पापेतू ति जानिस्ससी ति बुद्धो सो भगवा सो एव वो उद्देसो अजाणत्थम्पी ति एवं मे सुतन्ति महाजनस्स ठान-निसज्जानं ये मयं अगोचरे कुसलं वगामि च मे दानी"ति धम्मं अपचयामानो ति मदप्पमादा तेल मधुफाणिकादिसु एकिदन्ति सम्मेदन्ति नदीविदुग्गन्ति वड्डित्वा असङ्केय्यतं सद्धिं पुञकम्म इदं तं आसवक्खयपरियोसाने एवं मे सुतन्ति कारेसि । तस्स ब्राह्मणकुला ति ब्रह्मजाति ब्रह्मतो वत्तन्ता व सुज्झन्ती ति जने तस्मिन्ति असंहारिया ति पयसोतत्तस्सा ति परिक्खितं चक्कवालसमीपेन कलम्बुका ति नाळिका मरियादं ठपेय्यामा ति विस्सुकम्मन्ते अनुभवति एवं मे सुतं पे०... नेवसञनासायतनसमापत्ति धुतङ्गगुणे orrm 2294MAMA 9 NMMoranM vvvv ८६९ ८७० ८७१ ८७२ ८७३ ८७४ ८७५ 58 Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८७६ ८७७ ८७८ ८७९ ८८० ८८१ ८८२ ८८३ ८८४ ८८५ ८८६ ८८७ ८८८ ८८९ ८९० ८९१ ८९२ ८९३ ८९४ ८९५ ८९६ ८९७ ८९८ ८९९ ९०० ९०१ ९०२ ९०३ ९०४ ९०५ ९०६ ९०७ ९०८ ९०९ ९१० ९११ सङ्घाटिकणं दसबलस्स गुणे पटिग्गहेतुं इति किरा ति अविदितट्ठाने किलिट्टे करोन्ति आरभि ठाने धम्मेति वेदनानुपस्सनासतिपट्ठानं तं भगवा ति अयं दुतिया देवतानन्ति पत्थ आरद्धविपस्सना अरहत्तमग्गट्ठा तथा यस्स न च वेभूतियन्ति समकारी ति तिण्णं संयोजनानं एत्तेकन्ति दस्सेथा ति वा ब्राह्मणो वा अथकिलमथानुयोगन्ति अभिधम्मपिटकं धम्मसङ्गहो दससहस्सी लोकधातुं सब्बे पि तथागता एकबुद्धधारणी अप्पट ग्लो पस्स खो त्वं एवं तन्ति विरत्तरूपा ति हत्थपादपहारादीनि एक बहुस्सु होती ति आदिमाह सम्मापटिपन्नस्स इदमेव तन्ति संदर्भ-सूची 59 ५३ ५४ ५५ ५६ ५७ 100000662 ५७ ५८ ५९ ६० ६१ ६२ ६३ ६४ ६४ ६५ ६६ ६७ ६८ ६९ ७० ७१ ७२ ७३ ७४ ७५ ७५ ७६ ७७ ७८ ८० ८० ८१ ८२ ८३ ८४ ८५ [५९] २० १३ १० ४ ४ २५ २० १३ ११ ६ ६ ७ १ २२ २२ २६ २१ २३ १६ १४ १० ६ ३ ३ ४ २६ १८ २० १७ १ १३ १५ I or or on a ११ ११ ११ ९ Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [६०] ९१२ ९१३ ९१४ ९१५ ९१६ ९१७ ९१८ ९१९ ९२० ९२१ ९२२ ९२३ ९२४ ९२५ ९२६ ९२७ ९२८ ९२९ ९३० ९३१ ९३२ ९३३ ९३४ ९३५ ९३६ ९३७ ९३८ ९३९ ९४० ९४१ ९४२ ९४३ ९४४ ९४५ ९४६ ९४७ सम्माव्यञ्जने च गम्भीरनेमो ति सुतानुसारी ति एवं अभिसम्बुद न आदिब्रह्मचरियकन्ति एथापि पञ्ञत्ति चैव एवं मे सुतन्ति ततो भगवता बोधिसत्तो तादिसेन कुसला नाम पारमीनं आनुभावेन दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा तत्थ सच्चे ि अदासि । पानं देन्तो इध कम्मं नाम निब्बति । तथा परं यापयति वसिद्धिभावनाय वचनमेव तस्स द्वे लक्खणानि निब्बत्तन्ति एरयन्ति भणन्तो एणिजङ्घलक्खणं विमुत्तिक्खन्धं सारम्भं मानं चेव सुखुमत्थरणादिदानञ्च उहित्वा : केन अभिनिपुणा मनुजा ति उब्बाधनाया ति पटिभोगियानी ति जानातू ति तिद्विदुगो एवं मे सुतन्ति घनकोटियो अस्थि तस्मा पातो व पापं कम्मं करोती ति चेव भोगा भरिया पि बाहि मित्तामच्चानं परिभूतो 60 ८६ 3 3 3 3 0 ८७ ८७ ८८ ८९ ९० ९१ ९१ ९२ ९३ ९४ ९५ ९५ ९६ ९७ ९८ ९९ १०० १०१ १०२ १०३ १०४ १०५ १०६ १०७ १०८ १०९ ११० ११० ११२ ११२ ११३ ११४ ११५ ११६ ११७ 5 m 2 wa aa aa a a ३ २५ १६ १० १० १८ २१ १६ १० ४ २३ २० १७ १० १० १३ ९ ७ ९ ४ ४ ६ ४ २ १ १ २२ १ १६ २२ १९ १९ १८ १५ Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संदर्भ-सूची [६१] ९४८ ९४९ ९५० ९५१ ९५२ ९५३ ११८ ११९ १२० १२१ १२२ १२३ ९५४ १२३ १२४ ९५५ ९५६ १२५ ९५७ १२६ १२७ ९५८ ९५९ १२७ १२९ ९६० ९६१ ९६२ १२९ १३० १३१ १३२ ९६३ ९६४ अत्थेसु जातेसू ति भयस्स किच्चं करोती पमत्तस्स सापतेय्यन्ति वा इस्सरियापटिलाभं तस्मा एवं आपदासु पि कुलवंसं सम्मापटिपन्नेसु सब्बदिसासु रक्खं दक्खा च होती मयं किञ्चि सण्हो ति पिण्डाय पाविसि एवं मे सुतन्ति को मे वन्दति समणकप्पेहि फलं सब्बे. मारसेनप्पमद्दना जानन्ति । किन्ति मणिमयं, पच्छिमपस्सं किरेत्थ जानपदो उपपरिक्खमाना कुलीरका ति चण्डा ति भिक्खुसझे गारवेन एवं मे सुतन्ति किर सन्थागारे पदुमवनं अनुविलोकेत्वा ति अम्हाकं सत्यारा किं पञ्च आहारा भिक्खुना : अस्थि खो नामेन्ति । निब्बानं पापमित्तता ति पच्चवेक्खनेसु लज्जी कुक्कुच्चको विनयट्ठकथाय समथो समाधि • ง * * * * * * * * * * * * * ง 9 * * * * * * * * ९६५ १३३ १३४ ९६६ ९६७ ९६८ ९६९ ९७० ९७१ १३५ १३६ १३६ १३७ १३९ १३९ १४० १४१ १४२ १४३ ९७२ ९७३ ९७४ ९७५ ९७६ ९७७ १४४ ९७८ ९७९ ९८० १४५ १४६ १४७ १४८ १४९ * * * ง เซ ९८१ ९८२ ९८३ १५० Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा १५० ९८४ ९८५ १५१ ९८६ ९८७ ९८८ ९८९ ९९० ९९१ ९९२ १५२ १५३ १५४ १५५ १५६ १५७ १५८ १५९ १५९ १६० ९९३ ९९४ ९९५ ९९६ ९९७ १६२ १६३ ९९८ ९९९ १६४ कम्मस्सकतं आणं अधिमुत्ति नाम चेतनासम्पयुत्तधम्मा अकुसला कामधातू ते भूमका धम्मा पुरिमा भिक्खवे विपरियेसगाहो ति, एतं मानं सक्काय समुदयो ति जानाति तथा वस्सं अनुबन्धित्वा आहुनं अरहन्ति चतुब्मि अत्थज्झगमा दक्खिणेय्यअग्गी ति उप्पज्जति चेतना थेरतिके अनुमोदनवसेन अत्तनो रूपं चिन्तामयादिसु अयं मंसचखं किलेसानं अभावा मनोमोनेय्यं अकरणं अत्ताधिपतेय्यं सोपो । वित्थारो वुत्ता सञादयो उप्पन्नं कामवितक्कं एत्थ च चीवरं सदिसेन भवितब्ब यथा लढेन नीलकद्दमकाळसामेसु इतरीतरचीवरसन्तुट्ठियाति अचिन्तेत्वा सेनासनखेत्तं १६५ १६६ १६७ १६७ १००० १००१ १००२ १००३ १००४ १००५ १००६ १००७ १००८ १००९ १०१० १०११ १०१२ १०१३ १०१४ १०१५ १०१६ १०१७ १०१८ १०१९ १६८ १६९ १७० १७१ १७२ १७३ १७४ १७५ १७६ १७७ १७८ १७९ १८१ वुत्तनयेनेव एवं पटिसम्मिदामग्गे ति, एवं परवम्भनं १८२ १८३ १८४ Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संदर्भ-सूची [६३] १८५ १०२० १०२१ १०२२ १०२३ १०२४ १०२५ १०२६ १८५ १८६ १८७ १८८ १८९ १९० 420200 १०२७ १०२८ १९१ १९२ १९३ १९४ १९५ १९६ १९६ १९७ १०२९ १०३० १०३१ १०३२ १०३३ १०३४ १०३५ १०३६ १०३७ १०३८ १०३९ १०४० १९८ १९९ २०० आणञ्च यथाह अवेच्चप्पसादेना ति धम्मपदानी ति समापत्तिविस्खम्भिते गन्थनवसेन पटिग्गाहकतो समणपदुमो नाम समन्नागतो भिक्खु व्यसनं भोगव्यसनं अरियसावकानं उपहच्चपरिनिब्बायी चत्तारो फलट्ठा न सन्तिद्रुती ति धम्म पटिसंवेदिनो बाहिरानी ति सोमनस्सूपविचारा ति मायावी ति अनुत्तरियानी ति अभिजातियो ति समाधिपरिक्खारा ति वत्वा, येहि सीलविपत्तिया सम्मुखाविनयेन आपत्तिं आपन्नो ति अनधिगतस्सा ति तस्सेव इमेसु पन अट्ठसु लढुं ? परो नाम सुब्बचो होती ति अधो ति हेट्ठा सीलादिगुणसम्पन्ने वा सङ्घारारम्मणो वा अव्यापादे पि एसेव रागो मे पहीणो ति एवं मे सुतन्ति भगवा अहं तुम्हाकं करोन्तो भिक्खूनं २०१ २०२ २०३ १०४१ २०४ २०५ २०६ २०७ w MMM 2022 v muw w or » m4mM २०८ १०४२ १०४३ १०४४ १०४५ १०४६ १०४७ १०४८ १०४९ १०५० १०५१ १०५२ १०५३ १०५४ १०५५ २०९ २१० २११ २१२ २१३ २१४ २१५ २१७ २१७ २१८ Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा २२० २२१ २२२ २२३ १०५६ १०५७ १०५८ १०५९ १०६० १०६१ १०६२ १०६३ १०६४ संयुत्तनिकाये अप्पमादवग्गे अकुप्पा चेतोविमुत्ती उप्पादेतब्बपदे पटिरूपदेसे उपनेति पच्छिमस्स पच्छिमस्स तरुणसमथ विपस्सनापाय सङ्गणिकारामस्सा ति वेदनानानत्तन्ति चतुसु मग्गेसु २२५ 800 6.26. २२६ २२७ ૨૨૮ २२८ Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ May the merits and virtues earned by the donors and selfless workers of Vipassana Research Institute, Igatpuri be shared by all beings. May all those who come in contact with the Buddha Dhamma through this meritorious deed put the Dhamma into practice and attain the best fruits of the Dhamma. Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ DEDICATION OF MERIT ****0BN*******-NG******* May the merit and virtue accrued from this work adorn the Buddha's Pure Land, repay the four great kindnesses above, and relieve the suffering of those on the three paths below. May those who see or hear of these efforts generate Bodhi-mind, spend their lives devoted to the Buddha Dharma, and finally be reborn together in the Land of Ultimate Bliss Homage to Amita Buddha! NAMO AMITABHA Printed and Donated for free distribution by The Corporate Body of the Buddha Educational Foundation 11th Floor, 55 Hang Chow South Road Sec 1, Taipei, Taiwan RO.C. Tel: 886-2-23951198 , Fax: 886-2-23913415 Email: overseas@budaedu.org.tw Printed in Taiwan 1998, 1200 copies IN046-2006 Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ cer ಚಲ ಪಕ್ಷಗಳು ಮಾಡಿ ತಿನ ಇತರ ವರ್ಣದ . . . .ಲ, ಸಾಗರ ನೋಟು ಮುರ್ದ , ಬs a si seಂತ ಕಾಯ್ಕ , ಗಾಯ 25, 21 111045-2005 ದನ - 2... -