Book Title: Life ho to Aisi
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री चन्द्रप्रभ लाइफ़ हो तो ऐसी! जो ले जाए 100% कामयाबी की ओर SHRI CHANDRAPRASH For एक किताब में सारे समाधान Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ EVOLVE WITH NATURALLY For Personal & Private Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री चन्द्रप्रभ लाइफ़ हो तो ऐसी! जो ले जाए 100% कामयाबी की ओर For Personal & Private Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लाइफ़ हो तो ऐसी ! श्री चन्द्रप्रभ प्रकाशन वर्ष : जनवरी 2012 प्रकाशक : श्री जितयशा श्री फाउंडेशन बी-7, अनुकम्पा द्वितीय, एम. आई. रोड, जयपुर (राज.) आशीष : गणिवर श्री महिमाप्रभ सागर जी म. मुद्रक : बबलू ऑफसेट, जोधपुर मूल्य : 50/ For Personal & Private Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री चन्द्रप्रभ लाइफ हो तो ऐसी। | एक किताब में सारे समाधान २ । एक किताब में सारे समाधान एक किताब में सारे समाधान दूसरों का मैनेजमेंट करना किसी भी समझदार व्यक्ति के लिए आसान काम है, पर खुद अपनी ही जिंदगी का मैनेजमेंट करना इंसान के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है । रोजमर्रा की जिंदगी में चिंता, क्रोध और तनाव जैसी ढेर सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ऐसी परिस्थिति में हममें से हर किसी को चाहिए एक ऐसी किताब जिसमें हमारी हर समस्या के सारे समाधान हमें मिल जाएँ । महान जीवन-दृष्टा पूज्य श्री चन्द्रप्रभ ने इस अनूठी किताब में शानदार जीवन के दमदार नुस्खे देकर न केवल हमें हमारी जूझती जिंदगी से बाहर निकलने का रास्ता दिखाया है, अपितु हमें हमारी वास्तविक शांति और contd..... For Personal & Private Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री चन्द्रप्रभ लाइफ हो तो ऐसी। जो eamesh एक किताब में सारे समाधान emmmmmmmmmm सफलता का स्वाद भी दिया है । इस किताब में जहाँ जिंदगी की खुशियाँ बटोरने के गुर बताए गए हैं, वहीं मन को मजबूत करके किस्मत को मुट्ठी में लेने का राज भी बताया है । जीवन-प्रबंधन का रास्ता दिखाते हुए कैरियर और सफलता के सीधे सोपान दर्शाए हैं, वहीं हमें हमारे जीवन से ही धर्म की शुरुआत करने की प्रेरणा दी है । निश्चित तौर पर यह पुस्तक आपके लिए एक गुरु का काम करेगी, जो देगी आपको 100% सफलता की सीढ़ियाँ । प्रकाश दफ्तरी For Personal & Private Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंदर क्या है... 9-17 18-30 31-44 45-55 1. कैसे जिएँ चिंतामुक्त जीवन 2. कैसे करें क्रोध को काबू 3. मुस्कान लाएँ, तनाव हटाएँ 4. कैसे साधे जीवन में शांति 5. क्या स्वाद है जिंदगी का 6. मन मजबूत तो किस्मत मुट्ठी में ___सीखिए लाइफ मैनेजमेंट के गुर 8. कैसे बनाएँ व्यवहार को बेहतर 9. सफलता के 6 स्टेप्स 10. 90% समस्याओं का तोड़ 10% सकारात्मकता 11. खुद से ही कीजिए धर्म की शुरुआत 56-68 69-84 85-98 99-107 108-117 118-130 131-143 For Personal & Private Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FINE ART AT BLESS LAP For Personal & Private Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 9924 कैसे जिएँ चिंतामुक्त जीवन जीओ शान से शुरुआत मुस्कान से - हमारे जीवन के दो प्रबल शत्रु • क्रोध और चिंता । ये दोनों भाई-बहिन की तरह हमारे साथ रहते हैं। जिनके जीवन में क्रोध और चिंता नहीं हैं उनका दिन तो चैन से बीतता ही है उनकी रातें भी मंगलमय होती हैं। क्रोध से जहाँ व्यक्ति अपने आपे में नहीं रहता, उसके स्वास्थ्य पर बुरा असर होता है और आपसी रिश्तों में खटास आती है वहीं चिंता मानसिक संतुलन को आघात पहुँचाती है, स्वभाव को चिड़चिड़ा बनाती है, व्यापार और व्यवसाय को प्रभावित करती है, मानसिक शांति और केरियर दोनों ही क्षतिग्रस्त होते हैं । क्रोध से तो दूसरों पर बुरा असर अधिक होता है लेकिन चिंता से स्वयं पर ही घातक प्रभाव पड़ता है। क्रोध से शांति का नाश होता है तो चिंता से सौन्दर्य का । क्रोध से विवेक का विनाश होता है तो चिंता से मनोबल का । कुल मिलाकर ये दोनों ही हमारे दिलोदिमाग़ के दुश्मन हैं, रोगों के जनक हैं। I For Personal & Private Use Only LIFE 9. Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वैसे सभी को कभी-न-कभी क्रोध भी आता है और चिंता भी सताती है। ये दोनों ऐसे रोग हैं जो न केवल धार्मिक को बल्कि नास्तिक को भी परेशान करते हैं। धर्म अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन चिंता और क्रोध मनुष्य मात्र को होते हैं। छाया की तरह चिंता और क्रोध व्यक्ति के साथ लगे रहते हैं । सास को बहू की, बहू को सास की, पति को पत्नी की, पत्नी को पति की, पिता को पुत्र की, पुत्र को पिता की चिंता किसीन-किसी रूप में लगी रहती है। बच्चे के जन्म के साथ ही माता-पिता की चिंता शुरू हो जाती है। बच्चा थोड़ा-सा बड़ा हुआ कि स्कूल भेजने की चिंता, स्कूल जाने लगे तो पढ़ाई की चिंता, पढ़ने लगे तो परीक्षा की चिंता, परीक्षा हो जाए तो परीक्षाफल की चिंता। बच्चा थोड़ा-सा बड़ा हो जाए तो क्या विषय लेकर आगे पढ़ना है, किस कॉलेज में एडमीशन लेना है इसकी चिंता । मनपसंद विषय मिल जाए तो फीस की, छात्रवृत्ति की चिंता। कॉलेज की शिक्षा पूर्ण हो जाए तो केरियर बनाने की चिंता, नौकरी की चिंता। नौकरी मिल जाए तो शादी की चिंता, शादी हो गई तो बच्चों की चिंता यानी चिंता का चक्र अनवरत गति से चलता रहता है। सड़क पर चले तो स्कूटर पाने की चिंता, कार पाने की चिंता, चिंताओं का जाल फैलता चला जाता है । बुढ़ापा आने पर बच्चे सेवा करेंगे या नहीं और मरने पर स्वर्ग मिलेगा या नरक, इसकी चिंता भी सताती रहती है। इस मुगालते में न रहें कि आप पत्नी या पति के साथ जी रहे हैं, आप सिर्फ क्रोध और चिंता के साथ जीते हैं वही आपका पति या पत्नी है। आप स्वयं अपनी ओर देखिए और अपना मूल्यांकन कीजिए कि किस तरह आपको चिंता सताती है। चिंता का पहला दुष्प्रभाव व्यक्ति के मन और सेहत पर होता है। मनुष्य का दिमाग़ उसके जीवन की सबसे बड़ी पूँजी है। लेकिन चिंताओं के बढ़ने के साथ तनाव बढ़ता है और मन अस्थिर होता चला जाता है। जिसके जीवन में तनाव ने अपना स्थान बना लिया है उसका मन उस मिट्टी की तरह हो जाता है जो तालाब का पानी सूख जाने पर मिट्टी का होता है । गर्भवती स्त्री यदि चिंतित रहे तो गर्भस्थ शिशु में खून की कमी हो जाएगी। चिंता से व्यक्ति की स्मरण-शक्ति प्रभावित होती है, नेत्र-ज्योति क्रमश: कम हो जाएगी, स्वादग्रंथि की क्रियाशीलता कम हो जाएगी, उसके बोलने के तरीके पर प्रभाव पड़ेगा, बोलने में असम्बद्धता आएगी।गले में हमेशा खरास बनी रहेगी। चिंता के कारण ब्रेन हेमरेज हो सकता है, चिंता से स्वास्थ्य के साथसाथ व्यापार-व्यवसाय, परिवार-समाज में आपसी संबंधों पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है। इसीलिए व्यक्ति को चाहिए कि वह सबसे पहले अपने क्रोध और चिंता पर विजय प्राप्त करे। जो क्रोध और चिंता से लड़ना नही जानते, जिन्हें इन पर विजय प्राप्त करने की कला नहीं आती, वे अकाल-मृत्यु के शिकार बनते हैं। ___ भगवान महावीर ने ध्यान के चार रूप कहे थे - आर्त-ध्यान, रौद्र-ध्यान, धर्म-ध्यान और शुक्लध्यान। जो व्यक्ति लगातार चिंता से घिरा रहता है वह आर्त-ध्यान का शिकार होता है और जो सतत क्रोध करता रहता है वह रौद्र-ध्यान में मशगूल रहता है। लेकिन जो चिंता की बजाय चिंतन करता है वह धर्म-ध्यान का अनुयायी होता है, पर जिसके मन में न चिंता है और न ही चिंतन, जो चित्त की हर उठा-पटक से मुक्त होता है वह शुक्ल ध्यान का अधिकारी होता है । आर्त और रौद्र ध्यान से घिरा व्यक्ति जीवन भर इन्हीं के चक्रव्यूह में 10 For Personal & Private Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फँसा रहता है। बाहर से तो लगता है कि वह मंदिर जा रहा है, सामायिक कर रहा है लेकिन पता नहीं चित्त में कितनी उधेड़बुन चलती रहती है। न तो दान देने से स्वर्ग मिलता है और न ही चोरी करने से नरक, बल्कि अपने मन के शुभ और अशुभ परिणामों के अनुसार व्यक्ति स्वर्ग या नरक का अधिकारी बनता है। हम सभी अपने मन को देखें कि वहाँ कैसी उधेड़बुन चल रही है। चिंता घुन है और चिंतन धुन । जैसे घुन गेहूँ को भीतर-ही-भीतर खोखला कर देती है, वैसे ही चिंता जिसे लग जाती है वह उसे चिता के रास्ते ले जाती है। चिंता और चिता में मात्र एक बिंदी का फ़र्क है लेकिन चिता तो एक बार ही जलाती है और चिंता जीवनभर जलाती रहती है। एक बार मरना आसान है लेकिन रोज़-रोज़ का मरना और जलना व्यक्ति के लिए आत्मघातक है। कोई भूतकाल की बातों को लेकर चिंतित है तो किसी को भविष्य की बातों की चिंता है। चिंता से उबरना है तो अपने वर्तमान-जीवन के मालिक बनिए, इसी का आनंद लीजिए। जो बीत गया सो बीत गया। क्या आप बीते हुए समय को लौटा सकते हैं? हाँ, और जो आया नहीं है उसके लिए भी कैसी चिंता! जो कल दिखाएगा वह उसकी व्यवस्था भी देगा। जिसने चोंच दी है वह चुग्गा भी देगा। जिसे न किसी बात की चिंता है, न किसी बात की चाह और न किसी बात का डर है उसे ही रात में चैन की नींद आएगी। वह सहज जीएगा और सहज सोएगा। कहते हैं: चाह गई चिंता मिटी, मनवा बेपरवाह । जिनको कछु न चाहिए, ते शाहन के शाह ॥ जिसकी कोई तलब नहीं, तड़फ नहीं, लालसा नहीं, वही तो जीवन का बादशाह है। जो आया नहीं उसके बारे में क्या सोचना? जब आएगा, तब सोचेंगे, सामना करेंगे। लोग प्रायः मुझसे पूछते हैं, 'आपको चिंता नहीं सताती।' तब मैं कहा करता हूँ – “चिंता सताती थी, लेकिन जब से जीवन की समझ विकसित हुई, जीवन की समझ मिली तब से चिंता गायब हो गई।' और यही समझ अगर आप अपने जीवन से जोड़ लें तो आपके पास से भी चिंता का टेम्प्रेचर डाउन हो सकता है। सौ प्रतिशत नहीं तो अस्सी प्रतिशत तो आप चिंताओं से मुक्त हो ही सकते हैं। आप जानते हैं बच्चा बाद में जन्मता है उसके पहले माँ का आँचल दूध से भर जाता है। वह विधाता सारी व्यवस्थाएँ करता है। आप कल के लिए बहुत-सा जमा करके रखते हो, लेकिन अगर उसने कल ही न दिया तो! उसे अगर कल देना होगा तो कल की व्यवस्था भी देगा। मेरे परिचित एक सरकारी अधिकारी हैं, उनकी सेवा-निवृत्ति छह माह बाद होने वाली थी। इसी बीच दीपावली आ गई, चूँकि बड़े अधिकारी थे, सो हर वर्ष की तरह इस बार भी उन्हें लोगों ने उपहार और मिठाइयाँ दी थीं। वे खाना खा रहे थे, उनकी निगाहें उपहार और मिठाइयों के ढेर पर गई और अचानक उदास हो गए। पत्नी ने उदासी का कारण पूछा तो कहने लगे कि अभी तो वह अफसर हैं लेकिन अगली दीपावली के पहले ही रिटायर हो जाएँगे तब भी क्या लोग इसी तरह मिठाइयाँ और CTFEA 11 For Personal & Private Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपहार देंगे? ऐसी चिंता करना व्यर्थ है, जो भविष्य की चिंता में वर्तमान को नष्ट कर देता है वह मूर्ख ही होता है। आप आज जो है उसका आनन्द लीजिए। आज इंसान के पास पहनने को तो डायमंड सेट है, बैठने को सोफासेट है, देखने को टी.वी. सेट है, पर माइंड अपसेट है । दिमाग़ में चिंता का महाभारत चल ही रहा है। वह निराश और हताश ज़्यादा है। थोड़ा-सा भी नुकसान वह बरदाश्त नहीं कर पाता। उसकी बजाय जो खो गया, उसकी चिंता न करें। जो है, उसका आनंद लें। अरे, अगर दो दाँत टूट भी गए, तो क्या हुआ, तीस तो बाकी हैं। दो अंगुली कट गई तो क्या हुआ? आठ तो बाकी हैं। दो की याद में शेष को दरकिनार करना बाकियों का अपमान है। चिंता की वजह क्या? ज़्यादा पैसा, जल्दी पैसा, किसी भी ज़रिये से पैसा । यही है दुःख और चिंता का । ज़्यादा हाय-हाय मत करो। शांति से जिओ। कमाई करो, पर गलाई मत करो। चिंता अगर करनी ही तो ख़ुद के कल्याण की करो। प्रभु-भक्ति की चिंता करो, धर्म-आराधना की चिंता करो। बच्चों की ज़्यादा चिंता मत करो। बीवी की ज़्यादा चिंता मत करो। वे कोई लंगड़े-लूले नहीं है, जो हम उनके लिए ऐसी-वैसी चिंता करते रहें। हमसे बीबी-बच्चों की जो सेवा सहज में बन जाए, कर लो, बाकी मस्त रहो। चिंता को कम करने के लिए हमे चार प्रश्नों पर विचार करना चाहिए - 1. समस्या क्या है ? 2. समस्या की वजह क्या है? 3. समस्या के सभी संभावित साधन क्या है ? 4. समस्या का सर्वोत्तम समाधान क्या है ? ये वे चार प्रश्न हैं, जिन पर चिंतन करने से चिंता को कम या दूर किया जा सकता है। वैसे कई दफ़ा सूर्य भी बादलों से ढंक जाता है। बड़ों को भी कई दफ़ा संकट से गुज़रना पड़ता है। विश्वास रखिए, प्रभु आपके साथ है। कहते हैं ताओ का एक शिष्य था - चुअंगत्सी। एक बार उसकी पत्नी मर गई। हुइत्से मिलने गया। जब वह मिलने गया तो वह गीत भी गा रहा था और अपना बाजा भी बजा रहा था। लोगों ने उससे पूछा – शोक की वेला में यह गाना-बजाना कैसा? हुइत्से ने कहा - ऋतुओं की तरह चोला बदल जाता है। इसमें रोना-धोना कैसा? जीवन की यह दृष्टि ही शांति और मुक्ति की दृष्टि है। जो हो गया वह होना ही हुआ। होनी में कैसा हस्तक्षेप! हमारी वज़ह से समस्या हुई है तो उसका समाधान कर लो, जो प्रभु-प्रदत्त है, प्रकृति और नियतिकृत है, उसक लिए रोना कैसा? चिंता कैसी? सहज रहो, मस्त रहो। मुस्कुरा कर जिनको ग़म का यूंट पीना आ गया, यह हक़ीक़त है, जहां में उनको जीना आ गया। ___ जिनको ग़म का चूंट पीना आता है उनकी छाती हमेशा छत्तीस इंच चौड़ी होती है। मज़बूत दिल के लोग कमज़ोर नहीं होते। उनका आत्मविश्वास बुलंद होता है। वे चिंता नहीं करते। चिंता की वज़ह को समझते हैं और उसका सामना करते हैं । वे चिंतन करते हैं, चिंतन की चेतना को उपलब्ध होते हैं। LIFE 12 For Personal & Private Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मैं चिंतामुक्त होने के कुछ सूत्र सुझाव के रूप में दे रहा हूँ, जिन्हें अपनाकर आप और हम अवश्य ही चिंतामुक्त हो सकते हैं — - पहली बात कहूँगा • सहज जीवन जियें । न तो कुटिल, न कृत्रिम और न आरोपित जीवन जीने का प्रयास करें - सहज मिले सो दूध सम, माँगा मिले सो पानी, कह कबीर वह रक्त सम, जामे खींचातानी । जो सहज में मिलता है वह दूध के समान श्रेष्ठ है । माँगने से अगर दूध मिले तो वह पानी के समान है, पर जो कलह करके, मनमुटाव करके, ज़बरदस्ती हासिल किया जाए वह तो रक्त के समान ही है। सहज में जो मिल गया वह आनन्द भाव से प्रेमपूर्वक स्वीकार कर लें। मुझे कोई बता रहा था कि उनकी दुकान के सामने ही एक अन्य दुकानदार है जिसकी किसी दिन कम ग्राहकी होती है तो उस दिन बहुत खीजता हुआ रात में शटर गिराता है । मैं सोचता हूँ जिस दिन अधिक कमाया उस दिन तो प्रसन्न नहीं होता। बस कम कमाया उसकी चिंता में नींद ज़रूर ख़राब कर लेता है । अरे भाई, हानि का ही सोचते रहोगे तो लाभ का आनन्द नहीं उठा सकोगे। जो लाभ का आनन्द उठा सकता है वह होने वाली हानि के लिए अधिक चिंता नहीं करता । वह सोचेगा घाटा लग गया, तो क्या कमाई भी तो इसी से हो रही है। ऐसा व्यक्ति सहज जीवन जी सकेगा । - प्रकृति- प्रदत्त देह को अनावश्यक कृत्रिम रूप से शृंगारित न करें। इससे आपकी त्वचा, नख, बाल, चेहरा ख़राब होता है सहज रहें। खानपान पर भी ध्यान रखें। समय से खायें - पियें। यह क्या कि देर रात तक खा रहे हैं, मटर गश्ती कर रहे हैं। ऐसा करके आप स्वयं को नुकसान पहुँचा रहे हैं । दिन-रात भागमभाग में न लगे रहें। आप अधिक जमा कर भी लेंगे तो क्या ? भाग्य से अधिक आपके पास टिकेगा नहीं । - अपना सहज दशरथ के भाग्य में संतान नहीं थी । लेकिन ज़िद पकड़ ली कि यज्ञ करके ही सही, संतान अवश्य प्राप्त करूँगा। यज्ञ किया, संतान भी हो गई, लेकिन उन्हें कभी भी संतान का सुख प्राप्त न हो सका । हमारे परिचय में एक सुश्राविका है। हमसे स्नेह रखती हैं, आदर भी करती हैं। उन्हें विवाह के पश्चात् सुदीर्घ समय तक संतान-प्राप्ति नहीं हुई। वे हमसे बस एक ही बात कहतीं कि उन्हें संतान हो जाए ऐसा ही आशीर्वाद चाहिए।उन्हें अन्तत: पुत्र हुआ और वह बड़ा होने लगा। चौदह वर्ष का हो गया और उसे डेगूं बुखार हो गया। तबियत ज्यादा बिगड़ी, उसे दिल्ली ले जाया गया और कुछ समय बाद समाचार आया कि अस्पताल में उसका देहान्त हो गया। मुझे उस समय केवल एक ही विचार आया कि जिस चीज़ को भगवान नहीं देना चाहता उसे तुम किसी तरह प्राप्त भी कर लो तो भी उसका सुख तुम्हें नहीं मिल सकता। इसलिए सहज में जो For Personal & Private Use Only LIFE 13 Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मिल जाए उसमें आनन्द और न मिले तो भी ग़म नहीं। प्राप्त हो जाए तो भी प्रसन्न और प्राप्त न हो तो भी प्रसन्न । जिसमें इस तरह जीने की कला आ गई वही चिंतामुक्त और निश्चित जीवन जी सकता है। सम्मान मिले तो ठीक और कोई अपमान दे दे तो उसे अपने सम्मान की कसौटी समझिये। विपरीत वातावरण में आप अपने चित्त की सहजता को बनाए रखने में सफल हो जाते हैं तो यही आपके जीवन की वास्तविक सफलता है। अगर आप स्वयं को शांत और स्थिर चित्त समझते हैं तो मैं चाहूँगा कि कभी-कभी आपके साथ ऐसा घटित होता रहे जिससे आपकी शांति, समता, सहजता और समरसता की कसौटी होती रहे। ऐसा हआ. एक संत हए भीखणजी। वे प्रवचन कर रहे थे कि भीड में से एक युवक खडा हुआ, उनके पास आया और उनके सिर पर दो-चार ठोले मार दिए। सारे लोग हक्के-बक्के रह गए।युवक को पकड़ लिया और पीटने को उद्यत हो गए। भीखणजी ने कहा – उसे छोड़ दो। लोगों ने कहा – यह आप क्या कह रहे हैं? भीखणजी ने कहा - जो हो गया सो हो गया, आप लोग उसे छोड़ दें। भीड़ ने कहा – 'अरे, इसने आपको पीटा है, हम इसे सबक सिखाकर रहेंगे।' तब उन्होंने कहा – इसने मेरी पिटाई नहीं की थी, यह तो मेरा शिष्य बनने आया था और ठोंक बजाकर परख रहा था कि यह आदमी गुरु बनाने लायक है भी या नहीं। अरे, बाजार में चार आने की हंडिया लेने जाते हैं तो उसे भी ठोक-बजाकर देखा जाता है कि काम की है या नहीं। और जब गुरु बनाना है तो यह साधारण काम नहीं है, जीवन भर की बात है। इसने मेरी केवल परख भर की है। ___ यह कसौटी है। संत की कसौटी समता की कसौटी, शांति की कसौटी, सकारात्मकता की कसौटी। जो कसौटी में ख़रा उतरा, वही ख़रा । बाकी सब सान्त्वना पुरस्कार भर है। __चिंतामुक्त जीवन जीने के लिए दूसरी बात है - प्रकृति और परमात्मा की व्यवस्थाओं में विश्वास रखिये। व्यक्ति के किए ही सब कुछ नहीं होता। प्रकृति भी कुछ व्यवस्थाएँ करती है और प्रकृति का धर्म है परिवर्तनशीलता। यहाँ ऋतुएँ बदलती हैं, मौसम बदलते हैं, दिन-रात बदलते हैं, हानि-लाभ बदलते हैं। संयोग-वियोग बदलते हैं, जनम-मरण बदलते हैं। दुनिया में कुछ भी ऐसा नहीं है जो नहीं बदलता। कलकत्ता में एक प्रसिद्ध मंदिर है। वह मंदिर कलकत्ता के दर्शनीय स्थलों में से एक है। उसका निर्माता एक अरबपति व्यक्ति था। उसमें सभी चीजें आयातित वस्तुओं से निर्मित हैं। उसके बारे में कहा जाता है कि जब वह न्यायालय में किसी मुकदमे के सिलसिले में जाता तो वकीलों को फीस के बतौर हीरे देता था और कहता अपनी फीस लेकर बाकी बचे हीरे उसके घर पहुंचा देना। आज उसकी पाँचवीं-छठी पीढ़ी के लोग उस मंदिर के फोटो बेचकर अपना जीवन-यापन कर रहे हैं। यह सब परिवर्तनशीलता का परिणाम है। मैंने यह भी देखा है कि जो व्यक्ति प्रतिमाह बमुश्किल पाँच सौ रुपये कमाता था वह आज देश का महान् उद्योगपति है । वह उद्योगपति धीरूभाई अंबानी के नाम से जाना जाता है। जी.डी. बिरला अल्पशिक्षित थे, लेकिन देश के सर्वोच्च उद्योगपति बन गए। जो कल ग़रीब था आज अमीर हो जाता है। प्रकृति सबको LIFE For Personal & Private Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देती है और सबका परिवर्तन करती है। इसीलिए प्रकृति और परमात्मा में विश्वास रखिए कि वह वही करता जो उसे करना होता है। लाभ मिला उसकी कृपा, हानि हो गई उसकी कृपा क्योंकि इसमें भी उसकी कोईन-कोई व्यवस्था है । हम नहीं जानते प्रभु हमसे क्या चाहते हैं, क्या कहना और क्या करना चाहते हैं ? ऊपर वाले के पासों को हम नहीं समझ सकते। हम केवल शिकवा और शिकायते करते रहते हैं। एक बार बादशाह अकबर राजसभा में बैठे हुए थे कि ब आज बहुत बुरा हो गया, मैं सुबह आम और तरबूज काट रहा था कि अँगुली में चाकू लग गया और ख़ून निकल गया, अरे अँगुली ही कट गई। दरबारियों ने कहा बहुत ही बुरा हो गया, महाराज! बीरबल चुप ही रहा तो अकबर ने पूछा बीरबल, तुमने कुछ नहीं कहा। बीरबल ने कहा महाराज, मैं क्या कहूँ? मैं तो इतना ही जानता हूँ कि जो होता है अच्छे के लिए होता है । बादशाह ने कहा क्या ? यहाँ तो मेरी अँगुली कट गई, दर्द के मारे छटपटा रहा हूँ और तुम कह रहे हो यह अच्छे के लिए हुआ, 'महाराज, मैं इस बारे में क्या कहूँ, मैंने तो अभी तक यही जाना है कि जो होता है अच्छे के लिए होता है,' बीरबल ने कहा। सम्राट क्रोधित हो गया और उसे कारागार में डालने का हुक्म दे दिया । — सुख-दुःख दोनों रहते जिसमें, जीवन है वो गाँव । कभी धूप तो कभी छाँव । कभी सुख तो कभी दुःख ! — - - कुछ दिन बीत गए । अकबर अपने अंगरक्षकों के साथ शिकार पर गया । वह अपने साथियों से आगे निकल गया कि वहाँ उसे आदिवासियों ने घेर लिया और पकड़कर अपने राजपुरोहित के पास ले गए क्योंकि उन्हें बत्तीस लक्षणों-युक्त किसी भद्र इंसान की बलि अपनी कुलदेवी के समक्ष देनी थी । राजपुरोहित ने अकबर का पूरा परीक्षण किया तो पता चला कि उसकी एक अँगुली कटी हुई है । राजपुरोहित ने आदिवासियों से कहा कि यह व्यक्ति बलि के योग्य नहीं है। क्योंकि इसकी एक अँगुली कटी हुई है। सम्राट को छोड़ दिया गया । बादशाह को याद आया कि बीरबल ने ठीक ही कहा था कि जो होता है अच्छे के लिए होता है । बादशाह वापस नगर में पहुँचा और बंदीगृह में कैद बीरबल को मुक्त कर दिया। लेकिन पूछा बीरबल, मेरे संदर्भ में तो यह अच्छा हुआ कि मेरी अँगुली कटी थी और मेरी बलि नहीं हो सकी। लेकिन मैंने जो तुझे क़ैदखाने में डाल दिया यह तुम्हारे लिए कैसे अच्छा हुआ ? बीरबल ने कहा- महाराज, यह तो बहुत ही अच्छा हुआ कि आपने मुझे कारागार में डाल दिया। वरना आप शिकार पर जाते हुए मुझे भी साथ में ले जाते और अँगुली कटी होने के कारण आप तो बच जाते, पर बलि का बकरा मैं बन जाता। - विपरीत स्थितियों के बनने पर आर्त और रौद्र-ध्यान न करें, बल्कि प्रकृति की व्यवस्था मानकर स्वीकार कर लीजिए। होनी होकर रहती है, अनहोनी कभी होती नहीं । याद रखिए - - जब जो जैसा होता है For Personal & Private Use Only — LIFE 15 Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तब वो वैसा होना होता है, तभी ऐसा हुआ करता है। इसलिए न तो किसी को श्रेय दीजिए, न ही उपालंभ दीजिए। बड़े-बड़े पंडित-पुरोहितों से जन्म-पत्री मिलवाकर आपने अपने लड़की की शादी की थी, लेकिन ढाई वर्ष के अनंतर वह विधवा हो गई। आप क्या कर सकते हैं ? क्योंकि ऐसा होना था, हुआ। एक बात और स्मरण रखें, जब कोई कार्य अपने किए पूरा नहीं हो पा रहा है तो उसे भी ईश्वर पर, वक़्त पर छोड़ दें। आपने अपनी ओर से पूरी कोशिश कर ली, अब उसे भगवान पर छोड़ दें। वह अपनी व्यवस्था के अनुरूप सब कुछ करेगा। एक वृद्ध महिला को ज्ञात हुआ कि उसे कैंसर हो गया है। डॉक्टरों ने कहा कि चार दिन बाद ऑपरेशन किया जाएगा। उसने अपने दोनों बच्चों को बुलाया। अपनी वसीयत तैयार की और बच्चों को बता दिया कि इतना धन बैंक में है और अमुक-अमुक स्थान पर मकान वगैरह हैं। बच्चों ने पूछा, 'मम्मी, आज अचानक आपको क्या हो गया?' उसने कहा, 'बेटा, जिंदगी का क्या भरोसा, कब तक रहूँ, इसलिए सारे काग़जात तैयार कर दिए।' बच्चों ने सोचा, जैसी मम्मी की मर्जी । वे लोग एक दिन रुके और वापस चले गए। चार दिन बाद वह महिला अस्पताल पहँच गई और डॉक्टर से कहा- ऑपरेशन कर दीजिए। डॉक्टर चकित हुआ। इतना बड़ा ऑपरेशन और परिवार का कोई व्यक्ति साथ नहीं। डॉक्टर ने कहा - आप अपने परिवार के सगे-संबंधी किसी को तो बुलवा लीजिए। उस महिला ने कहा - बुला लिया। डॉक्टर ने पूछा – किसे? उसने बताया-ऊपरवाले को। उसने कहा – डॉक्टर साहब, आप मेरे बेटे की तरह ही हैं, आप मेरे साथ हैं न ! आप ऑपरेशन कीजिए। डॉक्टर ने सोचा शायद इसका कोई रिश्तेदार नहीं है सो उसने अपने ऊपर ऑपरेशन की सारी जिम्मेदारी ले ली। महिला जब ऑपरेश थियेटर में जाने लगी तो उसने हाथ जोड़े, ईश्वर को याद किया और कहा – 'हे प्रभु! मैं अपने आपको तुम्हें समर्पित कर रही हूँ।' बताते हैं महिला का ऑपरेशन सफल रहा। पन्द्रह दिन बाद जब उसे अस्पताल से छुट्टी मिलने वाली थी तो डॉक्टर ने कहा-तम्हारा कोई दर का रिश्तेदार भी हो तो बता दो. उसे बलवा लेते हैं. वह आकर ले जाएगा। महिला ने कहा, दूर के रिश्तेदार की ज़रूरत नहीं है। मेरा अपना लड़का और लड़की हैं। डॉक्टर चौंका - तो तुमने ऑपरेशन से पहले उन्हें क्यों नहीं बुलाया। महिला ने कहा – उसकी ज़रूरत नहीं थी। खैर, दोनों बच्चों को बुलाया गया। जब उन्हें मालूम पड़ा कि माँ के स्तन कैंसर का ऑपरेशन हो चुका है, दोनों बहुत नाराज़ भी हुए। पर माँ ने कहा – बेटा, मैंने स्वयं को; तुम लोगों को नहीं, प्रभु को सुपुर्द किया था। तुम लोग मुझे बहुत प्रिय हो, लेकिन सचाई यह है कि तीस साल पहले जब तुम्हारा जन्म होने वाला था, मेरी हालत बहुत बिगड़ गई थी।डॉक्टर ने तुम्हारे पिता से कहा- माँ या बच्चा दोनों में से किसी एक को ही बचाया जा सकता है। तब तुम्हारे पिता ने काग़ज़ों की खानापूर्ति करते हुए कहा था जिसे भी बचा सकते हों बचा लें। और मैं ऑपरेशन थियेटर में ले जाई जा रही थी। बेटा, मुझे लगा अब भी एक सहारा बचा है और तब मैंने ईश्वर को याद किया और कहा – हे प्रभु! मैं स्वयं को तुम्हें समर्पित कर रही हूँ। मैं भी बच जाऊँ और मेरा बच्चा भी बच जाए। बेटा, तब ऊपर वाले के भरोसे तू भी बचा और मैं भी बची। तब भी ऊपरवाले LIFE 16 For Personal & Private Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ के भरोसे मैं बची और आज भी उसी ने जीवनदान दिया है। ऊपरवाले के हाथ हज़ार हैं, उसके नैन हज़ार हैं – वह किस रूप में आकर हमें थाम लेगा कहा नहीं जा सकता। चिंतामुक्त जीवन जीने का एक सरल मार्ग यह भी है कि-बीती ताहि बिसार दे। जो हो गया सो हो गया अब वह लौटकर आने वाला नहीं है। बीते का चिंतन न कर. छट गया जब तीर. अनहोनी होती नहीं. होती वह तक़दीर । अगर हमें याद रखना है तो अच्छी चीज़ों को याद रखें और बुरी चीज़ों को भूल जाएँ। __ भीतर आती साँस अच्छी यादों को अन्दर लेने की प्रेरणा देती है, बाहर निकलती साँस बुरी यादों को बाहर उलीचने का बोध देती है। साँस के साथ अच्छाइयों को अंदर लो, साँस के साथ बुराइयों को बाहर छोड़ो। मीरा तो विपरीत वातावरण के बावजूद चूँघरू बाँधकर नाच उठी, फिर हम ही क्यों बेड़ी बाँधकर बैठे रहें। बचपन में सुना हुआ वो गीत सदा अपने पल्ले बाँध लें - समझौता ग़मों से कर लो, ज़िंदगी में ग़म भी मिलते हैं। पतझड़ आते ही रहते हैं, कि मधुबन फिर भी खिलते हैं । समझौता ग़मों से कर लो... | ज़िंदगी में समझौतावादी नज़रिया होना चाहिए। प्रकृति की व्यवस्थाओं में राज़ी रहने की आदत होनी चाहिए। हम जैसा चाहते हैं, हमारी नियति हमें वैसा ही नहीं देती। तब फिर निराश होने की बजाय क्यों न जो नियति और प्रकृति हमें देती है, हम उसमें राज़ी होना सीख जाएँ। जीवन में शांति लाएँ, नई उम्मीद जगाएँ, नया उत्साह जगाएँ, नई ऊर्जा के साथ शांति, सफलता और मुक्ति के रास्ते पर अपना क़दम बढ़ाएँ। LIFE For Personal & Private Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कैसे करें क्रोध को काबू ICO RINISTERRRRRRRR क्रोध को जीत सबसे बढ़ेगी प्रीत प्रेम हमारे जीवन का सबसे सुखदायी मित्र है जबकि क्रोध हमारे जीवन का सबसे बड़ा शत्रु है। यह हमारी शांति को काटता है, हमारी सफलता का बाधक है और केरियर को समाप्त कर देता है। क्रोध का स्वास्थ्य पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है। क्रोध के कारण बुद्धि के दरवाज़े बंद हो जाते हैं और विवेक को जंग लग जाता है। व्यक्ति की वाक्-शक्ति को ग्रहण लग जाता है। वह भूल जाता है कि उसके बोलने का क्या विपरीत प्रभाव पड़ेगा। क्रोधी व्यक्ति को क्रोध में कुछ दिखाई नहीं देता और जब क्रोध की तासीर कम पड़ती है तब तक वह सब कुछ गँवा चुका होता है । क्रोध करने के बाद पछतावे के अलावा कुछ नहीं बचता। क्रोध के उन्माद में व्यक्ति आत्महत्या करने पर उतारू हो जाता है। कोध करते समय खून में ज़हर प्रकट हो जाता है। इसीलिए कहा जाता है कि माताओं को क्रुद्ध-अवस्था में बच्चों को अपनी छाती का दूध LIFE R For Personal & Private Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नहीं पिलाना चाहिए। एक औरत ने लड़ाई करते-करते क्रोध में ही अपने बच्चे को अपने स्तन का दूध पिलाया, आश्चर्य! थोड़ी देर बाद बच्चा मर गया । क्रोध का मनुष्य पर क्या प्रभाव पड़ता है, यह जांचने के लिए एक डॉक्टर ने क्रुद्ध मनुष्य के ख़ून का इंजेक्शन खरगोश को लगाया। आप आश्चर्य करेंगे, थोड़ी ही देर में खरगोश तड़फ-तड़फ कर मर गया। ऐसे लोगों से मेरा अनुरोध है कि शांत रहिए, शांत होने का प्रयास कीजिए और देखिए कि जो वह करने जा रहे हैं क्या वह उचित है। मैं तो लोगों के उफनते हुए दूध में चंद पानी के छींटे डालता हूँ कि क्रोध का यमराज ठंडा हो जाए। जीवन में मृत्यु तो एक दफ़ा ही आती है लेकिन क्रोध के रूप में यमदूत दिन-प्रतिदिन दस्तक देता है । मैंने सुना है यमराज भैंसे पर बैठकर आता है, लेकिन क्रोध के रूप में वह गधे पर बैठकर रोज़ाना हमारे द्वार पर आता है और आकर परिवार तोड़ता है, पिता-पुत्र के बीच झगड़ा करवाता है, सास-बहू के मध्य विवेक समाप्त करता है, ग्राहक और व्यापारी में दूरियाँ बढ़ा देता है। धार्मिक कर्म-बंधन की दृष्टि से देखा जाए तो यह कर्म और कषायों की सख्त बेड़ियों का निर्माण करता है। जिसने जीवन में क्रोध न करने का संकल्प ले लिया वह जीते-जी ही स्वर्ग में रहता है क्योंकि वैर के निमित्त उत्पन्न होने पर भी यदि वह क्रोध से दूर है तो कौन-सी ताक़त भाइयों को अलग कर पाएगी, कौन परिवार और समाज में दीवार खड़ी कर पाएगा ? क्रोधमुक्त व्यक्ति स्वर्ग में नहीं तो और कहाँ है ! तब सास-बहू के बीच झगड़ा नहीं होगा, देवरानी-जेठानी के मध्य तनाव नहीं रहेगा। फिर ऐसा इंसान सामायिक करे या न करे लेकिन उसके समताभाव के कारण वह सदा सामायिक में ही माना जाएगा। परिवार के टूटने का कारण धन-सम्पत्ति, ज़मीन-जायदाद नहीं होते हैं, कारण कहीं कुछ और होता है। या तो बड़ा भाई छोटे भाई की उपेक्षा कर रहा होता है, या छोटा बड़े का अपमान कर बैठता है। इस उपेक्षा और अपमान की प्रतिक्रिया स्वरूप ही क्रोध पैदा होगा और यही क्रोध परिवार में और समाज में बँटवारा करवा देगा। 1 आखिर क्यों ? क्योंकि क्रोध कभी अकेला नहीं आता। उसका भी अपना परिवार है और आपके चाहे अनचाहे वह भी सपरिवार आता है । क्या आप जानते हैं कि क्रोध की माँ है उपेक्षा बाई और पिता हैं घमंडीरामजी । जब उपेक्षा और घमंड आपस में मिलते हैं तो क्रोध या गुस्से का जन्म होता है। क्रोध की पत्नी है हिंसा और नफ़रत उसका मित्र है। यह निंदा और चुगली नामक अपनी बेटियों से बहुत प्यार करता है। इसने वैर और विरोध इन दोनों बेटों को ज़रूरत से ज़्यादा सिर चढ़ा रखा है। स्वार्थचंद नाम से उसका जंवाई भी है । अब इतना बड़ा परिवार है तो क्रोध भला अकेला कैसे आ सकता है ? अपने पूरे ख़ानदान को लेकर ही । जब आपने उसे निमंत्रण भेजा है तो सपरिवार ही आएगा न् ? अकेला आना उसे अच्छा नहीं लगता । सावधान ! जो एक पल के लिए भी क्रोध करता है वह अपने पूरे भविष्य को बिगाड़ लेता है। जो क्रोध आता For Personal & Private Use Only LIFE 19 Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ का गुलाम है उसका महीनों का तप और लाखों का दान भी व्यर्थ है, उसका नरक तो तय हो ही गया। इसलिए अपने जीवन का लक्ष्य रखिए शांति । शांति ही आपके जीवन का सुख है, परिवार का स्वर्ग है, समाज की ताक़त और संसार का सुकून है। आप अपने परिवार में शांति का वातावरण दीजिए, आपको भी शांति मिलेगी। सभी को शांति का सुकून दीजिए। अपने घर में एक तख्ती टांगिए। जिस पर लिखा हो – 'हे जीव ! शांत रह।' इसे ऐसे स्थान पर टांगिए जहाँ आपकी निगाह पड़े। दिन में पाँच-सात बार उसे देख लीजिए और चित्त में धरकर अनुपालना कीजिए। शांति आपके जीवन की ताक़त हो, दौलत हो, लक्ष्य हो। क्रोध तो आपके जीवन का माइनस है । क्रोध मन की शांति को खंडित करता है, तनाव को जन्म देता है, हंसी की हत्या करता है और ख़ुशी को ख़त्म।आप नहीं जानते कि आपका क्रोध आपके बच्चों तक का केरियर चौपट कर देता है। एक माँ अपने पुत्र के साथ मुझसे मिलने आई। मैंने लड़के से पूछा, 'बेटा, कौनसी क्लास में पढ़ते हो?' उसने बताया बारहवीं में । मुझे लगा कि यह तो उम्र से अधिक है और अभी बारहवीं में ही पढ़ रहा है। मैंने उससे यह बात पूछी तो माँ ने जवाब दिया कि पिछले वर्ष परीक्षा के दिनों में इसके पिताजी ने इसे डाँट दिया तो इसने परीक्षा देने से इंकार कर दिया। समझाने-बुझाने का भी इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा तो पिता ने चाँटा मार दिया। परीक्षा का समय हो रहा था और इसने खुद को कमरे में बंद कर लिया। हम बाहर से चिल्लाते रहे, पर इसने दरवाज़ा नहीं खोला, समय निकल गया और अब आज तक यह पछताता है कि मैंने गुस्सा क्यों किया, मेरा एक साल बिगड़ गया। अभी-अभी मेरा जोधपुर के कारागार में प्रवचन देने के लिए जाना हुआ।वहाँ ऐसे ही कैदियों के मध्य बैठा हुआ था। एक कैदी से पूछा, 'भाई, तुम्हें किस जुर्म में कैद हुई है?' वह रोने लगा, मैंने सांत्वना देकर पूछा, 'कुछ कहो तो सही।' उसने कहा, 'मेरे गुस्से के कारण मुझे ग्यारह साल की जेल हुई है।' मैंने कहा'मतलब?' तब उसने बताया कि उसे शराब पीने की आदत थी। पत्नी ने कई बारं समझाया लेकिन कछ हल न निकला। तब तय हुआ कि वह घर में शराब नहीं पिएगा। पीना ही है तो बाहर पिए । एक दफ़ा पत्नी कुछ दिनों के लिए मायके गई। उसने सोचा अब दस-पन्द्रह दिन तक तो पत्नी आने वाली है नहीं, सो घर में ही महफ़िल सजने लगी। एक दिन जब वह अपने दोस्तों के साथ बैठा शराब पी रहा था तो अचानक पत्नी आ धमकी। आते ही वह तमतमा उठी और उसने दोस्तों के सामने ही खरी-खोटी सुना दी। मुझे गुस्सा आ गया मैंने सामने पड़ा पेपरवेट उठाकर उसके दे मारा । पेपरवेट सिर में लगा, पत्नी के सिर से खून की धार बह निकली। वह घबराया, उसे लेकर डॉक्टर के यहाँ गया, पर अब उस देह में प्राण नहीं थे, वह मृत घोषित हो गई और हत्या के जुर्म में उसे ग्यारह वर्ष की जेल हो गई। उसने मुझसे कहा कि वह आज तक इसी बात को लेकर पछता रहा है कि उसने गुस्सा क्यों किया? साधारण गणित में एक और एक दो हो सकते हैं लेकिन गुस्से के गणित में तो एक और एक ग्यारह ही For Personal & Private Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ होते हैं । मैंने भी गुस्सा किया है और उसके दुष्परिणाम देखे हैं। आपने भी अपने गुस्से के दुष्परिणाम ज़रूर ही देखे होंगे। हम सभी प्रॉफिट वाला बिजनेस करना चाहते हैं, कोई मुझे बता सकता है कि क्रोध करने के क्याक्या लाभ हैं ? क्या बिल्डर, क्या व्यापारी, क्या अफसर, क्या चपरासी, क्या विद्यार्थी, क्या गृहस्थी, बच्चा या बूढ़ा, ज़वान या मज़दूर कोई नहीं कह सकता कि क्रोध करने के अमुक-अमुक लाभ हैं। फिर भी क्रोध किए चले जाते हैं। क्यों? अगर आप अपने-आप को शांति के रास्ते पर ले आते हैं तो जीवन के संत कहलाएँगे और अशांति आपको जीते-जी नरक में ढकेल देगी। वेश बदलकर संत तो बना जा सकता है, पर शांत होना वास्तविक संतत्व का प्राण है। महाराज तो बन सकते हैं, पर संत होना महान् बात है। आप घर में रहकर शांत रह सके तो यह किसी संत होने से कम नहीं है। हम केवल अरिहंत की पूजा न करते रहें। ख़ुद अरिहंत होने की पहल करें । अरिहंत यानी शत्रु का हनन करने वाला। क्रोध हमारा शत्रु है। हम शत्रु पर विजय प्राप्त करें। क्रोध पर विजय प्राप्त करना सबसे बडी विजय है। याद कीजिए अतीत की वह घटना जिसमें भगवान महावीर किसी जंगल से जा रहे होते हैं और उनका सामना चंडकौशिक नामक सर्प से होता है। चंडकोशिक उन्हें डंक मारता है। अपने साढ़े बारह वर्ष के साधना काल में महावीर ने एक ही शब्द कहा था – हे जीव! शांत रह, शांत बन । कब तक यूँ क्रोध से लोगों को डंसता रहेगा। अपने अतीत का स्मरण कर कि तम क्या थे और अपने क्रोध के कारण क्या बन गये? कहते हैं चंडकोशिक ने अपना पूर्व जन्म देखा और पाया कि वह भी एक संत था। उस समय उसके शिष्यों ने कहा था कि गुरुजी आपके पाँव के नीचे मेंढक आ गया था। आप प्रायश्चित कर लीजिए। गुरु ने ध्यान नहीं दिया तो शिष्य ने तीन-चार बार बात दोहरा दी, बस गुरुजी आ गया। वे उसे मारने के लिए दौड़े। शिष्य भाग निकला और गुरुजी अंधेरे में कुटिया के खंभे से टकरा गए, गिर पड़े वे। वहीं उनके प्राण-पखेरू उड़ गए। मरने के उपरांत वे नागयोनि में चंडकौशिक बन गए। एक संत मरकर साँप बना। अब आप धैर्यपूर्वक सोचें कि अगर हम गुस्सा करते रहे तो मरकर क्या बनेंगे? आश्चर्य है कि एक संत मरकर साँप बना, पर जब वही साँप शांत होकर मरा तो देव बना। हम देखें कि हमें चंडकौशिक बनना है या भद्रकौशिक? साँप बनना है या संत? ___मैं नहीं जानता कि स्वर्ग और नरक की कल्पनाएँ किसने की हैं, लेकिन मैं तो इसी पृथ्वी पर स्वर्ग और नरक देखा करता हूँ। मैं तो अपने वर्तमान जीवन को ही स्वर्ग बनाने में आस्था रखता हूँ। अगर ज़िंदगी भर गुस्सा करते रहे तो नरक में ही जाओगे और सभी से मोहब्बत करते रहे, सबके प्रति मंगल मैत्री-भाव रखा तो वर्तमान जीवन ही स्वर्ग हो जाएगा। जिसका वर्तमान जीवन ही नरक है वह किसी स्वर्ग में कैसे जा सकता है। सास अगर बहू पर टोंट कसती रहे, जेठानी अगर देवरानी के साथ ओछा व्यवहार करती है, तो वह को CIFE For Personal & Private Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मरकर स्वर्ग कैसे जा सकती है ? काम करो नरक के और पाना चाहो स्वर्ग, यह कैसे मुमकिन है ! स्वर्ग पाने के लिए हमें सबके साथ स्वर्गिक व्यवहार भी तो करना होगा। मिठास पाने के लिए मिठास भरे बीज भी तो बोने होंगे। मैंने अनेक बहुओं के मुँह से सुना है कि उनके सास-ससुरजी देव-तुल्य हैं। वे इतने मधुर और मिलनसार होते हैं कि बहू उनसे अलग होने की सोच भी नहीं सकती। बहू के दिल में जगह बनाने के लिए सास बनने से नहीं, माँ बनने से काम होता है। वैसे भी अब ससुर बनने का ज़माना नहीं, पिता बनने का समय है। पिता की भूमिका अदा करने की आवश्यकता है। जैसे मैंने सास-ससुर के लिए कहा, वैसे ही, कुछ बहुएँ भी इतनी सेवामूर्तियां होती हैं कि वे घर की बेटियों की याद भी भुला देती हैं । वे अपने स्नेहपूर्ण व्यवहार से सास-ससुर का, जेठ-जेठानी का दिल जीत लेती हैं। ऐसा होने में ही सार्थकता है। आपस में प्रेम से रहो, तो साथ रहने-जीने का मज़ा आता है। दिनभर अगर थूक-फ़ज़ीती, छातीकूटा चलता रहता है, तो वह साथ रहना थोड़े ही हुआ। यों तो गली में कुत्ते (इस शब्द-प्रयोग के लिए माफ़ करें) भी रहते हैं, पर वे कब लड़ पड़ेंगे, कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। मैं प्रेम का पथिक हूँ, प्रेम से जीता हूँ, प्रेम को जीता हूँ। प्रेम में, शांति में ही जीवन का स्वर्ग और जीवन का सुख नज़र आता है। भाई, सबका चार दिन का जीना है और कब किसको चला जाना है, कहा नहीं जा सकता। याद वे ही रखे जाएँगे जो याद रखे जाने जैसा कर्म और व्यवहार करेंगे। प्रेम, शांति, सम्मान और विनम्रता का परिणाम है स्वर्ग । क्रोध, घमंड, ईर्ष्या, नफ़रत का परिणाम है नरक। ख़ुद ही ख़ुद का मूल्यांकन कर लो कि हमारे जीवन का परिणाम स्वर्ग है या नरक! मुझे यह कहानी बहुत प्रीतिकर लगती है – चीन के संत हुए हैं नानू सीची। उनके पास यूनान के सेनापति पहुँचे और कहा – 'महात्मन्, मैंने आपका बहुत नाम सुना है और मन में एक प्रश्न उठा है, मैं उसका उत्तर पाना चाहता हूँ।' नानू सीची ने कहा – 'अपनी जिज्ञासा व्यक्त करो।' 'महात्मन्, मैं जानना चाहता हूँ कि स्वर्ग क्या है और नरक क्या है ? धार्मिक पुस्तकों में इन शब्दों को पढ़ा है, लेकिन नहीं जान पाया कि स्वर्ग और नरक क्या है।' नानू सीची ने उसे ध्यानपूर्वक देखा और कहा, 'तुम मुझे अपना परिचय तो दो।' 'मैं, अरे मैं तो यूनान का सेनापति हूँ।' 'क्या तुम यूनान के सेनापति हो? पर चेहरे से तो ऐसा नहीं लगता। चेहरा तो किसी भिखारी जैसा नज़र आ रहा है।' 'महाराज ! यह तुम क्या और किससे कह रहे हो, जानते हो? तुमने यूनान के सेनापति को भिखारी UFE 22 For Personal & Private Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कहा? मुझमें ऐसा क्या देखा जो तुमने मुझे भिखारी कह दिया, क्या मेरे हाथ में भीख माँगने का कटोरा है ?" 'नहीं, भाई मैंने तो बस तुम्हारे चेहरे को देखकर ऐसा कहा । तुम्हारे हाथ में क्या है ?' 'मेरे हाथ में तलवार है । ' 'ओह, तो तुम्हारे पास तलवार है। इसमें धार भी है या नहीं ?' इतना सुनते ही तो सेनापति को गुस्सा चढ़ने लगा। उसने म्यान में से तलवार निकाल ली और कहा 'महाराज, इसमें धार भी है और जो तुमने मुझे भिखारी कहा था, अगर किसी और ने कहा होता तो उसका सिर कटकर ज़मीन पर होता । पर तुमने कहा है इसलिए मैंने तुम्हें. ..... I' सो तो ठीक है, पर तुम्हारी तलवार में वास्तव में धार है या ..... ? यह सुनते ही सेनापति ने तलवार तुरन्त पास में ही खड़े पेड़ की डाली पर चला दी। डाल नीचे आ गिरी और बोला, 'देख लिया मेरी तलवार में कितनी धार है ?' संत ने कहा, 'अरे भाई, तुम तो मेरी बात का बुरा मान गए। मैं तो तुम्हारे सवाल का जवाब दे रहा था।' 'क्या मतलब ?' सेनापति ने पूछा । ‘यही कि मेरे द्वारा अपमान के दो शब्द कहने पर तुम्हें जो गुस्सा आया है न्, यही है नरक ।' सेनापति चौंका, उसे सारी बात समझ में आ गई। वह संत के पैरों में गिर पड़ा और बोला 'महाराज, मैं आपकी रहस्यमयी बात को समझ नहीं पाया। मैं आपसे क्षमा माँगता हूँ ।' - 'यही है स्वर्ग ।' नानू सीची ने उसे उठाया और कहा - - 'क्या मतलब ?' पुनः सेनापति ने पूछा । नानू सीची ने कहा, 'तुम्हारे द्वारा गुस्सा करना ही नरक है और माफ़ी माँगने के लिए झुक जाना ही स्वर्ग है ।' नानू सीची ने कहा, - तो यह है स्वर्ग और यह है नरक । एक ओर नरक, एक ओर स्वर्ग । जिनसे ग़लती हो जाए, उन्हें माफ़ कर दो, यह है स्वर्गिक व्यवहार । इसी तरह ख़ुद से ग़लती हो जाए, उसके लिए माफ़ी मांग लो, यह है स्वर्गिक बरताव । याद रखो, स्वर्ग उनके लिए है जो ग़लती करने वालों को माफ़ कर देते हैं, और स्वर्ग उनके लिए है जो दूसरों पर रहम करते हैं। ईश्वर उन्हीं से प्यार करता है जो दयालु और क्षमाशील होते हैं । आप बहीखाते में शुभ-लाभ और शुभ खर्च लिखने के अभ्यस्त होंगे। मेरा अनुरोध है शुभ कर्म और शुभ व्यवहार भी लिखे जाने चाहिए। शुभ सोचो, शुभ बोलो, शुभ देखो, शुभ सुनो, शुभ करो ये पाँच बातें ही जीवन की पंचामृत बन जानी चाहिए। For Personal & Private Use Only LIFE 23 Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मैंने गुस्से के दुष्परिणाम और प्रेम के शुभ परिणाम देखे हैं। इसीलिए कहता हूँ गुस्सा मत करो, प्राणीमात्र से प्रेम करो। सभी से प्रेम करना जीवन जीने की बेहतरीन कला है। प्रेम स्वयं अहिंसा है और अहिंसा का मतलब है अनंत प्रेम । ऐसा मत सोचो कि थोड़ा-सा गुस्सा कर लिया तो क्या हो गया। दुनिया में कुछ चीजें होती तो थोड़ी-सी हैं, पर कब बढ़ जाती हैं पता नहीं चलता। कभी किसी से कर्ज़ नहीं लेना। यह कभी भी बढ़ सकता है। घाव कभी होने मत देना, वरना घाव कभी भी बढ़ सकता है। आग लगने मत देना, क्योंकि यह कभी भी तेज हो सकती है और क्रोध कभी न करना अन्यथा यह भी आगे बढ़ सकता है। हो सकता है कभी आपको क्रोध करना ही पड़ जाए तब भी अल्प मात्रा में ही क्रोध करें। क्रोध तभी करें जब आपके पास अन्य कोई विकल्प न बचे. क्योंकि क्रोध तो ब्रह्मास्त्र है, इसे तभी उपयोग में लाएँ जब आपके सभी अस्त्र विफल हो जाएँ। क्रोध के परमाणु-अस्त्र का तभी इस्तेमाल करें जब अपने समस्त सकारात्मक अस्त्र निष्फल हो जाएँ। क्रोध तीन प्रकार का होता है - एक, पानी में उठे बुलबुले की तरह कि अभी गुस्सा आया और काफूर हो गया। जैसे पानी में लकीर खींचें तो कितनी देर टिकती है, बस कुछ लोगों का गुस्सा ऐसा ही होता है। दूसरे प्रकार के लोगों का गुस्सा मिट्टी में पड़ी दरारों की तरह होता है कि जब तक प्रेम या मिठास का पानी न मिले दरार रहती है फिर सब एक समान। उनका गुस्सा प्रेम की बरसात होते ही, मीठे बोलों की शीतलता से ठंडा हो जाता है। और तीसरे प्रकार के लोगों का गुस्सा पत्थर में पड़ी दरार की तरह होता है। चाहे जितना प्रयत्न कर लो पत्थर जल्दी जुड़ते नहीं, ठीक इसी प्रकार इन लोगों का गुस्सा कम नहीं हो पाता। और कुछ लोग कमठ की तरह होते हैं, जो जन्मों-जन्मों तक क्रोध की धारा को साथ लिए रहते हैं। हम लोग एक शहर में थे। पता चला कि एक भाई के पन्द्रह उपवास हैं, शोभायात्रा निकाली गई। - भोजन का कार्यक्रम भी था। वे लोग हमें भी आमंत्रित कर गए। हम शोभायात्रा में चल रहे थे कि एक घर के पास से निकले तभी किसी ने कहा, 'महाराज जी, यह उस व्यक्ति के बड़े भाई का घर है जिसकी शोभायात्रा में आप चल रहे हैं।'' पर आप यह बात मुझे क्यों बता रहे हैं?' मैंने पूछा। क्योंकि वह इस शोभायात्रा में नहीं आया है।' मैंने कहा, 'मतलब?''ये दोनों सगे भाई हैं पर आपस में बोलते नहीं हैं', मुझे बताया गया। ओह ! पन्द्रह उपवास और मन में ऐसे वैर-विरोध की भावना, तब यह तपस्या सार्थक कैसे होगी। ___ मैंने तपस्वी को बुलाया और कहा, 'आपने अपने भाई को न्यौता तो दिया होगा?' वह इधर-उधर की बातों में बहलाने लगा कि बेटे ने दिया होगा, आदि-आदि। मैंने कहा, 'चलों, हम लोग ही ऊपर चलते हैं।' उससे मना करते न बना, पाँच-सात लोगों को लेकर हम ऊपर गये। मैंने कहा, 'पधारिये साहब, शोभायात्रा में।' वह ना-नुकुर करने लगे। कहने लगे कि उसका भाई के साथ कोई संवाद नहीं है। मैंने कहा, 'भाई भाईसे नहीं बोलेगा तो किससे बोलेगा।' उन्होंने कहा, 'हमारे आपस में कोई संबंध नहीं है। इसके बेटे की शादी हुई तो हम नहीं गए, हमारे बेटे की शादी हुई तो ये नहीं आए। पन्द्रह-सोलह साल हो गए हैं। हमारी आपसी TEE 24. For Personal & Private Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बातचीत बंद है। मैंने कहा, ऐसी बात है, इतना लम्बा अर्सा बीत गया है। आप मुझे बताएँगे उस दिन क्या तारीख़ थी ?' उन्होंने तारीख़ बता दी। मैंने पूछा, 'वार क्या था ?' बोले, 'वार तो याद नहीं है।'' अंदर से कैलेण्डर ले आइए।' वह चौंके, कहने लगे, 'इतना पुराना कैलेण्डर कहाँ से मिलेगा ?' अगर पुराना कैलेण्डर नहीं मिल सकता तो इतनी पुरानी बातों को क्यों ढो रहे हो ? हमने अर्ज किया, अरे, एक महीना बीत जाता है। तो कैलेण्डर का पन्ना बदल देते हैं और साल बीत जाए तो कैलेण्डर ही बदल देते हैं। लेकिन हम कैसे इंसान हैं जो सोलह साल बीत गए फिर भी बातों को ढो रहे हैं ! उन्हें बात लग गई। वह अपनी भूल समझ गये । हमने उन्हें मिश्री दिलवाई और शोभायात्रा में शामिल करवाया । कृपया याद रखें, जो भाई भाई से नहीं बोलता, उससे वैर-विरोध रखता है, वह संवत्सरी प्रतिक्रमण में समाज के मध्य खड़े होकर क्षमापना का अधिकारी नहीं होता। अगर आपके जीवन में किसी भी प्रकार के क्रोध ने स्थान बना लिया हो तो उससे ऊपर उठने का प्रयास कीजिए। पानी में खींची गई लकीर जैसा क्रोध तो शायद क्षम्य भी हो, पर अन्य दोनों प्रकार के क्रोध आपके जीवन को अशांत और तनावमय बना देंगे। आपके रिश्तों में ज़हर घोल देंगे । अब हम देखेंगे कि गुस्सा किन कारणों से आता है. — गुस्सा हमेशा दूसरे की ग़लतियों पर आता है, स्वयं की ग़लतियों पर नहीं। मानो कि आप शेविंग कर रहे हैं और गाल पर ब्लेड से कट लग गया और ख़ून आ गया तो आप किस पर गुस्सा करेंगे ? किसी पर नहीं, हाँ, अगर कोई आप पर थूक दे तो ज़रूर आग-बबूला हो जाएँगे, पर यदि अपना थूक ही अपने पर गिर जाए तो ? ख़ुद की ग़लती पर हम गौर नहीं करते, पर दूसरे से ग़लती हो जाए तो ! मेरे प्रभु, याद रखो, जो मसला सुई से हल हो जाए उसके लिए तलवार मत चलाइए। जो बात आँख दिखाने से समझ में आ जाए उसके लिए गाली-गलौच मत कीजिए क्योंकि अभी-अभी जिस बात पर गुस्सा आया है उसके साथ चार दिन पुरानी बातें और भी जुड़ जाती हैं, गड़े मुर्दे उखड़ने लगते हैं। अरे भाई, शीशी अभी फूटी है, जबकि पन्द्रह दिन पहले टूटे गुलदस्ते का गुस्सा भी आज शामिल हो जाता है। दूसरी बात, गुस्सा हमेशा कमज़ोर पर आता है। पिता अपने बच्चों पर, मालिक नौकर पर बच्चे खिलौनों पर गुस्सा करते दिखाई देते हैं । जो किसी दूसरे पर गुस्सा नहीं कर सकते वह निरीह मूक जानवरों पर क्रोध करते देखे जा सकते हैं। कुछ नहीं, चल रहे हैं। सड़क पर से उठाया पत्थर और मार दिया किसी कुत्ते पर जमा दी छड़ी गाय या बकरी पर गुस्सा हमेशा नीचे की ओर बहता है और प्रेम हमेशा ऊपर की ओर । कहते हैं एक व्यक्ति सड़क पर जा रहा था । कहीं से आकर उसे पत्थर लगा। उसे क्रोध आ गया। For Personal & Private Use Only LIFE 25 Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उसने उठाया पत्थर और चला उस घर की ओर जहाँ से पत्थर आया था कि अभी जाकर ख़बर लेता हूँ, पर वहाँ जाकर देखा कि एक पहलवान गदा-मुद्गर उठाए कसरत कर रहा था। उस व्यक्ति को देखकर उसने कहा, 'ए, क्या है ?' वह व्यक्ति घबराया और कहा, 'कुछ नहीं, आपके घर का पत्थर गिर गया था, लौटाने आया हूँ।' क्रोध कमज़ोर पर आता है। बलवान के आगे झुक जाता है। क्रोध का परिणाम बड़ा घातक होता है। एक बार क्रोध करने से हमारी एक हज़ार ज्ञान-कोशिकाएँ जलकर नष्ट हो जाती हैं। जो बच्चे दिन में दस दफ़ा गुस्सा करते हैं उनकी दस हज़ार ज्ञान-कोशिकाएँ नष्ट हो जाती हैं। इसलिए मेरे बच्चो, सदाबाहर प्रसन्न रहो। सहनशील बनो। शांत रहो। अगर आप चाहते हैं कि आपकी स्मरण-शक्ति प्रखर बनी रहे तो संकल्प लीजिए कि गुस्सा नहीं करेंगे, नहीं करेंगे, नहीं करेंगे। एक तो गुस्से का त्याग कीजिए। दूसरा मन लगाकर पढ़ाई कीजिए, आप निश्चित ही प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण होंगे। आप गुस्सा करेंगे तो हृदय कमज़ोर होगा, पाचन-क्रिया बिगड़ेगी, दिमागी क्षमता कमज़ोर होती जाएगी। रक्तचाप असंतुलित होगा, भूख नहीं लगेगी, नींद भी नहीं आएगी। क्रोध का अन्य दुष्परिणाम हैस्वयं पर नियंत्रण समाप्त हो जाता है। क्रोध के कारण आपसी संबंधों में खटास आ जाती है । पलभर का क्रोध पूरा भविष्य बिगाड़ सकता है । क्रोध के कारण केरियर भी प्रभावित होता है। जो क्रोध नहीं करता वह एक समय भोजन करके भी ऊर्जावान बना रहता है। उसका स्वयं पर नियंत्रण बना रहता है। मैं अनुशासनप्रिय तो हूँ, पर गुस्सा नहीं करता। गुस्सा करना मूर्खता है, जब भी व्यक्ति गुस्सा करता है, मूर्खता को ही दोहराता है। गुस्से में व्यक्ति अपशब्दों का प्रयोग भी करता है। क्रोध आने पर सारी समझदारी एक तरफ हो जाती है और मुँह से गालियाँ झरने लगती हैं। हमारे द्वारा किया गया थोड़ा-सा गुस्सा हमारे मैत्रीपूर्ण संबंधों को समाप्त कर देता है। हम अपने गुस्से को अपने नियंत्रण में रखें । इसीलिए कहता हूँ जो कार्य सुई से हो जाए, उसके लिए तलवार का उपयोग न करें। मेरी एक चर्चित कहानी है - एक एस. पी. महोदय अपने लाव-लश्कर के साथ किसी दंगाग्रस्त क्षेत्र में पहुँचे। मोहल्ले के लोग बहुत गुस्साए हुए थे। उनमें से किसी ने एस. पी. के मुँह पर थूक दिया। यह देखते ही थानेदार ने रिवॉल्वर निकाल ली और उस व्यक्ति पर तान दी। वह गोली चलाने को तत्पर हुआ ही था कि एस.पी. ने कहा, 'ठहरो, क्या तुम्हारे पास रूमाल है ?"हाँ, सर है।''मुझे रूमाल दो।'रूमाल हाथ में आया। एस. पी. ने मुँह पौंछकर रूमाल फेंक दिया और थानेदार से कहा, 'हमेशा याद रखना जो काम रूमाल से निपट जाए उसके लिए रिवॉल्वर चलाना बेवकूफ़ी है।' यही है क्रोध को जीतने का पहला और कारगर फॉर्मूला कि जो काम प्रेम भरे शब्दों से पूरा हो सकता For Personal & Private Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ है, उसके लिए तैश क्यों खाया जाए ! क्रोध तभी करें जब क्रोध करने के अतिरिक्त कोई विकल्प ही न बचे । अपने मातहत को, बेटे को, बहू को, नौकर को तभी डाँटें-डपटें जब इसके अलावा कोई रास्ता ही न रहे । नौकर को अगर छोड़ना भी हो तो गुस्से में न छोड़ें। वह आपके लिए घातक बन सकता है। आपने गुस्से में आकर उसे घर से या दुकान से निकाला है, निश्चय ही इसका गुस्सा उसे भी है। वह अपना गुस्सा आप पर निकाल सकता है। आप पर कोई जानलेवा हमला भी कर सकता है। इसलिए सावधान ! जब भी किसी नौकर को छोडें, मिठास भरे वातावरण में छोड़ें, जाते समय उसे इनाम भी दें और धन्यवाद भी कि इतने समय तक तुमने हमारी सेवा की। यही नहीं, भाई-भाई भी अगर कभी अलग हों, पिता-पुत्र अलग हों, भी प्रेम के साथ एक-दूसरे से बिदा हों, ताकि अलग होने के बाद एक-दूसरे से मिलने के काबिल तो रहो। ज़रूरत पड़ने पर एक-दूसरे की मदद भी ली - दी जा सके। गुस्से में अगर अलग हो बैठे, तो उपेक्षित बेटा-बहू दूसरों के सामने आपकी बदनामी ही करेंगे। व्यक्ति की समझदारी इसी में है कि वह विपरीत वातावरण बन जाने पर उस पर किस तरह विजय पाता है। 1 अब हम देखें कि क्रोध आने पर कैसे इसका निवारण किया जाए - जब भी गुस्सा आए तो इसे कल पर टालने की आदत डालें। यदि गुस्से को हाथो-हाथ प्रकट कर दिया तो वह बात नहीं होगी, आग का लावा होगा। गुस्से में व्यक्ति, व्यक्ति नहीं होता, पिता पिता नहीं होता । ज्वालामुखी बन जाता है। गुस्सा प्रकट हुआ यानी ज्वालामुखी फट पड़ा। इसलिए गुस्सा आ जाए तो दस मिनट के लिए शांति धारण कर लें । अरे भाई, गुस्सा कोई मामूली चीज़ थोड़े ही है जो जब चाहो तब प्रकट कर दो। इसके लिए तो किसी राजज्योतिषी जी से 'अमृतसिद्धि योग' या 'सर्वार्थसिद्धि योग' का मुहूर्त निकलवाओ। फिर करना गुस्सा । हाथोहाथ अगर गुस्सा कर बैठे तो वह वक़्त आपके लिए 'कालयोग' या 'व्यतिपात' का दुष्प्रभाव दे बैठेगा। गुस्सा आ गया। कोई बात नहीं, थोड़ा धीरज धरें। धीरज से बड़ा कोई मित्र नहीं है । विपरीत वातावरण बन जाने पर ही धैर्य की परीक्षा होती है । क्रोध का इलाज है धैर्य । 10 मिनट का धीरज आपके 10 घंटे की शांति को बर्बाद होने से बचा सकता है। धीरज छोड़ा कि गये काम से। फिर तो क्रोध का पूरा खानदान आ धमकेगा । आपसे कई तरह के सैलटैक्स, इनकमटैक्स वसूल जाएगा। आपकी शांति, आपकी समझदारी, आपके रिश्ते, आपके आनंद - सबको चूहों की तरह कुतर जाएगा । ऐसा हुआ : रूसी संत गुर्जिएफ मृत्यु शैय्या पर थे । उनका भक्त अपने पुत्र के साथ उनसे मिलने आया । उसने कहा, 'महात्मन्, मेरे पुत्र को कुछ जीवनोपयोगी शिक्षा दें।' गुर्जिएफ ने उस लड़के को ध्यान से देखा और कहा, 'बेटा, जब भी कोई तुम पर क्रोध करे तुम तुरंत उसका जवाब मत देना। ज़वाब ज़रूर देना, लेकिन चौबीस घंटे बाद ।' युवा - पुत्र सहमत हो गया। अब हुआ यह कि क्रोध के निमित्त आते लेकिन संत For Personal & Private Use Only LIFE 27 Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात याद आ जाती और चौबीस घंटे बाद वह भूल ही जाता कि उसे क्रोध किस बात पर करना है । मैं भी आपसे यही कहता हूँ कि अगर किसी से ग़लती हो जाए तो पहली बार उसकी उपेक्षा कर दो, दूसरी बार ध्यान दो और तीसरी दफ़ा उसे प्यार से समझाओ फिर भी वह अपनी ग़लतियाँ दोहराता चला जाए तो... ? फिर भले ही उसके टिका दो। भगवान कृष्ण ने तो शिशुपाल की निन्यानवें ग़लतियाँ माफ़ कर दी थीं । हम कम-से-कम किसी की नौ या तीन ग़लतियाँ तो माफ़ कर सकते हैं न् । मेरी समझ से जो व्यक्ति अपने गुस्से को काबू में रखता है वही यथार्थ में लौकिक और अलौकिक दोनों प्रकार के स्वर्ग का अधिकारी होता है। आप समता में रहने वाले लोग हैं। रोज़ एक घंटा मौन की सामायिक करें। रोज़ाना एक घंटा मौन का व्रत रखें। वैसे भी हर आदमी को एक महीने में एक दिन तो व्रत करना ही चाहिए और व्रत यह कि अमुक दिन या अमुक वार को मैं गुस्सा नहीं करूँगा, मैं किसी तरह की उग्र प्रतिक्रिया नहीं करूँगा । घटना चाहे जैसी हो जाए, पर मेरे आज क्रोध का व्रत है, क्रोध का उपवास है । जैसे लोग आहार न लेने का उपवास करते हैं, आप क्रोध न करने का उपवास कर लीजिए। आप यह व्रत लगातार तीन दिन का भी कर सकते हैं। आपको 'तेले' का लाभ मिल जाएगा। आठ दिन भी कर सकते हैं, आपके 'अठाई' हो जाएगी। महीने भर का अगर आप यह संकल्प लेते हैं तो आपके 'मासक्षमण' हो गया । कितना सरल तप है यह ! खाते-पीते हुए भी आप तपस्वी । तपस्वी इस रूप में कि आपने गुस्सा नहीं किया। बाकी तो भूखा रहने वाले तपस्वियों को गुस्सा जल्दी आ जाता है। आप तो गुस्सा छोड़िए, सुख से जीवन का आनंद लीजिए । क्रोध-मुक्ति का एक और मंत्र लीजिए : क्रोध का वातावरण बनने पर उस स्थान से अलग हो जाएँ । कमरे में आ जाएँ, कुछ अच्छा-सा संगीत सुन लें, नहीं तो सफाई कर लें मतलब कि अपना ध्यान बँटा दें। अगर ऐसा नहीं कर सकते यानी कि वहाँ से हटना मुमकिन नहीं है तो ठंडा पानी पी लें। जब दूध में उफान आता है तो पानी के छींटे डालकर उफान को रोक देते हैं या गैस बंद कर देते हैं। ठीक इसी तरह क्रोध का तापमान कम करने के लिए ठंडा पानी पी लीजिए, वह भी ठंडा हो जाएगा। आप ठंडा होकर देखिए तो सही, अगला ठंडा बर्फ़ हो जाएगा। एक बात और यदि हमारे कारण यदि किसी को गुस्सा आ जाए तो 'सॉरी' कहना न भूलें। जरा भी देर न लगाएँ, तुरन्त 'सॉरी' कह दें। सॉरी शब्द बड़ा पावरफुल है। अगले के टेम्परेचर को एक ही क्षण में 'फिफ्टी परसेंट' कर देता है। जीवन में तीन शब्द • प्लीज़, थैंक यू और सॉरी • सदा इस्तेमाल कीजिए। आप जितनी बार प्लीज़ कहेंगे सामने वाला उतना ही प्लीज़्ड होगा, धन्यवाद देते ही वह कृतज्ञ हो जाएगा और सॉरी कहने से क्रोध के वातावरण में तत्काल नमी का संचार हो जाएगा । - - ग़लती होने पर गुस्सा न आने दें क्योंकि कर्ज़ को, घाव को और आग को बढ़ने मत दो और गुस्से को LIFE 28 For Personal & Private Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पैदा ही न होने दो। थोड़ा मौन रहने की आदत भी डालिये। सबसे भली और सबसे मीठी चुप। देते गाली एक हैं, उलटे गाली अनेक, जो तू गाली दे नहीं, तो रहे एक-की-एक। दूसरे के क्रोध को स्वीकार मत कीजिए। वह स्वभाव से क्रोधी है तो क्या, आप तो नहीं? उसकी नाराज़गी को अस्वीकार कर दीजिए। उसका क्रोध उन्हें ही मुबारक हो। अगर आपने उसके क्रोध को स्वीकार कर लिया तो आप पर भी क्रोध हावी हो जाएगा। एकमात्र क्रोध ऐसा कषाय है जिससे हमारी आत्मा भी गिरती है, मन में संत्रास पैदा होता है, हमारे संबंध भी कटते हैं। पर यह सब केवल कहने-सुनने से क्रोध कम नहीं होगा। क्रोध तब कम होगा जब हम क्रोध के दुष्परिणामों को समझेंगे, इससे बचने का संकल्प लेंगे, होश और बोधपूर्वक जिएँगे, हे जीव ! शांत रह' - इस संदेश को जीने का प्रयत्न करेंगे। सबके साथ विनम्रता से पेश आइये, गुस्से का वातावरण नहीं बनेगा। हर समय प्रसन्न रहने की आदत डालिये। जैसे ही सुबह आँख खुले एक मिनट तक भरपूर मुस्कुराइये। ऐसे मुस्कुराइये कि आपका रोम-रोम खिल उठे। प्रत्येक कार्य को करने के पहले मुस्कुराइये। माता-पिता को प्रणाम करना हो या किसी से मिल रहे हों, ऑफिस पहुँचे हों या दुकान, अतिथि-सत्कार करना हो या किसी से बात करना हो, पहले मुस्कुराइये। आप पाएँगे कि परिस्थितियाँ आपके अनुकूल होती जा रही हैं। विपरीत वातावरण में भी मुस्कुराने की आदत डालिये। जिंदगी में सदा मुस्कुराते रहें, फासले कम करें और प्रेम करना सीखें। ताने मारना छोड़ें और प्रेम करना सीखें। याद रखें माचिस की तीली के सिर होता है, पर दिमाग़ नहीं । अत: वह थोड़े से घर्षण से जल उठती है, पर हमारे पास तो सिर भी है और दिमाग़ भी, फिर हम क्यों ज़रा-ज़रा सी बात पर सुलग उठते हैं। हमें तो अपनी बुद्धि का उपयोग करना है और विवेकपूर्वक अपने गुस्से पर नियंत्रण रखना है। मै एक ख़ास कहानी का उपयोग कर रहा हूँ। कहते हैं : बादशाह हारूँ रशीद के बेटे ने अपने पिता से आकर राजसभा में ही कहा – अमुक सेनापति के लड़के ने आज मुझे माँ-बहिन की ग़ाली दी है। इस पर मंत्रियों में से किसी ने कहा – सेनापति के लड़के को देश-निकाला दे देना चाहिए। कोई बोला – उसकी ज़बान खिंचवा देनी चाहिए, जिसने राजकुमार को ग़ाली दी हो। किसी ने सलाह दी – उसे फ़ौरन सूली पर चढ़ा देना चाहिए। आख़िर बादशाह ने बेटे को समझाते हुए कहा – बेटा, अगर तुम अपराधी को माफ़ कर सको, तो यह सबसे अच्छी बात होगी। और, अगर तुम ऐसा नहीं कर सकते तो तुम भी उसे ग़ाली दे सकते हो, लेकिन ऐसा करने से पहले ज़रा इतना सोच लो कि ग़ाली देना तुम्हें शोभा देगा? UFE 29 For Personal & Private Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजकुमार ने कुछ सोचा और शांतिपूर्वक महलों में चला गया। उसे समझ आ गई कि क्रोध का कारण मौजूद होने पर भी जो शांत रह सकता है, वही सच्चा वीर है। हम सब लोग अपनी वीरता को पहचानें और शांति-पथ के पुजारी बनें। मेरी समझ से आज के बाद आप अपने क्रोध को अपने काबू में रखेंगे, क्रोध पर संयम रखेंगे। जीवन में, वाणी में, व्यवहार में मिठास घोलेंगे। दुनिया में शिव-शंकर वही कहलाते हैं, जो दूसरों के हिस्से का ज़हर ख़ुद पी जाया करते हैं और बदले में लोगों को अपनी दिव्यता और मिठास लौटाया करते हैं। आज से हम लोगों को फूलों के गुलदस्ते नहीं, अपनी मिठास के गुलदस्ते भेंट करेंगे। LIFE 30 For Personal & Private Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुस्कान को बनाएँ स्वभाव मुस्कान लाएँ तनाव हटाएँ . व्यक्तित्व में बढ़ेगा प्रभाव अपनी बात की शुरूआत एक ऐसे पौधे से करूँगा जिसके शुरू होने से लेकर पूर्णता प्राप्त करने का मैं साक्षी रहा हूँ। यह एक सहज संयोग ही रहा कि जिस दिन पौधे की कलम लगाई गई थी, उस दिन मैं भी उस पौधे के करीब था और जिस दिन उस कलम में से पहली डाली फूटकर आई तो मैं उसके उस अंकुर का भी द्रष्टा रहा। जिन दिनों उस डाली में से पत्ते और कांटे निकलकर आए, मैंने उनको भी निहारा। मैं पौधे के उन क्षणों का भी गवाह हूँ जब उस पर कली निकलकर आई और कोई गुलाब का फूल अपना सौन्दर्य और सुवास बिखेरने लगा। उस पौधे को देखकर जीवन की पहली किरण यह मिली कि हम सब लोगों का जीवन भी ऐसा ही है जैसे काँटों से भरे गुलाब के पौधे का होता है। ऐसा कौन व्यक्ति है जिसे अपने जीवन में For Personal & Private Use Only LIFE 31 Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संघर्ष न करना पड़ता हो? धरती पर वह कौन है जिसे अपने जीवन में असफलता का सामना न करना पड़ा हो? भला जब किसी भी परिस्थिति का उदय होता है तो यह प्रकृति की व्यवस्था है कि उदीयमान परिस्थिति का विलय भी अवश्य होता है। प्रकृति परिवर्तनधर्मा है। जब एक बात तय है कि जो जन्मता है उसकी मृत्यु भी होती है। जो फूल खिलता है, वह मुरझाता भी है। जो सूरज उगता है, वह अस्त भी होता है। जहाँ संयोग है वहाँ वियोग भी है। जहाँ सुख का कमल है वहाँ दुःख के कांटे भी छिपे होते हैं। जो व्यवस्था मनुष्य के हाथ में होती है वह चिंता करने जैसी नहीं होती, वह अंजाम देने के लिए होती है। सारी व्यवस्था प्रकृति के हाथ में है क्योंकि मनुष्य स्वयं प्रकृति की रचना है। तो फिर प्रकृति की व्यवस्थाओं के लिए व्यर्थ की चिंता, व्यर्थ के अवसाद को पालने का कोई अर्थ नहीं होता। जब हम कांटों से घिरे हुए गुलाब के फूल को देखते हैं तो लगता है कि हर इंसान भी ऐसे ही कांटों से घिरा हुआ है, भले ही कोई राजसिंहासन पर बैठकर राजमुकुट ही क्यों न धारण कर ले। लेकिन जबजब भी हम मनुष्य के मन और मस्तिष्क की दशा देखते हैं तब-तब ऐसा लगता है कि हर मनुष्य के माथे पर काँटों का ताज रखा हुआ है। सबको अपने कंधे पर सलीब ढोना पड़ रहा है। __ अतीत में कभी जीसस के सिर पर काँटों का ताज और पीठ पर सलीब रखा गया था लेकिन वह बात तो एक शहादत की हुई। आज हममें से हर किसी इंसान ने अपने माथे पर काँटों का ऐसा ताज पहन रखा है कि जिसे आदमी उतारना भी चाहता है पर उसे उतारने का तरीका नहीं जानता। अगर इंसान को जीने की कला आ जाए तो ऐसा कौन-सा काँटों का ताज है जिसे इंसान उतारना चाहे और उतार न पाए। विडंबना यह है कि कुछ काँटों के ताज तो ऐसे होते हैं जिन्हें लोग पहना जाया करते हैं, पर कुछ काँटों के ताज ऐसे भी होते हैं जिन्हें इंसान खुद ही अपने हाथों से पहन लिया करता है। चिन्ता, ईर्ष्या, उत्तेजना, तनाव, अवसाद के काँटे ऐसे ही हैं जिन्हें आदमी खुद अपने हाथों से माथे पर पहनता है। ये काँटे हमें परेशान करते हैं। इसके बावजूद हम अपने आप को उन निमित्तों से, उन परिस्थितियों या अन्य उन पहलुओं से अपने आपको अलग करने का प्रयत्न नहीं करते जो कि बारबार काँटे बनकर हमें बेधा करते हैं। ___ जब आप शाम को अपने घर पहुंचते हैं तो सबसे पहले अपने बदन पर पहने हुए कपड़े उताकर खूटी पर टाँग देते हैं और लुंगी-बनियान पहनकर अपने आपको हल्का महसूस करते हैं। हम ऐसे ही जब घर पहुँचते हैं तो देखते हैं कि कुछ चीजें बिखरी हुई हैं। हम अपने बच्चों से कहते हैं कि सामान सजाओ, ठीक-ठिकाने पर रखो। इसी तरह हमको याद हो आती है कि हमारी जेब में भी कुछ फालतू के कागज या कचरा टाइप का पड़ा है। जब हम उस कागज-कचरे को तथा खाली पाउच या ATEE 32 For Personal & Private Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फाइल में रखे हुए कुछ पुराने व्यर्थ के बिल को निकालकर रद्दी की टोकरी में फेंक देते हैं तब हमें बड़ा हल्कापन महसूस होता है। मैं कहूँगा कि जब हम अपने घर पहुँचे तो घर के भीतर बाद में प्रवेश करें पहले घर के बाहर कचरा डालने का जो डिब्बा हमने रखा है, दो मिनिट के लिए उसके पास जाएँ। हम यह देख लें कि जेबों में कहाँ-कहाँ, कौन-सा रद्दी कागज पड़ा है ? हम उसे निकालें और उन्हें वहीं फेंक दें। जब आप रद्दी कागज फैंकें तो मेहरबानी करके एक काम और करें। आपके पास कुछ ऐसी चीजें भी हैं जिन्हें कि आपको रद्दी कागजों के साथ निकालकर फेंक देना चाहिए और वह है आपके दिमाग की जेब में भरी हुई कुछ-कुछ बातें, कुछ-कुछ चिड़िचिड़ापन, कुछ-कुछ उत्तेजना, कुछ-कुछ गुस्सा, कुछ-कुछ तनाव और चिंता जो आप अपनी दुकान से अपने साथ ले आए हैं। दिमाग की जेब में ऐसी ये जो कुछ-कुछ चीजें भरी रहती हैं, उन्हें निकालकर फेंक दें। क्योंकि वे भी रद्दी कागज की तरह हैं, व्यर्थ के पाउच हैं। सावधान ! व्यवसाय के तनाव कहीं आपके घर को तनावग्रस्त न बना दें। अपने दफ्तर, दुकान के तनाव आपके घर में न पहुँच जाए और उन तनावों का बोझा कहीं आपकी पत्नी को, आपके बच्चों को न झेलना पड़े। अमूमन ऐसा ही होता है कि आदमी अपनी दुकान का गुस्सा बीबी पर निकालता है, बीबी तब अपना गुस्सा बच्चों पर निकाला करती है। कुछ-कुछ व्यर्थ की चीजें हमारे दिमाग में भरी पड़ी हैं। इन 'कुछ-कुछ' चीजों को अपने माथे की जेब से निकालकर कचरा-पेटी में फेंक दें। जब घर में प्रवेश करें तो लगना चाहिए कि घर में वह व्यक्ति पहुँचा है जिसकी प्रतीक्षा में घरवालों ने पूरे आठ-दस घंटे बिताए हैं। तुम जब घर पहुँचो तो तुम्हारी पत्नी को इतना सुकून मिल जाए कि उसे महसूस हो कि तुम घर पहुंचे हो। वहीं अगर तनाव, घुटन, चिंता, अवसाद जैसी बीमारियों को लेकर घर पहुंचे तो पत्नी के मन में भी अवसाद की छाया घर करने लगेगी। आपकी झुंझलाहट और चिड़चिड़ेपन के चलते आपकी पत्नी सोचेगी, 'अच्छा होता, मेरे पति और दो घंटे बाहर ही रहते।' __ आप कोई त्याग करना चाहते हैं, कोई व्रत और अनुष्ठान करना चाहते हैं, कोई पूजन और महापूजन करना चाहते हैं तो मैं कहूँगा पूजा अपने आप की कर लें। पहला, अनुष्ठान यह कर लें कि जो कचरा भीतर है उसे बाहर निकाल दें। संभव है, आप गुटका खाने के आदी हों और गुटका न छोड़ पाएँ। यह भी संभव है आप पान खाने के आदी हों और पान न छोड़ पाएँ। हो सकता है आप चाय पीने के शौकीन हों और चाय न छोड़ पाएँ, पर तनावों को पालने के आदी होने का तो कोई अर्थ ही नहीं है। चिंताओं को अपने दिमाग में धरे रखने का कोई औचित्य नहीं है। यह आपके जीवन की जरूरत कतई नहीं है। तनाव आपकी विफलता का कारण है। हम सिगरेट को छोड़ने की कोशिश बाद में करेंगे। पहले अपने दिमाग में जो व्यर्थ का कचरा AATEE 33 For Personal & Private Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भरा पड़ा है, चिड़चिड़ेपन का, गुस्से का, चिंता का, ईर्ष्या का, हम उसे त्यागने के लिए कृतसंकल्प हों। व्यक्ति अपने गुस्से और क्रोध को व्यक्त कर देता है तो उसकी दूषित ऊर्जा खर्च हो जाती है लेकिन जब वह अपने गुस्से का, अपने चिडचिडेपन का, अपनी खीझ का इज़हार नहीं कर पाता तो भीतर ही भीतर घुटते रहने पर जिस तत्त्व का निर्माण होता है, उसी का नाम तनाव है। जो चीज व्यक्ति के लिए चिंता का कारण बनती है, अगर वह उपलब्ध हो जाए तो व्यक्ति निश्चिंत हो जाता है और नहीं मिल पाए तो वही चीज व्यक्ति की चिंता का कारण बन जाता है। यही चिंता तनाव देती है। व्यक्ति सबके साथ मिल-जलकर चल रहा है, किन्तु यदि वह अकेला पड जाए तो खुद को भयभीत पाता है और इस भय के कारण व्यक्ति के दिमाग पर जो प्रतिक्रिया पैदा होती है, उसी के परिणामस्वरूप तनाव का जन्म होता है। बात खींचने पर बढ़ती है, रस्सी खींचने पर टूटती है। सिगरेट का कश लगाने पर वह छोटी होती है, ऐसे ही आदमी अपने दिमाग को जितना खींचेगा, जितने उसे रगड़ लगेंगे, आदमी का तनाव उतना ही बढ़ेगा। भला जब ईश्वर ने हमें बुद्धि दी है तो हम अपनी बुद्धि को तनाव के कारण क्यों जलाएँ? मनुष्य का मस्तिष्क एक तरल पदार्थ के भीतर सुरक्षित रहता है जैसे पानी तालाब में रहता है। पर अगर पानी सूख जाए तो सरोवर की मिट्टी की कैसी दशा होती है ? सूखे हुए तालाब की मिट्टी में दरारें पड़ जाती हैं, ऐसे ही तनाव, अवसाद, चिंता से घिर चुके मनुष्य का दिमाग भी तालाब की सूखी मिट्टी की तरह दरारों में बंट जाता है। तनाव विफलता का परिणाम होता है और विफलता तनावग्रस्त मानसिकता का परिणाम है। जैसे कोई आईना टने के बाद चेहरा देखने के काबिल नहीं रहता वैसे ही जो व्यक्ति तनाव से घिरा है, वह भी टूटे हुए आईने की तरह हो जाता है। लगातार तनाव से घिरे रहने के कारण उसके पास न तो प्रेम टिकता है, न शांति फटकती है, न उसे कोई सुकून मिलता है, न उसे खाने का आनंद आता है और न वह जीने का लुत्फ उठा पाता है। __ वह अपने आप में कुछ नहीं कर पाता। उसे सिर्फ डॉक्टर और दवाखाना ही दिखाई देता है। जो व्यक्ति अपने जीवन में तनावों से बचने के गुर, बचने के तरीके आत्मसात् कर लेता है वह न्यूरो की हर बीमारी पर विजय प्राप्त कर लेता है। जब तक धरती पर रहने वाले लोग अपने जीवन के साथ तनाव को जोड़े हुए रखेंगे तब तक डॉक्टर की, सुबह की गई हर प्रार्थना सार्थक होती रहेगी क्योंकि मरीजों की फीस से ही उसका धंधा चलता है। तनाव छोड़ने जैसा है। जिनके पास तनाव है उनके पास शांति नहीं है। कोई भी पक्षी जो चाहे तोता, चिड़िया या कबूतर हो, वे ऐसी किसी डाल पर बैठना पसंद नहीं करते जिस डाल के नीचे आग लगी हो या जिस पेड़ की शाखाएँ आग से झुलस रही हों। ___ शांति वहीं रहती है, प्रेम वहीं टिकता है, मधुरता और विनम्रता की सुवास वहीं पनपती है, For Personal & Private Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सफलता की मंज़िल वहीं मिलती है जहाँ तनावरहित आनंदमूलक स्थिति रहती है। कहते हैं, रगड़ खाकर दुनिया में सबसे पहले कोई चीज उत्तेजित होती है तो वह माचिस की तीली है। माचिस की तीली को ज्यों ही जरा-सी रगड़ लगी और वह आग से सुलग उठती है। हम देखें अपने-आप को। दुनिया में रहने वाला हर आदमी धैर्यपूर्वक, शांतिपूर्वक अपने-आप में देख ले कि कहीं वह माचिस की तीली तो नहीं बन चुका है ? कहीं ऐसा तो नहीं हुआ है कि एक छोटी- सी रगड़ लगी और आग सुलग उठी? कहीं किसी का एक छोटा-सा शब्द कानों में पड़ा और हम उत्तेजित हो गए? किसी की एक छोटी-सी गाली हमें क्रोधित कर गई। संभव है, आप चल रहे थे और चलते-चलते ही किसी का पाँव आपके पाँव पर आ गया और आप शांतिनाथ से अशांतिनाथ हो गए। कहीं ऐसा तो नहीं है कि जैसे माचिस की तीली जरा-सी रगड़ पाकर सुलग उठती है, ऐसे ही हम कभी चिंता के कारण, कभी तनाव के कारण, कभी क्रोध के कारण, कभी बोरियत के कारण सुलग उठते हों। क्या कभी आपने माचिस की तीली पर ध्यान दिया है ? उस माचिस की तीली के एक डंडी होती है, वैसे ही हम भी एक डंडी की तरह हैं। तीली के ऊपर एक गोल आकार रहता है वैसे ही हमारा यह माथा तीली की तरह गोलाकार होता है। माचिस की तीली के सिर तो होता है जैसे हमारे होता है। लेकिन हममें और तीली में फर्क मात्र इतना-सा ही है कि माचिस की तीली के सिर तो होता है पर दिमाग़ नहीं होता और हमारे सिर भी होता है और दिमाग़ भी। माचिस की तीली इसीलिए झट से सुलग उठती है क्योंकि उसके पास दिमाग़ नहीं, केवल सिर होता है। और हमारे पास तो मन भी है, बुद्धि भी है, मस्तिष्क भी है, सोचने और समझने की क्षमता भी है और विवेक और ज्ञान का उपयोग करने का सामर्थ्य भी है। अत: हम माचिस की तीली न बनें। अपने तनावों को छोड़ सकते हैं तो जरूर ही उनका त्याग कर दें। मैं आपको कुछ ऐसी मूलभूत बातें बता रहा हूँ कि जिन बातों को ध्यान में रखकर आप तनाव से बच सकते हैं और अगर तनाव है तो भी उसे त्यागने का मार्ग अपना सकते हैं। वे नुस्खे, जीवन की कला के ऐसे जीवित अमृतमंत्र हैं, जिनको अपनाने से हमें कभी तनाव नहीं होगा। तो पहली बात- अगर हम अपने जीवन में ध्यान रख सकते हैं तो मैं कहूँगा कि जीवन में चाहे जैसी परिस्थितियाँ आएँ, आप किसी भी परिस्थिति से विचलित मत होइए। उस विपरीत परिस्थिति का सामना कीजिए, उस समय अपनी बुद्धि का श्रेष्ठतम उपयोग कीजिए। आपके पास जितनी भी ईश्वरप्रदत्त, प्रकृतिप्रदत्त बुद्धि है उसका श्रेष्ठतापूवर्क उपयोग कीजिए। आप पाएँगे कि आप अपनी विपरीत परिस्थितियों का सामना करने में समर्थ हो चुके हैं। माना कि आपके आसपास चार लुटेरे आ चुके हैं और आप अकेले हैं। अगर आप पहले ही क्षण यह सोच बैठे कि अब मैं क्या करूँगा तो तत्क्षण ही आपके भीतर तनाव पैदा हो जाएगा और आप 35 For Personal & Private Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोई निर्णय करने में सक्षम न रहेंगे । लुटेरे आएँगे, आपको लूटेंगे और जाते समय मारकर भी चले जाएँगे। जब जीवन में विपरीत परिस्थितियाँ आती हैं तो उन्हें हम जीवन की सबसे बेहतरीन कसौटी समझें और उन क्षणों में ही अपनी बुद्धि का श्रेष्ठतम उपयोग करें। वे ही हमारी शिक्षा, हमारी समझ, हमारी शांति की कसौटी बनते हैं और तब हम उन विपरीत परिस्थितियों को पार कर लेने का सामर्थ्य भी अपने भीतर सँजो पाते हैं। अपनी पूरी चतुराई, पूरी बुद्धिमानी, पूरे माधुर्य का आप उपयोग कर डालें और इस तरह से आप विपरीत परिस्थितियों का सामना करें। आप पाएँगे, घटना घट गई पर किसी घटना ने आपको तनाव नहीं दिया। मुझे याद है अपने बचपन में पढ़ी हुई वह घटना कि जहाँ जंगल में रहने वाले पक्षियों को बहुत तेज प्यास लगती है और पक्षी भटकते-भटकते एक ऐसे घड़े के पास पहुँचते हैं जिसके तल में कुछ पानी है। यह घटना जितनी मुझे याद है, लगभग उतनी ही आपको भी याद होगी। घटना मुझे बार-बार प्रेरित करती है कि विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी बुद्धि तथा समझ का कैसे उपयोग किया जाता है? यह घटना बताती है कि उस घड़े के पास एक कबूतर भी पहुँचा और उसने झाँका । पानी नीचे था, बहुत नीचे । उसने अपने आपको झुकाने की कोशिश की, पर पानी न पा सका और वह उड़ गया। पानी तो था पर वह पानी से लाभान्वित न हो सका । चिड़िया भी आई होगी, तोता-मैना भी आए होंगे, पर कोई पानी न पी सका। तभी एक कौआ आया । कौए ने देखा कि घड़े में पानी नीचे है । परिस्थिति विपरीत थी उसके सामने। इसका समाधान कैसे किया जाए? उसने इधर-उधर नजर घुमाई और देखा कि वहाँ कुछ कंकर पड़े हैं। उसने एकएक कंकर चोंच से पकड़ कर उठाया और घड़े में डालना शुरू कर दिया । कंकर नीचे जाते गए और पानी ऊपर आता गया । पानी इतना ऊपर आ गया कि कौआ आराम से पानी पी सका । उसने पानी पिया, प्यास बुझाई और मुक्त आकाश में उड़ान भर गया । विपरीत परिस्थितियों का सामना कैसे किया जाए, इसके लिए इस कहानी से कौए की चतुराई की प्रेरणा लो। इस कहानी को याद रखो विशेष रूप से तब- जब हकीकत में विपरीत परिस्थितियों से सामना हो तो आप उनका समाधान ढूँढ सकें। कहते हैं, खाली दिमाग शैतान का घर होता है । साधक व्यक्ति के लिए तो खाली दिमाग अमृत का वरदान है, लेकिन आम इंसान के लिए खाली दिमाग शैतानियत करने की, कोई न कोई खुराफात करने की प्रेरणा जगाता रहता है । वह सोचता है कि ऐसा करके देखूँ, वैसा करके देखूँ। तो हम अपने आप को व्यस्त रखें। नहीं तो हाल ऐसा ही होगा जैसा उस फालतू व्यक्ति का हुआ था । उसके पास कोई काम न था । वह बेकार बैठा रहता था । बेकार था तो वह आलसी भी हो गया । वह हर काम कई घंटों में पूरे करता। नहाता तो दो घंटे लगाता, जब ब्रश करता तो घर के बाहर आकर चौकी पर बैठ LIFE 36 For Personal & Private Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाता, लोग आते, उनसे बातें करता और दाँतों को रगड़ता रहता। जैसा कि कल मैंने माती भाई पटेल की बात बताई। बड़ा गजब का आदमी था वह। उल्टेसुल्टे दिमाग का प्रतीक। उसके दिमाग में आया कि साँड तो बहुत कद्दावर है, इसके सींग भी बहुत शानदार हैं। एक बार अपना सिर तो इन सींगों के बीच घुसाकर देखू कि क्या होता है ? मोतीभाई प्रतीक है। ऐसा फालतू आदमी, बेकार आदमी और कुछ नहीं तो साँड के सींग में ही माथा डालने की सोचेगा। आखिर एक दिन उसने सींगों के बीच अपना माथा घुसेड़ ही दिया और जैसे ही माथा घुसा, साँड चौंका और इधर-उधर भागने लगा और उलट-पुलट करना शुरू हो गया। बेचारे आदमी की दस-बीस हड्डी-पसली जरूर टूट गई होगी। गाँव वालों ने बमुश्किल उसको निकालकर बचाया। गाँव वालों ने कहा, 'अरे, कुछ तो सोचकर करते।' मोतीभाई ने कहा, 'आप लोग भी कैसी बेवकूफी की बात करते हैं। अरे, मैंने पूरे तीन महीनों तक सोचा और उसके बाद ही माथा डाला है। अब इससे ज्यादा कितना सोचूँ।' फालतू बैठे आदमी की सोच भी उसके जैसी फालतू ही होती है। इसीलिए कहता हूँ व्यस्त रहो। जीवन में हर समय व्यस्त। पर अस्त-व्यस्त मत रहो। मैं एक बार किसी जेल में गया था क्योंकि वहाँ मुझे कैदियों को सम्बोधित करना था। जब मैं जेल के भीतर गया तो वहाँ मुझे दो पंक्तियों का एक अमृत वाक्य पढ़ने को मिला कि 'अगर तुम दु:खों से मुक्त रहना चाहते हो तो अपने आपको हर समय व्यस्त रखो।' मैंने वे पंक्तियाँ पढ़ीं और मुझे मंत्र की तरह लगीं। जैसे कृष्ण जेलखाने में पैदा हुए थे लेकिन वहाँ पैदा होना ही उनके लिए और धरती के लिए मुक्ति का द्वार बन गया। ऐसे ही जब मैं जेल में गया तो वहाँ से यह अमृत सूत्र लेकर आ गया कि 'हरदम अपने को व्यस्त रखो।' मैं दो व्यक्तियों की बात करूँगा। मैं उन दोनों व्यक्तियों का साक्षी हूँ जिनकी पत्नी मर गई थी। एक व्यक्ति करीब पैंसठ वर्ष का और दूसरा करीब चालीस वर्ष का था। पैंसठ वर्ष के आदमी की पत्नी मर गई तो मैं देखता कि वह आदमी रात को किसी धर्मस्थान में जाकर सो जाता। इत्तफाक की बात कि एक दिन मुझे भी उस धर्मस्थान पर जाने का मौका मिला। वहाँ पाँच-सात दिन तक रहने का अवसर भी मिला। मैं देखा करता कि वह आदमी रात भर तड़पता, हाथ-पाँव पटकता रहता और कहता, 'अरे त मर गई पर मेरा जीना दुस्वार कर गई।' मैं उसे देखा करता कि मरी तो उसकी पत्नी है, पर तनावग्रस्त वह हुआ है। वह दिन-रात फालतू रहता। नतीजन उसे रह-रहकर अपनी पत्नी की याद आती। वहीं मैंने देखा एक ऐसे व्यक्ति को जिसकी उम्र चालीस वर्ष की रही होगी। उसकी पत्नी भी मर गई। उसने स्वयं को, जितना व्यस्त वह पहले था, उससे दुगुना व्यस्त कर लिया। परिणामतः उसकी व्यस्तता ने ATER 37 For Personal & Private Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पत्नी की याद से उत्पन्न तनाव से मुक्त कर दिया, उसे तनाव से बचा लिया। तुम, सुबह उठने से ले कर रात को सोने तक स्वयं को सतत व्यस्त रखो। सुबह-सुबह तेज रफ्तार से पच्चीस मिनिट के लिए घूमने चले जाओ, व्यायाम कर लो, योगासन कर लो, ध्यान कर लो आधा घंटा। दुकान चले जाओ, अखबार पढ़ लो, बच्चों के बीच बैठ जाओ, बच्चों से प्यार करने लग जाओ। पत्नी से मिलो, माँ-बाप की सेवा में चले जाओ, कुछ भी करो लेकिन खुद को काम में लगाए रखो। ऐसा करने से आपका दिमाग फालतू के विचारों में खर्च नहीं होगा। आप एक और मंत्र लीजिए कि आप जो कुछ भी करते हैं, जैसा भी करते हैं, उससे प्यार करना सीखिए। जो भी व्यवसाय करते हों, विद्याध्ययन करते हों या अन्य कुछ भी काम करते हों, उससे प्यार करना सीखो। बेमन से कोई काम मत करो। बोझिल मन से किया गया काम पाँव की बेड़ी बन जाता है जबकि उत्साह भाव से किया गया काम व्यक्ति के लिए मुक्ति का प्रथम द्वार हो जाता है। कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता। हर काम अच्छा होता है। कभी किसी काम को करने में यह न सोचो कि यह काम छोटा और यह काम बड़ा। अगर तुम गरीब हो और धन नहीं लगा सकते तो बड़े व्यापार के बारे में मत सोचो। तुम फल की दुकान लगाकर बैठ जाओ और बड़े प्यार से उस धंधे को करो। तुम्हें मुनाफा होगा। फिर किसी अन्य व्यवसाय के बारे में विचार करो। अरे, दुनिया में कई लोग तो रद्दी इकट्ठी करके भी अपना गुजारा कर लेते हैं। हर कार्य को पूरे सलीके और पूर्ण उत्साह से कीजिए कि अगर कहीं स्वर्ग के देवता भी उसे देख लें तो तारीफ कर उठे। सलीके से काम करो। बहुत से काम खराब ढंग से करने के बजाय थोड़े से काम अच्छे ढंग से करना श्रेष्ठ है। अच्छे तरीके से, बहुत प्यार से, अदब से, मन से किसी भी काम को कीजिए। हां, अपने काम को इतनी परिपूर्णता के साथ कीजिए कि फिर किसी अन्य को उस काम को दोहराने की जरूरत ही न पड़े। अगर आप एक गृहिणी हैं, एक महिला हैं तो अपने घर में झाड़ भी इतने ढंग से लगाइए कि फिर किसी और को दुबारा झाड़ लगाने की जरूरत न पड़े। ऐसा लगे जैसे मंदिर में प्रभुभक्ति कर रहे हों या स्वीन्द्रनाथ टैगोर की 'गीतांजलि' लिख रहे हों या कोई उपन्यासकार अपने नूतन उपन्यास की रचना कर रहा हो। इतने सलीके से बुहारिए कि झाड़ लगाना भी किसी कहानी को पढ़ने जैसा आनन्द दे जाए। आँगन इतना साफ हो जाए कि आपके घर आने वाला एक बार तारीफ़ कर ही दे और जब वह खुद के घर जाए तो अपनी पत्नी से कहे, 'सफाई किसे कहते हैं, यह तुम वहाँ जाकर सीखो।' परिपूर्णता के साथ किया गया काम कभी छोटा या बड़ा नहीं होता। किस मन से आप काम करते हैं यह महत्त्वपूर्ण है। दुनिया का हर बड़े से बड़ा काम छोटा हो जाता है अगर आप उसे पूरे दिल For Personal & Private Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ से करें और छोटा काम भी बड़ा हो जाता है अगर उसे बोझिल, उदास मन से किया जाए। इसलिए अपने काम से प्यार करना सीखिए। अगर आप जिंदगी भर अपने आपको तनावमुक्त देखना चाहते हैं, खुश देखना चाहते हैं तो बेहतर होगा कि आप अपने काम से प्यार करें। एक बात और कहना चाहूँगा कि आप अपने आप को सदैव प्रसन्न रखें। प्रसन्नता सर्दी में सुबह की खिली धूप की तरह सुहावनी लगती है। तनाव से मुक्त रहने के लिए, तनाव से बचने के लिए यह प्रथम और अंतिम रामबाण औषधि है—हर हाल में मस्त रहना। अपने आपको इतना प्रसन्न रखिए कि अगर कोई गुस्सा करे तब भी आप मुस्कुराना मत भूलिए। गुस्सा उसे आ रहा है, उसकी मजबूरी पर हम गुस्सा क्यों करें? पापा ने डांटा, पापा सोचेंगे। उनको जरूर कोई परेशानी अथवा तनाव होगा। उनकी परेशानी हम अपने सिर क्यों लें? उनका तनाव उन्हें ही मुबारक! पापा गुस्सा करें तो भी, और प्यार करें तो भी- आप तो बस मुस्कुराइए। भोजन कर रहे हैं तब भी मुस्कुराइए और भोजन करने के बाद हाथ धोते समय भी मुस्कुराना न भूलें। हो सकता है, प्रारम्भिक दौर में यह मुस्कान कृत्रिम हो, आरोपित हो पर यह आरोपित मुस्कान भी आपकी सहज मुस्कान को जागृत करने में सहयोगी बन सकती है। जब सुबह-सुबह जागें, तो आँखें खुलते ही चाय की बात मत सोचिए। ईश्वर को भी बाद में याद करना, माता-पिता को प्रणाम करने के लिए भी बाद में जाना, पत्नी का चेहरा भी बाद में देखिएगा, अगर कोई फोटो सामने लगा हुआ है तो उस पर भी बाद में नजर डालना, पहले जी भर कर डेढ़ मिनिट तक मुस्कुराते रहें। उठकर बैठें और तबियत से मुस्कुरा रहे हैं। इतनी तबियत से कि यह मुस्कान दिलो-दिमाग तक पहुँचे, भीतर तक उतरे, हृदय तक, हाथों तक, पेट, कमर, पाँवों तक वह मुस्कान फैल जाए। केवल डेढ़ मिनिट का प्रयोग करें। जब आप बिस्तर से उठेंगे तो आप महसूस करेंगे कि भीतर एक अलग ही प्रकार की ऊर्जा का प्रवाह हो रहा है। यह प्रसन्नता की ऊर्जा है, आनन्द की ऊर्जा है। आप अपने भीतर अलग तरह का उत्साह उमंग पाएँगे। जब आप माता-पिता को प्रणाम करने जाएँगे तो अनायास ही आपके भीतर ऐसी ही मुस्कान होगी जैसी कि सूरज के उगने पर फूल खिल उठता है, फूल मुस्कुरा उठता है। जैसे चाँद के निकलने पर कमदिनी खिल जाती है ऐसे ही आपके भीतर मस्कान सतत बनी रहेगी। तब बच्चा आएगा या पत्नी सामने होगी तो भी वह सहज मुस्कान खिली रहेगी। भोजन करने से पहले मुस्कुराइए। कभी भोजन करते-करते लगे कि सब्जी खारी हो गई है तो भी एक बार यह सोच कर मुस्कुरा ही दीजिए कि जब उसे आपकी पत्नी खुद खाएगी तब उसे पता चलेगा कि आज कैसी सब्जी बनी है। किसी भी बहाने से ही सही, मगर आपके चेहरे पर मुस्कान हर हालत में रहनी चाहिए। LIFE 39 For Personal & Private Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुकान जाओ कि बाजार जाओ, किसी झील पर टहलने के लिए जाओ या रात में सोने की तैयारी करो, तब भी मुस्कुराते रहिए । मुस्कुराने के लिए बहाना चाहे जो ढूँढ लीजिए। पर मुस्कान को कभी मरने मत दीजिए। चाहे जिएँ, चाहे मरें, पर मुस्कान हर हाल में रहे। कहते हैं एक लड़का हमेशा खुशमिजाज रहता । था भी विनोदी स्वभाव का। एक दिन उसके पापा की कमर में चनक पड़ गई, सो दर्द ज्यादा ही हो रहा था। पापा ने बेटे से कमर दबाने को कहा। पर लड़का इतना हल्का था कि उसके वज़न से पापा का कमर दर्द ठीक न हो पाया। लड़के ने अपनी मम्मी से कहा कि मम्मी तुम पापा की कमर दबा दो । इत्तफाक की बात कि मम्मी उस समय झाड़ लगा रही थी। सो वह पापा की कमर दबांने आ गयी। पापा ने कहा, पाँव से दबाओ, ताकि जोर पूरा लगेगा। मम्मी अपने पाँवों से पापा की कमर दबा रही थी। एक हाथ में झाडू था। बेटे को खुराफात सूझी। उसने कमरे की ओर से फोटो खींच लिया। दो महीने बाद जब पापा-मम्मी की 'मैरीजएनवर्सरी' आई, तो बेटे ने उन्हें एक पैकेट गिफ्ट दिया और शर्त रखी कि आप इसे अकेले में खोलेंगे । मम्पी पापा दोनों कमरे में गए। पैकेट खोला, तो चौंक पड़े। उसमें एक लेमिनेटेड फोटो था, जिसे देखने पर लग रहा था मानो मम्मी पाँवों से पापा की पिटाई कर रही हो और हाथ में रखे झाड़ू से हजामत । मम्मी-पापा को काटो तो खून नहीं । उन्हें बच्चे की शरारत पर गुस्सा भी आया और हँसी भी । मम्मी तो सीधे झाडू उठा लायी बेटे की पिटाई करने को। वह जैसे ही बेटे के पास आई कि लड़के ने कहा, मम्मी, सावधान ! मेरे पास फोटो की दूसरी कॉपी भी है। अगर पिटाई की, तो फोटो सार्वजनिक हो जाएगा। तभी पापा अन्दर से आए और कहने लगे, 'ऐसा 'अप्रैल फूल' जिन्दगी में पहली बार बना ।' और यह कहते हुए उन्होंने बेटे को गोद में उठा लिया। सब हँस पड़े। उस घटना की घर में जब भी चर्चा होती है, तो सहज ही हँसी की होली छूट पड़ती है। जीवन भर तनाव से मुक्त रहने के लिए सौम्य मुस्कान से बढ़कर अन्य कोई मंत्र नहीं हो सकता, अन्य कोई अमृत - पथ नहीं हो सकता । ध्यान रहे, दाँत मत दिखाना किसी को । इतने जोर से भी मत हँसना कि तुम्हारी असभ्यता उजागर हो । केवल मुस्कान ही बनी रहे ! हँसना नहीं, मुस्कुराना है। लोग लॉफिंग क्लब चलाते हैं । अरे, इतनी जोर से मत हँसो कि हृदय पर दबाव पड़े या मस्तिष्क की नसें तन जाएँ। लोग हँसते हैं, चिल्ला-चिल्लाकर हँसते हैं और कहते हैं कि दिमाग का पूरा कचरा निकाल दो। 'अरे भइया, कचरा तो निकाल रहे हो, पर कहीं कुछ साइड इफेक्ट न हो जाए, इस बात LIFE 40 For Personal & Private Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ का भी ध्यान रखना । मुस्कुराना सदाबहार फूल की तरह है, जिससे आप अपनी चिकित्सा खुद कर रहे होते हैं । इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता। हां, कभी - कभी हो भी सकता है जब पापा गुस्सा कर रहे हों और आप मुस्कुरा दें। तो ऐसा मार्ग क्यों न अपनाएँ जिससे निन्यानवें फायदे और एक नुकसान हों। आप चाहें तो उस नुकसान से भी बच सकते हैं। ध्यान रखें, पापा को गुस्सा आने पर आप उनके सामने मुँह करके मत मुस्कुराइए । मुस्कुराएँ तो जरूर, पर अपना मुँह थोड़ा घुमा लीजिए और तब बात कीजिए । यह औषधि स्वयं मनुष्य द्वारा ईजाद की हुई है । इसका एक प्रतिशत साइड इफेक्ट होता है और शायद उससे भी हम बच सकते हैं। प्यार से हर समय मुस्कुराते रहिए। ये नाचते मोर, गुटरगूं करते कबूतर, रंग बिखेरते इन्द्रधनुष, उमड़ती लहरें, खिलते फूल, टिमटिमाते तारे— हमें सौम्यता के, मुस्कान के ही तो संदेश देते हैं । मधुर वाणी और मधुर मुस्कान - जीवन की सफलता के लिए इससे बढ़िया और कोई मन्त्र नहीं है । जरा आप मुझे बताइये कि कोई आपसे पूछे— 'कैसे हैं जनाब ?' तो आपका क्या जवाब होगा? आप सहजता से कहेंगे, 'मजे में हूँ ।' अपनी इस पंक्ति को हमेशा याद रखिए और अपने आपसे पूछते रहिए कि कैसे हो ? सीधा जवाब आये- 'मजे में हूँ ।' तनाव मुक्ति के लिए यह अच्छा सूत्र है'मैं मजे में हूँ।' बस, इस जवाब को सदा याद रखिए और मस्ती से, फकीरों की इस अलमस्ती से, मुस्कान और आनन्द से भरे रहिए । - कोई गम का वातावरण भी बन जाए, आपकी किसी की मृत्यु भी हो जाए तो भी आंतरिक मुस्कान क्षीण न हो। हमारा अपना ही मित्र हो, प्रियजन हो पर आँसू भी गिरें तो भी मुस्कान के साथ । आँखें गीली हों पर हृदय की मुस्कान कम न हो। आप उसे अपनी मुस्कान की श्रद्धांजलि अर्पित कीजिए । अपनी मुस्कान के चार फूल अर्पित कीजिए कि उसे मुक्ति मिल गई। आँसू ढुलकाने से उसकी आत्मा को भी अशांति पहुँचेगी, किन्तु मुस्कान के फूल चढ़ाने से उसकी आत्मा की भी सद्गति होगी। अगर आप रोएँगे तो संभव है, वह आत्मा पुनः देह में लौटने को आतुर हो जाए या किसी भी बहाने आपके आसपास ही मंडराए । अगर आप मुस्कुराहट के साथ उसे विदा करेंगे तो सबके लिए अच्छा है। 'ठीक है प्रभु, यह काया जो तुझसे मिलने में बाधक थी, वह विसर्जित हो गई ।' ‘मेरा मित्र तुझमें समा गया, तुझे प्रणाम है ।' तुम मित्र को भी प्रणाम करो, दादा गुजर गए हों तो उन्हें भी प्रणाम करो और ईश्वर को भी प्रणाम करो । लेकिन मुस्कान हर हालत में बनी रहनी चाहिए। T For Personal & Private Use Only LIFE 41 www.jalnelibrary.org Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तो लोगों से मिलें तब भी मुस्कुराकर मिलें । छोटी-छोटी बातों को लेकर गुस्सा न खाएँ । छोटी-छोटी बातों और गलतियों को नज़र अंदाज करने की आदत डालें, वरना आप फिर-फिर खिन्न और क्रोधित हो उठेंगे। हो-हल्ला करने की आदत छोड़िए । शांति को मूल्य दीजिए । तौलिया जब फर्श पर है, तो सुर अर्श पर क्यों ? हो-हल्ला करने से आपका चेहरा बड़ा भद्दा दिखाई देने लग जाएगा, जबकि उसे सुन्दर रखने के लिए आप न जाने कितनी तरह के क्रीम पाउडर लगाते हैं। सदाबहार खुश रहना संसार का सबसे अच्छा क्रीम पाउडर है । 'फील गुड' का आजकल बड़ा प्रचार है। फील गुड अर्थात् हर समय अच्छे मिजाज के मालिक बनो । तनाव घटाने के लिए कभी-कभी थोड़ा संगीत भी सुनिए, रस- प्रधान संगीत सुनिए । जो बातें मैंने पहले कही हैं, वे तो तनाव पैदा ही न हो, इसके लिए हैं। पर पुरानी बीमारियाँ अगर रही हैं, तनाव अगर पहले से ही है तो उसको भी तो दुरुस्त करना पड़ेगा। आप थोड़ा संगीत सुना करें, कभी-कभी । दिन भर रेडियो या टेप न चलाएँ बल्कि मधुर संगीत, जैसे बाँसुरी या अन्य कोई वाद्ययंत्र जो वातावरण में मधुरता घोल दे, सुनें। अगर खुद बजा सकते हों तो अच्छा है और न भी बजा सकते हों तब भी किसी अच्छे कलाकार की बाँसुरी के स्वर, कभी वीणा - सितार के स्वर आधा घंटे तक चलाइए और उसका आनंद लीजिए । तनाव घटाने के लिए एक काम और कर सकते हैं। वह यह कि यदि आप कभी शाम के समय जब आराम कुर्सी पर बैठे हैं तो एक कागज हाथ में ले लीजिए और चित्र बनाना शुरू कर दीजिए। हो सकता है, आपको चित्र बनाना नहीं आता हो। कोई बात नहीं, आड़ी-तिरछी रेखाएँ ही खींचिए। घोड़ा बनाने की कोशिश कीजिए। हो सकता है घोड़ा नहीं, घास बन जाए। घोड़ा न बने और उसकी जगह मुर्गा बन जाए। कोई बात नहीं, आप अपना काम जारी रखिए । बच्चा जब पहले-पहले कलम हाथ में लेता है तो आड़ी-तिरछी चलाता है । जो वह भी करता है, उसे देखकर खुश भी होता है। उसकी कल्पना काम करती है। धीरे-धीरे हो सकता है कि वह पूरा चित्र ही बना डाले । कुछ दिनों के बाद आप भी पाएँगे कि आपने कोई सृजन किया है, कुछ निर्माण किया है। आपने जो कुछ भी निर्मित किया है, उससे आपको बहुत सुकून मिलेगा । सृजनात्मक कार्य का अपना आनन्द है। ऐसा सृजन जो धन कमाने के लिए नहीं होता पर रचनात्मक जरूर होता है। यह रचनात्मकता ही आपके तनाव को कम करेगी। तनाव को कम करना है, तनाव को हटाना है तो एक प्रयोग और कर सकते हैं। वह यह है कि दस-पंद्रह मिनिट के लिए आप लेट जाइए। अपने पाँव के अंगूठे पर अपना ध्यान लगाइए और धीरेधीरे ऊपर चढ़ते हुए अपने शरीर के एक-एक अंग पर धैर्यपूर्वक अपना ध्यान केन्द्रित कीजिए । जहाँ 42 For Personal & Private Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जहाँ तनाव है, खिंचाव है, वहाँ-वहाँ शिथिलता, रिलैक्स होने का भाव कर । इतना रिलैक्सेशन कि आपका तनाव घट जाए । पन्द्रह मिनिट तक किया गया यह प्रयोग हमको निश्चित ही तनाव से उबार देता है बशर्ते हम यह प्रयोग थोड़ा धैर्य और ईमानदारी से करें। अगर आपकी कमर में दर्द है तो तीन मिनिट का प्रयोग करें और अपना ध्यान उस ओर ले जाएं। उस भाग की मांसपेशियों को ढीला छोड़ें, शिथिल करें, सहज होने दें। अपनी सम्पूर्ण ऊर्जा और ध्यान उस भाग पर केन्द्रित कर दें। अपने स्वयं के प्रयोग से अगर लाभ न हो तब फिर किसी चिकित्सक के पास जाइए और औषधि लीजिए । तीन मिनिट में यह रिलैक्सेशन, शिथिलीकरण और शवासन आपको भला-चंगा कर देगा । कभी-कभी कोशिश कीजिए कि आप प्रकृति के पास जा सकें। किसी खिले हुए फूल पास जाइए। उसके सौन्दर्य और उसकी सुवास को महसूस कीजिए । प्यार से उसे सहलाइए। अगर कोई कबूतर गुटरगूं कर रहा है तो उसे उठाइए मत। उसके पास जाकर बैठ जाइए। उसकी गुटरगूं सुनिए। आपको बहुत मजा आएगा। कबूतर के जोड़े की गुटरगूं का आनन्द लीजिए। आप देखिए कि उसमें जीवन का आनंद किस प्रकार संचारित है। उनमें भी जीवन का क्या स्वरूप है ? उनकी गुटर-गूं का अपने मन की गुटर-गूं से मिलान कीजिए। उसकी मनोदशा तथा समता का अनुभव होते ही आपका मन भी शांत होने लगेगा। आप कभी उड़ते हुए पंछियों को देखें, खिले हुए फूलों को देखें, उगते हुए सूरज को देखें, बादलों को सूरज से अठखेलियाँ करते हुए देखें, आसमान में टिमटिमाते हुए तारों को देखें, चाँद के शीतल प्रकाश में स्वयं को एकरूप कर दें। कुछ भी कर सकते हैं । आप यदि और किसी सरोवर के पास चले गए तो वहाँ उठती - गिरती लहरों को देखें और किलोलें करते हुए पक्षियों का कलरव सुनें । प्रकृति के सान्निध्य में जीने व्यक्ति अपने सान्निध्य में आता है और वहीं उसका तनाव मिट जाता है। कभी किसी फूल के पास जाओ तो उसे तोड़ो मत, उसे प्यार से चूम लो । वह कली, वह फूल आपको ऐसी अन्तर्चिकित्सा दे देगी, ऐसा अन्तर्सुकून देगी कि फूल की खिलावट आपके अन्तर्मन में बस जाएगी। आपका मन भी फूल की तरह खिल उठेगा । ये छोटे-छोटे सूत्र, ये छोटे-छोटे मंत्र ज्योतिकणों के समान व्यक्ति को तनाव से बचा सकते हैं, उसे तनाव से मुक्त कर सकते हैं। बेहतर होगा कि आप यह कोशिश करें कि अपने आप को व्यस्त रख सकें। आप अपने कार्य से प्यार करना सीखें। ये बातें जीने जैसी हैं। यह प्रयोग हर हमेशा करें कि मुस्कुराते रहें । जैसी भी स्थिति या परिस्थिति हो, दिल से मुस्कुराना न भूलें। सुबह आँख खुली कि अंग-अंग मुस्कुरा उठे। कभी रात में भी नींद खुल जाए तो भी मुस्कुरा दें और पुनः सोने का प्रयास करें। अगर नींद न आए तो वे ही बातें याद करें जो आपको सुकून देती हैं, आपमें मिठास भरती हैं हमारी भावदशा ऐसी हो जैसे खिला हुआ फूल । | For Personal & Private Use Only LIFE 43 Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तनाव से बचना और मुक्त होना हमारे ही हाथ में है। हम चाहें और वह काम न हो यह कैसे संभव है ? इस वक्त भी प्यार से मुस्कुराइए और हर हाल में मस्त रहिए! जीवन को बहुत सहजता से जिएँ। सहजता तनाव-रहित जिन्दगी की धुरी है। सहज जिएँ, सौम्य रहें, व्यस्त और मस्त रहें। आज के लिए अपनी ओर से इतना ही निवेदन है। आप सभी के अन्तर्मन में विराजित परमपिता परमेश्वर की दिव्य आभा को प्रणाम! For Personal & Private Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कैसे साधे जीवन में शांति मन में शांति तो विश्व में शांति जीवन का बेशक़ीमती मंत्र है - 'शांति चाहिए तो शांत रहिए।' मंत्र बिल्कुल सीधा-सा है, पर बात केवल जीने की है। हर व्यक्ति के हर दिन की शुरुआत शांतिपूर्वक ही होनी चाहिए और हर दिन का समापन भी शांतिमय ही होना चाहिए। स्वयं शांति में ही धैर्य की शक्ति समायी रहती है, शांति में ही आत्मविश्वास का सम्बल होता है और शांति में ही परमात्मा का साम्राज्य होता है। कोई व्यक्ति धनवान है या ग़रीब, बुद्धिमान है या मूर्ख, उच्च सत्तासीन है या चौकीदार – ये सभी पहलु जीवन के उत्थान और पतन के प्रतीक हो सकते हैं, लेकिन हर किसी के सामने एक प्रश्न-चिह्न अवश्य होना चाहिए और वह यह कि मन में शांति है या नहीं! मन में शांति हो तो ग़रीबी भी नहीं कचोटती।मन में ही अगर शांति नहीं है, तो अमीरी स्वयं ही आदमी पर व्यंग्य बन जाती है। मन में अगर शांति है तो हमारी For Personal & Private Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौकीदारी भी हमें हीनभाव से ग्रस्त नहीं होने देगी। मन की शांति ही अगर खंडित हो गई तो हम उच्च सत्ता और ऊँची कुर्सी पर बैठकर भी न तो अपने आप से संतुष्ट हो पाएँगे और न ही तृप्त। जैसे क्षितिज का अन्त नहीं होता, ऐसे ही तृप्ति का अन्त नहीं होता। जैसे आकाश का अन्त नहीं होता ऐसे ही प्राप्ति का कोई अन्त नहीं होता, पर जहाँ चित्त में शांति की धारा फूट पड़ी वहाँ जिस डगर पर हमारा क़दम खड़ा होगा, हम वहाँ भी तृप्त रहेंगे। जिस ओर हमारी नज़र पड़ जाएगी, उस ओर हमें संतुष्टि रहेगी। हम जिस भी वातावरण में रहेंगे, हर वातारण में हमारे साथ स्वर्ग का नन्दनवन होगा। जो व्यक्ति शांत मन का स्वामी है उसे अगर नरक की आग में झोंक दिया जाए तब भी स्वर्ग उसके साथ होता है। अशांत मन के व्यक्ति को अगर स्वर्ग के दरवाज़े तक पहुँचा दिया जाए, तब भी वह वहाँ नरक का निर्माण कर लेता है । स्वर्ग और नरक दोनों ही हमारे साथ छाया की तरह चलते हैं। आगे स्वर्ग है तो पीछे नरक है । मन शांत है तो आगे स्वर्ग है । मन अशांत है तो आगे नरक है, स्वर्ग कहीं और छिपा पड़ा है। जीवन में अगर कोई व्यक्ति किसी भी पहलू को हर हाल में महत्त्व देना चाहे तो मैं कहूँगा कि शांति को सबसे ज़्यादा मूल्य देना। निश्चित ही पैसा मूल्यवान है, लेकिन शांति पैसे से भी ज़्यादा मूल्यवान है। निश्चय ही पत्नी की क़ीमत है, पर शांति पत्नी से भी ज़्यादा क़ीमती है। संतान का मोल अनमोल होता है, लेकिन शांति का मोल संतान से भी ज़्यादा मूल्यवान होता है। जीवन में वह हर डगर स्वीकार्य है, वह हर व्यक्ति स्वीकार्य है, वह हर निमित्त स्वीकार्य है जिसके पास बैठने से, रहने से या जीने से हमारी शांति को कोई ख़तरा न होता हो। जिसके कारण हमारे मन की शांति बाधित होती है, खंडित होती है, हमारा मन बार-बार क्रोधित, उत्तेजित और आवेशित हो जाता है, वह हर निमित्त, हर वस्तु, हर व्यक्ति त्याज्य है, त्याज्य है, त्याज्य है.....! लोग कहते हैं रिश्ते तो स्वर्ग में बन जाया करते हैं। ज़रा मुझे कोई यह बताए कि जिस पति-पत्नी के बीच आए दिन झगड़े चलते रहते हैं उनके रिश्ते स्वर्ग पर बने या धरती पर? मुझे तो लगता है कि ऐसे लोगों के रिश्ते स्वर्ग में नहीं, किसी नरक में बनकर आते होंगे। बिचारे नरक को पूरा न भोग पाए होंगे, तो यहाँ आकर उसकी खानापूर्ति कर रहे हैं। ऐसे लोग आते भी नरक से हैं और यहाँ भी नरक को ही जीते हैं। माफ़ करें मुझे यह कहने के लिए कि ऐसे झगड़ालु पति-पत्नी मरकर जाते भी नरक ही हैं। ___ अरे भाई, तू-तू, मैं-मैं करके क्यों अपने जीवन को नरक बना रहे हो। हो सकता है आप में से कोई यहाँ स्वर्ग से आया हो या कोई नरक से। अपन जहाँ से आए हैं उसको तो अब बदला नहीं जा सकता। पर जहाँ आए हैं उसे तो बदला जा सकता है। लक़ीर के फ़क़ीर मत बनो। हवाएँ बदलती हैं, मौसम बदलता है, रिश्ते बदलते हैं फिर हम ही झगड़ों के पुराने कलेण्डरों को ढोते क्यों फिरें ? अब पुराने ज़मानों की तरह आपके कोई दस-बीस पत्नियाँ तो हैं नहीं । कुल मिलाकर एक-दो पत्नियाँ होंगी और एक-दो ही पति होंगे। MITED 46. For Personal & Private Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हो सकता है एक ही हो। अगर ऐसा है तो निश्चय ही आप शीलवती हैं । जो भी हो, तुम्हारी बैलगाड़ी तुम्हें खींचनी है, पर कम-से-कम झगड़े, शिकायत, शिकवे और टोंटबाजी करके अपनी छोटी-सी जिंदगी को अशांत और नरक तो मत बनाओ। प्रेम करने के लिए भी जीवन छोटा पड़ा रहा है। तुम झगड़ा कर-करके जीवन को ख़तम कर रहे हो! उस गधे से मोह रखने का क्या मतलब जिसकी दुलत्ती हम बार-बार खाते चले जा रहे हैं । हम पीड़ित होते चले जा रहे हैं, लेकिन फिर भी हम उसकी दुलत्ती खाने को मज़बूर हो रहे हैं। अगर चित्त में शांति है तो हमारे थोड़े से सुख-साधन भी बड़े सुकून देते हैं और चित्त में ही अगर शांति नहीं तो कोई आदमी भले ही जॉर्ज बुश भी क्यों न बन जाए, मगर वह वहाँ बैठा-बैठा भी किसी सद्दाम हुसैन को फाँसी लगाने का जज़्बा पालता रहेगा; वहीं यदि कोई लादेन हो जाएगा तो वह जंगलों में छिपा हुआ रहकर भी जॉर्ज बुश को उड़ाने का जाल बुनता रहेगा। क' से ही कृष्ण होता है और 'क' से ही कंस। 'ह' से हरिश्चन्द्र होता है और 'ह' से ही हिटलर। दोनों के अक्षर एक हैं, दोनों की राशि एक है, पर दोनों के जीवन के परिणाम अलग-अलग हैं। यदि आप कृष्ण होना चाहते हैं तो अपने मन को वैसी दिशा दीजिए। हरिश्चन्द्र होना चाहते हैं तो मन को शांति और सत्य का स्वाद दीजिए। किसी ने मुझसे पूछा, 'कृष्ण होने का रास्ता तो आपने बता दिया। कंस होना हो तो?' मैंने कहा, 'कंस बनने के लिए रास्ता बताने की ज़रूरत नहीं है । वह तो अपन किसी-न-किसी रूप में अभी हैं ही।' मेरे लिए शांति मूल्यवान है । कोई अगर मुझसे पूछे कि मैंने अपनी साधना का, अपने जीवन का पहला लक्ष्य कौन-सा बनाया? मैंने शास्त्र पढ़े, मुझे शास्त्रों में पढ़ने को मिला कि परमात्मा होना या परमात्मा को पाना तुम्हारा लक्ष्य हो। मैंने शास्त्रों में यह भी पढ़ा कि आत्मा को पाना या देखना तुम्हारा लक्ष्य हो, लेकिन मैंने जब अपने आपको पढ़ा तो उससे जो बात सार रूप में निकल कर आई वह यह थी कि अंतरमन की शांति को पाना ही तुम्हारा पहला लक्ष्य हो । सच्ची शांति वही है जिसे कोई भी बाधा खंडित न कर पाए। मैंने सुना है : एक बार किसी गृहस्थ के घर पर एक संत आया जिसने काले कपड़े पहन रखे थे। गृहस्थ ने पूछा, 'आपने काले कपड़े क्यों पहन रखे हैं?' संत ने जवाब दिया, 'मेरे काम, क्रोध आदि की मृत्यु हो गई है, उन्हीं के शोक में मैंने ये काले वस्त्र धारण किए हैं।' यह सुनते ही गृहस्थ ने अपने नौकर को आदेश दिया कि इस संत को घर से बाहर निकाल दो। नौकर ने हुकुम की तालीम की। संत अभी दस क़दम ही आगे चला होगा कि गृहस्थ ने उसे वापस बुलवाया। जैसे ही वह घर पहुँचा कि फिर उसे धक्के देकर वापस बाहर निकलवा दिया। कहते हैं इस तरह गृहस्थ ने उसे सतरह बार अपमान करके घर से बाहर निकलवाया। लेकिन इसके बावजूद संत के चेहरे पर न गुस्सा आया, न खीझ । आख़िर गृहस्थ ने संत की वंदना करते हुए For Personal & Private Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कहा आप सचमुच क्षमावंत हैं। मैंने आपको गुस्सा दिलाने की सतरह बार कोशिश की, पर आप इसके बावजूद शांत ही रहे। आपने सचमुच क्रोध पर विजय प्राप्त कर ली है। गृहस्थ की बात सुनकर संत मुस्कुराया और कहने लगा, 'बस करो, ज़्यादा तारीफ़ मत करो। मुझसे ज़्यादा क्षमाशील तो वे कुत्ते होते हैं जो सौ बार बुलाने और दुत्कारने पर भी दुबारा आ-जाया करते हैं । अरे, जिसका पालन कुत्ते भी कर सकें, उसमें प्रशंसा की कौन-सी बात है ?' जो जीता वही सिकन्दर । जो दुनिया को जीते वह सिकन्दर, जो ख़ुद को जीते वह महावीर । महावीरत्व का रास्ता शांति के द्वार से निकलता है। मैं शांति का पुजारी हूँ, शांति का पथिक हूँ, शांति का अनुयायी हूँ। शांति मेरी सहेली है। एक ऐसी सहेली जो दिन में भी मेरे साथ रहती है और रात को भी। जिसने अपने जीवन में शांति को अपनी सहेली बना लिया उसे दिन में भी आनंद है और रात में भी। कल जब एक सज्जन ने मुझसे पूछा कि क्या आपको रात को नींद बराबर आती है? मैंने कहा, भला जिसे कोई चाह और चिंता नहीं, जो परमात्मा की हर व्यवस्था में राज़ी रहता है उसे भला चैन की नींद क्यों न आएगी? अंतरमन में यदि शांति है तो जब जो करोगे, वह अपनी पूर्णता लिये होगा। मैं आपको साधना और सफलता का इतना-सा रहस्य ज़रूर समझा देता हूँ कि जब जो करो, पूरे मन से करो। भोजन करो तो केवल भोजन करो। भोजन करते वक्त इधर-उधर की मत सोचो। सडक पर चलो तो सजगतापर्वक केवल चलो। इधर-उधर ताक-झाँक मत करो। सोओ तो केवल सोओ। सपने मत बुनते फिरो। जहाँ एक काम एक मन' का मंत्र जीवन में जिया जाएगा वहाँ स्वतः शांति और आनंद-दशा रहेगी ही। ध्यान रखो केवल ध्यान या सामायिक की बैठक लगाना, हर रोज़ अलसुबह मंदिर में धोक लगा आना या हनुमान चालीसा का पाठ कर लेना – यही धर्म नहीं है। इंसान का पहला धर्म तो उसकी शांति होना चाहिए। मन में शांति है तो घर भी मंदिर है। सांसों का अनुभव करना भी ध्यान है। मन में ही अगर शांति नहीं है तो भले ही मंदिर चले जाओ मन तम्हें वापस धक्का देगा। तब तम मंदिर में बैठ न पाओगे। वैसे भी मंदिर में क्या बैठोगे जब मन ही मरघट बना हुआ है। आख़िर जलती चिता पर तो कोई भी ज़िंदा आदमी जाकर नहीं बैठेगा। शांति के कबूतर जलती चिता पर नहीं, स्नेह और सुरक्षा के चंदन-वृक्ष पर जाकर बैठा करते हैं। तुम शांति के स्वामी बनोगे, तो तुम्हारी पत्नी भी तुमसे प्यार करेगी। तुम्हारे बच्चे भी तुम्हारी सौम्यता पर फ़िदा होंगे। तुम्हारे माँ-बाप भी तुम्हें अपने आँचल से लगाना चाहेंगे । हो-हल्ला करने वाला चाहे पति हो या पिता अथवा बेटा, नापसंद ही किया जाएगा। यदि आप शांत और सौम्य हैं तो आपकी पत्नी को आपके पास ही स्वर्ग नज़र आएगा।आप यदि बदमिज़ाज़ हैं तो आपसे दूर रहने में ही उसे सुकून महसूस होगा। ज़रा सोचिए कि आप एक-दूसरे की क़रीबी चाहते हैं या दूरी? मैं चाहता हूँ कि गीत की ये पंक्तियाँ आपके लिए सार्थक हों आप जिनके क़रीब होते हैं, UFE For Personal & Private Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वे बड़े ख़ुशनसीब होते हैं । आप तो शांति को अपना सिंदूर बनाइए और शांति को ही अपना सौभाग्य। हाथों में शांति का ही कंगन और ब्रासलेट पहनिए और शांति की ही चेन और मंगलसूत्र । आप जिस घर में रहें उस घर को शांति का उपवन बनाइए। आप जिस छत की छाँह में बैठे हैं उस छत को शांति की सीमेंट से तैयार करें। आप जिन नज़रों से देखें उन नज़रों से शांति का नूर बरसाइए । जिस ज़बान से बोलें उस ज़बान पर शांति का शहद लगाएँ। आप जिन कानों से सुनें उन कानों में शांति का संगीत घोलें। जीवन में न तो ज़्यादा सरपच्ची करें और न ही ज्यादा छातीकूटा। दिनभर हाय-हाय करने की आदत छोड़ें। प्रभु ने जीवन के रूप में जो प्रसाद दिया है, स्वर्ग जैसे मीठे रिश्ते दिए हैं, सुख-साधन दिए हैं, उनका आनंद लीजिए, उनमें आनंदित रहने की आदत डालिए। हम सब साथ-साथ रहें, साथ-साथ खाएँ- पिएँ, साथ-साथ जिएँ-मरें। राम की तरह जिएँ, कृष्ण की तरह करें और महावीर की तरह मरें। तीनों ही जीवन को सार्थक करेंगे और तीनों ही जीवन को पूर्णता देंगे। शुरुआत होगी शांति से । शांति से खाओ, शांति से जाओ। शांति से चलो, शांति से कपड़े पहनो । हर काम शांति से करो । बस, धीरज धरो और शांति से जिओ । अपने मन में सदा शांति का चैनल चलाओ। शांति वज़ूद दो। जीवन में शांति के बादशाह बनो। किसी को ईश्वर या मोक्ष मिले या न मिले, पर यदि शांति की ख़ुशहाली मिल गई, चित्त शांतिमय हो गया तो समझो कि यह ईश्वर और मोक्ष प्राप्ति के समान ही है। शांति स्वयं प्रस्थान बिन्दु है। शांति स्वयं पड़ाव है। शांति स्वयं मंज़िल है। शांति से बढ़कर न कोई मंज़िल है, न कोई पड़ाव है, न कोई मील का पत्थर है। शांति से बढ़कर कोई प्रकाश स्तम्भ नहीं कि जिसको हम अपनी आँखों में बसा कर रख सकें। शांति से बढ़कर कोई सुवास नहीं जिसे हम अपने नासापुटों में सँजो सकें । शांति से बढ़कर कोई संगीत नहीं जिसे हम अपने कानों में संजोकर रख सकें। अगर आप चार लोगों के बीच बैठे हैं, उन लोगों से बात-चीत कर रहे हैं और बातचीत करते-करते ही यदि लगे कि वातावरण दूषित हो गया, हमारी शांति प्रभावित हो गई, तो बिना किसी झिझक के, बिना किसी ननुनच के, बिना किसी संकोच के अपने आपको तत्काल उस वातावरण से अलग कर लें। अब अगर एक पल भी आप वहाँ ठहर गए तो हमारी शांति खंडित होगी और जब भी शांति खंडित होती है तो या तो वह अशांति और चिंता का रूप ले लेती या क्रोध की आग पकड़ लेती है या वैमनस्य के जाल में हमें उलझा देती है । जो समझेगा अपनी अशांति को, वही शांति की ओर अपने क़दम बढ़ा सकेगा। जो समझेगा कि मैं अशांत हूँ, अमुक व्यक्ति या अमुक परिस्थिति मेरे लिए अशांति का कारण है, वह व्यक्ति ही अपनी विनम्र बुद्धि में, अपने सरल हृदय में शांति की दृष्टि को, शांति की लौ को, शांति के नज़रिये को, शांति की शैली को विकसित कर सकेगा। वरना छातीकूटा है ज़िंदगी, माथाफोड़ी है जिंदगी। सब लोगों के बीच जीना, सब . For Personal & Private Use Only LIFE 49 Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लोगों को निभाना, सब लोगों की मान-मानकर और सब लोगों को मना-मनाकर चलना, केवल औरों को ख़ुश करने के लिए, औरों के दिल में हमारी छवि खराब न हो केवल इसलिए हम बार-बार अपने साथ, अपनी शांति के साथ समझौता करते रहते हैं, बार-बार अपने आपको गिरवी रखते रहते हैं। हमारी इस तरह की मानसिक उलझन और ऊहापोह से ही ज़िंदगी बोझिल बनती है, हम टेंसन में आते हैं, हम चिंता और आतंक के साए में जीते हैं। जिंदगी ज़रूर एक समझौते का नाम है। जिंदगी में ग़मों के साथ समझौता करना पड़ता है। हम चाहे जितने समझौते कर लें, पर एक मूल्य, एक लक्ष्य, एक दीपशिखा हमारी आँखों में, हमारे रग-रग में रहनी चाहिए और वह है शांति। ____ मंदिर जा पाएँ या न जा पाएँ, पर शांति अवश्य रखें । व्रत-अनुष्ठान कर पाएँ या न कर पाएँ, पर शांति ज़रूर रखें। साधना के लिए बैठ पाएँ या न बैठ पाएँ, पर शांति का विवेक अवश्य रखें। क्या खाया, क्या पिया, कहाँ गए, क्या किया – इन सब चीज़ों से ज़्यादा मूल्यवान है हमारी शांति। व्यर्थ की माथापच्चियों से, व्यर्थ के छातीकूटों से अपने आपको दूर रखें। व्यर्थ के बोझों को अपने साथ मत ढोओ। उन निमित्तों से अपने आपको निरपेक्ष रखें जो कि हमारी शांति को बार-बार कुंठित कर देते हैं, खंडित कर देते हैं, फिर चाहे वे बच्चे-बीवी भी क्यों न हों। बच्चा किसे प्यारा नहीं होता, सभी को बच्चे प्यारे हैं। मुझे भी प्यारे हैं, आपको भी प्यारे हैं, इसीलिए तो भगवान का भी बाल-रूप स्वीकार किया है, हम बालरूप की पूजा करते हैं। पत्नी भी सबको अच्छी लगती है। कौन कहेगा कि उसे अपनी पत्नी बुरी लगती है। अगर बुरी लगती तो तुम कभी के बाबाजी बन गए होते, पत्नी तो सबको अच्छी लगती है। ऐसे ही हर पत्नी को उसका पति प्रिय होता है। पर यह पति-पत्नी और बच्चों के बीच जो छातीकूटा होता है, वो अच्छा नहीं लगता। हर महिला में चार कमियाँ होती हैं और हर पुरुष में भी। अब न तो महिला सीता जैसी है जो सब कुछ मौनपूर्वक झेल ले और धरती में समा जाए।और न ही पुरुष राम की तरह है जिसमें कोई दोष ही न हो। बहिनो! ज़रा ध्यान रखो कि आपका पति कोई संत नहीं है, जो सब कुछ झेलता जाए। हम सब यहाँ पर इंसान के रूप में जन्मे हैं और दुनिया का कोई भी इंसान दूध का धुला नहीं होता। इसलिए कमियों पर झल्लाते रहने की बजाए जो है, जैसा है, उसी में ख़ुश होना सीखिए। अगर व्यक्ति या वातावरण बोझिल या दूषित है तो 'रोना' रोते रहने की बजाय प्रेमपूर्वक अपनी श्रेष्ठ बुद्धि का इस्तेमाल कीजिए और अपनी शांति, अपनी मुस्कान, अपनी मिठास और अपने मीठे व्यवहार से व्यक्ति और वातावरण को बेहतर और अनुरूप बनाने का प्रयत्न कीजिए। मैं तो कहूँगा कि आपके पति या आपकी पत्नी का नाम चाहे जो हो, पर आज मैं एक नये पति से, एक नयी पत्नी से आपकी मुलाकात करवा देता हूँ। मैंने भी कभी इससे मुलाकात की है। उसका नाम है – शांतिचंद / शांतिदेवी। अगर आप महिला हैं For Personal & Private Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तो 'शांतिचंद' से प्रेम कीजिए और यदि आप पुरुष हैं तो 'शांतिदेवी' से। मन की शांति ही जीवन की वास्तविक पत्नी है, बाकी तो केवल सामाजिक व्यवस्था या मानसिक कमज़ोरी है। जीवन को अगर शांति की दहलीज़ की तरफ बढ़ाना है तो हर हाल में शांति को मूल्य देना होगा, हमें शांति भरे शब्दों का इस्तेमाल करना होगा। शांति की कसौटी होती है विपरीत हालात। विपरीत हालातों पर विजय प्राप्त करने के लिए ही नियति और प्रकृति की व्यवस्था को स्वीकार करने पर जोर दूँगा। जब भी हानि का सामना करना पड़े तब-तब यही सोचिए कि जब-जो-जहाँ-जैसा होना होता है तब वो वहाँ वैसा होकर रहता है। जो होनी है उसको टाला नहीं जा सकता। जो अनहोनी है उसको होनी बनाया नहीं जा सकता। सुख भी, दुःख भी; विजय भी, पराजय भी; जन्म भी, मृत्यु भी; योग भी, वियोग भी; खिलना भी, मुरझाना भी; मिलना भी, बिछुड़ना भी - सब संयोग के अधीन हैं। दुनिया में कोई भी व्यक्ति दुःख नहीं चाहता फिर भी उसे दुःख मिलता है। हानि नहीं चाहता फिर भी हानि उठानी पड़ती है। कोई भी अपना अपमान या अपयश नहीं चाहता, पर इसके बावजूद हमें अपमान और अपयश झेलना पड़ता है। जो चीज़ हमारे न चाहने पर भी हो जाए तो समझ लेना कि वह होनी थी। होनी को अनहोनी न समझें। हर होनी के प्रति स्वागत-भाव रखें। यदि हम किसी भी होनी को अनहोनी समझेंगे तो हम तनाव और अवसाद के आगोश में चले जाएँगे। __ मैं तो कहूँगा जन्म को भी आप प्रकृति की एक व्यवस्था समझें और मृत्यु को भी। किसी का जन्म हो जाए तो भी सहज और किसी की मृत्यु हो जाए तो भी सहज । हानि को लेकर टेंसन मत पालिए और लाभ को लेकर अहम-भाव और राग-भाव का पोषण मत कीजिए। जो हर हाल में सहज और प्रसन्न रहता है वही अपनी चेतना में शांति को बनाए रखने में सफल होता है। लोग कबीर के साधुक्कड़ी अंदाज़ के फ़िदा हैं। आप भी समझिए इस अंदाज़ को। कहते हैं एक सौदागार के पास खूबसूरत दासी थी। एक बार उसे किसी दौरे पर बाहर जाना था, पर वह यह तय नहीं कर पा रहा था कि वह अपनी दासी को किसके पास छोड़ कर जाए। आख़िर उसके एक मित्र ने उसे सलाह दी कि वह अपनी दासी को संत युसुफ़ के पास छोड़ जाए। जब वह संत युसुफ़ के पास पहुँचा तो उसे गाँव वालों से उसके बारे में ऐसी बातें सुनने को मिलीं, जो कि संत-जीवन की मर्यादा के ख़िलाफ़ थीं। इसलिए सौदागर वापस लौट आया। उसने अपने मित्र से संत के ख़िलाफ़ सुनी बातें बताईं, पर इसके बावजूद मित्र ने संत युसुफ़ की महानता और उसके पवित्र आचरण की तारीफ़ की। मज़बूर होकर वह फिर संत के पास पहुँचा, लोगों ने संत की निंदा करके फिर उसे बरगलाने की कोशिश की, पर इस बार वह मज़बूत मन के साथ संत की कुटिया में जा पहुँचा । संत ने उसे जो धर्मोपदेश दिया उससे वह बड़ा प्रभावित हुआ। उसने कहा, 'आपका ज्ञान और वैराग्य निश्चय ही विलक्षण है, पर मैं अभी तक.भी यह नहीं समझ पाया कि आप अपने पास यह बोतल और प्याला क्यों रखते हैं ? इनकी वज़ह से ही लोग आपको शराबी के रूप में बदनाम करते हैं।' ATED 51 For Personal & Private Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संत युसुफ़ मुस्कुराए और अपने रहस्यमयी अंदाज़ में कहा, 'मेरे पास पानी के लिए बर्तन नहीं था। मुझे नदिया के किनारे यह बोतल और प्याला ऐसे ही पड़े हुए मिल गए। मैंने उन्हें धोया और अपने पानी पीने के लिए इस बोतल और प्याले को रख लिया।' सौदागार ने कहा, 'महाराज, बदनामी तो इसी कारण हो रही है।' संत युसुफ़ दुबारा उसी रहस्यमयी हँसी को दोहराते हुए कहने लगे, 'अरे भाई, इसीलिए तो मैंने यह बोतल और यह प्याला अपने पास रखा हुआ है। बदनामी के कारण ज़्यादा लोग मेरे पास नहीं आते । मैं खुद भी यही चाहता हूँ कि मेरे पास लोग कम आएँ, ताकि मैं अधिक-से-अधिक समय ईश्वर की इबादत में लगा रहूँ। सौदागर ज़रा सोचो कि अगर मेरी बदनामी न होती तो तुम अपनी सुन्दर दासी मेरे पास न छोड़ जाते? देखा, मैं कितने फ़ायदे में हूँ जो हर झंझट से बचा हुआ हूँ।' कितनी ग़ज़ब की अलमस्ती है यह। फ़क़ीरी और इबादत को जीने के लिए बदनामी भी मंजूर है। दुनिया की तो फ़ितरत ही यही है कि यहाँ इज्ज़त कम और बेइज्जती ज़्यादा मिलती है। यहाँ सम्मान कम, अपमान ज़्यादा मिलता है। सफलता के अवसर कम, विफलता के अवसर ज़्यादा मिलते हैं। हर किसी सफलता के पीछे विफलताओं की कहानी समाई हुई रहती है। आख़िर दुनिया में कोई भी इंसान ऐसा नहीं है जिसे हानि-लाभ, जीवन-मरण, यश-अपयश और सफलता-विफलता का सामना न करना पड़ा हो । यदि हम प्रकृति और नियति की व्यवस्थाओं को अपने दिलोदिमाग़ में जगह नहीं देंगे, उसके प्रति विश्वास नहीं करेंगे तो हर कोई आदमी अपने एक जीवन में दस दफ़ा नहीं, सौ दफ़ा आत्महत्या करने को प्रेरित हो उठेगा। आत्महत्या पाप है, अपराध है। आत्महत्या किसी समस्या का समाधान नहीं है। आत्महत्या से तो और सत्तर समस्याएँ खड़ी होती हैं । समस्या का समाधान है - आप अपनी मानसिकता को बदलें। जब मौसम और हवाएँ एक-सी नहीं रहतीं, पौधे सदा हरे-भरे नहीं रहते, खिले हुए फूलों को भी कभी-न-कभी बिखरना और मुरझाना पड़ता है, तो फिर हम और हमारी परिस्थितियाँ भी सदा एक जैसी कैसे रह पाएँगी! परिवर्तन ही प्रकृति का धर्म है । यह धर्म मेरे साथ भी लागू होगा और आपके साथ भी। अपन सभी प्रकृति के एक हिस्से हैं । दुनिया का कोई भी तत्त्व प्रकृति की व्यवस्था से ऊपर नहीं है। प्रकृति की व्यवस्था सब पर लागू होती है। भगवान महावीर को पूजने वाले भी काफी मिले होंगे, तो कानों में कीलें ठोकने वाले भी अवश्य मिले। जीसस को चर्च में लाखों अनुयायी मिले, तो सलीब पर चढ़ाने वाले लोग भी ज़रूर मिले। ज़रा भगवान राम के जीवन पर विचार करके तो देखें कि उन्हें अपने जीवन में लगातार दुःख, पीड़ा, विरह और संकटों का ही सामना करते रहना पड़ा। राम को अपने जीवन में इतनी पीड़ाएँ झेलनी पड़ी कि उनका अवतार-जीवन केवल एक तपस्या बनकर रह गया। पर प्रश्न है कि राम फिर भी क्या हारे? जो हार में भी जीत का रास्ता निकालता रहे, पीड़ा में भी क्रीड़ा का गेम खेल ले, उसी का नाम ही तो राम है। ___ आदमी की वीरता महावीर नाम रख लेने से नहीं होती, संकटों का सामना करने में ही महावीर की For Personal & Private Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कसौटी होती है। यह तो तय है जो आज़ादी के आंदोलन में कूदेंगे उन्हें शहीद भगतसिंह होना होगा। जो छात्र । पढ़ाई करेंगे उन्हें कभी फेल भी होना पड़ेगा। जो लोग व्यापार करेंगे उन्हें कभी नुकसान भी झेलना होगा। जो लोग रिश्ते बनाएँगे उन्हें रिश्तों की मिठास के साथ उसकी खटास भी झेलनी होगी। आप सोचो कि पति सदा प्रियतम बना रहे और पत्नी प्रियतमा तो प्रकृति की व्यवस्थाओं में ऐसा संभव नहीं है। व्यक्ति कभी उखड़ता भी है, कभी ऊबता भी है, कभी खीझता भी है। अब यह इंसान का मूड है, कब किस रास्ते पर मुड़ जाए कोई पता नहीं है। मुझे जल्दी से कभी कोई बात बुरी नहीं लगती, विपरीत हालात मुझ पर हावी नहीं होते क्योंकि मुझे जीवन का यह रहस्य भली-भाँति ज्ञात है कि संसार में सब कुछ परिवर्तनशील है। यहाँ कोई भी चीज़, कोई भी परिस्थिति और कोई भी व्यक्ति, उसका कोई भी व्यवहार स्थाई नहीं है। जो लोग यहाँ सम्मान देते हुए दिखाई देते हैं वे ही कभी अपमान का ज़हर पिला देते हैं । जो लोग कभी आलोचना करते थे आज वे ही जन्म-जन्म के मीत बन जाते हैं। किसके जीवन में कल क्या होगा, इसे कोई नहीं जानता। दुनिया यूँ ही चलती रहेगी। तुम साथ चलो तो अच्छा और न चलो तो भी कोई फ़र्क नहीं पड़ने वाला। बचपन में सुना हुआ वह गीत जीवन में कई दफ़ा काम आता है – 'समझौता ग़मों से कर लो, ज़िंदगी में ग़म भी मिलते हैं। पतझड़ आते ही रहते हैं, मधुबन फिर भी खिलते हैं।' कभी सरोवर या सागर के किनारे बैठकर प्रकृति की व्यवस्थाओं को समझने की कोशिश करो। देखो कि सागर में किस तरह लहरें उठती और विलीन होती हैं। शांत सरोवर भी कई दफ़ा लहरों से आंदोलित हो जाता है। मैं कहूँगा कि कभी आप लहरों को देखिए और कभी अपने आप को। जैसे लहरें उठती और गिरती नज़र आती हैं ऐसे ही लोग भी, लाभ भी, हालात भी, रिश्ते भी उठते और गिरते नज़र आएँगे। यदि आपको इस दौरान प्रकृति का मर्म समझ में आ गया तो आप हर हालात से ऊपर उठ जाएँगे। मेरी भाषा में यही आपका मोक्ष है। मैं नियतिवादी नहीं हूँ, मैं पुरुषार्थवादी हूँ, पर मैं नियति की व्यवस्थाओं को स्वीकार अवश्य करता हूँ। नियति और प्रकृति की व्यवस्थाओं को समझ लेने के कारण ही मैं दु:ख और पीड़ाओं से बचा हुआ रहता हूँ। आप भी पुरुषार्थ करें, पर पुरुषार्थ करते हुए जब हार खा बैठे तो उसे नियति की सहज व्यवस्था मानकर ख़ुद को फिर से सहज कर लें। ध्यान रखें सहजता में ही शांति की आत्मा समाई हुई है। मैं सहज जीवन जीता हूँ, सहज मार्गी हूँ। आरोपित, दिखाऊ या बनावटी जीवन अंतत: दुःख का ही कारण बनता है। प्रकृति सहज है, सूरज और चाँद सहज हैं, फूल और काँटे सहज हैं, हम भी सहज हों। सहजता ही शांति है, सहजता ही दिव्यता है, सहजता ही मुक्ति है। यदि किसी के द्वारा हमारे प्रति बुरा व्यवहार हो जाए तो कृपया आप उसका बुरा न मानें । उसके पास शांति का बोध नहीं है, उसका अपने आप पर नियंत्रण नहीं है, इसी वजह से उसने हमारे प्रति बुरा व्यवहार ATER 53 For Personal & Private Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किया, बुरी भाषा बोली, बुरा आचरण किया। क्या कोई भी समझदार आदमी भला किसी को टेढ़ी भाषा क्यों बोलेगा? किसी के द्वारा गाली निकालने का मतलब ही यही है कि उसमें इतनी अक्ल नहीं है कि वह सही शब्दों का चयन कर पाए । गाली-गलौच-गुस्सा – ये सब नासमझी की निशानी हैं । मूर्ख लोग गुस्सा करते हैं और समझदार लोग परिस्थिति पर विजय प्राप्त करते हैं। __ आप स्वयं को पोज़िटिव बनाएँ। नेगेटिविटी ही अशांति को बढ़ावा देती है, ईर्ष्या और बुरा व्यवहार करवाती है, गुस्सा और आवेश दिलाती है। वहीं पोजिटिविटी शांति को जन्म देती है, प्रेम और मुस्कानभरा व्यवहार करवाती है, परिस्थितियों पर विजय दिलवाती है। जीवन की बाज़ी को जीतने का पहला हथियार ही है – पोजिटिविटी। सकारात्मकता हर समस्या का समाधान है, हर समस्या का तोड़ है। मेरे लिए तो सारा जीवन ही एक तप है। विपरीत हालातों पर विजय प्राप्त करते हए जीवन को जीना अपने आप में एक तपस्या ही है। दुश्मन को भी सम्मान देना, अपमान देने वालों को भी मुस्कान लौटाना, नुकसान हो जाने पर भी समता और मस्ती को जीना किसी तपस्या से कम नहीं है। इसलिए किसी के ग़लती कर जाने पर गुस्सा मत कीजिए। ग़लती होना पहली ग़लती है, पर ग़लती पर गुस्सा करना दूसरी ग़लती है। क्या हम ग़लतियों का ही इतिहास दोहराते रहेंगे या अच्छाई और भलाई के भी बीज बोएँगे? __लोग क्या कहेंगे, इसकी भी ज़्यादा परवाह मत कीजिए। यह जो एल.के.के.' वाला मामला है न, कि 'लोग क्या कहेंगे' यह न किसी को जीने देता और न ही मरने देता है। बिल्कुल लिक्विड ऑक्सीजन वाली डालता है। लिक्विड हमें जीने नहीं देता और ऑक्सीजन हमें मरने नहीं देता। आप तो वह करें जिसे करना आप उचित समझते हों। लोगों के कहे-कहे चलोगे तो बंदे न इधर के रहोगे न उधर के। अपनी हालत त्रिशंकु की तरह मत बनाओ कि न आकाश के रहे न ज़मीन के। चाँद-तारों पर नज़र भले ही रखो. पर पाँव सदा ज़मीन पर टिकाए रखो। अपनी नज़रों को सदा सूरज पर केन्द्रित रखो ताकि हमें अपनी परछाई दिखाई न दे। सदा आगे बढ़ो, पीछे की मत सोचो। जो हो गया सो हो गया।होए का और खोए का क्या रोना? जो अभी तक आया ही नहीं उसके बारे में क्या सोचना? जो है, उसका आनंद लीजिए। जो है, उसमें संतुष्टि का अनुभव कीजिए। अब यह कितनी बड़ी विडम्बना है कि अपन लोगों के पास पैसा भी है और सम्मान भी, फिर भी संतुष्टि नहीं है। अब जब संतोष ही नहीं है तो शांति कहाँ से होगी। कृपया प्रेक्टिकल बनिए। केवल शांति के सपने मत देखते रहिए, केवल शांति की बातें मत करते रहिए, केवल शांति के कबूतर मत उड़ाते रहिए। शांति चाहिए तो शांत रहने की आदत डालिए, शांतिप्रिय भाषा बोलिए। जिंदगी चार दिन की है, व्यर्थ में क्यों इतनी हाय-तौबा करते हैं ? सब यहीं छोड़-छुड़ाकर चला जाना है। अपने ‘माईत' भी अपना सब कुछ यहीं छोड़कर गए। हम सब भी यहीं छोड़कर जाएँगे। जैसे हम छोड़कर जाएँगे वैसे ही हमारे बच्चे भी अपने साथ कुछ नहीं ले जाएँगे। भले ही हम सब मुट्ठी बाँध कर CIFE 54 For Personal & Private Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यों न आए हों, पर जाना तो हाथ पसारे ही होगा। व्यर्थ के लोभ-लालच, हो-हल्ला छोड़ो। चार दिन की जिंदगी है, इसे खूब प्यार से जीकर जाओ। जीवन बड़ा मूल्यवान है। इसे सब रंगों से भरो। शरीर को स्वस्थ रखो और चित्त को शांतिमय । समाज में हिल-मिलकर रहो और जीवन में धर्म को धारण करो। धरती पर आए हैं तो कुछ फूल खिलाकर जाएँ। हम रहें तो फूलों की तरह महकें और चले जाएँ तो भी कपूर की तरह अपनी सुवास छोड़ जाएँ। हम यदि सकारात्मक और पोज़िटिव रहेंगे तो हम हर नेगेटिविटी में भी अपनी शांति को बरकरार रख लेंगे, हर नकारात्मकता में भी हम अपनी शांति को अखण्ड रख लेंगे वरना शांति कोई चिड़िया का नाम नहीं है कि जब चाहो उसको बुला लो। यह तो समझ का परिणाम है। सकारात्मकता का, दृष्टि का परिणाम है यह । मेरी समझ से यदि आप सदा पोज़िटिव रहते हैं तो अपने पौने डॉक्टर तो आप ख़ुद हो गए। आपको किसी न्यूरोफ़िजिशियन के पास जाने की ज़रूरत नहीं होगी। जो सदा शांत, सौम्य और सकार उसका मेडिकल बिल सदा निल बट्टा निल रहता है। जीवन को एक व्यवस्था दीजिए। कर्मयोग अवश्य कीजिए। दिन के चौबीस घंटों में से आठ घंटे मेहनत अवश्य कर लेनी चाहिए। फिर चाहे वे आठ घंटे दिन के हों या रात के। ज़्यादा पैसे के पीछे भी मत दौडो। अपन लोग कोई पैसा कमाने के लिए पैदा नहीं हए हैं। पैसा जीवन के साधनों को बटोरने का एक साधन है। साधन को साधन जितना ही मूल्य दीजिए। साधन को साध्य बना बैठेंगे, तो जीवन दुश्वार होगा ही। ज़्यादा पापड़ मत बेलो। दो, पाँच, दस, अब कीजिए बस। अगर पैसा कमाएँ तो भी ध्यान रखें कि हराम के पैसे पर नज़र न टिकाएँ। बेईमानी का धन कमाकर हम अपनी पत्नी को हीरे की चूड़ियाँ तो पहना देंगे, पर कहीं ऐसा न हो कि हमारे हाथों में लोहे की हथकड़ियाँ लग जाए। मेरी तो सलाह है कि जीवन को शांति से जिओ, प्रेम से जिओ, नैतिक मूल्यों के साथ जिओ, अच्छे मन से जिओ। अपनी ओर से कोई गलती हो जाए तो सॉरी कह दो और दूसरों से ग़लती हो जाए तो माफ़ करने का बड़प्पन दिखाओ। जीवन में कभी किसी की हाय मत लो। हमसे जो बन जाए सेवा कर दो। वापस कुछ पाने की लालसा मत करो।ईश्वर सदा उनके साथ रहता है जो नेकी करते हैं और भूल जाते हैं। जीवन में मस्त और आनन्दित रहने की आदत डालो। हर हाल में मस्त रहना, अपने आप में एक बहुत बड़ी साधना है। ईश्वर करे अपन सभी इस साधना में सफल हों। For Personal & Private Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ pornosonasamuasomaaaaaamwoma r macausnepal क्या स्वी जिंदगी का ! GENOMICRomancaNCINECHODomeramane samIORamananONOREDIC wosamundarmawoonarraamarwinpornaNEMANTRacharsion कभी खट्टा | कभी मीठा भगवान संसार-सृजन के कार्य में व्यस्त थे। वे तरह-तरह के खिलौने बना रहे थे और उनके लिए उनके कार्य, कर्त्तव्य और आयुष्य निर्धारित करते जा रहे थे। भगवान ने जो पहला खिलौना उठाया वह था 'गधा'। उस खिलौने में उन्होंने प्राण फूंके और कहा – 'गर्दभराज, मैं तुम्हें धरती पर भेजता हूँ, वहाँ तू जितनी चाहे, मेहनत करते रहना। खाने-पीने के लिए तुझे चिंता नहीं करनी चाहिए। तेरा मालिक तुझे जो डाल देगा, तू उसी में राजी रहेगा। अगर मालिक ने न भी दिया तो गांव-जवार के बाहर पड़ी अकूड़ी से भी तू अपना पेट भर लेना। मैं तेरी कमर बहुत मज़बूत बना रहा हूँ और तुझे पचास साल का आयुष्य देता हूँ'। गधा भगवान की बात सुनकर यह कहते हुए उनके चरणों में लोट गया – 'प्रभो, आपका हर आदेश मुझे स्वीकार है, पर भगवन् , काम करते-करते मेरी तो कमर ही टूट जाएगी। आपकी बड़ी कृपा होगी अगर आप मेरा 56 For Personal & Private Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आयुष्य आधा कर दें'। मुस्कुराकर भगवान बोले – 'तथास्तु' । गधा पच्चीस वर्ष की आयु लेकर धरती पर आ गया। दूसरा खिलौना जो भगवान ने उठाया उसे हम आज की भाषा में कुत्ता' कहते हैं। भगवान ने कहा – 'तुझे मैं काम न करने की छूट देता हूँ। जिस गली-मोहल्ले में रहने की तेरी इच्छा हो, वहीं का शेर बन जाना। तुझे कुछ भी करना-धरना नहीं है। मैं तुझे चालीस वर्ष की उम्र देता हूँ'। कुत्ते ने कहा – 'प्रभु, इधर-उधर बेकार ही भागते-दौड़ते मैं थक जाऊँगा, कृपाकर मेरी उम्र भी आधी कर दीजिए'। और तब कुत्ता बीस साल की उम्र लेकर धरती पर आ गया। __ भगवान ने जो तीसरा खिलौना उठाया उसे हम आज की भाषा में 'बंदर' कहते हैं। उसमें प्राण फूंकते हुए भगवान ने कहा - 'तुझे गलियों में रहने की ज़रूरत नहीं है। तू आज़ादी से जंगलों में वृक्षों पर इधर से उधर कूदते-डोलते रहना। तुम्हें मैं तीस वर्ष की ज़िंदगी देता हूँ।' बंदर ने भी कहा – 'भगवान, मैं तो डोलते-डोलते ही थक जाऊँगा। प्रभु, मेरी आयु भी आधी कर दी जाए।' बंदर भी आधी उम्र लेकर धरती पर आ गया। अंतिम खिलौना जिसमें प्राण फूंककर भगवान ने जीवंत किया उसे हम अपनी भाषा में 'इन्सान' कहते हैं। भगवान ने उससे कहा - 'इन्सान, मैंने अपने जीवन के अच्छे से अच्छे पदार्थों और परमाणुओं का उपयोग करके तुम्हारा निर्माण किया है। मैं तुम्हें दिल भी देता हूँ, बुद्धि भी देता हूँ, आने-जाने के लिए पाँव भी देता हूँ और कमाने के लिए हाथ भी देता हूँ और तुम्हें सर्वगुणों की खान बनाकर पृथ्वी पर भेजता हूँ। मैं तुम्हें पच्चीस वर्ष का आयुष्य प्रदान करता हूँ।' इन्सान ने भगवान के चरणों में गिड़गिड़ाते हुए कहा – 'भगवन्, आपकी लीला अजब है। आपने इतनी सारी चीजें मुझे सौगात के रूप में दीं, पर उम्र केवल पच्चीस साल ! तब मैं इस दिल, बुद्धि का क्या उपयोग करूँगा?हाथ और पाँव से भी मेहनत करके क्या करूँगा?' भगवान ने कहा- 'अब तू चाहे जो कर, मेरे पास उम्र का जितना कोटा' था वह पूरा हो गया।अब कोटे में टोटा है।' भगवान ने इन्सान को बुद्धि दे डाली थी। उसने तुरंत ही बुद्धि का उपयोग किया और कहा - 'भगवन्, आपके कोटे में टोटा है तो क्या हुआ, जो-जो उम्र अभी-अभी धरती पर गये हुए गधे, कुत्ते और बंदर ने आधी करवाई है, वही सब आप मुझे क्यों नहीं प्रदान कर देते।' भगवान मुस्कुरा दिये और 'तथास्तु' कह दिया। ___ भगवान से आशीर्वाद पाकर इन्सान धरती पर आ गया। पच्चीस साल की ज़िंदगी तो वह इन्सान की तरह जीता है। उसके बाद उसकी आयु गधे के समान शुरू होती है। वह घर से दुकान और दुकान से घर, घर से दफ्तर और दफ्तर से घर यानी गधे की तरह घर से घाट और घाट से घर के बीच धक्के खाता रहता है। यहीं पर ही उसकी मुक्ति नहीं होती। आगे चलकर उसकी आयु कुत्ते जैसी शुरू हो जाती है - बहू-बेटों ने जो ALTFE 57 For Personal & Private Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुछ उसे डाल दिया, उसी में उसे संतुष्ट रहना पड़ता है। वे जैसा चाहें, उसे हड़काते हैं, लतियाते हैं और वह चुप रह जाता है। जब कोई इन्सान सत्तर वर्ष की आयु पूर्ण कर लेता है तो बंदर की तरह इधर से उधर, उधर से इधर, कभी बड़े बेटे के घर और कभी छोटे बेटे के घर रोटियाँ खाकर अपनी ज़िंदगी के दिन पूरे करता है। 1 इस कहानी का नाम है - 'जीवन की कहानी'। यह एक काल्पनिक कहानी ज़रूर है, पर आप सभी इस कहानी की सच्चाई से वाक़िफ हैं। हम लोग कहीं-न-कहीं इस कहानी के पात्र ज़रूर हैं। हमारा जीवन ही हमारी पूंजी है । जीवन जीने की बेहतरीन कला और शैली सीखकर हम इस जीवन को परमात्मा का पुरस्कार बना सकते हैं। जो ठीक ढंग से जी पाते हैं उन्हें मरने के बाद किसी स्वर्ग को पाने की अभीप्सा नहीं रहती, उनका वर्तमान जीवन ही स्वर्ग हो जाता है। वे जहाँ जाते हैं और जहाँ रहते हैं, वहीं स्वर्ग उतर आता है। व्यक्ति के एक हाथ में करोड़ों की सम्पत्ति हो और दूसरे हाथ में ज़िंदगी हो तो उसमें ज़िंदगी ही मूल्यवान है क्योंकि जीवन के होने पर ही करोड़ों की सम्पत्ति का मूल्य है अन्यथा सम्पत्ति बेकार है। मार्क ट्वेन ने कहा -'मेरी पत्नी जहाँ रहती थी, वहीं मेरा स्वर्ग होता था । ' - इन्सान की बहुमूल्य दौलत है। जीवन है तो स्वास्थ्य का मूल्य है, धन और ज्ञान का मूल्य है । जीवन से ही चरित्र, रिश्ते और समाज का मूल्य है । अगर हाथ से जीवन छिटक जाए तो सारी चीज़ें निरर्थक हो जाती हैं । मार्क ट्वेन के लिए पत्नी ने कोई स्वर्ग बनाया नहीं था, अपितु उसका प्रेम, परिवार के लिए त्याग, सौहार्द ही स्वर्ग का निर्माण था । जिस परिवार में प्रेम हो, आनन्द हो, भाईचारा हो, त्याग की भावना हो, वहाँ सदा-सदा स्वर्ग ही बना रहता है । कहा एक पादरी महोदय जो प्रोफेसर भी थे, बच्चों को बाइबिल पढ़ा रहे थे । उन्होंने अपने विद्यार्थियों से जब-जब मैं बाइबिल पढूँ और उसमें जहाँ-जहाँ स्वर्ग का उल्लेख आए, प्रभु का उल्लेख आए, तब-तब तुम लोग खूब मुस्कुराना और कहना 'यही है सत्य, हम इसे ही पाना चाहते हैं, धन्य है यह ।' छात्र यह सुनकर प्रसन्न हुए, परन्तु पूछा- 'सर, यह तो ठीक है, लेकिन जब नरक का उल्लेख आ जाए तब हम क्या करें ?' पादरी ने कहा- - 'जब नरक का उल्लेख आए तब कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं है। उन पंक्तियों से जितना जल्दी आगे निकला जा सके उतना ही बेहतर है क्योंकि नरक में तो हम जी ही रहे हैं । - - LIFE 58 — नरक को बनाने के लिए प्रयत्न करने की ज़रूरत नहीं है, स्वर्ग बनाने के लिए पहल करने की ज़रूरत होती है। सच्चाई तो यह है कि इन्सान का जीवन तो कृषिभूमि की तरह होता है, जिसमें अगर अच्छे बीज बोए जाएँगे तो अच्छी फसलें उगेंगी, अन्यथा झाड़-झंखाड़ को तो उगने से रोका नहीं जा सकेगा। एक ओर तो हमें अच्छे बीज बोने होंगे तो दूसरी ओर जंगली घास, बबूल के काँटों को काटना, निकालना होगा। अपने जीवन में प्रेम और शांति, करुणा और आनन्द, प्रसन्नता और मैत्रीभाव के बीजों का रोपण करना होगा। हिंसा, क्रोध, ईर्ष्या, चिड़चिड़ेपन और नफ़रत के काँटों को जीवन के खेत-खलियानों से काटकर हटाना होगा। For Personal & Private Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हर व्यक्ति स्वर्ग पाना चाहता है, पर स्वर्ग बनाना कोई नहीं चाहता। जिसने वर्तमान जीवन को स्वर्ग बनाया है. उन्हीं को मरने के बाद स्वर्ग मिला करता है। अगर लड़ते-लडते. स्वार्थ में अंधे होकर जीते हैं तो जान लीजिये कि नरक में ही जी रहे हैं। मेरे लिए स्वर्ग और नरक केवल शब्द भर हैं और जीवन को समझने के लिए प्रतीकात्मक रूप से वे स्वर्ग और नरक के आधार हैं । स्वर्ग और नरक एक अवस्था है, जीवन को दी गई एक व्यवस्था है, हम स्वयं ही फैसला करें कि हमारा जीवन स्वर्ग है या नरक। मेरे देखे, जीवन को स्वर्ग बनाया जा सकता है। जीवन तो बाँस का टुकड़ा है। यह आप पर निर्भर है कि आप उसका क्या उपयोग करते हैं । उससे आपस में लड़ते हैं या शव को जलाते हैं या सुरों को साधकर बाँसुरी बना लेते हैं । जीवन की धन्यता इसी में है कि उसे बाँस का टुकड़ा न रहने दें अपितु उसे बाँसुरी बनाएँ । बाँसुरी भी इसलिए बनानी चाहिए कि व्यक्ति अपने जीवन में अधिक-से-अधिक मुस्कुराने की आदत डालकर आनन्द भाव का संचार कर सके। मुस्कान तो शीतलता है। यह सभी को आइसक्रीम की तरह अच्छी लगती है। जिसने भी इसे विकसित कर लिया, वह हरेक को सुहाएगा। मुस्कान सर्दी में खिलने वाली सुबह की धूप है जो सबके तन-मन को ताज़गी देती है। जब हम किसी से प्रतिदिन मिलते हैं तो रोज़ाना फूलों का गुलदस्ता तो नहीं दे सकते, लेकिन मुस्कान का सुगंधित गुलाब तो रोज़ाना ही दिया जा सकता है। सास को भी मुस्कान दीजिए और सास से भी मुस्कान लीजिए । मुस्कान का आदान-प्रदान कीजिए। मुस्कान तो चंदन का तिलक है जो माथे के साथ-साथ अंगूठे को भी महकाता है।आप जीवन में मुस्कुराहट को मूल्य दीजिए और शांति को अपनाइए। आप एक प्रयोग कीजिए – अपने घर में या अपने कार्यस्थल पर जहाँ भी आप हों, तीन मिनट के लिए बैठ जाइए और आती हुई श्वासों का अनुभव करते हुए धारण कीजिए कि मैं अपने अन्तर्मन को शांतिमय बना रहा हूँ और जाती हुई श्वासों के साथ मुस्कुरा रहा हूँ। तीन मिनिट का यह प्रयोग सुबह-शाम कर लेने से आपके जीवन से गुस्सा, चिड़चिड़ापन और नकारात्मक भाव विलुप्त होने लगेंगे, धीरे-धीरे कम होते जाएँगे। मुस्कान तो उस टॉनिक की तरह है जिसे यदि सुबह-सुबह ले लिया जाए तो दिनभर उसकी ऊर्जा बनी रहती है और शाम को भी लिया जाए तो वह रात भर प्रसन्नचित रहता है। ___ज्यों-ज्यों आपके जीवन में मुस्कान का विस्तार होगा, आप पुष्प की तरह खिलते जाएँगे। जो स्वयं शांति और आनन्द से भरा होता है, वही अपने परिवार और समाज में शांति और आनन्द का संचार कर सकता है। अशांत व्यक्ति अशांति ही फैलाएगा और शांत व्यक्ति शांति ही। जिसने कभी आँखें लाल नहीं की और जीभ खारी नहीं की उसकी शांति और मुस्कान उसके परिवार और समाज के लिए सबसे महान् है। जो घरपरिवार में शांति और आनन्द का संचार करता है उसके द्वारा उससे बड़ी सेवा परिवार और समाज की क्या हो सकती है? जरा सोचिए कि वह क्या है, जिसके आने से जीवन में सावन की बहार आ जाती है और जाने से For Personal & Private Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बहार चली जाती है ? वह है शांति और आनन्द। जिसके पास जाने से आपको शांति और आनन्द मिलता है वह व्यक्ति आपके लिए उपयोगी है। जिससे आपको अशांति और पीड़ा मिलती हो, वह व्यक्ति त्याज्य है। आनन्द पाने के लिए कहीं बाहर जाने की ज़रूरत नहीं है। जहाँ वह है वहीं के अवसरों से, निमित्तों से वह आनन्द पा सकता है। कुछ न हो तो नीले आसमान को देखकर आनन्द लिया जा सकता है। बगीचे में खिले फूलों को निहारकर आनन्द ले सकते हैं। घर में जो छोटा-सा बच्चा है, उसकी किलकारी को सुनकर भी आनन्द ले सकते हैं । सड़क पर जाती कारों से, उमड़ते बादलों से, बरसते हुए पानी से, क्षितिज पर निकले हुए इन्द्रधनुष से भी आनन्द पाया जा सकता है। किसी सरोवर के किनारे बैठकर, नदी या समुद्र के किनारे आती-जाती लहरों को देखकर भी हम आनन्द ले सकते हैं। घर में टॅगी खूबसूरत-सी तस्वीर को देखकर भी आनन्द लिया जा सकता है । आनन्द तो आपके आसपास बिखरा पड़ा है। बस, मन की दशा को आनंदमय बनाने की ज़रूरत है। जो अपने दिन का प्रारम्भ और समापन आनन्द-भाव के साथ करता है उसके सामने कोई भी झल्लाता रहे, चिढ़ता रहे, गुस्सा करे, तब भी वह तो हर हाल में मुस्कुराता ही रहेगा। वह अपनी मुस्कान खोएगा नहीं। मुझे तो लगता है कि हमारे देश के लोग हँसना-हँसाना भूल ही गए हैं। सब लोग किसी-न-किसी प्रकार रोते हुए ही नज़र आते हैं। हँसने-हँसाने की कला विलुप्त होती जा रही है। हँसना-मुस्कुराना जीवन जीने की एक बेहतरीन कला है। जो दिल से हँसते हैं, उन्हें दिल का दौरा नहीं पड़ता। हँसना ख़ुद ही एक श्रेष्ठ टॉनिक है चाहे आपको टेंशन रहता हो या डिप्रेशन, मिर्गी की बीमारी हो या हार्ट की, आप हँसने की आदत डालें। आप चमत्कारिक रूप से टेंशन-फ्री हो जाएँगे, हार्ट और किडनी पर भी हँसने-हँसाने के अच्छे प्रभाव पड़ेंगे। आप अपने घर में ऐसा चिराग जलाएँ, जिसकी रोशनी में मुस्कान बिखरे । ऐसे फूल खिलाएँ जिससे मुस्कान की खुशबू बिखरे । ऐसा पेड़ लगाएँ जिसकी छाया में पंछी भी शांति का सुकून पा सकें। जलती डाल पर कोई चिड़िया नहीं बैठती। शांति के कबूतर वहीं आते हैं जहाँ सदा खुशहाली रहा करती है। जो भी व्यक्ति प्रतिदिन दो सामायिक करने का नियम लेता है पर वह स्वयं को तनाव में रखता है, छोटी-सी बात पर भी गरम हो जाता है तो मैं पूलूंगा कि आप अभ्यास के रूप में तो सामायिक कर रहे हैं लेकिन जीवन में समता और समरसता न ला सके तो उस सामायिक की सार्थकता क्या हुई ? मंदिर में जाकर प्रभु की प्रतिमा देखकर दिल में आनन्द-दशा का संचार न हुआ तो मंदिर जाना और मार्केट जाना एक बराबर ही हुआ। अगर बाहरी निमित्तों पर आश्रित रहकर मुस्कुराहट का संचार करोगे तो याद रखिए कि प्रकृति परिवर्तनशील है और उसके परिवर्तनशील होने के कारण सदा एक जैसी परिस्थितियाँ नहीं रहतीं। हम लोग जीवन में सुखों और खुशियों को पाने के लिए कितने-कितने इन्तजाम करते हैं! कोई जन्मदिवस का कार्यक्रम करता है, तो कोई शादी की पच्चीसवीं सालगिरह मनाता है, तो कोई कभी दुकान और कभी मकान 60 For Personal & Private Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ का उद्घाटन करता है । सौ-सौ आयोजन करके व्यक्ति अपने जीवन में खुशहाली का संचार करता रहता है, पर यह सब बहुत थोड़े से समय के लिए ही हुआ करता है । शादियों के आयोजन आपने देखे हैं । जिस दिन उत्सव जैसा माहोल था, नाच-गाना हो रहा, दूल्हा-दुल्हन और बाराती सजे-धजे थे, तरह-तरह के पकवानों से पार्टी मनाई जा रही थी; उस दिन सब बड़े खुश-खुश थे। दूसरे दिन वहाँ जाकर देखें कि क्या हालत होती है? चारों ओर गंदगी का साया होता है, अजीब-सी खामोशी, अजीब-सा सन्नाटा पसरा रहता है। सारे लोग थके-हारे पस्त से नज़र आते हैं । बनठन कर जो खुशियाँ प्राप्त करने की कोशिश की जाती हैं, निमित्तों के आधार पर जो खुशियाँ चाहेंगे तो कब तक खुश रह पाएँगे? दिन में चार निमित्त खुशियों के मिलते हैं और बारह निमित्त चिड़चिड़ेपन के हाज़िर हो जाते हैं। सुख और दुःख मानसिक अवस्था के परिणाम हैं । जो चीज़ सुख का आधार होती है वही दुःख का भी आधार बन जाती है। पत्नी बड़े प्यार से खाना बनाती है। उसने आपके लिए सभी मनपसंद व्यंजन बनाए। आप खाना खाने बैठे। पत्नी ने करीने से थाली सजाई, आपको देखकर अच्छा तोलगा, पर मन किसी उधेड़बुन में लगा हुआ था।खाना खाना शुरू किया कि सब्जी में नमक ही नहीं था।दूसरा कौर दूसरी सब्जी से लिया ओह, उसमें तो दुगुना नमक है, एकदम खारी। सिर तो पहले ही गरम था, पत्नी को खरी-खोटी सुनाई और थाली को ठोकर मारकर आप अपने काम-धंधे पर निकल गये। इधर पत्नी रुआंसी हो गई। उसकी छोटी-सी गलती ने सारे अरमानों पर पानी फेर दिया। उसकी खुशी का सैलाब दुःख में बदल गया।अब इस भोजन की थाली का वह क्या करे? तभी किसी भिखारी की आवाज़ सुनाई दी – 'माँजी, खाने को कुछ मिलेगा? दो दिन से भूखा हूँ।'महिला ने ठुकराई गई थाली उठाई और उसे दे दी।खानादेखकर वह तो ख़ुश हो गया।वाह, आज तो सुबह-सुबह किसी अच्छे इन्सान का मुंह देखा होगा! खीर, पूड़ी, दो सब्जियाँ, लापसी आज तो मज़ा ही आ गया। वह खाना खाने बैठा। एक सब्जी चखी, वह खारी थी, दूसरी चखी, वह फीकी थी। उसने दोनों सब्जियों को मिला दिया, नमक बराबर हो गया । मस्ती से खाना खाकर वह चला गया। एक आदमी के लिए वही भोजन शांति का कारक हो गया और दूसरे के लिए अशांति का निमित्त बन गया। ___ हमारे उद्वेलित मन के द्वारा ही जीवन की शांति और अशांति निर्धारित होती है। सुख और दुःख सदा एक जैसे भी नहीं रहते। कोई आज करोड़पति है तो वह सदा ही करोड़पति नहीं रहने वाला और जो रोड़पति है वह भी रोड़पति नहीं रहने वाला। रोड़पति और करोड़पति में 'क' की कमी या 'क' की अधिकता है । 'क' यानी करो, मेहनत करो। मेहनत करोगे तो रोड़पति से करोड़पति हो जाओगे । और करने से जी चुराओगे तो करोड़पति का 'क' माइनस हो जाएगा। सुख और दुःख तो साइकिल के पहिए जैसे हैं। कभी ऊपर, कभी नीचे, कभी सर्दी, कभी गर्मी, कभी धूप, कभी छाँव। जहाँ हानि है वहाँ लाभ भी है, जहाँ संयोग है तो वियोग भी है, खिलना है, तो मुरझाना भी है, जन्म है तो मरण भी है, दोस्ती है तो दुश्मनी भी है - यह प्रकृति की व्यवस्था है जो बदलती चलती है। 61 For Personal & Private Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अगर हम प्रकृति की इस परिवर्तनशीलता को समझ लें तो हम न तो कभी गुमान करेंगे और न ही शिकायत करेंगे। मिल गया, पा गए तो गर्व नहीं और खो गया तो गिला-शिकवा नहीं। यही जीवन की सहजता है। जो आया है वह जाएगा, जो पाया है वह खोएगा। जिनका साथ मिला है वह छूटेगा। इस दुनिया में सनातन कुछ भी नहीं है। 'दिस टू विल पास' – यहाँ सब बीतता है । दुःख है तब भी और सुख है तब भी याद रखो, 'दिस टू विल पास।' आप यदि नगर-प्रमुख हैं, मंत्री या बड़े नेता हैं तब भी याद रखें 'दिस टू विल पास' । करोड़पति भी ध्यान रखें- 'दिस टू विल पास'। अगर कोई दुःख से, पीड़ा से, संताप या त्रासदी से भरा हुआ है, वह भी यही सोचे-'दिस टू विल पास' । जब वह न रहा तो यह कौनसा सनातन रहेगा और जब यह न रहेगा तो अगला कौनसा सनातन रहने वाला है ? सब चलाचली का खेल है। इसलिए सहजता से जिएँ। इसमें भी खुश और उसमें भी खुश। पिता ने अपने तीन पुत्रों के बीच धन का बँटवारा कर दिया। बड़े को ज़मीन-जायदाद दी, मंझले को अपना सारा धन-खजाना दिया और सबसे छोटे को अपना व्यापार-व्यवसाय सौंप दिया। उसके परिवहन का व्यापार था। जहाज़ों से माल आता-जाता था।छुटके से पिता ने कहा-'मैं तुझे नौ परिवहन का व्यापार देता हूँ लेकिन तू अभी बहुत छोटा है, तुझे बहुत अनुभव पाने हैं। इसलिए मैं तुझे एक चीज़ और देता हूँ।' यह कहकर पिता ने अपनी अंगुली में पहनी हुई अँगूठी निकाली और छोटे बेटे को देते हुए कहा, – 'बेटा, जब भी तुम्हें लगे कि जिंदगी में बहुत बड़ी मुसीबत की घड़ी आ गई है, तब तुम इस अंगूठी को खोलना। इसमें तुम्हारे लिए मैंने जीवन का बहुत बड़ा संदेश लिखा है।' बेटे ने कहा -'पापा, क्या अभी खोलकर देख लूँ ?' पिता ने कहा – 'नहीं, अभी खोलकर देखा तो इसका कोई मूल्य नहीं होगा। इसे तो तभी खोलना जब तुम पर बहुत बड़ी मुसीबत आ आए।' समय बीतने लगा, पिताजी चल बसे। बेटे का व्यापार भी ठीक चल रहा था कि एक दिन उसे खबर मिली कि समुद्र में उसके तीन मालवाही जहाज़ डूब गए हैं। एक साथ तीन जहाज़ डूबने का उसे ऐसा सदमा लगा कि वह आत्महत्या करने की सोचने लगा। वह अत्यधिक निराश हो गया। तीनों जहाज़ों का जरा भी माल नहीं बच सका। वह घबराया कि अब लोगों का पैसा कैसे चुका पाऊँगा? इससे तो अच्छा है मर ही जाऊँ।वह समुद्र में छलांग लगाने ही वाला था कि उसे पिता द्वारा दी गई अँगूठी की याद आई। उनकी बात भी याद हो आई। उसने अँगूठी का हीरा हटाया तो देखा कि वहाँ एक काग़ज़ है। उस काग़ज़ को खोलकर देखा, उसमें लिखा था - 'बेटा, धीरज रख, यह वक़्त भी बीत जाएगा।' यह पढ़कर उसके मन को ढाढ़स बंधा, सांत्वना मिली। वह वापस अपने घर लौट आया। उसने धीरज और शांति से अपना व्यापार पुनः शुरू किया। वक़्त बदला, और धीरे-धीरे उसने पुनः उन्नति की। अगर आप भी धीरज धारण कर लें तो विपरीत परिस्थितियों में भी आप आगे बढ़ सकते हैं। हमारे धैर्य LIFE For Personal & Private Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ और संयम की परीक्षा तभी होती है जब वातावरण विपरीत होता है। विपरीत वातावरण में जो लोग स्वयं पर संयम रखने में सफल हो जाते हैं, वे ही अपने मानसिक स्वास्थ्य, शांति और आनन्द को सदा बनाए रखने में सफल हो सकते हैं। सुख, दुःख दोनों रहते जिसमें, जीवन है वो गाँव। __ कभी धूप तो कभी छाँव॥ भले भी दिन आते, जगत में बुरे भी दिन आते। कड़वे-मीठे फल, कर्म के यहां सभी पाते। कभी सीधे कभी उलटे पड़ते अजब समय के पाँव। __ कभी धूप तो कभी छाँव॥ क्या खुशियां क्या ग़म, ये सब मिलते बारी-बारी। मालिक की मर्जी से चलती यह दुनिया सारी। ध्यान से खेना जग-नदिया में, बंदे अपनी नाव। कभी धूप तो कभी छाँव ॥ अपने जीवन में फैसला कर लें कि आपको धूप में रहना है या छाँव में। धूप में भी चलो तो एक ऐसा छाता ज़रूर अपने पास रखें जो आपको छाँव का अहसास देता रहे। एक सिक्के के दो पहलू होते हैं – ऐसे ही जीवन में कितने ही पहलू होते हैं, लेकिन हम तो अपने जीवन में ऐसी मुस्कान खिला लें कि चाहे जो पहलू खुले, हम तो प्रसन्नचित्त और शांत ही बने रहें । अपनी जेब में ऐसा सिक्का रखें जिसके दोनों ओर ख़ुशी ही ख़ुशी ख़ुदी हुई हो। वह चित गिरे या पुट, ख़ुशी ही मिले।मुस्कुराहट हमसे दूर नहीं जानी चाहिए। मेरे पास एक व्यक्ति आया जो अपनी जेब में एक सिक्का रखता था। उसके एक ओर ख़ुशी खुदी हुई थी और दूसरी ओर नाख़ुशी लिखी हुई थी। वह सुबह उठकर सिक्का उछालता, हाथ में लेता, खोलकर देखता – 'खुशी'। वह खुश हो जाता कि आज तो मेरा दिन बहुत अच्छा बीतेगा। कभी नाख़ुशी वाला हिस्सा खुल जाता तो वह उदास हो जाता, अपने भाग्य को कोसने लगता, पता नहीं आज का दिन कैसे बीतेगा? बहुत सावधानी से जीना पड़ेगा। मेरे पास आकर जब उसने यह कहानी सुनाई और बताया कि जब 'खुशी' आ जाती है तो बहुत खुश हो जाता हूँ। मेरी आदत ही ऐसी पड़ गई है कि जिस दिन 'नाख़ुशी' वाला पहलू आ जाए तो मेरा पूरा दिन बेकार हो जाता है । मैंने उससे कहा – 'ऐसा है तो लाओ, अपना सिक्का मुझे दे दो। कल आकर ले जाना, मैं इस पर थोड़ा मंत्र कर दूंगा'। CITEE For Personal & Private Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अगले दिन वह आया और मैंने उसका सिक्का वापस लौटा दिया। एक महीने बाद जब वह वापस आया तो कहने लगा - ' 'महाराज, आपने ग़ज़ब का मंत्र कर दिया है। 'नाख़ुशी' वाला पहलू आज तक कभी उभरकर ही नहीं आया। जब भी सिक्का उछालता हूँ, 'ख़ुशी' वाला पहलू ही आता है । मैंने उसे बताया, 'महानुभाव, मैंने इसमें इतना ही मंत्र किया है कि जहाँ पहले 'ना' लिखा था, उसे हटा दिया है। अब दोनों ओर 'ख़ुशी ' है । इधर उछले तो भी ख़ुशी और उधर उछले तो भी ख़ुशी । अपना तो जीवन का मंत्र ही यही है कि हर हाल में मस्त रहें, मुस्कुराते रहें । कोई फूलों की माला पहनाये या जूतों की, अपन तो मस्त ही रहेंगे। फूलों की माला पहनकर तो हर कोई मुस्कुरा लेता है, लेकिन मुस्कान की कसौटी तभी होती है, जब सम्मान की बजाय अपमान झेलने को मिलता है। सुभाषचंद्र बोस के ऊपर जब जूता फेंका गया तो उन्होंने मंच पर से कहा था - 'वह महानुभाव कौन है जिसने एक जूता फेंका है ? हो सके तो वह दूसरा जूता भी फैंक दे क्योंकि आज मेरे जूते चोरी हो गए हैं।' यदि विपरीत वातावरण बन जाने पर यदि आप अपनी सहजता और मुस्कान को जीवित रखते हैं तो समझना कि आप मानसिक रूप से, आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ हैं, ख़ुशहाल हैं। धन आ जाए तब भी सहज, चला जाए तब भी सहज, बहुत ज़्यादा आ आए तब भी गुमान मत करो, चला भी जाए तो गिला - शिकायत मत पालो । हम ही कमाते हैं, हम ही खोते हैं । कोई पल ऐसा आता है जो हमें ठंडी हवा दे जाता है तो कोई दूसरा पल हमारे लिए गरम लू का झौंका बन जाता है। कभी पहिये का ऊपर का हिस्सा नीचे आ जाता है तो कभी नीचे का हिस्सा ऊपर चला आता है। जीवन में ऐसा होता ही रहता है । - एक व्यक्ति को अपने पैसे का बहुत गुमान हो गया। जब भी आता तो कहता - मेरी कोठी, मेरा बंगला, मेरी कॉलोनी, वाह ! क्या बात है ! एक दिन वे महानुभाव हमारे पास आए और लगे अपनी हाँकने । हम सुनते रहे। बीस मिनिट हो गए, पर उनकी ऊँची-ऊँची बातें बंद न हुईं। हमें भी मज़ाक सूझी। हमने कहा, ‘जनाब ! क्या आप एक काम करेंगे ? कल आप फिर आइएगा।' बोले, 'ज़रूर आऊँगा' । हमने कहा – 'हाँ, जब आप आएँ तो विश्व का मानचित्र या ग्लोब ज़रूर लेते आइएगा'। बोले, 'ठीक है महाराज साहब', और वे चले गए । दूसरे दिन जब वह ग्लोब लेकर आ गए तो हमने कहा, 'अच्छा, यह है विश्व का नक्शा ! बताइए, इसमें एशिया कहाँ है'? उन्होंने एक स्थान पर अँगुली रखकर कहा, 'यह रहा । ' हमने पूछा, 'इसमें भारत कहाँ है' ? उन्होंने कहा – 'यह जो छोटा-सा भाग है, यही भारत है।' हमने फिर पूछा- 'इसमें राजस्थान कहाँ है ?' बोले, 'यह बताना तो बड़ा मुश्किल है, पर जरा-सी जगह पर बताया कि, 'यह राजस्थान है । ' हमने फिर कहा, ‘इसमें जोधपुर कहाँ है ?' वे चौंके बोले - - - • महाराज, आप भी कैसी बात करते हैं ? विश्व के मानचित्र में जोधपुर का कहाँ पता लगेगा ? हमने कहा, 'जब विश्व के मानचित्र में जोधपुर का भी कहीं LIFE 64 For Personal & Private Use Only - Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पता नहीं है, तब जोधपुर जितने बड़े शहर में आपकी कोठी-बंगले और कॉलोनी का क्या पता चलेगा ? अब उनकी हालत देखने जैसी थी। सारा गुमान एक ही झटके में ग़ायब हो गया। जीवन में गुमान व्यर्थ है। जीवन को हर हाल में ख़ुशी और मुक्ति देने वाला कोई तत्त्व है तो वह सहजता है । हर हाल में रिलेक्स । जब मैं कहता हूँ, 'ख़ुश होकर जीयो तो मैं यह भी कहूँगा कि अपने हर दिन की शुरुआत मुस्कान के साथ करो। जैसे ही सुबह आँख खुले तो एक मिनिट तक तबियत से मुस्कुराएँ । यह बड़ा प्रभावशाली विटामिन है । दिनभर तरोताज़ा रहने के लिए ज़ोरदार विटामिन है। जो कुछ भी नहीं कर पाते हैं, न ध्यान होता है, न योग करते हैं, न धर्म होता है, न पूजा होती है, न प्रार्थना करते हैं, उनसे भी यही कहूँगा कि सुबह उठकर एक मिनिट तक परिपूर्णता से मुस्कुराओ । आपका अंग-अंग मुस्कान से भर उठे। स्नान तो बाद में होगा, पर पहले ही अपने मन को तरोताज़ा कर लीजिए। जैसी आपकी मानसिकता होगी, वैसा ही आप व्यवहार करेंगे। जैसा व्यवहार होगा, वैसा ही व्यक्तित्व बनेगा । इसलिये सुबह उठकर पहला काम करें एक मिनट तक भरपूर मुस्कुराना। आप रोजाना सांस के साथ मुस्कुराने का पाँच मिनट तक ध्यान कीजिए। पहले हो सकता है मुस्कुराना नाटक लगे, पर धीरे-धीरे वही नाटक आपका नेचर बन जाएगा। आप हर हाल में मस्त रहना सीख जाएँगे। इससे आपका हर व्यवहार और पूरा व्यक्तित्व मुस्कुराते हुए फूल जैसा नज़र आएगा। मैं तो देखता हूँ कि आजकल लोग मुस्कुराना भूल गए हैं, तभी तो यहाँ-वहाँ हास्य क्लब चल रहे हैं। अरे, दिन भर ही मुस्कुराइए ताकि न तो लॉफिंग क्लबों में जाना पड़े और न हँसने का व्यायाम करना पड़े। एक बार सुबह उठकर मुस्कुराने से रात भर जो कोशिकाएँ सुप्त पड़ी थीं, वे तत्काल सक्रिय हो जाती हैं। रसोई घर प्रवेश करो तो दरवाजा बाद में खोलना, पहले मुस्कुराओ । दुकान खोलें तो गणपति जी को तो प्रणाम करोगे ही, पहले मुस्कुरा कर उनका अभिवादन कर देना और बाद में धूप अगरबत्ती लगाना । मुस्कुराते हुए ही ग्राहकों का स्वागत करें। थोड़ा-सा घाटा भले ही बर्दाश्त कर लो, पर ग्राहक को तोड़ो मत । ग्राहक तब तक राजी रहेगा जब तक आप उसके साथ राजी रहेंगे । बहिनों, आप भी ध्यान रखें कि जब पति घर पर आए तो उनके आते ही शिकायतों का पुलिंदा न खोलें बल्कि मुस्कुराकर उनका स्वागत करें। बच्चों, जब आप स्कूल से आएँ तो अपने बैग इधर-उधर न फैंकें, पहले मुस्कुराएँ और अपना सामान व्यवस्थित रखें। तब देखना कि आपकी मम्मी आपको ज़रूर प्यार करेगी और गरम-गरम खाना खिलाएगी। सास जी, ससुर जी, घर में घुसते ही झल्लाने की आदत छोड़ो। अगर बना सको तो स्वयं को विनोदप्रिय बना लो। जो विनोदप्रियता को अपनाते हैं, उनके घर का वातावरण हल्का रहता है, बोझिल नहीं होता। प्रेम से बहू से पूछो, बात करो। उसने जो भी खाना बनाया है, उसकी तारीफ़ करो । भले ही आपको पसंद न हो, सब्जी में नमक हो या न हो, तारीफ़ ज़रूर कर दो। हालांकि जब वह ख़ुद खाएगी तो जान ही जाएगी कि वास्तविकता क्या है ? विनोदप्रियता से सबके मूड अच्छे रहते हैं । For Personal & Private Use Only LIFE 65 Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऐसे ही एक विनोदी व्यक्ति बेकरी शॉप पर पहुँचा। उसने पूछा – क्या आपके यहाँ कुत्तों के बिस्किट मिलते हैं '? दुकानदार भी कहाँ कम था ! उसने कहा, 'यहीं खाएंगे या पैक कर दूं?' एक पति-पत्नी मजाकिया भी थे और लड़ते-झगड़ते भी थे। रात में सोने से पहले पत्नी ने कहा – 'सब चैक कर लिया न्, क्या सारे खिड़की दरवाजे ठीक से बंद कर दिए? रात में कहीं चोर न घुस आएँ, क्या ताले वगैरह लगा दिये? सब बंद कर लिया न्। पति ने कहा – सब बंद कर लिया है, केवल तुम्हारे मुँह को छोड़कर।' ऐसा हुआ। एक पति-पत्नी रात में जल्दी सो गए कि अचानक आधी रात को पत्नी की आँख खुली। उसकी कैलेन्डर पर नज़र पड़ी और चौंकी। तो आज ये?' झट से गई रसोई घर में और एक गिलास दूध लाकर पति को जगाया, 'अरे उठो, उठो, लो दूध पी लो।' पति जागा और सोचा, ग़ज़ब हो गया, आज तक पत्नी ने जिंदगी में कभी सोने से पहले दूध नहीं पिलाया और आज़ आधी रात में जगाकर दूध पिला रही है। उसने पूछा, 'क्या बात है जो आज दूध पिला रही हो?' पत्नी ने कहा, अभी-अभी कैलेंडर देखा तो पता चला कि आज नागपंचमी है, अब आधी रात को नाग कहाँ ढूँढने जाऊँ सो.....?' एक आदमी अपने मित्रों के साथ बैठा हुआ था। मित्रों ने कहा, 'तू बड़ा कंजूस है, कभी कुछ खिलाता-पिलाता नहीं है, हमेशा ही खा-पीकर चला जाता है। उसने कहा - 'क्यों कोसते हो भाई ? तुम्हारी इतनी ही इच्छा है तो घर आ जाओ खा लो।' दोस्तों ने कहा, 'ठीक है तू घर जा। हम तेरे पीछे आते हैं।' उसने पूछा, 'अच्छा खाओगे क्या?' दोस्तों ने कहा - 'रसगुल्ले'। वह व्यक्ति चला गया। रास्ते से ढाई सौ ग्राम रसगुल्ले लेता गया। सोचा, पाँच-सात मित्र ही आ रहे हैं और पाव भर में सातआठ रसगुल्ले तो आ ही जाएँगे। दोस्तों ने सोचा, – 'यह कभी-कभी फँसता है। आज तो इसे अच्छा मजा चखाएँगे'। वे मोहल्ले में से और पचास लोगों को इकट्ठा करके ले आए। उसके घर पहँचे। उसने इतने सारे लोग देखे तो वह भी मुश्किल में फँस गया। ये सब तो उसका पानी ही उतार देंगे। उसने कहा, 'तुम सब लोग बैठो, मैं अभी और रसगुल्ले लेकर आता हूँ।' वे लोग प्रतीक्षा करने लगे। अब आए, अब आए पर तीन घंटे बीत गए वह नहीं आया। अब क्या करें? वे चल दिए, बाहर आकर देखा कि वह तो सिर पर 'पोतिया' जैसा कपड़ा बाँधे बैठा है यानी जो किसी के मर जाने पर बांधा जाता है। सभी वहाँ पहुँचे। मन में तो क्रोध से भरे हुए थे, लेकिन जब उसे ऐसी हालत में देखा तो सभी उसके पास जाकर चुपचाप बैठ गए। धीरे से पूछा – 'भैया, कौन मर गया है ?' उसने कहा - 'दादीजी मर गई।' लोग बोले - अरे, दादीजी मरे तो तीस साल हो गए। उसने जवाब दिया - अरे, तब पोतिया (सिर पर कपड़ा) नहीं बाँध पाया था सो अब बाँध कर बैठा हूँ'। उसने जवाब दिया। ___एक विनोद और सुनिए। एक महाशय वकील जेठमलानी के पास पहुंचे और कहा, 'मेरा पत्नी से LIFE bb For Personal & Private Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तलाक करवा दीजिए।' वकील जेठमलानी ने कहा – 'बिल्कुल आपका काम हो जाएगा।' उसने पूछा - 'फीस कितनी होगी?' जेठमलानी ने बताया, 'पाँच हज़ार रुपए।' उस व्यक्ति ने कहा -'जब शादी हुई थी तो पंडित ने पचास रुपए लिए थे और आप तलाक के पांच हज़सा मांग रहे हैं ?' वकील ने कहा - 'सस्ता रोए बार-बार, महँगा रोए एक बार । सस्ते का हाल देख लिया, इतनी जल्दी टूटन में आ गए। अब मैं ऐसा पक्का काम करूँगा कि जिंदगी में कभी जुड़ न पाओगे।' स्वयं को विनोदप्रिय बना लें। आप अपने घर में कितने ही धर्मशास्त्र रखते होंगे। उनके साथ में एकदो चुटकुलों की किताबें भी रख लें ताकि थोड़ा-सा विनोद हो जाए, बोझिलता से मुक्ति मिल जाए। भगवान की तस्वीरों के साथ एक हँसता हुआ चेहरा भी टाँग लो ताकि उसे देखकर ही आपको मुस्कुराहट आ जाए। ___जो मुस्कान ज़िंदगी को ऊर्जा से भर दे वही मुस्कान ज़िंदगी की दौलत है। अपनी ओर से पूरा विवेक रखें कि आपके कारण किसी को ठेस न पहुँचे।आप कभी किसी का अपमान न करें। विनोदप्रिय हों, लेकिन किसी को बेइज़्ज़त न करें, तानाकशी या व्यंग्य न करें। किसी की हँसी न उड़ाएँ। सभी के प्रति अच्छी सोच रखें। आपसे किसी का भला हो सके तो ज़रूर कीजिए, पर किसी का बुरा तो कभी न कीजिए। यह जीवन की बुनियादी बात है - अगर आप किसी का बुरा नहीं करेंगे तो आपके मन का आभामंडल कभी दूषित नहीं होगा। आप स्वयं को तरोताज़ा महसूस करेंगे। बुरा करना तो दूर की बात है, किसी के लिए बुरा सोचिये भी मत। गांधी जी के तीन बंदर कहते हैं – 'बुरा मत देखो, बुरा मत कहो, बुरा मत सुनो' । मेरी ओर से एक बंदर और जोड़ लीजिए-'बुरा मत सोचो'। बुरा सोचोगे तो बुरा कहोगे भी। न बुरा देखा जाएगा और न बुरा सुनना पड़ेगा। हमेशा सबके प्रति सद्भाव से भरे रहें। अगर किसी ने गलती कर दी है तो भगवान से यही प्रार्थना करें – 'हे प्रभो, इसे सद्बुद्धि दें ताकि यह फिर से ऐसी ग़लती न करे।' आपके बच्चे किसी ग़लती को बार-बार दोहरा रहे हैं और आपकी बात नहीं सुन रहे हैं, तो उनके लिए सुबह-सुबह भगवान से प्रार्थना करें कि भगवान् इन्हें सदबुद्धि दे ताकि इनका भविष्य उज्ज्वल हो। अपनी ओर से सभी के लिए सदभाव रखें। आपकी अच्छी प्रार्थना और अच्छी मानसिकता का असर आख़िर आपके बच्चों पर ज़रूर पडेगा। समर्थ गुरु रामदास किसी घर में आहारचर्या के लिए पहुँचे। गृहस्वामिनी अंदर लड़-झगड़ रही थी। उसे गुस्सा आया हुआ था। रामदास ने आहार मांगा – 'नमो नारायण, आहार दीजिए।' उसके हाथ में पौंछा था। उसने उठाकर रामदास पर फैंक दिया। रामदास ने देखा, आज किसी सद्गृहस्थ ने मुझे पौंछा दिया है, ठीक है। पौंछे को लेकर चले गए। उसे धोया, बातियाँ बनाईं। शाम को उन्हीं बातियों से आरती सजाई और प्रार्थना के स्वर में कहा – 'हे प्रभो, जिस तरह पौंछे से बनी ये बातियाँ रोशनी भर रही हैं, उस सद्गृहस्थ महिला का हृदय भी ऐसे ही रोशनी से भर उठे।' UFE For Personal & Private Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यह है अच्छी मानसिकता । इसका प्रभाव अवश्य पड़ेगा। अच्छे विचार ही अच्छे व्यवहार को जन्म देते हैं। विचारों को, मानसिकता को बेहतर बनाने का सीधा-सरल गुर है – मुस्कुराइए। जो गुस्सैल प्रकृति के हैं, वे तो मुस्कुराने को अपनी आदत बना लें। उनके जीवन से गुस्सा, खीझ, चिड़चिड़ापन स्वतः दूर हो । वे तो यह फ़ार्मूला ही बना लें : हर समय व्यस्त रहें, हर हाल मस्त रहें। जब, जहाँ, जो होना है, हो, अपने तो फ़ैसला कर लें कि मैं हर हाल में मस्त रहूँगा । हाँ, जरा मुस्कुराए तो । हाँ ऐसे ही। इस समय भी, हर समय ही । मुस्कुराता हुआ मन ही कह सकेगा'क्या स्वाद है ज़िदगी का ! कितना आनन्द है जीवन को जीने का ! जिएँ चाहे दस साल या दस दिन, पर जीवन का हर दिन मुस्कुराता हुआ अवश्य हो । हानि-लाभ, जीवन-मरण, यश-अपयश चाहे जैसे हालात बनें, पर यदि हम हर स्थिति को प्रकृति की व्यवस्था भर समझेंगे तो अपन गुलाब के फूल की तरह हँसते-मुस्कुराते, खिलखिलाते हुए जिएँगे । यदि कोई आप से पूछे कि कैसे हो? तो एक ही जवाब देना, ‘भाई, गुलाब के फूल से मत पूछो कि कैसे हो ?' गुलाब का फूल तो जब तक रहेगा तब तक खुश ही रहेगा, खिलखिलाता हुआ । वह डाल पर है तब भी ख़ुश और टूटकर किसी शव पर, किसी हृदय पर, किसी मंदिर की चौखट पर गिरा है तब भी ख़ुश। ख़ुशबू भरा। तुम अगर गुलाब बन जाओ तो कांटो की बिसात ही क्या है ? तुम गुलाब नहीं बन पाये तभी कांटे प्रभावित करते हैं, बिछते हैं और हमें छलनी करते हैं । निश्चय ही अगर तुम गुलाब को देखकर ख़ुद गुलाब हो जाते हो, तो तुम जीवन को जीत गए, बेहतर ढंग से जी गए। LIFE 68 For Personal & Private Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ neumentasytimatrasitunesentwanoopulusCHARRAIAPANAware ARASHNPAssisaomponenommporen मन मज़बूत तो किस्मत मुट्ठी में मज़बूत इरादे पूरे होंगे वादे यह एक मनोवैज्ञानिक सत्य है कि व्यक्ति की जैसी मानसिकता होती है उसका व्यक्तित्व भी वैसा ही निर्मित और पल्लवित होता है। सुदृढ़ मानसिकता का अर्थ है सुदृढ़ व्यक्तित्व । सुन्दर मानसिकता का फल है – सुन्दर व्यक्तित्व और विकृत मानसिकता का परिणाम है – विकृत व्यक्तित्व।सुखी, सफल और मधुर जीवन जीने का आधार व्यक्ति की अपनी ही मानसिकता और उसका अपना व्यक्तित्व है। एक बेहतर व्यक्तित्व का स्वामी होना जीवन की सबसे बेहतरीन कमाई है। ___ एक महान् व्यक्तित्व के निर्माण के लिए व्यक्ति की मानसिकता का महान् होना अनिवार्य है। यह एक लोकप्रिय मान्यता है कि मन के हारे हार है, मन केजीतेजीत'।जिसकामन हाराहुआहै, उसका जीवन पराजित है औरजोअपने मनपर विजय प्राप्त कर चुका है, उसका जीवनजीताहुआहै ।जीत उसी की है ।वह विश्वजित है। CLIFE 60 For Personal & Private Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मन के कमजोर होने को हम मन की कमजोरी ही न समझें। मन की कमजोरी सारे जीवन की कमजोरी है। कमजोर मन के द्वारा जीवन में कामयाबी हासिल नहीं की जा सकती। अगर व्यक्ति का शरीर दुर्बल है तो वह व्यक्ति चल नहीं पाता, पर जिसका मन कमजोर है उस आदमी का अपनी जिंदगी में किसी भी चीज़ पर जोर चल नहीं पाता। जीवन में सबसे ज़्यादा सबलता और खूबसूरती अपने मन की चाहिए। मन ही इंसान का बल है और मन ही उसका बलराम । इंसान का मन यदि तनावमुक्त, एकाग्र, शांतिमय और प्रज्ञामय है तो जीवन के विकास में मन से बड़ा और कोई उपयोगी तत्व नहीं हो सकता। ऑलम्पिक गेम्स में कई तरह के खेल होते हैं, अलग-अलग देशों के खिलाड़ी उसमें भाग लेते हैं। सबकी अपनी तैयारी होती है, सबकी अपनी आर्ट होती है, लेकिन जीत उसी की हुआ करती है जिसमें जीतने का पूरा जज़्बा होता है। जीतने वाले लोग अलग नहीं होते, उनके जीतने का तरीका अलग होता है। सैंकड़ों लोगों में वही खिलाड़ी स्वर्णपदक विजेता बन पाता है,जो पूरी तैयारी करके आता है, ख़ुद पर जिसका विश्वास होता है, छोटे से छोटे और बड़े से बड़े विपरीत क्षण में भी जो धैर्य और श्रेष्ठ बुद्धि से काम लेता है। जीवन में सदा याद रखिए कि मज़बूत मन ही जीवन की समस्त सफलताओं का आधार हुआ करता है। कुश्ती लड़ने वाले दो पहलवान ताकत के लिहाज़ से बराबर ही होते हैं, पर दोनों में से जिसने जीत हासिल की है, निश्चित तौर पर उसके मन में जीतने का जज़्बा बुलंद रहा। मन का स्वस्थ, सुमधुर और लक्ष्य के प्रति निष्ठाशील होना जीवन की सबसे बड़ी ताक़त है। एक बार, बादशाह बनने के बाद किसी ने हसन से पूछा, 'आपके पास न तो काफी धन था और न सेना, फिर भी आप सल्तान कैसे हो गए?'हसन ने जवाब दिया. 'मित्रों के प्रति सच्चा प्रेम. दश्मनों के प्रति भी उदारता. सबके प्रति सद्भाव और स्वयं पर तथा ईश्वर के प्रति आस्था, क्या सुल्तान बनने के लिए ये चार गुण काफी नहीं हैं ?' हसन यानी मैं और आप। जीवन में अगर किसी भी पहलू में आप कमज़ोर हैं तो पहले अपने मन को दुरुस्त कीजिए। चाहे विद्यार्जन हो या व्यापार, काम हो या केरियर, संबंध हो या साधना हर हाल में मन की स्वस्थता और आनंद-दशा पहली आवश्यकता है। आदमी का मन ही उसके वर्तमान का निर्माण करता है और उसकी मनःस्थिति ही उसके भविष्य की आधारशिला होती है। आप मनःस्थिति को गौण मत समझिए। हमारी मानसिकता ही हमारे कल की नींव है। व्यक्ति के भीतर जितना उत्साह और उमंग होगी, उसके जीवन में उतनी ही सफलता और मधुरता होगी। इसलिए दनिया के हर व्यक्ति के भीतर यह विश्वास कायम हो जाना चाहिए कि वह अपने-आप में इस पृथ्वीग्रह की एक महती आवश्यकता है। ज्यों-ज्यों व्यक्ति अपनी आवश्यकता और उपयोगिता समझेगा, त्यों-त्यों वह अपने जीवन और व्यक्तित्व को और अधिक बेहतर, और अधिक सुन्दर और अधिक महान् बनाने के लिए प्रयत्नशील होगा। TFF 70 For Personal & Private Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिदिन हर सुबह की शुरुआत अगर कहीं से की जानी चाहिए तो वह उत्साहपूर्वक मुस्कान के साथ दिन की शुरुआत होनी चाहिए। उत्साह के साथ अगर झाड़ भी लगाएँ तो वह भी व्यक्ति के लिए सफलता का दरवाजा बन सकता है, अनुत्साह से या बेमन से व्यापार भी किया जाए तो वह भी घाटे का सौदा साबित होता है। मन लगाकर अगर गुल्ली-डंडा भी खेलो तो वह भी हमे सचिन तेंदुलकर बना देता है। उखड़े और उचटे मन से तो आदमी शेखचिल्ली के अलावा बन भी क्या सकता है ? काम महत्वपूर्ण नहीं होता अपितु उसके पीछे रहने वाली मानसिकता ही महत्वपूर्ण होती है। आप हर काम खुशी-खुशी करें, तन्मयता से करें। जो कुछ भी करें, धैर्य से करें, मन से करें, आनंद भाव से करें। चाहे झाड़ लगाएँ या कपड़ों पर प्रेस करें, खाना बनाएँ या किसी का सत्कार करें, आप इतने सलीके से करें कि जैसे बिल क्लिंटन देश का संचालन कर रहे हों या ठाकुर रवीन्द्रनाथ गीतांजलि की रचना कर रहे हों। जो भी करें, अच्छी मानसिकता से करें। वही व्यक्ति भूलें करता है जो अपनी मानसिकता को बेहतर नहीं बना पाता। वही व्यक्ति ठोकर खाता है, जो सावचेत होकर नहीं चलता और वही व्यक्ति अपने माता-पिता की उपेक्षा करता है, जो सकारात्मक नज़रिया अख्तियार करने में कामयाब नहीं हो पाता। सुबह जब उठे तो उठ हमारे जीवन में उत्साह का संचार हो जाना चाहिए। सूरज उगे, उससे पहले हम जग जाएँ। गुलाब का फूल खिले, उससे पहले हमारा अंतरमन खिल जाना चाहिए। सुबह उठें तो ऐसे नहीं कि आधे घंटे तक बिस्तर पर पड़े रहें। उठें तो ऐसे उठे कि जैसे आपने नींद को फटे जूते की तरह उतार फेंका रोते-झींकते मन से दिन की शुरुआत करने वाले व्यक्ति का पूरा दिन भी रोते-झींकते ही बीता करता है। स्वस्थ मन से दिन की शुरुआत करने वाले व्यक्ति का पूरा दिन स्वस्थ और सुकूनभरा हुआ करता के साथ ही सफलता आसमान से नहीं टपकती। किस्मत पाताल फोड़ कर नहीं आया करती। सफलताएँ उन्हें ही मिला करती हैं, जिनके साथ किस्मत होती है और किस्मत उन्हीं लोगों का साथ दिया करती है जो किस्मत का परिणाम पाने के लिए स्वयं अपना पुरुषार्थ किया करते हैं। हर किसी इंसान के जीवन में भाग्योदय का एक अवसर अवश्य आया करता है, पर भाग्य अपना परिणाम उसी व्यक्ति को दिया करता है जो हर अवसर का उपयोग करने के लिए जागरूक होता है। जो अवसर का स्वागत नहीं करते उनकी देहरी से भाग्य उलटे पाँव लौट जाया करता है। ___ यदि कोई शेर गुफा में बैठे-बैठे ही सोचता रहे कि वहाँ कोई हिरण उसके मुँह में स्वतः ही आ जाएगा तो वह शेर हड्डियों का कंकाल मात्र बन जाएगा और उसके ख्वाब पूरे न होंगे। हर शेर को भी अंततः पुरुषार्थ करना ही होता है। कीड़ों को कण के लिए और हाथी को मण के लिए कुछ-न ATER For Personal & Private Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुछ करना ही पड़ेगा। हम एक चिड़िया को देखें कि वह अण्डे देने के लिए घोंसला बनाने में कितनी मेहनत करती है। वह एक-एक तिनके को सहेजकर संभाल कर गूंथती है ताकि तूफान भी उसे तोड़ न पाए। परिवार में रहने वाले लोग भी तभी तक साथ रह पाएँगे जब तक एक दूसरे के प्रति उनकी मानसिकता बेहतर होगी। जिस दिन आदमी का मन टूटा, आदमी टूट जाएगा। इसीलिए तो कहा गया है कि 'मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।' मन डूबा कि आदमी डूबा, आदमी डूबा तो जिंदगी डूबी। आदमी की ताक़त उसके हाथ-पैर या उसका बलिष्ठ शरीर नहीं है। उसकी बेहतरीन मानसिकता ही उसकी असली ताक़त है। हर व्यक्ति अपनी मानसिक शक्ति को पहचाने और उसके प्रति आस्था जगाए। मानसिक शक्ति के प्रति अपनी आस्था जगाना मानो ईश्वर के प्रति अपनी आस्था को मज़बूती देना है। जीवन की शक्ति, जीवन का देवता भीतर विराजमान है। जीवन के प्रति उत्साह रखें। हमने मरने के लिए जीवन नहीं पाया है। मरना हमारी मज़बूरी हो सकता है, पर जीवन को शान से जीना हमारा हक़ है। जिसे जीना हमारा हक़ है उसका परिणाम मौत नहीं होना चाहिए। जिंदगी का परिणाम केवल जिंदगी ही होनी चाहिए। मौत मज़बूरी हो सकती है पर जिंदगी हमारी मज़बूरी नहीं है। यह तो कुदरत के घर से मिली हुई अनुपम सौगात है। अपनी जिंदगी को बड़े उत्साह से जीएँ। ज़िंदगी तो एक उत्सव है। जो व्यक्ति ज़िंदगी को उत्सव बनाकर जीता है, उसकी मौत, मौत नहीं होती बल्कि उसकी मौत भी जिंदगी का महोत्सव बना करती है। मेरा विश्वास जीवन के प्रति है। मैं मानता हूँ कि जिंदगी को अंतिम क्षण तक भरपूर जिया जाना चाहिए। प्रेम, परिवार और सामाजिक सम्बन्ध जीवन के लिए हैं। यदि जीवन अखण्ड है तो पृथ्वी भर की सारी सम्पदाएँ उसके आगे तुच्छ और नगण्य हैं। मैंने देखा है कि एक स्कूल में एक प्यारी-सी बच्ची पढ़ने के लिए आती थी। उसके मम्मी-पापा रोज़ाना उसे पहुँचाने के लिए आया करते थे। छोटी-नन्हीं बच्ची माँ-बाप के बिना स्कूल में कैसे रहेगी, यह एक समस्या-सी थी क्योंकि उसके माँ-बाप भी दोनों नौकरी-पेशे वाले थे। दिन भर बच्ची को स्कूल के बालगृह में ही रहना पड़ता था। बच्ची जब पढ़ रही होती और पढ़ते-पढ़ते ही उसे अपने मम्मी-पापा की याद आती तो वह झट से अपनी जेब में हाथ डालती, मुट्ठी भरकर जेब से हाथ बाहर निकालती, उन्हें होठों के पास ले जाती, कुछ चूमती और हाथ को नीचे कर लेती। अध्यापिका रोजाना यह दृश्य देखा करती। उसे आश्चर्य होता कि बच्ची न जाने रोज़ाना अपने मुँह के पास हाथ ले जाकर क्या करती है ? यह हर घंटे-डेढ़ घंटे में ऐसा कर लिया करती है। आख़िर अध्यापिका ने बच्ची को LIFE 72 For Personal & Private Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपने पास बुलाया और कहा – 'बेटा, एक बात बताओ कि तुम बार-बार जेब से क्या निकालती हो?' बच्ची ने कहा – 'मेरी जेब में मेरे मम्मी-पापा के चुम्बन भरे हुए हैं। जब मेरे माता-पिता मुझे स्कूल की देहरी पर पहुँचाने के लिए आते हैं तो मैं मम्मी-पापा के दोनों हाथों का चुम्बन लेती हूँ और मम्मी-पापा मेरे दोनों हाथों का चुम्बन लिया करते हैं। उन चुम्बनों को मैं अपनी जेब में डाल लेती हूँ और मेरे मम्मी-पापा अपनी जेबों में मेरा चुम्बन लेकर चले जाते हैं। जब मम्मी-पापा को मेरी याद आती है तो वे भी अपनी जेब से निकाल कर मेरा चुम्बन ले लेते हैं। मुझे मम्मी-पापा की याद आती है, तो मैं भी अपनी जेब में हाथ डालती हूँ और प्यार से चुम्बन ले लेती हूँ।' अहा, जीवन के प्रति कितना सुन्दर भाव है ! सम्बन्धों के प्रति कितना सकारात्मक भाव! जो लोग इस तरह से अपने जीवन को ढाल लेते हैं वे किसी से अलग होकर भी अलग नहीं होते। मेरे प्रभु, आज की समस्या जितनी पारिवारिक या सामाजिक है, उससे कहीं ज़्यादा वह मानसिक है। निराशा, चिन्ता, क्रोध, हताशा आदमी की समस्या है। असफलता मिलने के बाद हीनभावना से ग्रस्त हो जाना आज के आदमी की आम समस्या है। सास के साथ रहना बहू की समस्या नहीं है, पर सास के द्वारा डाँट-डपट खा लेने के बाद बहू के मन पर जो बीतती है, वह बीतना ही उसकी अपनी समस्या है। बेटा, बाप के साथ रहे, बाप बेटे के साथ रहे। इसमें कोई समस्या नहीं है, पर एक दूसरे को न समझ पाना यही आज की समस्या है। जिस व्यक्ति के मन में हताशा है वह व्यक्ति बूढ़ा है। पचपन की उम्र में हताशा आ जाना अस्वाभाविक नहीं है। इस उम्र में भी व्यक्ति उत्साह भरा हुआ रहे तो वह पचपन का होकर भी पचपन का नहीं होता। उम्र की दहलीज़ भले ही पचपन की क्यों न हो जाए पर आदमी का अंतरमन तो बचपन का ही बना हुआ रहा करता है। इसलिए अपने मन को मज़बूत करें। शरीर दुर्बल या विकलांग है तो चल जाएगा, मगर अपने मनोबल के चलते नेत्रहीन कहलाने वाले रवीन्द्र जैन भी संगीत के इतिहास के मील के पत्थर बन गए हैं। बहरे बिथोवन भी संगीत के क्षेत्र में अद्भुत एलबम के रचनाकार के रूप में मशहूर हुए हैं। हेलर केलर ने तो अंधी, बहरी और गूंगी होते हुए भी वे कारनामे कर दिखाए कि उसका सृजन करने वाला विधाता भी गौरव कर सके। जे. के. रोलिंग के जीवन में दुःख और गरीबी थी; न पति, न पैसा। सिर्फ एक बच्ची और लोगों द्वारा अपमान ! उसने हैरी पॉटर एंड फिलॉस्फर्स स्टोन की थीम पर एक उपन्यास लिखा जिसे कोई भी छापने के लिए LIFE 73 For Personal & Private Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तैयार नहीं हुआ। आज हैरी पॉटर सोने की खान बन गया है और जे.के. रोलिंग ब्रिटेन की महारानी से भी ज़्यादा अमीर है। आदमी चाहे तो अपनी जिंदगी को खंड-खंड कर सकता है और चाहे तो विपदाओं का सामना करते हुए अपनी जिंदगी को सफलता का द्वार बना सकता है। जिस व्यक्ति के पाँव में पहनने को जूते नहीं हैं, वह पडौसी के जूते देखकर मन में खिन्न और द:खी होता है पर मैं कहना चाहँगा कि भाई. मन में खिन्न न हों क्योंकि दुनिया में तो ऐसे हजारों लोग हैं जिनके पाँव तक भी नहीं हैं। माना कि आपके पास ब्रॉडेड जूते या साड़ी नहीं है, पर दुनिया में ऐसे बहुत सारे लोग हैं जिन्हें पहनने को न जूते है और न ही साड़ी। जीवन में संतोष प्राप्त करने के लिए आप आगे बढ़ चुके लोगों पर नज़र केन्द्रित मत कीजिए, नहीं तो आपको अभाव खलेगा। आप उन्हें देखिए जो भाग्य से वंचित हैं, दुःख और ग़रीबी रेखा से नीचे हैं। कमज़ोर को देखेंगे तो ईश्वर के प्रति शुक्रगुज़ारी का भाव पैदा होगा। अपने से आगे बढ़े हुए लोगों को देखेंगे तो ईर्ष्या और तनाव पैदा होंगे। कुदरत हमें जो देती है हम उसमें सुखी होना सीखें। सुख और दुःख मन की खटपट है। मन सहज है, तो जीवन में सुख है। मन असहज है तो जीवन में दुःख है। सुख और दुःख दोनों ही स्थितियों में सहज रहना जीवन की सबसे बड़ी आत्मविजय है। ____ एक मशहूर संत हुए हैं जाफ़र सादिक़। एक बार किसी आदमी के रुपयों की थैली चोरी हो गई। तो उसे संत पर संदेह हुआ और संत को पकड़ लिया गया। संत ने पूछा – 'थैली में कितने रुपये थे?' उसने बताया, 'एक हजार रुपये।' संत ने बिना किसी ननुनच के अपनी तरफ़ से उसे एक हज़ार रुपये दे दिए, पर कुछ दिनों के बाद जब असली चोर पकड़ा गया, तो रुपयों का मालिक घबराया। वह एक हज़ार रुपये लेकर संत के पास पहुँचा। और उनके चरणों में रुपये रखकर क्षमा प्रार्थना करने लगा। संत मुस्कुराए और मृदुता से बोले, 'भाई, मैं दी हुई चीज़ वापस नहीं लेता।' यह हुई व्यक्ति की सहजता। यानी इसमें भी आनंद और उसमें भी आनंद। प्रभाव में भी आनंद और अभाव में भी आनंद। आप अभाव में भी घबराएँ नहीं। धीरूभाई अंबानी ने ग़रीबी के कारण केवल दसवीं तक की ही पढ़ाई की थी। उन्होंने पेट्रोल पंप पर नौकरी की, पर जब सन् 2002 में उनकी मृत्यु हुई तो इनकी संपत्ति साठ हज़ार करोड़ रुपये थी। बिजली के बल्ब के आविष्कारक थॉमस एडिसन को बचपन में मंदबुद्धि बालक समझा जाता था। वे सिर्फ तीन महीने ही स्कूल गए और बाद में उनकी माँ ने उन्हें घर पर ही पढ़ाया। वे मानते थे कि असफलता ही इंसान को सफलता के अधिक करीब लाती है। UFE 74 For Personal & Private Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेल्सन मंडेला के नाम से हम सभी परिचित हैं जिन्होंने अपने जीवन के सत्ताईस साल जेल में बिताए, पर वे ही नोबेल पुरस्कार से भी सम्मानित हुए और दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति भी बने। जिस कार्ल मार्क्स के पास अपने बेटे के कफ़न के लिए भी पैसे नहीं थे, उसी ने आगे जाकर दुनिया को साम्यवाद का पाठ पढ़ाया। यानी इंसान अपनी आंतरिक शक्ति को प्राप्त कर ले तो वह कामयाबी की नई इबारत लिख सकता है। आप अभाव को अभाव न समझें। हर अभाव हमें प्रकृति के घर से हमारी कसौटी के लिए मिला करता है। जो अभाव के क्षणों में भी अपने मन को मज़बूत बनाए रखते हैं, अपने विश्वासों को टूटने नहीं देते ऐसे लोग ही जीवन में कुछ कर गुज़रने में सफल हुआ करते हैं। एक स्त्री को मालूम हुआ कि उसका भाई संत होना चाहता है,इसलिए वह अपनी संपत्ति की व्यवस्था करने में लगा हुआ है। उसने बड़े चिंता के स्वर में अपने पति को अपने भाई का हाल सनाया। पति बोला, 'फ़िक्र मत करो, तुम्हारा भाई संन्यास नहीं लेगा।' पत्नी बोली, 'आप मझे यह पीडा सताए जा रही है कि उसके चले जाने के बाद उसकी गृहस्थी का क्या होगा?' पति बोला, 'भई! त्याग-विराग की लम्बी तैयारी नहीं करनी पड़ती, वह तो सहज और एकदम होता है। देखो, इस तरह – ' यह कहते हुए वह सब कुछ छोड़कर सीधा वन को चला गया। यह है कुछ कर गुज़रने का जज़्बा। जिन्हें कुछ करना होता है, वे सदा कुछ-न-कुछ करने को तत्पर रहते हैं। कुछ न करना हो तो बैठे-बैठे मक्खियाँ उड़ाते रहो। अपनी जिंदगी में अपने आप पर भरोसा करना सीखें, ईश्वर और प्रकृति की व्यवस्थाओं पर आस्था रखें। पहली भक्ति, पहला विश्वास हमारा अपने आप के प्रति हो। अपने आप पर भरोसा करना ही आत्मविश्वास कहलाता है। मनोबल तो आत्मविश्वास और हिम्मत पर ही टिकता है। हिम्मत है तो सब कुछ है। हिम्मत हार गए तो जीवन का जहाज़ वहीं डूब गया समझो। जो इंसान किसी एक इंसान के आगे हिम्मत हार जाता है वह किसी शैतान या यमराज का सामना करने में कैसे सफल हो सकेगा? हिम्मत टूटी कि बात बिगड़ गई। कहते हैं कि एक छोटे ट्रक पर दूध के केन चढ़ाए जा रहे थे। दूध वाले को दूध में पानी मिलाना था इसलिए दूध वाले ने केन के ढक्कन खोले। पानी लेने के लिए वह इधर-उधर गया कि तभी पास में बैठे दो मेंढ़कों को न जाने क्या सूझी कि वे ढक्कन पर आकर बैठ गए। एक-एक ढक्कन में एक-एक मेंढ़क चला गया। दूध वाला आया, उसने पानी मिलाया और झट से ढक्कन बन्द कर दिए। दोनों मेंढ़क दूध के केन में चले गए। ट्रक रवाना हो गया। एक केन का मेंढ़क केन में इधर से उधर, उधर से इधर गोते खाने लगा। वह बड़बड़ाता जा रहा था कि बुरा फँस गया। नीचे जाए तो दूध, For Personal & Private Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऊपर आए तो दूध। पानी हो तो तैर भी ले, यह ठहरा दूध। मेंढक ने थोड़ी देर तो जद्दोजहद की और फिर दम तोड़ दिया। मन टूटा कि नौका डूबी। दूसरे मेंढ़क के सामने भी वही स्थिति थी मगर उसने सोचा कि निश्चित तौर पर मैं बुरा फँसा हूँ मगर जब तक मेरे जीवन में अंतिम साँस रहेगी तब तक मैं अपने आप को बचाने का प्रयत्न करता रहूँगा...करता रहूँगा... । वह मेंढ़क लगातार ऊपर-नीचे, नीचे-ऊपर, आगे-पीछे अपने हाथ-पाँव चलाता रहा। संघर्ष चल रहा था। मेंढ़क के हाथ-पाँव चलाने से जो मंथन हुआ उससे दूध में रहने वाली क्रीम ऊपर आ गयी। मेंढ़क उस क्रीम पर चढ़ बैठा। जब ट्रक अपने गंतव्य पर पहुँचा तो सारे केन उतारे गए। सबके ढक्कन खोले गए। जब उन दो केनों के ढक्कन खुले तो एक में मरा हुआ मेंढ़क निकला और दूसरे में ज़िंदा मेंढ़क। __ मेंढक को बचाने वाला कौन था? कोई चाहे उसे किसी पराशक्ति का नाम क्यों न दे दे, मगर अगर किसी ने बचाया तो केवल उसकी हिम्मत ने ही उसे बचाया। यह दुनिया और ये सामाजिक संबंध विश्वास पर टिके हैं। पति-पत्नी के रिश्ते भी विश्वास पर कायम हैं। अब तक औरों पर विश्वास किया है लेकिन मैं कहना चाहूँगा कि व्यक्ति पहले अपने आप पर विश्वास करे। आत्मविश्वास ही आदमी की प्रगति की पहली सीढ़ी हुआ करता है। आत्मविश्वास जीवन की बेहतरीन ताक़त है। इसी में गति और प्रगति का राज़ छुपा हुआ है। जब-जब आदमी संकट से घिर जाए तब-तब आत्मविश्वास रूपी हनुमान को याद किया जाए। आदमी का संकटमोचक यदि कोई है तो वह आदमी का अपना आत्मविश्वास, उसकी अपनी हिम्मत ही है। सीता की ताक़त राम है, राम की ताक़त हनुमान है और हनुमान की ताक़त आत्मविश्वास है। जब सीता जी का हरण हो चुका था तो सीता को ढूँढ़ने के लिए नल-नील-हनुमान और सारे वानर निकल पड़े। समुद्रतट पर पहुँच कर नल ने कहा – मैं सौ कोस तो तैर सकता हूँ मगर इससे ज़्यादा नहीं तैर सकता। नील ने कहा - मैं दो सौ कोस से ज़्यादा नहीं तैर सकता। सब लोगों की नज़र आख़िरकार हनुमान पर गई। लोगों ने कहा, 'हनुमान, तुम तो न केवल चार-सौ कोस जा सकते हो, वरन् वापस चार सौ कोस आ भी सकते हो। हनुमान, तुम अपनी वास्तविक शक्ति को पहचानो, अपनी सोई हुई ताक़त को जाग्रत करो। तुम्हारे लिए एक रावण तो क्या, सैकड़ों पापियों का अकेले वध करना संभव है। अरे, तुम एक सागर तो क्या सात समन्दर भी पार कर सकते हो।' सारे वानरों ने मिलकर हनुमान की सोई हुई भीतरी शक्ति को जाग्रत करने का जो काम किया, वही काम आज मैं कर रहा हूँ। मैं आपके भीतर सोई हुई शक्तियों को जगाने का आह्वान कर रहा हूँ। हनुमान की सोई हुई शक्तियाँ जागृत हुईं कि हनुमान ने लंका पार कर ली और आपकी भी मानसिक 76 For Personal & Private Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शक्तियाँ जाग्रत होंगी, आप भी अपनी ज़िंदगी का किला फ़तह कर लेंगे । कहते हैं, अर्जुन हताश हो चुका था । उसने अपना गांडीव धनुष एक तरफ़ रख दिया और कह दिया कि ‘हे कृष्ण! मेरे लिए अपने बन्धु-बांधवों पर हथियार चलाना मुमकिन नहीं है।' उसके हाथ कमज़ोर हो गए, पाँव काँपने लगे । कृष्ण ने तब अर्जुन के सोए हुए आत्म-विश्वास को जाग्रत किया । जब-जब भी किसी का मन दुर्बल हो जाए तब-तब वह व्यक्ति गीता का पाठ करे। गीता व्यक्ति के दुर्बल मन को सबल बनाने का शास्त्र है। रामायण धर्म सिखाती है, मगर गीता कर्म सिखाती है । यही कर्म कि व्यक्ति अपने दुर्बल मन को पहचाने और उसे सबल बनाए । ज़िंदगी के मैदान में हिम्मत और मनोबल के बगैर नहीं जिया जा सकता । गीता कहती है : ओ मेरे पार्थ, तू अपने मन की नपुंसकता का त्याग कर । हृदय की तुच्छ दुर्बलताओं को किनारे कर । तू अपने कर्त्तव्यमार्ग के लिए आगे तो आ, मैं तेरे साथ हूँ। अर्थात् तुम्हारा विश्वास अगर तुम्हारे साथ है तो फिर कोई दिक्कत नहीं है। आत्म-विश्वास में ही वह शक्ति है जिसके बलबूते पर कभी पियरे ने उत्तरी ध्रुव की खोज की थी, कोलम्बस ने भारत को ढूँढ़ निकालने के लिए एक कठिन यात्रा की थी, गेलिलियो ने झूमते लेम्पों तथा थोमस अल्वा एडिसन ने चमचमाती सफेद दूधिया रोशनी वाले बल्बों का आविष्कार किया और मुहम्मद अली ने तीन बार विश्व हैवीवेट का खिताब जीता था। आख़िर यह सब किसके बलबूते पर ? एकमात्र विश्वास और हिम्मत के बलबूते पर। जिनके मन में विश्वास है वे निश्चय ही जीतेंगे। जिन्हें पहले से ही डर व संदेह है कि कहीं हार गए तो, तो निश्चय ही उन्हें हार से गुज़रना पड़ता है। मुझे पता है एक ऐसे व्यक्ति का कि जिसके दोनों हाथ कटे हुए हैं । वह शख्स हैं- डॉ. रघुवंश सहाय। उस व्यक्ति ने अपने पाँव के अँगूठे और अंगुलियों का उपयोग करके अब तक बत्तीस किताबें लिख डालीं। कोई आदमी कुछ करना चाहे और न कर पाए, यह कैसे मुमकिन है ? अगर करना चाहे तो कमजोर से कमजोर विद्यार्थी भी मेरिट लिस्ट में अपना नाम ला सकता है । केवल अपने मनोबल को, अपनी मानसिक शक्तियों को जगाने की ज़रूरत है। आग तो निश्चय ही सबके भीतर है, ज़रूरत है तो बस उसे जगाने की । डेमोस्थनीज के लिए प्रसिद्ध है कि वे बचपन में अटक - अटक कर बोलते थे । वे हकलाते थे। जब बोलते तो उनका चेहरा विकृत हो जाता था। अपने शारीरिक दोषों को दूर करने के लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की। उन्होंने शीशे में देखकर बोलने और हकलाहट दूर करने के लिए मुँह में पत्थर रखकर बोलने का अभ्यास किया। उनकी मेहनत रंग लाई और वे अपने वक़्त के महानतम वक्ता बने । हम लोग अपनी आत्मशक्तियों को पहचानें । धैर्य और कठिन परिश्रम के साथ कामयाबी की For Personal & Private Use Only LIFE 77 Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नई इबारत लिखने के लिए तैयार हो जाएँ। हम सभी को याद है कि माऊंट एवरेस्ट पर तेनजिंग और हिलेरी चढ़ने में कितनी बार असफल हुए? सबसे पहले हिलेरी अकेला ही निकला था। ग्लेशियर फिसल पड़े और उसे वापस लौट कर आना पड़ा। हिलेरी दूसरी दफ़ा फिर गया। इस बार बर्फीले तूफानों का उसे सामना करना पड़ा और उसे फिर लौटना पड़ा। वह तीसरी दफ़ा फिर गया। हिमपात से वह इस तरह घिर गया कि उसके लिए आगे बढ़ पाना नामुमकिन हो गया। जब हिलेरी वापस लौट कर आया तो लोगों ने उसे घेर लिया और पूछा कि तीसरी असफलता पर तुम्हारी क्या प्रतिक्रिया है ? हिलेरी ने एवरेस्ट की तरफ़ अपनी नज़र गड़ाते हुए कहा, 'सुनो एवरेस्ट, जो तुम्हारी समस्या है, वह मेरी नहीं है। तुम्हारी समस्या यह है कि तुम जितनी ऊँचाई पर खड़े हो, उससे ज़्यादा और ऊँचे नहीं हो सकते। एक ईंच भी नहीं ! पर, मैं अपने धैर्य और कठिन परिश्रम का उपयोग करके एक-न-एक दिन, अपने पाँव तुम्हारे शिखर पर रखने में ज़रूर सफल हो जाऊँगा'। कहते हैं कि चौथी बार उसने तेनजिंग की मदद ली और अंततः हिलेरी एवरेस्ट पर चढ़ने में सफल हो गया। जब हिलेरी अपने आत्मविश्वास और धैर्य के बलबूते पर एवरेस्ट पर चढ़ सकता है तो क्या हम अपनी जिंदगी की बाधाओं की पटरियों को नहीं लांघ सकते? नेपोलियन ने कभी कहा था – 'असंभव जैसा शब्द मेरे शब्दकोष में नहीं है।' मैं कहना चाहूँगा कि तुम भी अपने आत्मविश्वास को जगाओ और असंभव के 'अ' को हटा फेंको। हर असंभव को भी संभव बना डालो। नेपालियन जब आल्प्स की पहाड़ियों पर चढ़ने के लिए तत्पर हुआ, तो उन पहाड़ियों की गोद में रहने वाली बुढ़िया ने कहा था – 'नेपोलियन, यह तू कौनसा सपना देख कर आया है ? आज तक न जाने कितने शासक आल्प्स की पहाड़ियों को पार करने के लिए तत्पर हुए, मगर हर कोई यहीं से लौट गया। वे एक पहाड़ी भी पार नहीं कर पाए। तुम्हारे पास तो इतना दलबल है। तुम इतनी पहाड़ियों को कैसे पार कर पाओगे? मेरा कहना मानो और यहीं से वापस चले जाओ।' कहते हैं कि तब नेपोलियन ने कहा था, बूढी अम्मा, नेपोलियन के सामने दुनिया का ऐसा कोई आल्प्स नहीं है जिसे नेपोलियन चाहे और पार न कर पाए। मैं इसे अवश्य पार करूँगा। मेरे लिए असंभव जैसा कुछ भी कार्य नहीं है। बुढ़िया ने नेपोलियन को ऊपर से नीचे तक ध्यान से देखा। उसकी आँखों की चमक को, छाती की उन्नतता को देखा और कहा – 'नेपोलियन, मैं बुढ़िया नहीं बल्कि इन पहाड़ों की देवी हूँ जो इन पहाड़ों की रक्षा करती चली आई हूँ। अब तक शासक तो बहुत आए पर जो आत्मविश्वास, जो मनोबल, जो सुदृढ़ मानसिकता मुझे तुम्हारे भीतर दिखाई दी, वह अब तक और किसी शासक के भीतर दिखाई न दी। आओ, मैं तुम्हारा अभिनंदन करती हूँ और तुम्हारी LIFE For Personal & Private Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मदद करती हूँ। कहते हैं कि तब नेपोलियन और उसकी सेना ने आल्प्स की पहाड़ियों को पार करने में सफलता पाई थी। बस, आदमी में कुछ करने का जज़्बा चाहिए, लगन चाहिए। यह हर कोई जानता है कि टे हए रिश्ते वापस नहीं जुड़ते, पर अगर हम अपने मन में संकल्प कर लें तो व्यापार में लगातार लगने वाला घाटा भी मुनाफे में बदल सकता है। अगर हम यही फैसला कर लें और फिर से अपने आपको अपने धंधे में लगा लें तो हमारे चौपट व्यापार में भी हमें सफलता की ऊँचाइयाँ फिर से मिल सकती हैं। मज़बूत मन और आत्मविश्वास का सबसे बड़ा फ़ायदा यही है कि वह व्यक्ति के भीतर निर्णय की शक्ति देता है। प्रायः व्यक्ति ढुलमुल यक़ीन में जीता है। व्यक्ति सोचता है कि 'करूँ कि न करूं'। दोस्तों से पूछता है। दोस्त कहते हैं – 'भाई देख लो।' मम्मी-पापा से पूछता है तो वे कहते हैं, 'पहले ही तुमने इतना घाटा लगा दिया, अब क्या हमें सड़क पर ही लाना है?' औरों से सलाह लेने जाओगे तो दुनिया में उत्साह बढ़ाने वाले कम मिलेंगे, उत्साह तोड़ने वाले लोग ज़्यादा मिलेंगे। अरे, घाटा लगाकर अगर हम ऐसे ही निठल्ले बैठ गए तो घाटे में और घाटा लगेगा, पर अगर प्रयत्न करते रहे तो हो सकता है कि सत्रह बार घाटा खाया हो, मगर अठारहवीं बार ऐसा मुनाफ़ा पाओगे कि सत्रह घाटों को पूरा पार कर सकोगे। कोई नौकरी पाने की चाहत रखने वाला एक युवक इंटरव्यू के लिए पहुँचा। इंटरव्यू लेने वाले ने उससे न तो यह पूछा कि तेरा नाम क्या है, कहाँ तक पढ़ा है और कहाँ से आया है। उसने तो पूछा, 'बताओ, तुम्हारी कमीज़ का ऊपर का बटन टूट जाए तो तुम क्या करोगे?' उसने कहा कि नीचे का बटन निकाल कर ऊपर लगा लूँगा और शर्ट को 'इन' कर लूँगा। उसने फिर से पूछा – 'तुम्हारा एक और बटन टूट जाए तो क्या करोगे?' उसने कहा - सर, संभावना रहती है कि नीचे के दो बटन तक का कपड़ा पेंट के अंदर जाता है इसलिए दूसरा बटन भी उतार कर ऊपर लगा लूँगा।' उसने पूछा - 'तीसरा बटन और टूट जाए तो क्या करोगे?' उसने कहा - सर, 'हाथोहाथ उस शर्ट को उतारूँगा, दूसरा शर्ट पहनूँगा और समय पर ऑफिस पहुँच जाऊँगा।' बॉस ने कहा – 'कल सुबह से ऑफिस 'ज्वाइन' कर लेना।' जिस व्यक्ति के भीतर तात्कालिक निर्णय करने की प्रतिभा और क्षमता होती है वह आत्मविश्वास से भरा हुआ होता है और वही व्यापार या विद्यार्जन में सफल हो सकता है। निर्णय करने की शक्ति ही हमें लक्ष्य निर्धारित करने की क्षमता तथा आत्मविश्वास देती है। जिन लोगों के जीने का कोई लक्ष्य नहीं है और न उनके भीतर आत्मविश्वास ही है, मेरा उनसे अनुरोध है कि जीवन के प्रति सकारात्मक नज़रिया लाइए और जीने का मक़सद तय कीजिए। हर व्यक्ति अपने लक्ष्य में ही LIFE For Personal & Private Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवन की 'सनलाइट' देखे। जब नया वर्ष लगे, तब पटाखे न छोड़ें, आधे घंटा धीरज से बैठकर सालभर में क्या करना है, उसे डायरी में नोट कर लें। साल में बारह महीने होते हैं, हम दस बिंदु ही नोट कर लें और मानसिकता बना लें कि इस वर्ष मैं ये दस काम करूँगा। हम दस में से आठ संकल्प भी पूरे करने में सफल हो गए तो हम कमल के फूल हैं। छह संकल्प भी पूरे कर चुके तो गुलाब के फूल की तरह हैं। पाँच संकल्प पूरे कर चुके तो गुडहल के फूल हैं, पर अगर हम तीन संकल्प भी पूरे न कर पाए तो हम केक्टस के कांटे हैं। तब हमारी औकात शेखचिल्ली के अलावा और कुछ नहीं है। यदि आप सालभर का संकल्प निर्धारित न कर पाएँ तो एक महीने का ही संकल्प निर्धारित कर लें। हमारा कोई भी महीना ऐसा न बीते जिससे हम संतुष्ट न हो पाएँ। हर महीने का परिणाम हमारे सामने होना चाहिए। ज़िंदगी इसलिए न जीएँ कि मौत नहीं आई। ज़िंदगी इसलिए जीएँ कि जिंदगी को जीना हमारा हक और अधिकार है। महीने का संकल्प न बना पाएँ तो सप्ताह का संकल्प बना लें। सप्ताह का भी संकल्प और लक्ष्य न बना पाओ तो हर सुबह उठते ही हर दिन का लक्ष्य निर्धारित कर लें। बगैर लक्ष्य और बगैर संकल्प की क्रियान्विति के हमारा दिन अर्थहीन है। हममें से हर किसी के जीवन का परिणाम अवश्य निकलना चाहिए। जिनके हाथ में परिणाम हैं वे प्रणाम के योग्य हैं। परिणाम ही यह तय करते हैं कि हम जीवन की परीक्षा में पास हुए या फेल। हो गई है पीर पर्वत-सी, पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए। सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मक़सद नहीं, मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए। मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही, हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए। निष्क्रियता की जिंदगी बहुत जी ली। अब तो जिंदगी के हिमालय से कोई-न-कोई गंगा ज़रूर निकलनी चाहिए। मुँह लटकाए बहुत जी लिए। अब तो सूरत बदलनी चाहिए। आग केवल दिल में छुपाने के लिए नहीं होती। अब तो आग का शम्मा जलना चाहिए। हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए। कुछ ऐसा हो की जीवन का रंग निखर कर आए, जीवन बदरंग न हो। समाज में, दुनिया में वे लोग जीएँ जिनके भीतर उत्साह है, ताकि वे सफलता और आनंद के पुष्प हर जगह खिला सकें । कैक्टस के कांटे खिलाने के लिए न तो भगवान ने हमें जन्म दिया है न ही समाज को ऐसे अब तो LIFE X0 For Personal & Private Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लोगों की ज़रूरत होती हैं। कुछ सार्थक पैदा करें, बाँझ बनकर न जीएँ। यह सृजनात्मकता आएगी आत्मविश्वास और मनोबल से, एक बेहतर मानसिकता से, उत्साहपूर्ण रवैया अपनाने से। परिस्थितियों का सामना करने का सामर्थ्य हमारे भीतर आत्मविश्वास से ही जगेगा। परिस्थितियाँ किसके सामने विपरीत नहीं होती? राम को भी विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ा था। महावीर और मोहम्मद को, कृष्ण और कबीर को, नानक और नरसैया को भी विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ा था, पर विपरीत परिस्थितियों को पाकर हम अपने आपको उनका गुलाम न बना बैठें। आत्मविश्वास जगाते हुए उन परिस्थितियों का सामना करें। अपनी बुद्धि का सर्वश्रेष्ठ उपयोग करें, तो विपरीत परिस्थितियों का सामना करने में भी हम सबल और सफल हो सकते हैं। हम अगर अपनी जिंदगी में उत्साहभाव का संचार करते हैं, हीन भावनाओं को अपने दिमाग से निकाल देते हैं, भय-डर और दब्बूपन के भाव को दिमाग़ से निकाल फेंकते हैं तो हम जिंदगी को ज़रूर सफलता के नये आयाम दे सकेंगे। जिंदगी में डरे नहीं, रुके नहीं, हालातों के आगे झुके नहीं। संघर्ष करें। संघर्ष ही फलदायी होता है। संघर्ष ही कसौटी होता है। संघर्ष से ही हमारे आत्मबल और मनोबल की परीक्षा होती हैं। ज़िंदगी में दब्बूपन काम का नहीं होता। गब्बरसिंह का वह डायलोग हमेशा याद रखें - 'जो डर गया सो मर गया।' आपने और मैंने, अपन सभी ने बचपन में शोले फिल्म देखी है। शोले वास्तव में फिल्म नहीं वरन् संघर्ष की दास्तान है। जीवन में जूझना कैसे चाहिए यह हमें शोले से सीखने को मिलता है। मौत ज़िंदगी में दो बार नहीं आती। मौत केवल एक बार आती है और वक़्त से पहले आना मौत के भाग्य में नहीं है। फिर हम किस बात को लेकर डरें? सामना करें, चाहे जैसी स्थितियाँ बने । अंतत: हम उन स्थितियों का सामना करने में खुद सफल हो जाएँगे। कछुए और खरगोश की कहानी को हमेशा याद रखें। यह वह कहानी है जो कि हमें चुनौतियों का सामना करने का संबल देती है। खरगोश जीते, इसमें कोई नई बात नहीं है, पर कछुआ जीत जाए यह बड़ी बात है । आँख वाला पहुँच जाए, तो बड़ी बात नहीं है, पर अंधा भी पहुँच जाए यह उल्लेखनीय बात हुई। क्या आपने कभी सोचा कि कछुआ क्यों जीता? हालांकि कछुआ अपनी औकात जानता था, पर इसके बावजूद उसने हिम्मत नहीं हारी और खरगोश की शर्त उसने स्वीकार कर ली। वह निरंतर चलता रहा। खरगोश उससे काफी आगे बढ़ गया तब भी वह न रुका। वह चलता रहा, चलता रहा और जो निरंतर चलता रहेगा, प्रयत्न करता रहेगा वह अपनी मंज़िल पा ही लेगा। आप भी निरंतर कोशिश करते रहिए। निरंतरता को अपने जीवन की नींव बनाइए । जहाँ निरंतरता का तानाबाना गूंथा जाता है, वहाँ नये इंद्रधनुष ज़रूर दिखाई देते हैं। मन में अगर हीनभावना है तो उसे निकाल फेंको।अपनी योग्यतााओं को कभी भी कम मत आँको । न अपनी क्षमताओं को कभी कमजोर समझो। अपने मन में गलत मान्यताएँ और धारणाएँ स्वीकार न करें। अगर TEE 81 For Personal & Private Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोई आदमी गरीब है तो वह गरीबी की हीनभावना को मन में न बसाए । गरीब होना कोई जुर्म नहीं है। मन को गरीब बना बैठना जुर्म होता है । मैं भी साधारण घर में ही पैदा हुआ हूँ, पर मैंने अपने मन को कभी साधारण नहीं होने दिया। अपने मन को सदा असाधारण रखिए, संघर्ष भले ही क्यों न करना पड़े, आप असाधारण हो ही जाएँगे। मैंने अपने नाना से प्रेरणा ली है। मेरे नाना केवल तीसरी कक्षा तक पढ़े थे, पर महान् इतिहासविद् हुए। मुझे गीता के कृष्ण से कर्मयोग की प्रेरणा मिली है और रामायण से मर्यादाओं को जीने की शिक्षा प्राप्त हुई है। मैंने कर्ण जैसे लोगों से प्रेरणाएँ ली है। भले ही मेरा संत-जीवन क्यों न हो, पर मैं अपने पास आए हुए किसी भी याचक को खाली हाथ नहीं जाने देता। मैंने राम से मर्यादा का पाठ सीखा है, तो भरत से त्याग का। महावीर से अहिंसा सीखी है तो मोहम्मद से मोहब्बत । सुकरात से सत्य सीखा है तो जीसस से प्रेम और सेवा का पाठ पढ़ा है। कबीर से मस्ती पाई है तो मीरा से भक्ति । सूर से प्रेरणा लेकर हृदय की पगड़डियाँ खोली है, तो मदर टेरेसा की आँखों में झाँककर सेवा की रोशनी पाई है। गाँधी यदि सादगी के प्रतीक हैं तो गोर्बाच्योव प्रगति के। आप अपने मन की खिड़कियों को सदा खुली रखिए, आपको अनायास ही कभी धूप मिलेगी तो कभी हवाएँ, कभी ख़ुशबू मिलेगी तो कभी टिमटिमाते तारे। यह है फ़िज़ा कुछ सीखने की, कुछ पाने की। अपने मन को ऊँचा कीजिए, निर्मल कीजिए। मन की क्षुद्रताओं का त्याग कीजिए। मन को रोशनदान बनाइए, जिससे ब्रह्मांड की रोशनी भीतर बैठे ब्रह्म को मिल सके। जीवन में किसी तरह की कमी है तो रोते-झींकते मत रहिए। संघर्ष कीजिए, सफलता आपके क़दम चूमेगी। इस देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री भी ग़रीब घर में पैदा हुए। अमेरीका के प्रथम राष्ट्रपति अब्राहिम लिंकन भी ग़रीब घर में जनमे। भगवान जीसस तो पेड़ के नीचे ही पैदा हुए मिले। गरीब घर में पैदा होना कोई गुनाह नहीं है, पर कृपा करके अपने मन को कभी भी गरीब न बनाएँ। जो भी है, जैसा भी है, मस्त रहें। ऊँचे सपने देखें, ऊँचे लक्ष्य बनाएँ । ऊँचा पुरुषार्थ करें। दुनिया आपकी होगी। जीवन के प्रति अपनाया गया सकारात्मक नज़रिया ही आदमी के आत्मविश्वास को बनाने का आधार होता है। अगर कोई कुरूप है तो वह अपनी कुरुपता की हीनभावना के बारे में सोच-सोच कर अपने मन को कमज़ोर न करे। काला होना कोई गुनाह नहीं है। आदमी की पूजा चमड़ी के रंग से नहीं, अपितु जीवन जीने के ढंग से होती है।रंग को तो हम नहीं बदल सकते, मगर ढंग को तो हम बदल ही सकते हैं। ऐसा हुआ, हमारा एक करीबी घर है। उस घर की गृहिणी बहुत सुन्दर है। मैंने उस बहिन से पूछा – 'बहिन, तुम इतनी सुन्दर हो, पर तुम्हारे पति इतने काले-कलूटे, चेचक के दाग वाले है। तुमने ऐसे आदमी को क्यों पसंद किया? वह बोली, 'साहब, यह मेरी लव मेरिज है।' मैं और चौंका कि इसने भी किसे छाँटकर निकाला! LIFE For Personal & Private Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उसने कहा – प्रभु, सच बात यह है कि हम दोनों एक ही कॉलेज में पढ़ते थे। पूरी कॉलेज में मैंने पाया कि यह लड़का जितना सुशील और सुन्दर भावदशा का है, उसकी तुलना में पूरी कॉलेज में इससे सुन्दर लड़का मुझे नहीं मिल पाया। इसलिए मैंने इससे शादी कर ली। हक़ीकत यह है कि मैंने इसकी सूरत से नहीं बल्कि इसकी सीरत से शादी की है। व्यक्ति चेहरे का कुरूप हो सकता है, मगर जिसका दिल, जिसकी भावदशाएँ, जिसकी मानसिकता निर्मल और महान् होती है, वही व्यक्ति जीवन में श्रेष्ठ हुआ करता है। संयोगवश उसी समय उसके पति भी आ गए। मैंने उनसे पूछ ही लिया कि आपको इतनी सुन्दर पत्नी मिली, निश्चय ही आपकी क़िस्मत बहुत अच्छी थी, पर क्या कभी आपको अपने आप पर आत्मग्लानि महसूस नहीं हुई ? उस व्यक्ति ने कहा - 'जब मैं छोटा था तो मुझे बहुत आत्मग्लानि महसूस होती थी। उस समय मेरे लिए कालू नाम सुनकर मुझे बड़ी ठेस पहुँचती थी, पर मैंने बचपन में ही यह संकल्प ले लिया था कि मैं भले ही कुदरत के घर से अभावग्रस्त क्यों न रहूँ, पर मैं अपनी जिंदगी में इतने सुन्दर विचारों का, इतने सुंदर स्वभाव का मालिक बनूँगा, अपने व्यक्तित्व और केरियर को इतना सुन्दर बनाऊँगा कि जिसके चलते मेरी यह कुरूपता अर्थहीन हो जाए। गुरुदेव, जब से मैंने अपनी जिंदगी को बेहतर बनाने के प्रयत्न किए। मेरे प्रयत्न रंग ले आए। आज मैं पूरे शहर में एक सफल डॉक्टर के रूप में माना जाता हूँ। यह सब चेहरे के कारण नहीं बल्कि मेरी नेक नीयत के कारण है।' आपके पति का रंग काला है तो चलेगा, मगर काला स्वभाव नहीं चलेगा। रंग गोरा हो, पर मानसिकता काली हो, तो यह घाटे का सौदा है। रंग गोरा है तो गुमान मत कीजिएगा। गोरा तो चूना भी होता है, एक चम्मच मुँह में रखो तो पता चल जाएगा। रंग काला है तो ख़ुद को हीन मत समझिएगा। काली तो कस्तूरी भी होती है, पर वह जहाँ भी रहती है पूरे क्षेत्र को ख़ुशबू से महका देती है। रंग की बात छोड़िए, और ढंग की बात उठाइए । ढंग से उठिए, ढंग से बैठिए । ढंग से खाइए, ढंग से पहनिए । ढंग से सोइए, ढंग से जगिए । ढंग से बोलिए, ढंग से पेश आइए । ढंग से काम कीजिए, ढंग से प्रार्थना कीजिए। कार्य चाहे पढाई का हो या लिखाई का. चंदे का हो या धंधे का. मिटिंग का हो या कम्पोजिंग का. अकाउंटेट का हो या मैनेजमेंट का हर किसी को ढंग से कीजिए, हर काम को ढंग से करना ही आपके व्यक्तित्व और आपके कर्तृत्व की पहचान बन जाए। सलीके का मज़ाक अच्छा, क़रीने की हँसी अच्छी। अजी, जो दिल को भा जाए, वही बस दिल्लगी अच्छी। सुबह उठते ही अपने भीतर उत्साहभाव का संचार करें। ज़िंदगी में अगर कोई आदमी चुनौती दे दे तो चुनौती झेले। उस चुनौती को पार लगाते हुए कैसे आत्मसमर्थ हुआ जाता है, उसके प्रयत्न अपने जीवन में शुरू कर दें। सफलता, समृद्धि या आनंद जीवन के ढेर सारे लक्ष्य हो सकते हैं, पर पहले अपने मनोबल को मज़बूत करें। काम करने का तरीक़ा बेहतर बनाएँ। अपनी सोच और नज़रिए को सकारात्मक बनाएँ। इस LIFE For Personal & Private Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तरह सुखी और मधुर जीवन का मालिक बनने में आप स्वयं अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करें । याद रखिए – आसमान छूने का जज़्बा हो, तो ज़मीन आपकी होती है। केवल ज़िंदगी में कुल्हाड़ी ही मत चलाते रहिए, वरन् कुल्हाड़ी पर धार भी दिलाते रहिए। आपकी धार जितनी अधिक तेज होगी, सफलता की मंज़िल भी उतनी ही क़रीब होती जाएगी । कुछ बिंदुओं को याद कर लीजिए - 1. मैं अपने हर दिन की शुरुआत मुस्कान और उत्साह से करूँगा । I 2. सबके साथ प्रेम और विनम्रता से पेश आऊँगा । यदि कोई दुश्मन भी सामने आ जाए तो उसे भी सम्मान देना धर्म समझँगा । 3. मैं प्रतिदिन आठ घंटे मेहनत अवश्य करूँगा, फिर चाहे वे घंटे दिन के हों या रात के । 4. अपने हर काम को अपनी पूजा समझँगा और जो कुछ करूँगा, पूरे विश्वास और उत्साह से करूँगा। 5. असफल होने पर विचलित नहीं होऊँगा, अपितु विफलताओं से सीख लेते हुए, दुबारा प्रयत्न करूंगा, ताकि ग़लतियाँ फिर से न दोहराई जाएँ । ये बातें निश्चय ही आपके लिए मददगार साबित होंगी। आदमी के पास देखने की कला हो तो सुई के छेद से भी आसमान को देखा जा सकता है। बस, अपनी मानसिकता को बेहतर बनाएँ और फिर से प्रयत्न प्रारम्भ कर दें। जिस क्षण आप फिर से प्रयत्न प्रारम्भ करेंगे, उसी क्षण से आपके जीवन में नया वर्ष लगेगा । पुराने कलैण्डर उतारिए और पुरुषार्थ का नया कलैण्डर अपने दिल और दिमाग़ में टांगिए । LIFE 84 For Personal & Private Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सीखिए, लाइफ मैनेजमेंट के गुर MORCHAMRAPARISo c iprompaARMER808080RRIOR बेहतर योजना बेहतर भाग्य मनुष्य के सामने एक बहुत बड़ी चुनौती है। चुनौती यह है कि मनुष्य स्वयं को व्यवस्थित कैसे करे? संसार की हर वस्तु के पीछे एक व्यवस्था काम करती है। ऋतुओं के निर्माण एवं परिवर्तन के पीछे प्रकृति की व्यवस्था काम करती है। सरोवर, झरने यहाँ तक कि ग्रहगोचर, चाँद-सितारों के पीछे भी अस्तित्व की एक व्यवस्था है। सच तो यह है कि इंसान भी उसी व्यवस्था का एक हिस्सा है। जन्म-मरण, सुख-दुःख, मिलन-विरह, यश-अपयश इन सबको देखकर ऐसा लगता है कि हर चीज़ के साथ एक व्यवस्थापक लगा हुआ है और उसकी व्यवस्थाएँ इतनी सुव्यवस्थित हैं कि पलभर, श्वासभर, रत्तीभर का भी उसमें कोई फ़र्क नहीं आता। हमें प्रकृति और परमात्मा की इस व्यवस्था को समझकर अपने लिए जीवन की अन्तर्दृष्टि उपलब्ध LIFE 85 For Personal & Private Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करनी चाहिए कि जैसे प्रकृति सब चीज़ों को व्यवस्थित रखती है, वैसे ही हम सब लोगों को भी खुद को व्यवस्थित करना चाहिए। ख़ुद को व्यवस्थित करना अपने आप में एक बहुत बड़ी साधना है। कोई भी व्यक्ति किसी और को अव्यवस्थित देखना नहीं चाहता। हर पिता की अपेक्षा रहती है कि उसका पुत्र व्यवस्थित जीवन जीए । हर पति की मंशा रहती है कि उसकी पत्नी बहुत व्यवस्थित रहे। हर मालिक की यह ख्वाहिश होती है कि उसका कर्मचारी हर कार्य, हर चीज़ बहुत व्यवस्थित ढंग से सम्पादित करे। पर जब यही बात स्वयं अपने आप पर लागू होती है तो ख़ुद के सामने ही प्रश्नचिह्न लग जाता है। क्या हम ख़ुद को व्यवस्थित कर पाए हैं ? नौकर के द्वारा होने वाली थोड़ी-सी अव्यवस्था हमें झल्लाहट दे देती है और हमारी अपनी अव्यवस्था? पत्नी के द्वारा की जाने वाली थोड़ी-सी उपेक्षा भी हमें आगबबूला कर बैठती है और हमारे स्वयं के द्वारा उसे दी गई उपेक्षा? ख़ुद तो कुछ भी करो, सारे गुनाह माफ़, पर दूसरा कुछ भी कर बैठे, तो गुस्सा आसमान पर चढ़ जाता है। व्यक्ति को चाहिए कि वह प्रकृति की व्यवस्था को समझे और ख़ुद की प्रकृति को सहज-शांतिमय बनाए।दूसरों की गलती को माफ़ करने का बड़प्पन भी तो दिखाया जाना चाहिए। गुस्सा तो उस ड्रिंक की तरह है, जिसे अगर ठंडा और कूल-कूल करके पिया जाए और परोसा जाए तो ही वह जायका दे सकता है। कृपया अपने आपको खुले दिमाग़ का बनाइए। खुले बटुए की बजाय खुला दिमाग़ ज्यादा लाभकारी है। __खुद को व्यवस्थित करना अपने आप में ही एक साधना है। धर्म की दहलीज़ पर क़दम बढ़ाने से पहले व्यक्ति को चाहिए कि वह पहले अपने आपको व्यवस्थित करे। जो शिक्षा और संस्कार हमें सुव्यवस्थित रहना सिखाए, वही सही शिक्षा है। लोग एम.बी.ए. होने को लालायित हैं। मेरा अनुरोध है हर व्यक्ति एल.एम.ए. ज़रूर हो जाए। एम.बी.ए. के लिए पढ़ना होगा और एल.एम.ए. के लिए सावधान होना होगा। एल.एम.ए. यानी लाइफ़ मैनेजमेंट करना आसान है, पर उसी के लिए अपने जीवन और रिश्तेदारों के साथ प्रेमपूर्ण प्रबंधन बैठाना किसी तपस्या से कम नहीं है। अनजान अपरिचित लोगों के साथ हँस-खिलकर बोलने वाला इंसान अपनी भाभी, बड़े भाई, भतीजों के साथ हँस-खिलकर क्यों नहीं पेश आता? __ अपने आपको व्यवस्थित करने का मायना है कि व्यक्ति अपने जूते -चप्पल तक सलीके से पहने और रखे। साफ-सुथरे वस्त्र पहने, अपने घर का सारा साजोसामान ढंग से और तहज़ीब से रखे। अपने आपको व्यवस्थित रखने का अर्थ यह है कि व्यक्ति अपनी वाणी, अपनी कार्यशैली के साथ-साथ अपने पारिवारिक संबंधों को भी बहुत व्यवस्थित रखे। झेन कहानियों में कुछ विशेष घटनाओं का ज़िक्र हुआ है। उनमें से एक मुझे सदा याद रहती है। किसी झेन गुरु के पास एक व्यक्ति आत्मज्ञान की शिक्षा पाने के लिए आया। वह तेजी से आश्रम में प्रविष्ट हुआ। LIFE 86 For Personal & Private Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक ओर उसने अपने जूते डाले और धड़ाम से दरवाज़ा खोलते हुए झेन गुरु के पास पहुँचा। उसने झेन गुरु को जाकर प्रणाम किया और कहा कि 'मैं आत्मज्ञान का रहस्य जानना चाहता हूँ'। झेन गुरु ने उस युवक पर नज़र केन्द्रित की और कहा, 'क्या तुम्हें पता है कि मेरी कुटिया के बाहर बारिश हो रही है या नहीं? उसने कहा, 'जी हाँ, मुझे पता है।' गुरु ने कहा कि तुम्हारे सूखे वस्त्रों को देखकर लगता है कि तुम छतरी अपने साथ लेकर आए हो। उसने कहा, 'हाँ साहब, मैं छतरी का उपयोग करते हुए आप तक पहुँचा हूँ।' झेन गुरु ने कहा कि 'क्या आत्मज्ञान का रहस्य जानने से पहले तुम मुझे यह बताओगे कि तुमने छतरी दरवाज़े के दायीं तरफ़ रखी है कि बायीं तरफ़?' वह युवक चौंका । स्मरण करने लगा कि मैंने छतरी दायीं तरफ़ रखी या बायीं तरफ! झेन गुरु ने उससे कहा कि तुम मुझसे आत्मज्ञान की शिक्षा पाओ उससे पहले दरवाज़े के पास जाओ और अपने जूतों से क्षमा माँगो।' युवक ने कहा, 'आत्मज्ञान की शिक्षा पाने के साथ जूतों का कहाँ सम्बन्ध बैठता है ?' आप मुझे यह कहें कि मैं आपके सामने झुक कर अपने पापों और अपराधों की क्षमा माँगू, तो बात समझ में आती है पर आप कह रहे हैं कि जाकर जूतों से क्षमा माँगो। झेन गुरु ने कहा, 'जिस दरवाज़े से तुम अन्दर आए हो उसी दरवाज़े से मैं भी अन्दर आया हूँ। लेकिन जिस आदमी को अभी तक अपने जूते और दरवाज़ा भी सलीके से खोलने नहीं आते, वह आत्मज्ञान की नसीहतों को सीखने का अभी पात्र नहीं बन पाया है।' __यह कहानी हम लोगों को 'लाइफ मैनेजमेंट' की प्रेरणा देती है। यह बताती है कि आत्मज्ञान और साधना की तरफ अपने कदम बढ़ाने से पहले अपने जूतों को भी सलीक़े से खोलना जीवन की पहली साधना है। जो व्यक्ति सुव्यवस्थित तरीके से अपने कार्यों को सम्पादित नहीं करता वह अन्धेरा छा जाने पर अपने सामानों को वैसे ही टटोलता है जैसे कि दिन का उजाला होने पर उल्लू अपने घोंसले और घर को ढूँढा करता है। ___ जो व्यक्ति अपने साजो-सामान को बहुत व्यवस्थित रखेगा वही व्यक्ति अन्धेरे में अगर सुई भी ढूँढ़ना चाहेगा तो उसे बिल्कुल व्यवस्थित जगह पर अन्धेरे में भी सूई मिल जाएगी। लापरवाही के साथ अगर मटका भी कहीं रख दिया तो अंधेरे में उसे भी ढूँढ़ने जाओगे तो वह नहीं मिलेगा। अंधेरे की क्या बात, कई दफा तो हम दिन में भी अपने रखे हुए सामानों को ढूँढ़ते रहते हैं। कहते हैं, भाई, रखा तो था मगर याद नहीं आ रहा है कि कहाँ रखा?' ऐसे लोगों के लिए ही यह कहावत मशहूर है कि 'घड़े में ऊँट ढूँढ़ना।' यदि ढंग से अपना सामान भी नहीं रखते तो तुम ऊँट खो जाने पर यह सोचकर घड़े में भी ढूँढ़ना चाहते हो कि शायद वह उसमें मिल जाए। जिस आदमी के भीतर-बाहर की अभी तक यह सजगता भी न सध पाई कि जिस सामान को जहाँ से लिया, वापस वहीं पर ही व्यवस्थित रख दिया जाए, वह अपनी वाणी, विचार में, भावों के प्रति सजग नहीं For Personal & Private Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हो पाएगा। जब तक स्थूल तत्त्व के प्रति हम सजग न हो पाएँ तो हम सूक्ष्म के प्रति सजग कैसे होंगे? इसलिए स्थूल के प्रति जाग्रत होना सूक्ष्म के प्रति जाग्रत होने का पहला पगोथिया' पार करना है। जब मैं कहता हूँ खुद को व्यवस्थित करना तो इसका मतलब यह हुआ कि व्यक्ति ठण्डे मिज़ाज़ से यह सोचे कि उसे कब उठना है, क्या खाना है, कैसे खाना है ? खुद को व्यवस्थित करने के लिए अपनी जीवनशैली को व्यवस्थित करना होगा। जीवनशैली को व्यवस्थित करने के लिए अपने हर दिन की शुरुआत को व्यवस्थित करना होगा। जो व्यक्ति जितने स्वस्थ मन के साथ अपने दिन की शुरुआत करता है उसका पूरा दिन उसकी अपनी स्वस्थता के साथ गुज़रता है। जो सुबह आँख खुलते ही निराशा या हताशा से घिर जाता है या चीखना, चिल्लाना शुरू कर देता है, तो आप यही मानकर चलें कि वह आदमी पूरे दिन भर ऐसे ही रोग, शोक, दुःख, दारिद्र्य से घिरा हुआ रहेगा। जो अपने हर दिन की शुरुआत बड़े स्वस्थ, प्रसन्न और मधुर चित्त के साथ करता है, उसका पूरा दिन भी स्वस्थ, प्रसन्न और मधुर बीता करता है। जैसे ही सुबह हमारी आँख खुले, आँख खुलने के साथ ही हम परमात्मा को भी बाद में याद करें। मातापिता के पास जाकर उनकी दुआएँ भी बाद में लें, किंतु सबसे पहले जैसे ही उठकर बैठें, अपने चेहरे पर मुस्कान ले आएँ और वही चेहरे की मुस्कान अपने अन्तरमन तक उतरने दें और उसी मुस्कान को अपने पैरों और हाथों तक, अंग-अंग तक विस्तार लेने दें। केवल एक से दो मिनट का यह प्रयोग किसी भी इंसान के लिए किसी संजीवनी बूटी का काम करेगा। यह दो मिनट की मुस्कान रोम-रोम में अमृत का संचार करेगी। जैसे रुग्ण आदमी सुबह विटामिन की गोली खाता है, सांझ को भी ऐसी ही विटामिन की गोली खाता है और विटामिन की एक गोली दिनभर अपना प्रभाव दिखाती है, वैसे ही दो मिनट की मुस्कान की विटामिन की गोली भी परे दिनभर हमें मस्कान से भरे हए रखेगी। न केवल दो मिनट तक हम मस्कराएँवरन दिनभर में जब-जब भी हमें सुबह की मुस्कान याद हो आए, हम प्यार मुस्कान याद हो आए, हम प्यार से अपने तन-मन में अपनी प्रसन्नता का संचार कर लें, ख़ास तौर पर उस समय जब कोई व्यक्ति हम पर झल्ला रहा हो, तो हम अपनी मुस्कान को याद कर लें। एक बूढ़े आदमी से मैंने पूछा, 'आप हर समय इतने ख़ुशमिजाज़ क्यों नज़र आते हैं ?' उन्होंने कहा, 'मैं इसलिए खुशमिजाज़ हूँ कि मैंने आपके जीवन को थोड़ा पढ़ा है। मैंने आपके जीवन से थोड़ी-सी शिक्षा ली है, और उसी शिक्षा के कारण मैं इतना ख़ुशमिजाज़ हूँ।' मैंने पूछा, 'कौनसी शिक्षा ली भाई, आपने मुझसे?' बोले, 'गुरुवर, एक दफ़ा आपने एक बात कही थी और वह बात मेरे गले उतर गई। अब जब सुबह जैसे ही मेरी आँख खुलती है, मैं अपने आपसे पूछता हूँ, 'बोल बन्दे, तुझे क्या चाहिए – ख़ुशी या नाख़ुशी?' मानता हूँ कि दुनिया मुझे बेवकूफ़ तो मानती है पर मैं उतना बेवकूफ़ भी नहीं हूँ जितना लोग मुझे समझते हैं। 88 For Personal & Private Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मैं झट से दो में से एक का चयन कर लेता हूँ। स्वाभाविक है कि हर आदमी अपने लिए ख़ुशी का चयन करेगा। मैं भी विलम्ब नहीं करता और झट से ख़ुशी का चयन कर लेता हूँ और हर पल ख़ुश रहता हूँ। जो व्यक्ति अपने हर दिन की शुरुआत इतनी ख़ुशमिज़ाज़ी के साथ करे, इतने स्वस्थ मन से करे, उसका पूरा दिन स्वस्थ, प्रसन्न और मधुर रहता है। जीवनशैली को व्यवस्थित करने के लिए यह बहुत सीधा-सरल, सिद्ध मंत्र है कि सुबह आँख खुलते ही अपने तन-मन में प्रसन्नता का संचार करें। उसके बाद अपने माता-पिता को प्रणाम कर उनकी दुआएँ लें। नित्यकर्म करें, पर उनकी शुरुआत स्वस्थ मन से हो । कब उठें, कैसे उठें, क्या खाएँ, कैसे खाएँ ? ऐसा खाना खाएँ जिसे ग्रहण करने से हमारे भीतर सात्विकता का संचार हो। पूर्व या उत्तर दिशा की ओर बैठकर भोजन करें। ज़्यादा थके हुए हों तो विश्राम किए बिना भोजन न करें, अन्यथा ज्वर या वमन हो सकता है। ऐसा भोजन न करें जो गरिष्ठ हो । जहाँ जीमन' में गए हैं वहाँ बादाम की कतलियाँ हैं, राजभोग और रसगुल्ले बने हुए हैं। खिलाने वाला तो गरिष्ठ भोजन खिला देगा, मगर उस गरिष्ठता का परिणाम कभी भी सात्विक नहीं हो सकता। वह भोजन राजसिक या तामसिक होगा। भोजन शरीर की आवश्यकता है इसलिए हम उसे पूरा करते हैं। भोजन ऐसा हो कि जिस भोजन को करने से हमारा रक्त भी शुद्ध हो, हमारी हड्डियाँ मज़बूत हों, रज, वीर्य, शुक्राणु एवं हमारे शरीर का पोषण शुद्ध, सौम्य और सात्विक हो। जब राजस्थान के लोग मद्रास या मुंबई में चैकअप करवाने के लिए जाते हैं तो वे पहुँचते ही बता देते हैं कि तुम राजस्थानी हो। क्या आप बता सकते हैं किस कारण? पेटू होने के कारण। राजस्थानी लोग खाने-पीने के ज़रूरत से ज़्यादा शौकीन होते हैं। वे मेहनत तो करते नहीं हैं । दिनभर स्कूटर-कारों पर घूमते हैं । जीभ और पेट पर नियन्त्रण नहीं रखते। मनुहार के बड़े कच्चे होते हैं । सो किसी ने मनुहार की और ये महाशय हुए शुरू। खा-खा कर पेट्र भी मत बनो; वहीं इतना कम भी मत खाओ कि बिल्कुल दुबली-पतली चार हड्डियाँ हो जाओ। शरीर को जितनी ज़रूरत है उतना सात्त्विक आहार लें। एक समय अन्न लें। ज़रूरत लगे तो दो समय लें। अधिक भूख लगती है तो भी अन्न को दो बार से ज़्यादा न लें। अर्थात् एक बार सुबह और एक बार शाम को। इससे ज़्यादा नहीं। नियन्त्रण रखें, अपने पेट एवं अपनी जीभ पर । भूख लगती है तो थोड़ा दूध पी लीजिए, नींबू की शिकंजी या जूस पी लीजिए। अन्न को करो आधा, शाक को करो दुगुना। पानी को करो तिगुना, मुस्कान को करो चौगुना ।। जो व्यक्ति छोटा सा यह सूत्र अपने जीवन के साथ जोड़ ले तो मैं समझता हूँ कि स्वास्थ्य हमारी हथेली पर होगा। हमारे स्वास्थ्य का इंतजाम हमने ख़ुद ने कर लिया है। वे लोग ज़्यादा बीमार पड़ते हैं जो ज़्यादा खाते हैं। जो अपने खाने पर अपना अंकुश रखते हैं वे सदा स्वस्थ रहते हैं। LIFE For Personal & Private Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यदि आप सुबह-शाम सकारात्मक सशक्त गहरी सांस लेते हैं, मन को शांतिमय और विकार रहित रखने का प्रयास करते हैं और आहार-विहार में संयम बरतते हैं, तो अस्वस्थ होने की संभावना वैसे भी कम हो जाती है। निश्चय ही स्वस्थ रहना व्यक्ति के अपने हाथ में है, बशर्ते वह खुद थोड़ा जागरूक हो। जब खाना खाने बैठें तो यह ध्यान रखें कि हम भारतीय लोग हाथों से खाना खाते हैं और अँगुलियों का उपयोग करते हैं। पहला काम यह करें कि जब खाना खाने के लिए बैठें, उससे पहले अपने हाथों को देखें कि कहीं नाखून बढ़े हुए तो नहीं हैं। अगर नाखून बढ़े हुए हैं तो काट लीजिए। नाखून साफ रखना आरोग्य के ताले की पहली चाबी है। अगर चाकू, छुरी, चम्मच से खाना खाते हैं और नाखून बढ़ाते हैं तब कोई हर्ज नहीं है। नाखून बिल्कुल साफ़ हों। हमेशा हाथ-मुँह धो कर भोजन करने के लिए बैठें। ध्यान रखें कि न तो कभी किसी को अपना जूठा खिलाएँ और न किसी का जूठा खाएँ। खाना खाएँ तो ध्यान रखें कि जब कौर मुँह में डालें तो दाँतों को इस तरह चलाएँ, भोजन को इस तरह चबाएँ कि होंठ तो हमारे बन्द रहें और दाँत भीतरही-भीतर चलें। हम जो भोजन मुँह में खा रहे हैं वह भोजन यदि सामने वाले को दिखाई दे रहा है तो यह असभ्यता और फूहड़पन हुआ। भोजन मौनपूर्वक करना मंगलकारी होता है। जब खाना खा लें तो देख लें कि कहीं जूठा तो नहीं छोड़ा है हमने । अगर बच गया है तो खा लीजिए। संभव है थोड़ा नमक ज्यादा हो किसी चीज़ में। अगर स्वास्थ्य के कारण किसी चीज़ को छोड़ते हैं, तो उचित है मगर जीभ के कारण किसी चीज़ को छोड़ते हैं तो मत छोड़िए। जीभ का तो नियम है, 'उतरा घाटी और हुआ माटी।' जीभ तक ही सारे स्वादों का भेद है, जीभ से नीचे उतरा कि सब एक कचूमर हो गया। __ध्यान रखें, परोसे हुए भोजन की कभी निन्दा न करें। भोजन स्वादिष्ट न भी हो, तब भी, उसे प्रेम से खा लीजिए। भोजन के समय अपने मन में काम-क्रोध आदि वृत्तियों को न आने दें। शान्त और प्रसन्नचित्त होकर भोजन करें। क्रोध अथवा निन्दा करके खाया गया भोजन राक्षसी हो जाता है, वहीं शांति और प्रसन्नता से लिया गया भोजन दैवीय हो जाता है। गाँधी जी के यहाँ एक बड़ा अच्छा सिद्धान्त था।साबरमती में भोजन करने के लिए कोई व्यक्ति ‘गाँधीआश्रम में पहुँचता तो उसे भोजन के साथ नीम की चटनी भी परोसी जाती थी। संयोगवश जब कोई एक अंग्रेज आदमी वहाँ पहुँच गया तो उसने सोचा कि यहाँ तो नीम की चटनी खाने को मिलेगी। उसने सोचा, 'यह नीम की चटनी बार-बार मेरा मुँह का स्वाद ख़राब करेगी, तो मैं पहले इसे एक साथ खा लूँ।' उसने एक ही कौर में सारी चटनी खा ली और दूसरा कौर खाने लगा कि इतने में ही गाँधी जी उधर से गुजरे। उन्होंने कहा, 'इस आदमी को नीम की चटनी बहुत भाती है अत: इसे नीम की चटनी का एक चम्मच और दिया जाए।' ध्यान रखें, जूठन न छोड़ें। अपनी थाली को अपने हाथों से धोकर रख दें। यह न सोचें कि घरवाली धोएगी। कम-से-कम एक इंसान दूसरे इंसान से अपनी जूठी थाली न धुलवाए, भले ही वह हमारा नौकर या For Personal & Private Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कर्मचारी ही क्यों न हो। अगर हम मानवता की पूजा करते हैं, इंसानियत की इबादत करते हैं तो इंसान होकर इंसान का सहयोग करना चाहिए न कि इंसान होकर हम किसी दूसरे इंसान से अपनी जूठी थाली धुलवाएँ। हम अपने घर में यह व्यवस्था कायम करें और अपने बच्चे से भी कहें कि बेटा, तू अपनी थाली ख़ुद धोकर रखेगा।' हम अपनी कुलवधू से अपनी जूठी थाली न धुलवाएँ । कुल वधु गृहलक्ष्मी होती है। क्या आप लक्ष्मी से अपनी जूठी थाली और चड्डी-बनियान धुलवाएँगे? खुद धोकर रख दें। स्वावलम्बी जीवन जिएँ। ज़रूरत से ज़्यादा न खाएँ। जितनी ज़रूरत हो, उतना ही खाएँ। एक कौर कम खाएँ तो ज्यादा अच्छा है। अंधेरे में भोजन न करें। बासी खाना न खाएँ। हमेशा ताजा, आज का बना हुआ आज ही खाइए तो आप बीमार नहीं पड़ेंगे। एक सजन हैं लालचंद जी कोठारी। बुढ़ापे में भी चमकते हैं। उन्होंने बताया कि खाना तो क्या, मैंने घी भी कभी बासी नहीं खाया। पत्नी ने हमेशा उसी दिन के बिलोवन से निकले हुए ताजे घी का ही सदा उपयोग किया है। वे पिच्यासी वर्ष में भी स्वस्थ हैं और उनके गाल गुलाबी और फूले हुए हैं। बहुत ज्यादा गरम पदार्थ का सेवन भी ठीक नहीं रहता। समशीतोष्ण भोजन लीजिए। जैसा कि कहा गया है - ठण्डो पीवे, तातो खावे, उण घर बैद कदै नी आवे। जो ठण्डा पीता है, गर्म और ताजा भोजन करता है, उसके यहाँ कभी वैद्य की ज़रूरत ही नहीं पड़ती। ऊभो मूते, सूतो खावे, उणरो दारिद्र कदै नी जावे। जो खड़ा-खड़ा पेशाब करता है और सोते-सोते खाता है, उस आलसी का दारिद्रय कभी नहीं मिटता। इन पुरानी बातों में, पुराने अनुभवों में जीवन जीने की शैली के सहज तत्त्व समाविष्ट हैं। हालांकि आदमी थोड़ी-सी ओट तो ले लेता है, पर यह क्या, जहाँ देखो वहीं, चैन खोली और हो गये शुरू...! अरे भाई, कुछ ववेक, कुछ तो सलीका बनाये रखो। ध्यान रखो, सूरज उगे, उससे पहले उठ जाओ। खाना खाते वक़्त मत बोलो। सुबह का वक़्त बातों और गप्पों में बरबाद मत करो। सुबह पन्द्रह मिनट योग और प्राणायाम ज़रूर करो। शरीर, वस्त्र और मकान सदा साफ़-सुथरे रखो, गरिष्ठ भोजन से बचो। सुबह उठकर माता-पिता और बड़े-बुजुर्गों के चरण-स्पर्श करके उनकी दुआओं की दौलत बटोरो। अपनी हर वस्तु को यथास्थान रखने की आदत डालो। ग़लती हो जाए तो उसे दरकिनार करने की बजाय तत्काल उसे सुधारने का प्रयास करो। LIFE For Personal & Private Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवन के प्रबन्धन के लिए जहाँ खाना-पीना, उठना-बैठना, आहार-विहार सही-समुचित होना चाहिए वहीं हम यह भी ध्यान रखें कि हमेशा अच्छे लोगों के साथ उठे-बैठें। ग़लत लोग, ग़लत साहित्य, ग़लत वातावरण, ग़लत खानपान से खुद को बचाएँ। कहते हैं : रोम के एक चित्रकार ने एक बालक का चित्र बनाया। बालक के चेहरे से मानो शांति, सरलता और सौम्यता बरस रही थी।चित्र इतना सुन्दर था कि उसका सर्वत्र स्वागत हुआ। कुछ दिनों बाद उसने एक ऐसे व्यक्ति का चित्र बनाना चाहा जो कि धूर्त, क्रूर, लम्पट और स्वार्थी हो। बड़ी तलाश के बाद आख़िर उसे ऐसा भी एक आदमी मिल गया। चित्रकार ने उसका चित्र बनाया। एक दिन एक शख्स ने उन दोनों चित्रों को कहीं एक-साथ देखा। उन चित्रों को देखकर उसे बड़ी आत्म-गलानि हुई। वह सुबक-सुबक कर रोने लगा। किसी ने उससे पूछा - 'भाई रोते क्यों हो?' उस आदमी ने जवाब दिया इसलिए कि ये दोनों चित्र मेरे ही हैं।' बचपन में मेरा यह दिव्य स्वरूप था, किन्तु ग़लत सोहबत और गलत आदत पड़ जाने के कारण मेरा यह उग्र और विकृत रूप हो चुका है। सुसंगत जीवन का सौभाग्य है, पर कुसंगत जीवन का दुर्भाग्य । एक अच्छा मित्र जीवन को अच्छी मिशाल देता है, पर एक ग़लत दोस्त हमारे जीवन को गलत रास्ते पर ले जाता है। दोस्त ऐसे लोगों को बनाइए जो शिक्षित और संस्कारित हों। हमारे माता-पिता, भाई-बहिन कौन होंगे, इसका तो हम चयन नहीं कर सकते। यह कुदरत की देन है, पर मित्र और संगी-साथी कैसे हों, इसका चयन तो हम खुद करते हैं। इनका भी सही चयन तभी हो सकता है जब हमारा नज़रिया, हमारे संस्कार अच्छे होंगे। ___ अच्छी शिक्षा और अच्छे संस्कारों के लिए ज़रूरी है घर का वातावरण अच्छा हो और हमारे शिक्षणसंस्थान अच्छे हों। आप अपने बच्चों को, अपने छोटे भाई-बहिनों को संस्कारशील विद्यालयों में पढ़ाएँ। शिक्षा और संस्कार हमारे लिए नींव का काम करते हैं । जीवन के शुरुआती 25 वर्षों में हम जैसा बनते हैं, हमारे आने वाले 75 वर्ष की सारी खूबसूरती उसी से निर्मित होती है। जीवन में जैसे अच्छा मित्र मिलना कठिन है, वैसे ही अच्छा शिक्षक और अच्छा गुरु मिलता भी आपकी तपस्या का फल है। गुरु हो ऐसा जो हमें हर तरह से परिपक्व बना दे। मनुष्य का जीवन तो किसी अनघड़ पत्थर की तरह होता है । शिक्षक या गुरु ही उसे घड़ते हैं, उसे सुन्दर और आदर्श मूर्ति बनाते हैं। कहते हैं किसी राजकुमार की शिक्षा पूरी हो गई थी। महाराज अपने पुत्र को विद्यापीठ से ले जाने के लिए स्वयं आए। गुरु ने कहा – 'आपके पुत्र की और तो सारी शिक्षा पूरी हो गई है, अब सिर्फ एक सबक़ बाकी है। उसे मैं अभी पूरा कर देता हूँ।' यह कहकर गुरु जी ने एक कोड़ा लिया और आव देखा न ताव, उसकी पीठ पर दो कोड़े जड़ दिए और बोले, 'जाओ वत्स, तुम्हारा कल्याण हो।' For Personal & Private Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजा ने आश्चर्य से पूछा, 'अपराध क्षमा हो, पर राजकुमार की विदाई के समय यह कोड़े मारना मेरी समझ में नहीं आया।' गुरु ने कहा – 'राजन् यह मेरी अंतिम शिक्षा थी। अब इसे शासक बनना है। तय है तब यह दूसरों को दण्ड देगा। राजन्, मैंने कोड़ा इसलिए मारा कि इसे सनद रहे कि मार की तकलीफ़ कैसी होती है।' जब मैं जीवन का यह पाठ पढ़ा रहा हूँ, तो मैं इसी सिलसिले में एक बात और निवेदन कर देता हूँ कि कभी किसी के न तो दुर्गुण देखें और न ही किसी पर गरमी दिखाएँ। गरमी से तो बनता काम भी बिगड़ जाता है, पर नरमी से बिगड़ता काम भी बन जाता है। गरमी महीने में एक दफ़ा दिखाएँगे, तो हज़म हो जाएगी, पर रोज़-रोज़ की गरमी आपकी खुद की सुख-शांति की हत्या कर डालेगी। तो क्या करेंगे? गरमी छोड़ेंगे और नरमी अपनाएँगे। खुद भी हँसें, दूसरों को भी हँसाएँ। न खुद फँसें, न दूसरों को फँसाएँ। कभी किसी के दोष पर गौर न करें। याद रखिए, दुनिया में कोई भी दूध का धूला नहीं है। कोई-न-कोई कमी तो कमोबेश हर किसी में होती है। ख़ामी पर ध्यान देंगे तो महान् से महान् व्यक्ति के लाभ से भी वंचित रह जाएँगे और ख़ासियत पर ध्यान देंगे तो मामूली-से इंसान का भी सार्थक उपयोग कर लेंगे। अभी कुछ दिन पहले की बात है। मेरे पास किसी व्यक्ति का एक गुमनाम-पत्र मिला, जिसमें एक व्यक्ति विशेष की किसी ग़लती का ब्यौरा लिखा हुआ था। उस व्यक्ति के ख़िलाफ़ काफ़ी उग्र तेवर थे उसके। मेरी समझ से हर किसी व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह मुझे सावचेत करे। पर पत्र के द्वारा नहीं, व्यक्तिगत रूप से मिलकर, शांत-विनम्र स्वर में। इस तरह किसी के ख़िलाफ़ ख़त लिखना एक तो इस रूप में भी ग़लत है। दूसरा गुमनाम ख़त लिखना, वह भी ग़लत है। तीसरा, किसी के प्रति इस तरह उग्र भाषा में लिखना, यह भी ग़लत है। चौथा, किसी के अपराध या दोष के प्रति अंगुली उठाने वाले को इतना ज़रूर याद रखना चाहिए कि ऐसा करने से बाक़ी की तीन अंगुलियाँ ख़ुद अपनी ओर ही उठती हैं। व्यक्ति के लिए जितना ज़रूरी यह है कि हम अपनी जीवनशैली को व्यवस्थित करें, उतना ही ज़रूरी यह भी है कि हम अपनी कार्यशैली को भी व्यवस्थित करें। निक्कमा आदमी किसी भी काम का नहीं होता। हर आदमी को कर्मयोग अवश्य करना चाहिए। आप ज़रा यह सोचिए कि मैं भी अगर यह सोच लूँ कि मैंने संन्यास ले लिया है और मेरे लिए तो सारे इन्तज़ाम हैं किन्तु आपको कल क्या खाना है इसकी चिन्ता भी आप करेंगे। आपको आज क्या पहनना है, इसकी चिंता भी आप करेंगे लेकिन मुझे कल क्या पहनना है इसकी चिन्ता मुझे नहीं करनी पड़ती, LIFE 93 For Personal & Private Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर इसके बावजूद मैं श्रम और कर्म में विश्वास रखता हूँ । व्यक्ति को हर रोज आठ घंटे मेहनत अवश्य करनी चाहिए। लोग सफलता के ऊँचे ख़्वाब तो देखते हैं, पर मेहनत के नाम पर कुछ भी नहीं करते । निश्चय ही यदि आप पहाड़ों को हिलाना चाहते हैं तो पहले पत्थरों को हिलाना सीखिए । कहते हैं, एक लकड़हारा काम की तलाश में किसी लकड़ी के व्यापारी के पास गया। उसे काम भी मिल गया और वेतन भी अच्छा मिला। लकड़हारे ने ख़ूब मन लगाकर काम करने का निश्चय किया। मालिक ने उसे कुल्हाड़ी दी और वह जगह बताई जहाँ उसे काम करना था। पहले दिन के काम पर ही मालिक ने उसे शाबासी दी और इसी तरह मेहनत करने को कहा । पहले दिन उसने 20 सूखे पेड़ काटे, पर दूसरे दिन वह 15 सूखे पेड़ ही काट सका, तीसरे दिन उससे 10 पेड़ ही कटे । चौथे दिन चार पेड़ ही वह मुश्किल से काट पाया। वह निराश हुआ और मालिक के पास जाकर रोते हुए कहने लगा कि मैं हर दिन पहले से ज़्यादा मेहनत करता हूँ, पर पेड़ हर दिन कम होते जा रहे हैं । मालिक ने पूछा, 'तुमने कुल्हाड़ी पर धार लगाई ?' लकड़हारे ने कहा, 'धार'? अरे धार लगाने के लिए तो मेरे पास वक़्त ही नहीं था । मैं तो लगातार कुल्हाड़ी चलाने में ही व्यस्त था । मालिक ने कहा, 'अधिक सफलता के लिए कुल्हाड़ी चलाने से भी ज़्यादा ज़रूरी कुल्हाड़ी पर धार लगाना होता है अगर चार घंटा कुल्हाड़ी चलानी है तो दो घंटे धार लगाने में लगाओ, तभी तुम कम मेहनत में अधिक लकड़ी काट सकोगे।' इस घटना से आप अपनी कार्यशैली को बेहतर बनाने गुर सीख सकते हैं। याद रखो कि बुद्धिपूर्वक की गई मेहनत ही सफलता का द्वार है। काम न करने वाले निकम्मे लोग तो अभिशाप हैं । जो लोग निठल्ले और फालतू बैठे रहते हैं वे अपने जीवन की ऊर्जा को व्यर्थ कर रहे हैं। हर आदमी को शरीर और मन दोनों से मेहनत करनी चाहिए। हम शरीर से मेहनत नहीं करेंगे तो हमारे हाथ-पाँव काम नहीं देंगे। यह जो हाड़-माँस की काया है, यह मशीनरी है। मशीनरी का हम जितना उपयोग करते रहेंगे, मशीन उतने वर्षों तक व्यवस्थित ढंग से चलती रहेगी। कार्यशैली को एक व्यवस्था दीजिए। सुबह उठकर हम जब शौच और स्नान इत्यादि कर चुके हैं तो उसके बाद एक काग़ज़ पेन लेकर बैठें और सोचें कि आज दिनभर में हमें क्या-क्या काम करने हैं ? सब्जी लानी है, शेविंग करनी है तो भी नोट कर लीजिए। ऑफिस, घर, दुकान के सारे काम व्यवस्थित ढंग से नोट कर लें। तब हम पाएँगे कि हमारे पास कामों की एक लम्बी सूची बन चुकी है। अब देखें कि इन कामों में से कितने काम ज्यादा ज़रूरी हैं ? बस, अब अपने दिन को, अपनी कर्मठता को, उसके अनुसार जोड़ दें। हम पाएँगे कि दोपहर तक ही हमने पन्द्रह काम निपटा लिए हैं। ताज्जुब तो यह होता है कि रात को जब हम घर LIFE 94 For Personal & Private Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पहुँचते हैं तो पचास में से चालीस काम निपट चुके होते हैं। कामों की सूची बनाना कार्यशैली का ही एक चरण है। यह कुल्हाड़ी को धार देने की तरह है। कार्ययोजना बनाना या करने वाले कामों की सूची तैयार करना कोई मामूली बात नहीं है। मुझे कहीं पढ़ने को मिला कि एक अमेरिकी करोड़पति चार्ल्स स्क्वैल ने एक विशेष सलाहकार को 25000 डॉलर देकर जीवन की सफलता का राज़ बताने को कहा। सलाहकार ने जो सलाह दी। वह यह थी कि अपने दिन की शुरुआत किए जाने वाले कामों की सूची से करें और बहुत से मामूली कामों में से कुछ अत्यंत महत्त्वपूर्ण कार्यों को प्राथमिकता दें। यानी यह सलाह पच्चीस हजार डॉलर की है। __ लोग कहते हैं 'वर्क इज वर्शिप।' मैं कहूँगा, 'वर्क एज वर्शिप।' लोग कहते हैं : कार्य ही प्रार्थना और पूजा है। मैं कहूँगा कि कार्य भी हम ऐसे करें जैसे कोई प्रार्थना की जाती है। हर काम परमात्मा को समर्पित किये जाने वाले प्रसाद का ही पुष्प है। योजनाबद्ध तरीके से अपने कार्यों को सम्पादित करने वाला व्यक्ति दस दिन के कार्यों को दो दिन में निपटा लेता है। बिना किसी योजना के कामों को करने वाला व्यक्ति दो दिन के काम को भी दस दिन में नहीं निपटा पाता। ___ कार्यशैली को व्यवस्थित करने के लिए ध्यान रखें कि कभी भी किसी कार्य को छोटा न समझें। कभी यह बात मन में न लाएँ कि घर का पाखाना कोई हरिजन आएगा तो वही साफ़ करेगा। काम कोई छोटा-बड़ा नहीं होता। छोटी-बड़ी तो मानसिकता होती है। चाहे पाख़ाना साफ़ करना हो या पंडरपुर की यात्रा करनी हो, काम तो काम ही होता है। सुबह स्नान से पूर्व बिना किसी संकोच के अपना पाख़ाना साफ कर लें। इससे हमारे मन में पलने वाला अहंकार भी टूटेगा। 'मैं बडा हैं' यह अभिमान भी टूटेगा। मूल्य छोटे-बड़े का नहीं होता, मूल्य भी हमारी विनम्रता और मानसिकता का ही होता है। अहंकार और अहंकार की अस्मिता ये दोनों जब तक नहीं टूटते तब तक व्यक्ति बेहतर नशैली का मालिक नहीं बन सकता। ज़रा कृष्ण को याद कीजिए जिन्होंने अश्वमेघ यज्ञ में अतिथियों के पाँव धोने और उनकी जूठी पत्तलें उठाने का जिम्मा अपने ऊपर लिया। कृष्ण की यह निरभिमानता ही उन्हें 'पूज्य' बनाती है। ज़िंदगी में किसी भी काम को छोटा मत समझो। हम काम से भी प्यार करना सीखें। जिस व्यक्ति को छोटे-से-छोटा काम करना भी अच्छा लग सकता है, वह हर हालत में स्वस्थ, स्वावलम्बी और श्रेष्ठ जीवन का स्वामी होता है। अगर एक घंटे की ख़ुशी चाहिए तो जहाँ बैठे हैं, वहीं एक झपकी ले लें। अगर एक दिन की ख़ुशी चाहते हो तो जहाँ नौकरी करते हैं वहाँ से छुट्टी ले लें। पूरे दिन ही मस्ती मारें। एक सप्ताह की ख़ुशी चाहते हो तो घर-परिवार की झंझट छोड़कर किसी हिल UFE For Personal & Private Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्टेशन पर पिकनिक मनाने चले जाएँ। एक-दो महिने की ख़ुशी चाहिए तो आज ही शादी कर लें । एक साल की ख़ुशी चाहिए तो किसी करोड़पति की विरासत अपने नाम लिखवा लें और मौज़ करें, पर अगर ज़िंदगी भर की ख़ुशी चाहिए तो आप जो करते हैं, उस कार्य से प्यार करने की आदत डाल लीजिए। आप पाएँगे कि हारी हुई बाजी आप फिर से जीत गए हैं। छोटी-छोटी सजगता रखकर हम स्वयं को व्यवस्थित करने की साधना को सार्थक कर सकते हैं। अगर चाहिए तो बस थोड़ी-सी जागरूकता, सौम्यता और मिठास । हम अपने हर कार्य को अपना आईना समझें। अधिक से अधिक जितने बेहतर तरीके से उसको संपन्न कर सकते हैं उतनी ही कुशलतापूर्वक कार्य को संपन्न करें। बहुत से काम ख़राब ढंग से करने की बजाय थोड़े से काम अच्छे ढंग से करना ज़्यादा दमदार है । हम अपने हर कार्य को इतने सलीके और सम्पूर्णता के साथ पूरा करें कि अगर स्वर्ग के देवता भी घर से गुजर जाएँ तो वे दो पल ठहरें और हमारी पीठ पर हाथ रखकर हमें बधाई दें कि 'शाबाश, तुमने बहुत अच्छे ढंग से अपना काम पूरा किया।' आखिरी निवेदन : जीवनशैली और कार्यशैली को व्यवस्थित करते हुए अपनी भाषा को भी व्यवस्थित कीजिए। बोलने में उग्रता या हेकड़ी काम की नहीं होती। यदि आप नहीं जानते कि बोलना कैसे है तो अच्छा है कि चुप रहना सीखें । शब्द बड़े शक्तिशाली होते हैं । शब्दों का यदि ढंग से प्रयोग न करो, तो ये बीस साल के बने हुए पुराने संबंधों को दो मिनट में ही तोड़ डालते हैं । शब्दों के आधार पर ही पता चलता है कि कौन बुद्ध है और कौन बुद्ध । अच्छे शब्द प्रमोद देते हैं, हल्के शब्द विनोद करवाते हैं । आप अपने शब्दचयन पर ग़ौर कीजिए कि कहीं आप बात-बेबात में गाली-गलौच तो नहीं कर बैठते अथवा आप किसी का उपहास तो नहीं करते ? आप टेढ़ी टिप्पणियाँ करने के आदी तो नहीं हैं ? याद रखें कि अच्छी मीठी-मधुर भाषा ही इंसान को लोकप्रिय बनाती हैं। बीरबल की हाज़िरज़वाबी से आप सब वाक़िफ़ हैं। एक बार अकबर ने बीरबल पर व्यंग्य कसते हुए कहा, ‘बीरबल, तुम सिर्फ़ बातों के तीरंदाज़ हो, अगर तीर-कमान पकड़कर तीरंदाज़ी करनी पड़े तो हाथ-पाँव फूल जाएँगे।' यह बात सुनकर सभी दरबारी बड़े ख़ुश हुए । उन्हें लगा कि बीरबल आज फँस गया है, किन्तु बीरबल कहाँ हार मानने वाला था ? उसने कहा, 'हुजूर, मैं बातों के साथसाथ अच्छा तीरंदाज़ भी हूँ ।' बादशाह अकबर और अन्य सभी दरबारी बीरबल के साथ मैदान में आ पहुँचे । बीरबल के हाथों में तीर-कमान पकड़ा दिया गया और कुछ दूरी पर एक लक्ष्य रखकर निशाना साधने को कहा गया। LIFE 96. For Personal & Private Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीरबल ने पहला तीर चलाया तो निशाना चूक गया। वह तुरन्त ही बोला, 'यह थी मुल्लाजी की तीरंदाज़ी।' बीरबल दूसरा तीर भी चूक गया। इस पर उसने इसे राजा टोडरमल की तीरंदाज़ी बताया। संयोग से तीसरा तीर सीधा अपने लक्ष्य पर जाकर लगा। तब बीरबल ने गर्व से कहा - 'और इसे कहते हैं बीरबल की तीरंदाज़ी'। अकबर हँस पड़े। वे समझ गए कि बीरबल ने यहाँ भी बातों की तीरंदाज़ी की है। सही समय पर किया गया सही सकारात्मक शब्द का प्रयोग अपने सही सकारात्मक परिणाम ही देता है। आप अपनी वाणी में केवल एक चीज़ जोड़ लीजिए और वह है मिठास। आपके जीवन में चामत्कारिक परिणाम और प्रभाव समा जाएँगे। विनम्रता और मिठास ही सफलता की मौलिक आवश्यकता है। एक बात और ध्यान में रखें कि जितना बोलें उससे ज़्यादा सुनने की क्षमता रखें। कुदरत ने हमें इसीलिए मुँह एक दिया है और कान दो। इसका मतलब साफ है हम जितना बोलते हैं, उससे दगना सनें। किसी को सत्य तभी सनाइये. जब आप उससे दगना सत्य सनने को भी तैयार हों। सबको 'आप' कहकर संबोधित करें। अपने से बड़ों को तू कहना उनका वध करने के समान है। __ ये सब वे सूत्र हो सकते हैं, जिनको अपनाकर हम जीवन को व्यवस्था दे सकते हैं, जीवन को एक बेहतर स्वरूप दे सकते हैं, जीवन को इन्द्रधनुष के रंगों की तरह उत्सव बना सकते हैं। हमारी सजगता हमारे काम आएगी। यही सजगता जो बाहर की तरफ है, जब वही सजगता भीतर की तरफ मुड़ जाएगी तो वही सजगता साधना बन जाएगी। भीतर और बाहर दोनों तरफ सजगता रखने का नाम ही साधना है। बाहर की सजगता भीतर काम आएगी। भीतर की सजगता बाहर काम आएगी। हर व्यक्ति अपनी जिंदगी में देहरी का चिराग बने ताकि उसकी रोशनी बाहर तक भी जाए और भीतर तक भी पहुंचे। व्यक्ति सुन्दर हो या न हो, पर उसका जीवन ज़रूर सुन्दर होना चाहिए। हमेशा स्नान करें, साफ़-सुथरे कपड़े पहनें। अच्छी सोच रखें और सबके साथ अच्छा व्यवहार करें। काम को कल पर टालने की बजाय आज ही करने की आदत डालें और जो भी काम करें, पूर्ण करें, पूरी निष्ठा और पूरी बुद्धि से करें। हर समय प्रसन्न और आनंदित रहें। कभी वातावरण भारी भी बन जाए, तब भी शांति रखें और वातावरण को फिर मधुरता तथा विनम्रता का उपयोग करते हए वातावरण को फिर से सहज करने का प्रयत्न करें। बुरे हालात में यदि हम मात्र 10 मिनट तक खद पर विजय प्राप्त करने का तरीक़ा सीख लें, तो आप अपने सौ दिनों को दुःखी होने से बचा सकते हैं। अन्त में इतना ज़रूर अनुरोध कर देता हूँ : रोज़ाना सुबह पन्द्रह योगासन ज़रूर करें। दस मिनट प्राणायाम करके अपनी आँखों और अपनी साँसों को भी मधुर और सुन्दर बनाएँ। 20 मिनट ध्यान ATTER 97 For Personal & Private Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज़रूर करें। ध्यान करने से विचार और मन दोनों ही सुन्दर और दिव्य होते हैं । यह तो सभी जानते हैं कि सोने से शरीर को आराम और एनर्जी दोनों मिलते हैं, पर मैं बता देना चाहूँगा कि ध्यान करने से जितनी शांति, शक्ति और आराम मिलता है, वह सोने से मिलने वाले आराम से कई गुना ज़्यादा होता है। यों तो मन अशांत और भटकता रहेगा पर लयबद्ध गहरे श्वासोश्वास को साथ लो तो मन अनायास ही शांत और आराम में आ जाता है। सप्ताह में एक दिन, हर रविवार को एक घंटा प्रभु की प्रार्थना और भक्ति में अवश्य बैठो। गाने-बजाने, नाचने - झूमने, भजन-कीर्तन करने से तन-मन में एक अद्भुत दिव्यता साकार होती है। LIFE 98 For Personal & Private Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कैसे बनाएँ व्यवहार को बेहतर अच्छा व्यवहार सबको स्वीकार व्यक्ति का व्यवहार उसके जीवन का आईना है। उसका व्यवहार ही उसकी पहचान का पहला सूत्र है । मधुर व्यवहार से पारिवारिक माहौल ख़ुशनुमा रहता है, ग्राहक और व्यापारी का रिश्ता सुधरता है, अच्छा व्यवहार ही व्यक्ति को समाज का सूत्रधार और कर्णधार बनाता है । उसके चरित्र की पहचान भी उसके व्यवहार से ही होती है। उसकी कुलीनता भी व्यवहार में स्पष्ट दिखाई देती है। अच्छा व्यवहार ही अच्छे व्यक्तित्व का आधार होता है और हल्का व्यवहार हल्के व्यक्तित्व को उजागर करता है । बहू ससुराल में सभी का दिल जीत लेती है उसके मूल में उसका सभी के साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार ही होता है और जिस बहू से किसी की नहीं पटती उसका कारण भी बहू का व्यवहार होता है । आप चाहे व्यापार की चौखट पर खड़े हों या परिवार की दहलीज़ पर अथवा समाज के मंच पर, आपका व्यवहार ही आपके For Personal & Private Use Only 99 Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवन का दर्पण है। कुछ लोग तो अपने शत्रु के प्रति भी सौम्य व्यवहार करने में सफल हो जाते हैं, पर कुछ लोग अपने मित्र के साथ भी दुश्मनों जैसा व्यवहार कर डालते हैं । महान लोग शत्रु के साथ भी महान व्यवहार करते हैं जबकि हल्के लोग दोस्त के साथ भी हल्का व्यवहार किया करते हैं । महानता व्यक्ति के व्यवहार से झलकती है। जो सबके साथ सलीके से पेश आता है, सभी से सम्मानजनक भाषा का प्रयोग करता है, मित्रों के साथ भी सहजतापूर्ण व्यवहार करता है वह सदा महान व्यक्तित्व का स्वामी होता है। किसी की भी लोकप्रियता का राज़ उसका सौम्य व्यवहार है। मुझे याद है – एक नेत्रहीन व्यक्ति नगर में किसी चौराहे पर भिक्षापात्र लिए बैठा रहता था। राहगीर जो भी उसमें डाल देते उसी से जीवन-यापन कर लेता था। एक दिन की बात है कुछ सैनिक जो घोड़े पर सवार थे उधर से निकले और उसे संबोधित करते हुए आगेवान था उसने कहा, 'अरे ओ अंधे. तने इधर से किसी को जाते हए देखा।''हाँ सेनापति मैंने किन्हीं दुश्मनों को इधर से जाते हुए महसूस किया है' – उस नेत्रहीन ने कहा। सेनापति अपनी टुकड़ी को लेकर आगे बढ़ गया, पर उसे आश्चर्य हुआ कि उस नेत्रहीन व्यक्ति ने कैसे पहचाना कि मैं सेनापति हूँ। थोड़ा समय बीता कि कुछ घुड़सवार और आए। उनमें से एक ने पूछा, 'अरे भाई सूरदास, क्या तुमने किसी को इधर से निकलते हुए देखा?' 'महामंत्री, मैंने अभी-अभी सेनापति और उसकी टुकड़ी को जाते हुए महसूस किया है' - नेत्रहीन ने कहा। महामंत्री ने भी सोचा कि आख़िर यह कैसे जान गया कि वह महामंत्री है, पर बगैर कोई टिप्पणी किये वह आगे चला गया। कुछ देर बार उधर से एक रथ निकला, वह रथ भी चौराहे पर रुका और उसमें सवार व्यक्ति ने उस नेत्रहीन से पूछा, 'हे प्रज्ञाचक्षु, हे महात्मन् ! क्या आपने इधर से किसी को जाते हुए अनुभव किया है ?' उस नेत्रहीन ने कहा, 'हाँ राजन्, अभी-अभी मैंने इधर से प्रधानमंत्री को जाते हुए अनुभव किया है। तीनों आगे बढ़ गये। वे लोग जिस काम के लिए गए थे उसे करके जब वापस लौटे तो उसी चौराहे पर आकर खड़े हुए और आपस में चर्चा करने लगे कि आख़िर ऐसी क्या बात रही कि उस नेत्रहीन व्यक्ति ने ठीक-ठाक पहचान लिया कि कौन सेनापति है, कौन महामंत्री और कौन राजा है। उन्होंने यही बात उससे भी पूछी। तब नेत्रहीन ने कहा, 'महाराज, आप लोगों के अलग-अलग व्यवहार ने, आप लोगों द्वारा मुझे दिया गया सम्बोधन, निकलते हुए घोड़ों के टापों की आवाज़, इन्हीं के आधार पर मैंने पहचाना। जिसने मुझे अंधा कहा - मैं समझ गया कि यह अपने सारे सैनिकों को इसी तरह कड़क भाषा का प्रयोग करने का आदि होगा, यह सेनापति है। जिसने मुझे सूरदास कहकर संबोधित किया वह थोड़ा विनम्र है, वह न्यायालय या राजसभा में बैठकर किस तरह न्याय और सभासदों का संचालन करना है, यह जानता है इसलिए मैंने उसे प्रधानमंत्री कहकर संबोधित किया। और महाराज, रथ पर गुज़रते हुए आपको महसूस किया। आपने मुझे प्रज्ञाचक्षु और महात्मन् कहा, 'तुम' की बजाय 'आप' कहा-ऐसा व्यक्ति निश्चित रूप से इस नगर का राजा ही हो सकता है। LIFE 100 For Personal & Private Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आप बहू हों या सास, पुत्र हों या जंवाई, ग्राहक हों या व्यापारी, विद्यार्थी हों या राजनेता – अपने व्यवहार को इतना शालीन बनाइए कि सभी आपको याद रख सकें। लोग आपको राजा के रूप में जान सकें। ऐसी पहचान आपके व्यवहार से ही आएगी। मुझे मेरे एक अज़ीज़ ने बताया कि वे उनके किसी मित्र के साथ पूना लड़की देखने गए । यहाँ उनका मित्र बहुत सम्पन्न है सो आठ-दस लोगों को हवाई जहाज़ से ले गया। पूना में उनका अच्छा स्वागत हुआ। वे लोग भी बहुत अधिक संपन्न थे। एकदम राजसी वैभव। लड़की भी देखी, सुन्दर थी। तत्पश्चात् भोज का आयोजन हुआ। काफ़ी वेटर और वैरायटी का खाना था। नौकर और वेटर मेहमानों को खाना परोस रहे थे, खिला रहे थे। भोजन संपन्न हुआ और वे वापसी की तैयारी करने लगे कि मेज़बान ने कहा कि अगर कुछ आश्वासन दे दें तो....! मेरे मित्र ने कहा घर जाकर ज़वाब देता है। हम लोग पुनः वायुयान में सवार हो गए। तब रास्ते में मैंने मेरे अज़ीज़ ने पूछा – सब कुछ तो अच्छा था, लड़की भी सुन्दर थी, फिर 'हाँ' क्यों नहीं किया, क्या टालने वाला ज़वाब देकर आ गए?' उन्होंने कहा, 'सब कुछ अच्छा था, लेकिन जिस घर में मेहमानों का स्वागत-सत्कार घर के लोग ही नहीं करें, भोजन नौकर परोसें और खिलायें उस घर की लड़की लाकर क्या करूँगा। तुम जानते हो संपन्नता मेरे यहाँ भी कम नहीं है फिर भी मैं चाहूँगा कि बहू अपने हाथ से भोजन परोसे और घर के सभी लोगों को स्नेह से खिलाये। मैं जब लड़की देखने जाता हूँ तो धन-सम्पत्ति बाद में देखता हूँ, पहले उस परिवार के संस्कार और व्यवहार देखता हूँ। जैसा व्यवहार वे लोग करेंगे इसी के अनुसार लड़की के संस्कार होंगे।' आपके चेहरे का क्या रंग है, इस पर न जाइए, काले हैं तो मन में हीनभावना न लाएँ और गोरे हैं तो रंग का गुमान न करें। गोरा और काला रंग तो प्रकृति प्रदत्त है इसमें आपका कोई रोल नहीं है। चेहरे को रंग देना कुदरत का करिश्मा है, लेकिन जीवन को ढंग देना आपका ही कार्य है। आप चेहरे के रंग को तो नहीं बदल सकते, पर अपने जीने के ढंग को तो बदल ही सकते हैं। हमारे राष्ट्रपति अब्दुल कलाम कोई गोरे नहीं हैं, पर महान् वैज्ञानिक और देश का गौरव हैं । अमेरिका के प्रथम राष्ट्रपति लिंकन भी सांवले ही थे, यूनानी संत और दार्शनिक सुकरात का चेहरा चेचक के दागों से भरा था, रीतिकाल के प्रसिद्ध कवि मलिक मोहम्मद जायसी एक ही आँख से देख पाते थे, प्रसिद्ध फिल्मी गायक और संगीतकार राजेन्द्र जैन भी नेत्रहीन हैं। जिनके भजनों को आज हम प्यार से गाते और गुनगुनाते हैं वे सूरदास भी, नेत्रहीन ही थे। सभी विकलांगों की आदर्श हेलन केलर जन्मजात अंधी, गूंगी और बहरी थी। किसी भी प्रकार की शारीरिक विकलांगता या कमी व्यक्ति के विकास में बाधक नहीं बनती।इस कमी को ही अपनी शक्ति बना लीजिए। स्मरण रखिये रंग-रूप-सौन्दर्य थोड़े समय तक ही अच्छे लगते हैं, शेष तो गुण ही सदा काम आते हैं । मैं एक अरबपति घर में मेहमान था। उनके यहाँदो बहुएँ थीं । सास-ससुर दोनों डाइनिंग टेबल पर खाना खा रहे थे। एक बहू खाना बना रही थी और दूसरी उनके पास खड़ी हुई भोजन परोस रही थी, उन्हें खाना खिला रही थी।घर में बहुत से नौकर-चाकर भी थे फिर भी खाना बहुएँ ही बना रही थीं। सब्जी नौकर सुधार सकता है, आटा बाई GUFER 101 For Personal & Private Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गूंथ सकती है, लेकिन बनाने का काम वे ख़ुद ही करते हैं । जिस घर में ऐसे संस्कार होते हैं वहीं लक्ष्मी का निवास होता है, वही घर स्वर्ग होता है । जिस घर में चार बेटे-बहू हों फिर भी सास को ख़ुद खाना बनाना पड़े तो यही कहना होगा कि माता-पिता, दादा-दादी अपने बच्चों को ठीक ढंग से संस्कारित नहीं कर सके। उत्तम माता-पिता वे नहीं होते जो संतान को जन्म देते हैं या उन्हें संपत्ति प्रदान करते हैं। उत्तम माता-पिता वे होते हैं जो अपनी संतानों को संस्कार देते हैं। ये संस्कार ही तो परिवार की पहचान बनते हैं, उसकी कुलीनता की पहचान बनेंगे। अन्यथा आप में और उनमें क्या अंतर है, जो अपशब्दों का प्रयोग करते हैं। आप पढ़े-लिखे होकर भी धूम्रपान करते हैं तो आपमें और अनपढ़ में क्या अंतर रह गया. फिर आपके शिक्षित होने का क्या अर्थ? आप जानते हैं फिर भी गलत काम करते हैं। मैं संत नहीं होता और कोई ग़लत काम करता तो शायद माफ़ कर दिया जाता। लेकिन अब संन्यासी होकर ग़लत काम किया तो कभी भी माफ़ नहीं किया जाऊँगा। . __ आइए, हम अपने अंदर अच्छे गुणों का विकास करें। खाली बोरी को कभी खड़ा नहीं किया जा सकता. उसे बिछाया जा सकता है. पर खड़ा करने के लिए उसमें कछ-न-कछ भरना पडेगा। जीवन को खड़ा करने के लिए हमें अच्छे गुण जीवन के थैले में भरने होंगे। हम अच्छे संस्कार और अच्छे व्यवहार के मालिक बनें । मैं किसी नगर में था। वहाँ एक संस्था के ट्रस्टियों की मीटिंग थी। उसमें दो लोगों को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया, जिसमें से एक अति संपन्न, तो दूसरे साधारण से। जो संपन्न थे उनकी फ्लाइट दोपहर में एक बजे पहुँच गई, वे हमारे पास आ गए। दूसरे महानुभाव की ट्रेन लेट थी सो वे दो बजे पहुंचे। जल्दी पहुँचने वाले व्यक्ति हम लोगों के साथ बातचीत कर रहे थे कि उन्होंने देखा कि साधारण-सा लगने वाले वे दूसरे सदस्य अपना सामान उठाए अंदर प्रविष्ट हो रहे हैं, वे तुरन्त उठे, आगे बढ़े और उनका सूटकेस ख़ुद ने ले लिया। वह संपन्न व्यक्ति ट्रस्ट के अध्यक्ष थे और साधारण व्यक्ति सचिव। अध्यक्ष की आयु होगी लगभग साठ-बासठ वर्ष और सचिव पैंतीस-सैंतीस वर्ष के रहे होंगे। लेकिन जैसे ही मैंने यह दृश्य देखा मुझे महसूस हुआ इसे कहते हैं कुलीनता। यही है संस्कार और गौरव करने योग्य बात। मैं व्यक्ति के ऐसे ही सौम्य और निर्मल व्यवहार में विश्वास रखता हूँ और मानता हूँ कि ऐसा व्यक्ति ही आदरणीय है। संन्यास लेने से ही कोई संत नहीं बन जाता। उसकी सोच, उसका नज़रिया, उसका आचरण ही व्यक्ति को संत बनाते हैं। हर व्यक्ति संन्यास तो नहीं ले सकता लेकिन वह घर में रहते हुए भी संत तो ज़रूर बन सकता है। यह होगा केवल अपने व्यवहार को बेहतर बनाने से। हम देखें कि किन उपायों से अपने व्यवहार को बेहतर बना सकते हैं। इसका पहला सूत्र है - अपने जीवन की गाड़ी में विनम्रता का ग्रीस लगाइए ताकि वह आराम से चल सके। अपने जीवन में किसी भी बात का अभिमान न रखें - न धन का, न तन का, न रंग-रूप का, न बल और बुद्धि का । जो आज अधिक संपन्न LIFE 102 For Personal & Private Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिखाई दे रहा है, कब निर्धन हो जाए कोई नहीं जानता। आपने ऐसे लोग भी देखे होंगे जो कल तक हवेलियों के मालिक थे आज कहीं नौकरी कर अपनी गुज़र-बसर कर रहे हैं । इसीलिए कहा करता हूँ कि लक्ष्मी जी की पूजा ज़रूर करना, पर भरोसा भगवान का ही रखना । लक्ष्मी तो चंचल है कभी भी चली जाएगी, पर भगवान तो तुम्हें आश्रय देंगे, अपनी गोद में रखेंगे और तुम्हारे दुःख और पीड़ा का सम्बल बनेंगे । मैं जब आकाश को देखता हूँ तो लगता है किस बात का अभिमान करें । अरे, हमसे तो वह ऊपर वाला बड़ा है फिर किस बात का अहंकार करें और जब ज़मीन को देखता हूँ तो सोचता हूँ कैसा और किसका अभिमान आख़िर तो सभी को इस धरती में, इसी मिट्टी में समा जाना है। इसलिए अगर संपन्न हैं तो आप गर्व मत कीजिए, सोचिए हमारे योगानुयोग ऐसे रहे कि ईश्वर ने हमें संपन्न बना दिया और अगर ग़रीब हैं तो भी योगानुयोग कि हम संपन्न न हो पाए। क़िस्मत को न कोसिए, अवश्य ही कोई कारण रहा होगा । विनम्रता को अपनाने के लिए कहूँगा कि जब भी किसी से मिलें हमेशा प्रणाम के साथ, नमन-भाव से शुरुआत करें। विनय और विनम्रता आपका प्रभाव बन जाए। प्रातः काल उठते ही अपने माता-पिता के चरण छूकर उन्हें प्रणाम करें। जो विनम्रतापूर्वक प्रणाम कर माता-पिता का आशीर्वाद लेता है उसे दिनभर सफलताएँ ही मिलती हैं। घर के सभी सदस्यों को चाहे वे बड़े हों या बराबर के सभी को प्रणाम कीजिए यहाँ तक कि पति-पत्नी भी आपस में एक-दूसरे को प्रणाम करें। कुछ दिनों पूर्व आपने समाचार पत्रों में पढ़ा होगा, टी.वी. पर भी देखा होगा। भारत के उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पद की शपथ लेने के बाद लाहोटी जी ने वहाँ उपस्थित अपनी बुजुर्ग माँ को पंचांग नमस्कार समर्पित किए थे। इसमें माँ की गरिमा तो बढ़ी ही, पर लाहोटी जी का गौरव दस गुना बढ़ गया। आप भी अगर अपने पिता को जो अभी-अभी स्टेशन पर उतरे हैं बिना भीड़ की परवाह किए, इसी प्रकार प्रणाम कर सकें तो सचमुच आप संस्कारित माता-पिता की संतान हैं। आजकल मैं देखा करता हूँ कि लोगों को प्रणाम करने में बड़ी शर्म - सी महसूस होती है। लेकिन मैं कह देना चाहता हूँ कि जिन्होंने जितने कम प्रणाम किए बुढ़ापे में उनके उतने ही घुटने दर्द करते हैं। कभी झुके नहीं तो कमर दुखेगी, घुटने दुखेंगे, मोटापा बढ़ेगा। जिसने अल सुबह घर के सभी बड़े लोगों को प्रणाम कर लिया तो समझो उसने स्वस्थ रहने का राज़ पा लिया। क्योंकि प्रणाम करना भी एक तरह का व्यायाम ही है। याद रखें जीवन में तीन लोग पंचांग प्रणाम के हकदार होते हैं - माता-पिता, गुरुजन और ईश्वर । इन तीनों को खड़े-खड़े प्रणाम करना इनका अपमान है। घुटने टेककर दोनों हाथ जोड़कर और सिर नमाकर प्रणाम करिये और उनका हाथ अपने सिर या पीठ - कमर पर आने दीजिए। तभी उनके हाथों की ऊर्जा, किरणें और आभा, वात्सल्य और आशीर्वाद की छाया हमारे सिर पर रहेगी । - दूसरी बात, मुस्कुराने की आदत डालिये। किसी से मिलें, बात करें मुस्कुराकर बोलें, मुस्कुराकर मिलें । For Personal & Private Use Only LIFE 103, Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुस्कान तो वह चंदन का तिलक है कि जिसके माथे पर लगेगा वह भी महकेगा और जो अँगूठा लगाएगा वह भी सुगंधित होगा। मुस्कान ऐसा पुष्प है जिसे देने या लेने में कुछ नहीं लगता फिर भी यह जिसे मिलता है उसे प्रसन्नता महसूस होती है। आपको उपहार तो रोज-रोज नहीं मिल सकते हैं और न ही दिये जा सकते हैं, लेकिन मुस्कान का उपहार हर दिन, हर समय दिया और लिया जा सकता है। दिन का प्रारंभ और समापन मुस्कान के साथ कीजिए ।जो भी कार्य करें मुस्कान के साथ शुरू कीजिए।दुकान खोलें तो पहले मुस्कुराएँ फिर शटर उठाएँ। अरे, मंदिर भी जाए तो मुस्कुराकर भगवान को प्रणाम करें, चित्त को हर्षित करें, आनन्द से भर जाएँ फिर भगवान की स्तुति करें ।मुस्कुराने को अपना स्वभाव बना लीजिए।हर हाल में मुस्कुराइये। अगर आपको ज़िंदगी में एक घंटे की ख़ुशी चाहिए तो जहाँ बैठे हो वहीं झपकी ले लो। एक दिन की ख़ुशी चाहिए तो ऑफिस से छुट्टी लगा लो। एक सप्ताह की ख़ुशी के लिए कहीं पिकनिक मना आओ, एक माह की ख़ुशी चाहिए तो शादी कर लो, एक साल की खुशी चाहिए तो किसी करोड़पति के गोद चले जाओ, पर अगर जिंदगी भर की ख़ुशी चाहिए तो हर हाल में मस्त रहने की और हर हाल में मुस्कुराने की आदत डाल लो। अपनी मस्ती को कभी खंडित मत होने दीजिए। अब तो लोग मुस्कुराना भी भूल गए हैं, तभी तो लतीफ़े सुनाये जाते हैं कि इसी बहाने थोड़ा-सा मुस्कुरा लें। अगर यूँ ही सदा मुस्कुराते रहें तो चुटकुला सुनाने की ज़रूरत नहीं होती है । मुस्कान स्वयं चुटकुला बन जाती है। अरे, मुस्कान से इतने भरे रहो कि कभी बगीचे में चले जाओ तो मुरझाये फूल भी खिल उठे। लीजिए, आप भी थोड़ा हँस लीजिए। ऐसा हुआ। मिस्टर चौपड़ा से किसी ने उनका पुराना मकान किराये पर लिया। एक दिन सुबह-सुबह ही किरायेदार आ धमका और चिल्लाने लगा, आपका मकान है या कबाड़खाना? हर समय चूहे इधर-उधर दौड़ते रहते हैं।' मिस्टर चौपड़ा ने कहा, 'तो क्या इतने कम किराये में आप घुड़दौड़ देखना चाहते हैं ?' ऐसा हआ। मिस्टर चौपडा की जवानी की बात है। कभी उन्होंने शादी की थी। उसी दिन की बात है। वे अपने पत्नी के साथ फोटो खिंचवा रहे थे। फोटोग्राफर ने फोटो लेने से पहले उनसे कहा, 'प्लीज़, ज़रा मुस्कुराइए, ताकि आपको याद रहे कि आप कभी मुस्कुराए भी थे।' ___अब बाद में तो आदमी मुस्कुराना भूल जाता है। घर-गृहस्थी के इतने झमेले, इतने टेंशन शुरू हो जाते हैं, इतने पापड़ बेलने पड़ते हैं कि नैसर्गिक रूप से मुस्कुराने का अवसर कम ही मिल पाता है। ऐसा हुआ। एक मज़ाकी प्रकृति का नाई था। किसी ने उसकी मज़ाक उड़ाने की ठानी। उसने उसकी मज़ाक उड़ाते हुए पूछा, क्यों भाई ! क्या तुमने कभी किसी गधे की हज़ामत बनाई है ? नाई ने विनम्रता से ज़वाब दिया, बनाई तो नहीं है बाबूजी ! पर आप बैठिए, कोशिश करके देखता हूँ।' AIMER 104 For Personal & Private Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुस्कुराओ, पर किसी की मज़ाक मत उड़ाओ। हँसो अवश्य, पर किसी दूसरे पर मत हँसो वह उपहास हो जाएगा। राम की तरह मुस्कुराओ। राजमहल में हैं तब भी मस्त और वनवास की वेला है तब भी प्रसन्न। कोई सम्मान दे दे, तब भी प्रसन्न और कोई टेढ़ी टिप्पणी कर दे, तब भी सहज। उतार-चढ़ाव, हानि-लाभ, मान-अपमान – दोनों ही परिस्थितियों ने सहज और प्रसन्न रह लेना यही तो है जीवन जीने की कला। ___ तीसरी बात, सभी के साथ सभ्यता, शिष्टता और नम्रता से पेश आएँ । सम्मान लेने की नहीं, देने की ख्वाहिश रखें । फूलों के हार दूसरों को पहनाओ। ख़ुद पहनने की इच्छा मत रखो। फूलों की माला पहनने वाला नहीं अपितु पहनाने वाला बड़ा होता है। दूसरों को सम्मान देकर प्रसन्न होइए। जो सम्मान पाकर प्रसन्न होते हैं वे अहंकारी और घमंडी किस्म के लोग होते हैं। लोग हमसे कहते हैं आप तो संत हैं फिर प्रणाम क्यों करते हैं। अरे भाई, आप इतनी विनम्रता से हमें प्रणाम करते हैं क्या हम इतने गये-गुज़रे हैं कि आपके प्रणाम का ज़वाब प्रणाम से न दें। कोई साधु बन गया है तो वह गृहस्थ से दोगुना अच्छा है और गृहस्थ उसे झुक-झुककर प्रणाम कर रहा है तो क्या साधु का यह फ़र्ज़ नहीं है कि वह पुनः गृहस्थ को प्रणाम करे। क्योंकि साधु तो गृहस्थ से दोगुना श्रेष्ठ है । मैं देखा करता हूँ कि एक परम्परा के संत को दूसरी परम्परा के संत से मिलने पर प्रणाम करने में तकलीफ़ होती है। किसी भी परम्परा के संत का आपके द्वार पर आना सौभाग्य की बात है इसलिए उनकी चरण-रज ज़रूर अपने माथे पर लेनी चाहिए। अगर एक संत दसरी परम्परा के संत को प्रणाम न कर पाए तो समझना अभी उसमें संतत्व आया नहीं है। अरे भाई, धोबी-धोबी भी आपस में मिलते हैं तो एक-दूसरे को प्रणाम करते हैं, राम-राम करते हैं, हम क्या धोबी से भी हल्के हो गए जो एक-दूसरे को प्रणाम न करें। यह व्यवस्था या परम्परा ग़लत है कि एक परम्परा के संत दूसरी परंपरा के संत को प्रणाम नहीं करेगा। अरे भाई, धर्म की तो शुरुआत ही विनय से होती है। अगर आपने प्रणाम किया तो समझ लेना अभी धर्म की एल.के.जी. भी पास न कर पाए। इसलिए सबको सम्मान दीजिये, सम्मान पाइये। कहते हैं : फ्रांस का राजा हेनरी अपने सैनिकों के साथ सड़क पर से गुज़र रहा था कि रास्ते में एक भिखारी ने उसे देखकर टोप उतारकर तीन बार झुककर अभिवादन किया। जब हेनरी ने उसे ऐसा करते देखा तो सम्राट ने भी अपना टोप उतारा उसे सलाम किया और आगे बढ़ गया। उनके प्रधानमंत्री ने कहा, 'राजन्, यह कैसा शिष्टाचार है. एक भिखारी ने आपको प्रणाम किया और आपने भी उसे प्रणाम किया यह तो राजा के स्टैण्डर्ड के विपरीत बात है।' हेनरी ने कहा, 'एक उम्रदराज भिखारी ने मुझे प्रणाम किया तो क्या मैं इतना अशिष्ट बनूँ कि उसके प्रणाम का ज़वाब भी न दूँ। मैं दुनिया में यह संदेश नहीं देना चाहता कि एक भिखारी इतना महान् है कि उसने राजा को प्रणाम किया और राजा इतना गर्वीला है कि उसने ज़वाब तक नहीं दिया।' प्रणाम का ज़वाब प्रणाम से दीजिए, सम्मान का ज़वाब सम्मान से दीजिए। अच्छा व्यवहार कीजिए, MEE 105 For Personal & Private Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अच्छी बात बोलिए। ऐसा हुआ एक सज्जन की आदत थी कि कोई उनके यहाँ आता तो कहते, खाना खा लीजिए। अब सामने वाला एकदम तो हाँ नहीं कहता, कभी-कभार कोई “हाँ' कह देता तो वे उसे खाना खिलाते और आदतन कहते, 'अच्छा हुआ आपने खा लिया, नहीं तो फिजूल में कुत्तों को डालना पड़ता।' खाने वाले का क्या हाल होता, आप समझ सकते हैं । यह वाकय एक दफ़ा उनके जंवाई के साथ ही हो गया। जंवाई ऐसा रूठा कि फिर लौटकर उनके यहाँ नहीं गया। इसीलिए दूसरे का दिल दुखाने वाली बातें न बोलिए। हिम्मत ना हारिये, प्रभु ना बिसारिये, हँसते-मुस्कुराते हुए ज़िंदगी गुज़ारिये। जिसको इस तरह जीना आ गया है वह देवत्व की ओर अपने क़दम बढ़ा रहा है। ऐसा लगे कि व्यक्ति बोल नहीं रहा बल्कि उसके मुँह से फूल झर रहे हैं। सूरज की किरण से जैसे गुलाब खिल रहे हैं । मीठा बोलने में आपका कुछ लगता नहीं है। अरे, वचने किं दरिद्रता ! बोलने में कैसी दरिद्रता। जब भी बोलें सुन्दर शब्दों का चयन करके सलीके से बोलें । बुद्धिमान सोचकर बोलते हैं और बुद्धू बोलने के बाद सोचते हैं । जो शब्द मुंह से निकल गए वे वापस लौटने वाले नहीं हैं। काश पहले ही सोचकर बोला होता। सोचिये वही जिसे बोला जा सके। और बोलिये वही जिसके नीचे अपने दस्तख़त किये जा सकें। मुँह से निकले शब्द वचन बन जाया करते हैं, और वचन का मतलब होता है : प्राण जाय पर वचन न जाहि। हमारी ज़बान कोई कैंची नहीं है। इसे सुई की तरह बनाएँ जो टूटे हुओं को आपस में जोड़ सके। __ शब्द बहुत क़ीमती होते हैं। इसका प्रयोग सावधानी से कीजिए। वाणी ही लोकप्रिय बनाती है और शिखर पर पहुँचाती है और यही वाणी बेइज़्ज़त भी करवाती है। शायद इसीलिए भगवान ने जुबान में हड्डी नहीं दी है और इसकी रक्षा के लिए बत्तीस पहरेदारों के रूप में दाँत दिए हैं। अगर जीभ का ढंग से उपयोग करते रहे तो दाँत अंगरक्षकों का काम करेंगे वरना जीभ ने ढंग से काम न किया तो सारे दाँत बाहर आ जाएँगे। ___याद रखिए, हर बात सोचने की तो होती है, पर हर बात बोलने की नहीं होती। बोलते समय शब्दों का चयन सावधानी से करें। बुद्धिमान सोचकर बोलते हैं जबकि बुढू बोलकर सोचते हैं । जो बोला जा चुका है, उसे वापस नहीं लौटाया जा सकता। एक व्यक्ति ने किसी की निंदा की। बाद में जब उसे फिलिंग हुई कि उसने ग़लत किया। वह व्यक्ति हमारे पास आया। उसने कहा, 'मैं अपने कहे हुए शब्द वापस कैसे लूँ?' मैंने देखा, मेरे पास काग़ज के कटे हुए कई टुकड़े पड़े थे। मैंने निवेदन किया, मैं आपको ज़वाब दूं, उससे पहले आप काग़ज के इन टुकड़ों को चौराहे पर रख आइए। वे गए टुकड़े चौराहे के बीच में रख आए। वापस लौटे, तो मैंने कहा, ग़लती हो गई। ज़रा वापस उन टुकड़ों को ले आइए। वे वापस गए, पर खाली हाथ लौटकर आए। मैंने पूछा, काग़ज के टुकड़े नहीं लाए? बोले, वे तो हवा के झोंको से सारे इधर-उधर उड़ गए। मेंने कहा, जीवन भर के लिए 106 For Personal & Private Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सीख ले जाइए कि जैसे काग़ज के बिखरे टुकड़ों को वापस समेटना कठिन है, ऐसे ही मुँह से निकले शब्दों को वापस लेना मुमकिन नहीं है । इसीलिए कहता हूँ जब भी बोलें- शब्दों का चयन सावधानी से करें । किसी का उपहास न उड़ाएँ। किसी की मज़ाक न करें, किसी की आलोचना, निंदा, टिप्पणी न करें । अगर ग़लती हो जाए तो 'सॉरी' कह दें। बाहर के ही नहीं घर के लोगों से भी सम्मान से बोलिये। कुछ बातें और : तर्क ज़रूर कीजिए, पर तकरार मत कीजिए । तर्क रोशनी है, पर तकरार आग है। सुअर से अगर कुश्ती लड़ेंगे तो कपड़े तो गंदे होंगे ही। मूर्खों से सरपच्ची करने की बज़ाय समझदार लोगों से ही वार्ता कीजिए। सुबह उठकर सबको प्रणाम कीजिए, सबसे मीठा बोलिए, घर आए अतिथि का सत्कार कीजिए। अपना व्यवहार सरल और मृदु बनाएँ, आपका व्यवहार आपके गुणों का आईना है । हल्का मत बोलिए। आपका व्यवहार ही ग्राहक के दिल को जीतता है, माता-पिता को अपना बनाता है, सास-ससुर के आशीर्वाद लेता है, समाज में इज़्ज़त और सम्मान दिलाता है। औरों की प्रशंसा करने की आदत डालें। तारीफ़ सुनकर तो चींटी भी पहाड़ लांघ जाया करती है । आलोचना सुनकर तो घरवाली भी मुँह सूजाकर बैठ जाएगी। आख़िरी बात और निवेदन कर दूँ कि अपनी नज़रों को हमेशा संयमित रखिए। ग़लत नज़र आपकी सोच, व्यवहार, वाणी सबको ग़लत बनाती जाएगी, वहीं अच्छी नज़र सोच, वाणी और व्यवहार को अच्छा रखेगी। रावण के बीस आँखें थी पर नज़र सिर्फ़ एक औरत पर थी, जबकि आपके दो आँखे हैं, पर नज़र हर औरत पर है तो सोचो कि असली रावण कौन ? स्मरण रखिए, आपका व्यवहार ही आपकी पहचान है। भगवान महावीर ने कहा था लिए चाहते हो वही तुम दूसरों के लिए चाहो । जो तुम अपने लिए नहीं चाहते वह कभी चाहो । यही धर्म का सार है और यही आज का संदेश भी । - - जो तुम अपने दूसरे के लिए मत For Personal & Private Use Only LIFE 107 Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सफलता के D स्टेप्स छक्का मार | बाउंड्री पार सफलता कोई मंज़िल नहीं वरन् एक ऐसा सफ़र है जिसे पूर्णता देने के लिए व्यक्ति को अपनी ओर से अपनी श्रेष्ठ बुद्धि और श्रम का सदा इस्तेमाल करते रहना चाहिए। हर व्यक्ति की सफलता की चाहन हुआ करती है, किन्तु सफलता केवल चाहने मात्र से ही उपलब्ध नहीं होती। सफलता उन लोगों को उपलब्ध हुआ करती है जो कि सफलता को पाने के लिए उसके बुनियादी उसूलों को अपनाया करते हैं। सफलता न तो कोई सांयोगिक घटना है और न ही महज किसी क़िस्मत का परिणाम । सफलता तो उस हर आदमी को मिल जाया करती है, जो सफलता को पाने के लिए अपने-आप को प्राणपण से समर्पित कर देता है। आखिर आज तक दुनिया में जितने भी महान् लोग हुए, उनके द्वारा अपनी ओर से एकनिष्ठ परिश्रम और लक्ष्योन्मुख मेहनत को गई होगी, तभी उन्हें सफलता मिली होगी। UFEN 108 For Personal & Private Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मनुष्य तो शक्ति का अतुल भंडार है। जिसने अपनी जितनी शक्ति लगाई, वह अपने जीवन में उतना ही सफल हुआ। जो लोग अपनी ओर से अपनी ऊर्जा और क्षमता का केवल 25% उपयोग करते हैं अक्सर वही असफल हुआ करते हैं। जो अपनी क्षमता का 50% उपयोग करते हैं, वे अवश्य सफल हो जाते हैं, किन्तु वे लोग महान्, समृद्ध, सफल और आसमानी ऊँचाइयों को छू लेते हैं जो 100 के 100% अपनी शक्ति और क्षमता को लगा दिया करते हैं। आधे मन से किया गया काम आधा परिणाम देता है। चौथाई मन से किया गया काम चौथाई परिणाम देता है और पूरे मन से किया गया काम हमेशा अपना पूरा परिणाम देता है । चाहे महावीर हो या मुहम्मद, कृष्ण हो या कबीर, राम हो या रहीम, नेल्सन हो या नोबेल, गाँधी हो या गोर्बाचोव, मीरा हो या महादेवी, अमिताभ हो या अम्बानी, पर एक बात तय है कि कोई भी व्यक्ति अगर अपने जीवन में ऊँचाइयों को उपलब्ध हुआ है तो मान कर चलें कि उस हर व्यक्ति ने अपने जीवन में ऊँचाइयों को पाने के लिए न केवल प्राणपण से मेहनत की होगी वरन् सफलता को पाने के कोई-न-कोई मापदण्ड, कोई-न-कोई आधार अवश्य चयन किए होंगे। सफलता के रास्ते पर चलने का पहला बुनियादी उसूल है : जीवन में कड़ी मेहनत कीजिए। मेहनत को अपनी इज़्ज़त बनाइए, अपनी प्रार्थना बनाइए । मेहनत में ही अपनी सफलता और समृद्धि के रहस्य ढूँढ़िए । हक़ीकत तो यह है कि दुनिया में किसी भी इंसान को ईश्वर ने आलस्य का जीवन जीनेके लिए नहीं बनाया है । ईश्वर ने हर व्यक्ति को जीवन में कुछ बनने के लिए, कुछ कर गुज़रने के लिए बनाया है । यदि आदमी आलस्य का जीवन जिएगा तो मानकर चलें कि वह आदमी सेकेंड क्लास की ज़िंदगी जीने के लिए मज़बूर ना हुआ है। नम्बर 1 की ज़िंदगी, सबके बीच सम्मान, समृद्धि की जिंदगी आदमी तभी जी सकता है जब कोई व्यक्ति अपनी ओर से सफलता को पाने की पहली क़ीमत चुकाए और वह क़ीमत है कड़ी मेहनत । अगर आप कड़ी मेहनत के लिए तैयार नहीं हैं तो फिर ग़रीबी का जीवन जीने के लिए तैयार रहिए। यदि आप कड़ी मेहनत करने को तैयार हैं तो दुनिया में कोई विद्यार्थी ऐसा नहीं है जो सप्लीमेन्ट्री से पास हो; कोई व्यापारी ऐसा नहीं है कि दुकान खोले और सामने कोई ग्राहक नज़र न आए; कोई कर्मचारी अपने केरियर-निर्माण के लिए पहल करे और अधिकारी न बन पाए, ऐसा कभी संभव नहीं है । कीड़ी को कण के लिए मेहनत करनी पड़ती है और हाथी को मण के लिए। ज़रा किसी रास्ते पर चलती चींटी को देखिए । अपने अगल-बगल से गुज़र रही चींटी को देखिए और उसकी कड़ी मेहनत को समझिए तो आपको पता चलेगा कि कीड़ी का पेट केवल एक कण से भरता है, पर वह एक कण पाने के लिए भी कितनी मेहनत करती है । आलसी लोग केवल मोहल्लों और चौपालों में बैठकर ताश के पत्ते खेलने के अलावा और कुछ नहीं कर सकते । वे ज़िंदगी में ग़रीब हैं, ग़रीब थे और ग़रीब बने रहेंगे। वे मन से ग़रीब हैं इसलिए वे केवल ताश के पत्ते खेलकर अपने वक़्त को गुज़ार रहे हैं। वे नहीं जानते कि वे वक़्त को नहीं गुजार रहे हैं, वरन् वक़्त For Personal & Private Use Only LIFE 109 www.jalnelibrary.org Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ख़ुद उन्हें गुज़ार रहा है। जब तक कोई व्यक्ति आलस्य और प्रमाद का जीवन जीता रहेगा याद रखिए वह अपने जीवन में कुछ भी बन सके इसकी कोई संभावना नहीं है। अगर आप एक विद्यार्थी हैं तो प्रमाद और आलस्य का त्याग कीजिए वरना नौवीं कक्षा मैंने कभी सप्लीमेन्ट्री से पास की थी, वैसे ही धक्के मार-मार कर आप भी पास होंगे। पर जिस दिन आप अपने जीवन में कड़ी मेहनत को जोड़ लेंगे, मैं दावे के साथ कहता हूँ कि आप भी दूसरे चन्द्रप्रभ बन जाएँगे। मेरिट लिस्ट में आप नम्बर ला पाएँ कि न ला पाएँ लेकिन फर्स्ट क्लास पास होने से दुनिया की कोई ताक़त आपको रोक नहीं सकेगी।अगर मेहनत से जी चुराओगे तो न घर के रहोगे, न घाट के। व्यक्ति अगर कुछ करना चाहता है तो वह हर दिन चौबीस घंटों में से बारह घंटे अवश्य मेहनत करे। फिर चाहे बारह घंटे दिन के हों या रात के। मैं स्वयं मेहनत करता हूँ। मैं ऐसी रोटी खाना पसंद नहीं करता जो बगैर मेहनत के कमाई गई हो और ऐसे लोगों की भी रोटी खाना पसंद नहीं करता जो बगैर मेहनत की रोटी खाता हो। मेहनत की रोटी खाई जाए और मेहनत की रोटी ही खिलाई जाए। हराम की रोटी न खाओ, न खिलाओ। हर रोटी पर पसीने की बूंदों के मोती अवश्य सजे हों। आख़िर जो मेहनत का है वही ईमान का कहलाता है और जो ईमान का होता है, वही बरक़त करता है। बेईमानी से कमाए गए धन के जाने के रास्ते फिर वैसे ही होते हैं, जिस तरीके से हमने उसे कमाया है। जब मैं आपको मेहनती होने की प्रेरणा दे रहा हूँ तो मैं यह भी कह देना चाहूँगा कि किसी भी काम को छोटा न समझें। हर काम को ऐसे करें जैसे कि प्रभु की प्रार्थना और पूजा किया करते हैं। काम को केवल काम न बनाएँ, काम को भी राम का नाम बना डालें। काम को भी इस तरह करें कि कर्म स्वयं आपकी पूजा बन जाए। जब कोई मुझसे कहता है कि आशीर्वाद दीजिए तो मैं उस हर व्यक्ति को एक संकेत अवश्य देता हूँ कि तुम काम ही ऐसा करो कि तुम्हारा काम ख़ुद आशीर्वाद बन जाए। जैसे कोई अपनी माँ से आशीर्वाद माँगे तो ध्यान रखे आशीर्वाद माँगने से नहीं मिला करता। आप अपनी माँ के प्रति अपना व्यवहार ही ऐसा करें कि वो ख़ुद अपने दिल से दुआएँ दे। __ कोई भी काम छोटा न समझा जाए। जो भी काम करें हर काम को अपनी ओर से पूर्णता देने का प्रयास करें। अधूरा काम करने की बजाय काम न करना कहीं ज़्यादा अच्छा है। अगर बुहारी भी लगाएँ तो ऐसे कि जैसे मंदिर में बैठकर माला जपते हैं । अगर खाना भी बनाएँ तो इतनी तन्मयता से कि जैसे कोई सेक्सपीयर या सुमित्रानंदन पंत किसी सुन्दर कविता का सृजन कर रहे हों। अगर पढ़ाई भी करें तो इस तन्मयता से कि मानो नदीम-श्रवण किसी संगीत का एलबम बना रहे हों। पौंछा लगाना या टीचिंग करके हाथ खर्च की व्यवस्था करना छोटा काम नहीं है । जो आदमी काम को छोटा या बड़ा समझता है, वही इस अपेक्षा में रहता है कि कोई दूसरा उसकी मदद करे। मैं कहना चाहूँगा कि किसी के सामने हाथ फैलाकर माँगने से तो छोटा काम ही सही, पर उसे करना कहीं ज़्यादा अच्छा है। दान और दया की रोटी खाने की बजाय प्रेम और मेहनत का पानी For Personal & Private Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पीना कहीं अधिक सम्मानजनक है। ये हाथ किसी के सामने फैलाकर माँगने को तत्पर हों, उससे तो अच्छा है कि किसी के घर में जाकर झाड़-पौंछा लगाकर, स्वाभिमान का जीवन जीने को तैयार हों। __दया-दान की रोटी भिखारी या गौशाला के लिए रहने दीजिए, आप तो माँगने की बजाय ज्यूस निकालने का ठेला लगा लीजिए। एक काम कीजिए आप अपने घर के बाहर ही दो टेबल लगा लें, एक टेबल पर ज्यूस की मशीन लगा लें और दूसरी टेबल पर मौसमी की टोकरी रख लें। पहले दिन केवल दो किलो मौसमी खरीदकर लाएँ। एक महिने बाद आप पाएँगे कि आपकी दुकान में पचास ग्राहक आने लग गए हैं। केवल हज़ार-दो हज़ार रुपये में आपकी दुकान खुल जाएगी। अगर आपके पास वो दो हज़ार लगाने की ताक़त हो तो ठीक, नहीं तो मुझे उस सेवा का मौका दें, लेकिन माँगकर खाने की बजाय आप कमाकर खाएँ। कोई भी काम छोटा नहीं होता। याद रखो समाज में केवल पैसा पूछा जाता है। समाज में कोई भी यह नहीं पूछता कि पैसा तूने कैसे कमाया है। समाज में हर आदमी पेसे वाले को इज़्ज़त देता है। आप जीवन में धन कमाएँ। कमाने के लिए मेहनत कीजिए। श्रममेव जयते । आख़िर जीत श्रम की ही होगी। हर आदमी को चाहिए कि वह पैसा कमाए, मेहनत का पैसा कमाए और अगर आप ज्यूस की दुकान खोलकर बैठेंगे, तो हो सकता है कि आपके परिवार के दस लोग कह दें कि यह तो ग़रीब है, पापड़ बेलकर रोजी-रोटी कमाता है, पर ये व्यक्ति जो कह रहे हैं कि पापड़ बेलकर खाता है, पाँच साल बाद हालत यह होगी कि वही उससे कहेगा कि हब, पाँच हज़ार रुपया मुझे उधार दीजिए। यदि कोई व्यक्ति कड़ी मेहनत करता रहेगा तो यह मानकर चलें कि वह व्यक्ति अवश्यमेव सफल होगा और घर में निकम्मे बैठे को तो मक्खियाँ उड़ाना भी भारी लगेगा। अगर कोई शेर यह सोचकर बैठ जाए कि मैं तो अपनी गुफा में बैठा हूँ और मेरा भाग्य स्वत: मुझे मेरा आहार दे देगा तो शेर को भूखे मरना होगा। आख़िर भाग्य का परिणाम पाने के लिए भी आदमी को मेहनत करनी पड़ती है। बगैर मेहनत किए, बगैर पुरुषार्थ का उपयोग किए किसी को भी उसके प्रारब्ध का परिणाम नहीं मिलेगा। 'आप आलस्य का नहीं, मेहनत का जीवन जीएँ' – मेरी इस पंक्ति के आठ शब्दों में जीवन के सभी आठ मंगल समाए हैं । कड़ी मेहनत ही सफलता के रास्ते पर बढ़ने का पहला चरण है। सफलता के रास्ते पर बढ़ने का दूसरा स्टेप है : जो कुछ भी करें, उसे पूरे मन से, पूरी लगन से करें। लगन तो किसी भी कार्य-सिद्धि का मेरुदंड है। व्यक्ति अगर लगन के साथ काम करेगा तो काम निश्चय ही अपना परिणाम देगा। मन के साथ किया गया काम व्यक्ति के लिए सफलता का द्वार बन जाता है और बेमन से किया गया काम आदमी के पाँव की बेड़ी बन जाया करता है। जो कुछ भी करें पूरी लगन से करें, मगन से करें। आपने गीत सुना होगा कि 'मीरा हो गई मगन।' कैसे हुई थी मगन? जब लग चुकी थी लगन । जब आदमी को लगन लग जाती है, तो वह अपने-आप में मगन हो जाता है और सफलता को पाने के लिए जिस UEFA 111 For Personal & Private Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शख्सियत की ज़रूरत होती है वो है कार्य के प्रति लगन। ___ईश्वर ने हमें दो हाथ दिए हैं। माना पेट का सवाल है । पेट भरने के लिए सौ-सौ तरह के पाप-पुण्य करने पड़ते हैं ।मगर कुदरत की व्यवस्था देखिए कि कुदरत पेट एक देती है मगर उसे भरने के लिए हाथदो-दो देती है। कंधे-कंधे मिले हुए हैं, क़दम-क़दम के साथ है, पेट करोड़ों भरने हैं, पर उनसे दुगुने हाथ हैं। यानी पेट एक, हाथ दो। अब आप सोच सकते हैं कि हाथ किसके लिए हैं ? पहले 'क' आता है, फिर 'ख'। पहले करो फिर खाओ। मेहनत से जी मत चुराओ। लगन से अगर मेहनत करोगे तो मेहनत अपना परिणाम देगी। गुरु के पास शिष्य सौ-सौ आते हैं, मगर अर्जुन उनमें कोई एक-आध बनता है। व्यापार सौ लोग शुरू करते हैं, उनमें से सफल कोई-कोई ही होते हैं ? इसका कारण यह न समझें कि जो व्यापार में सफल हुआ, वह कोई बड़ी क़िस्मत वाला है। हक़ीकत तो यह है कि अर्जुन और अर्जुन के साथ आने वाले सौ-सौ राजकुमार भी क़िस्मत वाले और पुण्यशाली ही रहे होंगे पर फिर भी उनमें यदि कोई व्यक्ति अर्जुन बना तो सोचो कि सफलता का राज़ क्या है ? सफलता का एक मात्र राज़ है : व्यक्ति की लगन । व्यक्ति के मन में पलने वाली यह लगन कि मैं अपनी जिंदगी में कुछ बनकर रहूँगा – यह संकल्प और लगन ही उसे सफलता के शिखर की ओर ले जाने वाला रास्ता देगी। जब तक मन में यह लगन पैदा न होगी कि मैं कुछ बनकर रहूँगा तब तक मानकर चलें कि वह बाप-कमाई पर जीता रहेगा। वह अपनी कमाई पर, अपने पाँव पर खड़ा न हो पाएगा। बाप की कमाई पर ऐश करना है तो अलग बात है, साल दो साल कर लोगे। अगर बेटा कपूत निकल गया तो बाप की कमाई कितनी भी क्यों न हो, झोलियाँ और तिजोरियाँ खाली करते देर नहीं लगाएगा। अगर लगन पक्की है तो ऐसा नहीं है कि आदमी को बनने के लिए किसी द्रोणाचार्य की ज़रूरत पड़ती है। लगन लग जाए और जीवन में कुछ कर गुज़रने का दृढ़ संकल्प जग जाए, तो आदमी द्रोणाचार्य तो क्या, द्रोणाचार्य की मिट्टी की मूर्ति से भी अपने जीवन में विकास के रास्ते खोज लेता है। मिट्टी के द्रोणाचार्य भी उसके लिए प्रेरक बन जाते हैं । अर्जुन तो द्रोण से अर्जुन बना होगा, पर एकलव्य तो द्रोण की मिट्टी की मूर्ति से भी सीख गया। विद्यार्थियों के लिए यह अत्यन्त प्रेरक बात है। लोग एकलव्य की, 'अर्जुन की आँख' वाली घटना को जीवन में हर क़दम पर याद रखें। मेरे देखे. बस व्यक्ति के मन में बनने की दिली चाहत होनी चाहिए, बनने की लगन होनी चाहिए, बनने का जज़्बा होना चाहिए। याद रखिए, माँ के पेट से केवल शरीर का निर्माण होता है, पर बाद में क्या बनना है यह तो आपकी कड़ी मेहनत और आपकी लगन पर ही निर्भर JUEE 112 For Personal & Private Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करता है । मिट्टी बनाना कुदरत का काम है, पर उस मिट्टी से दीये और मंगल कलश बनाना तो इंसान पर निर्भर है। आप इस तरह मेहनत को अपनाएँ कि मानो इसी पर ही जीवन आधारित हो। कहते हैं जब द्रोणाचार्य अर्जुन और अन्य शिष्यों को लेकर साथ चल रहे होते हैं तो द्रोणाचार्य अर्जुन से कहते हैं कि अर्जुन, इस पूरी दुनिया में तुम्हारी तुलना में और कोई धनुर्धारी नहीं है। गुरु द्रोण अपने शिष्य की तारीफ़ के पुल बाँध रहे होते हैं कि तभी देखते हैं कि एक कुत्ता गुरु द्रोणाचार्य को देखकर जोर-जोर से भौंकने लगा। द्रोणाचार्य के इस अपमान को देखकर अर्जुन ने अपने गांडीव को अपने हाथ में लिया, मगर वह यह देखकर चौंक पड़ा कि अभी तक उसने अपनी कमान पर तीर चढ़ाया ही नहीं था कि तभी एक अनजान दिशा से तीर आया और आकर कुत्ते के मुँह में चला गया। देखकर वो चौंक पड़ा कि कौन है वो व्यक्ति जो इतना जबरदस्त तीर संधान कर सके। उसे यह सोचने के लिए वक़्त ही नहीं मिल पाया कि तभी तीर पर तीर चले कि कुत्ता अपना मुँह बन्द न कर पाया। अर्जुन चौंक पड़ा। गुरु द्रोण भी चौंक पड़े कि ऐसा धनुर्धारी तो मेरा यह शिष्य अर्जुन भी नहीं है। वह कौन है जिसने इस तरह लक्ष्य-संधान किया। कहते हैं तब अर्जुन, द्रोण उसी दिशा की तरफ़ बढ़ते हैं। वहाँ कोई राजकुमार नहीं होता है। वहाँ होता है एक आदिवासी युवक एकलव्य । इतिहास का एक अमर नाम, अमर हस्ताक्षर। जब द्रोण ने उससे पूछा कि किस गुरु से तुमने यह विद्या सीखी है तो उसने कहा कि मेरा गुरु मेरे सामने बैठा है । द्रोण और अर्जुन सामने जाते हैं, देखते हैं कि मिट्टी की चौपाल पर, मिट्टी की एक चौकी पर कोई व्यक्ति बैठा है जिसके ऊपर कपड़ा ढका हुआ है। द्रोण पास जाते हैं और जैसे ही कपड़े को उघाड़ते हैं तो चौंक पड़ते हैं क्योंकि अंदर कोई व्यक्ति नहीं, अंदर गुरु द्रोणाचार्य की ही प्रतिमा स्थापित होती है और तब संसार के सामने यह सत्य स्थापित होता है कि अगर किसी भी व्यक्ति में कुछ बनने की लगन हो तो व्यक्ति के लिए मिट्टी के द्रोण भी वही काम करते हैं जो कोई जीवित गुरु किया करता है। गुरु-कृपा से भी बड़ी चीज़ है लगन। व्यक्ति के भीतर कुछ बनने का जज़्बा हो, लगन हो तो कौन व्यक्ति है जो अपने-आप को ग़रीब कहता है, अनपढ़, अज्ञानी, मूर्ख या गँवार कहता है । हम मूर्ख या गँवार रहे तो इसलिए क्योंकि हमने अपने-आपको कभी गंभीरता से नहीं लिया। ज्ञान न चढ़ पाया तो इसका एकमात्र कारण है आप अपने आपके प्रति गंभीर हुए ही नहीं। गंभीर होकर देखो, लगन लगाकर देखो, फिर देखो कि किस तरह से ज्ञान चढ़ता है कि धन और धर्म का अर्जन होता है, साधना सफल होती है। सफलता के रास्ते पर चलने का पहला आधार है कड़ी मेहनत । दूसरा आधार है जो कुछ भी करें पूरे मन से, पूरी तबीयत से कीजिए। दुष्यन्त ने ठीक ही कहा था कि कौन कहता है आसमान में छेद नहीं हो सकता, एक पत्थर तुम तबियत से उछाल कर तो देखो। तुम पाओगे आसमान में भी छेद हो गया। यानी TE 113 For Personal & Private Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ असंभव भी संभव हो गया। तुम तबियत से पत्थर उछालो। तुम पाओगे जो लोग दुर्भाग्य का सामना कर रहे हैं वे भी उस दुर्भाग्य को छलनी कर देते हैं, और इस तरह सौभाग्य का रास्ता खोल लिया करते हैं। सफलता के रास्ते का तीसरा स्टेप है : हमें अपने जीवन में क्या बनना है, इसका लक्ष्य आज, अभी, इसी समय निर्धारित कर लें । बगैर लक्ष्य के छोड़ा गया तीर व्यर्थ ही चला जाया करता है और बगैर लक्ष्य के चलाया गया जहाज़ समुद्र में भटक जाया करता है । बगैर लक्ष्य से की जाने वाली लड़ाई सेना को मार गिराया करती है। ज़िंदगी में अगर किसी व्यक्ति को कुछ बनना है तो उसके सामने उसका लक्ष्य होना चाहिए। न केवल लक्ष्य होना चाहिए वरन् लक्ष्य भी स्पष्ट होना चाहिए। न केवल लक्ष्य स्पष्ट होना चाहिए वरन् लक्ष्य के प्रति प्रतिबद्धता भी होनी चाहिए। लक्ष्य के प्रति यदि हम प्रयत्न नहीं करेंगे तो मानकर चलना कि लोग लक्ष्य तो बनाते रहते हैं, पर लक्ष्य को उपलब्ध नहीं कर पाते। बेहतर लक्ष्य, कड़ी मेहनत और मनोयोग का योग हो, लगन के साथ लक्ष्य की ओर बढ़ा जाए, तो बाटा और टाटा की ऊँचाई हासिल की जा सकती है। लोहे का काम करने वाला लुहार कहलाता है और जूते का काम करने वाला मोची कहलाता है। पर सफलताएँ कैसे हासिल की जाती हैं कोई इससे समझे कि लोहे का काम करके भी कोई टाटा बन जाता है और जूते का काम करके भी कोई बाटा बन जाता है। किसी को लुहारी करने का कहो तो मुँह सूज जाता है और किसी को मोचीगिरी करने का कहो, तो हाथ-पाँव ठंडे हो जाते हैं, पर याद रखो हर किसी टाटा और बाटा की शुरुआत किसी छोटे स्तर पर ही हुई होगी। लक्ष्य को साथ लेकर अगर चार क़दम भी चलो तो भी सार्थक है। बगैर लक्ष्य के चले गए हजार क़दम भी परिणाम-शून्य हैं। हर आदमी जब नया वर्ष लगता है तो कहता है कि मैं इस साल में ये-ये काम करूँगा, मगर आदमी वैसा नहीं कर पाता। अगर आपने इस वर्ष की शरुआत में दस संकल्प लिए थे. उनमें से यदि आप आठ भी पूरे कर चुके तो मानकर चलना कि आपने बहुत बड़ी सफलता अर्जित की है। अगर आपने दस में से पाँच काम भी कर डाले तो संतोष करना कि आप कुछ कर गुज़रने में सफल हुए। जो दस में से तीन काम भी मुश्किल से कर पाया है, तो मानकर चलें कि आप असफल हुए और जो एक काम भी पूरा नहीं कर पाया तो समझ लें कि वह केवल शेखचिल्ली है जो रात-दिन केवल अंडों को बनाता रहता है, महलों को गढ़ता रहता है पर महल तो तब बनेंगे न् जब तुम्हारे अंडे सुरक्षित रहेंगे। तुम तो केवल ख्वाबों के अंडे बनाते रहोगे और उबालते रहोगे, बेचते रहोगे, फोड़ते रहोगे तो महल कहाँ से बनेंगे। शेखचिल्ली की तरह विचार करते रहे तो सावधान रहना। ऐसे ख्याली पुलाव से पेट नहीं भरने वाला। व्यक्ति वर्ष का लक्ष्य निर्धारित करे। उसे पूरा करने के लिए भी दत्तचित्त हो । यदि आप दस संकल्प ले चुके हैं आप उन में से आठ पूरे कर चुके हैं तो आप कमल के फूल हैं । अगर आप दस में से पाँच संकल्प पूरे कर चुके हैं तो आप गुलाब के फूल हैं । यदि आप तीन संकल्प पूरे कर चुके हैं, तो आप गुड़हल के फूल हैं और अगर आप एक भी संकल्प पूरा नहीं कर LIFE 114 For Personal & Private Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाए तो आप ख़्यालों के अंडे भर हैं । जीवन में लक्ष्य निर्धारित कीजिए। हर वर्ष का, हर महीने का लक्ष्य निर्धारित कीजिए। लक्ष्य निर्धारित करके लगन के साथ कड़ी मेहनत की जाए, तो ज़िंदगी के डूबते जहाज़ को भी तारा / उबारा जा सकता है। आपने देखा होगा मैग्नीफाइंग ग्लास को । उस पर सूरज की रोशनी दी जाए और उसे कागज़ पर एक जगह केन्द्रित कर दिया जाए तो कागज़ में आग लग जाती है। सच्चाई तो यह है कि केवल कागज़ ही नहीं, गत्ते का पुट्ठा तक जलने लगता है। बस ज़रूरत होती है लगातार लगातार केन्द्रित करने की । स्वयं की एकाग्रता को केन्द्रित करने के लिए आजकल विशेष प्रकार की तस्वीरें आने लगी हैं। ऊपर से देखो तो घिच - पिच नज़र आता है, ख़ुद की आँखों को लगातार उसमें केन्द्रित करो या लगातार उसमें अपनी परछाई देखो तो अचानक उसमें से वह नज़र आने लगता है जो कि हक़ीकत में उसमें व्याप्त होता है । ॐ के, महावीर के, सांई के कई तरह के चित्रों की जादुई तस्वीरें आने लगी हैं। ये तस्वीरें हमें प्रेरणा देती हैं कि लक्ष्य के प्रति एकटक / एकनिष्ठ बनें । याद कीजिए उस कहानी को जिसमें दो शख्स एक साथ दौड़ना शुरू करते हैं। खरगोश और कछुआ । दोनों साथ-साथ दौड़ते हैं तो तय है जीतेगा खरगोश, मगर विश्वास रखिए जीत उसकी है जो लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निरन्तर प्रयत्नशील है । भले ही आप किसी खरगोश की तरह तेज-तर्रार हैं, पर यदि आपने खरगोश की तरह आलस्य का जीवन शुरू कर डाला, तो मानकर चलें कि आप मात खा सकते हैं। वहीं हम यदि कछुए की तरह धीमी रफ़्तार के लोग हैं, पर यदि एकनिष्ठ होकर लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध हो चुके हैं, तो तय है जीत आपकी होगी। कछुए और खरगोश की कहानी हर किसी निराश हताश व्यक्ति के लिए प्रकाश की किरण के समान है । इस कहानी को ज़िंदगी भर याद रखा जाए कि जीवन में कौन सफल होगा, कौन जीतेगा? वही जिसके भीतर जीतने का जज्बा है, जिसके मन में जीतने का विश्वास है 1 सफलता के रास्ते का चौथा स्टेप है : कार्य-योजना । जिस लक्ष्य को हमें प्राप्त करना है उसकी कार्ययोजना हर व्यक्ति के सामने होनी चाहिए। सफलता के रास्ते पर यात्रा करने के लिए नक्शा पहले बना लेना चाहिए । बग़ैर नक्शे के उठाए गए क़दम आपको भटका सकते हैं। एक लेखक अगर लेख लिखता है तो पहले अपने दिमाग़ में उसका पूरा चिंतन कर लेता है, एक वक्ता अगर अपना वक्तव्य दे रहा है तो देने से पहले आज उसे क्या बोलना है उसकी मानसिकता बना लेता है, एक सेनापति अगर युद्ध लड़ता है तो युद्ध की व्यूह रचना तैयार कर लेता है। हर आदमी जो कि प्लानिंग के साथ अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ता है, सफलता उसके क़दमों में अवश्य आती है। जैसे मान लीजिए - आपमें से वो सामने जो लड़का बैठा है जरा बताए कि आप कौन-सी क्लास में पढ़ रहे हैं ? For Personal & Private Use Only LIFE 115 Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लड़के का जवाब, 'मैंने पढ़ाई छोड़ दी है।' 'कितनी उम्र है आपकी?' 'बीस साल की।' 'कहाँ तक पढ़ाई की?' 'बारहवीं तक।' बारहवीं तक पढ़ाई की और छोड़ दी? अभी तो पैदा हुए हो और अभी छोड़ दी! पढ़ाई की जब उम्र होती है तब तो व्यक्ति पढ़ाई छोड़ देता है और जब पढ़ाई की उम्र बीत जाती है तो आदमी जिंदगी भर खेद करता रहता है कि काश ! मैं थोड़ा और पढ़ जाता तो कितना अच्छा होता। मेरे भाई, पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती। अगर आपको लगता है कि आप बीस साल के हो गए हैं, पर अब पढ़ना चाहते हैं तो आप इस साल से फिर अपनी पढ़ाई शुरू कर सकते हैं। आज कन्याओं का, महिलाओं का जितना विकास हुआ है, उसके पीछे एक ही हाथ है और वह है उच्च शिक्षा। अगर शिक्षा के मामले में पच्चीस वर्ष की उम्र पढ़ाई-लिखाई की होती है, और अगर उस उम्र को हमने कमाने के लिए लगा दिया तो याद रखो पच्चीस साल की उम्र के बाद अर्थ का अर्जन तो खूब करना है, पर ज्ञान का अर्जन पच्चीस साल के बाद नहीं कर पाओगे। इसलिए जो लोग पच्चीस साल की उम्र से छोटे हैं वे अपने आपको वापस ज्ञान के रास्ते से जोड़ें। ध्यान रखिए केवल भाग्य भरोसे धोनी या सचिन तेन्दुलकर नहीं बना जा सकता। भाग्य साथ दे तो सफलता की रौनक चार गुनी बढ़ जाती है, पर हर सफलता की बुनियाद के पीछे कड़ी मेहनत, ऊँचा लक्ष्य और तकनीक की बहुत बड़ी भूमिका है। सफलता के रास्ते पर बढ़ने के लिए पाँचवाँ चरण है : जीवन में आने वाली मुश्किलों का सामना करने को तैयार रहें। मानकर चलें कि जीवन में मुश्किलें और मुसीबतें ज़रूर आएँगी। हर व्यक्ति विपरीत परिस्थितियों का कैसे किया जाए इसकी तैयारी आज ही कर ले। दिन के उजालों में चलते वक़्त रात के अंधेरों का सामना कैसे किया जाए, उसका प्रबंध दिन के उजालों में ही किया जाना चाहिए। जीवन में हालात तो मौसम की तरह बदलते रहते हैं। जीवन के इस मर्म को, रहस्य को याद रखिए। विपरीत हालातों से सामना करने को यदि आप तैयार नहीं रहेंगे तो हालातों से हार खा बैठेंगे और घुटने टेकने पड़ेंगे। हमें सूरज की तरह होना चाहिए कि चाहे कोहरा छाए या बादल मंडराए हम हर हालात का सामना करने को तैयार रहें। जिन परिस्थितियों का हम सामना कर सकते हों, हमें उसके लिए तैयार रहना चाहिए। पर यदि कोई परिस्थिति प्रकृति या विधाता के घर से बन गई है, तो उससे समझौता कर लीजिए। बाधाएँ आखिर जीवन की For Personal & Private Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोई परमानेंट क़िस्मत नहीं है । जो आता है सो जाता है, जो उगता है सो अस्त होता है तब फिर बाधाएँ और मुश्किलें कौन-सी हर वक़्त रहेंगी ? वे भी बदलेंगी। मुश्किलें तो कसौटी होती हैं । स्वयं के धैर्य की कसौटी, दोस्तों की कसौटी। इस बहाने ही सही, पता चल जाएगा कि कौन कितना हमारा है। हरे में तो हर कोई साथ होता है, पर सूखे में सब किनारा कर लेते हैं । ऐसे चापलूसों से मुक्त हो जाना ही बेहतर है । - सफलता के रास्ते का छठा चरण है – अपने दिलोदिमाग़ पर चढ़े बोझ को हटा लें। बोझिल दिमाग़ निराशा का कारण बनता है, वहीं उतत्साहपूर्ण दिमाग़ सफलता के सेतु का काम करता है। हम अपने दिमाग़ को साफ करें। दिमाग़ के आले में जमे हुए जाले अच्छे नहीं होते। जैसे मकान में जमे हुए जाले ठीक नहीं होते, वैसे ही दिमाग़ में जमे हुए जाले भी हमें कैद कर लेते हैं । अपने में देख लीजिए कि कहीं किसी के प्रति वैर-विरोध के, क्रोध- आवेश के आशंका- आग्रह के जाले तो हमारे मन में जमे हुए नहीं हैं ? हो सकता है कि किसी ने आपके प्रति कोई कटु शब्द कहा हो। अपमान कर डाला हो और आप उसके प्रति प्रति शोक की भावना संजोए हुए हो। घाव तो हर किसी के मन को लग ही जाते हैं, बेवफाई के घाव, अपमान के घाव, निन्दा के घाव ! घावों को दूर करें। वह कैसी सफलता जो आदमी को ऊँचे पद पर तो पहुँचा दे, धन-समृद्धि दिला दे, पर मन को खिन्नता, उद्विग्ग्रता दूर न कर पाए। सफलता का मतलब है चित्त की प्रसन्नता, मन की शांति, हृदय की सौम्यता, अपमानित हो जाने पर भी शांति और उदारता । जीवन को सफल-सार्थक बनाने के लिए यह निहायत ज़रूरी है कि व्यक्ति अपने दिमाग़ को स्वर्ग बनाए। दिमाग़ में कचरा काम का नहीं है। अपमान के जालों को अपने दिमाग़ के आले में न रखें। लोग घर का अटाला मकान की छत पर रखते हैं और जीवन का अटाला सर की छत पर । आप अपनी टोपी पर तो ध्यान दे रहे हैं, कृपया उस पर भी ध्यान दीजिए जो टोपी के नीचे है। याद रखो जिस व्यक्ति के उदार विचार होते हैं, उनके उसी आत्म-त्याग से ही महानता के मील के पत्थर स्थापित होते हैं। वे स्वयं तो सफल होते ही हैं, औरों के लिए भी सफलता का आदर्श बना जाते हैं । व्यक्ति की सफलता उस चिराग़ की तरह हो जो स्वयं भी रोशन हो और दूसरों को भी अपनी रोशनी का सुख - सुकून - आनंद प्रदान करे। For Personal & Private Use Only LIFE 117. Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 90% POSITIVENESS समस्याओं का तोड़ 10% सकारात्मकता 100% सकारात्मकता 200% सफलता किसी भी व्यक्ति के लिए स्वस्थ, सफल और मधुर जीवन जीने का सबसे सरल और सहज मंत्र सकारात्मक सोच है। सकारात्मक सोच ही व्यक्तित्व के निर्माण का आधार एवं समाज तथा परिवार के पारस्परिक प्रेम और सद्भाव का कारण होता है। सास-बहू के टूटे हुए रिश्ते जोड़ने के लिए, बिछड़े हुए भाइयों को आपस में मिलाने के लिए, बिखरे हुए समाजों को एकसूत्र में पिरोने के लिए और दो देशों की दूरियाँ मिटाकर उन्हें करीब लाने के लिए सकारात्मक सोच ही सर्वाधिक प्रभावी रास्ता है। जब भी सकारात्मक सोच को अपनाया जाता है, तो समस्या के समाधान भी उपलब्ध हो जाते हैं। दुनिया में जब-जब भी छोटी-छोटी बातों पर नकारात्मक रुख अपनाया गया, परिवार टूटा, समाज टूटा, धर्म और परम्पराएँ टूटी और अखिल मानवता का विभाजन हुआ। जब व्यक्ति सकारात्मक सोच को अपनाकर TEN 118 For Personal & Private Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपने परिवार और समाज की समस्याओं का समाधान नहीं निकालता तब लगता है कि व्यक्ति खुद ही समस्या बन गया है। जो समाधान के लिए प्रयत्न नहीं करता, वह अपने आप में ही एक समस्या है। इन्सान की वह बुद्धि किस काम की अगर वह समस्या का समाधान न खोज सके? अगर दो इन्सानों ने सोच ही लिया है कि वे विपरीत दिशाओं में ही जाएँगे तो भगवान भी उन्हें एक नहीं कर पाते । वहीं अगर वे निर्णय कर लें कि येन-केन प्रकारेण हमें संधि स्थापित करनी ही है तो सकारात्मक सोच और बेहतर नज़रिया रखने पर सुलभ रास्ता निकल आता है। मेरी शांति, सफलता और आनंद का सबसे बड़ा राज़ यही है कि मैं अपने आपको न केवल अपनी नकारात्मकताओं से मुक्त रखता हूँ वरन् दूसरों की नकारात्मकताओं से भी अप्रभावित रहता हूँ। न किसी से ईर्ष्या रखो और न किसी की निंदा करो। कोई आगे बढ़ रहा हो तो उसे प्रोत्साहन भी दो और उससे प्रेरणा भी लो। दूसरों की अच्छाइयों का सदा सम्मान करो और बराइयों को नज़र अंदाज़ करो। जीवन का यह नज़रिया ही आपको नकारात्मकता से बचाएगा और सदा सकारात्मकता की तरफ़ ले जाता चला जाएगा। शांति, संतोष और प्रगति के लिए एकमात्र मार्ग सकारात्मक और संतुलित सोच ही है। सकारात्मक सोच ही हमें आने वाली विपरीत परिस्थितियों का सामना करने की शक्ति देता है। जब कभी भी टूटे हुए समाज को जोड़ना हो, टूटे हुए धर्म को आपस में मिलाना हो, विरोधी वातावरण को शांत करना हो, तो मैं कहूँगा आप एक ही हथियार अपनाएँ और वह है सकारात्मक सोच। जब हर ओर से आदमी हताश और निराश हो जाए तब मुँह लटकाकर हाथ-पर-हाथ रखकर बैठने की बजाय दो मिनट के लिए दिमाग़ को शांत और रिलेक्स कीजिए, मन की स्थिति को सहज और आनंदपूर्ण बनाइए और निर्णय कीजिए कि मैं हर हाल में पॉजिटिव रहूँगा। बस आपकी यह मानसिकता आपको विजेता बनाने के लिए काफ़ी है। सकारात्मक सोच यानी अपनी सोच में दूसरों को स्वीकार करना। बड़े डाँट दें तो यह सोचें कि बड़े नहीं डाँटेगा तो कौन डाँटेगा। छोटों से ग़लती हो जाए तो यह सोचें कि छोटों से ग़लती नहीं होगी तो किससे होगी। आपकी इस तरह होने वाली सकारात्मक सोच ही आपको हर हालात में सहज और प्रसन्न रखेगी। उग्र वातावरण में भी अपनी मानसिकता को स्वस्थ, संतुलित और मधुर बनाए रखना ही व्यक्ति की सकारात्मकता है। दुनिया में ऐसा कौन व्यक्ति है जिसे अपने जीवन में बुरे हालातों या बुरे वातावरण का सामना न करना पड़ता हो । सचिन को भी शिकस्त ख़ानी पड़ती है और धोनी की भी धुनाई होती है। सास की भी शामत आती है और चेयरमैन भी चूक खा जाता है। ग़लती तो किसी से भी हो सकती है। अरे, ग़लती तो दुनिया को बनाने वाले भगवान से भी हो सकती है। संभावना तो हर चीज़ में बनी हुई रहती है। कभी हमसे ग़लती हो जाती है तो कभी सामने वाले से। हमें बुरा मानने की बजाय इंसानी फ़ितरत को समझना चाहिए। ग़लती को स्वाभाविक मानते हुए हमें वातावरण को पुनः सहज और सौम्य बनाने का प्रयास करना चाहिए। यही तो AMEER 119 For Personal & Private Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इंसान की सकारात्मकता है। सकारात्मक मनोदशा में उपजने वाली सोच ही सकारात्मक सोच है। सकारात्मक सोच यानी सकारात्मक विचार, सकारात्मक विचार यानी सकारात्मक वाणी, सकारात्मक वाणी अर्थात् सकारात्मक व्यवहार, सकारात्मक व्यवहार अर्थात् सकारात्मक रिश्ते-नाते। अच्छा सोचो, अच्छा बोलो, अच्छा बरताव करो।आपको भी वापस अच्छी सोच, अच्छे बोल और अच्छा बरताव मिलेगा। सकारात्मक सोच तो जीवन का प्रसाद है और नकारात्मक सोच जीवन का अभिशाप है। सकारात्मक सोच पुण्य और नकारात्मक सोच पाप है। समाज और मानवता का धर्म सकारात्मक सोच है। विश्व-प्रेम, विश्व-शांति और विश्व-आदर्श का वातावरण सकारात्मक सोच के छाँव तले ही बन सकता है। नकारात्मक सोच तो दुनिया को बाँटती है, तोड़ती है। नकारात्मक सोच यानी इंसान की तलवार और सकारात्मक सोच अर्थात् शरबत की प्याली। अरे, तलवार से किसी को मारा तो क्या मारा? यह काम तो कोई दुश्मन भी कर सकता है। किसी को मारना है तो शरबत की प्याली पिलाकर मारो, ताकि दुश्मनी ही समाप्त हो जाए। युद्ध लड़ो तो गाँधी की तरह कि गोली खाएँगे तो भी अमर हो जाएँगे। प्यार करना है तो जीसस की तरह करो कि सलीब पर भी चढ़ेंगे तो दुनिया को शांति और क्षमा का पाठ पढ़ा जाएँगे। जो इंसान सलीब की पीड़ा में भी शांति और क्षमा की भावना रखता है, और गोली खाकर भी हे राम कहता है, तो सचमुच यह इंसान की श्रेष्ठ सोच और श्रेष्ठ मानसिकता का ही परिणाम हो सकता है। छोटी और नकारात्मक सोच तो जीवन का विधर्म है। सांसारिक विपत्तियों को, सामाजिक और पारिवारिक विवादों को हल करने के लिए चाहे जितने मंत्र-तंत्र-यंत्र दिए जाते हों, वे सफल होते हों या निष्फल, इस पर तो कोई टिप्पणी करना ठीक नहीं है। लेकिन मैं भली-भाँति जानता हूँ कि सकारात्मकता का, पोजिटिवनेस का मंत्र आज तक कभी निष्फल नहीं गया। सकारात्मकता का मतलब है पहले ख़ुद झुको तो दुनिया झुकती है। दूसरे को झुका कर झुकना ही अगर आपकी फ़ितरत में हो तो कृपया मुझसे जीवन का यह मंत्र ले लीजिए कि पहले माटी में सौंधी महक़ उठती है फिर आसमान से बादल बरसते हैं। मेरी यह चमत्कारिक सलाह है कि आप सकारात्मक सोच के मंत्र को अपनाइए। यदि आप सास हैं तो बहू को बेटी मानने की सकारात्मकता अपनाइए, बहू हैं तो सास को माँ मानने की मानसिकता ग्रहण कीजिए। जिस घर में सास और बहू के बीच में सकारात्मक रुख बन चुका है उस घर को दुनिया की कोई भी ताक़त बरबाद नहीं कर सकती। जहाँ ये दो विपरीत ध्रुव आपस में हाथ मिला लेते हैं, वहाँ घर ख़ुद ही स्वर्ग बन जाता है। चाहे परिवार बिखरा हो, या समाज टूटा हो, आप केवल सकारात्मक सोच के मंत्र को अपनाइए, आपको निश्चय ही सकारात्मक परिणाम मिलेंगे। सकारात्मकता से धर्म, समाज, देश जुड़ेंगे और आतंकवाद और उग्रवाद का समाधान निकलेगा। भले ही भारत और पाकिस्तान अलग-अलग शामियानों में रहते हों, पर थोड़ा हम झुकें, थोड़ा वे झुकें और जहाँ 1120 For Personal & Private Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दोनों ही झुकने को तैयार हैं, वहीं सकारात्मक सोच अपने आप समाधान का रास्ता तलाश लेती है। शस्त्रों के बल पर, पिछले पचास सालों में न तो भारत कोई हल निकाल पाया है और न पाकिस्तान । तीन-तीन युद्ध हो जाने के बावजूद किसी भी समस्या का समाधान न हो पाया। अयोध्या में बन रहे मंदिर या अयोध्या में हटा दी गई मस्जिद से समस्या का समाधान नहीं हो सका। यह बात जान लेनी चाहिए कि जो लोग राम के नाम से विवाद करते हैं वे राम के सम्मान से चूक रहे हैं। राम विवाद का नहीं, बल्कि संवाद का विषय है। संवाद भी कायम किया जा सकेगा जब दोनों समाज अपनी बेहतर और सकारात्मक सोच लेकर उपस्थित होंगे। ___ आप कोई मीटिंग कर रहे हैं, उसमें चार लोग यह सोचकर आए हैं कि वे इस मीटिंग में कोई निर्णय नहीं होने देंगे। उस स्थिति में तीन घंटे की बहसबाजी के बाद भी क्या निष्कर्ष निकलेगा, यह पहले चरण में ही पता लग जाता है। हाँ, अगर सभी यह सोच कर मीटिंग में भाग लें कि बिना निर्णय लिए हम मीटिंग पूरी नहीं करेंगे, तो अवश्य ही कुछ-न-कुछ समाधान निकल ही आएँगे। इसलिए यदि विवाद के, बिखराव के, टूटन के कोई कारण होते हैं तो वे हमारे नकारात्मक सोच के ही परिणाम होते हैं । उनका मूल बिन्दु तो हमारी छोटी और संकीर्ण विचारधारा ही होती है। मंदिर में जाना पहली ज़रूरत नहीं है और न ही पहले मस्ज़िद जाकर इबादत करने की ज़रूरत है। इस देश को तो पहले अपने दृष्टिकोण को सही और विचारों को सकारात्मक बनाने की पहली ज़रूरत है । सकारात्मक सोच अपने आप में ईश्वर की सर्वोपरि उपासना है। ___ महान् सोच महान् कार्य करवाती है और छोटी सोच छोटे-छोटे कार्य । महान् सपने देखोगे तो बड़े-बड़े काम करोगे और छोटे सपने देखोगे तो छोटे ही कार्य कर पाओगे। अपनी सोच को अपने जीवन की सबसे बड़ी ताक़त बनाइए। सोचने की शक्ति कुदरत ने एकमात्र इंसान को दी है। अगर इंसान अपनी सोच को बेहतर बनाने में सफल हो जाए, अपनी सोच को सही और सार्थक दिशा देने में कामयाब हो जाए तो सोच बड़े-से-बड़े इतिहास को जन्म दे सकती है, विज्ञान का आधार बन सकती है, दुनिया का कायाकल्प कर सकती है। आज अगर हमारे जीवन से सोच-विचार जैसे तत्त्व को निकाल दिया जाए तो जीवन में पीछे बचता ही क्या है ? मनुष्य और जानवर में बहुत अधिक फ़र्क नहीं है। फ़र्क इतना ही है कि जानवर किसी भी बिंदु पर सोच और समझ नहीं सकता जबकि मनुष्य जन्म से ही अपने भीतर यह सामर्थ रखता है। अपनी सोचने-समझने की क्षमता के कारण ही हम मनुष्य हैं। मन का श्रेष्ठ उपयोग करना ही मनुष्य की मनुष्यता है। दुनिया में कोई मंदबुद्धि क्यों रह जाता है ? क्योंकि उसके सोचने-समझने की क्षमता का विकास नहीं हो पाया। जिसका मस्तिष्क जितना विकसित होगा उसकी विचारधारा भी उतनी ही समृद्ध होगी। अगर धन कमाना अमीरी का लक्षण है तो महान् विचार भी व्यक्ति के जीवन की पूँजी है। विचार अगर इंसान के जीवन का धन है तो सोचो कि तुम्हारे पास विचारों का कितना धन है? जिसके विचार महान्, वह धनवान और संकीर्ण विचारों वाला निर्धन । मैं एक अमीर आदमी हूँ। अपने नाम से या अपने पास में एक पैसा रखता नहीं, UFER 121 For Personal & Private Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पैसे को छूता भी नहीं हूँ, मेरे नाम से कोई अकाउंट भी नहीं है, फिर भी मैं धनवान हूँ। अपने विचारों की बदौलत मैं धनवान हूँ। मेरे पास उच्च विचारों की, सद्विचारों की, सद्भावनाओं की, सदाचार की बहुत बड़ी सम्पदा है। मैं ईश्वर का शुक्रगुज़ार हूँ कि उसने मुझे अपने ज्ञान की नेमत दी, उन्नत मस्तिष्क दिया, जीवन को देखने और जीने की पारदर्शिता दी। __ एक दफ़ा की बात है : कुछ लोगों के साथ बैठकर किसी शास्त्र विशेष का स्वाध्याय कर रहे थे। उसमें एक चेप्टर ऐसा था जिसमें ईश्वर के बारे में काफ़ी कुछ लिखा हुआ था, और एक चेप्टर ऐसा था जिसमें शैतान के बारे में ब्यौरा था। स्वाध्याय के दौरान एक सज्जन ने मुझसे पूछा – ईश्वर की ताक़त ज़्यादा है या शैतान की? मैंने कहा – ईश्वर की। उस महानुभाव ने पुनः पूछा – अगर ईश्वर की ताक़त ज़्यादा है तो शैतान ईश्वर की हर चीज़ को बिगाड़ कैसे देता है ? मैंने निवेदन किया - मेरे भाई, केवल एक बात सोचो कि एक अच्छी मूर्ति बनाने में कितना वक़्त लगता है। उसने कहा – यही कोई छह महीने । मैंने कहा - और उसे तोड़ने में? वह महानुभाव झट से मेरी बात समझ गया और उसके यह बात समझ में आ गई कि किसी की ताक़त का अंदाज़ा बिगाड़ने से नहीं, बनाने से लगता है। जिन संबंधों को बनाने में दस साल लगते हैं, वही संबंध दस मिनट में टूट जाया करते हैं। तोड़ने के लिए बुलडोजर चाहिए, पर जोड़ने के लिए हर हाथ से हाथ मिलाना होता है। दुनिया को ख़त्म करने के लिए पचास परमाणु बम काफ़ी हैं, पर दुनिया को बनाए रखने के लिए, उसको फुलवारी की तरह खिलाए रखने के लिए न जाने कितने ऋषि-मुनि-महर्षि और महान् लोगों ने अपने महान् प्रयत्न और पुरुषार्थ किए होंगे। महान लोगों के वे परुषार्थ ही हमारे लिए महान वरदान साबित हए हैं। ऐसे महान लोगों ने ही हमें प्रेरणा दी है कि तुम बुरे हालातों में भी ख़ुद पर संयम रखो और सबके प्रति सही, सकारात्मक तथा कोमल व्यवहार करो। यही जीवन का धर्म है और यही जीने की कला। भारतीय मनीषियों ने, इस देश के लोगों ने विश्व को जो अनमोल संपदा दी है वह महान् विचारों की, महान् सोच की है। इसीलिए भारत को विश्व का धर्मगुरु' कहा जाता है। मनुष्य का अस्तित्व ही सोच के कारण है। हमारा मस्तिष्क दुनिया का बेहतरीन टापू है। इस डेढ़ किलो के टापू में दुनिया का श्रेष्ठतम ख़ज़ाना भरा पड़ा है। अगर हम अपने मस्तिष्क को विकसित करें, सोचने-समझने की क्षमता को बेहतर बनाएँ तो अनेकानेक जटिल से जटिल काम भी सहजतापूर्वक सम्पन्न किए जा सकते हैं। युद्ध करके जीतने वाले लोगों को स्टेच्यू बनाकर चौराहे पर खड़ा कर दिया जाता है, लेकिन दुनिया को महान् विचार देने वाले लोग मंदिर में आसीन होकर पूजनीय हो जाते हैं । फिर हम उनकी पूजा करने लगते हैं। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति अपने भीतर जो ख़ज़ाना गड़ा है उस पर ध्यान दे। हम लोग अपने चेहरे पर, रिश्तों पर, व्यापार पर तो ध्यान देते हैं लेकिन अपनी सोच को नज़र अंदाज कर देते हैं। LIFE 122 For Personal & Private Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हमारी विचारधाराएँ और सोच ही जीवन का मूल आधार है। व्यक्ति जैसा सोचेगा, वैसा ही नज़रिया रखेगा। जैसा नज़रिया होगा वैसा ही हम शब्दों का उपयोग करेंगे। जैसे शब्द बोलेंगे वैसा ही हमारा व्यवहार होगा। जैसा व्यवहार होगा, वैसी ही आदतें बनेंगी। जैसी हमारी आदतें होंगी वैसा ही हमारा चरित्र होगा। अगर हमें अपना चरित्र बेहतर बनाना है तो हमें अपनी आदतें सुधारनी होंगी। आदतों को सुधारने के लिए व्यवहार बेहतर बनाना होगा। बेहतर व्यवहार के लिए अपनी वाणी और शब्दों को बेहतर बनाना होगा । शब्दों बेहतर बनाने के लिए नज़रिए को बेहतर बनाने की ज़रूरत है। नज़रिए को बेहतर बनाने के लिए सोच बेहतर बनाना होगा। यानी कुल मिलाकर बेहतर सोच से शुरुआत हो । अच्छी सोच = अच्छा जीवन । बुरी सोच = बुरा जीवन | - गाँधी जी ने तीन बंदरों के माध्यम से कहा था - 'बुरा मत देखो, बुरा मत बोलो और बुरा मत सुनो। ' गाँधी के तीन बंदर हैं, पर चन्द्रप्रभ के चार बंदर हैं। मेरा चौथा बंदर कहता है : 'बुरा मत सोचो।' अगर सोच बुरी नहीं है तो आदमी न तो बुरा देखेगा, न बुरा बोलेगा और न ही बुरा सुनेगा। बुरी सोच ही आँख, कान और ज़ुबान को बुरा बनाते हैं। निश्चय ही वह आदमी धरती का देवता है जो अपने मन और इंद्रियों को कभी बुरा नहीं करता । शैतान और देवता में काम का कम और सोच का अंतर ज़्यादा है। जिसकी सोच बुरी वह शैतान, जिसकी सोच अच्छी वह दिव्य और महान् । पुरानी क़िताबों में देवताओं का ख़ूब ज़िक्र आता है, कम ही लोग ऐसे होंगे जिन्होंने अपने जीवन में देवताओं के दर्शन किए हों। मुझे भी अपने जीवन में दो-चार दफ़ा उन देवताओं के दर्शन का सौभाग्य और आनंद मिला है। पर मैं बता देना चाहता हूँ कि मैंने ऐसे अनेक देवताओं के दर्शन किए हैं जो इंसानी रूप में हम सब लोगों के बीच रहते हैं । ये दिखने में साधारण इंसान ही होते हैं पर इनकी वाणी, इनका व्यवहार, इनकी उदारता, इनकी शांति, इनकी मिठास और विनम्रता इतनी ग़ज़ब की है कि उन्हें देखकर जी हुलस आता है। ऐसे देवताओं के पाँव छूने की इच्छा होती है। निश्चय ही ऐसे धीर-वीर- गम्भीर लोगों के कारण ही यह धरती बहुरत्न वसुंधरा कहलाती है । मैं तो कहूँगा आप अपने मंदिर में ऐसी तस्वीर ज़रूर लगवाएँ जहाँ प्रतीकात्मक रूप में चार बंदर हों । इनमें एक अंगुली कान में हो, दूसरे की अंगुली आँख पर हो, तीसरे की अंगुली मुँह पर हो और चौथे की अंगुली दिमाग़ पर हो । संबोधि-धाम में मैंने ऐसे चार बंदर बनवाए हैं ताकि लोगों को प्रेरणा मिल सके कि सोचो मगर बुरा मत सोचो, देखो मगर बुरा मत देखो, बोलो मगर बुरा मत बोलो, सुनो मगर बुरा मत सुनो। ऐसा करना जीवन का बहुत बड़ा धर्म है, बहुत बड़ी सामायिक है, परमात्मा की पूजा है। इसे मैं कहता हैं द वे ऑफ लाइफ, द आर्ट ऑफ लिविंग । जीने की कला यही है कि आप अच्छी सोच रखते हैं । आपकी निर्मल सोच और विचारधारा से बढ़कर अन्य कोई ईश्वर की पूजा नहीं है। आप अपने जीवन का - बना For Personal & Private Use Only LIFE 123 Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लीजिए कि मन को कभी ख़राब नहीं करूँगा, जीभ को कभी ख़ारी नहीं करूँगा और आँख को लाल नहीं होने दूंगा। मन से बुरा न सोचना, आँखों से आग बबूला न होना और जीभ से कड़वा न बोलना, जीवन की यह सबसे बड़ी सामायिक है। जो मीठा बोलता है, आँखों से मुस्कुराता है उसके वचन किसी भी धर्म से कम नहीं होते। धर्म का आचरण और क्या है ? मिठास भरी बोली बोलने से किसी का मन नहीं दुखता, यह अहिंसा है। प्रकृति का नियम है, जो हम देते हैं वही वापस लौटता है। जैसे बीज हम बोते हैं, वैसे ही फल मिलते हैं। इसलिए कभी भी ऐसे बीज मत बोओ जिनकी फसल काटते वक़्त हमें काँटों से गुज़रना पड़े। जो दूसरों के साथ बेहतर ढंग से पेश आते हैं उनके साथ दूसरे भी बेहतर ढंग से पेश आएँगे। किसी की निंदा, आलोचना, उपहास मत कीजिए, अच्छा बोलिए, मधुर व्यवहार कीजिए, अच्छी सोच और अच्छा नज़रिया रखिए। जीवन को जीने का यह अद्भुत रूप है। आप चाहे जिस वातावरण में रहें, पर गिलास को हमेशा भरा हुआ देखिए। जीवन में एक ही नज़रिया रखिए कि मैं गिलास को आधा ख़ाली नहीं, आधा भरा हुआ देखूगा । हमेशा अच्छाइयों को देखना, अच्छाइयों का सम्मान करना ही सकारात्मक सोच है। हमारी सोच और हमारी विचारधारा ही हमारे जीवन का प्रेरक तत्त्व है। स्मरण रखें कि कोई भी विचार बेकार और अर्थहीन नहीं होता। हर विचार, हर सोच, हमारे जीवन में बीज का काम करता है। हमारी सोच दो प्रकार की होती है, पॉज़िटिव और निगेटिव। आज आप जो दुनिया देख रहे हैं वह सब इन्सान की महान् सोच का परिणाम है। आज जो विभिन्न प्रकार की सुविधाएँ कार, मोबाइल, टी.वी., मोटर साइकिल, सुपर सोनिक जेट विमान या चंद्र-मंगल की यात्राएँ की जा रही हैं - वह सब क्रिएटिव और महान् सोच का परिणाम है। छोटी सोच को लेकर तो व्यक्ति अपनी सास के दिल को भी नहीं जीत सकता फिर वह चन्द्रलोक की यात्रा कैसे कर सकेगा? ___ छोटी सोच को लेकर बहू को भी अपना नहीं बना सकते फिर आप पड़ोसी पर अपना जादू कैसे चला सकेंगे? छोटी सोच के कारण जब हम अपने घर को ही बिखेर रहे हैं तब लीडर बनकर समाज को कैसे ठीक कर पाएँगे? जो संत लोग समाज को तोड़ा करते हैं वे संत नहीं, असंत होते हैं । जो शांति की स्थापना करे वह संत, जो अशांति फैलाए वह असंत। जो लोगों के दिलों को जोड़ने का पवित्र कार्य किया करते हैं, वे ही समाज के सच्चे संत कहलाने के अधिकारी हैं। टूटे परिवार जुड़ें, टूटे समाज जुड़े, भाई-भाई को तोड़ने वाले लोग अगर धरती पर हैं तो उन्हें कंस कहा जाएगा। जहाँ भाइयों को जोड़ने की अलख जगाई जाएगी, उन्हें राम और कृष्ण पुकारा जाएगा। कंस को किसी ने नहीं देखा, राम और कृष्ण के बारे में हमने सुना है, लेकिन वे सब प्रतीक हैं, सुंदर प्रतीक हैं जो हमारे जीवन के लिए प्रेरणास्रोत हैं। तोड़ना कोई कला नहीं है, इसे तो कोई शकुनि या मंथरा भी कर सकते हैं । तोड़ने में कौन-सी महानता For Personal & Private Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ है? हाँ, अगर हम जैसे लोग टूटे हुए, बिखरे हुए परिवारों को, समाजों को एक कर सकें तो यह हमारी ओर से नेक काम होगा। टूटे हुए दिलों को आपस में जोड़ना ही मेरा पहला पवित्र कार्य है। लोग आपस में जुड़ें, आपस में प्रेम करें, एक दूसरे से मधुर व्यवहार करें, अच्छी भाषा बोलें - बस, यही अपन सब लोगों का बुनियादी धर्म है। और यह सब केवल पॉज़िटिव थिंकिंग ही कर सकती है। ग़लत, उल्टा-सीधा, ऊँचा-नीचा बोलकर क्यों अपना और दूसरों का मन ख़राब करें? जब अच्छी सोच और अच्छी बोली के द्वारा देव बना जा सकता है तो फिर गंदी सोच और गंदी बोली के द्वारा प्रेत क्यों बना जाए। ___मैंने सुना है : एक शेर और एक भालू पानी पीने के लिए किसी छोटे तालाब पर पहुँचे। पहले पानी कौन पिए, इस बात पर दोनों झगड़ पड़े। दोनों की लड़ाई इतनी बढ़ गई कि वे हाँफने लगे। लड़ते-लड़ते साँस लेने के लिए जब वे पलभर रुके तो उन्होंने देखा कि कुछ गिद्ध उन दोनों में से किसी के मरने का इंतज़ार कर रहे हैं, ताकि वे उनका मांस खाकर अपना पेट भर सकें। इस नज़ारे को देखकर शेर और भालू ने लड़ना बंद कर दिया। उन्होंने एक दूसरे से कहा – गिद्धों और कौओं से खाए जाने से बेहतर यही है कि हम अपनी दुश्मनी छोड़ें और एक दूसरे के दोस्त बन जाएँ। आप भी दोस्ती का हाथ बढ़ाएँ। लड़ाई छोड़ें और मोहब्बत का पैग़ाम अपनाएँ। जब मैं सोच को सकारात्मक और प्रेमपूर्ण बनाने का अनुरोध कर रहा हूँ, वहीं मै यह भी अनुरोध कर देना चाहता हूँ कि थोट्स मैनेजमेंट के लिए व्यर्थ की कल्पनाएँ और ख्वाब देखना भी छोड़ें। हवाई कल्पनाओं से जीवन में कोई निर्माण नहीं होने वाला। आज की सोचो, आज को सार्थक करो। व्यर्थ की विचारधाराओं से बचो । मन तो इधर-उधर भागता ही रहता है। उस पर नियंत्रण करें, दस मिनिट ध्यान कर लें। अन्तर्मन को शांतिमय बनाने का प्रयत्न करें। बेलगाम चलने वाले मन को अनिद्रा का रोग सताएगा, चिंता सवार होगी, तनाव और अवसाद हावी होंगे। मन पर ब्रेक लगाएँ, बहुत हो गया अब, शांत हो जा रे मन । बहुत हो गया बोलना, अब शांत हो। जो सोचो, वह सार्थक हो, तभी सार्थक बोलना और सार्थक करना सम्भव होगा। शेखचिल्ली जैसे सपने मत देखो।खाली दिमाग़ शैतान का घर होता है, जीवन में शैतानियत हावी न होने पाए। नेगेटिव विचारों को निकाल कर बाहर करें। फिर चमत्कार देखें - समाज में, परिवार में, विद्यालय में, केरियर में, व्यक्तित्व-विकास में । जब आप सकारात्मक सोचते हैं तो प्रत्येक के साथ बेहतर तरीके से पेश आते हैं। तब आप बेहतर व्यवहार करने में भी सफल हो जाते हैं। बेहतर सोच अपनाकर आप अपने साथ-साथ दूसरों का भी उपकार करते हैं । सास-बहू जो झगड़ पड़े हैं, केवल पांच मिनट के लिए आप अपने आप को पॉजिटिव बनाकर देखें। फिर देखिए चमत्कार! आप सोचें कि आप सास नहीं बहू हैं, फिर आपको पता चलेगा कि आप फ़ालतू ही बहू पर चिल्ला रही थीं। आपको लगेगा कि आप भी तो कभी बहू थीं। मेरी सास ने जो मेरे साथ किया, कम-से-कम मैं तो अपनी बहू 15 For Personal & Private Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ के साथ वैसा नहीं करूँगी। आजकल एक बहुत प्रसिद्ध धारावाहिक चलता है - 'क्योंकि सास भी कभी बहू थी।' तय है कि बहू भी कभी सास बनेगी, और सास भी कभी बहू थी। हो सकता है आपकी सास अच्छी न रही हो, पर आपका तो यह संकल्प अवश्य रहना चाहिए कि मैं एक अच्छी सास बनूँगी। जो शिकायतें मुझे अपनी सास से रहीं, उन शिकायतों का सामना अपनी बहू को नहीं होने दूंगी। ___मैं जिस परिवार में जन्मा हूँ। वह काफ़ी बड़ा परिवार है। मेरी माँ के चार जेठ और चार देवर थे और हम पांच लड़के भी। पर हमने अपनी माँ को कभी झल्लाते या झुंझलाते हुए नहीं देखा। उन्हें कभी झगड़ते, चिल्लाते या जोर से बोलते नहीं देखा। वह हमेशा प्यार करती रही। हमें अपने पिताजी द्वारा मारे गए थप्पड़ तो याद हैं, पर माँ के द्वारा मारा गया एक भी थप्पड़ आज तक याद नहीं है। मैंने अपनी माँ से पूछा, 'माँ', आपकी इतनी शांति का राज़ क्या है ? तो माँ ने कहा, 'बेटा, जब बड़े लोग डाँटते हैं तो मेरे मन में ऐसा आता है कि वे बड़े हैं, अब यदि बड़े नहीं डाँटेंगे तो कौन डाँटेगा? अत: मुझे बड़ों के प्रति कभी बुरा न लगा। जब छोटों से ग़लती हो जाती तो इसलिए बुरा नहीं लगता था कि वे छोटे हैं, छोटों से ग़लती नहीं होगी तो फिर किससे होगी? छोटों की गलतियों को माफ़ कर देने में ही आपका बड़प्पन है । बड़ों की डाँट को सह लेना और छोटो की ग़लतियों को माफ़ कर देना – यही है सकारात्मक सोच का सिद्धान्त। जीवन में आप प्यार को अपनाइए, यही सबसे बड़ी दौलत है। अगर आप सकारात्मक सोच ले आएँ तो चुटकियों में समाधान निकलता है। आप जोड़, बाकी, गुणा, भाग के गणित से भली-भाँति वाकिफ़ हैं। मान लीजिए किसी ने आपको आपकी ग़लती पर डाँट दिया। स्वाभाविक है डाँट सुनना बुरा लगा।आपको गुस्सा आया। आप वह जगह छोड़कर निकल गए। ऐसा करके आपने प्रतिक्रिया को तो रोक लिया, पर सामने वाले का दिल जीतने में आप सफल न हुए। मेरी सलाह है कि आप घर छोड़कर न जाएँ। केवल एक मिनट के लिए अपने मन को धैर्य और शांति धारण करने का सुझाव दें। दो मिनट बाद आप पाएँगे कि आपकी मानसिकता में अब किसी भी तरह की उग्रता नहीं है । पाँच मिनट बाद आप ख़ुद भी एक गिलास पानी पी लीजिए और दस मिनट बाद आप उन्हें भी एक गिलास पानी ले जाकर दे दें। आपकी विनम्र प्रस्तुति आपकी ग़लती को माफ़ करवा देगी और वातावरण पन्द्रह मिनट में ही नोर्मल हो जाएगा। हमारी ओर से होने वाला इस तरह का व्यवहार ही सकारात्मकता के सिद्धान्त की बुनियाद है। आपका सकारात्मक होना आपके लिए प्लस है । उग्र होकर के घर से बाहर निकल पड़ना आपके जीवन का माइनस है। अब ज़रा आप ही बताइए कि प्लस वाला काम करना पसंद करेंगे या माइनस वाला? अगर आप पाँच मिनट के लिए भी किसी के प्रति सकारात्मक सोच बना लें तो पत्थर भी पानी पर तिर सकता है, टूटे हुए परिवार जुड़ सकते हैं, रूठे हुए लोग आपस में गले मिल सकते हैं, बिखरे हुए धर्म और सम्प्रदाय एक-दूसरे के क़रीब आ LIFE 126 For Personal & Private Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेगी। सकते हैं। आपका भाई अगर आपसे बिछुड़ चुका है, सास बहू अलग-अलग घर बसा चुकी हैं, बाप-बेटे अलग हो गए हैं, आपका केरियर नहीं बन पाया है, आपको विकास का रास्ता नज़र नहीं आ रहा है - आप केवल पाँच मिनट के लिए धैर्यपूर्वक अपनी मानसिकता को सकारात्मक बनाकर देखिए, आपको कोई-नकोई प्रकाश की किरण अवश्य मिल जाएगी।आपको आपके जीवन में प्रेम, शांति, समन्वय, सफलता का एक रास्ता अवश्य देने लग जाएगा। सकारात्मक सोच को तो मैं नवग्रह को साधने वाली अंगुठी मानता हूँ।आदमी अपने हाथ में खींची हुई लकीरों को मिटा तो नहीं सकता लेकिन अपनी मानसिकता को बेहतर बनाकर अभाव में भी स्वभाव का आनंद ले सकता है। मैं तो कहूँगा कि आप अपनी मानसिकता को बेहतर बनाएँ, आपकी भाग्य-दशा अवश्य बदलेगी। राहु और केतु की दशा भी अनुकूल बनेगी। ऐसा नहीं है कि मेरे सामने समस्याएँ नहीं आती हैं। कभी कोई नाराज़ भी हो सकता है। पहली बात तो यही है कि हम सपने में भी कभी किसी का बुरा नहीं चाहते। नम्रता और मधुरता तो हमारे लिए दो हाथों की तरह है। फिर भी प्रमादवश कभी कोई अनहोनी हो भी जाए तो चिंगारी को आग बनने जितना वक़्त नहीं देते। भले ही कोई हमें अपना दुश्मन समझे, पर हमारा सबसे प्रेम है। हमारा किसी से भी कोई वैर नहीं है। मैं विश्व-शांति और विश्व-प्रेम का हिमायती हूँ। मैं अपने विरोधियों से भी प्रेम, शांति और मिठास से बोलता हूँ। मैं जीसस की इस सकारात्मकता का कायल हूँ कि वे सलीब पर चढ़ाने की पैरवी करने वालों के प्रति भी यही उद्गार व्यक्त करते हैं - ईश्वर उन्हें माफ़ करे। दुश्मनों से भी प्यार से बोलना और उनके साथ मैत्रीभरा व्यवहार करना मेरी समझ से दुश्मनों को ख़त्म करने का सबसे अच्छा तरीक़ा है। भला जब दुश्मनी ही नहीं रहेगी तो दुश्मन कहाँ से रहेगा! __ आप तो केवल एक परिवार या समाज से जुड़े हैं, हम तो हज़ारों लोगों और देश के भी हज़ारों परिवारों से जुड़े हैं। लोग आते हैं अपनी समस्या लेकर या हमसे जुड़ी समस्या लेकर किन्तु कोई भी हमारे पास से निराश नहीं जाता और न हम किसी को निराश होकर जाने देते हैं। भले ही वह रोते-रोते आए, पर जाता तो हँसते हुए ही है। आप भी हँसी को बाँटिए। ख़ुद भी मुस्कुराइए और दूसरों को भी मुस्कुराने का अवसर दीजिए। महावीर का शब्द है : 'जियो और जीने दो।' तुम ख़ुद भी जियो और दूसरों को भी जीना सिखाओ। हममें से हर किसी को हर दिन कम-से-कम दस लोगों को ज़रूर हँसाना चाहिए। जिसके एक हाथ में सकारात्मक सोच का मंत्र है और दूसरे हाथ में हर हाल में हँसते और मुस्कुराते रहने का महामंत्र है, वह दुनिया में किसी राजा-महाराजा से कम नहीं है। ___मनुष्य का दिमाग़ तो किसी उपवन की तरह है जिसमें से क्रोध, ईर्ष्या, तनाव और नकारात्मक विचारों की खरपतवार तथा कांटों को निकालकर फैंकना होगा और उस बाग में प्रेम, शांति, आनन्द और आत्मीयता के पुष्प खिलाने होंगे और सकारात्मकता का सौरभ फैलाना होगा। सकारात्मकता का सिद्धांत सिखाता है For Personal & Private Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (1) दूसरों की भूलों को माफ कर दो। (2) दूसरों को गले लगा लो। (3) हर हालत में दूसरों का सम्मान करना सीखो। सम्मान लेने की नहीं बल्कि देने की चीज़ है। फूलों का हार ख़ुद मत पहनो क्योंकि यह दूसरों को पहनाने के लिए है। अच्छी सोच लेकर चलो, आप हर हाल में सफल बनेंगे, मधुर बनेंगे, प्रसन्न रहेंगे, स्वस्थ रहेंगे। अच्छे बीज बोओ, अच्छी फसल आएगी। जीवन के खेतों में अच्छा डालोगे तो अच्छा पाओगे, बुरा डालोगे तो बुरा ही लौटकर मिलेगा। सकारात्मक सोच का पहला फार्मूला है – अच्छी सोच, अच्छा व्यवहार। ___ अगर कोई आपके साथ दुर्व्यवहार या ग़लत व्यवहार कर रहा है तो समझो कि कहीं कुछ गड़बड़ी हो गई है तभी तो उसका चित्त ठिकाने नहीं है और वह ढंग का व्यवहार नहीं कर रहा है। आप उल्टा मत सोचो, सीधा सोचो। गिलास को आधा खाली नहीं, हमेशा आधा भरा हुआ देखो। सकारात्मक सोच का सिद्धांत कहता है कि हमेशा गुण देखो, जो आपके काम आया है उसके उपकार को देखो।आपने क्या किया उसे भूल जाओ, पर अगले ने हमारा जो भला किया है, हमारी मदद की है, उसे मरते दम तक याद रखो। लेकिन होता यह है कि दो दिन पहले का दुर्व्यवहार तो याद रह जाता है पर पिछले तीन सालों तक उसने जो प्यार किया था, उसे हम भूल जाते हैं। तीन साल तक किया गया प्यार क्या दो दिन के दुर्व्यहार के कारण ख़त्म हो जाता है ? माँ के कुछ टेढ़ी बात कह देने से आज बेटा पत्नी के कहने पर अलग हो रहा है। अरे भाई, पच्चीस साल तक माँ ने तम पर जो उपकार किए हैं, अभी माँ के द्वारा कही गई एक छोटी-सी बात ने तुम्हें इतना झिंझ कि अलग घर बसा बैठे? अरे भाई, जो अपने माँ-बाप का नहीं होता वह अपनी बीवी का कैसे होगा? आज किसी ने अपकार किया तो क्या हुआ, कभी वह तुम्हारे बहुत काम आया हुआ है। उसने हमेशा आपको सहयोग और श्रद्धा दी है। आज अगर वह किसी कारणवश रुष्ट हो गया है तो कोई बात नहीं, अपनी ओर से सकारात्मक नज़रिया रखते हुए उसके सहयोगों का, श्रद्धा का स्मरण करते हुए उसकी रुक्षता को, नकारात्मकता को विसरा दीजिए। सकारात्मकता हमें सिखाती है कि हर काम मिल-जुलकर करो। रोटी अगर दो है और खाने वाले चार तो भी चिंता मत करो। जो है उसे भी मिल-बाँटकर खाओ।ऐसा समझें - पत्नी ने आम काटकर प्लेट में रखे और पति को दिए। पति ने दो-चार टुकड़े खाए और प्लेट सरका दी। पत्नी ने पूछा – 'क्या आम मीठा नहीं है ?' पति ने कहा – 'नहीं, नहीं, आम तो बहुत मीठा है, थोड़ा-सा तुम भी खा लो, बेटे को भी खिला दो और हाँ, रामू को भी दे देना। पत्नी ने कहा – 'अरे, ये तो आप ही के लिए हैं, उनके लिए और सुधार दूंगी।' पति ने जवाब दिया - 'देखो, अच्छी चीजें हमेशा बाँटकर खानी चाहिए।' For Personal & Private Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अगर तुम चार हो और आम दो, तो भी उसे मिल-बाँटकर खाइए। अपना हिस्सा स्वार्थवश अपने पास मत रखो । स्वार्थ ही सबसे बड़ा पाप है और स्वार्थ का त्याग कर देना ही पुण्य है। मेरे लिए तो स्वार्थ ही अधर्म और नि:स्वार्थी होना धर्म है। जब से मैंने अपने स्वार्थों का त्याग कर दिया है तब से ईश्वर के घर से मेरे लिए हर तरह की पुख्ता व्यवस्था होने लग गई है। तुम उसके लिए अपने स्वार्थों का त्याग करके देखो तो सही, वह तुम्हारे भंडार कैसे भरता है। मेरा मेरे पास कुछ नहीं है। जो कुछ है सब उसका है। मैं भी उसका हूँ, उसके लिए हूँ। मेरे द्वारा यह जो कुछ बोला जा रहा है वह भी मेरा नहीं है। यह भी उसका ही है। मेरे लिए उसके अलावा कुछ है ही नहीं। जो लोग ईश्वर के होने और न होने के बारे में कोरे तर्क करते रहते हैं, मेरा उनसे अनुरोध है कि जितनी शक्ति आप उसे साबित करने और न साबित करने के बारे में लगाते हैं, काश उसकी आधी शक्ति भी ईश्वरीय तत्त्व में डूबने में लगाते । आप सचमुच धन्य हो चुके होते। सोच को बेहतर बनाने के लिए अपनी व्यग्रता और उत्तेजनाओं का त्याग कीजिए। व्यग्रता के क्षणों में सोचना ग़लत निर्णायक होता है। आप घर पहुँचे, पत्नी ने माँ के बारे में आपसे शिकायत की। आप व्यग्र हो गए और माँ को अपशब्द कह दिए। नहीं, ऐसा न करें। वह आपकी माँ हैं अत: उसका पक्ष भी सुना जाना चाहिए। दोनों की बात सुनकर जब आप निर्णय लेंगे तो वह सही निर्णय होगा। व्यग्रता में उठाया गया क़दम आपको नुकसान भी पहुँचा सकता है । क़दम जब भी उठे, धैर्य और शांति में ही उठना चाहिए। ___ ध्यान रखिए – कभी किसी के दुर्गुण मत देखिए। अगर दूसरे की ओर एक अँगुली उठाओगे तो ध्यान रखना तीन तो तुम्हारी ओर ही हैं। अगर हम दूसरों के अवगुण ही देखते रहेंगे तो कभी भी उनके गुणों का उपयोग नहीं कर पाएँगे। कोई भी दूध का धुला नहीं है फिर भी हमें अच्छाइयों की ओर ही दृष्टि डालनी है। किसी में कमी है तो वह जाने, उसमें कोई दुर्गुण है तो वह जिम्मेदार है, लेकिन एक दुर्गुण या अवगुण के कारण उसकी शेष अच्छाइयों को नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता। याद है न्, जब युधिष्ठिर और दुर्योधन से नगर में रहने वाले बुरे लोगों की सूची बनाने को कहा गया तो दुर्योधन ढाई सौ लोगों के नाम लिख लाया और युधिष्ठिर की सूची में एक ही नाम था और वह भी खुद का। तभी तो कबीर ने कहा है - बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय। जो दिल देखा आपना, मुझसे बुरा न कोय॥ अपनी ओर से कभी किसी की आलोचना मत कीजिए, पर यदि कोई दूसरा आपकी आलोचना कर दे तो इतना बुरा भी मत मानिए। वैसे भी गली में दो-चार सूअर होने ही चाहिए। गली की सफाई ठीक से हो जाती है। आप तो वह फूल बनिए जो काँटों से बिंधकर भी दूसरों को अपनी ख़ुशबू दे। सभी के साथ विनम्रता, सहजता, सरलता से पेश आएँ। अपने भीतर अकड़ न रखें। LIFE 129 For Personal & Private Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक घटना के साथ अपनी बात समाप्त करता हूँ। देश के भावी कर्णधार मंच पर एकत्रित थे। गाँधी जी उस सभा की अध्यक्षता कर रहे थे। तभी उन्होंने देखा कि सामने जनता के बीच उनके बचपन के गुरुजी बैठे हुए हैं । वे मंच से उतरकर नीचे जनता के बीच अपने गुरु जी के पास आए, उन्हें प्रणाम किया और उन्हीं के पास बैठ गए। गुरुजी ने सोचा - यह तो बहुत महानता है कि इतना लोकप्रिय व्यक्ति मंच छोड़कर अपने गुरु के पास आ बैठा। दस-पंद्रह मिनट बाद गुरुजी ने गांधी जी से कहा, 'जाओ बेटा, बहुत हो गया, अब जाकर मंच का संचालन करो, वहाँ अध्यक्षता करो।' गांधीजी ने कहा – 'गुरुजी, आप मंच की चिंता छोड़ें। आपने गांधी को इतना सुयोग्य बना दिया है कि वह ज़मीन पर बैठकर भी देश का संचालन कर सकता है।' अरे, चाहे नीचे बैठे या ऊपर, पर गुरु के प्रति यह जो विनम्रता और आदर की भावना है - यही व्यक्ति की सकारात्मकता और महानता है। आप विनम्र बनें और खुशमिज़ाज रहें, मुस्कान से भरे रहें और मधुर भाषा बोलें। आपके धन्य जीवन के लिए इतना ही पर्याप्त है। 4NEE 130 For Personal & Private Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रेष्ठ कर्म खुद से ही कीजिए धर्म की शुरुआत पहला धर्म दुनिया में इस समय लगभग उतने ही धर्म हैं, जितने वर्ष में दिन हुआ करते हैं। उन धर्मों के हज़ारों, लाखों और करोड़ों अनुयायी हैं। इन सभी धर्मों की मंगल प्रेरणाएँ समग्र मानवजाति के कल्याण से जुड़ी हुई हैं । इस सृष्टि के लिए अगर सबसे बड़ा कोई वरदान है, तो वह स्वयं धर्म ही है । धर्म मानवता की मुंडेर पर मोहब्बत का जलता हुआ चिराग़ है। धर्म, अहिंसा और प्रेम का अमृत अनुष्ठान है। धर्म गति है, शरण है, प्रतिष्ठा है, इंसानियत की इबादत है । winto धर्म इंसान को इंसान के काम आने की प्रेरणा प्रदान करता है । धर्म आदमी को जीने की कला देता है कि वह स्वयं भी सुख से जीये और औरों को भी सुख से जीने दे । दुनिया के हर धर्म के मूल संदेश, मूल भावनाएँ और मूल प्रेरणाएँ एक ही हैं, उनमें कोई भेद नहीं हैं। भेद सारे दीयों में होते हैं, ज्योतिर्मयता में कोई For Personal & Private Use Only LIFE 131 Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भेद नहीं होता । मूल्य हमेशा ज्योति का ही होता है, दीयो का नहीं; महत्त्व उसी धर्म का होता है जो मानवता को सही रास्ता दिखाए, उस धर्म का नहीं जो इंसानियत के बँटवारे करे। जिस आदमी की नज़र दीये की माटी पर केंद्रित हो गई, वह माटी- माटी हो गया, मृण्मय हो गया और जिसकी नज़र लौ पर टिक गई, वह ज्योतिर्मय हो गया, चिन्मय हो गया । धर्म मानवता के लिए वरदान है, लेकिन धर्म का मर्म आदमी के हाथ से छिटक गया है। धर्म की मशालों की लौ बुझ गई है और मशालों के नाम पर डंडे रह गए हैं। वे डंडे अब लड़ने-लड़ाने के सिवा कुछ काम नहीं आने वाले हैं। भले ही कोई धर्म यह मानता हो कि यह सारा जहां अल्लाह ने बनाया है, मगर किसी कोने से आवाज गूँज जाए कि 'इस्लाम खतरे में है', तो अफरा-तफरी मच जाती है, मारकाट शुरू हो जाती है । भले ही कोई व्यक्ति 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की प्रार्थना कर ले, मगर जिस दिन हिंदुत्व की हिलोर उठी, तो सारी प्रार्थनाएँ एक किनारे रह जाएँगी और रक्त की नदियाँ बह चलेंगी। लोगों को धर्म से प्यार कम है, अपने-अपने पंथों और संप्रदायों से ज़्यादा लगाव है। जैसे एक माँ-बाप पाँच संतानें आपस में बँट जाया T करती हैं, ऐसे ही समाज बट चुका है, धर्म के बँटवारे हो गए हैं। दुनिया में जितने भी धर्म हैं, उनके सैकड़ों अवांतर भेद हैं, सैकड़ों परंपराएँ हैं, सैकड़ों रूप-रूपाय हैं और सैकड़ों ही विधि-विधान हैं। क्या कोई मनुष्य ऐसा है, जो यह कह सके कि उसका धर्म सत्य है ? धर्म को सत्य बताना सरल है, सत्य 'धर्म का रूप देना कठिन है। सत्य का पक्ष ही मेरा पक्ष है, व्यक्ति का यही स्वर होना चाहिए । इंसानियत को बाँटने का जितना बड़ा पाप इन कथित धर्मों ने किया है, उतना और कोई नहीं कर पाया है। धर्म का उद्देश्य सारी इंसानियत को एक मंच पर लाकर खड़ा करना था, मगर हम इसमें नाकाम रहे। मनुष्य के अन्तर्मन में पलने वाली राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं के चलते धर्म आपस में बाँट दिया गया और इंसानियत भी टुकड़े-टुकड़े हो गई। प्रेम और शांति के जिस संदेश को लेकर धर्म ने जन्म लिया, हमने अपनी संकीर्ण सोच, संकीर्ण नज़रिये के कारण उसका अपने ही हाथों गला घोंट दिया। किसी के हाथ में धर्म का हाथ लग गया, किसी के हाथ में पाँव, तो किसी के हाथ में उसका सिर । सारे लोगों ने अपने-अपने हाथ में जो भी लगा, उसे खींचना शुरू किया। सारे अंग अलग हो गए और उसके पीछे मृत देह रह गई । धर्म ही नहीं बँटा है, धर्म के साथ समाज और परिवार भी बँट गए हैं। धर्म हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई के बँटवारे तक ही सीमित रहता तो ठीक था, किंतु अब तो विभाजन इससे कहीं ज़्यादा ही बढ़ गया है। हिंदू बँटकर वेदांती हो गए, आर्य समाजी हो गए; ईसाई कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट हो गए; मुसलमान शिया और सुन्नी हो गए; जैन श्वेताम्बर और दिगम्बर हो गए। इतने में भी शायद बात नहीं बनी और फिर सौ-सौ रूपान्तरण हो गए। अगर केवल जैनों को ही ले लिया जाए तो वे श्वेताम्बर और दिगम्बर तक ही सीमित न LIFE 132 For Personal & Private Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रहे । दिगम्बर बीसपंथी, तेरहपंथी, तारणपंथी में बँट गए। श्वेताम्बर मंदिरमार्गी, स्थानकवासी और तेरहपंथी के रूप में बँट गए। इतने में ही नहीं सिमटे, उसमें भी खरतरगच्छ अलग, तपागच्छ अलग। लोगों ने धर्म से जीवन के कल्याण के रास्ते तो कम खोजे हैं, आपस में बँटने और बँटाने के रास्ते ज़्यादा पा लिए हैं। छोटीछोटी बातें, छोटी-छोटी सोच, छोटे नज़रिए इन सबने मिलकर इंसान को भी छोटा बना दिया। आज अगर इंसान ने धर्म के भीतर छिपे मूल तत्त्व की खोज न की, तो धर्म के नाम पर हो चुके बँटवारे धर्म को दीमक की तरह खा जाएँगे। तब आदमी के पास धर्म के नाम पर छोटी-मोटी पूजा-पद्धतियाँ, कुछ रीति-रिवाज़ और कुछ परंपराएँ ही शेष रह जाएँगी। मेरे देखे धर्म के सारे संदेशों में कही कोई फ़र्क नहीं है, सारा फ़र्क केवल बाहर की पूजा-पद्धतियों और तौर-तरीक़ों में ही है। आज अगर आप सामायिक ले रहे हैं तो दो पंथों की सामायिक-विधियों में फ़र्क है, सामायिक की मूल भावना में कहाँ फ़र्क है ? धर्म का मर्म हमसे छूट गया और फ़िजूल की चीज़ों को ही हमने धर्म समझ लिया है। हमारे हाथ में धर्म के नाम पर केवल दो-चार तौर-तरीक़े ही बच गए हैं। अब वह धर्म कहाँ रहा कि जब दशरथ जैसे लोग अपने वचन की आन रखने के लिए अपनी 'जान' तक कुर्बान कर देते हैं। उन पुत्रों से प्रेरणा लीजिए जो पिता के वचनों की आन रखने के लिए चौदह साल का वनवास भी स्वीकार कर लेते हैं। उस पत्नी से प्रेरणा लीजिए जो पति के पद चिह्नों का अनुसरण करते हुए वनवास और गेरुएँ वस्त्र धारण कर लेती हैं। उस भाई के धर्म की कल्पना कीजिए जो संकट में भाई का साथ देने के लिए खुद वनवासी होने का संकल्प ले लेता है। अरे, सबसे बड़ी तपस्या की बात तो यह है कि भरत राजमहलों में रहकर भी राम से ज़्यादा महान् त्यागीतपस्वी का जीवन जी जाता है। पत्र भी इतने महान कि अपनी पत्नियों को अपने साथ रखने की बजाए अपनी माताओं की सेवाओं में रहने का निर्णय देते हैं । ऐसी नारियों से ही धर्म की यह मर्यादा निभती है : सास-ससुर पद पंकज पूजा, या सम नारी, धर्म नहीं दूजा। राम के वनवास के समय लक्ष्मण अपनी माँ के पास पहुँचकर कहता है-'माँ, आज मैं तुमसे पहली बार एक वचन, एक वरदान चाहता हूँ।' माँ कहती है - 'बेटे, ऐसे अशुभ क्षणों में तुम मुझसे वरदान माँग रहे हो, जिन क्षणों में राम और सीता वनगमन कर रहे हैं।' बेटे ने कहा – 'हाँ माँ, यही तो वह क्षण है जब मैं आज अपनी माँ से कोई वरदान चाह सकता हूँ।' अगर मैंने दो पल की भी देरी कर दी तो वरदान अर्थहीन हो जाएगा। माँ ने कहा - 'बेटा, पहले ही एक माँ ने वरदान माँगकर अनर्थ कर डाला है। अब तुम भला कौनसा वरदान चाहते हो? तब बेटे ने कहा – 'माँ, आज मैं तुमसे यह वरदान चाहता हूँ कि तुम मुझे अनुमति दो कि मैं भी अपने बड़े भाई और भाभी के पदचिह्नों का अनुसरण कर सकूँ और उनके साथ चौदह वर्ष का वनवास बिता सकूँ। धन्य है तुम्हें सुमित्रानन्दन ! कहाँ है अब वह धर्म और धर्म की मर्यादा?' एक भाई, भाई CHEER 133 For Personal & Private Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ के काम आता है तो इससे माँ की भी छाती फूलती है। माँ अगर अपने स्वार्थ की सोचती है तो भाई का भी जी जलता है । जब रावण का वध हो जाता है, तो रानी मंदोदरी सोच लेती है कि अब उनके पति की लाश उसे शायद ही नसीब हो, क्योंकि रावण ने जिस व्यक्ति की पत्नी का अपहरण किया है, वह उसकी लाश को चील, कौओं, कुत्तों के आगे फेंक देगा। रानी मंदोदरी और सारे लंकावासियों के आँसू तक यकायक थम जाते हैं और वे तब सुखद आश्चर्य में डूब जाते हैं, जब राम रावण का शव सामने आते ही सम्मान में उठ खड़े होते हैं और अपने कंधे पर रखा उत्तरीय वस्त्र उतारकर रावण को ओढ़ा देते हैं । इसे कहा जाता है धर्म का व्यावहारिक और वास्तविक स्वरूप; धर्म और धर्म की मर्यादा को अपने जीवन में जीना । इसीलिए तो मैं कहता हूँ कि राम के भीतर राम को देखने की विशाल दृष्टि हर कोई पा लेगा, लेकिन जो रावण के भीतर भी राम को निहारने की अन्तर- दृष्टि पा ले, वही व्यक्ति मर्यादा, पुरुषोत्तम कहलाता है । भारत तो वह धर्म-धरा है कि जहाँ एक बेटा अपने माँ-बाप को अपनी कावड़ में बिठाकर सारे पुण्य तीर्थों की यात्रा करवाने का सौभाग्य पाता है । आज ऐसे श्रवणकुमारों की ही ज़रूरत है कि जो अपने बूढ़े माँबाप के मान-सम्मान और सेवाशुश्रूषा को अपने जीवन में अंगीकार कर ले। बूढ़े माँ-बाप की सेवा करना हममें से हर किसी इंसान का पहला धर्म है। त्यागी, तपस्वी कहलाने वाले महावीर भी यह संकल्प कर लेते हैं कि मैं ऐसा कोई काम नहीं करूँगा जिससे मेरे माता-पिता के हृदय को ठेस पहुँचे। अगर मेरे संन्यास लेने से भी मेरे माँ-बाप का हृदय आहत होता है तो मैं संन्यास भी उनके शरीर के त्याग के बाद ही लूँगा। मैं इसे कहता हूँ धर्म। धर्म वह नहीं है जो क़िताबों में कहा जाता है, धर्म वह है जो जीवन में धारण किया जाता है । धर्म की बातें मोटे-मोटे पोथो जितनी नहीं होती । धर्म की बातों को तो केवल एक पोस्टकार्ड में उतारा जा सकता है। धर्म को कहना सरल है पर उसको जीना कठिन 1 किसी ने मुझसे कहा नहीं लिख देते ?' मैंने कहा है ।' उस सज्जन ने मुझसे पूछा तारीख़ तो नहीं बताई जा सकती रहा हूँ ।' LIFE 134 'आप राम के इतने प्रसंशक हैं, तो आप अपनी नज़र से राम का चरित क्यों 'मैंने उनका जीवन चरित लिखने की कोशिश बहुत पहले ही चालू कर दी .' तो वह चरित कब तक पूरा होगा ?' मैंने जवाब दिया – 'कि उसकी क्योंकि मैं उसे काग़ज़ पर नहीं वरन् अपने स्वभाव और जीवन में अंकित कर — - — - 1. राम, जो जीवन में उतर जाए, वही धर्म है। बाकी तो हम हिन्दुस्तानी धार्मिक कम और धर्म की मोटी बातें ठोकने वाले ज़्यादा हैं । मेरे लिए रामायण आदर्श है। मैं तीन लोगों को अपने लिए आदर्श मानता हूँ 2. कृष्ण और 3. महावीर | राम जीवन के धर्म का पहला पगथिया है। घर-परिवार में कैसे जिया जाना चाहिए, राम और रामायण इसके लिए पहला आदर्श है। राम को जीवन से पहले जोड़ो। राम के बाद नंबर For Personal & Private Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आता है कृष्ण का । कृष्ण धर्म का दूसरा पगथिया है। कृष्ण कर्म की प्रेरणा है। जीवन का निर्माण और विकास कैसे किया जाए, कृष्ण और उनकी गीता वह कर्म सिखाते हैं । बगैर कृष्ण के कर्म अधूरा है। जीवन में जबजब भी विफलताओं का सामना करना पड़े तब-तब कृष्ण डूबते के लिए पतवार का सहारा बनते हैं। उसका खोया हुआ आत्मविश्वास उसे लौटाते हैं । उसे कर्म की ओर प्रेरित करते हैं और यह जताते हैं कि तुम्हारा कर्म ही तम्हारा भाग्य विधाता है। महावीर मोक्ष का नाम है : महावीर संसार नहीं है। महावीर मुक्ति है। राम और कृष्ण संसार हैं, जबकि महावीर निर्वाण है। राम और कृष्ण जीवन को सुधारते हैं। महावीर मृत्यु को सुधारते हैं । मृत्यु आदमी की परीक्षा है। परीक्षा ही यह साबित करती है तुमने सालभर कैसे पढ़ाई की। जो परीक्षा में फेल हो गया। वह जिंदगी की पाठशाला में फेल हो गया। जो परीक्षा में पास हो गया. वह जिंदगी की बाज़ी मार गया। राम और कृष्ण तो ब्रह्मचर्य और गृहस्थ-आश्रम हैं। जबकि महावीर और बुद्ध वानप्रस्थ और संन्यास-आश्रम हैं । घर में कैसे जीना चाहिए राम से सीखो। केरियर कैसे बनाना चाहिए कृष्ण से सीखो, पर जीवन को कैसे जीना चाहिए महावीर से सीखो। राम शुरुआत है, कृष्ण बीच का पड़ाव है, महावीर मंज़िल है। अगर इन तीन में से किसी एक को भी अलग कर दिया तो जीवन की यात्रा रसपूर्ण और आनंदपूर्ण न बन पाएगी। अपनी सोच और अपने नज़रिए को थोड़ा-सा महान् बना लो, तो जीवन को जीने का मज़ा ही अनेरा हो जाएगा। इनसे भी कुछ सीखो तो ये हमारे हैं और न सीखो तो केवल इनका नाम जपने से भी कुछ नहीं होने वाला है। मैंने इन लोगों से कुछ सीखा है इसीलिए यह सब अनुरोध कर रहा हूँ। इन लोगों के जीवन से कुछ सीखने जैसा है इसीलिए ये हमारे वर्तमान के लिए उपयोगी हैं। बाक़ी राम ने अच्छा जीवन जिया इससे राम को कुछ मिला होगा। हमें क्या मिलेगा? कृष्ण ने कर्म किया तो वे कर्मवीर बने । हम कर्म न करेंगे तो क़िस्मत हमारी चाकरी करने से रही। महावीर ने महान् त्याग किया तो वे महावीर बने। हम त्याग करने की बजाए केवल पानी में त्याग की लकीरें खींचते रहेंगे, तो मुझे तो इसमें कुछ आणी-जाणी' नहीं लगती। एक बहुत बड़ी महिला न्यायाधीश ने मुझसे एक बार कहा – गुरुदेव, जहाँ तक मुझे याद है मैंने अपनी जिंदगी में एक पैसे की भी रिश्वत नहीं ली। मैंने अपने बच्चों को कभी नहीं डाँटा । मैं अपने नौकरों के साथ भी सलीके से पेश आती हूँ। अगर घर के बूढ़े-बुजुर्ग मुझे डाँट दे, तो मैं उसे सहजता से स्वीकार कर लेती हूँ, पर मैं बहुत व्यस्त हूँ। मेरी बहुत इच्छा होती है कि मैं मंदिर वगैरह जाऊँ और कुछ धर्म करूँ, पर क्या करूँ, धर्म करने का वक़्त नहीं निकाल पाती।' ___मैंने उस जज से कहा – 'कि जो आप अपने जीवन में जी रही हैं, धर्म का आचरण उससे अलग नहीं होता। धर्म हमें यही तो सिखाता है कि औरों के प्रति प्रेम और सहानुभूति रखो; अपने जीवन में नैतिकता के ऊँचे मापदंड रखो; रिश्वत को भी चोरी के समान पाप मानो।' माना कि वह महिला जज धर्म की दो-चार MITEEN 135 For Personal & Private Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रियाओं के लिए वक़्त नहीं निकाल पा रही है, लेकिन उस महिला का उठना-बैठना भी धर्म का आचरण है और अदालत की कुर्सी पर बैठकर न्याय देना भी धर्म को ही जीना है। केवल तौर-तरीक़ों में ही अटके रह गए तो हम धर्म की अंतरात्मा की आवाज़ नहीं सुन पाएँगे। धर्म हमें बाँधता नहीं है। धर्म हमें जीना सिखाता है। धर्म जीवन जीने की कला है। मंदिर तो धर्म का पहला पगथिया है, हमें मंदिर तक ही सीमित नहीं रहना है। धर्म जीवन के साथ जुड़े तो वह मुक्ति की पायजेब बने । धर्म मुक्ति का शंखनाद है, उसे पाँव की बेड़ियाँ मत बनाइए। मंदिर तो हमारी आस्था के केन्द्र हैं। ईश्वर की इबादत करने के पवित्र स्थान है। दुनिया के सारे मंदिर ईश्वर के मंदिर है। फिर चाहें आप उसमें महावीर की मूर्ति बैठाएँ या महादेव की। राम की छवि लगाएँ या रिषभदेव की। इस भेद से क्या फ़र्क पड़ता है। असली चीज़ है मंदिर के प्रति मंदिर का भाव। भगवान मूर्तियों में कम, हमारी भावनाओं में ज़्यादा निवास करता है। ___ मंदिरों में मूर्तियों के भेद भी निराले हैं। किसी मूर्ति के हाथ में धनुष टाँग दिया तो वह राम की मूर्ति हो गई और उसी के हाथ में चक्र रख दिया तो वह कृष्ण में बदल गई। किसी मूर्ति के कंधे पर दुपट्टा रख दिया तो उसे बुद्ध समझ लिया और दुपट्टा हटा लिया तो वे महावीर बन गए।अगर आज का मनुष्य पत्थर पर उकेरी जा रही दो-चार रेखाओं के आधार पर अपने आपको बाँट बैठा, तो फिर उसकी बुद्धि वैज्ञानिक कहाँ हुई ? उसमें दिमागी परिपक्वता कहाँ आई? इंसान स्वयं भगवान का रूप है । यदि तुम्हें पूजा और इबादत करनी है तो मंदिर के बाहर भी भगवान के दर्शन करो। तुम मानव की भी पूजा करो, मानवता को पूजो। यह भारतवासियों की ही महिमा है कि वे लोग पत्थर की भी पजा कर सकते हैं. लेकिन अफ़सोस तो इस बात का हैं कि वे जीवित इंसान में भगवान को नहीं देख पाते, प्राणिमात्र में ईश्वर की संपदा स्वीकार नहीं कर पाते। मेरे लिए तो आप सब भी प्रभु के रूप हैं । मेरा आप सबको नमन है। मैं तो अपना जन्म-दिन भी किसी अनाथालय या नेत्रहीन विकास संस्थान के बीच मनाया करता हूँ। मैं पहले अपने अंतरमन के मंदिर में परमात्म-चेतना की इबादत करता हूँ। फिर मंदिर में जाकर प्रभु के दिव्य रूप का आनंद लेता हूँ तत्पश्चात् दीन-दुखियों के बीच अपने सुख के कुछ पल बाँटता हूँ। अपने हाथों से उन्हें भोजन कराने का आनंद लेता हूँ और फिर जो बचा हुआ भोजन होता है उसमें से कुछ अंश प्रसाद मानकर ग्रहण करता हूँ। जीवन में सदा याद रखना कि अपने नाम से कहीं कमरा बनवा देना या मंदिर बनवा देना धर्म अवश्य है पर भूखों को भोजन और प्यासों को पानी पिलाना जीवन का सच्चा धर्म है। मेरा अनुरोध है कि आप भी हर काया में कायानाथ के दर्शन करें । भौतिक शरीर में भी भगवान को निहारें। आखिर, हमारी दृष्टि पर ही तो निर्भर करता है कि हम पत्थर में भी प्रभु की मूरत निहार सकते हैं और एक इंसान में भी जगदीश्वर की छवि For Personal & Private Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ का आनंद पा सकते हैं। हम केवल बाहर के तौर-तरीकों में न उलझें, वरन् धर्म की मूल आत्मा से जुड़ें। बाहर के तौर-तरीके और रूप-रूपाय बड़े विचित्र और बड़े निराले हैं। कुछ परंपराएँ कहती हैं कि जटा बढ़ाने में धर्म है, तो कुछ कहती हैं कि कटाने में धर्म है। जो बढ़ाने में धर्म मानती हैं, उनमें भी कुछ कहती हैं कि चोटी मोटी होनी चाहिए, कुछ कहती हैं पतली होनी चाहिए। जो चोटी काटने में विश्वास रखते हैं, उनमें से कुछ कहते हैं कि बालों को नोच-नोचकर उतारने में ही धर्म है, कुछ इसका विरोध भी करते हैं। धर्म आखिर कहाँ है ? क्या बालों को बढ़ाने, घटाने या कटाने में धर्म का स्वरूप समाहित है ? व्यक्ति ने जटा और चोटी की तरह ललाट के तिलक को लेकर, मुँहपत्ती, दाढ़ी, मूंछ, माला को लेकर सौ-सौ रूप-रूपाय खड़े कर लिए हैं। कपड़ों पर ध्यान दें तो कोई कहते हैं कि कपड़े काले रखो; कोई कहते हैं कि पीले रखो; कोई कहते हैं कपड़े केसरिया हों, तो कोई कहते हैं कि कपड़े सफ़ेद हों । दिगम्बर तो हर कपड़े से परहेज़ करते हैं। किसे मानें और किसे न मानें ? भोजन में भी कच्ची रसोई और पक्की रसोई का आग्रह । उसमें भी कुछ कहते हैं कि जब मेरा खाना बने, तब तुमने वहाँ पाँव भी रख दिया तो खाना खाने के काबिल न रहेगा। महावीर जैसे लोग तो चांडालों को भी अपनी धर्म-सभा में संन्यास दे दिया करते थे और हम राह चलते किसी हरिजन को छूते हुए भी सोचते हैं । 1 मैं जब किसी भगवान महावीर के मंदिर में जाता हूँ, तो वहाँ लिखा मिलता है जैन दिगम्बर तारणपंथी या जैन श्वेतांबर तपागच्छ या जैन श्वेतांबर खरतरगच्छ मंदिर । अब अगर महावीर मंदिर या जिन मंदिर कहो तो बात समझ में आती है, लेकिन जैन मंदिर या हिन्दू मंदिर की बात समझ से परे है । उसमें भी यह आग्रह कि यह श्वेताम्बर, वह दिगम्बर, यह तपागच्छ, वह खरतरगच्छ । मंदिर पर तो भगवान का स्वामित्व होता है, लेकिन हमने अपने पंथों का मालिकाना हक उस पर थोप दिया है। अब तो लक्ष्मी या विष्णु के मंदिर नहीं, 'बिड़ला मंदिर' बनते हैं । सब अपने-अपने नामों के मंदिर बना रहे हैं, सब अपनी ही पूजाआराधना में लगे हैं, परमात्मा की फ़िक्र ही किसे है ? ' परमात्मा' तो 'क्यू' में सबसे पीछे चला गया है और सबसे आगे हम आ चुके हैं। यह सब ईगो का झमेला है। आप ईगो को कहिए गो और फिर कीजिए ईश्वर की इबादत । - मानता हूँ धर्म के बाहरी रूपों और तौर-तरीकों का अपना मूल्य है, लेकिन असली मूल्य तो धर्म की आत्मा का है। लिंग, वेष, रूप-रूपाय ये सब तो पहचान के लिए हैं, बाकी मूल तत्त्व तो अच्छे गुणों को अपने जीवन में जीने से है । यह बात सही है कि ईसाई और मुसलमान दोनों ही कट्टर कौमें हैं । आप चाहें तो आप भी कट्टर बन सकते हैं, पर कोरे पंथबाजी और बयानबाजी के कट्टर न बनें। जीवन में जिन उसूलों को अपनाया है उन उसूलों पर अडिग रहने की कट्टरता अपनाएँ। आज मुसलमान जिस तरह से सौ काम छोड़ - For Personal & Private Use Only LIFE 137 Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कर भी अपनी नमाज़ अदा करता है, और हज़ार कष्ट झेल कर भी रोज़ा रखता है। आप भी ऐसी कोई कट्टरता जीवन के साथ जोडिए तो सही। धर्म खुद आपकी पहचान बनेगा। मैं मुसलमानों की कौमी कट्टरता का समर्थन नहीं करूँगा पर उनकी धार्मिक कट्टरता से प्रेरणा लेने की बात अवश्य करूँगा। ___ मेरे देखे, दुनिया भर के समस्त धर्मों के नामों और तौर-तरीकों के स्तर पर भेद है, किन्तु उनकी मूल भावना और मूल संदेश एक ही है। हम अगर सत्यानुरागी और सत्यग्राही बनकर हर धर्म के करीब जाएँगे, तो हर धर्म से अपने लिए अच्छाइयों को लेकर आएँगे। हर धर्म की अपनी खूबियाँ हैं; अच्छे-से-अच्छे विचारक, चिंतक, मनीषी और चमत्कारी लोग हर धर्म में हैं। हम अपनी ओर से कभी भी किसी भी धर्म को हेय न मानें, हर धर्म की अच्छाइयों को अपने जीवन में ग्रहण करने की कोशिश करें। हम जिस धर्म के अनुयायी हैं, हमें धर्म-परिवर्तन करने की आवश्यकता नहीं है। अगर आवश्यकता है तो अपने धर्म की गहराइयों में उतरने की आवश्यकता है, दूसरों के धर्मों से कुछ सीखने और ग्रहण करने की आवश्यकता है। हमें धर्म के बाहरी रूप से नहीं, अपने जीवन के उत्थान, कल्याण और प्रगति से सरोकार है । जिस भी मार्ग को जीने से जीवन का आध्यात्मिक कल्याण हो, वह हर मार्ग धर्म का मार्ग है। हर धर्म का संदेश हर व्यक्ति के लिए है। ऐसा नहीं है कि जैन धर्म के संदेश जैनों के लिए हो। महावीर के अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकान्त को जीने का अधिकार केवल जैनों को ही नहीं है, वरन् प्राणिमात्र को यह अधिकार प्राप्त है। गीता में वर्णित कर्मयोग, भक्तियोग और अनासक्ति योग का संदेश केवल हिंदुओं के लिए ही नहीं है और न ही दया, शील, समाधि और प्रज्ञा की प्रेरणा केवल बौद्धों के लिए ही है। प्रेम और सेवा के द्वारा ईश्वर की आराधना का स्वरूप ईसाइयों के लिए भी उतना ही है, जितना हिंदुओं और जैनों के लिए है। अगर मुसलमान कहते हैं कि सामाजिक छुआछूत और भेदभाव से ऊपर उठकर सारी इंसानियत को गले लगाया जाए, ईमान, इंसानियत और इबादत को अपने जीवन में स्वीकार किया जाए तो यह प्रेरणा प्राणिमात्र के लिए है। ये जीवन मूल्य हर धर्म में हैं। इस बात का मूल्य नहीं है कि कौनसी प्रेरणा किस किताब ने दी, बल्कि मूल्य इस बात का है कि कौन-सी किताब इंसानियम के कितनी काम आई। धर्म को जितना गुणानुरागी बनकर जीएँगे, हर धर्म से कोई-न-कोई अच्छाई ग्रहण कर ही लेंगे। मैंने भी अपने जीवन में कई धर्मों से कई अच्छी बातें सीखी हैं। मैंने महावीर से अहिंसा का पाठ तो सीखा ही है, अनेकान्त की प्रेरणा तो पाई ही है। मैंने बुद्ध से साधना के क्षेत्र में चित्तानुपश्यना' और जीवन में मध्यम मार्ग की कला पाई है। राम से घर-परिवार की मर्यादा और त्याग-परायणता का गुर सीखा है, तो कृष्ण से कर्मयोग का पाठ पढ़ा है। मेरे जीवन पर रामायण और गीता दोनों का ही ज़बरदस्त प्रभाव रहा है। हालांकि मैंने रामायण और गीता का नाम लिया है, पर सच्चाई तो यह है कि मुझे रामायण, गीता और महावीर के जिन सूत्र में कोई फ़र्क ही नज़र नहीं आता। ये तीनों कोई स्वतंत्र शास्त्र नहीं हैं। ये तीनों एक-दूसरे के पूरक हैं। AUTFE 138 For Personal & Private Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीनों को क्रमशः रखने पर ही एक संपूर्ण धर्म-शास्त्र का निर्माण होता है। हालांकि बाइबिल और कुरआन पर मेरा पूरा अधिकार नहीं है, पर जीसस से मैंने प्रेम, शांति और क्षमा की भावना ग्रहण करने की कोशिश की है, और मुसलमानों की धार्मिक आस्था का मैंने खूब अनुमोदन किया है। मैं मानता हूँ कि मुसलमानों के द्वारा ऊँट-बकरों की बली देना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है, पर जब अपने ही हिन्दू भाइयों को बली देते या मांस खाते हुए सुनता हूँ तो मुसलमानों से रखी जाने वाली दूरी अपने आप ही मिट जाती है। हम जैन हैं और जैन भी सभी हिन्दू ही होते हैं । इस भारत में जन्म लेने वाले सभी भारतीय हैं और हिन्दुस्तान में जन्म लेने वाले हिन्दू हैं । जैन और हिन्दू कोई अलग-अलग नहीं हैं । भेद के ज़माने गए, अब तो एक-दूसरे को गले लगाने का ज़माना आ गया है। एक-दूसरे से लड़कर भला हम अब तक क्या पा सके हैं ? हिन्दू और मुसलमान दोनों ने ही आपस में लड़कर इस पावन धरती को कष्ट ही दिया है। हम अगर जात-पांत-पंथ को भूलकर इंसानियत की इज़्ज़त करना सीखें, तो यह धरती स्वर्ग और जन्नत जैसी हो जाएगी। एक अच्छा और नेक इंसान बनना अपने आप में एक अच्छा हिन्दू, एक अच्छा जैन, एक अच्छा मुसलमान खुद ही बन जाना है। एक अच्छा मुसलमान बनने का अर्थ यह नहीं है कि तुम एक अच्छे इंसान बन गए, पर यदि तुम एक अच्छे इंसान बन जाओ, तो तुम अपने आप ही एक अच्छे जैन, एक अच्छे हिन्दू और एक अच्छे मुसलमान बन जाओगे, क्योंकि तब तुम्हारे जीवन में कोई विरोधाभास न होगा। दुनिया के हर धर्म ने आखिर इंसान को इंसान के काम आना सिखाया है। जीवन को पवित्रता से जीने का पाठ पढ़ाया है। ईश्वर की प्रार्थना के साथ हर दिन की शुरुआत करने का मंत्र दिया है। माता-पिता की इज़्ज़त करो, घर में सभी मिल-जुल कर रहो, दीन-दुखियों के काम आओ, अपनी इच्छाओं और विकारों पर विजय प्राप्त करो। दुनिया के हर धर्म की हमें यही सब सिखावन है। धर्म को तो जो जिए उसका धर्म है। बाकी धर्म तो वैसा ही है जैसे अलमारियों में सजी हुई क़िताबें। एक बहुत पुरानी घटना है। कहते हैं कि एक बार एक नौका बीच समुद्र से गुजर रही थी कि अचानक बड़े जोर का तूफ़ान उठा। नौका डगमगाने लगी। लोगों में हाहाकार मच गया। सभी के हाथ प्रार्थना में खड़े हो गए। तभी एक यक्षराज प्रगट हुआ। यक्षराज ने कहा, 'यह तूफान शांत हो सकता है, पर तुम्हें मेरी एक शर्त माननी होगी और शर्त यह है कि तुम्हें अपने-अपने धर्म का त्याग करना होगा। जो व्यक्ति अपने धर्म का त्याग करने के लिए तैयार है, उसकी जान बच जाएगी। जो धर्म को त्याग करने को तैयार नहीं है, वह इस उफनती लहरों की भेंट चढ़ जाएगा। नौका पर सवार सभी लोग यक्षराज के परामर्श पर सहमत हो गए। मरता आख़िर क्या न करता?' फिर भी एक व्यक्ति ऐसा बचा था जो मौन रहा। वह व्यक्ति था अरहन्नक। उससे भी पछा, तो उसने जवाब दिया - For Personal & Private Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यक्षराज, तुम मुझसे मेरी जान ले सकते हो, लेकिन मुझसे मेरा धर्म नहीं छीन सकते । तुम्हीं बताओ, क्या धर्म कोई चोला है, जिसे जब चाहें तब पहन लिया जाए और जब चाहें तब उतार फेंकें? धर्म तो मेरी आत्मा का स्वभाव है। धर्म कोई दमड़ी है, जिसे खरीदा जा सके और न ही धर्म कोई पगड़ी है जिसे जब चाहें तब उतारा और पहना जा सके। धर्म तो चमड़ी है जो जब तक हम जिएँगे हमारे साथ ही जिएगी और मरेगी। अरहन्नक ने कहा, यक्षराज तुम्हीं बताओ कि मैं धर्म को अपने जीवन से कैसे अलग करूँ? अरहन्नक के उत्तर से यक्षराज प्रभावित हुआ और तूफ़ान अनायास थम गया। ऊपर के जनेऊ और तिलक-छापों को तो अलग किया जा सकता है, पर अपने स्वभावजन्य प्रेम, शांति, करुणा और आनंद जैसे धर्म को कैसे अलग कर सकोगे। धर्म तुम खुद हो। धर्म तुम्हारी परछाई है। धर्म तुम्हारी ज्योति है। धर्म है तो तुम हो और तुम हो तो धर्म है। तौर-तरीकों का त्याग तो संभव है, मगर धर्म का त्याग संभव नहीं है। हमारा स्वभाव, हमारी दृष्टि, हमारी मर्यादा, हमारा मांगल्य-भाव ही धर्म है। विश्वप्रेम और विश्वशांति में ही धर्म की आत्मा समायी है। आपका खाना, पीना, उठना, बैठना- सभी धर्म से जुड़े हुए हों । अस्पताल से गुजरते हुए पान की पीक दीवार पर गिराई है या पीकदान में थूकी है, यह भी तुम्हारे लिए धर्म और अधर्म की कसौटी हो सकती है। सड़क पर चलते समय किसी राहगीर को बचाने या उससे टकराने में भी धर्म और अधर्म की समीक्षा की जा सकती है। मैं आपको धर्म के बारे में प्रेक्टिकल होने का अनुरोध कर रहा हूँ। मेरी समझ से धर्म और जीवन दोनों अलग-अलग पहलू नहीं है। धर्म और जीवन दोनों एक ही सिक्के के पहलू हैं। अब फिर से धर्म का मूल्यांकन हो, धर्म हमारे रोजमर्रा के जीवन से जुड़ जाना चाहिए। आप बस से यात्रा करते हैं और आपको सिगरेट पीने की तलब होती है। आप झट से सिगरेट सुलगा लेते हैं, बिना यह सोचे-विचारे कि आपकी इस एक सिगरेट का धुआँ कितने लोगों के लिए परेशानी का सबब बनेगा? दूसरों को धुआँ निगलने के लिए मज़बूर करना अधर्म का आचरण है, वहीं किनारे जाकर सिगरेट को फूंकना विवेकपूर्वक धर्म को जीना है। अगर आप सुबह खड़े होकर अपने माता-पिता को प्रणाम करते हैं, उनके दुःख-दर्दो को दूर करने का प्रयास करते हैं तो यह आपकी ओर से धर्म का आचरण है। मरने के बाद उन पर सैंकड़ों रुपयों के फूल चढ़ाना और जीते-जी उन्हें दुत्कारना या सताना, आप स्वयं सोचिए कि क्या वह धर्म है या अधर्म? अभी हाल ही जयपुर का एक किस्सा पढ़ने को मिला। पढ़ने को क्या मिला, पूरे देश ने ही टी.वी. पर उसके हाल देखे कि किस तरह एक बहू के द्वारा बूढ़ी-बुज़ुर्ग सास को प्रताड़ित किया। किसी प्रतिष्ठित परिवार के द्वारा इस तरह का काम किया जाना सचमुच रोने जैसा काम है। बहू के द्वारा सास को बंगले से बाहर निकाल कर कार-गैरेज में रखना, पौंछा लगे पानी से नहलाना और बीते कल की बची रसोई को खाने CLIFEN 140. For Personal & Private Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ के लिए विवश करना... । अब आप ही मुझे बताइए कि अगर घरों के भीतर ये हाल हैं तो फिर काहे का धर्म और काहे के दान-पुण्य । मैंने जब यह घटना पढ़ी और सुनी तो मुझे बड़ी पीड़ा हुई। मैंने ईश्वर से प्रार्थना की - सबको सन्मति दे भगवान । - धर्म केवल यह नहीं कहता कि तुम सुबह प्राणायाम और प्रार्थना करो, वरन् जिन माइतों से जनमे हो उनके प्रति अपने फ़र्ज़ अदा करो। बड़ों 'इज़्ज़त और छोटों से प्यार-मोहब्बत करो । केवल पत्नी का ही नहीं वरन् अपनी बहिन का भी ख़याल रखो । केवल साले की ही जी - हजूरी मत करो। वरन् आप अपने सगे भाई का भी ख़याल करो । जिस चूल्हे को तुम जलाने जा रहे हो, पहले उस पर ध्यान दो कि कहीं उसके बर्नर में चीटियाँ या कीड़े-मकोड़े तो दुबके नहीं बैठे हैं। गैस जलाने से पहले उन जीवों को वहाँ से हटा लिया, तो अपने आप धर्म का आचरण हो गया। धर्म के व्यावहारिक रूप में आप सामायिक करें, प्रतिक्रमण करें, मगर यह देखें कि जिन उद्देश्यों को लेकर आप यह सब कर रहे हैं, क्या उन उद्देश्यों की पूर्ति हो रही है ? कहीं ऐसा तो नहीं कि हम दान-पुण्य तो खूब कर रहे हैं, मगर महज़ नाम के लिए ? नाम के लिए दिया गया दान तो केवल पत्थर पर जाकर अटक जाता है और गुप्त रूप से दिया गया सहयोग और समर्पण कृतपुण्य हो जाता है। दुनिया में नाम रहा ही किसका है । यहाँ सब चला चली के खेल हैं। दो इसलिए क्योंकि ईश्वर ने तुम्हें दिया है। दान दो, तो अपरिग्रह-भाव से । — आप उपवास करते हों तो बड़े प्रेम से करें, पर कहीं ऐसा न हो कि उपवास केवल निराहार रहने तक का होकर रह जाए और चित्त के क्रोध-कषाय मिट ही न पाएँ। उपवास करने वाले तपस्वी अक्सर मुझसे कहते हैं - हमने एक महीने का उपवास किया, जिसमें दो बार मुँह में कच्चा पानी चला गया। इसका दंड क्या होगा? क्या हमें दंडस्वरूप फिर उपवास करने होंगे ? मैं उनसे कहता हूँ - अनजान अवस्था में पानी चला गया होगा । अनजाने में हुआ दोष खुद ही माफ़ होता है, पर तुम मुझे यह बताओ कि तुमने एक महीने के उपवास में या नवरात्रा के व्रत में कितनी बार क्रोध और कषाय किया ? अगर एक मासक्षमण में व्यक्ति एक बार क्रोध-कषाय कर लेता है, तो उसको दो बार मासक्षमण (एक माह का उपवास) करने का दंड मिलता है। क्या कोई यह दंड स्वीकार करना चाहेगा ? तपस्या इस भाव से होनी चाहिए कि शरीर के प्रति हमारी आसक्ति टूट जाएँ, और मन में पलने वाले क्रोध-कषाय मिट जाएँ । कल की ही बात है । मेरा एक घर में जाना हुआ। उस घर की मालकिन ने पाँच उपवास किये थे। मैंने उनके हाथ से कैर के दो-चार दाने लिए। घर के सारे लोग उमड़ पड़े कि आप जो कहेंगे, वह प्रतिज्ञा हम ले लेंगे, मगर हमारे से आप कुछ स्वीकार करें। गृहस्वामिनी, जिसने पाँच उपवास किए थे, कहने लगी, पूज्यश्री, 'आप इन्हें जमीकंद (आलू, गाजर, मूली आदि) छुड़वा दीजिए।' यह सुनकर मैं मुस्कुरा पड़ा । For Personal & Private Use Only LIFE 141 . Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यक्ति से क्रोध-कषाय, राग-द्वेष, वैर-वैमनस्य तो छूटते नहीं और छोड़ने के नाम पर आलू, गाजर, मूली को छोड़ना चाहते हैं । तुम्हारे जीवन का वास्तविक कल्याण कषायों और विकारों के त्याग से ही होगा। तुम मूल मुद्दे पर आओ और ऐसे इंतज़ाम करो कि जिनसे तुम्हारे अंतरमन के कषाय टूट सकें, भीतर का तमस छंट सके, आत्मा निर्मल हो सके। धर्म तुम्हें यही प्रेरणा देता है कि तुम वे सब कार्य करो जिनसे तुम्हारे क्रोधकषाय कटें, भीतर की गाँठे शिथिल हों, लेश्याएँ निर्मल हों, तुम सहज, सरल, सुखमय चेतना के स्वामी बनो । मैंने उस महिला के पतिदेव से कहा कि तुम एक काम करो कि आज से दो घंटे मौन रखोगे। वह बगलें झाँकने लगा कि दो घंटे मौन ! आदमी के लिए क्रोध- कषायों का त्याग करना, प्रतिक्रियाओं को छोड़ना कितना कठिन हो जाता है और गाजर-मूली को छोड़ना कितना आसान हो जाता है। वे बोले – 'दो घंटे तो बहुत ज्यादा होते हैं, एक घंटे का नियम दिला दीजिए।। मैंने कहा - 'ठीक है, समय तय कर लीजिए।' उन्होंने कहा - 'रात को दस से ग्यारह बजे ।' मैंने कहा - 'यदि मौन लेना है, तो उस समय लेओ जब घर में सब लोग हों। घर में सब सो जाएँ उसके बाद एक घंटा क्यों, दस घंटे का मौन रखो, तो भी कोई फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला । मौन की सार्थकता तभी है जब सब बोलें, पर तुम चुप रहो । धर्म को जीवंत कीजिए। एक महिला कह रही थी मैं रोज़ाना चार घंटे मौन रखती हूँ। मैंने पूछा कितने बजे से कितने बजे तक ? तो कहने लगी- दोपहर में बारह से चार बजे तक। मैंने पूछा उस समय घर में और कौन रहता है ? उसने जवाब दिया- अकेली ही रहती हूँ । पतिदेव दुकान चले जाते हैं। मैंने कहाअब उस समय मौन नहीं रहोगे तो क्या दीवारों से बाते करोगे ! - एक महिला ने बताया कि उसकी सास रोज़ाना तीन सामायिक करती है। मैंने पूछा – सामायिक में क्या करती हैं ? तो जवाब मिला- टी.वी. देखती हैं । अब ज़रा आप ही बताओ कि यह कैसा धर्म ! तुम धर्म का छापा - तिलक तो लगा रहे हो, पर जी कुछ और रहे हो। मेरे भाई, ऐसे कार्य करो कि जिनसे तुम्हारे जीवन में निखार आए, क्रोध-कषाय कम हों और चित्त में शांति, समता, सरलता आए। आपके द्वारा सदैव यही प्रयास हो कि औरों को सुख पहुँचे, औरों को सुकून मिले। मूल बात यह है कि आपका व्यवहार कैसा है, आप जो सामायिक व्रत- प्रतिक्रमण-प्रार्थना करते हैं, वे आपके व्यवहार में प्रकट होकर आते हैं या नहीं। अगर उपवास और सामायिक के बाद भी चित्त में शांति और समता नहीं उतरती तो वे सारे व्रत और उपवास मात्र समय-निर्वाह है। धर्म अन्तरात्मा से जुड़ने का उपक्रम है। आत्मबोध और आत्म शुद्धि का लक्ष्य लिये हुए किसी भी कार्य को सम्पादित करो, वह धर्म की आभा लिए हुए होगा। धर्म बहुत छोटा-सा है । उसका ढिंढोरा ज्यादा नहीं है। तुम धर्म को समझो, धर्म के मर्म को समझो और फिर अपने दैनिक जीवन में, अपने व्यावहारिक 142 For Personal & Private Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवन में जितना उसे जी सकते हो, अधिकाधिक जीने की कोशिश करो। अपनी दृष्टि को सदा विराट रखो। महावीर से अनेकान्त की बात सीखो और हर किसी परम्परा से, धर्म से, संस्कृति से, महापुरुष से, संस्कृति से अच्छाई ग्रहण करने की कोशिश करो। जो बातें हमारे जीवन को और अधिक सरल-सहज-सहृदय बनाए, उन्हें ग्रहण करने के लिए प्यार से चातक की तरह प्रयत्नशील रहो। अपने आपको किसी गुरुडम या परम्परा विशेष से जोड़ने की बजाय अपने आपको धार्मिक बनाने के प्रयास ही दमदार होते हैं। सबका सम्मान करो, सबके जीवन का सम्मान करो। धर्म का पहला सूत्र है : सत्यनिष्ठ जीवन जीओ। धर्म का दूसरा मंगलकारी सूत्र है : ज़रूरत से ज्यादा संग्रह मत करो और वक़्त-बेवक़्त औरों के काम आने की भावना रखो। धर्म का तीसरा सूत्र है : अपने शील, चरित्र और प्रामाणिकता पर दृढ़ता से कायम रहो। धर्म का चौथा सूत्र है : अपने विचारो को किसी पर थोपो मत । यदि कोई बुरा व्यवहार कर भी दे, तब भी अपनी ओर से सकारात्मक व्यवहार करो। बड़े छोटे-छोटे सूत्र हैं जो धर्म को आपके, मेरे, सबके जीवन को प्रकाशित कर सकते हैं । सबके श्रेय और सुख को साध सकते हैं । मेरा अनुरोध यही है कि धर्म के नाम पर जीवन में ऊपर की लीपापोती करने की बजाय उसे अपने वास्तविक जीवन में आत्मसात् होने दो। फिर देखो धर्म किस तरह हमें हमारे भीतर के नरक से मुक्त करता है और किस तरह हमें अपने वास्तविक स्वर्ग का सख प्रदान करता है। धर्म से मैंने जीवन का सुख और स्वर्ग पाया है। आप या हर कोई इसे पा सकता है। स्वर्ग आपके इर्द-गिर्द ही है। उसकी ओर ध्यान दो तो वह हमारा हो जाएगा, हमें उसके साथ आत्मसात् हो जाना चाहिए। LIFE 143 For Personal & Private Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लागत से भी कम मूल्य पर श्रेष्ठ साहित्य आपकी सफलता आपके हाथ : श्री चन्द्रप्रभ सफलता हर किसी को चाहिए, पर उसे पाएँ कैसे, पढ़िये इस प्यारी पुस्तक को। पृष्ठ 110, मूल्य 25/ शांति, सिद्धि और मुक्ति पाने का सरल रास्ता : श्री चन्द्रप्रभ अध्यात्म की सहज-सर्वोच्च स्थिति तक पहुँचाने वाला एक अभिनव ग्रन्थ । पृष्ठ : 200, मूल्य 35/ सांगिट्रि पुरुषार्थ ऐसे जिएँ: श्री चन्द्रप्रभ जीने की शैली और कला को उजागर करती विश्व-प्रसिद्ध पुस्तक। स्वस्थ, प्रसन्न और मधुर जीवन की राह दिखाने वाली प्रकाश-किरण। पुस्तक महल से भी प्रकाशित। पृष्ठ : 122, मूल्य 25/लक्ष्य बनाएँ, पुरुषार्थ जगाएँ : श्री चन्द्रप्रभ जीवन में वही जीतेंगे जिनके भीतर जीतने का पूरा विश्वास है। सफलता के शिखर तक पहुँचाने वाली प्यारी पुस्तक। पुस्तक महल से भी प्रकाशित । पृष्ठ : 104, मूल्य 25/बातें जीवन की, जीने की : श्री चन्द्रप्रभ युवा-पीढ़ी की समसामयिक समस्याओं पर अत्यंत तार्किक एवं मनोवैज्ञानिक मार्गदर्शन। 'एक लोकप्रिय पुस्तक। पृष्ठ : 90, मूल्य 25/बेहतर जीवन के बेहतर समाधान : श्री चन्द्रप्रभ जीवन की व्यावहारिक एवं आध्यात्मिक समस्याओं का समाधान देती एक लोकप्रिय पुस्तक। पृष्ठ : 130, मूल्य 25/ बार तीवत ती तीने यो अपनाए जिनकी वनाधि योग अपनाएँ, जिंदगी बनाएँ : श्री चन्द्रप्रभ ध्यान-योग में प्रवेश पाने के लिए पंजी के रूप में सफल मार्गदर्शन। एक चर्चित पुस्तक। पृष्ठ 100, मूल्य 25/संबोधि : श्री चन्द्रप्रभ साधना के महत्वपूर्ण पहलुओं पर उद्बोधन। सर्वजन हिताय ; सर्वजन सुखाय। पृष्ठ 100, मूल्य 25/ संबोधि बहतर जीवन बेहतर समाधान योगम जीवन जिएँ योगमय जीवन जीएँ : श्री चन्द्रप्रभ सफल और सार्थक जीवन की आध्यात्मिक दृष्टि । योग पर प्यारा प्रकाशन। पृष्ठ 100, मूल्य 25/ जागा मेरीगाथा विकास and जागो मेरे पार्थ : श्री चन्द्रप्रभ गीता की समय-सापेक्ष जीवन्त विवेचना। भारतीय जीवन-दृष्टि को उजागर करता प्रसिद्ध ग्रन्थ। फुल सर्कल,दिल्ली से भी प्रकाशित। पृष्ठ : 230, मूल्य 45/जागे सो महावीर : श्री चन्द्रप्रभ भगवान महावीर के विशिष्ट सूत्रों पर अमृत प्रवचन । अन्तर्मन में अध्यात्म की रोशनी पहुंचाता प्रकाश-स्तम्भ। ज्ञानवर्धन एवं मार्गदर्शन के लिए महावीर पर नई दृष्टि। पृष्ठ 252, मूल्य 35/कैसे करें व्यक्तित्व-विकास :श्री चन्द्रप्रभ जीवन और व्यक्तित्व-विकास पर बेहतरीन-बाल मनोवैज्ञानिक प्रकाशन। पृष्ठ 100, मूल्य 25/ कैसे करें आध्यात्मिक विकास और तनाव से बचाव : श्री चन्द्रप्रभ शरीर और मन के रोगों से छुटकारा दिलाते हुए स्वास्थ्य, शांति और मुक्ति का आनंद प्रदान करने वाला बेहतरीन मार्गदर्शन। पृष्ठ 120, मूल्य 25/सकारात्मक सोचिए, सफलता पाइये : श्री चन्द्रप्रभ स्वस्थ सोच और सफल जीवन का द्वार खोलती लोकप्रिय पुस्तक। पृष्ठ 120, मूल्य 20/ श्री जितयशा श्री फाउंडेशन बी-7, अनुकम्पा द्वितीय, एम. आई.रोड, जयपुर, (राज.) फो. 2364737 For Personal & Private Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लाइफ हो तो ऐसी! दूसरों का मैनेजमेंट करना किसी भी दिखाया है, अपितु हमें हमारी समझदार व्यक्ति के लिए आसान वास्तविक शांति और सफलता का काम है, पर खुद अपनी ही जिंदगी स्वाद भी दिया है / इस किताब में का मैनेजमेंट करना इंसान के लिए जहाँ जिंदगी की खुशियाँ बटोरने के एक बहुत बड़ी चुनौती है / रोजमर्रा गुर बताए गए हैं, वहीं मन को मजबूत की जिंदगी में चिंता, क्रोध और तनाव करके किस्मत को मुट्ठी में लेने का जैसी ढेर सारी समस्याओं का सामना राज भी बताया है / जीवन–प्रबंधन करना पड़ता है। ऐसी परिस्थिति में हममें से हर किसी को चाहिए एक का रास्ता दिखाते हुए केरियर और ऐसी किताब जिसमें हमारी हर सफलता के सीधे सोपान दर्शाए हैं, समस्या के सारे समाधान हमें मिल वहीं हमें हमारे जीवन से ही धर्म की जाएँ / महान जीवन-दृष्टा पूज्य श्री शुरुआत करने की प्रेरणा दी है / चन्द्रप्रभ ने इस अनूठी किताब में निश्चित तौर पर यह पुस्तक आपके शानदार जीवन के दमदार नुस्खे लिए एक गुरु का काम करेगी, देकर न केवल हमें हमारी जूझती जो देगी आपको 100% सफलता जिंदगी से बाहर निकलने का रास्ता की सीढ़ियाँ / Rs. 50/ For Personal & Private Use Only