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यदि आप सुबह-शाम सकारात्मक सशक्त गहरी सांस लेते हैं, मन को शांतिमय और विकार रहित रखने का प्रयास करते हैं और आहार-विहार में संयम बरतते हैं, तो अस्वस्थ होने की संभावना वैसे भी कम हो जाती है। निश्चय ही स्वस्थ रहना व्यक्ति के अपने हाथ में है, बशर्ते वह खुद थोड़ा जागरूक हो।
जब खाना खाने बैठें तो यह ध्यान रखें कि हम भारतीय लोग हाथों से खाना खाते हैं और अँगुलियों का उपयोग करते हैं। पहला काम यह करें कि जब खाना खाने के लिए बैठें, उससे पहले अपने हाथों को देखें कि कहीं नाखून बढ़े हुए तो नहीं हैं। अगर नाखून बढ़े हुए हैं तो काट लीजिए। नाखून साफ रखना आरोग्य के ताले की पहली चाबी है। अगर चाकू, छुरी, चम्मच से खाना खाते हैं और नाखून बढ़ाते हैं तब कोई हर्ज नहीं है। नाखून बिल्कुल साफ़ हों। हमेशा हाथ-मुँह धो कर भोजन करने के लिए बैठें। ध्यान रखें कि न तो कभी किसी को अपना जूठा खिलाएँ और न किसी का जूठा खाएँ। खाना खाएँ तो ध्यान रखें कि जब कौर मुँह में डालें तो दाँतों को इस तरह चलाएँ, भोजन को इस तरह चबाएँ कि होंठ तो हमारे बन्द रहें और दाँत भीतरही-भीतर चलें। हम जो भोजन मुँह में खा रहे हैं वह भोजन यदि सामने वाले को दिखाई दे रहा है तो यह असभ्यता और फूहड़पन हुआ। भोजन मौनपूर्वक करना मंगलकारी होता है।
जब खाना खा लें तो देख लें कि कहीं जूठा तो नहीं छोड़ा है हमने । अगर बच गया है तो खा लीजिए। संभव है थोड़ा नमक ज्यादा हो किसी चीज़ में। अगर स्वास्थ्य के कारण किसी चीज़ को छोड़ते हैं, तो उचित है मगर जीभ के कारण किसी चीज़ को छोड़ते हैं तो मत छोड़िए। जीभ का तो नियम है, 'उतरा घाटी और हुआ माटी।' जीभ तक ही सारे स्वादों का भेद है, जीभ से नीचे उतरा कि सब एक कचूमर हो गया।
__ध्यान रखें, परोसे हुए भोजन की कभी निन्दा न करें। भोजन स्वादिष्ट न भी हो, तब भी, उसे प्रेम से खा लीजिए। भोजन के समय अपने मन में काम-क्रोध आदि वृत्तियों को न आने दें। शान्त और प्रसन्नचित्त होकर भोजन करें। क्रोध अथवा निन्दा करके खाया गया भोजन राक्षसी हो जाता है, वहीं शांति और प्रसन्नता से लिया गया भोजन दैवीय हो जाता है।
गाँधी जी के यहाँ एक बड़ा अच्छा सिद्धान्त था।साबरमती में भोजन करने के लिए कोई व्यक्ति ‘गाँधीआश्रम में पहुँचता तो उसे भोजन के साथ नीम की चटनी भी परोसी जाती थी। संयोगवश जब कोई एक अंग्रेज आदमी वहाँ पहुँच गया तो उसने सोचा कि यहाँ तो नीम की चटनी खाने को मिलेगी। उसने सोचा, 'यह नीम की चटनी बार-बार मेरा मुँह का स्वाद ख़राब करेगी, तो मैं पहले इसे एक साथ खा लूँ।' उसने एक ही कौर में सारी चटनी खा ली और दूसरा कौर खाने लगा कि इतने में ही गाँधी जी उधर से गुजरे। उन्होंने कहा, 'इस आदमी को नीम की चटनी बहुत भाती है अत: इसे नीम की चटनी का एक चम्मच और दिया जाए।'
ध्यान रखें, जूठन न छोड़ें। अपनी थाली को अपने हाथों से धोकर रख दें। यह न सोचें कि घरवाली धोएगी। कम-से-कम एक इंसान दूसरे इंसान से अपनी जूठी थाली न धुलवाए, भले ही वह हमारा नौकर या
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