________________
कर्मचारी ही क्यों न हो। अगर हम मानवता की पूजा करते हैं, इंसानियत की इबादत करते हैं तो इंसान होकर इंसान का सहयोग करना चाहिए न कि इंसान होकर हम किसी दूसरे इंसान से अपनी जूठी थाली धुलवाएँ। हम अपने घर में यह व्यवस्था कायम करें और अपने बच्चे से भी कहें कि बेटा, तू अपनी थाली ख़ुद धोकर रखेगा।' हम अपनी कुलवधू से अपनी जूठी थाली न धुलवाएँ । कुल वधु गृहलक्ष्मी होती है। क्या आप लक्ष्मी से अपनी जूठी थाली और चड्डी-बनियान धुलवाएँगे? खुद धोकर रख दें। स्वावलम्बी जीवन जिएँ।
ज़रूरत से ज़्यादा न खाएँ। जितनी ज़रूरत हो, उतना ही खाएँ। एक कौर कम खाएँ तो ज्यादा अच्छा है। अंधेरे में भोजन न करें। बासी खाना न खाएँ। हमेशा ताजा, आज का बना हुआ आज ही खाइए तो आप बीमार नहीं पड़ेंगे।
एक सजन हैं लालचंद जी कोठारी। बुढ़ापे में भी चमकते हैं। उन्होंने बताया कि खाना तो क्या, मैंने घी भी कभी बासी नहीं खाया। पत्नी ने हमेशा उसी दिन के बिलोवन से निकले हुए ताजे घी का ही सदा उपयोग किया है। वे पिच्यासी वर्ष में भी स्वस्थ हैं और उनके गाल गुलाबी और फूले हुए हैं।
बहुत ज्यादा गरम पदार्थ का सेवन भी ठीक नहीं रहता। समशीतोष्ण भोजन लीजिए। जैसा कि कहा गया है -
ठण्डो पीवे, तातो खावे,
उण घर बैद कदै नी आवे। जो ठण्डा पीता है, गर्म और ताजा भोजन करता है, उसके यहाँ कभी वैद्य की ज़रूरत ही नहीं पड़ती।
ऊभो मूते, सूतो खावे,
उणरो दारिद्र कदै नी जावे। जो खड़ा-खड़ा पेशाब करता है और सोते-सोते खाता है, उस आलसी का दारिद्रय कभी नहीं मिटता। इन पुरानी बातों में, पुराने अनुभवों में जीवन जीने की शैली के सहज तत्त्व समाविष्ट हैं। हालांकि आदमी थोड़ी-सी ओट तो ले लेता है, पर यह क्या, जहाँ देखो वहीं, चैन खोली और हो गये शुरू...! अरे भाई, कुछ ववेक, कुछ तो सलीका बनाये रखो।
ध्यान रखो, सूरज उगे, उससे पहले उठ जाओ। खाना खाते वक़्त मत बोलो। सुबह का वक़्त बातों और गप्पों में बरबाद मत करो। सुबह पन्द्रह मिनट योग और प्राणायाम ज़रूर करो। शरीर, वस्त्र और मकान सदा साफ़-सुथरे रखो, गरिष्ठ भोजन से बचो। सुबह उठकर माता-पिता और बड़े-बुजुर्गों के चरण-स्पर्श करके उनकी दुआओं की दौलत बटोरो। अपनी हर वस्तु को यथास्थान रखने की आदत डालो। ग़लती हो जाए तो उसे दरकिनार करने की बजाय तत्काल उसे सुधारने का प्रयास करो।
LIFE
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org