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________________ जीवन के प्रबन्धन के लिए जहाँ खाना-पीना, उठना-बैठना, आहार-विहार सही-समुचित होना चाहिए वहीं हम यह भी ध्यान रखें कि हमेशा अच्छे लोगों के साथ उठे-बैठें। ग़लत लोग, ग़लत साहित्य, ग़लत वातावरण, ग़लत खानपान से खुद को बचाएँ। कहते हैं : रोम के एक चित्रकार ने एक बालक का चित्र बनाया। बालक के चेहरे से मानो शांति, सरलता और सौम्यता बरस रही थी।चित्र इतना सुन्दर था कि उसका सर्वत्र स्वागत हुआ। कुछ दिनों बाद उसने एक ऐसे व्यक्ति का चित्र बनाना चाहा जो कि धूर्त, क्रूर, लम्पट और स्वार्थी हो। बड़ी तलाश के बाद आख़िर उसे ऐसा भी एक आदमी मिल गया। चित्रकार ने उसका चित्र बनाया। एक दिन एक शख्स ने उन दोनों चित्रों को कहीं एक-साथ देखा। उन चित्रों को देखकर उसे बड़ी आत्म-गलानि हुई। वह सुबक-सुबक कर रोने लगा। किसी ने उससे पूछा - 'भाई रोते क्यों हो?' उस आदमी ने जवाब दिया इसलिए कि ये दोनों चित्र मेरे ही हैं।' बचपन में मेरा यह दिव्य स्वरूप था, किन्तु ग़लत सोहबत और गलत आदत पड़ जाने के कारण मेरा यह उग्र और विकृत रूप हो चुका है। सुसंगत जीवन का सौभाग्य है, पर कुसंगत जीवन का दुर्भाग्य । एक अच्छा मित्र जीवन को अच्छी मिशाल देता है, पर एक ग़लत दोस्त हमारे जीवन को गलत रास्ते पर ले जाता है। दोस्त ऐसे लोगों को बनाइए जो शिक्षित और संस्कारित हों। हमारे माता-पिता, भाई-बहिन कौन होंगे, इसका तो हम चयन नहीं कर सकते। यह कुदरत की देन है, पर मित्र और संगी-साथी कैसे हों, इसका चयन तो हम खुद करते हैं। इनका भी सही चयन तभी हो सकता है जब हमारा नज़रिया, हमारे संस्कार अच्छे होंगे। ___ अच्छी शिक्षा और अच्छे संस्कारों के लिए ज़रूरी है घर का वातावरण अच्छा हो और हमारे शिक्षणसंस्थान अच्छे हों। आप अपने बच्चों को, अपने छोटे भाई-बहिनों को संस्कारशील विद्यालयों में पढ़ाएँ। शिक्षा और संस्कार हमारे लिए नींव का काम करते हैं । जीवन के शुरुआती 25 वर्षों में हम जैसा बनते हैं, हमारे आने वाले 75 वर्ष की सारी खूबसूरती उसी से निर्मित होती है। जीवन में जैसे अच्छा मित्र मिलना कठिन है, वैसे ही अच्छा शिक्षक और अच्छा गुरु मिलता भी आपकी तपस्या का फल है। गुरु हो ऐसा जो हमें हर तरह से परिपक्व बना दे। मनुष्य का जीवन तो किसी अनघड़ पत्थर की तरह होता है । शिक्षक या गुरु ही उसे घड़ते हैं, उसे सुन्दर और आदर्श मूर्ति बनाते हैं। कहते हैं किसी राजकुमार की शिक्षा पूरी हो गई थी। महाराज अपने पुत्र को विद्यापीठ से ले जाने के लिए स्वयं आए। गुरु ने कहा – 'आपके पुत्र की और तो सारी शिक्षा पूरी हो गई है, अब सिर्फ एक सबक़ बाकी है। उसे मैं अभी पूरा कर देता हूँ।' यह कहकर गुरु जी ने एक कोड़ा लिया और आव देखा न ताव, उसकी पीठ पर दो कोड़े जड़ दिए और बोले, 'जाओ वत्स, तुम्हारा कल्याण हो।' Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003860
Book TitleLife ho to Aisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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