SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राजा ने आश्चर्य से पूछा, 'अपराध क्षमा हो, पर राजकुमार की विदाई के समय यह कोड़े मारना मेरी समझ में नहीं आया।' गुरु ने कहा – 'राजन् यह मेरी अंतिम शिक्षा थी। अब इसे शासक बनना है। तय है तब यह दूसरों को दण्ड देगा। राजन्, मैंने कोड़ा इसलिए मारा कि इसे सनद रहे कि मार की तकलीफ़ कैसी होती है।' जब मैं जीवन का यह पाठ पढ़ा रहा हूँ, तो मैं इसी सिलसिले में एक बात और निवेदन कर देता हूँ कि कभी किसी के न तो दुर्गुण देखें और न ही किसी पर गरमी दिखाएँ। गरमी से तो बनता काम भी बिगड़ जाता है, पर नरमी से बिगड़ता काम भी बन जाता है। गरमी महीने में एक दफ़ा दिखाएँगे, तो हज़म हो जाएगी, पर रोज़-रोज़ की गरमी आपकी खुद की सुख-शांति की हत्या कर डालेगी। तो क्या करेंगे? गरमी छोड़ेंगे और नरमी अपनाएँगे। खुद भी हँसें, दूसरों को भी हँसाएँ। न खुद फँसें, न दूसरों को फँसाएँ। कभी किसी के दोष पर गौर न करें। याद रखिए, दुनिया में कोई भी दूध का धूला नहीं है। कोई-न-कोई कमी तो कमोबेश हर किसी में होती है। ख़ामी पर ध्यान देंगे तो महान् से महान् व्यक्ति के लाभ से भी वंचित रह जाएँगे और ख़ासियत पर ध्यान देंगे तो मामूली-से इंसान का भी सार्थक उपयोग कर लेंगे। अभी कुछ दिन पहले की बात है। मेरे पास किसी व्यक्ति का एक गुमनाम-पत्र मिला, जिसमें एक व्यक्ति विशेष की किसी ग़लती का ब्यौरा लिखा हुआ था। उस व्यक्ति के ख़िलाफ़ काफ़ी उग्र तेवर थे उसके। मेरी समझ से हर किसी व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह मुझे सावचेत करे। पर पत्र के द्वारा नहीं, व्यक्तिगत रूप से मिलकर, शांत-विनम्र स्वर में। इस तरह किसी के ख़िलाफ़ ख़त लिखना एक तो इस रूप में भी ग़लत है। दूसरा गुमनाम ख़त लिखना, वह भी ग़लत है। तीसरा, किसी के प्रति इस तरह उग्र भाषा में लिखना, यह भी ग़लत है। चौथा, किसी के अपराध या दोष के प्रति अंगुली उठाने वाले को इतना ज़रूर याद रखना चाहिए कि ऐसा करने से बाक़ी की तीन अंगुलियाँ ख़ुद अपनी ओर ही उठती हैं। व्यक्ति के लिए जितना ज़रूरी यह है कि हम अपनी जीवनशैली को व्यवस्थित करें, उतना ही ज़रूरी यह भी है कि हम अपनी कार्यशैली को भी व्यवस्थित करें। निक्कमा आदमी किसी भी काम का नहीं होता। हर आदमी को कर्मयोग अवश्य करना चाहिए। आप ज़रा यह सोचिए कि मैं भी अगर यह सोच लूँ कि मैंने संन्यास ले लिया है और मेरे लिए तो सारे इन्तज़ाम हैं किन्तु आपको कल क्या खाना है इसकी चिन्ता भी आप करेंगे। आपको आज क्या पहनना है, इसकी चिंता भी आप करेंगे लेकिन मुझे कल क्या पहनना है इसकी चिन्ता मुझे नहीं करनी पड़ती, LIFE 93 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003860
Book TitleLife ho to Aisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy