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________________ मैं झट से दो में से एक का चयन कर लेता हूँ। स्वाभाविक है कि हर आदमी अपने लिए ख़ुशी का चयन करेगा। मैं भी विलम्ब नहीं करता और झट से ख़ुशी का चयन कर लेता हूँ और हर पल ख़ुश रहता हूँ। जो व्यक्ति अपने हर दिन की शुरुआत इतनी ख़ुशमिज़ाज़ी के साथ करे, इतने स्वस्थ मन से करे, उसका पूरा दिन स्वस्थ, प्रसन्न और मधुर रहता है। जीवनशैली को व्यवस्थित करने के लिए यह बहुत सीधा-सरल, सिद्ध मंत्र है कि सुबह आँख खुलते ही अपने तन-मन में प्रसन्नता का संचार करें। उसके बाद अपने माता-पिता को प्रणाम कर उनकी दुआएँ लें। नित्यकर्म करें, पर उनकी शुरुआत स्वस्थ मन से हो । कब उठें, कैसे उठें, क्या खाएँ, कैसे खाएँ ? ऐसा खाना खाएँ जिसे ग्रहण करने से हमारे भीतर सात्विकता का संचार हो। पूर्व या उत्तर दिशा की ओर बैठकर भोजन करें। ज़्यादा थके हुए हों तो विश्राम किए बिना भोजन न करें, अन्यथा ज्वर या वमन हो सकता है। ऐसा भोजन न करें जो गरिष्ठ हो । जहाँ जीमन' में गए हैं वहाँ बादाम की कतलियाँ हैं, राजभोग और रसगुल्ले बने हुए हैं। खिलाने वाला तो गरिष्ठ भोजन खिला देगा, मगर उस गरिष्ठता का परिणाम कभी भी सात्विक नहीं हो सकता। वह भोजन राजसिक या तामसिक होगा। भोजन शरीर की आवश्यकता है इसलिए हम उसे पूरा करते हैं। भोजन ऐसा हो कि जिस भोजन को करने से हमारा रक्त भी शुद्ध हो, हमारी हड्डियाँ मज़बूत हों, रज, वीर्य, शुक्राणु एवं हमारे शरीर का पोषण शुद्ध, सौम्य और सात्विक हो। जब राजस्थान के लोग मद्रास या मुंबई में चैकअप करवाने के लिए जाते हैं तो वे पहुँचते ही बता देते हैं कि तुम राजस्थानी हो। क्या आप बता सकते हैं किस कारण? पेटू होने के कारण। राजस्थानी लोग खाने-पीने के ज़रूरत से ज़्यादा शौकीन होते हैं। वे मेहनत तो करते नहीं हैं । दिनभर स्कूटर-कारों पर घूमते हैं । जीभ और पेट पर नियन्त्रण नहीं रखते। मनुहार के बड़े कच्चे होते हैं । सो किसी ने मनुहार की और ये महाशय हुए शुरू। खा-खा कर पेट्र भी मत बनो; वहीं इतना कम भी मत खाओ कि बिल्कुल दुबली-पतली चार हड्डियाँ हो जाओ। शरीर को जितनी ज़रूरत है उतना सात्त्विक आहार लें। एक समय अन्न लें। ज़रूरत लगे तो दो समय लें। अधिक भूख लगती है तो भी अन्न को दो बार से ज़्यादा न लें। अर्थात् एक बार सुबह और एक बार शाम को। इससे ज़्यादा नहीं। नियन्त्रण रखें, अपने पेट एवं अपनी जीभ पर । भूख लगती है तो थोड़ा दूध पी लीजिए, नींबू की शिकंजी या जूस पी लीजिए। अन्न को करो आधा, शाक को करो दुगुना। पानी को करो तिगुना, मुस्कान को करो चौगुना ।। जो व्यक्ति छोटा सा यह सूत्र अपने जीवन के साथ जोड़ ले तो मैं समझता हूँ कि स्वास्थ्य हमारी हथेली पर होगा। हमारे स्वास्थ्य का इंतजाम हमने ख़ुद ने कर लिया है। वे लोग ज़्यादा बीमार पड़ते हैं जो ज़्यादा खाते हैं। जो अपने खाने पर अपना अंकुश रखते हैं वे सदा स्वस्थ रहते हैं। LIFE Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003860
Book TitleLife ho to Aisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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